गुरुवार, 2 नवंबर 2023

विज्ञान प्रगति के जून 2021 अंक में प्रकाशित मेरी लघु विज्ञान कथा

लघु विज्ञान कथा..................

माफ करना ग्रेट ग्रांड पा

डा. अरविन्द दुबे

जब से गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) के किनारों पर लगे टीलोमीयर्स, जो कि मानव शरीर में बढ़ती आयु से संबंधित परिवर्तनों की वजह होते हैं, को एक एंजायम टीलोमरेज द्वारा हर कोशिका विभाजन के समय झड़ने से बचा कर मानव की आयु को बढ़ाने के सफल प्रयास होने लगे हैं, तब से सैद्धांतिक रूप से मानव अमर हो गया है। अंग प्रत्यारोपण अब इतना सफल और सरल हो गया है कि खराब होने पर लोग मशीन के पुर्जों की तरह अपना कोई भी अंग कितनी भी बार बदलवा लेते हैं। लोग अब अंत तक युवा रह कर सैकड़ों वर्षों तक जी रहे हैं और  हजारों वर्षों तक जीने की तमन्ना रखते हैं। म्रृत्यु तो अब किसी दुर्घटना या बढ़ते तनावों के चलते की जाने वाली आत्महत्याओं से ही होती है। 

कुछ देशों के निवासी तो इन परिस्थितियों का आनंद उठा रहे थे। वे परिवार और बच्चों के झंझटों से मुक्त वर्तमान में जीते थे जिससे मानव की आयु कई गुना बढ़ जाने वाबजूद उन देशों की आबादी बढ़ नहीं रही थी पर कुछ देशों में एक ऐसे धर्म को मानने वाले लोग रहते थे जिन्हें उनके धर्मगुरु मात्र संख्या बल के आधार पर दुनिया पर राज करने का सपने दिखाते थे। इसलिए वे बराबर बच्चे पैदा किए जा रहे थे और अपने देश की आबादी को बेतहाशा बढ़ा रहे थे। ऐसे लोगों से परेशान होकर उन देशों की सरकारों ने “फैमिली लिमिट” घोषित कर दी थी जिसमें एक जोड़े से उत्पन्न खानदान के सदस्यों की  संख्या निश्चित थी। “फैमिली लिमिट” के अंदर आने वाले सदस्यों के लिए इलाज, निवास, यात्रा, पढ़ाई आदि की सुविधाएं या तो मुफ्त थीं या उन पर भारी सब्सिडी दी जाती थी। “फैमिली लिमिट” के बाद पैदा हुए सदस्यों को कोई सरकारी सुविधा या सब्सिडी नहीं थी। बिना सब्सिडी यह सब इतना महंगा था कि एक आम आदमी इसे अफोर्ड नहीं कर सकता था।

कद-काठी से मजबूत और युवा दिखने वाले पांच सौ वर्षीय उदीमा खान अभी अभी टीलोमरेज रीप्लेनिश सेशन से गुनगुनाते हुए लौटे थे। टेक्नीशियन ने बताया था कि उनका टीलोमरेज लेविल बिलकुल सही है और वे लंबे समय तक ऐसे ही युवा बने रहेंगे।

“अब बाईसवीं शादी कर ही डालूं”, पांच सौ वर्षीय उदीमा खान सोच रहे थे। 

तभी सामने से उनके पड़पोते शफीक और उनकी पत्नी हिना आते दिखे। शफीक और हिना दोनों ही 100 वर्ष से ऊपर के हैं पर “फैमिली लिमिट” के चलते उनका कोई बच्चा नहीं है।

“आ गए, जवानी का एक और घूंट पी कर दादा मियां”, हिना ने हिकारत से कहा।

“तुम्हें मतलब”

“हां है, और कितना जीना चाहते हो, शर्म नहीं आती। हम यहां एक बच्चे के लिए तरस रहे हैं और ये................................ कयामत के दिन क्या मुंह दिखाएंगे हम?”

“करो ना हमने रोका है” 

“अच्छा जैसे कि आप कुछ जानते ही नहीं हैं, आप जब जगह खाली करेंगे तभी तो हमारा बच्चा आ पाएगा। पर आपकी जीने की हवस खत्म हो तब न”, हिना बड़बड़ाती जा रही थी।

गुस्से से तमतमाए  हुए उदीमा खान रेलिंग पर जाकर खड़े हो गए और आसमान ताकने लगे। पर उदीमा खान यह नहीं देख पाए कि हिना और शफीक चुपके से उनके पीछे आकर खड़े हो गए हैं।

एक हलका सा धक्का और उदीमा खान अठारहवीं मंजिल से सीधे नीचे पक्के फर्श आ गिरे और उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

“माफ करना पऱदादा हुजूर, हमारे खानदान के आगे बढ़ने  के लिए आपकी ये कुर्बानी जरूरी थी, अल्लाह हमें माफ करना”  हिना और शफीक ने एक साथ कहा और दुआ में हाथ ऊपर उठा दिए।

---------------

विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान


जैसे एक मकान ईटों से मिलकर बनता है वैसे ही हमारा शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं की ईंटों से मिलकर बनता है। हर कोशिका में कुछ ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं जो माता-पिता के गुणों को संतान में ले जाते हैं। इन्हें जींस कहते हैं। यह जींस कोशिका में धागे की आकार की संरचनाओं पर लगे रहते हैं जिन्हें क्रोमोजोम्स कहते हैं। क्रोमोसोम या गुणसूत्र के किनारे के हिस्से को “टीलोमीयर” कहते हैं । नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित एक खोज के अनुसार ये टीलोमीयर्स बढ़ती आयु के साथ लगातार टूटते और छोटे होते रहते हैं। यही प्रक्रिया मनुष्य में वृद्धावस्था का कारण होती है्। वैज्ञानिकों ने कुछ पौधों में एक एंजाइम टीलोमरेज की खोज की है जिससे इन टीलोमीयर्स को झड़ने से रोका जा सकता है। यानि कि टीलोमरेज एंजाइम के उपयोग से सैद्धांतिक रूप से वृद्धावस्था को आने से रोका जा सकता है और मानव को चिरयुवा बनाया जा सकता है। यदि यह क्रिया भविष्य में व्यावहारिक रूप से पूर्णतया सफल हुई तो इसके परिणाम क्या होंगे? 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें