उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा हो सकता है। इन्सपेक्टर जनरल आफ पुलिस श्री विद्यालंकार जब सोकर उठे तो उन्हें मालूम नहीं था कि आज का दिन चाय के साथ ऐसी मनहूस खबर से शुरु होगा। सामरिक विज्ञान के शीर्षस्थ वैज्ञानिक डाक्टर भंडारकर का अपहरण हो गया था। श्री भंडारकर आजकल एक विशेष प्रकार के हथियारों पर कार्य कर रहे थे जिन्हें ‘स्मार्ट वेपेनरी’
कहा जाता है। इनमें एक विषेष प्रकार की कंप्यूटर प्रणाली का उपयोग किये जाने की संभावना थी। इन हथियारों के मैमोरी बैंक में लक्ष्य के बारे में सारी जानकारी; जैसे कि उसकी स्थिति, उसकी संरचना, उसकी सुरक्षा, उसकी कठोरता आदि की जानकारी भर दी जाती थी। इसमें लगी कम्प्यूटर प्रणाली इस जानकारी के आधार पर लक्ष्य को ढूंढ कर,
उसको पहचान कर हथियार की मारक क्षमता, उसका प्रक्षेपण पथ,
स्ट्राइक का समय आदि निर्धारित कर लेती थी। इन सारे आंकड़ों के आधार पर ये हथियार इस प्रकार रास्ता बदलते,
लक्ष्य को ढूंढते-ढूंढते लक्ष्य के पास पहंच जाते थे मानो कि इनके अंदर बैठा कोर्इ मानव चालक इनकी स्टीयरिंग घुमा रहा हो। यही नहीं मार्ग में अवरोध पड़ने पर यह प्रणाली हथियारों का रास्ता बदल सकती थी। मार्ग में खतरा होने पर यह प्रणाली हथियारों को रूक कर छिपने का आदेश दे सकती थी। यदि लक्ष्य ऐसी सुरक्षा में हो जिसे ये हथियार भेद सकने में समर्थ न हो तो इस प्रणाली की मदद से ये हथियार तब तक स्ट्राइक के लिए लक्ष्य की प्रतीक्षा कर सकते थे जब तक कि लक्ष्य अपने सुरक्षा कवच से बाहर न निकल आए । यानि कि ये हथियार एक प्रकार के आत्मघाती हमलावरों की तरह थे जिनमें लगी कमप्यूटर चिप मानव मस्तिष्क जैसा ही काम कर सकती थी; निर्णय लेने में सक्षम और आपदाओं के लिए तैयार।
डाक्टर भंडारकर बेहद संकोची, अति विनम्र और बहुत कम बोलने वाले व्यक्ति थे। इतना कम,
कि बहुत सारे लोग तो उन्हें सनकी, रहस्यमय और न जाने क्या-क्या मानने लगे थे। उन्हें अपनी प्रशंसा सुनना कतर्इ पसंद न था। वह अपने काम के बारे में बहुत कम बात करते थे। वह अपने प्रयोगों के बारे में तभी बताते जब उनके प्रयोग पूर्ण और सफल हो जाते थे। इसके बाद भी वैज्ञानिक समुदाय में उनका बड़ा नाम था। राष्ट्र् का पिछले बीस वर्षों का सारा सामरिक विकास उनकी ही देन था। उन्होने ही सामरिक विकास की दृष्टि से देश को अग्रणी पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया था। उन्हें सैकड़ों राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित किया गया था। इस परियोजना के बारे में जब डाक्टर भंडारकर ने केंद्रीय रक्षा समिति को बताया तो सबको लगा कि यह तो कमाल की चीज है। यदि ऐसे हथियार किसी देश के पास हों तो फिर वह तो हथियारों की दौड़ में सबसे आगे होगा;
समर्थ और अजेय। तुरंत केबिनिट की बैठक बुलार्इ गयी और योजना को मंजूरी दे दी गयी। परियोजना के लिये जितने धन की मांग डाक्टर भंडारकर ने की, उस की भी स्वीकृति मिल गयी। उधर डाक्टर भंडारकर की भी अपनी शर्तें थीं। एक तो यह कि वह सारा काम अत्यंत गुप्त तरीके से करना चाहेंगे,
इसके लिए वह कोर्इ वैज्ञानिक सहायक नहीं रखेंगे। दूसरे वह अपने प्रयोगों की प्रगति की समय-समय पर समीक्षा के लिये राजी नहीं थे। इस दूसरी शर्त पर कुछ अड़चनें आर्इ पर विज्ञान को पूर्णतया समर्पित आजीवन अविवाहित रहने का वृत लेने वाले कर्तव्यनिष्ठ डाक्टर भंडारकर का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि उनकी यह मांग भी मान ली गर्इ। हालांकि उनसे यह मांग की गर्इ कि वह प्रयोग पूर्ण करने के लिए कोर्इ सीमा तो निर्धारित करें। अनमने ढंग से मनमौजी डाक्टर भंडारकर ने यह मांग मान ली।
डाक्टर भंडारकर की इस योजना को अति गुप्त रखा गया। एक पुराने किले का रूप परिवर्तित करके उनके लिए एक विशाल प्रयोगशाला स्थापित की गयी। डाक्टर भंडारकर एक तो वैसे भी अविवाहित एवं एकांतजीवी थे पर इस परियोजना को प्रारंभ करने के बाद तो उन्होने प्रयोगशाला के बाहर निकलना ही बंद कर दिया। वे न आगंतुकों से मिलते,
न प्रेस से।
इतने सब के बाद भी बात छिपी न रह सकी न जाने कैसे पड़ोसी देश को इस परियोजना के बारे में पता चल ही गया । पहले तो डाक्टर भंडारकर को चोरी-छिपे काफी प्रलोभन मिले,
फिर धमकियां मिलीं। पर डाक्टर भंडारकर तो अजीब मिट्टी के बने जीव थे।
वे न प्रलोभन में आये,
न धमकियों से डरे। हॉ उनसे यह सूचना मिलते ही उनकी प्रयोगशाला की इमारत की चौकसी और बढ़ा दी गयी। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सादी वर्दी में तैनात सेना को सौंप दी गयी। फिर भी उन पर अपने प्रयोगशाला सहायक के द्वारा एक आत्मघाती हमले का प्रयास किया गया।
इस पर सरकार ने सुरक्षा और बढ़ा दी। अब तो प्रयोगशाला में काम करने वाले हर व्यक्ति की सख्त निगरानी की जाती। प्रयोगशाला से बाहर जाने वाले और प्रयोगशाला में आने वाले हर मौखिक या इलेक्ट्रानिक्स संदेश को सुना जाने लगा। डा0
भंडारकर को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित कर दिया गया।
उन्हीं भंडारकर का आज अपहरण हो गया। यह सब कैसे संभव हुआ? श्री विद्यालंकार ने एक बार यह भी सोचा कि कहीं डाक्टर भंडारकर किसी प्रलोभन में आकर कहीं निकल तो नहीं गए, पर अगले ही क्षण उन्हें अपने इस विचार पर ग्लानि होने लगी। डाक्टर भंडारकर की देश के प्रधानमंत्री से बड़ी गाढ़ी छनती थी। वैसे उनके प्रयोगों की प्रगति की कोर्इ समीक्षा तो नहीं की गर्इ थी पर बातों-बातों में उन्होंने प्रधानमंत्री को फोन पर बताया था कि उनका काम अब पूरा होने वाला है। हो सकता है कि अगली छब्बीस जनवरी को वह देश को एक अनमोल तोहफा सौपें।
केबिनेट की एक आपात कालीन बैठक बुलार्इ गर्इ। उसमें सारी संभावनाओं पर विचार हुआ। डाक्टर भंडारकर के गायब होने की चाहे जो भी वजह रही हो पर उनको खोजना जरूरी था। देश का भविष्य और प्रधानमंत्री की राजनैतिक पार्टी का भविष्य, दोनों उनके साथ दांव पर लग गए थे।
X X X X X X X
वह कचरा ढोने वाली गाड़ी को सीधा उस इमारत में ले गया। यह पड़ोसी देश के सेना मुख्यालय की इमारत थी। वैसे तो यहां कदम-कदम पर पहरा था,
पर उस गाड़ी को किसी ने नहीं रोका। गाड़ी का चालक गाड़ी को सीधे एक गैराजनुमा कमरे में ले गया। गैराज का शटर अंदर से बंद करते ही वहां की सारी बत्तियां जल उठीं। कमरे में वह अकेला नहीं था वहां पड़ोसी देश के सेना प्रमुख थे और सेना के कर्इ बड़े अधिकारी थे और वहां के रक्षामंत्री थे।
“वैलडन यूसुफ तुमने एक बहुत जरूरी काम को अंजाम दिया है, बहुत बड़ा काम किया है तुमने। कहां है डाक्टर भंडारकर?”
यूसुफ फुरती से गाड़ी के नीचे घुसा उसने पेट्रोल टंकी से लगे एक आदमकद बाक्स के पेंच खोल डाले और आहिस्ते से डाक्टर भंडारकर का शरीर बाहर खींच लिया।
सेनाध्यक्ष के आंखों में निराशा कौंधी,”क्या मर गया?”
“नहीं बेहोश है”, युसुफ ने डाक्टर की नब्ज देखते हुये कहा।
सेनाध्यक्ष ने अपने देश के डाक्टर की ओर इशारा किया “डाक्टर टेक केयर आफ दिस मैन,
ही शुड नॉट डाइ एट एनी कॉस्ट।”
डा0,
भंडारकर को जब वे लोग स्ट्रेचर पर लिटा कर वहां से ले गए तब सेनाध्यक्ष युसुफ की ओर मुखातिब हुए, ”हां तो यूसुफ,
तुम तो वहां गार्वेज-वान चलाते थे। यह कारनामा कैसे अंजाम दिया तुमने?”
“बस अक्ल से, सर अक्ल से। डाक्टर भंडारकर के कमरे में यूं तो किसी को भी रहने की आज्ञा नहीं थी पर डाक्टर मुझे किन्हीं कारणों से बहुत चाहने लगे। कभी-कभी तो मैं रात को भी उनके कमरे में ही सोने लगा। सुरक्षा अधिकारी जब मना करते तो वह उन्हें डांट देते ओर मुझे अपने कमरे में बुला लेते। बस एक दिन मैने मौका पाकर डाक्टर को चाय में नशे की दवा पिलाकर बेहोश कर दिया फिर उन्हें आपके द्वारा गाड़ी में लगाये एक्स-रे प्रूफ बाक्स में डाला। आप तो जानते हैं साहब इस डिब्बे में से एक्स रे पार नहीं जा पाती वरना वहां तो हर अंदर बाहर आने जाने वाली चीज को एक्स किरणों से गुजरना होता हैं।”
“मान गए यूसुफ काम तो काफी बड़ा किया तुमने, बड़ा इनाम पाने लायक”, सेनाध्यक्ष ने गम्भीर स्वर में कहा।
“जी वह तो है ही, तो कब मिलेगा मुझे मेरा इनाम?”
“अभी, यहीं”, सेनाध्यक्ष मानो जबरदस्ती मुस्कराए।
सेनाध्यक्ष ने हाथ का इशारा किया और दो बंदूक धारियों ने यूसुफ पर हमला बोल दिया। उन्होंने जूतों की ठोकर से यूसुफ को जमीन पर गिरा दिया। उसके कर्इ दांत झड़ गए पर अब भी वे उसे बेहरमी से ठोकरें मार रहे थे। यूसुफ चिल्लाता जा रहा था, “पर मैने किया क्या है? मैने तो आपका कितना जरूरी काम किया और इनाम के बदले आप तो.....”
“इनाम ही तो दिलवा रहा हूं”,
सेनाध्यक्ष गुर्राए,” अपने चाहने वाले और वतन के साथ गद्दारी करने वाले को किसी भी देश की फौज इससे बेहतर और क्या इनाम दे सकती है?वैसे भी हम काम करके सुबूत छोडने की गलती नहीं करते।”
“शूट हिम”,
सेनाध्यक्ष चिल्लाए। बंदूकधारियों की बंदूक से कर्इ गोलियां निकल कर यूसुफ के शरीर में समा गर्इ। यूसुफ तड़पा और शांत हो गया।
“कमीना”, सेनाध्यक्ष के मुंह से निकला।
X X X X X X X
उस अंधेरे कमरे में डाक्टर भंडारकर धीरे धीरे होश में आ रहे थे। उन्होंने धीरे-धीरे आंखे खोली। उनका सारा शरीर दर्द कर रहा था।
उन पर निगरानी रखने वाली नर्स ने तुरंत सिरहाने रखी बत्ती जला दी। उस हल्के प्रकाश में डा0
भंडारकर ने कमरे का जायजा लिया।
“कहां हूँ मैं ?”
“जहां भी हो सुरक्षित हो बस इतना जान लो और चुप हो जाओ।”
भंडारकर चुपचाप उस धीमे प्रकाश में कमरे की छत देखने लगे। स्थिति उनकी समझ में आने लगी थी। वह अपने कमरे में नहीं थें । किसी और जगह पर हैं वह। वह यहां कैसे आए?
क्या उनका अपहरण कर लिया गया है?
“पानी चाहिेए”, नर्स ने पूछा।
“नहीं पेशाब करने जाऊॅंगा।”
“जा सकोगे?”
“हां”
“तो जरूर, जाओ, पर दरवाजा अंदर से बोल्ट मत करना।”
बाथरूम में आते ही डाक्टर ने अपने सोने के दांत में छिपा ट्रांसमीटर अपनी जीभ से ऑन किया।
यह बायो-इनर्जी से चलने वाला एक छोटा पर शक्तिशाली ट्रांसमीटर था।
X X X X X X X
डाक्टर द्वारा भेजे जा रहे सिगनल उनके देश की संचार प्रणाली ने तुरंत पकड़ लिए। उनके आधार पर यह नि्श्चित रूप से पता कर लिया गया कि डाक्टर कहां हैं पर डाक्टर को छुडाया कैसे जाए?
एक उच्च स्तरीय बैठक हुर्इ। तय किया गया कि पड़ोसी देश पर कमांडो हमला किया जाए। अगर इससे बात न बने तो सीधे-सीधे हमला बोल दिया जाए। आणविक युद्ध की संभावनाओं पर विचार किया गया । सरकार को सारे खतरे मंजूर थे।
X X X X X X X कमांडो हमला सुनियोजित था और पूरी शक्ति से किया गया था। जब तक कमांडो डाक्टर भंडारकर के पास तक पहुंचते तब तक पडोसी देश के सेनाधिकारी देशभक्त डाक्टर भंडारकर से कुछ भी उगलवा नहीं पाये थे। शिकार को इतने पास आकर अपने हाथ से जाता देख उनमें से एक ने डाक्टर भंडारकर पर गोलियां चला दीं कमांडो अपनी जान पर खेल कर डाक्टर भंडारकर को लेकर लौटे तो पर केवल उनका मृतप्राय शरीर ।
X X X X X X X डाक्टर भंडारकर को तुरंत गहन चिकित्सा कक्ष में भरती कर लिया। सुरक्षा इतनी तगड़ी थी कि पूरी गहन-चिकित्सा इकार्इ को ही खाली करवा लिया गया। उनका इलाज कर रहे डाक्टरों तक को उनके कक्ष में जाने पर कड़ी सुरक्षा जांच से गुजरना होता था। पर डाक्टर भंडारकर की हालत बहुत नाजुक थी। शरीर की सारी प्रणालियों ने कार्य करना बंद कर दिया था।
उनको कृत्रिम स्वांस दिया जा रहा था। उनके दिल की धड़कन जारी रखने के लिये बाहर से पेस मेकर मशीन लगार्इ गर्इ थी। सारे देश में शोक की लहर दौड़ गयी। प्रधानमंत्री बेहद दुखी थे,
वे प्रतिदिन दो बार डाक्टर भंडारकर को देखने आते, एक गहरा निश्वास खींचते और लौट जाते। रक्षामंत्री बहुत चिंतित थे। एक ओर तो स्मार्ट आयुधों के विकास में उन्हें अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था दूसरे उन्हें अपने ऊपर आने वाले आरोप भी साफ-साफ सुनार्इ पड़ रहे थे। उन्होंने अपनी जिम्मेवारी पर संसद से मंजूरी लिये बिना ही इस परियोजना के लिये अरबों रूपयों की स्वीकृति दी थी। डाक्टर भंडारकर का व्यक्तित्व था ही ऐसा कि कहीं शक की कोर्इ गुंजायश थी ही नहीं। कोई सहायक भी तो डाक्टर भंडारकर ने नहीं रखा था । कैसे भी यह पता चल पाता कि परियोजना में कितना कार्य हुआ ?
वह तोहफा क्या था जो डाक्टर भंडारकर 26 जनवरी को देशवासियों को देना चाहते थे, उस स्मार्ट आयुध का प्रोटोटाइप या फिर कार्यकारी माडल ?
वह थोड़ी-थोड़ी देर पर डाक्टर भंडारकर की हालत पता कर रहे थे पर पर डाक्टर की हालत बराबर बिगड़ती जा रही थी। अगली सुबह तक डाक्टरों ने घोषणा कर दी कि डाक्टर भंडारकर को बचाया जा सकना संभव नहीं है। (अगली पोस्ट में जारी………)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें