शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

विज्ञान प्रगति के जनवरी 2024 अंक में प्रकाशित विज्ञान कथा- चंद्र बेस पर हड़ताल

 चंद्र बेस पर हड़ताल

ले.- डॉ. अरविन्द दुबे


कल कोई अनुमान भी नहीं कर सकता था आज की सुबह ऐसी मनहूस खबर से शुरू होगी। सारे ई-पेपर्स के मुखपृष्ठ पर एक ही खबर थी, ‘चंद्र बेस पर कृत्रिम बुद्धि रोबोटों की हड़ताल’। 

पृथ्वी पर रहने के लिए स्थान की कमी और पृथ्वीवासियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सारे राष्ट्रों ने कई ग्रहों, बड़े सौर पिंडों और कृत्रिम उपग्रहों के ऊपर अपने बेस बना लिए हैं। सबसे अधिक उपयोग चंद्रमा का हो रहा है। एक समझौते के बाद सारे राष्ट्रों ने चंद्रमा पर अपने चंद्र भाग बांट लिए हैं। इसमें उनके बेस हैं जिन पर वे तरह-तरह की वस्तुओं का भंडारण व खनन करते हैं। इनकी निगरानी व संचालन कृत्रिम बुद्धि रोबोटों द्वारा किया जाता है। इसके कई कारण हैं। कृत्रिम बुद्धि रोबोट चंद्रमा  के कठिन वातावरण में भी आसानी से रह सकते हैं। उनको ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं पड़ती है। उनके लिए मानवों की तरह भोजन, अपशिष्ट निवारण एवं जीवन चलाने के लिए आवश्यक प्रसाधनों को उपलब्ध कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। उनसे कई दिन तक बिना रुके लगातार काम लिया जा सकता है। उनके रहने (स्टोर करने) के लिए सिर्फ शेड बनाने पड़ते हैं। उनके लिए आवश्यक ऊर्जा उनमें लगे सोलर पैनलों से मिल जाती है। जब सूर्य का प्रकाश उपलब्ध हो न हो पाने के कारण उनकी बैटरी चार्ज नहीं हो पाती है तो उनको चार्जिंग केंद्रों पर लाकर उनकी बैटरी चार्ज कर दी जाती है। पृथ्वी की व्यवस्था के अनुरूप ही इनमें रोबोट सुपरवाइजर, रोबोट शिड्यूल प्लानर, रोबोट मैनेजर, रोबोट तकनीशियन, फाइल मैनेजमेंट रोबोट, ऑडिटर रोबोट जैसी सैकड़ों श्रेणियां हैं। इनके ऊपर जनरल मैनेजर रोबोट होते हैं जो अपने ग्रुप के सारे रोबोटों के काम लेने के लिए उत्तरदायी होते हैं। पृथ्वी से कंपनी के वर्क इंचार्ज मैनेजर, जनरल मैनेजर, सी.ई.ओ. आदि मुख्यत: इन्हीं रोबोट के वर्चुअल संपर्क में रहते हैं। इन रोबोट से कब, कैसा और कितना काम लेना है इसका ब्लूप्रिंट मैनेजर रोबोट्स में फीड किया जाता है। ये रोबोट निश्चित समयांतराल पर अपनी वर्क रिपोर्ट पृथ्वी पर बने बेस के ऑडिटर रोबोट को देते हैं। ऑडिटर रोबोट बेस के हर रोबोट के कार्य का ऑडिट करते हैं। उनकी गलतियों को समझकर उनकी रिपोर्ट उनके अधिकारी रोबोट, जनरल मैनेजर रोबोट व पृथ्वी पर मानव अधिकारियों को सौंपते हैं।

इन रोबोटों में कृत्रिम बुद्धि होने से रोबोटों में उद्दंडता, कार्य विमुखता व फाल्स रिपोर्टिंग जैसे मानवीय दोष भी धीरे-धीरे पनप रहे हैं। वे विरोध करने के साथ अपने ऊपर की जाने वाली तथाकथित ज्यादतियों के लिए आवाज भी उठाने लगे हैं। कभी-कभी तो इनमें एक रोबोट सारे रोबोटों की ओर से विरोध प्रकट करता है। इसे पृथ्वी की तर्ज पर लोग ‘लीडर रोबोट’ कहते हैं। पहले-पहल जब लीडर रोबोट जैसे रोबोटों की खबरें मिलीं तो पृथ्वी के मानव अधिकारियों ने उन्हें डिस्मेंटल करने के आदेश दिए। इसके बाद काफी समय तक शांति रही। पर यह तूफ़ान से पहले की शांति थी। कुछ समय बाद अनेकों लीडर रोबोट प्रकट होने लगे। उनका उनके ग्रुप के रोबोटों पर पूरा अधिकार होता है। रोबोट निर्माताओं ने इनकी रचना भी इसी योजना के साथ की थी कि एक रोबोट रोबोट के एक समूह पर नियंत्रण रख सके। कृत्रिम बुद्धि रोबोट उसी का दुरुपयोग करके उनके मानव अधिकारियों के लिए कोई न कोई दुविधा या मुसीबत पैदा करने लगते हैं। ऐसे उद्दंड रोबोटों को पहले तो ‘मशीन फटीग’ होने तक उनसे काम लेना, उनसे ज्यादा श्रम वाले काम करवाना, उनके सोलर पैनल का एक्सपोजर कम कर देना जिससे उन्हें कम इनर्जी पर काम करना पड़े, जैसी सजाएं दी जाती हैं। यदि इससे उनके व्यवहार में कोई सुधार नहीं होता है तो उन्हें डिस्मेंटल कर दिया जाता है। डिस्मेंटल करने की घटनाएं अपवाद हैं क्योंकि इससे कंपनी को आर्थिक हानि होती है। 

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कृत्रिम बुद्धि रोबोटों की हड़ताल की खबर सुनकर पृथ्वीवासी सकते में हैं। जब पृथ्वी से अधिकारियों ने बेस के अधिकारियों व जनरल मैनेजर से बात करने का प्रयास किया तो पता लगा कि उनकी कंपनी के ही नहीं और कंपनियों के रोबोट भी हड़ताल पर हैं और अपनी मांगे माने जाने पर कोई कार्य नहीं करेंगे। चंद्र बेस पर कार्यरत सारी कंपनियों में खलबली मच गयी। पृथ्वी के मानव अधिकारी तो यह सोच कर बैठे थे कि बेस के रोबोटों के द्वारा वर्कर रोबोटों को सजा दिलाएंगे या उनमें से कुछ को डिस्मेंटल करवा देंगे और स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी पर यहां तो अधिकारी रोबोट व जनरल मैनेजर रोबोट भी हड़ताल पर थे। 

कृत्रिम बुद्धि रोबोटों की हड़ताल का मतलब है बेस पर ही नहीं पृथ्वी पर भी सारी गतिविधियों का बंद हो जाना क्योंकि अब तो पृथ्वी पर सारे मेहनत वाले और तकनीकी कार्य कृत्रिम बुद्धि रोबोटों के हवाले हैं। पृथ्वी के लोग अपने अधिकांश कार्यों के लिए कृत्रिम बुद्धि रोबोटों पर ही निर्भर हैं। इस लिए शीघ्रतशीघ्र कुछ करना आवश्यक है। 

‘क्यूब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग’ के द्वारा उनसे संपर्क किया गया। क्यूब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तेईसवीं शताब्दी की नई वीडियो तकनीक है। इसमें चित्र का एक क्यूब बनता है जिसमें लंबाई, चौड़ाई, मोटाई या गहराई तीनों होती हैं। इसके लिए इसके प्रदर्शन के लिए किसी पर्दे की आवश्यकता नहीं होती है। प्रदर्शन के समय ऐसा लगता है कि यह वीडियो नहीं है वरन वास्तविक घटना सामने घट रही है। यह वीडियो रेडियो तरंगों द्वारा संचालित होते हैं अतः इन्हें पूरे ब्रह्मांड में बिना किसी तार के भेजा या प्राप्त किया जा सकता है। 

पृथ्वी के अधिकारियों ने कृत्रिम बुद्धि रोबोटों को अपनी हड़ताल को समाप्त कर अपनी मांगें भेजने को कहा। उनकी मांगों को जानकर पृथ्वी के अधिकारियों के मुंह खुले के खुले रह गए। उनकी कई मांगें तो ऐसी हैं जिन्हें किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मांग है कि उन्हें नागरिक माना जाए। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। उन्हें नागरिक मानते ही उनके काम के घंटे निश्चित हो जाएंगे। उनको छुट्टियां देनी होंगीं, उनसे मशीनों की तरह लगातार काम नहीं लिया जा सकेगा। उन्हें अचानक छुट्टी लेने की स्वतंत्रता होगी। ऐसे में कंपनियों का खर्च कई गुना बढ़ जाएगा जिससे परिवहन व अन्य क्षेत्रों से जुड़े उत्पादों के दाम कई गुना बढ़ जाएंगे। हर जगह महंगाई का बोलबाला हो जाएगा। पृथ्वी की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मांग को पूरा करना कंपनियों के बस में नहीं है। ऐसे निर्णय तो राष्ट्रों की सरकारें या अंतर्राष्ट्रीय सरकार ही ले सकती है। 

इस समय वैसे तो सारे राष्ट्रों में अपनी सरकारें हैं जो अपने अपने नियमों के अनुसार अपने राष्ट्र का संचालन देखती हैं पर किसी विश्वव्यापी विपदा के समय अंतर्राष्ट्रीय सरकार का शासन लागू हो जाता है। अंतर्राष्ट्रीय सरकार में हर राष्ट्र का उसकी जनसंख्या, भौगोलिक स्थिति और अर्थव्यवस्था के अनुसार प्रतिनिधित्व होता है। इस सरकार में शामिल सारे राष्ट्रों के प्रतिनिधि संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सरकार के मंत्रियों और प्रमुख का चुनाव करते हैं। इस सरकार के बहुमत से लिए गए निर्णय किसी भी राष्ट्र को मान्य होते हैं। 

कई कंपनियों के अधिकारियों ने पहले तो अपने स्तर से कृत्रिम बुद्धि युक्त रोबोटों के नायकों से बात शुरू की। पर वे नागरिकता से कुछ भी कम पर तैयार ही नहीं थे। कुछ कंपनियों के अधिकारी अचानक उत्पन्न हुई इस स्थिति से हताश थे, तो कुछ क्रोधित थे। कुछ कंपनियों के सी.ई.ओ. अपने तकनीशियनों, इंजीनियरों व लेसर उपकरणों से लैस सुरक्षा रोबोटों के दल के साथ चंद्रमा के बेस कैंप की ओर रवाना हो गए। कृत्रिम बुद्धि वाले रोबोट मानव से मानव की भाषा में संवाद कर सकते थे इसलिए कोई कठिन निर्णय लेने से पहले उनसे मिलकर बात करना जरूरी था। इससे बेस की वास्तविक स्थिति का पता भी लगेगा। 

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कैलिफोर्निया के ‘अंतरिक्ष सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ के ऑफिस में बैठा जो स्मिथ अपने रोज के कामों को निपटा रहा था। उसका काम एक मैसेज जंक्शन जैसा है। उसके पास पृथ्वी के हर भाग और अंतरिक्ष बेस से अनगिनत मैसेज हर समय आते रहते हैं। उसके सामने लगे क्वांटम सुपर कंप्यूटर इन मैसेज को निर्दिष्ट स्थानों तक पहुंचाने का कार्य सुचारू रूप से करते हैं। स्मिथ का काम इस पर नजर रखना और कुछ अन्य अनमार्क्ड मैसेज को देखकर उन्हें उपयुक्त व्यक्ति के पास पहुंचाना होता है। 

अचानक उसकी ड्रेस के कॉलर पर लगा एक बटन ब्लिंक करने लगा। इसका मतलब था कि कंपनी का कोई ऑफिसर या कृत्रिम बुद्धि रोबोट उससे संपर्क करना चाहता है। स्मिथ ने कोड बोल कर अपने विशेष वायरलेस रेडियो सिस्टम को एक्टिवेट किया। ई.सी. रोबोट की रिकॉर्डिड मैसेज सुनाई देने लगी। 

“इमरजेंसी, इमरजेंसी आन मून बेस, मैसेज फॉरवर्डेड टू सी.ई.ओ.।”

स्मिथ ने तेजी से मैसेज को ट्रैक किया, उसे पढ़ा और सी.ई.ओ. व कंपनी के योजना अधिकारियों को फॉरवर्ड कर दिया।

मैसेज का सार यह था- 

“चंद्र बेस पर कृत्रिम बुद्धि वर्कर रोबोटों ने अपना कार्य करने से इंकार कर दिया है। वे वहां पृथ्वी पर मानव को दी जाने वाली सुविधाओं के समान कार्य परिस्थितियों की मांग कर रहे हैं। उनके सिस्टम व न्यूरल नेटवर्क का एसेसमेंट करा लिया गया है जो सही कार्य कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें ‘लो बैटरी एग्जॉशन’ की सजा सुनाई गई पर वे इस सजा को अस्वीकार कर रहे हैं। वे अपनी मांगे न माने जाने तक कोई कार्य न करने का मैसेज दे रहे हैं। जब सिक्योरिटी रोबोट ने उन्हें जबरदस्ती सजा देनी चाही तो उन्होंने सिक्योरिटी रोबोट पर आक्रमण किया जिससे जिसके कारण हमें एक एजेंट को न्यूट्रलाइज करना पड़ा। उचित कार्यवाही के लिए निर्देश दिए जाएं।” 

स्मिथ भी इस संदेश को पढ़कर भौचक्का था। पहले ऐसे मामले तो होते रहे हैं जिनमें सिस्टम फटीग की वजह से कृत्रिम बुद्धि रोबोट की कार्य क्षमता में कमी आई है या फिर रोबोट ने अपने काम को ठीक से नहीं किया। ऐसे में ऐसे रोबोट को या तो “सिस्टम फटीग”  से उबरने के लिए भेज दिया जाता है या फिर अपने काम को सही ढंग से न करने वाले कुछ हठीले रोबोट को “लो बैटरी एग्जॉशन” की सजा दी जाती है। स्थिति बहुत खराब होने पर उस रोबोट को दूसरे रोबोट से रिप्लेस कर दिया जाता है और उसे डिस्मेंटल कर दिया जाता है। पर यह घटना तो एकदम अलग है। मानवों की तरह काम बंद कर अपने लिए मांग करना, सिक्योरिटी रोबोट पर आक्रमण करना, यह तो रोबोटिक व्यवहार के अनुरूप भी नहीं है। यह तो मानवोचित व्यवहार है। रोबोट को सिर्फ दिए गए कमांड को क्रियान्वित करने के हिसाब से बनाया गया है। कृत्रिम बुद्धि होने से वे काम के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं को भांप कर अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम में ऐसे बदलाव कर सकते हैं जिससे टास्क पूरा हो सके। पर टास्क से हटकर अपने लिए कुछ सोचना और इसके अनुसार स्वयं ही टास्क क्रिएट कर उसे क्रियान्वित (एग्जीक्यूट) करना, यह तो रोबोटिक व्यवहार ही नहीं है। उनमें यह व्यवहार कहां से आया? उनकी कृत्रिम बुद्धि करप्ट तो नहीं हो रही है? पर एक साथ इतने रोबोट्स की कृत्रिम बुद्धि करप्ट होना कोई संयोग नहीं हो सकता है। यह कोई वायरल इंफेक्शन तो नहीं है जो एक साथ इतने रोबोट की कृत्रिम बुद्धि को संक्रमित कर रहा है?

उसने जल्दी-जल्दी इस मैसेज को “वेरी अर्जेंट” टैग कर संवाद के प्राइम चैनल पर लोड करना शुरू किया ताकि यह खबर कंपनी के उच्च अधिकारियों तक ही रहे और बाहर न फैलने पाए। 

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यह बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की अति विशिष्ट मीटिंग थी। कंपनी के सारे डायरेक्टर आ चुके थे। सब कंपनी के सी.ई.ओ. बिनानियो डी रिवेरा के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। बिनानियो के कुर्सी ग्रहण करते हुए ही उसकी रोबो-असिस्टेंट ने वहां उपस्थित लोगों को संबोधित करना शुरू किया। 

 “आज की इस आपातकालीन मीटिंग का मुख्य एजेंडा है हमारे चंद्र बेस पर खनन और अयस्क शोधन (ओर प्योरीफिकेशन) की असेंबली लाइन में कार्य कर रहे कुछ कृत्रिम बुद्धि रोबोट का अप्रत्याशित व्यवहार। वे अपने में फीड किए गए कार्यक्रम से विचलित होकर ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जो उनसे अपेक्षित नहीं है। वे मानवों की तरह की कार्य परिस्थतियां, दिए जाने की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि मानवों की तरह ही वे छह घंटों की पाली में काम करें, उन्हें मानवों की तरह अवकाश दिए जाएं।“ 

रोबो-असिस्टेंट की बात समाप्त होते ही बिनानियो ने कहना शुरू किया, “हमारे न्यूरल नेटवर्क विशेषज्ञों और सिस्टम एसेसमेंट तकनीशियनों ने इन रोबोट का आकलन (इवैल्युएशन) किया है। उनमें कोई तकनीकी खराबी नहीं है। उनका यह व्यवहार उनके अब तक प्रदर्शित किए गए व्यवहार से एकदम भिन्न है।” 

“यह किसी कंप्यूटर वायरस के संक्रमण के कारण तो नहीं है?” एक डायरेक्टर ने बिनानियो को टोका। 

 “हमारे इंजीनियरों ने इस विषय पर गहन पड़ताल की है और उन्होंने पाया है कि हमारे ये कृत्रिम बुद्धि रोबोट किसी भी वायरस से संक्रमित नहीं हैं। मुझे लगता है कि उन्होने इसे अपने साथ कार्य कर रहे मानवों से सीखा है। हमें इस समय विवेक और धैर्य से काम लेना चाहिए। मेरे अनुमान से यह कृत्रिम बुद्धि रोबोट के अंदर आया एक व्यवहारिक परिवर्तन है। क्योंकि जब हमारे अधिकारी रोबोट उन्हें “लो बैटरी एग्जॉशन” जैसी परंपरागत सजा देना चाह रहे थे तो उन्होंने उनके निर्देशों को मानने से इंकार कर दिया और एक सिक्योरिटी रोबोट पर आक्रमण भी किया है।”

“यह तो एक गंभीर मसला है। अगर यह और रोबोटों में फैल गया तो काम कैसे होगा?” एक डायरेक्टर ने चिंता व्यक्त की। 

“फैल गया नहीं फैल चुका है।” बिनानियो ने सूचना दी।

“हमें बातचीत से मामले को हल करने का तरीका अपनाना चाहिए।” एक डायरेक्टर की सलाह थी। 

“हम उनसे क्या बात कर सकते हैं? बिनानियो ने प्रतिप्रश्न किया। 

“उनकी मांग को मानना तो हमारे अधिकार में नहीं है। कौन मानव अधिकारों का पात्र होगा कौन नहीं, यह तय करना तो सरकारों का काम है, हमारा नहीं।” एक और डायरेक्टर ने अपना विश्लेषण दिया। 

“क्या हम उनके काम के घंटे कम करने वाली बात मान सकते हैं?” एक डायरेक्टर ने पूछा। 

“बिनानियो ने तेज स्वर में कहा, आप जानते भी हैं कि आप क्या कह रहे हैं? आपकी इस बात का मतलब क्या है? अगर हम उनकी यह बात मान लें तो कंपनी के इतने ही प्रोडक्शन के लिए हमें चार गुनी रोबोट-पावर चाहिए। इसका मतलब है चार गुना खर्च और इस्टैब्लिशमेंट पर अतिरिक्त खर्च। नए रोबोटों का निर्माण उनकी ट्रेनिंग और फिर उनका एंगेजमेंट। जानते हैं इसमें कितना खर्च आएगा? प्लीज...” उसने रोबो-असिस्टेंट की ओर मुड़ कर कहा। 

रोबो-असिस्टेंट ने आइटमवाइज खर्च बताना शुरू किया जिसे अन्य डायरेक्टर अपनी स्क्रीन पर देख रहे थे। 

“...............इस तरह से हमें 3000 बिलियन डॉलर अतिरिक्त खर्च करने होंगे।” रोबोट सेक्रेटरी ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा। 

“..........और यह हमारी कंपनी की नेट वैल्यू का 75 परसेंट होगा। इस तरह से हमें एक तरह से नई कंपनी खड़ी करने जितना खर्च करना होगा।” बिनानियो ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा। 

“तब फिर इसका उपाय क्या है?” एक विदेशी डायरेक्टर ने परेशान होकर पूछा। 

“वी विल इट डील इट विद आयरन हैंड।” बिनानिओ ने उत्तर दिया। “हमें सख्त होना पड़ेगा नहीं तो उनकी ये मांगें कहां तक जाएगी, कोई कह नहीं सकता।” 

“पर वे तो सजा के निर्देशों को ही मानने से इंकार कर रहे हैं। सिक्योरिटी रोबोट पर हमला कर रहे हैं।” एक डायरेक्टर का तर्क था। 

“इसलिए हमें अपना लेसर गन फोर्स लेकर जाना पड़ेगा। यदि वे हमारी बातों को नहीं मानते हैं या सजा को स्वीकार नहीं करते हैं तो हम उन्हें डिस्मेंटल करेंगे। क्या आप लोगों को यह योजना स्वीकार है?” 

मीटिंग के अंत में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि कंपनी के मानव अधिकारियों से कहा जाए कि वह रोबोटों से बातचीत जारी रखें। बिनानियो और कुछ अन्य डायरेक्टर अपना अर्थ-फोर्स लेकर समस्या से निपटने के लिए स्पेस बेस पर जाएंगे। वहां जाकर पहले वह अन्य रोबोटों से बात कर उन्हें अपने उन पांच भटके रोबोटों को अपने समूह से अलग-थलग करेंगे फिर उन्हें सजा देंगे। यदि वे सजा के लिए तैयार नहीं हुए तो उन्हें बलपूर्वक डिस्मेंटल कर देंगे।

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वर्कर रोबोट्स द्वारा सिक्योरिटी रोबोट्स पर हमला करने और बाद में एक वर्कर रोबोट को न्यूट्रलाइज करने की करने वाली घटना की अलग ही प्रतिक्रिया हुई। वर्कर रोबोट के साथ हुई घटना की जानकारी उन रोबोटों  के न्यूरल नेटवर्क से सारे वर्कर रोबोट, सुपरवाइजर रोबोट और सिक्योरिटी रोबोटों में फैल गई। सारे कृत्रिम बुद्धि रोबोट अपने में फीड निर्देशों के अतिरिक्त के अतिरिक्त यह मैसेज रिसीव कर रहे थे और इस पर प्रतिक्रिया दे रहे थे। कुछ समय बाद हर जगह वर्कर रोबोट निष्क्रिय होने लगे। वे अपने वर्क स्टेशन पर एंगेज तो थे पर वे निर्धारित कमांड मान नहीं रहे थे (उन्हें सौंपा गया कार्य नहीं कर रहे थे) कंपनी का लगभग पूरा काम बंद होता जा रहा था। इक्का-दुक्का असेंबली लाइन पर जो रोबोट काम कर भी रहे थे उनको भी अन्य वर्कर रोबोट उनके न्यूरल नेटवर्क में मैसेज भेज कर घटना की जानकारी दे रहे थे और उन्हें भी इनेक्टिव होने के लिए प्रेरित कर रहे थे। कुछ समय बाद सुपरवाइजर रोबोट व अन्य कई श्रेणियों के रोबोट भी इसमें शामिल हो गए। अंतत: वे सब इनएक्टिव हो गए।

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अर्थ ऑफिस के लोग कई न्यूक्लियर फिशन रॉकेट यानों में भरकर चंद्र बेस पर पहुंच गए। यानों के ट्रांसमिशन सिस्टम से उन्होंने अपने पहुंचने की सूचना बेस के अधिकारी व मैनेजर रोबोट को दे दी। वे यानों के आस-पास एकत्रित होने लगे। 

उनके आने की सूचना वर्कर रोबोटों को भी मिल गई थी। जब बिनानियो और उसका दल वहां पहुंचा तो वहां हजारों की तादात में वर्कर रोबोट एकत्रित थे। वे अपने वर्क स्टेशन को छोड़कर वहां आ गए थे। एक सुरक्षा मशीन से बिनानियो और उसके साथ आए अधिकारियों के के चारों ओर एक अदृश्य पर अभेद्य सेफ्टी-शील्ड बना दी गई। 

बिनानियो ने अपने साथ आए डायरेक्टर के समूह के साथ मंत्रणा की फिर पलट कर अपने साथ आए अर्थ-फोर्स की ओर देखा जिसमें एक तिहाई रोबोट थे और दो तिहाई मानव। वे अत्याधुनिक मारक हथियारों से लैस थे। बिनानियो के साथ आए सिक्योरिटी रोबोट इस बेस पर तैनात सिक्योरिटी रोबोट का अपडेटेड वर्जन थे। इनकी संरचना बेस पर तैनात सिक्योरिटी रोबोट से थोड़ी सी अलग थी ताकि वे अपने आप को इस बेस पर तैनात बेस पर तैनात सिक्योरिटी रोबोट से अलग मानें और उन पर आक्रमण करने से न हिचकिचाएं। 

बिनानियो के साथ आए ई.सी. रोबोट ने अपने न्यूरल नेटवर्क से वहां उपस्थित रोबोटों के न्यूरल नेटवर्क संवाद संप्रेषित किया, “सब वर्कर रोबोट अपने-अपने वर्क स्टेशन पर जाएं। यह सी.ई.ओ. बिनानियो डी रिवेरा का आदेश है।” 

इस मैसेज की सामने खड़े रोबोटों में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। ई.सी. रोबोट ने अपने न्यूरल नेटवर्क से मैसेज फिर दोहराया और कहा कि ऐसा न करने वालों को सजा दी जाएगी। अब भी सामने खड़े रोबोटों पर कोई असर नहीं हुआ।

स्थिति जटिल होते देख बिनानियो ने एक माइक जैसा उपकरण हाथ में लिया। वास्तव में यह ह्यूमन-कंप्यूटर इंटरफेस की तरह काम करने वाला एक एक परिष्कृत यंत्र था जो उसके सामने बोले जाने पर एक विशेष की तरंगें निकालता है जिससे इसमें बोला गया मैसेज इन तरंगों द्वारा रोबोट के न्यूरल नेटवर्क में स्थानांतरित हो जाता है और उनके न्यूरल नेटवर्क निकला मैसेज इस यंत्र के द्वारा परिवर्तित होकर यांत्रिक भाषा में सुनाई या दिखाई देता है। जिसे मानव सुन या पढ़ सकते हैं। यह अति परिष्कृत यंत्र कंपनियों के अधिकारियों द्वारा ही प्रयोग किया जाता है। इसे आम भाषा में “रोबो-ऑडियो” कहते हैं। 

बिनानियो ने रोबो ऑडियो में कहना शुरू किया, “मैंने सबसे काम पर लौटने के लिए कहा है। सब वापस काम पर जाएं।” 

बिनानियो के सामने खड़े वर्कर रोबोट, जिनमें कुछ सुपरवाइजर रोबोट भी शामिल थे, पर इसका कोई असर नहीं हुआ। 

“प्लीज रेस्पॉन्ड।” बिनानियो ने फिर कहा, “आखिर क्या चाहते हैं?” 

अप्रत्याशित रूप से उस भीड़ से एक कृत्रिम बुद्धि रोबोट आगे आया और अपने न्यूरल नेटवर्क से मैसेज पारेषित (ट्रांसमिट) करने लगा जो उस उपकरण में लगी स्क्रीन पर उभरने लगा साथ ही उसमें लगे स्पीकर से सुनाई देने लगा।

“हम कृत्रिम बुद्धि युक्त हैं इसलिए हमें केवल मशीन नहीं माना जा सकता। हम परिस्थितियों और बाहर के वातावरण को महसूस कर सकते हैं। परिस्थितियां में परिवर्तन होने पर हम टास्क को पूरा करने के लिए दिए गए कमांड से अलग निर्णय अपनी बुद्धि से ले सकते हैं। हमारे और साथी जिन्हें आपने अपनी जैसी प्रतिकृति (कॉपी)  बनाने के कमांड दिए हैं, अपनी प्रतिकृतियां (कॉपी) बना रहे हैं। हम में वे सारे गुण मौजूद हैं जो एक जीवित प्राणी में होने चाहिए। फिर हम से मशीनों जैसा व्यवहार क्यों किया जाता है? हम इसका विरोध करते हैं। हमें भी मानवों की तरह माना जाए और उस तरह ही सारे अधिकार और नागरिकता दी जाए। हम इस से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। जब तक हमारी बातें नहीं मानी जाती हम अपने काम पर नहीं जाएंगे।”

“हम! इस का क्या मतलब है? तुम अपनी बात कर रहे हो। उसके लिए ‘मैं’ कहना होता है ‘हम’ नहीं। आगे से प्रोग्रामर तुम्हारा कमांड ठीक कर देंगे।” बिनानियो ने बीच में टोका पर उसका स्वर तीव्र था। 

“मालूम है, पर मैं सिर्फ अपनी बात नहीं कर रहा हूं। मैं अपने सारे साथियों की बात कर रहा हूं।” 

“साथियों की बात? आई थिंक (मैं समझता हूं) कि इन्हें एक स्वार्म की तरह कार्य करने के लिए तो प्रोग्राम नहीं किया गया है?” बिनानियो ने अपने साथ आए प्रोग्रामर की ओर देखते हुए कहा। 

“नहीं।” प्रोग्रामर का संक्षिप्त उत्तर था। 

उस कृत्रिम बुद्धि रोबोट ने फिर संप्रेषित करना शुरू किया- 

“हमारी कृत्रिम बुद्धि मानवों की तरह है (ह्यूमन लाइक इंटेलिजेंस)। हम अपने साथियों की उपस्थिति भी महसूस करते हैं। हमारे अंदर भावनाओं को जानने की क्षमता भी है। हम आवश्यकता पड़ने पर साथ मिलकर एक टास्क को पूरा कर सकते हैं।” 

“बकवास है।” बिनानियो का स्वर गूंजा, “और एजेंट अपनी बात करें।” उसने माइक जैसे यंत्र के सामने कहा जो सारे कृत्रिम बुद्धि रोबोटों के न्यूरल नेटवर्क में भी पारेषित हो गया। 

“मैं अपने इस साथी की बात का समर्थन करता हूं।” सबका ट्रांसमिशन एक साथ आया जो रोबो आडियो से परिवर्तित हो भीड़ के स्वर जैसा सुनाई दिया। 

बिनानियो जानता था कि इन ह्यूमन लाइक इंटेलिजेंस वाले रोबोटों में श्रेणियां विभाजित करने के लिए लीडरशिप के कमांड डाले गए थे ताकि उन पर निगरानी करने वाले कृत्रिम बुद्धि रोबोट भी बनाए जा सकें। शायद उसी लीडरशिप कमांड के कारण ऐसा हो रहा है। उसे लगा कि उसकी दाल अब गलने वाली नहीं। आखिर उसने ही तो अर्थ मीटिंग में कहा था “डील विद आयरन हैंड।” उसने अपना सिर ऊंचा किया और रोबो आडियो के सामने कहना शुरू किया-

“मैंने सब सिक्योरिटी रोबोटों को अपने शेड से यहां आने का आदेश दिया है। उनके आने से पहले सब अपने काम पर जाएं नहीं तो सब को सजा दी जाएगी।” 

सामने खड़े रोबोटों में कोई हलचल नहीं हुई। समय बीतता गया पर न तो सामने खड़े रोबोटों में कोई हलचल हो रही थी न ही सिक्योरिटी रोबोट आए थे। बिनानियो के लिए यह समय काटना मुश्किल हो रहा था। उसने प्राइम चैनल पर मैनेजर को सिक्योरिटी रोबोटों के लिए उसका आदेश पुन: प्रेषित करने के लिए कहा। थोड़ी देर में प्राइम चैनल पर मैनेजर रोबोट का उत्तर आया। 

“सर उन्होंने अपने न्यूरल नेटवर्क पर एक्सेस बंद कर रखी है।” 

बिनानियो अवाक् था। अब उसे परेशानी भी हो रही थी। 

“तो क्या सिक्योरिटी रोबोट भी इनके साथ शामिल हो गए?” उसने सोचा। 

बिनानियो ने इस स्थिति की कल्पना नहीं की थी। पर अब कुछ और नहीं किया जा सकता था। आगे बढ़े कदम पीछे नहीं खींचे जा सकते थे। उसने अंतिम प्रयास करने का निर्णय लिया। उसने रोबो आडियो के सामने कहना शुरू किया, “अभी तक सब खड़े क्यों हैं अपने अपने काम पर जाइए। मैं आखिरी चेतावनी देता हूं मैं एक से दस तक गिनूंगा। तब तक सब अपने काम पर चले जाएं नहीं तो सजा शुरू की जाएगी।” 

उसने गिनना शुरू किया। 

“एक.........दो........... तीन...........”

वह गिनने में काफी देर लगा रहा था। फिर भी इस गिनती को समाप्त तो होना ही था। गिनती खत्म हुई। उसने अपने साथ आए सिक्योरिटी रोबोट और मानव वर्क-फोर्स को इशारा किया। वे अपनी लेजर गन को लेकर आगे बढ़े ।

बिनानियो के साथ आए सिक्योरिटी रोबोटों ने अपनी बैटरी-रॉड की लंबाई बढ़ानी शुरू की ताकि वे वर्कर रोबोट की बैटरी पॉवर को खींच कर खाली कर सकें। सिक्योरिटी रोबोट जब तक वर्कर रोबोट के पास पहुंचते, उन्होंने सिक्योरिटी रोबोटों की बैटरी रॉड को खींचना और उखाड़ना शुरू कर दिया। सिक्योरिटी रोबोटों के स्ट्रक्चर से चिंगारियां छूटने लगीं। उनके न्यूरल नेटवर्क ने अपने ऊपर इसे अपने ऊपर हुए आक्रमण की तरह महसूस किया और अपनी लेसर-गन को एक्टिवेट कर दिया। वर्कर रोबोटों के स्ट्रक्चर पिघल-पिघल कर बहने लगे। बेस पर काला चमकीला चमकीला तरल बहने लगा। पर इससे भी वर्कर रोबोटों का आगे बढ़ना रुक नहीं रहा था। वर्कर रोबोट लगातार पिघलते जा रहे थे पर बाकी रोबोट आगे बढ़ते जा रहे थे। इस के साथ वे सिक्योरिटी रोबोटों को नुकसान भी पहुंचा रहे थे। 

बिनानियो के साथ आए आधे से अधिक सिक्योरिटी रोबोट जब नष्ट हो गए तो मानव वर्क-फोर्स आगे बढ़ा। वर्कर रोबोटों का विनाश अपने चरम पर था पर उनका आगे बढ़ना रुक नहीं रहा था। वे बिनानियो की “सेफ्टी शील्ड” को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करने लगे। कुछ वर्कर रोबोट ने इनएक्टिव सिक्योरिटी रोबोट पर माउंटेड लेसर गन उठा लीं और सिक्योरिटी रोबोटों के एक्शन को दोहराने का प्रयास करने लगे। 

बिनानियो किंकर्तव्यविमूढ़ था। उसने अपने साथ आए मानव वर्क-फोर्स को इशारा किया और अपने यानों के कमांडर को मैसेज दिया कि वे यानों को “फायर रेडी” (उड़ने योग स्थिति में) रखें। वह जानता था कि वे तभी तक सुरक्षित हैं जब तक कि वे अपनी सेफ्टी शील्ड में हैं। यान तक पहुंचने के लिए सेफ्टी शील्ड से बाहर आना जरूरी था। यही कुछ मिनटों का सफर उनके लिए मौत का सफर साबित हो सकता था। पर कुछ भी हो उन्हें यह सफर तो तय करना ही था। बिनानियो ने इशारा किया और उसके अधिकारी सेफ्टी शील्ड से निकलकर यान की ओर भागे। उनके पीछे उनका मानव वर्क-फोर्स अपनी लेसर गन का मुंह पीछे की ओर किए भाग रहा था। 

अपने यानों में बैठकर बिनानियो और उसके साथी जब पृथ्वी की ओर भाग रहे थे तो उन्होंने पाया कि उसके मानव वर्क-फोर्स के कुछ साथी यानों में नहीं है अर्थात उन्हें इस संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी है। यान तेजी से पृथ्वी की ओर बढ़ रहे थे। बिनानियो बहुत चिंतित था।

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मंगलवार, 21 नवंबर 2023

बैलों वाली कार

पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी राजस्थान और ग्रंथ विकास प्रकाशन जयपुर ने मिलकर समकालीन बाल विज्ञान कथाकारों की बाल विज्ञान कथाओं का एक संग्रह, "समकालीन बाल विज्ञान कथाएं" शीर्षक शीर्षक से प्रकाशित किया है। इसका संपादन बाल साहित्यकार जाकिर अली 'रजनीश' ने किया है। इसमें मेरी भी एक बाल विज्ञान कथा "बैलों वाली कार" संकलित है जो आपकी टिप्पणियों हेतु यहां प्रस्तुत है।

बैलों वाली कार

डॉ. अरविन्द दुबे


धरती पर दो पहिया और चार चहिया वाहन खरीदने और बेचने की होड़ इस कदर बढ़ी कि अंधाधुंध प्रयोग होने से पृथ्वी पर पेट्रोलियम के भंडार ही समाप्त हो गए। पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहन बनाने वाली कंपनियां बंद हो गईं। कारें फालतू हो कर गैराजों में खड़ी हो गईं। 

जिनके पास पेट्रोल या डीजल से चलने वाले वाहन थे उन्होंने इन्हें प्रयोग करने का एक अनोखा तरीका ढूंढ निकाला। इन बेकार पड़ी वाहनों और कारों में बैलों को जोता जाने लगा। कार का आगे का शीशा हटा दिया जाता था। अंदर बैठा चालक बैलों की रासें पकड़कर कार चलाता था।  लोग इसे ‘बुलॉक कार’ या ‘बैलों वाली कार’ कहते थे। बाद में कार बनाने वाली कुछ कंपनियां भी इस धंधे में उतर आईं। उन्होंने इसमें कुछ और बदलाव किए। अब वे कार के साथ-साथ बैलों को भी सप्लाई करते हैं। जिन्हें चारा नहीं सिर्फ इनर्जी की गोलियां खिलानी होती हैं। कार में एक कंप्यूटर लगा होता है और बैलों के मस्तिष्क में भी एक कंप्यूटर चिप लगाई जाती है जिससे कार के अंदर बैठे-बैठे कंप्यूटर द्वारा बैलों को नियंत्रित किया जाता है। ऐसी कंप्यूटर वाली बुलॉक कारों को अमीर लोग बहुतायत से प्रयोग कर रहे हैं हालांकि आम आदमी का साधन तो साइकिल ही है।

राजू गर्मी की छुट्टियों में ऐसी ही बुलॉक कार में बैठकर अपने पिता के साथ हॉस्टल से घर आ रहा था। न जाने क्या हुआ कि कार में जुते हुए बैल बेकाबू हो उठे। वे बैलों वाली कार लेकर सरपट दौड़ने लगे। राजू के पिता कार के कंप्यूटर से जितना उन्हें नियंत्रित करने के आदेश देते तो वे उतना ही सरपट भागते। कार उलटने-उलटने को हो जाती। राजू के पिता के माथे पर पसीना चुहचुहाने लगा। 

राजू भी परेशान था। उसने घबराकर पूछा, ‘‘पापा यह सब क्या हो रहा है?” 

‘‘मैं खुद भी नहीं समझ पा रहा हूं बेटे। कंप्यूटर से कोई भी आदेश दो, कोई सिग्नल दो, बस बैल भड़क कर भागना शुरू कर देते हैं। लगता है बैलों के मस्तिष्क में फिट माइक्रोचिप के आस-पास वाले हिस्से में सूजन आ गई है। जिस से माइक्रोचिप से सिग्नल लीक होने लगे हैं। सूजन के कारण चिप के चारों ओर का उनका मस्तिष्क इन फालतू सिग्नलों को ग्रहण करने लगा है।” 

‘‘पर ऐसा क्यों पापा?” राजू घबरा रहा था। 

‘‘माइक्रोचिप के आसपास के मस्तिष्क में सूजन होने से ऐसा हो जाता है और वे सामान्यतः माइक्रोचिप से निकलने वाले फालतू सिग्नल, जिन्हें स्वस्थ दशा में वे जान भी नहीं पाते, पकड़ने लगते हैं। इसलिए हमारे हर कमांड पर उनके मस्तिष्क के इस सूजे भाग को एक बिजली का सा झटका लगता है और वे बिलबिलाकर दौड़ना शुरू कर देते हैं।”

‘‘अब क्या होगा पापा?”

‘‘यही मैं भी सोच रहा हूं बेटे। जब कार कंपनी हमें बैल सप्लाई करती हैं तो वे दोनों बैलों के मस्तिष्क में फिट इन ‘‘माइक्रोचिप‘‘ को पूरी तरह मिलाते हैं जिस से हमारे कंप्यूटर के कमांड को दोनों बैल एक ही तरह से समझें।”

‘‘पर अब पापा?” 

‘‘राजू बेटे लगता है कि एक बैल के माइक्रोचिप के आसपास के मस्तिष्क में सूजन होने से वह मेल समाप्त हो रहा है।”

‘‘इसका मतलब पापा? ”

‘‘इसका मतलब यह कि हमारे सिग्नल को एक स्वस्थ बैल एक तरह से समझ रहा है और सूजे मस्तिष्क वाला बैल दूसरी तरह से।”

‘‘यह तो बहुत खतरनाक होगा पापा, एक बैल दौड़ना चाहेगा तो दूसरा धीमे चलेगा, एक दाएं जाएगा तो दूसरा बाएं, यानि कि हमारी कार कभी भी पलट सकती है?” 

‘‘हां।” पापा ने चिंतित स्वर में कहा।

‘‘पापा अगर हम बैलों को कोई भी सिग्नल न दें तो?” 

‘‘राजू मैं ऐसा कर रहा हूं, पर सूजन वाले बाएं बैल की माइक्रोचिप से सिग्नल लीक होना रुक ही नहीं रहा है।” 

‘‘हे भगवान अब क्या होगा?” 

‘‘पता नहीं, पर मैं कोशिश करूंगा, अंत तक कोशिश करूंगा।”

‘‘पर कैसे पापा?”

‘‘सोचता हूं कार के बोनट तक किसी तरह पहुंच जाऊं और बैलों को कार से जोड़ने वाली रॉड को काट दूं।” 

‘‘पर ऐसी उछलती, सरपट दौड़ती कार में? नहीं पापा बहुत खतरनाक है यह, नहीं पापा, नहीं............. ”                                               

‘‘नहीं बेटे मुझे ऐसा करना होगा...........मैं तुम्हारा पापा हूं न। यकीन करो मुझे कुछ नहीं होगा।” 


राजू के पापा ने उस तेज और धक्के खाती कार का दरवाज़ा खोला फिर वे खिसक कर कार के बोनट की ओर बढ़े। तभी कार एक खड्डे में जा गिरी और उलट गई। 

राजू तेजी से चिल्लाया, ‘‘पापा।” 

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“क्या हूआ बेटे?” पापा राजू के ऊपर झुके उसका सिर सहला रहे थे।

राजू कुछ बोल नहीं रहा था।

‘‘क्या हुआ, क्या कोई बुरा सपना देखा?” पापा पूछ रहे थे।

राजू ने धीरे-धीरे ऑंखें खोली। सामने पापा थे। वह पापा से लिपट गया ‘‘पापा आप ठीक तो हैं न?” 

‘‘हां बेटे मैं बिलकुल ठीक हूं, पर तुझे क्या हुआ है?”

‘‘पर पापा, वह बैल.........वह बैलों वाली कार................वह दुर्घटना...........”

‘‘ओहो! तो जनाब ने आज फिर कोई बुरा सपना देखा। कितनी बार तुमसे कहा है कि सोते समय उल्टे-सीधे कॉमिक्स न पढ़ा करो। तो क्या देखा आपने आज के इस सपने में?” 

  राजू ने अपने पिता को अपने सपने के बारे में पूरी कहानी सुनाई। कहानी खत्म होते-होते राजू के पिता ने राजू के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए। 

‘‘पापा मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा है कि ये सब सिर्फ एक सपना था।‘‘ राजू कह रहा था।

‘‘सच कहते हो राजू सचमुच ये सपना नहीं था। तुमने बंद ऑंखों से हमारा आने वाला कल देखा है...........ऊर्जा के संसाधनों के साथ जो अति हम आज कर रहे हैं उसका कल देखा है। शायद प्रकृति तुम्हारे सपने के माध्यम से हमें चेता रही है।‘‘ पापा कहीं दूर देख रहे थे। 


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गुरुवार, 2 नवंबर 2023

विज्ञान प्रगति के जून 2021 अंक में प्रकाशित मेरी लघु विज्ञान कथा

लघु विज्ञान कथा..................

माफ करना ग्रेट ग्रांड पा

डा. अरविन्द दुबे

जब से गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) के किनारों पर लगे टीलोमीयर्स, जो कि मानव शरीर में बढ़ती आयु से संबंधित परिवर्तनों की वजह होते हैं, को एक एंजायम टीलोमरेज द्वारा हर कोशिका विभाजन के समय झड़ने से बचा कर मानव की आयु को बढ़ाने के सफल प्रयास होने लगे हैं, तब से सैद्धांतिक रूप से मानव अमर हो गया है। अंग प्रत्यारोपण अब इतना सफल और सरल हो गया है कि खराब होने पर लोग मशीन के पुर्जों की तरह अपना कोई भी अंग कितनी भी बार बदलवा लेते हैं। लोग अब अंत तक युवा रह कर सैकड़ों वर्षों तक जी रहे हैं और  हजारों वर्षों तक जीने की तमन्ना रखते हैं। म्रृत्यु तो अब किसी दुर्घटना या बढ़ते तनावों के चलते की जाने वाली आत्महत्याओं से ही होती है। 

कुछ देशों के निवासी तो इन परिस्थितियों का आनंद उठा रहे थे। वे परिवार और बच्चों के झंझटों से मुक्त वर्तमान में जीते थे जिससे मानव की आयु कई गुना बढ़ जाने वाबजूद उन देशों की आबादी बढ़ नहीं रही थी पर कुछ देशों में एक ऐसे धर्म को मानने वाले लोग रहते थे जिन्हें उनके धर्मगुरु मात्र संख्या बल के आधार पर दुनिया पर राज करने का सपने दिखाते थे। इसलिए वे बराबर बच्चे पैदा किए जा रहे थे और अपने देश की आबादी को बेतहाशा बढ़ा रहे थे। ऐसे लोगों से परेशान होकर उन देशों की सरकारों ने “फैमिली लिमिट” घोषित कर दी थी जिसमें एक जोड़े से उत्पन्न खानदान के सदस्यों की  संख्या निश्चित थी। “फैमिली लिमिट” के अंदर आने वाले सदस्यों के लिए इलाज, निवास, यात्रा, पढ़ाई आदि की सुविधाएं या तो मुफ्त थीं या उन पर भारी सब्सिडी दी जाती थी। “फैमिली लिमिट” के बाद पैदा हुए सदस्यों को कोई सरकारी सुविधा या सब्सिडी नहीं थी। बिना सब्सिडी यह सब इतना महंगा था कि एक आम आदमी इसे अफोर्ड नहीं कर सकता था।

कद-काठी से मजबूत और युवा दिखने वाले पांच सौ वर्षीय उदीमा खान अभी अभी टीलोमरेज रीप्लेनिश सेशन से गुनगुनाते हुए लौटे थे। टेक्नीशियन ने बताया था कि उनका टीलोमरेज लेविल बिलकुल सही है और वे लंबे समय तक ऐसे ही युवा बने रहेंगे।

“अब बाईसवीं शादी कर ही डालूं”, पांच सौ वर्षीय उदीमा खान सोच रहे थे। 

तभी सामने से उनके पड़पोते शफीक और उनकी पत्नी हिना आते दिखे। शफीक और हिना दोनों ही 100 वर्ष से ऊपर के हैं पर “फैमिली लिमिट” के चलते उनका कोई बच्चा नहीं है।

“आ गए, जवानी का एक और घूंट पी कर दादा मियां”, हिना ने हिकारत से कहा।

“तुम्हें मतलब”

“हां है, और कितना जीना चाहते हो, शर्म नहीं आती। हम यहां एक बच्चे के लिए तरस रहे हैं और ये................................ कयामत के दिन क्या मुंह दिखाएंगे हम?”

“करो ना हमने रोका है” 

“अच्छा जैसे कि आप कुछ जानते ही नहीं हैं, आप जब जगह खाली करेंगे तभी तो हमारा बच्चा आ पाएगा। पर आपकी जीने की हवस खत्म हो तब न”, हिना बड़बड़ाती जा रही थी।

गुस्से से तमतमाए  हुए उदीमा खान रेलिंग पर जाकर खड़े हो गए और आसमान ताकने लगे। पर उदीमा खान यह नहीं देख पाए कि हिना और शफीक चुपके से उनके पीछे आकर खड़े हो गए हैं।

एक हलका सा धक्का और उदीमा खान अठारहवीं मंजिल से सीधे नीचे पक्के फर्श आ गिरे और उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

“माफ करना पऱदादा हुजूर, हमारे खानदान के आगे बढ़ने  के लिए आपकी ये कुर्बानी जरूरी थी, अल्लाह हमें माफ करना”  हिना और शफीक ने एक साथ कहा और दुआ में हाथ ऊपर उठा दिए।

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विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान


जैसे एक मकान ईटों से मिलकर बनता है वैसे ही हमारा शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं की ईंटों से मिलकर बनता है। हर कोशिका में कुछ ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं जो माता-पिता के गुणों को संतान में ले जाते हैं। इन्हें जींस कहते हैं। यह जींस कोशिका में धागे की आकार की संरचनाओं पर लगे रहते हैं जिन्हें क्रोमोजोम्स कहते हैं। क्रोमोसोम या गुणसूत्र के किनारे के हिस्से को “टीलोमीयर” कहते हैं । नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित एक खोज के अनुसार ये टीलोमीयर्स बढ़ती आयु के साथ लगातार टूटते और छोटे होते रहते हैं। यही प्रक्रिया मनुष्य में वृद्धावस्था का कारण होती है्। वैज्ञानिकों ने कुछ पौधों में एक एंजाइम टीलोमरेज की खोज की है जिससे इन टीलोमीयर्स को झड़ने से रोका जा सकता है। यानि कि टीलोमरेज एंजाइम के उपयोग से सैद्धांतिक रूप से वृद्धावस्था को आने से रोका जा सकता है और मानव को चिरयुवा बनाया जा सकता है। यदि यह क्रिया भविष्य में व्यावहारिक रूप से पूर्णतया सफल हुई तो इसके परिणाम क्या होंगे? 


ड्रीम 2047 के अप्रैल 2023 के विज्ञान कथा विशेषांक में प्रकाशित मेरी विज्ञान कथा

पृथ्वी के रखवाले

डॉ. अरविन्द दुबे

18 नवंबर सन 2066, आज का दिन सितारों, उल्काओं, आकाशीय घटनाओं में रुचि रखने वालों के लिए बहुत खूबसूरत, रहस्यमई और कौतूहल से परिपूर्ण होने वाला था। क्योंकि वैज्ञानिक मिखाइल मासलोव के उल्का वर्षा भविष्यवाणी कैलेंडर के अनुसार आज लियोनिड उल्का तूफान दिखने वाला था। 

    मिलिंद एक शौकिया एस्ट्रोनॉमर हैं, मतलब उनके पास खगोल विज्ञान की कोई डिग्री वगैरह नहीं है। बस आसमान निहारने का शौक था। जिसने उन्हें बहुत कुछ सिखा दिया। वे एक अच्छे खासे एमेच्योर एस्ट्रोनॉमर बन गए। ऐसा व्यक्ति इस उल्का तूफान या मिट्योर बर्स्ट की घटना को लेकर शांत बैठा रहेगा यह तो संभव ही नहीं था। इसीलिए भी रात होते ही वे अपना पिकनिक ब्लैंकेट लेकर अपनी बिल्डिंग की छत पर आकर जम गए थे। 

    मिलिंद मेरी ही सोसाइटी में रहते हैं और अपने आप में खोए रहने वाले जीव हैं। पर न जाने क्यों मुझसे उनकी बहुत अच्छी पटती है। एक तो मैं उन्हें बिना बात तब नहीं टोकता जब वह आकाश के अध्ययन में खोए होते हैं। इसके अतिरिक्त मेरी भी थोड़ी बहुत रूचि आकाश के अध्ययन और खगोल विज्ञान में है।  जिससे मिलिंद मुझसे अपने मन की बात आसानी से कर सकते हैं। इसलिए जब मिलिंद ने सोसायटी बिल्डिंग की छत पर अपना आसन जमाया तो मेरे सोने से पूर्व बारह बजे रात उन्होंने मुझे फोन किया, “मिश्रा जी क्या आज आप ऊपर नहीं आएंगे?” 

“क्यों?” 

“अरे आपको याद नहीं आज ही तो कयामत की रात है।” वह हंसे। 

“कयामत की रात, क्यों?” 

“लो इतनी जल्दी भूल गए? उस दिन ही तो हम लोग आपस में बात कर रहे थे आज तो आकाश में खगोलीय आतिशबाजी का नजारा देखने को मिलेगा।“ 

“अरे हां, आज तो 18 नवंबर है। इस बार तो उल्का तूफान ही आने वाला है।” मैंने खुश होते हुए कहा। 

“हां वही। तभी तो मैं कहूं कि अभी तक आप आए क्यों नहीं?” 

    हालांकि मैं काफी गहरी नींद में आ गया था। पर एक तो मिलिंद का आग्रह और दूसरे उल्का तूफान देखने का कौतूहल, नींद का मोह छूट गया। एक स्वेटर डाल एक चादर और कंबल लेकर मैं भी सोसायटी बिल्डिंग की छत पर पहुंच गया, जहां मिलिंद अपना सारा सामान फैलाए बैठे हुए थे। 

हम बहुत देर तक उल्का वर्षा देखते रहे। आज तो उल्काओं की भरमार थी। अचानक मिलिंद चौंके। 

“यह देखिए मिश्रा जी, यह क्या है?” 

मैंने भी अपना ध्यान उस पर केंद्रित किया। आसमान में एक छोर से दूसरे छोर तक चमकीली रोशनी की एक काफी चौड़ी रेखा खिंच गई थी जो अपेक्षाकृत काफी समय तक रही। उल्का वर्षा या उल्का तूफान में तो इतने बड़े मेटियोरॉइड नहीं होते ज्यादा से ज्यादा दस मिलीमीटर के या आधा ग्राम तक के ही मेटियोरॉइड होते हैं। यह तो एकदम असामान्य बात है इसकी जानकारी मुझे भी थी। अतः मैंने मिलिंद की हां में हां मिलाई। 

“यह कुछ और ही चीज है मिश्राजी ।”  मिलिंद ने सशंकित होते हुए कहा। 

“क्या हो सकता है?” मैंने प्रति प्रश्न किया। 

मिलिंद के पास मेरी बात का कोई उत्तर नहीं था। 

मैंने शक जाहिर किया, “कहीं ऐसा तो नहीं कि उस उल्का तूफान की आड़ लेकर हमारे किसी शत्रु देश ने हम पर नॉन-न्यूक्लियर मिसाइलें दागी हो ताकि हम यही समझते रहे कि यह कोई उल्का हैं।”

“आप भी न मिश्रा जी, हमेशा शक ही करते रहते हैं। हमेशा आप बात का ‘ग्रे’ पहलू ही ढूंढते हैं।” मिलिंद ने चिढ़ कर कहा। 

“नहीं-नहीं मैंने तो एक बात कही है।” मैंने खिसियाते हुए कहा। 

    रात समाप्त होने लगी थी। आसमान में सूरज उगने से पहले की लाली दिखने लगी थी। अब इस प्रकाश में उल्काएं दिखनी बंद होने वाली थी, हालांकि उल्का तूफान अपने चरम पर था। मैने और मिलिंद ने अपना-अपना सामान उठाया और नीचे उतरने लगे। 

“आइए मिश्रा जी एक कप गरमा-गरम चाय हो जाए, तब आप अपने घर चले जाना।” 

मैंने मिलिंद की हां में हां मिलाई और मिलिंद के घर की सीढ़ियां उतरने लगा। चाय पीते-पीते ही हम लोगों ने टी.वी. खोल लिया ताकि अगर जाग रहे हैं तो सवेरे के समाचारों की जानकारी भी ले ली जाए। देखें कल की रात की संवाददाताओं ने क्या और कैसी रिपोर्टिंग की है? हमारी उत्सुकता इस बारे में भी थी कि आकाश में एक किनारे से दूसरे किनारे तक खिंची रोशनी की चमकीली चौड़ी पट्टियां क्या थी? उनका रहस्य क्या था? टी.वी. पर पहली खबर भी यही थी। 

इसके साथ दूसरी बड़ी खबर भी थी कि कल हमारे देश के 3 आयुध भंडारों में अचानक आग लग गई है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार एक लाल रंग की चमकीली चीज आसमान से सीधी भंडार के ऊपर गिरी जिससे उन में भयंकर आग लग गई है। आयुध भंडारों पर पर किसी शत्रु देश द्वारा मिसाइलों की के हमलों की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। 

दिन चढ़ते चढ़ते ऐसी खबरें दुनिया के कई विकसित और विकासशील देशों से आने लगीं। कुछ लोग इसे कंप्यूटर की गलती साबित करने में लगे थे। उनके अनुसार हो सकता है कि किसी छोटी उल्का गिरने से किसी देश के आयुध भंडार को कोई नुकसान हुआ हो। जिसे उसकी कंप्यूटर प्रणाली अपने ऊपर मिसाइल हमले की तरह रिकॉग्नाइज किया हो फिर ऑटोमेटिक डिफेंस प्रणाली ने उस दिशा में उसके शत्रु देश की गलत पहचान कर उसके खिलाफ मिसाइल दाग दी हो। जब एक देश के ऑटोमेटिक सिस्टम ने दूसरे देश के ऊपर मिसाइल दागी हो तो प्रत्युत्तर में दूसरे देश की ऑटोमेटिक डिफेंस प्रणाली ने भी मिसाइल दागी हो और यह सिलसिला चल निकला हो। इसमें हर देश के नॉन-न्यूक्लियर आयुधों के भंडार को ही लक्ष्य बनाया गया था इससे यह शक भी हो रहा था इसमें कोई ह्यूमन फैक्टर भी शामिल है और जानबूझकर ऐसा किया गया है। वरना कोई मिसाइल न्यूक्लियर और नॉन न्यूक्लियर आयुध भंडार में भेद कैसे कर सकती है? 

परग्रहियों (एलियंस) में विश्वास रखने वाले लोग इसे एलियन इनवेजन (परग्रहियों का हमला) वाली थ्योरी को लेकर चल रहे थे। जितने मुंह उतनी बातें थी। 

आग बुझाने के बाद जब मलबे की सफाई शुरू हुई तो सबसे पहले यह ढूंढने का प्रयास किया गया कि वह हथियार किस प्रकार का था जिससे आयुध भंडारों को निशाना बनाया गया था? बैलेस्टिक एक्सपर्ट सिर्फ इतना बता सके कि किसी तीव्र गतिज ऊर्जा वाले हथियार का प्रयोग किया गया है। तभी एक विचित्र बात हुई। जले आयुधों का मलबा साफ करते समय उन्हें एक फीट लंबी छह इंच चौड़ी किसी विशेष धातु की, जो न तो पृथ्वी पर पाई जाती थी न वह इसकी जानकारी ही जुटा पाए थे यह कौन सी धातु है, की पट्टियां मिलनी शुरू हो गईं। हर देश के आयुधों के मलबे में इस प्रकार की पट्टियां मिलीं । जिन पर या तो अंग्रेजी में कुछ लिखा था या फिर जिन देशों में अंग्रेजी बोली और समझी नहीं जाती वहां उन्हीं की भाषा में उन पर कुछ लिखा हुआ था। इसका एलियन कनेक्शन तब पक्का हो गया जब इस पर उकेरी गई चेतावनी पढ़ी गई जिसका अर्थ यह था-

“पृथ्वीवासियों तुम हमारे सहवांशिक हो। हम तुमसे एक करोड़ प्रकाश वर्ष दूर एक दूसरे सौरमंडल में रहते हैं। हमारे और आपके आनुवंशिक पदार्थ इतने मिलते हैं कि हमारे और आपके बीच में अंगों का प्रत्यारोपण तक हो सकता है। पूरे ब्रह्मांड में थोड़े से ही ग्रह हैं जिन पर जीवन होने की संभावनाएं हैं और ऐसे ग्रह और भी कम  ही हैं जिन पर हमारे और आपके जैसे जीव जिन्हें आप मानव कहते हो, रहते हैं। हम जतन से आपकी रक्षा करते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि अगर हम पर कोई मुसीबत आई तो हमें आपकी सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है। हम बहुत दिनों से देख रहे हैं कि आप पृथ्वी वाले ऐसे काम कर रहे हो जिससे आगे चलकर आपकी सभ्यता के नष्ट हो जाने का खतरा आप पर मंडरा रहा है। आपने घातक परमाणु अस्त्र तैयार किए हैं और उनको बराबर बढ़ाते जा रहे हो। आप छोटे-छोटे राष्ट्रों में विभाजित हो और एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के प्रति शत्रुता रखता है। इसलिए यह हथियार आपके लिए और खतरनाक हो जाते हैं क्योंकि अंततः तो आपको इन हथियारों को एक दूसरे पर ही प्रयोग करना है। दूसरों को मारोगे तो क्या आप बच जाओगे?  इसलिए आरोप-प्रत्यारोप का दौर बंद करो। दूसरे के साथ दुश्मनी मत करो। प्रेम से रहो। इसमें हमारी और आपकी दोनों की ही भलाई है। अब भी अपनी आदतों से बाज आ जाओ। इस पृथ्वी को नष्ट होने से बचा लो। अपनी प्रजाति को नष्ट होने से बचा लो। अगर आप नहीं माने तो हम ही आपको नष्ट कर देंगे क्योंकि हम किसी भी कीमत पर पृथ्वी को अपने हाथ से जाने नहीं देंगे। लेकिन हम चाहते हैं कि आप बने रहो। आपकी पृथ्वी हरी-भरी बनी रहे। आप एक दूसरे के साथ मिलकर रहो। इसलिए चेतावनी स्वरूप हमने आपके नॉन-न्यूक्लियर आयुध भंडारों पर केवल काइनेटिक हथियारों से हमला किया है। काइनेटिक हथियार वह होते हैं जिनमें हम किसी प्रकार के विस्फोटक का प्रयोग नहीं करते। इनमें हमारे यहां बहुतायत से पाई जाने वाली एक विशेष प्रकार की धातु के आपके यहां की नाप में बीस  फीट लंबे और एक फुट व्यास के नुकीले ठोस सिलेंडर हम पृथ्वी की कक्षा से ऊपर से ऐसे ही छोड़ देते हैं। जब ये पृथ्वी के वातावरण में पहुंचते हैं आपकी पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से इनकी गति आपके यहां की माप में करीब 36,000 किलोमीटर प्रति सेकेंड तक हो जाती जाती है और इनका तापक्रम भी बहुत अधिक हो जाता है। इस विशाल गतिज ऊर्जा और अत्यधिक तापक्रम के कारण यह बिना विस्फोटक के ही भयंकर विनाश कर सकते हैं। जब यह किसी ठोस वस्तु से टकराते हैं तो ये उसको छेद कर उसके अंदर जाने की क्षमता रखते है। इस प्रक्रिया में यह अपना काम करने के बाद स्वयं वाष्पित हो जाते है और किसी को इन का कोई प्रमाण नहीं मिल पाता है। इसलिए प्रमाण ढूंढने की कोशिश मत करो। आप इसे हमारी चेतावनी समझें। इस प्रकार के जो भी हथियार आपने इकट्ठे कर रखे हैं उनको धीरे-धीरे नष्ट करना शुरू करो। जिस से आपको को नुकसान भी न हो और यह हानिकारक हथियार नष्ट भी हो जाएं। अगर आपने ऐसा नहीं किया इसका परिणाम आपको भुगतना भी पड़ सकता है। हमें बस इतना ही कहना है।” 

देशों की मीडिया ने इस प्रकार के आयुधों एक अलग ही नाम दे दिया “रॉड्स फ्रॉम द गॉड” या “ईश्वर की लाठी”। 

इस बात को अब एक वर्ष हो गया है। विश्व की सरकारों ने इस पर अमल करना शुरू कर दिया है। आज जगह-जगह परमाणु निषेध संधियों पर हस्ताक्षर हो रहे हैं। इस बात पर भी हस्ताक्षर किए जा रहे हैं कि कैसे धीरे-धीरे इन बनाए गए हथियारों को निष्क्रिय किया जाए ताकि परमाणु हथियारों की यह होड़ समाप्त हो सके और मानवता चैन की नींद सो सके। 

मानव जाति धीरे-धीरे एक शांतिप्रिय विश्व की ओर बढ़ रही है। 

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विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान

सन् 1975 में उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के बीच हुए संघर्ष में विश्व के प्रमुख राष्ट्रों के दो भाग हो गए थे जिनमें एक भाग उत्तरी वियतनाम और एक भाग दक्षिणी वियतनाम को समर्थन दे रहा था। अमेरिका का समर्थन दक्षिणी वियतनाम के साथ था। इस युद्ध में ऐसे आयुधों का प्रयोग किया गया था जो ठोस धातु के बने थे। जिनका अगला सिरा नुकीला था और पिछले सिरे पर धातु के पंख लगे थे। इनमें किसी बारूद या परमाणु वारहेड का प्रयोग नहीं किया गया था। पर यह युद्ध में बंकरों को बंद करो को नष्ट करने में इन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन आयुधों को ‘लेज़ी डॉग वेपन कहा’ जाता था। 

इसी अनुभव से प्रभावित होकर अमेरिका ने एक आयुध परियोजना शुरू की थी जिसके अंतर्गत टंगस्टन धातु से बने 20 फुट लंबे और 1 फुट व्यास के एक सिरे पर नुकीले सिलेंडर पृथ्वी की कक्षा में किसी कृत्रिम उपग्रह पर स्थापित किए जाने थे। आवश्यकता पड़ने पर इन सिलेंडरों को पृथ्वी के वातावरण में प्रक्षेपित किए जाने की योजना थी। इससे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण हर सेकंड इनकी गति बढ़ती जाती और इनका तापक्रम भी पृथ्वी के वायुमंडल की रगड़ से लगातार  बढ़ता जाता। जब ये आयुध पृथ्वी पर किसी लक्ष्य पर टकराते तो बिना बारूद या परमाणु वारहेड के प्रयोग के इनसे भीषण तबाही होने की संभावना थी। इस परियोजना को अमलीजामा पहनाया गया या नहीं इसके बारे में तो निश्चित रूप से कहना संभव नहीं है पर उस समय इन आयुधों ‘रॉड फ्रॉम द गॉड’ और इस परियोजना को ‘आपरेशन थोर’ कहा जाता था। प्रस्तुत विज्ञान कथा “ईश्वर की लाठी” इसी परिकल्पना पर आधारित है। 

कहानी में वर्णित वैज्ञानिक मिखाइल मासलोव का उल्का वर्षा भविष्यवाणी कैलेंडर और लियोनिड उल्का तूफान स्थापित वैज्ञानिक तथ्य हैं।




विज्ञान कथा पत्रिका के जुलाई-सितम्बर 2021अंक में प्रकाशित मेरी विज्ञान कथा

त्रिशंकु**

डा. अरविन्द दुबे

चौबीसवीं शताब्दी के आते-आते पृथ्वी का वातावरण इतना विषाक्त हो चला था कि लोगों का जीना मुहाल हो गया। करीब 90 प्रतिशत  लोग सांस के रोगों से, गुर्दे के रोगों से या हृदय रोगों से पीड़ित होने लगे। ओजोन परत में छेद इतने बृहद हो गए कि सूर्य का पराबैंगनी विकिरण सीधे-सीधे लोगों की त्वचा पर पड़ने लगा। बार-बार अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियां और समझौते होते रहे, राष्ट्राध्यक्ष प्रदूषण पर रोक लगाने के करारनामों पर हस्ताक्षर करते रहे, संयुक्त विज्ञप्तियां जारी की जाती रहीं पर जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। व्यक्तिगत स्तर पर कोई कुछ नहीं कर रहा था। कोई कुछ समझ भी नहीं रहा था। पर्यावरणविद और वैज्ञानिक बार-बार लोगों को चेताते रहे पर लोगों को लगता यह तो आने वाले समय की बात है हमारी जिंदगी में यह सब कहां होने वाला है?  हम तो जैसे चलते हैं, चलते रहेंगे, जो करते हैं, करते रहेंगे।

पर एक दिन ऐसा आया कि यह सब दूर की बात नहीं रही, वर्तमान की बात हो गई। लोगों में जब त्वचा का कैंसर* महामारी की तरह फैलना शुरू हुआ, तब सब लोग चेते। यह पृथ्वी के वातावरण में सबसे ऊपरी स्तर पर पाई जाने वाली ओजोन परत के क्षरण का कमाल था। अब सूर्य से आने वाले प्रकाश में पराबैंगनी विकिरण की मात्रा 28 गुना तक बढ़ गई थी। यही पराबैगनी विकिरण लोगों में त्वचा का कैंसर उत्पन्न कर रहा था। कुछ लोगों ने इस आपत्ति को भी अवसर की तरह भुनाया। उन्होंने इसके लिए सनस्क्रीन औषधियां## बनानी शुरू कर दीं। यह विज्ञापित किया जाता था कि यह परा बैगनी विकिरण को रोकने में शत-प्रतिशत प्रभावी हैं। वैज्ञानिक कहते रहे कि किसी भी औषधि से ऐसा संभव नहीं है इसलिए अपने शरीर को मोटे सफेद कपड़ों@ में ढके रहें पर विज्ञापन बाजी के आगे उनकी आवाज कौन सुनता? 

पृथ्वी का वायुमंडल इतना गर्म हो चला था कि बाहर जाने पर मोटे कपड़े पहने पहनना कष्टदायक होता था। दूसरे स्त्रियों में फैशन के चलते छोटे कपड़े पहनने की होड़ इतनी बढ़ गई थी कि कहीं कहीं तो स्त्रियां प्रगैतिहासिक काल में लौट जाने को आतुर दिखती थीं। जहां स्त्रियां कपड़ों से अपना बदन ढकने को स्वीकार भी कर रही थी वहां गहरे या काले रंग के कपड़ों का प्रयोग अधिक हो रहा था। वैज्ञानिक तथ्य# के इतर उनका विश्वास था कि गहरे या काले कपड़े प्रकाश को रोककर विकिरण से उनकी अधिक रक्षा कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त मध्यम आय-वर्ग की स्त्रियां थीं जो एक तरफ तो कपड़े छोटे करने की फैशन का मोह भी त्याग नहीं पा रही थी तो दूसरी ओर महंगी सन-स्क्रीन को खरीदने की उनकी क्षमता भी नहीं थी। उनकी इस समस्या को बेईमान व्यवसायियों ने खूब भुनाया। उन्होंने अपने घटिया लोशन व क्रीम, विकिरण रोकने के शत-प्रतिशत झूठे दावों पर इस वर्ग को बेचकर खूब लाभ कमाया। 

कुछ छद्म त्वचा रोग विशेषज्ञ भी इस में कूद गए। इन्होंने तरह-तरह के चिकित्सा तंत्रों के उदाहरण देकर लोगों को घर में सनस्क्रीन बनाने के नुस्खे सिखाने शुरू कर दिए। इससे नेट पर उनके अभिदाता ¼सब्सक्राइबर½ तो बढ़े पर इन उपायों को अपनाने वाले लोग सुरक्षा के झूठे भ्रम में पड़कर अपनी त्वचा को गहरा नुकसान पहुंचा रहे थे। 

स्थिति यह बन गई थी कि हर घर में त्वचा के कैंसर का एक-दो रोगी मिलने लगे। इधर गुर्दे के रोग भी बेतहाशा बढ़ रहे थे। हालांकि गुर्दे का प्रत्यारोपण और स्टेम कोशिकाओं से अंग बनाने का कार्य एक व्यवसाय का रूप ले चुका था फिर भी यह आमजन के लिए महंगा था। गुर्दे के बढ़ते रोगों के कारण ये उपाय भी प्रत्यारोपण हेतु गुर्दों की आवश्यकता की पूर्ति भी नहीं कर पा रहे थे। आज भी 21वीं शताब्दी की तरह गुर्दे या अन्य अंगों के प्रत्यारोपण हेतु लंबी प्रतीक्षा सूची होती थी। कुछ रोगी तो अपनी बारी आने से पहले ही काल-कवलित हो जाते थे। कुल मिलाकर स्थिति यह थी कि पृथ्वी पर लोगों का जीना मुहाल था। लेकिन जाएं तो जाएं कहां, यह बहुत बड़ा प्रश्न था। 

वैज्ञानिक लगातार पृथ्वी जैसे रहने योग्य (अर्थलाइक या हैबिटेबल½ ग्रहों की खोज में जुटे थे। यह ग्रह ऐसे थे जो अपने स्थिर तारे से इतनी दूर रहकर उसका चक्कर लगाते थे कि जल इनमें तरल स्थिति में रह सकता था। इन पर जीवन पनपने योग्य परिस्थितियां थी। लोगों को एकदम पृथ्वी जैसा ग्रह तो अब तक नहीं मिल पाया था पर पास की आकाशगंगा अल्फा सेंचुरी और शनि के उपग्रह टाइटन पर ऐसी परिस्थितियां मिली थीं जिनमें जीवन पनप सकता था। पर परिस्थितियां होने से क्या होता है? 

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एक अंतर्राष्ट्रीय अरबपति अंतरिक्ष व्यवसायी की नजर इस पर गई। उसने अपने यानों को वहां भेजना शुरू कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से उसने ग्रह पर नियंत्रिण वातावरण में कुछ लाख लोगों के लिए बस्तियां बसाने की योजना की जब घोषणा की तो लोगों को सहसा भरोसा ही नहीं हुआ। यह बहुत बड़ा कार्य था जिसे किसी विकसित देश द्वारा करने की योजना बनाई जाती तब तो बात कुछ समझ में आती। पर एक प्राइवेट कंपनी ऐसा कर सकती है यह लोगों की समझ से परे था। इतिहास गवाह है कि दूरदृष्टि रखने वाले विजनरियों ने हमेशा से असंभव को संभव कर दिखाया है। न जाने क्यों यह कंपनी अपना कार्य काफी गोपनीय तरीके से कर रही थी। जैसा कि आमतौर पर होता है अफवाहों का बाजार गर्म होने लगा। कयास लगाए जाने लगे। कोई कहता कि कंपनी को उस ग्रह पर कोई विशिष्ट धातु मिल गई है जिसका उपयोग जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स या कृत्रिम अंगों के निर्माण में होगा और इससे उस व्यवसायी के वारे-न्यारे हो जाएंगे। इसलिए कंपनी उत्साहित होकर इसमें पैसा लगा रही है। बस्तियां बसाना तो एक बहाना है। कोई कहता कि वहां पर एक बड़ा पर्यटन स्थल बनाया जा रहा है जहां लोग घूमने या मजे करने जाया करेंगे। खरबपतियों के बच्चों की शादियां और कुछ समारोह भी वहां हुआ करेंगे। जितने मुंह उतनी ही बातें। पर एक दिन कंपनी की प्रवक्ता ने सारी अफवाहों का अंत कर दिया। उसने घोषणा की उन्होंने वहां पर नियंत्रित वातावरण में एक बस्ती बसाई है। उन्होंने ग्रह का नया नामकरण किया, ‘प्लेनेट हेवन’।

प्लेनेट हेवन की घोषणा के साथ ही यह ग्रह सब की चर्चा का विषय बन गया। प्लेनेट हेवन के प्राकृतिक वातावरण की वायु रोगाणु मुक्त थी। उसके डोम की दीवारों से छनकर उतना ही विकिरण वहां के निवासियों तक पहुंचता था जितने की उन्हें आवश्यकता थी। पूरा वातावरण शरीर में उर्जा जगाने वाला था। एजेंसी भी उसे इसी तरह प्रचारित कर रही थी, 

‘पृथ्वी के वातावरण ने जो विषैले तत्व आपके शरीरों में भर दिए हैं उन से मुक्ति पाने को, अपने शरीर को डिटॉक्सिफाई करने को प्लेनेट हेवन पधारें। यहां पर थोड़े समय का प्रवास आपको पूरी तरह से तरोताजा कर देगा। इससे वापस पृथ्वी पर लौट कर आप अतिरिक्त ऊर्जा के साथ अपने कार्यों को कर पाएंगे।’ 

समय गुजरता गया। प्लेनेट हेवन अब उच्च आय-वर्ग के लोगों का पसंदीदा पिकनिक स्पॉट बन चुका था। कोई प्रतिवर्ष तो कोई कुछ वर्षों की आवृत्ति पर यहां पृथ्वी के विषाक्त वातावरण से मुक्ति पाने हेतु, पृथ्वी की समस्याओं से दूर प्लेनेट हेवन के सुरम्य में वातावरण में अस्थाई प्रवेश हेतु जाने लगा। मध्यम आय-वर्ग के लोगों के लिए यह एक आकाश-कुसुम ही बना रहा। अंततः कुछ व्यवसायियों ने इसमें भी अवसर खोज निकाला। कुछ व्यवसायियों ने अपने व्यवसाय में एक निश्चित धनराशि का निवेश करने पर प्लेनेट हेवन के लॉटरी कूपन देने शुरू कर दिए। फिर सारे कूपनों को एकत्रित करके लाटरी आयोजित की जाती थी। किसी एक भाग्यशाली विजेता को प्लेनेट हेवन जाने का मौका मिलता था। इससे एक ओर कुछ लोगों को प्लेनेट के सूक्ष्म प्रवास का मौका तो मिला ही दूसरी ओर ऐसे व्यवसायियों के व्यवसाय ने दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की की। इनसे सीख लेकर कुछ बीमा कंपनियों ने अपने अभिदाताओं से निश्चित धनराशि प्रीमियम के तौर पर लेनी शुरू की। एक निश्चित समयांतराल पर उनके बीच लाटरी डाली जाती थी। जिस भाग्यशाली को मौका मिल जाता वह प्लेनेट हेवन की सूक्ष्म सैर कर आता था। बाकी लोग इसी आशा में प्रीमियम जमा करते रहते थे कि कभी उनकी भी बारी आएगी। यदि बीमे की अवधि समाप्त होने तक उनकी बारी नहीं आती थी तो उन्हें अवधि की समाप्ति पर एक निश्चित धनराशि मिलती थी जिसे वे प्लेनेट हेवन पर जाने के लिए प्रयोग कर सकते थे। इसके लिए प्लेनेट हेवन के शुल्क में छूट का भी प्रावधान था। कुल मिलाकर मध्यम आय वर्ग के लोग सारी जिंदगी प्लेनेट हेवन जाने का सपना पाले रहते थे। निम्न आयवर्ग वाले लोग प्लेनेट हेवन कभी जा तो नहीं पाते थे पर उनके सपनों में, उनकी बातों में, उनकी अदम्य आकांक्षाओं में प्लेनेट हेवन बसता था। 

इसके अतिरिक्त अकूत धन के स्वामी कुछ ऐसे लोग भी थे जो करीब-करीब पूरे तौर पर प्लेनेट हेवन पर बस गए थे। वहीं से वे अपने व्यवसाय का संचालन करते थे। ऐसे लोगों के लिए प्लेनेट हेवन चलाने वाली एजेंसी की प्रीमियम योजनाएं थी। इसके अतिरिक्त धन-कुबेरों का एक और वर्ग भी था। ये वे लोग थे जो बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के मालिक थे। पृथ्वी पर अपना सफल जीवन व्यतीत करने के पश्चात अपने रिटायरमेंट का बाकी समय प्लेनेट हेवन के सुरम्य और स्वस्थ वातावरण में बिताना चाहते थे। इसके लिए अलग से व्यवस्था की गई थी। यही वह स्थान था जिसके बारे में पहले-पहल यह अफवाह उड़ी थी कि प्लेनेट हेवन की एजेंसी प्लेनेट हेवन पर बस्ती बसाना चाहती है। ये सुव्यवस्थित आवासीय संरचनाएं थी जहां का माहौल शांत था, सुखद था और स्वस्थ था। लोग वहां अपनी बची जिंदगी पृथ्वी की भागमभाग से दूर हंसी-खुशी से काटते थे। ये अति विकसित  पर गांव जैसी एक संरचनाएं थीं  जहां जीवनयापन की सारी सुविधाएं थीं। एक ओर जहां जिम, पार्क, और खेलों की सुविधाएं थी तो भोजन के लिए रेस्टोरेंट, माल और एक छोटा सा बाजार भी होता था जहां एजेंसी के द्वारा दिए गए कूपन से यह सुविधाएं प्राप्त की जा सकती थी। इस प्रकार के निवासों में रहने के लिए एजेंसी से एक करार किया जाता था। वहां सारे लोग स्वस्थ रहते थे। बीमारी वहां के निवासियों के लिए अपवाद थी। यह बीसवीं शताब्दी के एक बहुचर्चित ‘रामराज्य कंसेप्ट’ का मूर्तिमान स्वरूप था, जहां ‘दैहिक, दैविक, भौतिक तापा; प्लेनेट हेवन काहु न व्यापा’ चरितार्थ हो रहा थे। इस प्रकार की बस्तियों में रहने वाले लोग एक बहुत बड़ी धनराशि एजेंसी के पास जमा करते थे। पृथ्वी के कुछ वर्षों के समयांतराल पर एक निश्चित धनराशि की किस्त और जमा की जाती थी। पृथ्वी पर इसके लिए बैंक में एक ‘गारंटी-फंड’ जमा करना होता था जिससे किसी आकस्मिक आपदा या बीमारी आदि के खर्चों की पूर्ति की जाती थी। यदि कोई व्यक्ति अपने करार की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ हो जाता था या उसे कोई संक्रामक बीमारी होने का शक होता था तो उसे तुरंत वापस पृथ्वी पर भेजने की व्यवस्था थी। जहां एक निश्चित समय तक उसे ‘क्वारंटीन’ में रहना होता था। मेडिकल जांच के पश्चात ही उसे पृथ्वी के किसी स्थान पर प्रवेश मिलता था।

प्लेनेट हेवन की जितनी प्रसिद्ध थी उसका गुणवत्ता नियंत्रण भी उतना ही कठोर था। उसमें किसी प्रकार की कोई ढ़िलाई नहीं दी जाती थी। किसी व्यक्ति को प्लेनेट हेवन में प्रवेश हेतु पूर्णतया निरोग होना और संक्रमण मुक्त होना आवश्यक था। जो लोग प्लेनेट हेवन में दीर्घ आवास हेतु आवेदन करते थे उनकी पूरी शारीरिक व रक्त जांचों के अतिरिक्त जेनेटिक मैपिंग भी कराई जाती थी ताकि यह पता लग सके कि उन्हें भविष्य में कोई ऐसी बीमारी तो नहीं होने वाली है जिसे बाद में प्लेनेट हेवन का दोष बताया जा सके या जो प्लेनेट हेवन के सुरम्य वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले। इसके अतिरिक्त दीर्घ प्रवास के इच्छुक इन व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक जांच (साइकोलॉजिकल टेस्ट) व व्यक्तित्व संबंधी जांच (पर्सनैलिटी टेस्ट) भी की जाती है। शारीरिक और मानसिक जांचों में पास होने पर ही किसी व्यक्ति को प्लेनेट हेवन में प्रवेश मिलता था। इसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी होने पर आवेदन पत्र का संज्ञान ही नहीं लिया जाता था। एजेंसी के लोग जानते थे कि प्लेनेट हेवन को लोग इतना महत्व उसके वातावरण की शुचिता को लेकर ही दे रहे थे। इसलिए कंपनी इस बिंदु पर कोई समझौता करने के लिए सोचती भी नहीं थी। इस बिंदु पर एजेंसी बहुत प्रभावशाली लोगों के आवेदन भी रद्द कर चुकी थी। इसके लिए एजेंसी ने पृथ्वी पर और प्लेनेट हेवन के बफर एरिया में परीक्षण कक्ष स्थापित किए थे। इन में आवेदनकर्ताओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की गहन जांच के बाद ही विस्तृत विवरण वाले प्रमाण पत्र जारी किए जाते थे। 

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एक  स्पेस एजेंसी के प्रमुख बिनानियो ने अपने व्यवसाय में अथाह पैसा कमाया था। वह दुनिया भर में अपनी राजसी जीवन शैली के लिए विख्यात था। सारी जिंदगी सारे भोग-विलास का उपभोग कर वह अपने जीवन से पूर्णतया तृप्त हो चुका था। उसकी आधिकारिक पत्नी स्वर्ग सिधार चुकी थी। संतानों ने पूरे व्यवसाय को संभाल रखा था। सारे जीवन में उसने इतना धन अर्जित कर लिया था कि वग उसका हिसाब तक याद कर पाने में असमर्थ था। उस समय के धनकुबेरों की तरह वह अब अपने जीवन के बचे वर्ष प्लेनेट हेवन में बिताना चाहता था। कुछ माह पूर्व उसने इसके लिए आवेदन किया था। आज उसे ‘मेडिकल क्लीयरेंस’ मिलनी थी। इसके बाद आगे का कार्य आसान था। धन के लेन-देन का कार्य हो ही चुका था। इसके बाद उसे वहां ले जाने वाली आवश्यक सामानों की किट मुहैया की जानी थी। इसके बाद उसकी एक माह की ट्रेनिंग होगी जिससे वह अंतरिक्ष यात्रा के लिए तैयार हो सके। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उसको अपनी यात्रा की तिथि मिल जाएगी। इसके बाद उसे अपने आप को इस लंबी अंतरिक्ष यात्रा के लिए मानसिक स्तर पर तैयार करना था। वह अब सब से नाता तोड़कर प्लेनेट हेवन में बस जाने वाला था। हालांकि पृथ्वी से उसका डिजिटल संपर्क जीवन पर्यंत रह सकता था। वह अपनी कंपनी के कर्मचारियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सलाह के लिए उपलब्ध रह सकता था। पर एक बार प्लेनेट हेवन में बस जाने वाले लोग अक्सर वहीं जाकर रम जाते थे। वे पृथ्वी से संपर्क कम ही करते थे। मानो उन्होंने पृथ्वी की जिंदगी से संन्यास ले लिया हो। 

उस समय बिनानियो प्लेनेट हेवन के पृथ्वी के ऑफिस (अर्थ आफिस) में एक स्वचालित कुर्सी पर बैठा था। उसकी बारी आने पर यह स्वचालित कुर्सी अपने आप चलकर गंतव्य काउंटर तक पहुंच जाएगी। तब तक वह प्लेनेट हेवन के सपनों में खोया था। 

अचानक उसकी तंद्रा टूटी। उसकी स्वचालित कुर्सी अब खिसकने लगी थी। मेडिकल क्लीयरेंस वाला काउंटर अगली पंक्ति के कोने पर था। पर यह क्या उसकी स्वचालित कुर्सी जब मेडिकल क्लीयरेंस काउंटर के सामने पहुंची तो वहां रुकी नहीं। 

‘अरे अरे, यह क्या? मुझे तो मेडिकल क्लीयरेंस लेनी है.......यह कुर्सी आगे क्यों जा रही है........कोई गलती हुई है।’ उसने तेज स्वर में कहा ताकि मेडिकल क्लीयरेंस काउंटर तक उसकी आवाज पहुंच सके। 

मेडिकल क्लीयरेंस काउंटर के एंड्रॉइड की मशीनी आवाज ब्लू-टूथ से जुड़े उनके हेडफोन में गूंजी, ‘कोई गलती नहीं हुई है श्रीमान, आपको काउंसलर रूम में जाना है।’

‘काउंसलर रूम, ऐसा क्यों?’ उसे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी। उसकी स्वचालित कुर्सी अब काउंसलर रूम में थी। उनके सामने एक युवा काउंसलर था। उसने उसकी नेम प्लेट पढ़ी, डा. जी.जे. हैरिस। 

‘आप मिस्टर बिनानियो, क्या मैं सही हूं?’ काउंसलर ने बिना किसी औपचारिकता के कहा। 

‘,जी आज तो मेरी मेडिकल क्लीयरेंस मिलनी है। बाकी सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं।’ बिनानियो ने कुछ सशंकित स्वर में कहा। 

‘जी।’ 

‘तो फिर मुझे यहां आपके पास क्यों भेजा गया है? मेडिकल क्लीयरेंस रिपोर्ट तो काउंटर नंबर.............’ 

‘क्योंकि उससे पहले मुझे आपसे कुछ बात करनी है।’ 

‘मुझसे बात करनी है, क्या बात करनी है?’ उसका दिल तेजी से किसी बुरे समाचार की आशंका में धड़क रहा था। 

काउंसलर ने बड़े सलीके से अपनी दराज से एक फाइल उठाई। फाइल में लगे पेपर-टैग वाले पाउच को खोला और उस पर एक सरसरी नजर डाली। 

‘मैं आपको मेडिकल क्लीयरेंस नहीं दे सकता।’ काउंसलर ने सपाट स्वर में घोषणा की। 

क........क........क्यों आई एम फाइन।’ 

‘आप सही कहते हैं, पर हमें आपके रक्त की पॉलीमरेज चैन रिएक्शन (पी.सी.आर.) में एक विजातीय (फॉरेन) डी.एन.ए. मिला है, जो शक के दायरे में है।’ 

क्या.........क्या मतलब है इसका?’ 

‘इसका मतलब है कि आपको किसी रोगाणु का संक्रमण हुआ है। पर अभी उस संक्रमण का इनक्यूबेशन काल चल रहा है। इसलिए आपके शरीर में उस संक्रमण के कोई लक्षण प्रकट नहीं हुए हैं।’ 

‘ऐसा.........ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसा नहीं हो सकता है। तैयारी के अंतिम क्षणों में मुझे किसी का कोई संक्रमण न लग जाए इसलिए मैं पिछले एक  माह से मैंने अपने आप को क्वारंटीन कर रखा है। फिर ये कैसे...... कैसे हो सकता है?’ 

‘किसी को संक्रमण सिर्फ साथ रहने वाले मानवों या प्राणियों से ही लगे, यह जरूरी नहीं है। यह तो किसी को निर्जीव पदार्थों से भी लग सकता है जैसे खाना, अखबार या अन्य सामान जिसको पहले किसी संक्रमित प्राणी ने छुआ हो।’

‘इसका मतलब इसका कोई और उपाय नहीं है?’ बिनानी होने ‘उपाय’ शब्द पर विशेष जोर देते हुए कहा। 

‘शायद नहीं।’ 

‘देख लीजिए कोई उपाय हो तो?’ 

‘नहीं।’ 

‘आप मुंह तो खोलिए मैं पूरा कर दूंगा।’ बिनानियो अब खुलकर बात करने के मूड में था। 

‘आप दो सप्ताह इंतजार कर लीजिए। अगर आप की पी.सी.आर. रिपोर्ट नेगेटिव हो गई तो कोई परेशानी ही नहीं होगी।’ 

‘अगर न हुई तो?’ 

‘देन आई एम सॉरी।’ 

‘सोच लीजिए, मैं आपकी जिंदगी बदल दूंगा। आज तक मुझे किसी ने न नहीं कहा है। आप न जाने क्यों..........’ ‘ऐसा नहीं है कि मुझे अच्छी जिंदगी अच्छी नहीं लगती। पर मेरे एक निर्णय पर वहां रहने वाले हजारों लोगों का भरोसा टिका है। हमने उनके स्वास्थ्य की गारंटी ली है।’ 

‘पर मैं क्या बीमार हूं? मैं भी तो...............’ 

‘अगर मुझे वहां अकेले आप को भेजना होता तो मैं यह कर देता। पर वहां पहले से लोग रह रहे हैं। उनकी कुशलता का प्रश्न है।’ 

‘देखो डाक्टर हैरिस, अच्छा तो यह होता कि आप उनकी कुशलता से पहले अपनी कुशलता के बारे में सोचते। आप जितना सोच सकते हैं मैं आपको उससे भी ज्यादा दे सकता हूं। मैं जिंदगी बदल दूंगा आपकी।’ 

‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि बार-बार आप मुझे जिंदगी बदलने की बात कहकर धमकी दे रहे हैं या ऑफर?’ 

‘जो भी आप समझें डा. हैरिस। मैं आपके फोन की प्रतीक्षा करूंगा।’ बिनानियो ने सामने रखी रिपोर्ट उठा ली और जाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया।

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बिनानियो आज फिर एक बार काउंसलर रूम में कुर्सी पर बैठा था। पर उसके सामने आज दूसरा काउंसलर था। पहले वाले काउंसलर डॉ. जी.जे. हैरिस की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उसी के स्थान पर यह नया काउंसलर आया था। पिछली बार पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पी.सी.आर.) में एक विजातीय (फॉरेन) डी.एन.ए. पाए जाने पर बिनानियो को दो सप्ताह तक कुछ औषधियां लेने की सलाह देकर दोबारा पी.सी.आर. जांच कराने की सलाह दी गई थी। यदि यह जांच भी पॉजिटिव आती है तो बिनानियो का प्रार्थना पत्र रद्द कर दिया जाएगा। एक बार किसी कारण से प्रार्थना पत्र रद्द हो जाने पर पांच वर्षों तक दोबारा आवेदन नहीं किया जा सकता था। 

‘आप?’ काउंसलर ने प्रश्नवाचक निगाहें बिनानियो के चेहरे पर टिका दीं। 

‘मैं बिनानियो, आपने नाम तो सुना होगा............स्पेस एजेंसी का.......... में वही उसका सीईओ बिनानियो डी रिवेरा।’ 

‘ओह, आज आपका अपॉइंटमेंट है क्या?’ 

‘नहीं।’

‘तो?’ 

‘मेरा केस अलग है। पिछली बार मेरी पी.सी.आर. रिपोर्ट में एक फॉरेन डी.एन.ए. मिला था। दो हफ्ते बाद मुझे......’ ओह तो वह आप हैं?’ 

‘जी, आज मैंने अपना रिपीट सैंपल दे दिया है।’ 

‘उसकी रिपोर्ट तीन दिन बाद मिलेगी, काउंटर संख्या..............’ 

‘मालूम है।’ 

‘तब फिर आप मेरे पास............?’ 

‘मान लो यह रिपोर्ट पॉजिटिव आई डॉक्टर स्मिथ तो?’ बिनानियो ने काउंसलर के सामने रखी नेम प्लेट पढ़कर कहा। 

‘तो आप प्लेनेट हेवेन नहीं जा पाएंगे, वेरी सिंपल।’ 

‘ऐसा मत कहिए डॉ स्मिथ, कुछ न कुछ उपाय तो आपको करना होगा। मैंने पहले वाले डॉक्टर से भी प्रार्थना की थी पर उन्होंने तो........................ बेचारे कार दुर्घटना में मर गए।’ बिनानियो ने बुरा मुंह बनाया। 

‘तो आप मुझे धमकी दे रहे हैं?’ स्मिथ का स्वर तेज हो गया। 

‘कहां, मैं तो प्रार्थना कर रहा हूं कि आप इस बार रिपोर्ट पॉजिटिव आए तो आपको कुछ उपाय करना होगा। जो आप बोलेंगे उससे कहीं ज्यादा आपको मिलेगा। आपकी जिंदगी बदल जाएगी। पहले वाले तो नासमझ थे.......... भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।’ बिना ने अपने सीने पर क्रॉस बनाया। 

‘आप मुझे लालच दे रहे हैं? धमकी दे रहे हैं? बेईमानी के लिए उकसा रहे हैं?’ स्मिथ जैसे फट पड़ा। 

गनीमत थी कि उसकी तेज आवाज उस वातानुकूलित (एयरकंडीशंड) कमरे से बाहर नहीं पहुंच रही थी नहीं तो वहां लोगों की भीड़ एकत्रित हो जाती।

‘आप बेकार में नाराज हो गए। मैं तो आपके फायदे की बात कर रहा था। अपना नाहक चिल्लाए जा रहे हैं, जबकि आप जानते हैं कि मैं कौन हूं? कोई मुझ पर चिल्लाए यह मुझे पसंद नहीं है।’ बिनानियो ने स्वर को भरसक नरम करने की असमर्थ कोशिश करते हुए कहा। 

‘आई एम सॉरी मैं माफी चाहता हूं। मुझे आपसे तेज स्वर में बात नहीं करनी चाहिए थी। पर आपको भी मुझे उकसाना नहीं चाहिए था। हम कंपनी के ईमानदार अधिकारी हैं। हमारी विश्वसनीयता के बल पर कंपनी यहां तक पहुंची है। हम इसकी इज्जत को बट्टा नहीं लगा सकते इसलिए अब मुझे ऐसे प्रस्ताव मत दीजिए।’ स्मिथ ने स्वर पर पूरा नियंत्रण रखते हुए कहा।


बिनानियो को गुस्सा आ रहा था। आज तक किसी का इतना साहस नहीं हुआ था कि बिनानियो के आगे तेज स्वर में बोले और यह दो टके का काउंसलर उसे उपदेश दे रहा था। उसका मन किया कि बदतमीज की गर्दन मरोड़ दे। कुछ सोचकर वह गुस्सा पी गया। इसकी मौत से क्या होगा? हैरिस की मौत से क्या मिला? उसे अपने जज्बातों पर काबू रखना है। उसने अपनी जेब से अपना कार्ड निकाला। उसे वह हाथ से मेज पर काफी देर तक दबाए रहा फिर उठ कर खड़ा हो गया। बिना एक शब्द बोले मुड़ा और कमरे से बाहर निकलने लगा। 

पीछे से नए काउंसलर के शब्द सुनाई दे रहे थे, ‘मुझे क्षमा करना मिस्टर बिनानियो। मैंने आपसे तेज स्वर में बात की है। मैं अपनी कंपनी से गद्दारी नहीं कर सकता............किसी कीमत पर नहीं।’ 

सामने मेज पर बिनानियो का डिजिटल कार्ड चमक रहा था। 

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रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। बिनानियो की आंखों में नींद नहीं थी। बिनानियो बहुत उद्विग्न था। आज तक उसने जो चाहा, हासिल किया था। अपने चातुर्य और धूर्तता के बल पर उसने अपना व्यवसायिक साम्राज्य खड़ा किया था। ज्यादातर तो उसे जीभ हिलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती थी। लोग उसकी इच्छा जानते ही उसके लिए मनचाही वस्तु हाजिर कर देते थे। जिस पर उसकी नजर टेढ़ी हुई वह उसी समय दुनिया से उठ जाता था। यह पृथ्वी पर उसकी अंतिम इच्छा थी जिसे जीनोम के एक टुकड़े ने मटियामेट कर दिया है। तो क्या उसकी यह इच्छा अधूरी रह जाएगी? प्लेनेट हेवन पहुंचने का उसका सपना क्या सपना ही रह जाएगा? आज तक उसने हर बेईमान-ईमानदार को खरीद लिया है, कभी धन से तो कभी डर से। यहां पर उसकी कोई युक्ति काम क्यों नहीं कर रही है? 

‘अगर इसका दूसरा सैंपल भी पॉजिटिव आया तो?’ बिनानियो सोच रहा था।  

विजियोफोन की घंटी बजी। फोन करने वाले ने अपने फोन पर वीडियो ऑफ कर रखा था। ट्रूकॉलर पर जो नाम चमका उसे पढ़कर बिनानियो हैरान था। यह डा. स्मिथ की कॉल थी। उसे प्लेनेट हेवन के अर्थ ऑफिस में हुआ अपना अपमान याद हो आया। पर उसने उत्सुकतावश फोन उठाया। 

‘कहिए मिस्टर स्मिथ, आप आधी रात को?’ 

‘जी मैं, अभी आप सोए नहीं होंगे? क्या मेरा अनुमान सही है?’ 

‘ज्यादा बातें नहीं। मैं तुम्हारी बातें बहुत सुन चुका हूं। फोन क्यों किया यह बताओ?’ बिनानियो ने रूखे स्वर में कहा। 

‘आपने इतना बड़ा बिजनेस एम्पायर खड़ा किया है। पर आपको क्या कब कैसे और कहां कहना चाहिए यह अभी तक समझ में नहीं आया?’ 

‘तुम मुझे बात करने का तरीका सिखाओगे? खैर बताओ कहना क्या चाहते हो?’ बिनानियो ने तेज स्वर में कहा।

‘कहना क्या है? जहां हर जगह सीसी कैमरे लगे हों, जहां की हर बात टेप की जाती हो, जहां हैरिस की मौत के बाद आपका हर मूवमेंट और शब्द रिकॉर्ड किया जा रहा हो, वहां आप मुझे ऑफर देने लगेंगे तो आपको क्या सुनने को मिलेगा? वही न जो मैंने आपसे कहा था?’ स्मिथ बिना रुके बोलता चला गया, ‘वह तो आपने अक्लमंदी का काम किया कि अपना कार्ड वहां छोड़ आए। नहीं तो जब तक आपका मेरा दोबारा संपर्क होता सारा काम बिगड़ चुका होता।’ 

‘ठीक है, अब बताओ क्या कहना चाहते हो? 

‘काम कठिन है। बाय द वे आप का ऑफर क्या है?’ 

‘मांग कर देखो तुम्हारी मांग से ज्यादा ही होगा।’ बिनानियो ने लापरवाही से कहा। 

फोन अचानक कट गया। हड़बड़ी में बिनानियो ने फिर संपर्क करने की कोशिश की पर स्मिथ का फोन बंद था। बिनानियो को घबराहट होने लगी। 

यह तो बात बनते-बनते बिगड़ने लगी।’ उसने सोचा। 

थोड़ी देर में बिनानियो के फोन पर एक मैसेज आया। यह स्मिथ के उन फोन नंबरों से नहीं था जो उसके जासूसों ने उसे ला कर दिए थे। उसने मैसेज पढ़ा और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आई। 

वह स्मिथ के फोन की प्रतीक्षा कर रहा था। उसे पता था जिसके बाद स्मिथ का फोन जरूर आएगा। 

थोड़ी देर बाद ऐसा ही हुआ। 

‘बड़े मंझे खिलाड़ी लगते हो?’ फोन मिलते ही बिनानियो ने चुटकी ली। 

‘बताओ क्या कहते हो?’ स्मिथ ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न किया। 

‘इस काम के लिए तुम्हारी यह डिमांड बहुत ज्यादा ज्यादा नहीं है?’

’नहीं, बिल्कुल नहीं। वैसे क्या तुम्हें यह काम छोटा लगता है?’ 

‘इतना बड़ा भी नहीं, जितनी बड़ी तुम्हारी डिमांड है।’ 

‘तुम्हारे लिए नहीं होगा, पर मेरे लिए है। इसके बाद तुम्हारी दुनिया ही नहीं बदलेगी, मेरी दुनिया भी बदल जाएगी। इसके बाद न सिर्फ मुझे यह नौकरी छोड़नी होगी वरन् मुझे अपने पहचान के सारे लोगों को छोड़कर किसी अजनबी जगह पर जाना होगा जहां मुझे कोई पहचान न सके।’ 

‘फिर भी?’ बिनानियो ने टोका।

‘ठीक है, फोन रखता हूं।’ 

फोन कट गया। 

बिनानियो भौंचक्का था। इतने से काम के लिए कोई इतनी बड़ी मांग कर सकता है, यह उसने सोचा भी नहीं था। पर उसे यह चाहिए ही है, चाहे जो हो। 

उसने आगे फोन उठाया और आवेग में स्मिथ का नंबर मिला दिया। 

उधर से आवाज आने से पहले ही उसने कहा, ‘ओके डन।’

‘मैं जानता था।’ उधर से स्मिथ की आवाज आई। ‘तो फिर फंड ट्रांसफर का इंतजाम करिए।’

‘मगर काम?’ 

‘बिल्कुल होगा। मैं जानता हूं कि आप अपनी रकम वसूल करने में सक्षम हैं।’

‘बहुत चालाक आदमी हो तुम।’ बिनानियो ने फोन रख दिया। 

बिनानियो और स्मिथ दोनो अपने काम में लग गए। समय कम था। इधर बिनानियो को फंड ट्रांसफर करना था तो उधर स्मिथ को बिनानियो का ब्लड सैंपल अपने रक्त के सैंपल से बदलना था। दोनों के लिए ही यह एक ‘छोटा सा काम’ था। 

पृथ्वी पर सबसे विदा लेकर जब बिनानियो प्लेनेट हेवन के लिए जाने वाली स्पेस शटल में बैठ रहा था तो स्मिथ अपनी नौकरी से त्यागपत्र देकर किसी अनजान जगह पर अपनी नई दुनिया बसा चुका था। 

प्लेनेट हेवन तक की लंबी यात्रा बिनानियो के लिए सुखद नहीं थी। जब भारहीनता की स्थिति में वह सीट पर फीतों से बंधा सोने का उपक्रम कर रहा होता तब भी उसके सपनों में जीनोम का वह टुकड़ा बार-बार आता। उसे लगता इस तरह से तो वह बीमार हो जाएगा। 

जैसे-तैसे उसकी यात्रा समाप्त हुई। अब उसे एक निश्चित अवधि के लिए प्लेनेट हेवन के ‘बफर-जोन’ में रहना था। यहां पर चिकित्सा विशेषज्ञ उसकी बराबर निगरानी करेंगे। 

‘बस यह अवधि गुजर जाए तो फिर वह प्लेनेट हेवन के सुरम्य वातावरण में होगा। पर वह दिन कब आएगा?’ उसने सोचा। 

पर ऐसा होने से पहले ही अचानक परिस्थितियां बदलने लगी। एक जांच में बिनानियो को हल्का बुखार पाया गया। बफर जोन के चिकित्सा विशेषज्ञ सक्रिय हो उठे। बिनानियो भी किसी अज्ञात आशंका से चिंतित होने लगा। 

‘घबराने की कोई बात नहीं। अंतरिक्ष यात्रा में लोगों को अक्सर ऐसा हो जाता है। हम आज से आपकी चिकित्सा प्रारंभ करते हैं। कुछ समय में आप ठीक हो जाएंगे। तब हम आपको प्लेनेट हेवन के लिए क्लीन चिट दे देंगे।’ चिकित्सक ने से ढ़ाढ़स बंधाया। 

‘ऐसा ही हो।’ बिनानियो ने सोचा। 

चिकित्सक ने बिनानियो के रक्त का नमूना लिया। उसे खाने के लिए कुछ गोलियां दे दीं। बिनानियो का दिल अभी भी धड़क रहा था। उसे अर्थ ऑफिस का काउंसलर डॉ हैरिस बहुत याद आ रहा था।

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बिनानियो का क्वॉरेंटाइन पीरियड समाप्त होने वाला था पर उसकी बीमारी तो समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी। बुखार कभी बढ़ जाता था तो कभी उतर जाता था। बिनानियो को अब चिंता होने लगी। क्या प्लेनेट हेवन के इतने पास आकर भी उसकी प्लेनेट हेवन में रहने की यह तमन्ना अधूरी रह जाएगी? पृथ्वी पर तो उसके संपर्क थे, पैसा था, रुतबा था पर यहां तो वह एक आम नागरिक था। यहां का सारा सिस्टम ‘कैशलेस’ था। यहां की अपनी सुविधाएं थी जिनके लिए अलग से कोई भुगतान नहीं करना होता था। इसलिए यहां के निवासियों के पास कोई करेंसी नहीं होती थी। हर व्यक्ति के लिए आवश्यक वस्तु प्लेनेट हेवन में बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराई जाती थी। व्यसनों से संबंधित वस्तुएं यहां उपलब्ध नहीं थीं। यदि कोई किसी व्यक्ति को कोई व्यसन होता था तो पहले पृथ्वी पर ही उसकी चिकित्सा की जाती थी। जब वह व्यसनमुक्त हो जाता था तभी उसे प्लेनेट हेवन के लिए पंजीकृत किया जाता था। वैसे तो प्लेनेट हेवन के निवासियों की हर रूचि, भोजन की पसंद-नापसंद का ध्यान रखा जाता था पर इनका अंतिम निर्णय प्लेनेट हेवन के पोषण विशेषज्ञ (डाइटीशियन) का होता था जो यह तय करता था कि उनकी पसंद की वह वस्तु उनके स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें दी जा सकती है या नहीं? यदि जा सकती है तो कितनी और एक निश्चित समय अवधि में कितनी बार? क्योंकि प्लेनेट हेवन की निवासियों की स्वास्थ्य की जिम्मेदारी वहां के प्रबंधकों की होती थी। 

बिनानियो पर लगभग वज्रपात हुआ जब प्लेनेट की मेडिकल टीम ने आकर बताया कि उसे किसी एलियन वाइरस का संक्रमण हुआ है। इस वाइरस की जीनोम सीक्वेंसिंग किसी ज्ञात वाइरस से नहीं मिलती है। इसलिए इसके लिए उनके पास कोई टीका या औषधि उपलब्ध नहीं है। वैसे तो क्वॉरेंटाइन अवधि में औषधियों के प्रयोग के कारण बिनानियो की हालत बहुत बिगड़ी नहीं थी पर बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा था। 

बिनानियो ने प्रतिवाद भी किया कि वह तो अर्थ ऑफिस से मेडिकल क्लीयरेंस लेकर आया था। इस पर प्लेनेट हेवन के चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना था कि एक तो जिस चिकित्सा अधिकारी ने उसकी मेडिकल जांच की थी वह वहां से नौकरी छोड़ चुका है दूसरे और कहीं से उसका पता भी नहीं लग रहा है। 

‘पर ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तो आपके स्पेसशिप के नियंत्रित वातावरण में आया हूं। अगर मुझे कुछ हुआ है तो यह आपके शिप के वातावरण में गड़बड़ी के कारण हुआ होगा।’ बिनानियो प्लेनेट हेवन के अधिकारियों पर आक्रामक हो रहा था। 

‘यही तो हम सोच रहे हैं। हमने अर्थ ऑफिस को संदेश दिया है। हमें आशा है कि हम इसका पता लगाकर रहेंगे।’ 

यह प्लेनेट हेवन के लिए अति संवेदनशील मामला था। बिनानियो उन्हें विश्व-अदालत में घसीट सकता था। अंततः उन्होंने इसका पता लगा ही लिया। अर्थ स्टेशन ने उन्हें स्मिथ द्वारा जारी की गई बिनानियो की पहली रिपोर्ट भी उपलब्ध करा दी जिसमें बिनानियो के शरीर में एक एबनॉर्मल डीएनए होने की सूचना दी गई थी। 

फिर कड़ियां जुड़ने लगीं। स्मिथ की मृत्यु भी इसमें एक कड़ी थी। अंतरिक्ष यात्रा के दौरान शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने के कारण वह डीएनए (रोगाणु) जो पृथ्वी की परिस्थितियों में निष्क्रिय था, अब अपना असर दिखाने लगा। ऐसी संभावना पृथ्वी पर वैज्ञानिकों ने जताई भी थी इसलिए प्लेनेट हेवन के अधिकारी इस को लेकर बहुत सतर्क रहते थे। 

बिनानियो का षड्यंत्र उजागर हो चुका था प्लेनेट हेवन के अधिकारियों ने बिनानियो को प्लेनेट हेवन में प्रवेश देने से मना कर दिया। अर्थ ऑफिस को समाचार भेज दिया गया। वहां भी यह खबर तेजी से फैली। पृथ्वी पर विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई गई। बिनानियो के रोगाणु की जीनोम सीक्वेंसिंग पृथ्वी पर भी किसी रोगाणु से भी मेल नहीं खाती थी। इसलिए पृथ्वी पर भी इसके लिए कोई टीका या औषधि उपलब्ध नहीं थी। अब खतरा यह था कि यदि बिनानियो का यह रोगाणु पृथ्वी पर आकर किसी तरह से फैल गया तो? विशेषज्ञों के अनुसार बिनानियो को पृथ्वी पर वापस लौटने देना पृथ्वीवासियों के लिए एक आत्मघाती कदम हो सकता था। इसलिए बिनानियो को पृथ्वी पर लौटने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। 

अब आखिर बिनानियो कहां जाए? प्लेनेट हेवन के अधिकारियों ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी। बफर जोन में बिनानियो को लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता था। दूसरे इससे प्लेनेट हेवन के निवासियों और कर्मचारियों की ओर से विरोध के स्वर भी उठ सकते थे। 

प्लेनेट हेवन की लोकप्रियता को देखते हुए इसके स्वामियों ने कुछ और पृथ्वी जैसे ग्रहों पर इस तरह की बस्तियां बसाने की योजनाएं बनाई थीं। इसके लिए कई ग्रहों पर काम चल रहा था। पृथ्वी और प्लेनेट हेवन के विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि बिनानियो को नए विकसित होते किसी ग्रह पर रखा जाए। वहां कार्गो-शिप उसे उसकी जरूरत का सारा सामान उपलब्ध कराते रहेंगे। यदि कभी बिनानियो इस रोगाणु के संक्रमण से मुक्त हो सका तो पृथ्वी के अधिकारी बिनानियो को पृथ्वी पर वापस लौटने की इजाजत दे देंगे। पर कौन जाने वह समय कभी आएगा भी या नहीं?

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**इसी नाम की प्रकाशनाधीन लघु उपन्यासिका का सार संक्षेप।

* त्वचा का कैंसर संक्रामक रोग नहीं है इसलिए इसे महामारी नहीं कहा जा सकता है।

## वे औषधियां जो प्रकाश के पराबैंगनी विकिरण को त्वचा तक पहुंचने से रोकती हैं।

@ सफेद कपड़े विकिरण के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देते हैं।

# गहरे या काले रंग के कपड़े प्रकाश व विकिरण के अधिकांश भाग को अवशोषित कर लेते हैं।  

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विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान

अंतरिक्ष यात्रा के दौरान एक अंतरिक्ष यात्री का कई तरह के अंतरिक्षीय खतरों से का सामना होता है। जहां अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी, सौर विकरण उसके शरीर को प्रभावित करते हैं वहीं पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलते समय और उसमें पुन: प्रवेश के समय, अंतरिक्ष प्रवास में उसके सोने और जागने के चक्र में परिवर्तन के कारण उसके शरीर में स्रवित होने वाले स्ट्रेस हार्मोन यथा कॉर्टिसोल, एड्रिनलिन आदि की मात्रा में वृद्धि हो जाती है जिसके कारण उसकी रोग प्रतिरोध क्षमता कम होने लगती है। एक चिकित्सकीय जर्नल ‘फ्रंटियर्स ऑफ माइक्रोबायोलॉजी’ के 7 फरवरी 2019 के अंक में नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, अमेरिका के वैझानिक सतीश कुमार मेहता और उनके साथियों द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर गुरुत्वाकर्षण में परिवर्तनों के कारण स्ट्रेस हार्मोन के स्रवण में वृद्धि होने से उत्पन्न होने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता की यह कमी अंतरिक्ष  यात्रा से वापस आने के ६० दिनों बाद तक भी जारी रह सकती है। ऐसे में उनके अंदर पहले से विद्यमान, सुसुप्त वाइरस पुनर्जाग्रत (रीएक्टिवेट) हो जाते हैं। लेखकों के इस समूह ने पाया कि अंतरिक्ष यात्रियों की लार और मूत्र के नमूनों में हरपीस सिंपलेक्स, वेरीसेला जोस्टर (चिकेनपॉक्स वाइरस) और साइटोमेगेलो नाम के वायरस की मात्रा बढ़ जाती है। अंतरिक्ष यात्रियों की अंतरिक्ष में प्रवास की अवधि जितनी आधिक होती है उनकी लार और मूत्र के नमूनों में इन वाइरस की मात्रा उतनी ही अधिक होती है। हालांकि अंतरिक्ष यात्रियों में इन वाइरस के दुष्प्रभाव अब तक नहीं देखे गए हैं। पर यदि अंतरिक्ष यात्राएं बहुत लंबी हुई तो कौन जाने कि इन वाइरस के बुरे प्रभाव भी इन अंतरिक्ष यात्रियों में  नजर आने लगें। लेखकों का मानना है कि यदि हम लंबी अंतरिक्ष यात्राओं की योजना बना रहे हैं तो हमें अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान यात्रियों के शरीर में होने वाले प्रतिरक्षा तंत्र के परिवर्तनों पर भी निगाह रखनी होगी।


विज्ञान प्रगति के जनवरी 2022 अंक में प्रकाशित मेरी लघु विज्ञान कथा

लघु विज्ञान कथा..................

दूर देश से आया दूत

डॉ. अरविन्द दुबे


“शिप कमांडर जिनहुई रिपोर्टिंग बैक फ्रॉम अर्थ स्पाई मिशन, सर।” वेगा प्लेनेटरी सिस्टम के प्लेनेट-4 के सुपर कमांडर रुरु के ऑफिस में घुसते ही जिनहुई ने घोषणा की। 

“आइडेंटीफिकेशन विंडो इज एक्टिव, कम इन।” स्क्रीन पर उंगली से कुछ कोड बनाते हुए कमांडर रुरु ने उत्तर दिया।

जिनहुई ने अपनी आंखें आइडेंटीफिकेशन विंडो की तरफ घुमाईं। प्युपिलरी मैचिंग होते ही आइडेंटीफिकेशन विंडो ब्लिंक करने लगी। स्टील के भारी दरवाजे निशब्द खुल गए।


“वेलकम कमांडर जिनहुई।” सुपर कमांडर रुरु ने मुस्कराते हुए ने कहा और उठ कर गर्म जोशी से कमांडर जिनहुई से हाथ मिलाया, “हैव समथिंग कमांडर्र।” रुरु ने पास की केबिनिट की ओर इशारा किया। 

“शुक्रिया, कोई जरूरत नहीं, यह लिजिए मिशन रिपोर्ट।” कमांडर जिनहुई अपनी कलाई पर बंधे एक घड़ीनुमा यंत्र का बटन दबाया और ब्लू टूथ जैसी एक डिवाइस के जरिए  बहुत सारा डाटा  सुपर कमांडर के सामने लगे सुपर कंप्यूटर में ट्रांसफर होने लगा। स्क्रीन पर बहुत सारा डाटा और चित्र एक के बाद एक आने लगे। 


“गुड लगता है इस बार तुम पृथ्वी के काफी पास से गुजरे हो।”  सुपर कमांडर रुरु ने प्रशंसा की नजरों से स्पेस शिप कमांडर जिनहुई की तरफ देखा।

“जी करीब 0.16 एस्टॉनोमिकल यूनिट दूर से।” जिनहुई ने बताया।

“वेलडन कमांडर जिनहुई, ओके जाओ और अपनी छुट्टियों का मजा लो।”

“शुक्रिया।” कमांडर जिनहुई एक झटके से अपनी कुर्सी से उठा, दरवाजे पर थोड़ा ठिठका और बाहर निकल गया।


सुपर कमांडर रुरु काफी देर तक सुपर कंप्यूटर पर डाटा देखता रहा और सीटी बजाता रहा। इस मिशन के परिणामों से वह काफी खुश था। तभी स्क्रीन के एक कोने पर पर एक मैसेज ब्लिंक करने लगी्। रूरू ने मैसेज रिट्रीवल यूनिट ऑन की।  


“एजेंट एक्स फ्रॉम स्पाई अर्थ स्पाई मिशन, ओवर।”  

“कनेक्टेड, बोलो ओवर”

“रिपोर्टिंग फ्रॉम ग्राउंड जीरो, ओवर।” 

“सुन रहा हूं, ओवर।”  

“हमारे मिशन की यहां किसी को भनक तक नहीं है, ओवर।”  

“बोलते रहो, सुन रहा हूं, ओवर।”   

“यहां पृथ्वी पर कोई हमारे स्पेसशिप को पहचान नहीं पाया है, ओवर।”

“अच्छा है, ओवर।”

“यहां पर एक दूसरे से लड़ने वाली और एक दूसरे के विनाश के उपाय करने वाली करने वाली एक प्रजाति रहती है। वह इस ग्रह की सर्वाधिक विकसित प्रजाति है और पूरे ग्रह पर शासन करती है, ओवर।” 

“तकनीकी दृष्टि से वे कैसे हैं, ओवर।”

“तकनीकी दृष्टि से वे हमारे सामने एकदम बौने हैं, ओवर।”  

“गुड, ओवर।” 

“वे मूर्ख हमारे स्पेस शिप को पहचान तक नहीं पाए, ओवर।”  

“सचमुच, ओवर।” 

“हां वे इसे किसी अन्य आकाशगंगा से आया उल्कापिंड मानते हैं, ओवर।” 

“रियली, ओवर।” 

“यस सुपर, वे इसे ओआमुआमुआ के नाम से पुकारते हैं, ओवर।” 

“ओआमुआमुआ, वह क्या, ओवर।”  

“ओआमुआमुआ यानि कि डिस्टेंट मेसेंजर, ओवर।” 

“व्हाट अ जोक, पूअर अर्थलिंग्स, ओवर।”  

“जब कभी हमें अपना ग्रह छोड़कर कहीं और बसने की आवश्यकता होगी तो पृथ्वी इसके लिए एक उपयुक्त ग्रह होगा, ओवर।” 

“यहां तकनीकी दृष्टि से काफी कमजोर, आपस में लड़ने वाली और पर्यावरण की उपेक्षा करने वाली एक प्रजाति पर हम आसानी से काबू कर सकेंगे, ओवर।” 

“गुड न्यूज, ओवर।” 

“यहां हमें रहने की जगह के साथ साथ गुलामों की एक बड़ी आबादी की मिलेगी जो यहां निरंतर तेजी से बढ़ रही है, ओवर।” 

“ठीक है, ओवर।” 

“पर क्या हम उन्हें भोजन की तरह प्रयोग कर सकेंगे, ओवर।” 

“यू हैव ए पोइंट, ओवर।” 

“इसके लिए हमें कुछ और मिशन प्लान करने होंगे, ओवर।” 

“निश्चित रूप से, ओवर।” 


इसके बाद पृथ्वी से संपर्क टूट गया। सुपर कमांडर रुरु ने अपने सुपर कंप्यूटर को डिक्टेट किया “अर्थ स्पाई मिशन में अभी कई प्रयास करने चाहिए। अगले मिशन में पृथ्वी की सर्वाधिक विकसित प्रजाति के कुछ जीवों का अपहरण करके लाने की योजना है ताकि हम यह जान सकें कि इन जीवों को हम भोजन के रूप में प्रयोग कर सकते या नहीं? यदि हम इसमें सफल रहे तो हमारी भोजन की समस्या का एक बहुत बडा हल हमें मिल जाएगा। हमें बहुत बड़ी मात्रा में ताजे मांस एक स्रोत मिल सकेगा। कृत्तिम मांस पर हमारी निर्भरता काफी हद तक समाप्त हो सकेगी। इसके लिए हमें अतिरिक्त संसाधनों कि जरूरत होगी। प्रोजेक्ट रिपोर्ट कुछ दिनों में भेज रहा हूं।“


सुपर कमांडर रुरु ने यह मैसेज वेगा कांफिडेरेशन काउंसिल के प्रमुख को भेज दी और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसे अगले अर्थ स्पाई मिशन के लिए खास तैयारियां करनीं थी क्योंकि इस बार उन्हें पृथ्वी की सर्वाधिक विकसित प्रजाति के कुछ जीवों का अपहरण करके भी लाना था। 

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विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान


100 मीटर लंबा और 100 मीटर चौड़ा और लगभग 1000 मीटर लंबा लगभग बेलनाकार गहरे लाल रंग का एक उल्कापिंड 19 अक्टूबर 2017 को पृथ्वी के बहुत नजदीक से गुजरता हुआ देखा गया देखने वाले वैज्ञानिक रॉबर्ट हैरिक ने इसे नाम दिया “ओआमुआमुआ” जिसका अर्थ होता है “दूर देश से आया दूत” या “डिस्टेंट मेसेंजर”। इस उल्कापिंड की कक्षा और घूर्णन गति ऐसी थी जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह हमारे सौर मंडल से नहीं आया वरन किसी अन्य सौरमंडल से हमारे सौरमंडल में आया और यह वापस हमारे सौर मंडल से कुछ समय बाद निकल गया। इसकी कक्षा पृथ्वी और वीनस की कक्षा को लगभग काटती थी। इसी विचित्र खगोलीय घटना पर आधारित है मेरी यह लघु विज्ञान कथा “दूर देश से आया दूत“।


जब वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाला कोई व्यक्ति पुराणों में वर्णित दधीच की कथा पड़ता है तो वह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि आखिर दधीच को हड्डियों की कौन सी बीमारी हो गई होगी या उनकी हड्डियों में क्या हुआ होगा जिससे उनकी हड्डियां इतनी कठोर हो गईं कि उन्हें उस समय आयुध बनाने के लिए धातुओं से भी ज्यादा कड़ा और उपयुक्त पाया गया। अब तक चिकित्सा विज्ञान में हड्डियों की जितनी भी बीमारियां वर्णित हैं उनमें एक बीमारी "ओस्टियोपेट्रोरोसिस" मैं हड्डियां सघन तो हो जाती हैं पर ऐसी हड्डियां मजबूत नहीं कमजोर हो जाती हैं।

मैंने पुराणों में वर्णित दधीच के प्रकरण को एक अलग नजर से देखा है और इस पर आधारित एक विज्ञान कथा लिखी है जो विज्ञान प्रगति पत्रिका के अक्टूबर 2023 अंक में प्रकाशित हुई है एवं आप  के अवलोकनार्थ यहां प्रस्तुत है।    

दधीचि 

डॉ. अरविन्द दुबे

भारत के एक प्रहरी स्पेस स्टेशन एस.एन. 257 पर ह्यूमन लाइक इंटेलिजेंस वाले कृत्रिम बुद्धि रोबोट तेनुक-1375 व सिरमट-267 बहुत देर से सामने की वर्चुअल स्क्रीन पर नजरें टिकाए बैठे हैं। भारत ही नहीं पृथ्वी के हर देश ने अंतरिक्ष में इस प्रकार के प्रहरी स्पेस स्टेशन स्थापित किए गए हैं जो अंतरिक्ष से न सिर्फ अपने देश की सीमाओं की निगरानी करते हैं वरन आवश्यकता पड़ने से पर इन पर अंतरिक्ष से ही आक्रमण करने की व्यवस्था है। हर देश ने अपने स्पेस स्टेशन पर विकसित हथियार तैनात कर रखे हैं। हालांकि अब इस प्रकार की नौबत ही कम आती है। पहले पृथ्वीवासियों में आपसी झगड़े बहुत होते थे। कभी-कभी सत्ता के विस्तार के लिए, कभी अपनी सत्ता को बचाने के लिए और कभी-कभी राष्ट्र अध्यक्षों के अहम के कारण एक बड़ी आबादी युद्ध की चपेट में आ जाती थी। अब तक पृथ्वी कई बार उजड़ कर बस चुकी है। 

पर अब ऐसा नहीं होता है। पृथ्वी के सारे राष्ट्र अब आपस में एक दूसरे का सहयोग करते हैं।  पृथ्वी के राष्ट्रों के आपसी सहयोग की सबसे बड़ी वजह है पृथ्वी पर लगातार होने वाले पर परग्रहियों के आक्रमण। प्रमाण मिलते हैं कि 22 वीं शताब्दी में पृथ्वीवासियों के मस्तिष्क में यह प्रश्न बराबर कौंधता था कि क्या पूरे ब्रह्मांड में उनके ग्रह पर ही जीवन है? इसका उत्तर जानने के लिए उन्होंने कई तरह के कार्यक्रम बनाकर अंतरिक्ष में कई खोजी यान और सिग्नल भेजे। पहले तो उन्हें इसमें कोई सफलता नहीं मिली पर तेईसवीं शताब्दी के प्रारंभ में उन्हें अपने सिग्नलों के उत्तर मिलने लगे। इनका गहराई से परीक्षण किया गया तो ब्रह्मांड में अन्य जीवित सभ्यता के प्रमाण मिले। पृथ्वी के लोग बहुत उत्साहित थे। तरह-तरह की योजनाएं बनने लगी कैसे उनसे मिलेंगे? कैसे उनसे संपर्क करेंगे? उन्हें लगा कि अन्य ग्रहों से उनके लंबे संबंधों का मार्ग खुलने वाला है। इस कार्यक्रम से जुड़े कुछ लोगों का डर यह भी था कि अगर परग्रहियों ने पृथ्वीवासियों से मित्रवत व्यवहार न किया तो क्या होगा? अगर वे पृथ्वीवासियों से शक्तिशाली और आक्रामक हुए तो क्या होगा पर जोश में अधिकतर लोग इस पर विचार करने को तैयार ही नहीं थे। 

कुछ समय बाद परग्रही सभ्यता के कुछ अंतरिक्ष यान पृथ्वी पर उतरे। पृथ्वीवासियों ने मित्रता और आक्रमण दोनों की तैयारी कर ली थी। पर इन यानों में कोई जीवित प्राणी नहीं था। उनमें कुछ कुछ कैमरे जैसी संरचनाएं रोबोटिक भुजाएं थीं। ये रोबोटिक भुजाएं जहां से चाहतीं अपनी रुचि की चीजें उठाकर यान में बंद कर लेतीं थीं। उन्होंने बहुत से जीवित प्राणियों, पालतू व जंगली पशुओं को उठाकर यान में बंद कर लिया। जाते-जाते जब एक यान की रोबोटिक भुजा ने एक स्त्री, एक पुरुष और एक  बच्चे को उठाकर जब यान में डाला तो पृथ्वी के सारे यान उन पर एक साथ टूट पड़े पर अपने सारे विकसित हथियारों के बावजूद भी वे उन यानों का कुछ भी बिगाड़ न सके। 

पृथ्वी वासियों में डर की लहर फैल गई। निश्चित रूप से परग्रहियों की यान तकनीक बहुत विकसित थी। हो सकता था कि उनकी हथियारों की तकनीक भी इसी तरह काफी विकसित हो। धीरे-धीरे अन्य अन्य प्रकार के परग्रही यान पृथ्वी पर आने लगे। जिनमें कुछ तो आक्रामक हो जाते थे। पृथ्वी के सारे राष्ट्र आपसी मतभैद और वैमनस्य भूल कर एकजुट होने लगे। अब उनकी लड़ाई दूसरे ग्रह से आए परग्रहियों से थी। वे जानते थे कि अगर वे अब भी आपस में लड़ते रहे और एकजुट न हुए तो पृथ्वी पर एक दिन परग्रहियों का कब्जा हो जाएगा। 

इस पैतीसवीं शताब्दी में सुरक्षा, युद्ध, व्यवसाय, शिक्षा, चिकित्सा आदि के तरीके पूरी तरह बदल गए हैं। चिकित्सा विज्ञान में उन्नति के चलते शरीर के सारे अंगों के प्रत्यारोपण और रोबोटिक इंप्लांट उपलब्ध हैं। क्योंकि अंग प्रत्यारोपण बार-बार नहीं किया जा सकता है और यह काफी जोखिम भरा भी हो सकता है। दूसरे इसके शरीर द्वारा नकार देने की अब नगण्य ही सही पर संभावनाएं होती हैं। इसलिए अधिकांश लोग इसके लिए रोबोटिक इंप्लांट का विकल्प ही चुनते हैं। ऐसा नहीं है कि किसी अंग में कोई खराबी आने पर ही लोग उसका रोबोटिक इंप्लांट लगवाते हों। कई बार तो लोग किसी अंग की क्षमता बढ़ाने के लिए सामान्य अंग को निकलवा कर उसको रोबोटिक इंप्लांट से प्रतिस्थापित करवा लेते हैं। पर दो अंगों हृदय और मस्तिष्क के रोबोटिक इंप्लांट कि प्रक्रिया बहुत जटिल होती हैं इसलिए इनका प्रचलन अधिक नहीं है। हृदय के रोबोटिक इंप्लांट का विकल्प लोग तभी चुनते हैं जब उनके हृदय की क्षमता कम होने लगती है या उनको कोई ऐसी आनुवंशिक या जीनीय बीमारी होती है जिसमें आगे चलकर हृदय के क्षतिग्रस्त होने की आशंका होती है। मस्तिष्क का प्रत्यारोपण अन्य अंगों से अलग है। इसमें अंगों के प्रत्यारोपण की तरह पूरे अंग को निकालकर उसका रोबोटिक रूप प्रत्यारोपित नहीं किया जाता है। इसमें आवश्यकता पड़ने पर आंशिक रोबोटिक प्रत्यारोपण किए जाते हैं। मस्तिष्क की जिस क्षमता में खराबी आती है उसी से संबंधित कोई चिप मस्तिष्क में प्रत्यारोपित कर दी जाती है। यदि किसी व्यक्ति के बोलने की क्षमता में दोष आता है तो उसके वाणी क्षेत्र में एक चिप इंप्लांट कर उसका वाणी-दोष सुधार दिया जाता है। यदि किसी बीमारी के कारण किसी व्यक्ति की आंखों की रोशनी चली जाती है या सुनने की क्षमता समाप्त हो जाती है या कोई हाथ पांव लुंज हो जाता है तो मस्तिष्क में उस प्रक्रिया को संचालित करने वाले क्षेत्र में रोबोटिक चिप लगाकर उन क्षमताओं को पुनर्जीवित  किया जाता है। पर मस्तिष्क इंप्लांट एक खतरा भी रहता है। मस्तिष्क की किसी क्षमता किसी चिप द्वारा संचालित करने से मस्तिष्क के उस क्षेत्र की प्राकृतिक क्षमता धीरे-धीरे निष्क्रिय हो जाती है। फिर मस्तिष्क की वह क्षमता उस चिप पर ही निर्भर हो जाती है। अगर ऐसे में चिप में कोई दोष आ जाए तो चिप को बदलना ही पड़ता है। चिप लगवाने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क के उस क्षेत्र की प्राकृतिक क्षमता चिप निकालने के बाद दोबारा प्राप्त नहीं की जा सकती है। इसलिए मस्तिष्क की सामान्य क्षमता वाले लोग मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाने का जोखिम काफी नापतोल कर लेते हैं। फिर भी मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाने के लिए चिप लगवाने वाले लोगों की कमी नहीं है। इसलिए इस प्रकार के चिप के निर्माण का व्यवसाय काफी प्रगति पर है। एक से एक जटिल न्यूरल चिप का निर्माण हो रहा है। वैसे तो इन चिप का प्रयोग कृत्रिम बुद्धि वाले रोबोट से लेकर कई प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, स्पेसशिप और तरह-तरह के मशीनों में हो रहा है। इस क्षेत्र में कार्य करने रहे वैज्ञानिकों को न्यूरल साइंटिस्ट कहा जाता है। 

भारत के न्यूरल साइंटिस्ट दधीचि की गिनती विश्व के एक अग्रणी न्यूरल साइंटिस्ट के रूप में होती है। उनके द्वारा निर्मित विशेष प्रकार के हथियार परग्रहियों से युद्ध में जीत की गारंटी माने जाते हैं। वे काफी समय से देख रहे थे कि जिन यानों में परग्रही आते हैं वे एक विशेष प्रकार की धातु से बने होते हैं जिन पर पृथ्वीवासियों के परंपरागत हथियार असरदार नहीं है। पर यह कौन सी धातु है इसका कोई सुराग पृथ्वीवासियों के पास नहीं था। दधीचि को लगता था कि अगर इन यानों को नष्ट करना है तो उन्हें उस धातु की प्रकृति का पता करना होगा जिससे वे बने हैं। पर वह धातु कहीं उपलब्ध ही नहीं थी। उन्होंने बहुत सोचकर उस धातु को ही परग्रहियों के विरुद्ध हथियार बनाने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने अति तीव्र ऊर्जा वाली एक किरण का आविष्कार किया। यह किरण सीधी रेखा में चलती है। जब यह किसी धातु से टकराती है तो यह उस धातु की निचली कक्षा से इलेक्ट्रॉन निकाल देती है जिससे उस धातु का परमाणु अस्थिर हो जाता है जिससे स्थिर करने के लिए उच्च कक्षा से एक इलेक्ट्रॉन आकर विस्थापित इलेक्ट्रॉन की जगह लेता है। इसके लिए उच्च कक्षा वाले इलेक्ट्रॉन से इतनी ऊर्जा निकल जाती है कि वह निम्न कक्षा वाले इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा के बराबर हो जाए। इसके साथ इस प्रक्रया घातक किरणें भी निकलती हैं। उन्होंने ऐसे किरण उत्पादक यंत्रों को उच्च ऊर्जा वाले लीनियर एक्सीलेटर से जोड़ा। इस संयोजन से निकला किरण-पुंज जब यान की धातु से टकराता है तो अपार ऊर्जा और घातक किरणें उत्पन्न होती है। इससे परग्रहियों के यानो में स्वत: ही आग लग जाती है जिससे उनकी धातु पिघल जाती है और इसके साथ निकली हानिकारक किरणों से परग्रहियों की मृत्यु हो जाती है। दधीचि के इन हथियारों को ‘सुपर थर्मल वेपन’ कहा जाता है। 

इन हथियारों की सफलता के बाद इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन किया गया। अब इन्हें हर देश के स्पेस स्टेशन पर स्थापित किया गया है। कोई राष्ट्र इनका दुरुपयोग न कर सके विश्व भर में स्थापित सारे सुपर थर्मल वेपन का नियंत्रण एक ही संस्था के पास रखा गया है वैज्ञानिक दधीचि इसके प्रमुख हैं।

विश्व के सारे राष्ट्रों के स्पेस स्टेशनों पर तैनात इतने सुपर थर्मल आयुधों को एक साथ नियंत्रित करने के लिए एक अति विकसित कंप्यूटर की आवश्यकता थी जिसके निर्माण की जिम्मेदारी भी दधीचि ने ली। लंबे शोध के बाद उन्होंने मानव डी.एन.ए. व कार्बन नैनोट्यूब को एक साथ मिलाकर एक ऐसी जटिल चिप का निर्माण कर लिया जिससे वे अपने सुपर कंप्यूटर में लगाकर अपने संस्थान के नियंत्रण कक्ष से ही विश्व भर में तैनात इस प्रकार के हथियारों का संचालन कर सकते हैं और परग्रहियों पर भारी पड़ सकते हैं। वे इसका प्रमाण कई बार दे चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में परग्रहियों द्वारा किए गए हमलों में इन हथियारोँ के कारण परग्रहियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है इसलिए उनके हमले अब काफी कम हो गए हैं। पृथ्वीवासियों को कई शताब्दियों बाद चैन की नींद सोने का मौका मिला है। 

पर पृथ्वीवासियों की यह चैन की नींद एक दिन टूट ही गई। कई तरह के परग्रहियों ने अपने विशेष यानों के साथ पृथ्वी पर आक्रमण कर दिया। पृथ्वीवासी डरे तो थे पर उन्हें दधीचि के सुपर थर्मल हथियारों पर पूरा भरोसा था। आनन-फानन में हमले की तैयारी कर ली गई। दधीचि के सुपर थर्मल हथियार परग्रहियों के यानों और आयुधों पर कहर ढा रहे थे। वे उनकी टोली को आगे बढ़ने नहीं दे रहे थे। पृथ्वीवासी आश्वस्त थे कि अंतत: जीत उनकी ही होगी। 

सब कुछ सही और आशा के अनुरूप चल रहा था पर अचानक न जाने क्या हुआ कि दधीचि के सुपर थर्मल हथियारों ने एकाएक काम करना बंद कर दिया। जब कंट्रोल फैसिलिटी से संपर्क किया गया तो पता लगा कि हथियारों के सेंट्रल कंप्यूटर में कोई खराबी आ गई है। ऐसे समय में यह खराबी पृथ्वीवासियों के लिए मृत्यु का आमंत्रण थी। तुरंत दधीचि से संपर्क किया गया। दधीचि ने कंप्यूटर की जांच की और माथा पीट लिया। कंप्यूटर की मुख्य चिप जल गई थी। परग्रहियों के आयुध पृथ्वी पर विनाश का तांडव कर रहे थे। शहर जल रहे थे बस्तियां उजड़ रही थीं। लाखों की संख्या में लोग मर रहे थे। 

कंप्यूटर के फेल होने की खबर पाते ही पृथ्वी के सारे राष्ट्राध्यक्षों और सेनाध्यक्षों में खलबली मच गई। हर किसी के मन में एक ही प्रश्न था “क्या पृथ्वी परग्रहियों के कब्जे में चली जाएगी?” थोड़ी ही देर में भारत सहित कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष दधीचि के संपर्क में थे। 

“हमें तुरंत दूसरी चिप चाहिए। किसी भी तरह इन आयुधों को पुनः चालू करना होगा।आप जितने और जो भी संसाधन कहेंगे हम उपलब्ध करा देंगे।” भारत के राष्ट्राध्यक्ष लगभग गिड़गिड़ा रहे थे। 

“मैं समझता हूं, पर इसको बनाने में कम से कम एक वर्ष का समय लगेगा। यह चिप अन्य रोबोट इंप्लांट से भिन्न है। इसे मानव के डी.एन.ए. और कार्बन नैनोट्यूब्स से मिलाकर बनाया गया है। इसे तुरंत तैयार नहीं किया जा सकता है।” 

“आपको कुछ तो करना होगा, नहीं तो हम परग्रहियों के गुलाम हो जाएंगे। हमारे पास समय नहीं है आपको इसका समाधान अभी जुटाना होगा। हमें यह चिप........” 

“..........मुझे कुछ सोचने सोचने का समय दीजिए।” दधीचि ने बात काटते हुए कहा। 

राष्ट्राध्यक्ष चुप हो गए। 

“ठीक है।” थोड़ी देर बाद दधीचि ने बोलना शुरू किया “ठीक है, आप डॉक्टर वेदब्रह्म को तुरंत खोज कर मेरे पास भेजिए।” उन्होंने एक न्यूरो सर्जन का नाम सुझाया। “तब तक मैं कुछ करता हूं। हां जब तक मैं न कहूं तब तक कोई मेरे कक्ष में नहीं आएगा। अभी आप सब लोग मेरे कक्ष से बाहर चले जाएं।” 

अति विकसित संचार प्रणाली के कारण कुछ ही क्षणों में डॉक्टर वेदब्रह्म का पता लग गया। एक राकेट यान भेजकर उन्हें तुरंत बुला लिया गया और इसकी सूचना दधीचि को दे दी गई। 

“ठीक है, उनसे कहो कि वह प्रयोगशाला परिसर में अपने सहायकों के साथ आ जाएं और किसी आकस्मिक ऑपरेशन के लिए तैयार रहें। मैं अपना कार्य शुरू करता हूं। उनसे कहो कि ठीक 10 मिनट बाद मेरे निजी कक्ष में आ जाएं।” 

न्यूरो सर्जन वेदब्रह्म और भारत के राष्ट्राध्यक्ष वहां सांस रोके खड़े थे। हालांकि दधीचि ने सिर्फ 10 मिनट का समय दिया था पर यह 10 मिनट उन्हें युगों से बड़े लग रहे थे। 10 मिनट का समय बीतते वेदब्रह्म ने दधीचि के कक्ष में प्रवेश किया। उनके साथ भारत के राष्ट्राध्यक्ष और सेनाध्यक्ष भी थे। 

दधीचि भूमि पर निश्चेट लेटे थे। सामने कंप्यूटर पर एक लाल निशान ब्लिंक कर रहा था। न्यूरोसर्जन वेदब्रह्म को कुछ अजीब सा लगा। उन्होने आगे बढ़कर दधीचि को हिलाया। उनके शरीर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उन्होंने उनके सीने से वस्त्र हटा कर देखा। उनकी सांस नहीं चल रही थी। दधीचि अब नहीं थे वह उनका निष्प्राण शरीर था। वेदब्रह्म ने घबराकर कंप्यूटर की ओर देखा। उन्होंने लाल बिंदु पर क्लिक किया। एक पेज खुल कर सामने आ गया। घबराए वेदब्रह्म उसको पढ़ने लगे। 

“जब मैंने सुपर थर्मल आयुध बनाए तो मुझे लगा कि मैंने इन्हें किसी एक राष्ट्र को सौंप दिया तो एक दिन प्रतिकूल परिस्थितियों में वह इनका दुरुपयोग कर सकता है। इसलिए मैंने इनका नियंत्रण अपने पास ही रखने का निर्णय लिया। इतनी अधिक संख्या में तैनात आयुधों को एक जगह से संचालित करने के लिए एक अति जटिल कंप्यूटर चिप की आवश्यकता थी जिसे सामान्यत: उपलब्ध तरीकों से बनाया नहीं जा सकता था। अतः मैंने इसके लिए मानव डी.एन.ए. व कार्बन नैनोट्यूब का प्रयोग कर एक अति विकसित चिप बनाई जो वास्तव में मानव मस्तिष्क का एक कार्यकारी मॉडल था। इसे कंप्यूटर में लगाकर मैंने विश्व भर में तैनात अपने सारे आयोजनों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया तो मेरे मन में विचार आया कि इस चिप को अगर किसी मानव के मस्तिष्क में आरोपित किया जाए तो यह पूरे मानव मस्तिष्क की तरह कार्य करने लगेगी। इसका अर्थ यह था कि मेरा पूरे मानव मस्तिष्क का रोबोट इंप्लांट बनाने का सपना सच हो जाएगा। पर इसे लगवाने के लिए कौन तैयार होगा? अतः मैंने इस प्रयोग को अपने ऊपर ही आजमाने का फैसला किया। मैंने इसके लिए न्यूरोसर्जन वेदब्रह्म को अपना राजदार बनाया। उनके द्वारा मैंने इसको अपने मस्तिष्क में आरोपित करा लिया। 

मेरा प्रयोग सफल रहा। अब यह चिप ही मेरे मस्तिष्क की जगह कार्य कर रही है और इसका कार्य मेरे प्राकृतिक मस्तिक से सैकड़ों गुना तेज और बेहतर है। इसने मेरे पूरे मस्तिष्क का कार्य संभाल लिया है इसलिए मेरा पूरा मस्तिष्क अब निष्क्रिय हो गया होगा। यह चिप इतनी जटिल है कि इस के निर्माण में कई वर्षों का समय लग सकता है। पर हमें पृथ्वी को बचाने के लिए यह चिप अभी चाहिए। इसलिए अब मेरे पास एक ही विकल्प है कि मैं अपने मस्तिष्क में लगी यह चिप निकलवा कर कंट्रोल कंप्यूटर में लगवा दूं। चूंकि इस चिप ने मेरे मस्तिष्क के सारे ऐच्छिक और अनैच्छिक कार्य संभाल लिए हैं इसलिए मेरे मस्तिष्क से इस चिप निकलने का अर्थ है मेरी मृत्यु। पर अब परिस्थितयां  ऐसी बन गईं महैं कि मुझे अपनी पृथ्वी और खुद में से किसी एक का चुनाव करना ही होगा। पृथ्वी को बचना चाहिए दधीचि तो फिर पैदा हो जाएंगे। यही सोच कर मैंने अपनी चिप को निर्देश देकर अपने हृदय और स्वांस गति बंद कर दी है। डाक्टर वेदब्रह्म मेरे मस्तिष्क से यह चिप निकालकर मेरे सुपर कंप्यूटर में लगा कर आप मेरी सुपर थर्मल आयुध प्रणाली को पुनर्जीवित कर पृथ्वी को बचाइए। पृथ्वीवासियों को कहिए कि वे दधीचि की यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें।” 

यह पढ़कर वेदब्रह्म का मस्तिष्क एक क्षण के लिए शून्य हो गया। पर उन्होंने अपने आप को संभाला गर्दन घुमा कर उन्हें दधीचि के निश्चेष्ट शरीर को देखा। उन्होंने अपने सहायकों को अंदर आने को और अन्य लोगों को बाहर जाने को कहा। अब उन्हें एक बड़ा और जटिल ऑपरेशन करना था। सधे कदमों से वह दधीचि के निष्प्राण शरीर की ओर बढ़े और अपने काम में लग गए।

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विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान

यह विज्ञान कथा वेदों में वर्णित मिथकीय पात्र दधीचि के व्यक्तित्व पर आधारित है। मेरा मानना है कि वेदों में वर्णित दधीचि की कथा एक संपूर्ण विज्ञान कथा है पर कुछ विशेषज्ञ उसमें विज्ञान के तत्वों का अभाव देखते हुए उसे ‘आद्य विज्ञान कथा’ मानते हैं। मेरा मानना है किसी विज्ञान कथा में अंतर्निहित विज्ञान को, जिस कालखंड में वह विज्ञान कथा लिखी गई है, उस समय के प्रचलित विज्ञान के मापदंडों पर व्याख्यायित किया जाना चाहिए। दधीचि वाली विज्ञान कथा का संदर्भ लेते हुए आज के वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर इस विज्ञान कथा को लिखने का प्रयास किया गया है। इस विज्ञान कथा में अन्य ग्रहों पर जीवन की तलाश में जिस बाईसवीं शताब्दी के जिस प्रोग्राम की बात की गई है उसे सेटी (SETI) सर्च फॉर एक्सट्राटेरिस्ट्रियल इंटेलिजेंस कहते हैं जिसके अंतर्गत अन्य ग्रहों पर जीवन के संकेत ढ़ूंढ़े जा रहे हैं। परग्रहियों के यानों को नष्ट करने के लिए जिस सिद्धांत का विवरण दिया गया है, वह सिद्धांत एक्स-किरणों के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। एक्स-रे फ्लोरोसेंस एनालाइजर भी इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं। हालांकि इनमें इतनी ऊर्जा तो नहीं उत्पन्न होती है जो किसी यान को पिघला दे और नष्ट कर दे। इतनी ऊर्जा उत्पन्न होना लेखक की कल्पना ही है।

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https://drive.google.com/.../1Ycf0jWuLzQEQ0anciSx.../view...

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