आपने सिंदबाद जहाजी के किस्से सुने होंगे, अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी भी आपने अपनी प्रारंभिक पाठ्यपुस्तकों में पढी होगी, अलादीन और जादुई चिराग के बारे में भी जानते होंगे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह सब कहानियाँ कहाँ से आई हैं? ये सारी कहानियाँ अरबी भाषा की महान दास्तान ‘अल्फ लैला’ से ली गई हैं जिसे पश्चिमी दुनिया में 'अरेबियन नाइट्स' और भारत में हम 'दास्ताने अलिफ लैला' के नाम से जानते हैं। अरबी में 'अल्फ' का मतलब हजार होता है और लैला का मतलब रात यानी इसमें एक हजार एक रात की कहानियाँ हैं। 'दास्ताने अलिफ लैला' सारी दुनिया में बडों और बच्चों में,
पढे-लिखों या बेपढों में सूफ़ियों और विद्वानों में बराबर लोकप्रिय है।
इसमें 1001 अरबी कहानियों का संग्रह है जिसमे कई पीढियों से सुनी जाने वाली कहानियों को संग्रहित किया गया है | वास्तव में यह ‘किस्सागोई’ शैली में लिखी/कही गईं लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है जिसकी लोकप्रियता का मुकाबला पंचतंत्र की कथा माला के अलावा और कोई कथा-माला नहीं कर सकती। अरबी साहित्य इतिहास के लेखक प्रोफेसर आ.ए. निकलसन के कथनानुसार यूरोपवासियों में कुरआन से भी अधिक जिस अरबी साहित्य को जाना जाता है वह ‘अल्फ लैला’ ही है। शायद इसकी सभी कहानियां हजारों वर्षों तक अलग अलग लेखकों, अनुवादकों और विद्वानों ने संकलित की हैं कोई एक व्यक्ति इनका लेखक या कहने वाला नहीं हो सकता। इसकी कई कहानियां 800-900 ईस्वी के आस पास लिखी गईं हैं | दूसरी ओर प्रोफेसर निकलसन ने दसवीं शताब्दी ईस्वी के अरब लेखक और इतिहासकार मसऊदी के हवाले से कहा है कि अल्फ लैला की कथामाला का आधार फारसी की प्राचीन कथामाला 'हजार अफसाना' है। अल्फ लैला की कई कहानियाँ जैसे 'मछुवारा और जिन्न' 'कमरुज्जमा और बदौरा' आदि कहानियाँ सीधे 'हजार अफसाना' से जैसी की तैसी ली गई हैं।
इसमें 1001 अरबी कहानियों का संग्रह है जिसमे कई पीढियों से सुनी जाने वाली कहानियों को संग्रहित किया गया है | वास्तव में यह ‘किस्सागोई’ शैली में लिखी/कही गईं लोक कथाओं का ऐसा संग्रह है जिसकी लोकप्रियता का मुकाबला पंचतंत्र की कथा माला के अलावा और कोई कथा-माला नहीं कर सकती। अरबी साहित्य इतिहास के लेखक प्रोफेसर आ.ए. निकलसन के कथनानुसार यूरोपवासियों में कुरआन से भी अधिक जिस अरबी साहित्य को जाना जाता है वह ‘अल्फ लैला’ ही है। शायद इसकी सभी कहानियां हजारों वर्षों तक अलग अलग लेखकों, अनुवादकों और विद्वानों ने संकलित की हैं कोई एक व्यक्ति इनका लेखक या कहने वाला नहीं हो सकता। इसकी कई कहानियां 800-900 ईस्वी के आस पास लिखी गईं हैं | दूसरी ओर प्रोफेसर निकलसन ने दसवीं शताब्दी ईस्वी के अरब लेखक और इतिहासकार मसऊदी के हवाले से कहा है कि अल्फ लैला की कथामाला का आधार फारसी की प्राचीन कथामाला 'हजार अफसाना' है। अल्फ लैला की कई कहानियाँ जैसे 'मछुवारा और जिन्न' 'कमरुज्जमा और बदौरा' आदि कहानियाँ सीधे 'हजार अफसाना' से जैसी की तैसी ली गई हैं।
कुछ कहानियों में - विशेषतः उनमें जो खलीफा हारूँ रशीद के नाम के साथ जुड़ी हैं, इतिहास और जादू-टोने को ऐसी दिलचस्प सूरत में मिला दिया गया है जिसमें आम लोगों की कहानी में दिलचस्पी बढ़ जाए। हारूँ रशीद 787 ईस्वी में खलीफा बना और 808 ईस्वी में मर गया। उसने वजीर जाफर बरमकी को 783 ईस्वी में अपना पूर्ण विश्वस्त बनाया और 803 ईस्वी में मरवा भी दिया। लेकिन अल्फ लैला के कथाकारों के लिए हारूँ के काल का यही सात-आठ साल का जमाना सब से अधिक महत्वपूर्ण है। निकलसन के कथनानुसार अल्फ लैला की अंतिम कथाओं की रचना मिस्र के ममलूक खलीफाओं (1250-1517 ईस्वी) के काल में हुई है। स्पष्ट है कि अंतिम कहानियों ही में, जो हारूँ रशीद के चार-पाँच सौ बरस बाद रची गई हैं, हारूँ का उल्लेख है। यह भी संभव है कि इस काल में पुरानी कथाओं को और रोचक बनाने के लिए उनमें हारूँ रशीद जोड़ दिया गया हो।
हारूँ रशीद की बड़ी बेगम जुबैदा थी। वह ऐतिहासिक तथ्य है किंतु अल्फ लैला में हारूँ से संबद्ध पहली कहानी में जुबैदा का जो वर्णन किया गया है उसमें वह विवाह के पहले अच्छी-खासी जादूगरनी के रूप में उभरती है जिससे एक बार खलीफा की जान को भी खतरा पैदा हो जाता है। यह दूसरी बात है कि बाद में वह मामूली रानियों की तरह सिर्फ महल के अंदर ही षड्यंत्र कर पाती है और जब खलीफा को इसका पता चलता है तो वह यद्यपि उसे मरवाता नहीं लेकिन उसका जी कुढ़ाने के लिए उसकी सौत ले आता है और वह इस स्थिति में समझौता कर लेती है।
ऐतिहासिक तथ्य इससे बिल्कुल अलग हैं। जुबैदा का विवाह राज घरानों के साधारण विवाहों जैसा ही था। उसे महल के अंदर दासियों के विरुद्ध षड्यंत्र करने की फुरसत ही नहीं थी। वह शासन के संचालन में भी अपना प्रभाव रखती थी। जाफर बरमकी को हारूँ ने उसी के भड़काने से मरवाया था। जाफर को प्राणदंड दिए जाने का अल्फ लैला में कहीं उल्लेख नहीं है।
मेरा निवेदन है कि इन कहानियों
में इतिहास के तत्व न ढूंढें। प्राचीन काल ही से मुस्लिम इतिहासकार इतिहास रचना जरूर
कर रहे थे किंतु लोक कथाकारों को इससे कुछ लेना-देना न था। बहरहाल, मेरे हिसाब से ये कहानियाँ लोक-कथाओं के अलावा कुछ नहीं हैं। जिन लोगों की इनमें रुचि हो वे इन्हें इसी नजरिए से पढें। इनमें
लोगों ने विग्यान कथाओं के तत्व ढूंढने की कोशिशें भी कीं हैं पर कहीं से भी इन्हें
विग्यान कथाओं की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।
‘अल्फ लैला’ की कहानियों की वास्तविकता का अनुमान लगाना भी कठिन है | इनमें से
बहुत सारी कहानियां अब उपलब्ध भी नहीं हैं। इन कहानियों में मोहबत , त्रासदियां , हास्य, मुस्लिम धार्मिक कथाएं , परियों की कहानियां , दृष्टान्त आदि है और अधिकतर कहानियों में जिन्न , जादूगर और काल्पनिक स्थान है | ‘दास्ताने अलिफ़ लैला’ सागर आर्ट्स द्वारा 1993 से 1997 तक दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया था |
अपने
इस प्रयास में मैं ‘अल्फ लैला’ की कुछ उपलब्ध प्रमाणिक
कहानियों को हर रोज़ एक एक कर के आप तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा। कैसा लगा मेरा यह
प्रयास, बताइएगा।
संदर्भ- सरस्वती सरन 'कैफ'