सोमवार, 28 नवंबर 2016

टाइटन की सैर

पिछिली बार की पोस्ट में आप को मैने बताया था कि मेरी विग्यान कथा “लौट आओ नीनो” आकार में बहुत बडी होने के कारण उसे संपादक की इच्छानुसार संपादित करके उसके मूल स्वरूप की हत्या करनी पड़ी थी। और यह विग्यान कथा आकार में बहुत बडी क्यों थी? वस्तुत: “लौट आओ नीनो” मूलत: एक बाल विग्यान उपन्यासिका की तरह लिखी गई थी पर अपने सारे प्रयासों के पश्चात जब मैं इसके लिए प्रकाशक न ढ़ूंढ़ सका तो इसे अंतत: विग्यान कथा के रूप में परवर्तित करके पाठकों तक पहुंचाने की विवशता थी। उन्हीं दिनों मेरे अभिन्न मित्र श्री बी के त्यागी के सह्योग से मुझे एक प्रतिष्ठित रेडि्यो धारावाहिक “सितारों से आगे” के लिए कई एपीसोड लिखने का सौभाग्य मिला। बताते चलें कि बहुत सारी कड़ियों का यह धारावाहिक विग्यान प्रसार और आल इंडिया रेडियो के सहयोग से बनाया गया था और एक साथ 19 भाषाओं प्रसारित किया गया था। इस लेखन के दौरान करीब-करीब सारे ग्रहों-उपग्रहों के बारे में विस्तार से अध्यन करने का मौका मिला। मन में विचार आया कि इस जानकारी को पाठकों, खास कर बच्चों, तक पहुंचाऊ। इसलिए “लौट आओ नीनो” के सीक्वेल के रूप में एक और बाल विग्यान उपन्यासिका लिखी “टाइटन की सैर”। पर जब “लौट आओ नीनो” के लिए ही प्रकाशक न ढ़ूंढ़ पाया था तो इसका क्या हश्र होना था इसका अनुमान सहज़ ही लगाया जा सकता है।  अंतत: इसे विग्यान कथा के रूप में परवर्तित करके पाठकों तक पहुंचाया गया। उपरोक्त दोनों बाल उपन्यासिकाओं की पांडुलिपियां बहुत दिनो तक अलमारी में धूल खातीं रहीं अब कहां और किस हाल में हैं पता नहीं।अब तो मन मार कर “लौट आओ नीनो” के सीक्वेल का विचार ही त्याग दिया है। आखिर किसी की सारी हसरतें पूरीं ही हो जाएं तो क्या बात है? बकौल चचा ग़ालिब “इस घर में था ही क्या जिसे ग़म ग़ारत करता, हसरते तामीर थी सो है”। इतनी सी स्वीकरोक्ति के बाद पेश है  बाल विग्यान उपन्यासिका लिखी “टाइटन की सैर” का परिवर्तित स्वरूप यह विग्यान कथा “टाइटन की सैर”। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
----अरविन्द दुबे

टाइटन की सैर
राजू आज फिर नदी के किनारे उसी जगह पर खडा था जहां कुछ महीनों पहले उसकी नीनो से अचानक मुलाकात हुर्इ थी। वही नीनो जो किसी किसी अज्ञात ग्रह का वासी था जो अपने चार साथियों के साथ मानसिक ऊर्जा के द्वारा प्रकाकी गति से भी तेज चलने वाले यान पर सवार होकर रहने के लिए एक शांत जगह की तालश में पृथ्वी पर आया था। क्योंकि उसके ग्रह पर हुए एक भीषण आणविक युद्ध में उसके ग्रह की अधिकांश आबादी समाप्त हो गर्इ थी। बाकी बचे लोग उसी की तरह बसेरे की तलाश में एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक भटक रहे थे। यह वही नीनो था जो एक भाषा परिवर्तक यंत्र के जरिए पृथ्वी पर बोली जाने वाली सारी भाषाओं को सुन कर समझ सकता था और बोलने पर उसकी आवाज सामने वाले को उसकी ही भाषा में सुनार्इ देती थी। कमाल का यंत्र था वह जिसे तकनीकी रूप से हम मानवों से बहुत विकसित, नीनो की जाति के वैज्ञानिकों, ने तैयार किया था।

राजू को अच्छी तरह याद है कि नीनो ने उसे बताया था कि उसके अपने ग्रह पर वहां के निवासियों की अकड़ के चलते विभिन्न क्षेत्रों में भयंकर युद्ध हुआ था जिसमें आणविक, एंटीग्रेविटी और बहुत सारे हथियारों का जम कर प्रयोग हुआ था। जिसमें वहां की नब्बे प्रतिशत आबादी समाप्त हो गर्इ थी। वातवारण में इतना विकरण था कि वहां सांस लेना भी मौत को दावत देना था। नीनो के ग्रह के बचे लोग छोटे-छोटे समूहों में जेनेरशन शिपों में बैठकर वहां से भाग निकले थे। यह जेनेरेशन शिप एक तरह से एक पूरा चलता फिरता हर ही होते थे जिनमें हर चीज स्वनियंत्रित होती थी। बिना कोर्इ र्इधन भरे मानसिक ऊर्जा से संचालित यह जेनेरेशन शिप ताब्दियों तक अंतरिक्ष में चक्कर लगाते रह सकते थे। एक विशेष प्रकार की किरणों की अदृष्य दीवार इन जेनेरेशन शिपों को अंतिरिक्षीय हानिकारक विकरणों से बचाती थी। ऐसे ही एक जेनेरेशन शिप से नीनो का दल अपना छोटा यान लेकर निकला था, अंतरिक्ष में ऐसी जगह की तलाश  में, जहां उनकी लुटी-पिटी सभ्यता फिर से विकसित हो सके। पृथ्वी पर आकर उन्होने वहीं द्वेष, कपट और थोथी अकड़ देखी थी; यहां के निवासियों में आणविक हथियारों सहित पूरी मानवता के संहार में सक्षम हथियारों की होड़ देखी थी; तभी वह समझ गए  थे कि एक एक दिन इस पृथ्वी का भी वही हश्र होगा जो उनके अपने ग्रह का हुआ था। उन्हें लगा था कि पृथ्वी पर भी बसना ठीक नहीं है क्योंकि जब यह आणविक हथियार प्रयोग होंगे तो उन्हें अन्य पृथ्वी वासियों की तरह यहां से भी जान बचाकर भागना पडेगा। अंतत: वह यह कहते हुए लौट गए थे कि हम फिर से वही विनाश का दृ्श्य नहीं देखना चाहते हैं जो उन्होंनेअपने ग्रह पर देखा है। एक बार ऐसी पृथ्वी पर बस कर फिर नहीं उजड़ना चाहते जिस पर विनाश का खतरा उन्हें साफ मंडराता दिखार्इ दे रहा था। हालांकि राजू ने उन्हे विश्वास दिलाना चाहा था कि वह बच्चों की इस पीढ़ी पर एक बार भरोसा करके तो देखें वह देंगे उन्हें एक दुनियां जिसमें छल, कपट और हथियारों की होड़ नहीं होबी और हमेशा शांति रहेगी। पर नीनो और उसके साथी राजू की पुकार को अनसुना करके एक उपयुक्त स्थान की तलाश में चले गए थे; जहां उनकी उजड़ी सभ्यता एक बार फिर पनप सके। हॉ जाते-जाते वह यह वादा जरूर कर गए थे कि एक ठीक-ठाक बसेरा मिलते ही वह उससे मिलने जरूर आएंगे। तब से आज तक राजू नियम से शाम को रोज नदी के किनारे  यहां पर आता है क्योंकि उसे विश्वास है कि सुदर ग्रह से आया वह भला प्राणी नीनो एक दिन यहां जरूर लौटेगा। पहले तो उसके अन्य दोस्त भी उसके साथ होते थे पर उसकि इस सनक के चलते एक-एक करने सबने उसके साथ आना छोड दिया था। राजू धीरे-धीरे अकेला होता गया। अब वह किसी के साथ खेलता है और स्कूल के अलावा कहीं और जाता है। अब तो सपनों में भी उसे नीनो ही दिखता था। राजू पर नीनो का यह भूत इस हद तक सवार था कि कोर्इ उसे सनकी मानता तो कोर्इ दिन में सपने देखने वाला लड़का। पर इस सबसे बेखबर राजू हर शाम नदी के किनारे इसी जगह पर आता और सूर्य छिपने तक यही बैठा चारों ओर ताकता रहता। उसके पिता-माता भी सोच में थे कि आखिर राजू को यह हुआ क्या है ?
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हर रोज की तरह राजू आज भी काफी देर से नदी के किनारे पर बैठा था। चूंकि आज स्कूल की छुट्टी थी इसलिए राजू नाश्ता करने के बाद यहीं आकर जम गया था। राजू तरह-तरह के ख्यालों में खोया था कि  उसे लगा कि अचानक हवा तेज-तेज चलने लगी है। फिर किसी भारी चीज के धीरे से गिरने का आवाज आर्इ। पेड़ों पर बैठे पक्षी चीख कर आसमान में चक्कर काटने लगे। राजू को थोडा डर लगने लगा। आखिर क्या बात हुर्इ? कोर्इ जंगली जानवर तो झाड़ियों में नहीं गया? यह पक्षी चीख कर पेडों से क्यों उडे़? उसे लगा अब लौटना चाहिए। वह अपनी जगह से उठा और वहां से थोडी ही दूर पर बसे अपने गांव की ओर तेज-तेज कदमों से चलने लगा।
‘राजू
राजू को लगा किसी ने उसकेा पुकारा। राजू ने पलट कर देखा पर वहां कोर्इ था। वह मुँह फेर कर उस पतली पगडंडी पर चलने लगा जो गांव की तरफ जाती थी। उसे अब थोड़ा डर भी लगने लगा था।
राजूउसके पीछे से आवाज आर्इ।
राजू ठिठक गया। एक बार डरते-डरते उसने पीछे मुड़ कर देखा। अबकी बार उसे झाडियों से कोर्इ बाहर निकलता नजर आया। राजू वहीं रूक गया। झाडियों से निकलने वाला उसी की ओर बढता रहा था। वह भागने को ही था तभी फिर एक आवाज आर्इराजू राजू जहां था वहीं रूक गया। थोड़ी देर बाद उसी तरह का और प्राणी झाडियों से निकलता दिखार्इ दिया। वही करीब 4 फीट का कद, बॅाहें घुटनों तक पहुँचती हुर्इं, सिर रीर के मुकाबले काफी बड़ा, लम्बा चेहरा, खाल जैसे सीधे-सीधे हड्डियों पर चिपकी सी दिखी।
“कहीं य नीनो तो नहीं”, उसने सोचा।
राजू की तरफ आनेवाला अब काफी करीब गया था।
राजू की तरफ आनेवाला अब काफी करीब आ गया था।
‘अरे ये तो नीनो जैसा है.............बिलकुल नीनो जैसा’, राजू ने सोचा।
आने वाला अब और पास आ चुका था।
‘राजू…………’,
राजू को अब उसकी आवाज साफ सुनार्इ दी।     
वे राजू की ओर बढ़ते आ रहे थे।
राजू ने दूर से पुकारा, “नीनो...........क्या तुम नीनो हो?”
“हां, और तुम ‘राजू’?”
“हां मैं राजू हॅू”, कहता हुआ राजू दौड़ कर नीनो के पास पहुंच गया।
“मुझे पता था तुम एक दिन जरूर आओंगे”, राजू ने हांफते हुए कहा।
“तभी तो मैं आ गया।”
राजू का दिल बल्लियों उछलने लगा। वह लपक कर आगे बढ़ा। नीनो ने अपने हाथ आगे बढ़ाए तो राजू ने उन हड़ियल हाथों को पकड़ लिया.......बेजान से ठंडे हाथ.... पर आज उसे कुछ भी अलग नहीं लग रहा था।
नीनो तुम्हारा वह भाषा बदल यंत्र कहां हैं आज......लाए नहीं?
यही.............यही तो....... उसी से तो बोल रहा हॅू राजू, वरना तुम मेरी बात कैसे समझ पाते?”
“वाह! आज तो इससे बिलकुल हमारी जैसी बोली सुनार्इ दे रही है, पहले जैसी नहीं, मैं.........नीनो..........आया दूर से………… मिलने तुमसे…………
दोनों हंस पड़े।
ओह मैं तो समझा कि अबकी बार तुम हमारी भाषा सीखकर आए हो।
सीखी तुम्हारी भाषा.............पर हम गलत बोलता, तुम सुनता तो हंसता तुम...............”
अच्छा अगर तुम बिना भाषा बदल यंत्र के बोलोगे तो गलत बोलोगे और मैं उस पर हसूँगा?”
नीनों से स्वीकृति में सिर हिलाया।
अब तक नीनो का दूसरा साथी भी पहंचा था वह भी बिलकुल नीनो जैसा था।
“नीनो यह तुम्हारा भार्इ है,” राजू ने आनेवाले की ओर इशरा किया।
भार्इ.........भार्इ क्या.............”
राजू समझ नहीं पा रहा कि उसे कैसे समझाए कि भार्इ क्या होता हे उसने समझाने की कोशिश की; एक पिता दो बेटे……… भार्इ-भार्इ………”
“बेटे! बेटे क्या………” नीनो की समझ में जैसे कुछ नहीं आया।
“ओह अब इसे कैसे समझाऊं”, राजू ने सोचा। फ़िर कुछ सोच कर राजू ने अपनीएक उंगली दिखार्इ और बोला “मां.........” फिर नीनो की एक उंगली पकड़ी और बोला, पिताफिर दोनो उंगलियों को एक साथ मिलाया और बोला, “बेटा”।
 “नहीं……मां नहीं…… पिता नहीं बेटा नहीं……… हम लोग ........ नीनो राजू को कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था पर शायद उसके लिए उपयुक्त शब्द नहीं जुटा पा रहा था।
क्या बेटा नही! मां नहीं...........पिता नहीं...........बेटा नहीं ...............ठीक है, ठीक है.......खैर जाने दो” यह कह कर राजू ने उसे उस ऊहापोह की स्थिति से उबारा।

राजू को जैसे कुछ याद आया, हां नीनो तुम्हें अपने रहने लिए क्या कोर्इ जगह मिली या फिर उसी तरह भटक रहे हो?”
मिली जगह, मिली…… बहुत दूर…… बहुत दूर……”
“बहुत दूर,  आखिर किस ग्रह पर?”
ग्रह पर नहीं उपग्रह पर.....तुम जानते उपग्रह?”
“हॉ....हॉ उपग्रह यानि कि किसी  ग्रह का चंद्रमा………”
ठीक कहा
“कौन सा है वह ग्रह जिस पर जाकर तुम बसे हो, क्या कहते हो तुम उसे?
एक ठंडा ग्रह जिसके चारों ओर बर्फ़ से बने छल्ले हैं।
“अच्छा नि?

“तो तुम्हारे यहां उसे शनि कहते हैं?”
हॉ, तो तुम शनि पर जाकर बसे हो........मगर कैसे ........हमारे सर तो कहते हैं कि शनि पर तो कोर्इ धरातल ही नहीं है वहॉ 1800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलती हैं और फिर वहां का तापक्रम शून्य से भी काफी नीचे......तुम्हारी कुल्फी नहीं जम जाती वहॉ?”
“कुल्फी......... कुल्फी क्या......... कुल्फी तो खाते?”
ओफ्फो....... कुल्फी क्या........कुल्फी मतलब बर्फ...........बर्फ नहीं जम जाती तुम्हारी वहॉ?”
“अरे नहीं हम शनि पर नहीं रहते......”
“तो?
“शनि का चंद्रमा.......हम शनि के एक चंद्रमा पर बसे हैं
“शनि का चंद्रमा........... कौन सा, शनि के तो साठ से ज्यादा चंद्रमा हैं”
“उनमें से ही एक, जिसे तुम लोग टाइटन कहते हो”
 नीनो तुम्हें कैसे पता कि हम किसे क्या कहते हैं?
भूल गए, पिछली बार हमने तुम्हें बताया था न कि हमारे पास पृथ्वी की सारी भाषाओं का वाँयस मैप है। हमने यहां की तीन अरब पुस्तकालयों की सारी किताबें रिकार्ड की हैं
“क्या! वैसे एक बात बताओ नीनो इनमें से कितनी किताबें तुम पढ़ पाओगे........ अब तक कितनी पढ़ पाए हो?”
सब की सब
क्या,राजू की मुह आश्चर्यसे खुला रहा गया।
हमारे मस्तिष्क में एक चिप होते वह चिप हमको हमारे ग्रह के सुपर कंप्यूटर से जोडते और हम जो जानकारी चाहते, मिल जाती।
हूँ, तो तुम नि के चंद्रमा टाइटन पर जाकर बसे हो

बसे नहीं, बसने की कोशिश........”
यानि कि अभी तक वहां पर जाकर अपने को ढाल नहीं पाए हो
ढाल क्या………? “
अरे तुम्हारे पास तो हमारी भाषा का वाँयस मैप है, भाषा परिवर्तक यंत्र है फिर भी पूछते हो, ढाल क्या?”
 “पर एक बात बताओ नीनो तुम लोग टाइटन पर ही क्यों बसे?
“क्योंकि हमें तुम्हारी पृथ्वी बहुत पसंद है………बसने के लिए एक दम उपयुक्त…………एक सुंदर ग्रह।“
“अच्छा, हमारी पृथ्वी तुम्हें बहुत पसंद है फ़िर भी तुम यहां नहीं बसे………हमने तो तुमको कितना रोका था।“
“हां, यहां के वासियों के अहकार लालच और बेवकूफ़ी के डर से हम इस पर बसने की हिम्मत नहीं कर पाए।“
“पर तुम लोग तो टाइटन पर बसे हो जब कि पसंद तुम्हें हमारी पृथ्वी है………? 
“क्योंकि बहुत सारी बातों में टाइटन तुम्हारी पृथ्वी से मिलता है। जैसे तुम्हारी पृथ्वी के चारों ओ  एक चंद्रमा चक्कर लगाता है वैसे ही टाइटन, शनि ग्रह का चंद्रमा, जो तुम्हारे चंद्रमा से दो गुने से थोड़ा सा ही छोटा और करीब 16 दिन में शनि का एक चक्कर पूरा करते .....”
“वहां भी मानव रहते हैं क्या नीनो?”
“नहीं, पर अगर तुम्हारी पृथ्वी के अलावा इस बृह्मांण में जीवन कहीं और पनप सकते तो टाइटन पर.....।”
“अब वहां ठीक से रह तो रहे हो नीनो?”
“नहीं.............अभी तो वहां रहना सीख रहे....”
“क्यों अब वहां भी कोर्इ परेशानी है?”
“परेशानी! टाइटन इतना ठंडा कि जम जाएं, शून्य से 180 डिग्री नीचे।
“बाप रे!”
“और वातावरण में 97 प्रतिशत नाइट्रोजन, आक्सीजन बिलकुल नहीं।”
“तो तुम वहां कैसे रहते हो नीनो?”
“हम बहुत बडे़ बुलबुलों के आकार का एक शहर बसाते....वातावरण अपने हिसाब से नियंत्रित करते……
“और सांस लेने के लिए आक्सीजन क्योंकि टाइटन के वातावरण में करीब 97 प्रतिशत तो नाइट्रोजन है पर आक्सीजन बिलकुल नहीं है।
“वह हम वहां की और गैसों से और वहां की जमी बर्फ से निकालते।”
“काश मैं भी देख पाता कि बुलबुलों जैसे शहर कैसे होते हैं”, राजू ने नीनो से कहा।
नीनो ने एक पल को सोचा और बोला, “देख सकते, हमारे साथ चलते।”
“तुम्हारे साथ चलूं..........फिर मेरे माता-पिता मुझे ढूंढेंगे तो?”
“नहीं, शाम तक हम तुम्हें वापस यहीं पहुंचा जाते।”
“क्या बात करते हो!, शनि यहां से लाखों-अरबों किलोमीटर दूर है और तुम मुझे शाम तक वापस लौटा लाओगे”, राजू ने आश्चर्य से कहा।
“भूल गए तुम, हमारा यान मानसिक ऊर्जा से चलते इसलिए प्रकाश की गति से हजारों गुना तेज चलते, मन की गति से “
“क्या?”
हमारे मस्तिष्क में एक चिप लगा..........वह जुड़ा हमारे यान के कम्प्यूटर से ..... जब हम सोचते कि यान चले तो हमारा चिप सिग्नल देते यान कमप्यूटर को, यान चल पड़ते।”
“मतलब यान को चलाने के लिए तुम्हें हाथ-पांव कुछ नहीं चलाना पड़ता है सिर्फ तुम्हें यह सोचना है कि यान चले तो ये कमांड तुम्हारे मस्तिष्क में चली चिप रिसीव करके यानके कम्प्यूटर को दे देती है और तुम्हारा यान चल पड़ता है?”
“ठीक जाना........राजू”
“कमाल है”
“कमाल नहीं मानसिक ऊर्जा का सही पूरा प्रयोग”
“इसका मतलब जब तुम सोचोगे कि यान दांएं मुड़े तो यान दांएं मुड़ जाएगा और जब यह सोचोगे कि यान रूके तो यान रूक जाएगा?”
“ठीक जाना.........यान की तरह हमारे यहां और यंत्र भी सिर्फ सोचने से चलते”
राजू की सारी शंकाएं मिट चुकीं थीं। वह मन ही मन नीनो के साथ जाने के लिए तैयार था फिर भी उसने पक्का करने के लिए पूछा, “नीनो हम शाम तक वापस लौट तो आएंगे?”  
“बिलकुल”
“तो फिर चलें?”
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तीनों यान में सवार हो गए। हल्का सा धक्का महसूस हुआ और यान चल पड़ा।
थोड़ी देर बाद यान में हल्का सा कंपन महसूस हुआ। नीनो कुछ परेशान सा दिखार्इ दिया।
नीनो के साथी ने नीनो की ओर मुड़ कर देखा और नीनो ने राजू की ओर, मानो कुछ कहना चाहता हो।
“क्या बात है नीनो”, राजू ने थोड़ा डरते हुए पूछा।
नीनो ने राजू की ओर देख कर कहा, “कोर्इ खास बात नहीं। राजू तुम्हें मानसिक ऊर्जा का प्रयोग करने की आदत नहीं.......तुम्हारी पूरी मानसिक ऊर्जा हमें नहीं मिलते..... हमारा यान हम तीनों की पूरी मानसिक ऊर्जा से ही ठीक चलते।” 
“तो”, राजू ने पूछा।
“तुम सो जाओ.......तुम्हारी मानसिक ऊर्जा पर तुम्हारे जागृत मस्तिष्क का नियंत्रण खत्म होते......तुम्हारी पूरी मानसिक ऊर्जा मिलते......प्रयोग होते........यान ठीक चलते......”
मैं सो जाऊं तो मेरा जागृत मस्तिष्क मानसिक ऊर्जा के प्रयोग मंरूकावट पैदा नहीं करेगा?”
“ठीक”
“पर मुझे कोर्इ परेशानी ...........”
“परेशानी कोर्इ नहीं.....केवल नींद, सचमुच की नींद होते.....
राजू डर गया। वह सोना नहीं चाहता था पता नहीं यह लोग उसके सोने के बाद उसके साथ क्या करें । उसे पछतावा हो रहा था कि वह उनके साथ क्यों आया?
“सोते ...........”
“नहीं मैं सोना नहीं चाहता, मैं यान की खिड़की से बाहर झांक कर देखना चाहता हॅू”, राजू ने बहाना बनाया।
“बाहर देखते, बाहर कुछ नहीं....अंधेरा, घना अंधेरा........बाहर कुछ दिखार्इ नहीं देते, सो जाओ प्लीज।
यान में एक बार फिर कंपन हुआ। राजू ने सोचा कि अगर वह न सोया तो क्या पता यान चले ही न या यहीं से गिर कर नष्ट हो जाए। अगर वह सो जाता है तो पता नहीं यह लोग उसके बाद उसके साथ क्या करें? अंतत: उसने फैसला कर लिया कि वह सो ही जाएगा। यूं मरने से तो सोना अच्छा।
“सोते?”
“हां” राजू की मरी सी आवाज निकली, “पर मुझे तो नींद ही नहीं आरही है कैसे सोऊं”, राजू डर रहा था।
“उस नीली रोशनी की ओर देख्ते”, नीनो ने कहा।
राजू नीली रोशनी की ओर देखने लगा और उसकी पलकें अपने आप मुंदने लगीं।
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“राजू जागो हम पहुंचने ही वाले हैं,” नीनो राजू की झिंझोड़ कर जगाने का प्रयास कर रहा था।
राजू ने आंखें खोल दी।
“हम कहां आ गए”, अपनी नींद खुलते ही राजू ने प्रश्न किया।
“शनि के पास...................”
“शनि के पास क्यों? हमें तो उसके उपग्रह टाइटन पर जाना था। क्या यान भटक गया”, राजू ने घबरा कर प्रश्न किया।
“नहीं यान  भटकते नहीं, जानते टाइटन नि से हजारों किलोमीटर दूर?”
“हां-हां तुमने बताया था कि टाइटन को अपनी धुरी पर घूमने में भी उतना ही समय लेता है जितना नि की एक परिक्रमा करने में इसलिए इसका एक भाग हमेषा नि की और रहता है दूसरा हमेशा उससे दूर।”
“इसलिए हम “ानि की एक फ्लार्इ बार्इ के बाद टाइटन की कक्षा में प्रवेश करते।”
“फ्लार्इ बार्इ क्या?”
“फ्लार्इ बार्इ मतलब नि का एक चक्कर लगा कर हमारा यान पहुंचते टाइटन की कक्षा में, फिर धीरे-धीरे उतरते टाइटन पर।”
एक झटका लगा और यान नि की कक्षा में प्रवेश कर गया।
“क्या मै नि को देख सकता हूं, राजू ने पूछा”
“हां यान की गति धीमी, तुम देख सकते” यान में एक ओर एक खिडकी चमकी। नि नजर आने लगा पर यह सब कुछ मिनटों तक ही दिखा क्यों कि तेज गति से चलता यान टाइटन की कक्षा में प्रवेश कर गया था।
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“थोडी देर में हम टाइटन पर पहुंचते ...............”, नीनो कह रहा था।
राजू उत्सुकता से टाइटन पर उतरने की प्रतीक्षा करने लगा। पर उसे अभी नीचे कोर्इ मानव निर्मित रचना नजर नहीं आ रही थी। चारों तरफ कोहरा सा नजर आता थां।
“नीनो यह कोहरा”, राजू ने प्रष्नवाचक निगाहों से देखा।
“मीथेन गैस से बना कोहरा”, नीनो ने उत्तर दिया।
“तभी यहां कुछ दिख नहीं रहा है”
“लो देखो”, नीनो ने यान का राडार चालू कर दिया। यान की दीवार पर नीचे के चित्र साफ नजर आने लगे। अब टाइटन पर झीलें पहाड़, मैदान बालू के ढे़र साफ नजर आ रहे थे। यान जैसे ही टाइटन के दूसरी ओर पहुंचा तो कर्इ बहुत बड़े-बड़े दानवाकार बुलबुले नजर आने लगे जो ड़ी तेजी से पास आ रहे थें।
“अब हम पहुंचने वाले हैं” नीनो ने कहा।
यान जाकर एक बुलबले के एक हिस्से पर चिपक गया। यान के एक हिस्से में एक दरवाजा खुल गया था। आगे एक संकरी सुरंग थी जिसमें भरपूर प्रकाश था। तीनों लोग जैसे ही यान से बाहर निकल कर सुंरग में आए उनके पीछे का दरवाजा अपने आप बंद हो गया।
राजन ने घबराकर बंद दरवाजे की ओर देखा।
“हमारे बुलबुले हर का अपना वातावरण......टाइटन से अलग। दरवाजा बंद.....बाहर का वातावरण बाहर, अंदर कर अंदर....मिलावट नहीं होते” नीनो राजू को समझाने की कोशिश कर रहा था।
सुरंग समाप्त होने पर फिर एक ऐसा ही दरवाजा था जो नीनो के पहुंचते ही अपने आप खुल गया और उनके अंदर प्रवेश करते ही अपने आप बंद हो गया। नीनो के तरह के ही एक जीव ने एक तेज रोशनी नीनो के कलार्इ पर बंधे बेंड पर डाली और नीनो को आगे जाने दिया। इसी तरह उसका दूसरा साथी आगे निकला। अब राजू की बारी थी। राजू के आगे रोशनी डाल कर वह अस्पष्ट स्वर में कुछ भुनभुनाया। नीनो ने अपना भाषा परिवर्तक यंत्र उतारा और उस व्यक्ति से बात करने लगा। लगता था उनमें किसी बात पर बहस हो रही थी। अंतत: उनमें सहमति हो गर्इ और तीनो लोग आगे चले।
“चलो चलें”, नीनो ने अब उपना भाषा परिवर्तक यंत्र पहन लिया था।
राजू को घर की कल्पना गुदगुदा गर्इ। नीनो पास के एक दरवाजे के पास पहुंचा। उसने एक नजर दरवाजे को देखा और दरवाजा खुल गया। राजू ने उनके साथ दरवाजे में प्रवेश किया। पर यह क्या वे तो एक उसी तरह के स्लाइडर या खिसकने वाले झूले के ऊपर बैठे थे जैसा कि आम तौर पर पार्कों में लगा होता है। इसके दूसरी ओर एक दीवार पर एक चमकीली स्क्रीन लगी थी। जब वे तीनो लोग उस झूले पर बैठ गए तो नीनो ने उस स्क्रीन की ओर देखा। स्क्रीन के ऊपर रोशनी में कुछ अंक चमके। नीनो के उस स्क्रीन से नजर हटाते ही वे अपने आप उस खिसकने वाले झूले पर बहुत तेजी से खिसकने लगे। राजू को लगा कहीं वह किसी चीज से टकरा न जाए। उसकी चीख निकल गर्इ।

“घबराना नहीं यह हमारे यहां का यातायात सिस्टम.....हम उस स्क्रीन में फीड करते कहां जाना, वहीं जाकर रूक जाते अपने आप....... कोर्इ खतरा नहीं”, नीनो ने उसे सांत्वना दी।
सचमुच ही वे एक दरवाजे के पास जाकर अपने आप रूक गए। उन लोगों के पहुचते ही दरवाजा अपने आप खुल गया। अब वे एक गोल  कमरे में थे जिस में एक ही कमरे में सेल्फ बनाकर काफी जगह निकाली गर्इ थी। उसमें नीनो जैसे चेहरेवाले दो जीव और थे। उनके चेहरे की खाल अपेक्षाकृत लटक गर्इ थी जिस से लगता था कि वे नीनो से ज्यादा उम्र के थे। राजू ने उन्हें हाथ जोडकर प्रणाम किया तो वे दोनों आश्चर्य से कुछ बोले। राजू ने नीनो की ओर देखा कि कहीं उस से कुछ गलत तो नहीं हो गया?
“तुम यह क्या करते”,  नीनो ने पूछा।
“प्रणाम, हमारे यहां बड़ों को प्रणाम करते हैं, ये तुम्हारे माता-पिता हैं न”, राजू ने जानना चाहा।
“माता-पिता क्या”, नीनो ने एक क्षण को सुपर कंप्यूटर से संपर्क किया और बोला, “ओह माता-पिता, हमारे यहां मात-पिता नहीं .....सुपीरियर और जूनियर......ये मेरे सुपीरियर हैं......हम इनके जूनियर……… हम इनके साथ एक ही स्पेस में रहते....हमको यहां के संस्कार देना इनका उत्तरदायित्व होते.......”
राजू हैरान था उसने पूछा, “माता नहीं......पिता नहीं फिर तुम लोग........”
“हमारे यहां जब कोर्इ अपना जूनियर चाहते....अपने रीर से एक कोशिका सेंटर में देते.......उस कोशिका से क्लोन करके जूनियर बनते........पूरा जूनियर”, नीनो ने समझाने की कोशिश की।
राजू की आंखे आश्चर्य से फैलती जा रही थीं।
“.............एक सुपीरियर को सिर्फ एक ही जूनियर की परमीश होते बस......ये दोनों सुपीरियर हम दोनों जूनियर होते
“नीनो तुम्हारा भी कोर्इ जूनियर...”
“नहीं अभी मेरे पास सुपीरियर होने भर के लाइफ पॉइंट नहीं होते
“नीनो तुम्हारा कमरा कहां है” राजू ने उत्सुकता पूछा।
“कमरा”...........कमरा नहीं स्पेस ......उधर”, नीनो ने उसी कमरे के एक हिस्से की और इशारा किया ।
तुम्हारा मतलब यही एक कमरा तुम सारे लोगों के लिए”
“ठीक समझते.....”
“पर.........”
“तुम्हारे जैसा बड़ा-बड़ा स्पेस यहां नहीं होते......सब आर्टीफिशियल स्पेस ...नियंत्रित वातावरण...”
“फिर किचन, बाथरूम....शौचालय.............. “
नीनो ने ये ब्द सुनकर एक बारगी एकबारगी कुछ सोचा फिर बोला, “ओह किचन खाना की जगह”
“खाना बनाने की जगह”, राजू ने भूल सुधारी।
“जहां खाना बनते वहीं खाना खाते....... तुम को भूख लगते?”
राजू को सचमुच भूख लगी थी बोला, “लगी जोर की भूख लगी।”
नीनो ने कहा, “खाना अपने स्पेस में नहीं खाते एक बुलबुले के सारे लोगों का खाना एक ही जगह बनते, वहीं चलते....”
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पलक झपकते ही खिसकने वाले झूलों पर सवार होकर वे भोजन कक्ष में पहुंचे। खाने का कमरा भी अजीब था। वहां एक रेलवे की टिकिट खिड़की जैसी जगह थी जिस के एक ओर एक चमकीला पर्दा लगा था जिस पर कुछ अक्षर चमक रहे थे। नीनो ने कुछ अक्षरों पर उंगली रखी तो तीन प्लेटें काउंटर पर आ गर्इं उनमें कुछ काली काली गोलियां थीं।
नीनो ने एक प्लेट उठाकर राजू को दी और बोला “खाओ”
“क्या है यह.............”, राजू भौंचक्का था।
“खाना....इनर्जीटैब्स....पूरे दिन की इनर्जी को काफी, खाकर तो देखते। तीन गोलियां खाकर लंबे समय तक तुम्हें भूख-प्यास नहीं लगते
राजूने तीन गोलियां उठार्इ और मुंह में डालीं। इनमें कोर्इ स्वाद न था। वह जबरदस्ती उन्हें निगलने की कोशिश करने लगा पर गोलियां थी कि उसके हलक में चिपकी जाती थीं।
“पानी”, वह चिल्लाया। नीनो उठकर तेजी से भागा और एक गिलास पानी ले आया। पानी पी कर राजू की जान में जान आर्इ। गोलियां निगलते ही लगा उसके पूरे रीर में गरमी भर गर्इ थी पर थोड़ी ही देर में सब सामान्य हो गया। उसकी भूख खत्म हो गर्इ थी।
“ओह...” उसने एक गहरी सांस ली, “तो पानी है तुम्हारे यहां?”
“पानी......पानी नहीं, पानी बनाते.......फ्यूलसेल में हाइड्रोजन और आक्सीजन मिलाकर.......आक्सीजन भी यहां नहीं.......आक्सीजन कार्बन डाइ आक्साइडड से निकालते....बहुत कम पानी पीते हम”
“पर यहां उतरते समय तो मुझे झीलें दिखी थीं”
“वह पानी नहीं ....द्रव मीथेन...... हम उसे पानी की तरह इस्तेमाल करना सीख रहे”
“पानी नहीं, तब तुम नहाते कैसे हो”, राजू ने जानना चाहा।
नीनो एक क्षण को खामोश हुआ। वह सुपर कंप्यूटर से नहाने के बारे में जानकारी ले रहा था। क्षण भर बाद बोला, “नहाना नहीं......... डिसइंफेक्शन चेम्बर......वहां जाते...........डिसइंफेक्टेंट किरणों से सारा रीर डिसइंफेक्ट करते..........बैक्टीरिया खत्म..........गंदगी खत्म... “
मतलब तुम हमारी तरह नहाते नहीं हो? सिर्फ केमीकल से अपने आप को जीवाणु रहित करते हो?”
नीनो ने सहमति में सिर हिलाया।
“नीनो क्या हम घूमने के लिए बुलबुले से बाहर जा सकते हैं”, राजू ने पूछा।
“बाहर का वातावरण बहुत कठिन होते........बहुत ठंडा शून्य से 180 डिग्री नीचे...........टाइटन के वातावरण का दबाब तुम्हारी पृथ्वी का डेढ़ गुना होते......वातावरण में आक्सीजन बिलकुल नहीं ......फिर भी हम बाहर जाते...... तुम्हें लिए हम बाहर जाते।”
नीनो ने राजू को एक विशेष तरह के कपडे दिए, “प्रेशर सूट......इसमें आक्सीजन......ताप नियंत्रित.....सर्दी  नहीं लगते.........यहां का वायुमंडल दबाब तुम्हारी पृथ्वी से डेढ़ गुना पर प्रेशर सूट के साथ परेशानी नहीं होते।”
प्रेश सूट, पहनते ही राजू के रीर पर अपने आप फिट हो गया।
नीनो ने अपनी कलार्इ पर बंधे यंत्र का बटन दबाया। थोडी देर में खिडकियों वाली एक पिरामिड के आकार की चीज उनके पास आकर रूकी।
“यह क्या नीनो”, राजू ने पूछा।
“स्पेस कॉप्टर, इसके अंदर बैठने पर तुम पर टाइटन का बाहरी वातावरण कुछ असर नहीं होते ........इसके अंदर तुम सुरक्षित होते”, नीनो ने बताया।
स्पेस कॉप्टर का दरवाजा खुला। राजू नीनो के साथ उसके अंदर बैठ गया।
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थोडी देर में जब नीनो और राजू टाइटन पर मीथेन की झीलें, धूल के टीले, पहाड़ और मैदान देख कर लौट रहे थे तो राजू को घर की सुधि आर्इ। उस ने नीनो से कहा, “अब मुझे पृथ्वी पर वापस छोड़ो तुमने वादा किया था।”
“ठीक है”, नीनो ने सिर हिलाया।
लौटते समय वे खिसकने वाले झूले पर चढकर उसी रास्ते से लौटे जिस से वे गए थे। वह आदमी जो उन्हें इस बुलबुले वाले हर में घुसते समय मिला था वह फिर वहीं मौजूद था। नीनो की उससे फिर कुछ बहस हुर्इ जिसे राजू समझ नही सका क्योंकि तब नीनो ने भाषा परिवर्तक यंत्र उतार दिया था।
“हमें इधर से चलते.........तुम्हारा मेडिकल चेक-अप होते तब वापस जाते”, नीनो ने राजू को समझाया।
राजू को डर लग रहा था पर मानने के अलावा कोर्इ दूसरा उपाय न था। वह नीनो के साथ दूसरी ओर चल दिया।
नीनो राजू को फिसलने वाले झूले पर बिठाकर एक और बलबुले में ले गया।
अब वे एक बडे कमरे में थे जिसमें तरह-तरह के यंत्र लगे थे। नीनो की तरह के एक जीव ने उसे एक मेज पर लेटने को कहा। राजू ने डरकर नीनो की ओर देखा। 
“नहीं डरते, चेक-अप, सिर्फ चेक-अप करते.........कोर्इ कष्ट नहीं होते”, नीनो ने सांत्वना दी।
राजू मेज पर चढकर लेट गया। नीनो की क्ल के जीव ने एक यंत्र दीवार से खीचकर राजू के ऊपर लगा दिया। थोड़ी देर बाद उसमें से एक लाल रोशनी निकल कर राजू के सिर पर गिरने लगी। उसे इस लाल रोशनी देखने को कहा गया। राजू ने लाल रोशनी देखना शुरू किया और उसकी आंखें अपने आप मुंदने लगीं।
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उठो दोस्त हम वापस आते”,  नीनों राजू को झिंझोड़ कर जगा रहा था।
राजू ने ऑखें खेाल दीं।
“कहां हैं हम,” राजू ने अगड़ार्इ लेते हुए पूछा।”
“पृथ्वी पर, जहां से हम जाते”
राजू ने देखा वे यान के बाहर थे, वहीं, जहां से वे गए थे। सूरज छिपने वाला था।
“तो मैं जाऊ”, राजू ने कहा।
“हां जाओ पर हमें भूलना मत दोस्त......हम फिर मिलते”, उन्होने हाथ हिलाया और यान के अंदर चले गए। यान का दरवाजा बंद हुआ और यान वापस उड़ गया।
राजू घर की ओर चल दिया। वह याद करने की कोशिश करने लगा कि वह तो यहां नीनो का इंतजार कर रहा था। उसके बाद क्या हुआ उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था। उसे नहीं मालूम था कि चेक अप करने के बहाने नीनो की दुनिया के लोगों ने यान में चढ़ने से लेकर टाइटन पर जाने और वहॉ से लौट कर धरती पर पुन वापस आने तक की उसकी स्मृतियों को एक विकसित यंत्र द्वारा उसके मस्तिष्क से मिटा दिया था। सूरज डूब रहा था राजू लंबे लंबे डग भरता हुआ अपने घर की ओर बढ़ने लगा।
----अरविन्द दुबे