मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

अंतरिक्ष में अफरा-तफरीह


डॉ. अरविन्द दुबे

अंतरिक्ष के घुप अंधेरे में मंगलयान-15 निर्बाध गति से बढ़ा जा रहा था। यह भारत की एक महत्वाकांक्षी परियोजना थी जिसे बाईसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में लांच किया गया था। यह सफर मूलत: इक्कीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रारंभ हुआ था। पहले तो मंगल ग्रह पर प्रोब भेजी गईं, फिर मानव रहित ऑर्बिटर और रोबोटिक यंत्र; जिन्होंने मंगल ग्रह की सतह और उसके बाद वातावरण का अध्ययन किया। उसकी मिट्टी के नमूने पृथ्वी पर लाए गए और यहां उनका परीक्षण किया गया। अनेक पड़ावों को सफलतापूर्वक पार करने के बाद अंततः वह दिन आ ही गया जब प्रथम भारतीय दल मंगल ग्रह पर जा रहा था। सारी घटनाओं के बाद मंगलयान-15 का सफल प्रक्षेपण हुआ। आज पांच भारतीय मानव मंगलयान में तेजी से लाल ग्रह की ओर अग्रसर थे। यान ने मंगल ग्रह की आधी दूरी तय कर ली थी। आगे की यात्रा में अभी कई दिन लगने थे। यान में सब की दिनचर्या नियत थी। भारहीनता की स्थिति में जहां प्रशांत, जोया और रंगनाथन को अपने बिस्तर के फीतों से बंध कर सोना पसंद था वहीं मनु और अल्बर्ट को फीते ढीले कर हवा में टंगे रहकर सोना रास आ रहा था। अल्बर्ट हंस कर कहता था कि इस तरह सोने से तैरते हुए सपने आते हैं। 

भारतीय समय के अनुसार दिन का एक  बज रहा था। यह भोजन का समय होता था। बड़ी पिचकने वाली ट्यूब में भोजन भरा था। जिसे सारे अंतरिक्ष यात्रियों की कलाई से बांधा जाता था। ताकि भारहीनता की स्थिति में यह भोजन की यह ट्यूब छूट कर यान में तैरने न लगे और कोई दुर्घटना न हो जाए। भोजन करने के लिए इस ट्यूब से लगी नली को मुंह में दबाकर ट्यूब को पिचकाना भर होता था। इससे भोजन मुंह में आ जाता था जिसे कोशिश करके निगलना पड़ता था। इस प्रक्रिया में भोजन के मुंह में पहुंचने पर मुंह को बंद रखना पड़ता था ताकि भोजन मुंह से बाहर निकलकर यान में तैरने न लग जाए। 

एक दिन तो मनु ने तमाशा खड़ा कर ही दिया था। भोजन करते समय मनु को छींक आई तो मनु का मुंह खुल गया। भोजन का कुछ भाग मनु के मुंह से निकल कर  तैरता हुआ अलबर्ट के मुंह पर जा चिपका। हड़बड़ाहट में अल्बर्ट ने उसे मुंह से छुड़ाया तो उसका कुछ भाग तैरता हुआ प्रशांत और जोया के मुंह पर जा टकराया। पूरे यान में हड़कंप मच गया। दुर्घटना होते-होते बची।

‘जोया क्या हुआ आज तुम कुछ खा नहीं रही हो? क्या यहां भी डाइटिंग करने का इरादा है?’ मनु ने भोजन करते हुए चुटकी ली। 

‘नहीं आज खाने का मन नहीं है।’ जोया ने उत्तर दिया। 

‘सब ठीक तो है न?’ मनु ने आदतन जोया का हाथ छुआ। 

वैसे तो जोया अपनी कलाई पर बड़ी घड़ी के आकार का बायोफिजिकल रिकॉर्डर पहने थी जो लगातार उसकी स्वांस गति, हृदय गति, शरीर का तापक्रम, त्वचा की चालकता आदि रिकॉर्ड कर रहा था। वह इस रिकॉर्ड को अनवरत रूप से रेडियो तरंगों की सहायता से पृथ्वी पर संप्रेषित भी कर रहा था। पृथ्वी पर बैठे चिकित्सा विशेषज्ञों का एक पैनल इसकी सतत निगरानी कर रहा था। 

‘पेट में दाएं तरफ नीचे हल्का दर्द है।’ जोया ने अनमने स्वर में उत्तर दिया। 

मनु ने अलबर्ट को इसकी सूचना दी। अलबर्ट इस मिशन में बतौर चिकित्सा विशेषज्ञ शामिल किया गया था। उसे यान में रहते हुए और मंगल ग्रह पर जाकर कुछ चिकित्सकीय प्रयोग करने थे। अलबर्ट मूलतः निश्चेतना विशेषज्ञ (एनेस्थेटिस्ट) था। 

मंगल ग्रह की यात्रा बहुत लंबी थी। यदि यात्रा के दौरान किसी अंतरिक्ष यात्री को कोई ऐसा कष्ट हो जाए जिसमें उसे ऑपरेशन की आवश्यकता पड़ जाए तो? ऐसे में तीन विकल्प हो सकते थे। 

एक, मिशन को बीच में रोककर अंतरिक्ष यात्री को पृथ्वी पर वापस लाया जाए। यह व्यवहारिक नहीं था। अरबों रुपए और बरसों की मेहनत के बाद संपन्न किए गए मिशन को बीच में रोकना आर्थिक रूप से बहुत बड़े घाटे का सौदा होता दूसरे इससे वह अंतरिक्ष कार्यक्रम भी काफी पिछड़ जाता। दूसरे अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यान को हवाई जहाज की तरह स्टेरिंग घुमाकर मोड़ा नहीं जा सकता है कि एकदम दिशा बदली और वापस आ गए। 

दूसरा उपाय यह था कि अंतरिक्ष में कुछ दूरी की कक्षाओं में स्पेस स्टेशन स्थापित कर उनमें चिकित्सकों को भेजकर ‘अंतरिक्ष अस्पताल’ बनाए जाते जहां अंतरिक्ष यान को रोककर वहां बीमार अंतरिक्ष यात्री को चिकित्सा के लिए छोड़ा जाता या संभव होता तो चिकित्सा होने के बाद साथ ले जाया जाता। यह उपाय भी व्यवहारिक नहीं था। इससे एक तो मिशन में से एक अंतरिक्ष यात्री कम हो जाता। मिशन में हर अंतरिक्ष यात्री के कुछ उत्तरदायित्व होते हैं। जिसके लिए उसे प्रशिक्षण दिया जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि उसके न होने पर कोई दूसरा अंतरिक्ष यात्री उसकी जगह नहीं ले सकता है, उसके लिए निर्धारित उत्तरदायित्व की पूर्ति नहीं कर सकता है। दूसरे कई कक्षाओं में अस्पतालों का निर्माण करना और उनकी व्यवस्था बनाए रखना भी कम खर्चीला नहीं होता, वह भी कभी कभार हो सकने वाली एक दुर्घटना के लिए। इसके अतिरिक्त जब तक पहले से योजना न बनाई गई हो तब तक अंतरिक्ष में वायुयान की तरह अंतरिक्षयान को एकदम से कहीं भी रोकना और बाद में वहां से बाकी यात्रा पर चले जाना संभव नहीं है। 

तीसरा विकल्प था कि अंतरिक्ष यात्रा में अनिवार्य रूप से एक शल्य चिकित्सक, एक निश्चेतक और एक शल्यक्रिया सहायक भेजा जाए। इसके अतिरिक्त एक फ्लाइट ऑफिसर या पायलट भेजना भी आवश्यक है। तो फिर हो गई गिनती पूरी। किसी और के लिए जगह ही कहां बचती है? इसलिए यह ‘ऑल मेडिकल क्रू’ वाली बात भी व्यवहारिक नहीं थी। शल्य चिकित्सा ऐसा विषय नहीं है जिसे किसी नॉन-मेडीकल व्यक्ति को इतना सिखाया जा सके कि वह स्वतंत्र रूप से शल्य चिकित्सा कर सके, वह भी भारहीनता की स्थिति में। 

सारे पहलुओं पर विचार कर यह निर्णय लिया गया कि यह कार्य कृत्रिम-बुद्धि युक्त रोबोट्स को सौंपा जाए। रोबोट्स को ऑक्सीजन नहीं चाहिए, भोजन सामग्री नहीं चाहिए, उनके मल-मूत्र की भी कोई समस्या नहीं होती है। अतः इस परियोजना पर कार्य किया गया। अंततः ऐसे कृत्रिम बुद्धि युक्त रोबोट्स का निर्माण किया गया जिनकी मेमोरी में हजारों प्रकार की शल्य क्रियाओं डाटा भरा गया। पृथ्वी पर किए गए परीक्षणों में उनसे पेट, अस्थियों, फेफड़ों और मस्तिष्क की शल्य चिकित्सा जैसे कार्य बिना किसी शल्य चिकित्सक (सर्जन) के नियंत्रण के करवाए गए। इस प्रकार के रोबोट को पृथ्वी से ही रेडियो सिग्नल द्वारा नियंत्रित कर शल्य क्रिया भी करवाई जा सकती थी। पृथ्वी से लिंक टूट जाने की स्थिति में यह कृत्रिम बुद्धि वाले रोबोट स्वयं भी बहुत सारे ऑपरेशन बिना किसी बाह्य सहायता के कर सकते थे। निश्चेतना के लिए भी कृत्रिम बुद्धि वाले रोबोट्स उपलब्ध थे। ये क्लोज लूप सर्किट के जरिए निश्चेतक दवाएं दे सकते थे। ट्रेकियल इनट्यूबेशन (सांस की नली या ट्रेकिया में एक पी.वी.सी. की नली डालना, जिसके द्वारा पूर्ण निश्चेतना या जनरल एनेस्थीसिया में कृत्रिम सांस दी जा सकती है) कर सकते थे। ये निश्चेतना के दौरान रोगी को एक इलेक्ट्रोएंसिफैलोग्राम एक इलेक्ट्रोकॉर्डियोग्राम के डाटा के जरिए नियंत्रित करते थे। पर यह ऐसी प्रक्रिया थी कि इसके लिए एक स्टैंडबाई निश्चेतना विशेषज्ञ (एनेस्थेटिस्ट) का होना जरूरी होता था। ऐसी लंबी यात्राओं में अंतरिक्ष यान में एक स्टैंडबाई शल्य चिकित्सा कक्ष (ऑपरेशन थिएटर) अवश्य बनाया जाता था। इसमें एक रोबो सर्जन और एक रोबो एनएसथेटिस्ट इंस्टॉल किया जाता था। ये सामान्य अवस्था में बिना किसी बाह्य सहायता के स्वयं भी शल्य चिकित्सा, निश्चेतना आदि संपन्न कर सकते थे। 

अब तक की लंबी अंतरिक्ष यात्राओं में कभी भी छोटी-मोटी चोट के अलावा किसी बड़ी शल्य चिकित्सा की आवश्यकता ही नहीं पड़ी थी। इसलिए शल्य चिकित्सा की इस रोबो प्रणाली का रियल टाइम परीक्षण कभी नहीं हो सका था। यद्यपि इन रोबो प्रणालियों की मॉक-ड्रिल हर लंबी अंतरिक्ष यात्रा में की जाती थी ताकि निश्चिंत हुआ जा सके कि क्या आवश्यकता पड़ने पर यह रोबोट वास्तविक शल्य क्रिया को सफलतापूर्वक संपन्न कर सकेंगे? 

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जोया ने उस समय अपना भोजन नहीं किया। पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष से उसे कुछ औषधियां खा कर आराम करने की निर्देश दिए गए। जोया तब से लेटी हुई थी। पर दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा था। उसकी तीव्रता हर घंटे बढ़ रही थी। धीरे-धीरे जब दर्द असह्य होने लगा तो उसका वीडियो पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष को बीम किया गया। पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष में उपस्थित चिकित्सा विशेषज्ञों ने निर्देश दिया कि जोया के पेट का एक एक्स-रे और सीटी स्कैन करके तुरंत पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष में बीम किया जाए। 

मिनी कैट स्कैन और एक्स-रे की सुविधा यान में उपलब्ध थी। अलबर्ट ने जोया के सीटी स्कैन के फोटो और एक्स-रे चित्र पृथ्वी पर बीम किए। यान में पैथ-रोबो भी उपलब्ध था। अलबर्ट ने पैथ-रोबो में जोया की उंगली रखी। रोबो ने पीड़ा-रहित विधि से उसके रक्त का एक सूक्ष्म नमूना (मिनी सैंपल) लिया। दो मिनट बाद पैथ-रोबो ने जोया के रक्त की रिपोर्ट वहां डिस्प्ले करने के साथ-साथ पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष में भी बीम की। सारी रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद पृथ्वी के चिकित्सा विशेषज्ञों को स्थिति की गंभीरता का अनुमान हो गया।

सीटी स्कैन के चित्र देखने के बाद पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष में चिकित्सा विशेषज्ञों की डायग्नोसिस बनी कि जोया को ‘टोर्जन ऑफ राइट ओवरी विद लोकल पेरीटोनाइटिस’ हो गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि जोया का दायां अंडाशय अपनी एक्सिस पर घूम गया है जिसके कारण उसके अंडाशय में रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है। वैसे तो अंतरिक्ष यात्रियों को चुनाव के से पहले विस्तृत चिकित्सकीय जांचों से गुजरना होता है पर यह तो एक प्रकार की एब्डोमिनल इमरजेंसी है जिसके बारे में पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। यद्यपि जोया महिलाओं के उस आयु वर्ग में नहीं थी जिनमें यह बीमारी बहुतायत से पाई जाती है। पर यह बीमारी तो किसी आयु वर्ग की महिलाओं में हो सकती है।

स्थिति अब इसलिए और भी गंभीर मानी जा रही थी क्योंकि इस डायग्नोसिस का अर्थ था कि जोया का तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा। एक तो इस प्रकार का ऑपरेशन वैसे भी जटिल होता है फिर उसे भारहीनता की स्थिति में करना एक और बड़ी समस्या थी। शल्यक्रिया के उपकरण अगर हाथ से छूट जाएं तो वह हवा में तो तैर जाएंगे। पर यहां और कोई विकल्प नहीं था। जोया की जान बचाने के लिए यह सब करना जरूरी था। कृत्रिम बुद्धि युक्त सर्जिकल रोबोट के ‘रियल टाइम टेस्ट’ का समय आ गया था। मंगलयान-15 के अंतरिक्ष यात्रियों का दल तनाव में था। 

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यान के शल्य कक्ष को खोलकर कक्ष के दरवाजे का एयर कर्टेन चालू कर दिया गया ताकि वायु शल्य कक्ष और यान के बीच हवा का पर्दा बना ले और यान का कोई भी संक्रमण शल्य कक्ष में प्रवेश न कर सके। एयर कर्टेन के ऊपर बड़े-बड़े सिलेंडरों में वायु भरी थी जो तीव्रगति एक पर्दे की तरह नीचे तक आती थी। नीचे लगे हुए एयर सक्शन इसे खींच पुन: सिलेंडरों में पहुंचा देते थे ताकि इस क्रिया के लिए वायु की कमी न हो। हालांकि थोड़ी-बहुत वायु भारहीनता की स्थिति होने के कारण इधर-उधर फैल भी जाती थी। शल्य कक्ष की अल्ट्रावॉयलेट लाइट ऑन कर दी गई ताकि शल्य कक्ष का सारा वातावरण भी विसंक्रमित हो जाए। पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष से निर्देश मिलने शुरू हो गए थे। जोया को इंट्रावेनस लाइन डाल दी गई थी। निर्देशानुसार उसको एन्टिबायोटिक और पीड़ाहारी औषधियों के इंजेक्शन लगा दिए गए। अलबर्ट अचानक एक बड़ी जिम्मेदारी आ गई थी। हालांकि दल का हर सदस्य अपनी योग्यतानुसार इसमें सहयोग कर रहा था। 

कुछ ही समय में स्टैंडबाई ऑपरेशन थिएटर जीवंत हो उठा। अल्बर्ट ने जोया को दल के अन्य सदस्यों की सहायता से अपने स्थान से उठाकर ऑपरेशन टेबल पर लिटा कर फीतों से बांध दिया ताकि प्रस्तावित रोबोटिक लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लिए बनाई गई शरीर की पोजीशन स्थिर रहे और भारहीनता के कारण कोई विषम परिस्थिति उत्पन्न न हो। अधिक दर्द, रोबोटिक लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लिए बनाई गई शरीर की एक्सट्रीम पोजीशन और भारहीनता की स्थिति के कारण जोया को स्पाइनल निश्चेतक देना काफी कठिन था इसलिए क्लोज लूप सिस्टम से डेसफ्लोरेन जनरल एनेस्थीसिया देने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया। इस तरह से अंतरिक्ष में ऑपरेशन करने का प्रयास पहली बार किया जा रहा था इसलिए पृथ्वी पर बैठे चिकित्सा विशेषज्ञों ने सर्जिकल रोबोट को पृथ्वी से खुद नियंत्रित करने का फैसला लिया। अब यान के सर्जिकल रोबोट को पृथ्वी पर बैठे मानव सर्जन के हाथों की हरकतों को जोया के शरीर में ट्रांसलेट करना था। यह रोबोटिक सर्जरी की ‘मास्टर एंड स्लेव तकनीक’ थी। इस में पृथ्वी पर बैठा मानव सर्जन अपने हाथ जिस प्रकार चलाएगा यहां यान का सर्जिकल रोबोट अपने एंड इफेक्टर्स और मैनीपुलेटर्स को उसी तरह चलाएगा। 

इंट्रावेनस औषधियों के प्रभाव और भीषण दर्द के कारण जोया वैसे ही अर्धचेतना जैसी स्थिति में थी। अल्बर्ट ने जोया के सिर पर इलेक्ट्रोएंसिफैलोग्राम के इलेक्ट्रोड लगाए और रिकॉर्डिंग प्रारंभ कर दी। यह न्यूरोसेंस प्रीमियम बाई स्पेक्ट्रल मॉनिटर था जो जोया के रक्त के ऑक्सीजन स्तर, हृदय गति, स्वांस गति, रक्तचाप जैसे पैरामीटर्स के आधार पर यह गणना कर सकता था कि उसे निश्चेतक की कितनी मात्रा दी जानी है ताकि उसकी उसका बाई स्पेक्ट्रल इंडेक्स सुरक्षित सीमा में  रहे। बाई स्पेक्ट्रल इंडेक्स इसको किसी व्यक्ति की चेतना का स्तर बताता है। 100 के स्कोर का अर्थ होता है कि वह व्यक्ति पूर्ण रूप से चैतन्य है और जीरो स्कोर का मतलब होता है कि उसके मस्तिष्क में कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है यानी कि वह मस्तिष्क मृत है। ऑपरेशन के दौरान इस इंडेक्स को 40 से 60 के बीच रखने का प्रयास करना होता है ताकि वह व्यक्ति निश्चेतना में रहे और सुरक्षित भी।

अलबर्ट ने जोया की इंट्रावेनस लाइन को इंट्रावेनस ड्रग पैनल से जोड़ दिया ताकि आवश्यकता पड़ने पर पैनल से कनेक्टेड भिन्न-भिन्न द्रवों और औषधियों से भरे इन्फ्यूजन पंप दूर से ही निर्देश देकर इंट्रावेनस लाइन से जोड़े जा सकें। अल्बर्ट ने जोया सीने पर कई इलेक्ट्रोड लगाए। बांह में बी.पी. कफ बांधा और इनको मल्टीपैरा मॉनीटर से जोड़ दिया और कई पैरामीटर की निम्नतम और उच्चतम सीमाएं (हाईएस्ट और लोएस्ट परमीसिबल लिमिट) सेट कर दीं। अब मॉनिटर जोया की ह्रदय गति, एंड टाइडल कार्बन डाइऑक्साइड, स्वांस गति, रक्तचाप, त्वचा की चालकता बड़ी स्क्रीन पर दिखा रहा था। अल्बर्ट ने जोया की बांह की एक नस में एक आर्टिरियल लाइन डाल दी जिससे ऑपरेशन के दौरान उसका मीन आर्टिरियल प्रेशर पता चलता रहे। यह सब कुछ पृथ्वी के नियंत्रण कक्ष में बैठे चिकित्सा विशेषज्ञ भी देख रहे थे। सारे मॉनिटर्स को यथास्थान लगाकर उसे रोबो-एनेस्थेटिस्ट से जोड़ दिया गया और उसमें आवश्यक सूचनाएं फीड कर दी गईं। मॉनिटर पर जोया का रक्तचाप 110/70, ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 99 प्रतिशत,  ह्रदय गति ८0 प्रति मिनट नजर आ रही थी। इनसे संतुष्ट होकर अलबर्ट ने आपरेशन के दौरान आवश्यक (रिक्वाइर्ड) सेटिंग फीड कीं। उसने एंड टाइडल कार्बन डाइऑक्साइड 35, स्वांस गति 15, बाई स्पेक्ट्रल इंडेक्स 45, मीनआर्टीरियल प्रेशर 65, न्यूरोमस्कुलर ब्लोकेज २5 प्रतिशत से कम, आपरेशन के दौरान कार्डियक इंडेक्स २. 6 लीटर प्रति मिनट प्रति वर्ग मीटर पर सेट कर दिया। 

अलबर्ट जब इतना करके संतुष्ट हुआ तो उसने जोया के उस पेट के उस हिस्से की सफाई शुरू की जहां ऑपरेशन होना था। यहां उसने एंटीसेप्टिक भीगे स्पंज रोलर की सहायता से पूरे पेट की त्वचा को विसंक्रमित किया। पृथ्वी की तरह भारहीनता की स्थिति में बोतल से स्प्रिट उड़ेल कर रूई के फाहे से पेट की त्वचा को साफ करना संभव नहीं था। इसलिए वहां स्प्रिट भीगे विसंक्रमित रोलरों की व्यवस्था की गई थी। ये रोलर वैसे ही थे जैसे पृथ्वी पर दीवारों की पेंटिंग में प्रयोग किया जाते हैं। उन्हें पेंटिंग की तरह ही जोया के पेट पर चला कर अपने पूरे पेट की त्वचा को विसंक्रमित कर दिया।

इसके बाद उसने जोया और रोबोट दोनों को विशेष प्रकार की विसंक्रमित चादरों, जिन्हें ‘ड्रेप’ कहते हैं, से ढकना शुरू किया। यह ड्रेप जोया की त्वचा पर जाते ही चिपक जाते थे और भारहीनता की स्थिति में तैरने से बच जाते थे। इसी तरह ये रोबोट पर भी चिपक गए। अब जोया और रोबोट दोनों पूरी तरह विसंक्रमित चादरों से ढके थे। जोया के पेट का थोड़ा सा भाग ही खुला था। अलबर्ट ने एक नजर जोया के सारे पैरामीटर पर डाली। सब कुछ सामान्य था। इस पोजीशन में लार की मात्रा को कम करने के लिए अल्बर्ट ने ड्रग पैनल को जोया को ‘ग्लायकोपाइरोलेट’ इंजेक्शन का एक शॉट देने का निर्देश दिया। 

अल्बर्ट ने एनेस्थेटिक रोबोट को सिग्नल दिया और उसने बड़ी कुशलता से जोया को क्लोज लूप सर्किट से निश्चेतना लाने वाली दवाइयां (इंडक्शन ड्रग) दे दीं। निश्चेतना की स्थिति आते ही उसने बड़ी ही सफाई से जोया की सांस की नली (ट्रेकिया) में पी.वी.सी. की बनी एक विशेष एंडोट्रेकियल ट्यूब प्रविष्ट करा दी और इसे एनेस्थेटिक क्लोज-लूप सर्किट से जोड़ दिया। इसमें होकर जोया के फेफड़ों में जनरल एनेस्थेटिक दवा डेसफ्लोरेन, नाइट्रस ऑक्साइड गैस (70 प्रतिशत) और ऑक्सीजन (30 प्रतिशत)  का मिश्रण जोया के फेफड़ों में पहुंचने लगा। 

उसने एक नजर ऑपरेशन टेबिल पर कसी हुई इंस्ट्रूमेंट ट्रॉली पर डाली। ट्रॉली में सारे उपकरण क्लिप में फिक्स किए हुए थे ताकि भारहीनता की स्थिति में वे अपने स्थान से विस्थापित न हो सके और उनसे कोई दुर्घटना न हो जाए। उसने ट्रॉली में फंसी स्टील की एक मोटी और लंबी सुई खींच कर कस कर हाथ में पकड़ ली। उसने पेट की खाल को उठाकर इस सुई को पेट के अंदर प्रवेश करा दिया और इसे कार्बन डाइऑक्साइड के सिलेंडर से जोड़ दिया। सिलेंडर की नॉब को खोलते ही कार्बन डाइऑक्साइड जोया के पेट में भरने लगी और पेट फूलने लगा। चिकित्सकीय भाषा में इसे ‘न्यूमोपेरीटोनियम’ पैदा करना कहा जाता है। इससे पेट के अंदर लेप्रोस्कोपी यंत्र प्रविष्ट कराने हेतु पोर्ट (एक सेन्टीमीटर व्यास की स्टील की खोखली ट्यूब) प्रविष्ट कराने पर उनके ट्रोकार (उनके अंदर फंसी, उनको पूरी तरह भरती हुई एक तरफ नुकीले सिरे वाली छड़) का नुकीला भाग पेट के अंदर जाकर किसी अंग को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। 

उसने ‘स्केलपल’ (धातु एक लंबे हैंडल में फंसा हुआ सर्जिकल ब्लेड) को ट्रॉली से खींचा और उसे कसकर पकड़ लिया। यह स्केलपल एक कॉगुलेशन मशीन से और एक पतली ‘सक्शन टिप’ से जुड़ा था। इसलिए इस से कटते ही खुलने वाली रक्तवाहिकाओं के मुंह कॉगुलेट होकर अपने आप बंद हो जाते हो जाते थे। नहीं तो भारहीनता की स्थिति में उनसे निकलने वाला रक्त पूरे ऑपरेशन थिएटर में तैर कर विषम स्थिति उत्पन्न कर सकता था। यदि इस दौरान रक्त की एक-दो बूंद निकल भी जाती थी तो वह वहीं सक्शन टिप से तुरंत खींच ली जाती थी जो स्केलपल में जुड़ा हुआ था। 

अल्बर्ट ने स्केलपल से जोया के पेट के खुले हुए भाग पर चार छोटे छोटे चीरे लगाए। इनसे कटने वाली रक्तवाहिकाओं के खुले मुंह कॉगुलेट होकर बंद हो गए। चाकू को ट्रॉली में यथास्थान फंसा कर उसने इन कटे हुए स्थानों में करीब एक सेन्टीमीटर व्यास की खोखली ट्यूब, जिसके अंदर उनको पूरी तरह भरती हुई एक तरफ नुकीले सिरे वाली छड़ (ट्रोकार) फंसी थी, प्रविष्ट करा दीं। उनमें से उसने ट्रोकार बाहर निकाल लिया। इससे पेट में लेप्रोस्कोपिक यंत्र पहुंचाने के लिए एक सेंटीमीटर व्यास के चार ‘पोर्ट’ बन गए। तीन पोर्ट के अंदर से उसने सर्जिकल रोबोट की तीन भुजाओं को डॉक कर दिया। चौथे पोर्ट के जरिए  उसने एंडोस्कोप कैमरे को पेट के अंदर पहुंचा दिया। अब सर्जिकल रोबोट शल्यक्रिया करने के लिए पूरी तरह तैयार था। अल्बर्ट ने एक बार फिर जोया के सारे पैरामीटर्स पर नजर डाली, एक सरसरी नजर रोबोटिक एनएसथेटिस्ट के ऊपर डाली। हर चीज  पूर्व योजना के अनुसार कार्य कर रही थी। उसने स्क्रीन के सामने अंगूठा उठाकर ओके का सिग्नल दिया और अपने दोनों हाथों को आपस में मिलाकर शरीर से दूर रखते हुए ऑपरेशन टेबल से कुछ हटकर एक विशेष प्रकार की कुर्सी पर बैठ गया। कुर्सी की चिपकाने वाली प्रक्रिया चालू हो गई। जब वह इस कुर्सी पर से उठना चाहेगा तो उसे कुछ बल प्रयोग करना होगा। ऐसी व्यवस्था भारहीनता की स्थिति में किसी को आपने आप खिसक जाने से बचाने के लिए थी। 

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तीस  मिनट के सिग्नल डिले (जितनी देर से देर में सिग्नल वहां से पृथ्वी पर पहुंच रहा था और पृथ्वी से यहां वापस आ रहा था) के बाद रोबो सर्जन की एक भुजा में हरकत होनी शुरू हुई। उसने इंस्ट्रूमेंट टोली में फंसे एक लेप्रोस्कोपिक यंत्र को उठाया और उसे एक पोर्ट के जरिए पेट के अंदर प्रविष्ट करा दिया। सर्जिकल रोबोट पृथ्वी पर बैठे हुए सर्जन के हाथों की गति के अनुसार तीन पोर्ट के जरिए लेप्रोस्कोपिक यंत्रों को जोया के पेट में प्रवेश कर कार्य करने लगा। पेट के अंदर बहुत सारा गंदा द्रव भरा हुआ था। सर्जिकल रोबोट ने सबसे पहले सक्शन के जरिए उस गंदे पानी को बाहर खींचा। इसके बाद लेप्रोस्कोप के स्प्रे जेट से से नॉरमल सेलाइन का स्प्रे कर पेट के अंदर के सारे अंगों को धोया और इस गंदे पानी को भी सक्शन के जरिए खींच लिया। सक्शन की बोतल खून मिले गंदे पानी से भर गई। अब उसने लेप्रोस्कोपिक क्लिप की सहायता से जोया की ओवरी को पकड़कर उसे ह जिस तरफ से वह ऐंठ गई थी, उसके उल्टी तरफ घुमा कर (अनवाइंड) करके टोर्जन को दूर करने की कोशिश की। अलबर्ट ने भी देखा, ओवरी का रंग काला हो चुका था। इसका अर्थ यह था कि अब इस ओवरी को बचाया नहीं जा सकता था। इसको बाहर निकालना ही एकमात्र उपाय था। दूसरे पोर्ट से सर्जिकल रोबोट का हुक जो एक कटिंग मशीन से जुड़ा था, काम करने लगा। उसने गर्भाशय और अंडाशय के बीच जुड़े ओवेरियन लिगामेंट को इससे जलाते हुए काटकर अलग कर दिया। इसके बाद उसने ओवरी को ब्रोड लिगामेंट (जिसके जरिए अंडाशय अंडवाहिका और गर्भाशय एक दूसरे से जुड़े रहते हैं) से उसी हुक द्वारा अलग कर लिया। जैसे-जैसे सर्जिकल रोबोट का हुक अंडाशय के पास पहुंच रहा था अलबर्ट का मानसिक तनाव कम होता जा रहा था। थोड़ा सा ही काम बचा था। पेरीटोनियम (पेट के अंदर अंगों को ढ़ंकने वाली झिल्ली को छुड़ाते हुए रोबोट की भुजाओं में फंसे लेप्रोस्कोपिक यंत्र जोया के अंडाशय (ओवरी) तक पहुंच रहे थे। 

जोया के पेट के अंदर होने वाला सारा कार्य एक बड़ी स्क्रीन पर यान में भी दिख रहा था और पृथ्वी के कंट्रोल रूम में विशेषज्ञों को भी रियल टाइम में दिख रहा था। मिलीमीटर की शुद्धता तक सर्जिकल रोबोट के हाथ (एंड इफेक्टर और मैनीपुलेटर) जोया के पेट में लेप्रोस्कोपिक यंत्रों को चला रहे थे। अब सर्जिकल रोबोट को ओवरी को पेरीटोनियम की परतों से डिसेक्ट (छुड़ा) कर बाहर निकाल लेना था। अलबर्ट की दृष्टि लगातार जोया के बायोफिजीकल पैरामीटर्स पर थी। क्लोज लूप सिस्टम में एनेस्थेटिक रोबोट डेसफ्लोरेन, नाइट्रस आक्साइड और आक्सीजन के मिश्रण को बाईस्पेक्ट्रल इंडेक्स के हिसाब से नियंत्रित रूप से लगातार पहुंचा था। इसमें पृथ्वी की निश्चेतना की तरह बीच-बीच में बोलस इंजेक्शन (बीच-बीच में इंजेक्शन की कुछ मात्रा देना) का प्रावधान नहीं था।

अलबर्ट अब बहुत ध्यान से उस स्क्रीन पर देख रहा था जिसमें सर्जिकल रोबोट द्वारा जोया के पेट में की जा रही शल्य क्रिया दिखाई पड़ रही थी। अचानक वह चौका उसे लगा कि गति करते सर्जिकल रोबोट के आर्म रुक गए हैं और जोया के पेट में पड़े लेप्रोस्कोपिक इंस्ट्रूमेंट में कोई हरकत नहीं हो रही है। उसने एक नजर पलट कर सर्जिकल रोबोट को देखा। उसका अनुमान सच था। सर्जिकल रोबोट कोई हरकत नहीं कर रहा था। उसने तुरंत स्क्रीन पर लगी इन्वेंट्री खोली और जो देखा उसे देख कर वह भौंचक्का रह गया। सर्जिकल रोबोट का पृथ्वी से संपर्क टूट गया था। पृथ्वी से कोई सिग्नल नहीं आ रहा था। वह इसका मतलब भली प्रकार समझता था। अब सिग्नल को दोबारा जोड़ने में कम से कम 25 या ३0 मिनट का समय लगेगा। तब तक जोया का क्या होगा? उसने सर्जिकल रोबोट को ऑटो मोड पर लाने का प्रयास किया पर उसका यह प्रयास असफल रहा। ऑपरेशन के बीच में सर्जिकल रोबोट ऑटो-मोड पर नहीं आ रहा था क्योंकि उसमें जितने ऑपरेशन के डाटा फीड थे वे ऑपरेशन की शुरुआत से लेकर अंत तक की प्रक्रिया के डाटा थे। इसलिए सर्जिकल रोबोट किसी ऑपरेशन को बीच में ऑटो-मोड में नहीं पकड़ सकता था। स्थिति गंभीर होती जा रही थी। अल्बर्ट ने एक बार फिर पलट कर जोया के बायोफिजिकल पैरामीटर्स की ओर देखा। जोया के पैरामीटर तो अभी ठीक थे। 

अलबर्ट ने शल्य कक्ष की ग्लास विंडो से झांक रहे मनु को इशारे से अंदर बुलाया। हिचकिचाते से मनु लगभग तैरते हुए शल्य कक्ष के अंदर आए। अल्बर्ट ने उन्हें सारी स्थिति समझाई। अल्बर्ट की बातें सुनने के साथ बाद वह भी सदमे में आ गए। अब क्या होगा? क्या जोया का को इसी तरह 30 मिनट तक छोड़ा जा सकता है? यदि नहीं तो दूसरा विकल्प क्या है? उन्होंने प्रश्नवाचक नजरों से अल्बर्ट की ओर देखा, ‘क्या हम कुछ इंतजार कर सकते हैं अलबर्ट?’

‘और कोई विकल्प भी तो नहीं है मनु, हमें इंतजार करना ही पड़ेगा।’ 

‘तो क्या जोया इस हालत में तब तक सस्टेन कर सकती है?’ 

‘टाइम विल टेल (यह तो समय ही बताएगा)।’ 

दोनों कुछ मिनट तक निस्पंद खड़े रहे। तभी अल्बर्ट की दृष्टि जोया की बायोफिजिकल प्रोफाइल दिखाने वाली स्क्रीन पर गई। जोया का ब्लड प्रेशर कम हो रहा था। कुछ और बायोफिजिकल मार्कर भी गड़बड़ाने  लगे थे। अल्बर्ट को चिंतित दृष्टि से स्क्रीन की और देखते हुए मनु को कुछ खटका। 

‘कोई खास बात है अल्बर्ट?’ मनु ने चिंतित स्वर में पूछा। 

‘हां, जोया शॉक में जा रही है। मुझे लगता है कि यदि हम इंतजार करते रहे तो हम जोया को नहीं बचा पाएंगे।’ ‘एनी सजेशन?’ मनु ने चिंतित होते हुए पूछा। 

‘हम दोबारा सिग्नल जुड़ने तक इंतजार नहीं कर सकते। हमें ही कुछ करना होगा वरना हम जोया को नहीं बचा पाएंगे।’ अलबर्ट ने जैसे अल्टीमेटम दिया। 

‘तब फिर करो न, क्या करना है?’ मनु की घबराहट अब स्वर में लक्षित हो रही थी। 

‘तुम चालक दल के मुखिया हो इसलिए तुम्हारी रजामंदी जरूरी है।’ 

‘तुम करना क्या चाहते हो?’ मनु ने पूछा। 

‘मैं जोया का बचा हुआ ऑपरेशन खुद पूरा करना चाहता हूं।’ 

मनु भौंचक्के थे, ‘क्या तुम लेप्रोस्कोपिक सर्जरी कर सकते हो? तुम तो एनेस्थेटिस्ट हो।’ 

‘नहीं मैंने कभी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी तो क्या कोई और सर्जरी भी नहीं की है।’ 

‘तो?’

‘रेजीडेंसी की पीरियड में मैंने अपने सीनियर कंसलटेंट के साथ अनुभव भर के लिए कुछ सर्जरी में असिस्टेंट की तरह काम किया है।’ 

‘क्या! उस अनुभव के बल पर तुम जोया की सर्जरी का बचा हुआ भाग निपटाने चले हो?’ 

‘हां, यह सच है कि मैंने सर्जरी कभी नहीं की है पर एनेस्थेटिस्ट होने के नाते मैंने हजारों शल्यक्रियाएं होते हुए देखी तो हैं और देखना भी एक तरह का सीखना ही है।’

मनु ने कोई उत्तर नहीं दिया। 

‘मनु सवाल यह नहीं है कि मैंने पहले सर्जरी की है या नहीं? सवाल यह है कि हम क्या कर के अपनी जोया की जान बचा सकते हैं? अगर हम इस में सफल हुए तो जोया बच जाएगी।’ 

‘और अगर हम इसमें असफल हुए तो?’

‘तब भी परिस्थितियां वही रहेंगीं। ऐसा करके हमारे पास पाने के लिए बहुत कुछ है और खोने के लिए कुछ भी नहीं है। डू यू एग्री क्या? (तुम मुझसे सहमत हो?) और रादर डू यू अलाउ मी टू गो अहेड? (तुम मझे इज़ाजत देते हो?)

मनु पशोपेश में थे।

अलबर्ट ने मनु के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना कहना शुरू किया, ‘मैं सर्जिकल रोबोट को जोया के ऊपर से हटाता हूं और एक सामान्य सर्जन की तरह उसका पेट खोलकर उसके बचे हुए ऑपरेशन को निपटाने की कोशिश करता हूं। तुम इसमें मेरी मदद करो।’ 

‘मैं! तुम जानते हो तुम जानते हो मेरा डाक्टरी से दूर-दूर का वास्ता नहीं है। मैं एरोनौटिकल इंजीनियर हूं।

’कोई बात नहीं, तुम्हें वहां एनेस्थेटिक रोबोट के पास अपने आप को उससे स्ट्रेप करके खड़े होना है और मैं जैसा कहता जाऊं वैसा करते रहना है।’

मनु ने चुप्पी साध कर जैसे स्वीकृति दी

‘ओके डन, नाउ गेट रेडी और कैबिनेट में रखा स्टेराइल गाउन और डिस्पोजेबल ग्लव्स निकाल कर पहन लो।’ 

अलबर्ट ने एनेस्थेटिक रोबोट को औटो मोड से हटा कर ‘मास्टर एंड स्लेव’ मोड पर किया कयोंकि ब वह बहुत घबराया हुआ था, ‘पता नहीं क्या हो?’ ऐसे में कमांड तो कम से कम उसके हाथ में हो। मनु वहां उसे प्रॉक्सी करने के लिए रहेंगे। 

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थोड़ी देर में अलबर्ट और मनु स्टेराइल गाउन और डिस्पोजेबल ग्लव्स पहने हुए अपनी-अपनी टेबल से अपने को स्ट्रेप किए आमने-सामने खड़े थे। अलबर्ट ने एक नजर जोया की बायोफिजिकल प्रोफाइल दिखाने वाली स्क्रीन पर डाली। बायोफिजिकल पैरामीटर्स में गड़बड़ी लगातार बढ़ रही थी। जोया का ब्लड प्रेशर निरंतर गिर रहा था। 

‘स्क्रीन पर नीचे टैप करो, टैप करो।’ अलबर्ट ने तेज स्वर में कहा।

मनु ने वैसा ही किया। स्क्रीन पर सारे पैरामीटर की अलग-अलग रीडिंग और उसके नीचे उसको घटाने-बढ़ाने के इंडिकेटर दिखाई देने लगे। 

‘उस हाइड्रोकॉर्टीसोन वाली थंबनेल को टच करो, हां वही।’ 

मनु ने वैसा ही किया। हाइड्रोकॉर्टीसोन का एक शॉट माइक्रो इन्फ्यूजन पंप के द्वारा जोया के शरीर में पहुंचा दिया गया। 

‘वह कोलॉइड वाला थंबनेल, उसकी स्पीड को मैक्सिमम पर कर दो। ठीक है, ठीक है।’ संतुष्ट होते हुए अलबर्ट ने कहा, ‘ अपने सीने को छुए बिना उसने हवा में उंगलियां चलाते हुए जैसे सीने पर एक क्रॉस का निशान बनाया और सर्जिकल रोबोट को अनडॉक करके जोया के पेट से सारे पोर्ट निकाल लिए। 

‘नाउ कीप एन आई ओवर दोज पैरामीटर्स ऑन द स्क्रीन (स्क्रीन के पैरामीटर्स पर नजर रखिए)। इनफॉर्म मी एनी चेंज व्हाटसो एवर (यदि उनमें कोई परिवर्तन होता है तो मुझे बताइए)।’ अलबर्ट ने सर्जिकल ट्रॉली में फंसा स्केलपल उठाया और उसे कॉगुलेशन लीड और सक्शन से जोड़ लिया। एक बार फिर ऊपर की ओर देखा। मानो किसी अज्ञात शक्ति का आह्वान कर रहा हो। 

अलबर्ट का चाकू जोया के पेट पर चलने लगा। उसने जोया के पेट की त्वचा पर ट्रांसवर्स इंसीजन (अनुप्रस्थ चीरा) दिया। इसके बाद अंदर की रेक्टस एब्डोमिनिस मांसपेशियां दिखने लगीं। उसने उन्हें काटे बिना ऑपरेशन वाले स्थान से उधर उधर कर सेल्फ रिटेनिंग रिट्रेक्टर में फंसाकर ऑपरेशन के क्षेत्र को क्लियर किया। अब सामने पेट के अंगों को ढकने वाली पेरीटोनियम थी। उसने जोया के मूत्राशय में पड़े कैथेटर की मदद से वास्तविक स्थिति का अनुमान करके मूत्राशय को बचाते हुए पेट के अंगों को ढ़कने वाली झिल्ली (पेरिटोनियम) में एक लोंगीट्यूडिनल इंसीजन (ऊर्ध्वाधर चीरा) लगाया। इसके बाद दोनों हाथों से पेट के उस छेद को खींचकर बड़ा करते हुए उसने अपना हाथ पेट के अंदर डाला और दो छोटे सेल्फ रिटैनिंग रिट्रेक्टर लगाकर पेट के उस छेद को स्थिर कर लिया। अब उसके सामने पूरा पेट खुला हुआ था। उसमें सर्जिकल ट्रॉली से दो क्लैंप उठाए और उन्हें अंडाशय के पेडीकल पर दोनों ओर लगाया और विशेष स्केलपल से पेडिकिल को काट दिया। उसने सर्जिकल स्टेपलर से दोनों तरफ के कटे हुए भागों पर स्टेपल लगा दिए और क्लैंप निकाल लिए। इसके बाद उसने अंड वाहिनी (फैलोपियन ट्यूब) को उसके मुख से करीब ढाई इंच पीछे उसके इस्थमस पर पास पास दो क्लैंप लगाए और स्केलपल से अंड वाहिनी को आर-पार काट दिया। कटे हुए भागों पर उसने सर्जिकल स्टेपल लगाए और क्लैंप को बाहर निकाल लिए। उंगली से ब्लंट डिसेक्शन करते हुए उसने अंडाशय को पूरी पेरीटोनियम से छुड़ा लिया। उसके चेहरे पर संतोष के भाव जागे। जोया का ऑपरेशन करीब-करीब पूर्ण होने की स्थिति में था। उसने जोया के बायोफिजिकल पैरामीटर वाली स्क्रीन को देखा। जोया का ब्लड प्रेशर गिरने लगा था। 

‘मनु बाएं तरफ की तीसरी थंबनेल को टैप करो वही जिस पर वेसोप्रेसर लिखा है, हां वही।’ अलबर्ट ने सधे स्वर में कहा। 

मनु ने वैसा ही किया। थंबनेल को टैप करते ही स्क्रीन पर वेसोप्रेसर के कई ऑप्शन दिखाई देने लगे। 

‘हां वह तीसरे नंबर वाली ऑप्शन पर टैप करो, जिस पर एफीड्रिन सल्फेट लिखा है। 

मनु के ऐसा करते ही एफीड्रिन सल्फेट नामक पदार्थ के इंजेक्शन का एक शॉट माइक्रो इन्फ्यूजन सेट ने जोया की इंट्रावेनस लाइन में पुश कर दिया। अलबर्ट ने थोड़े समय के लिए अपना काम रोक दिया। वह जोया के रक्तचाप के सामान्य होने की प्रतीक्षा कर रहा था।

अलबर्ट टकटकी लगाए जोया के बायोफिजिकल पैरामीटर्स वाली स्क्रीन पर देख रहा था। कुछ मिनट बीते। जोया का रक्तचाप बढ़ने की जगह पर और घटने लगा। अल्बर्ट की समझ में अब कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसे लगता था कि उसने इस काम में हाथ डाल कर गलती की है। जोया का सिस्टोलिक रक्तचाप अब करीब 40 मिलीमीटर ऑफ मरकरी पर था और लगातार नीचे ही जा रहा था। यह आपात स्थिति थी। उसने मनु को चिल्ला कर कहा, वेसोप्रेसर के आखिरी थंबनेल को देखो क्या लिखा है?’ 

‘एड्रीनलिन।’ मनु ने उत्तर दिया। 

‘ठीक है उसे टैप करो।’ अलबर्ट के स्वर में उत्तेजना और घबराहट दोनों थी। 

मनु ने वैसा ही किया। अलबर्ट हवा में ही अपने सीने पर क्रॉस बनाया और अपनी आंखें ऊपर की ओर कर दीं मानो किसी अदृश्य शक्ति से प्रार्थना कर रहा हो। कुछ मिनट और बीते। ये दवा का असर था या उस अदृश्य  शक्ति का जादू कि जोया का रक्तचाप धीरे-धीरे बढ़ने लगा। अब यह 90/70 मिलीमीटर ऑफ मर्करी के आसपास था। अल्बर्ट को लगा अगर वह इस स्थिति में जल्दी से इस काम को समाप्त कर सके तो वह एक बार नियंत्रक की स्थिति में आ जाएगा और इन सारी कठिनाइयों से और आसानी से निपट सकेगा।

 अल्बर्ट ने बड़ी सावधानी से अंडाशय को कसकर हाथ में पकड़े हुए एक विशेष प्रकार के स्टेराइल टिश्यू पेपर जैसे सर्जिकल स्पंज को जोया के अलग किए हुए अंडाशय पर रखा और पूरे मांस के लोथड़े को, जिसमें अंडाशय भी शामिल था इस पेपर में लपेट लिया। क्योंकि पेट से बाहर निकालते समय इस मांस के लोथड़े से कुछ रक्त या द्रव भारहीनता के कारण शल्य कक्ष के वातावरण में निकलकर तैर जाने की संभावना थी। उसने सावधानीपूर्वक इस मास के लोथड़े को एक और टिश्यू पेपर में लपेट कर सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट ट्रॉली पर रखा। ट्रॉली पर रखते ही टिश्यू पेपर में लिपटे अंडाशय को क्लिप में जकड़ लिया गया। अब अलबर्ट ने में सक्शन से पेट के अंदर के सारे रक्त और गंदगी खींच लिया। टिश्यू पेपर जैसे सर्जिकल स्पंज को हर जगह दबा-दबा कर अलबर्ट यह  निश्चित कर रहा था कि जोया के पेट में कहीं से रक्त रिस तो नहीं रहा है। जहां उसे ऐसी संभावना लगती वहां वह कॉटरी के पॉइंट से उस स्थान को छूकर कॉगुलेट कर देता और रक्त रुक जाता। जहां इस से रक्त का रिसना नहीं रुक रहा था वहां कई स्थानों पर अलबर्ट ने स्टेपल लगाकर रक्त को रोक दिया। जब वह निश्चिंत हो गया कहीं से भी जोया के पेट में रक्तस्राव नहीं हो रहा है तो उसने स्केलपल से जोया के पेट की त्वचा में एक छेद बनाया और उसके जरिए एक सामान्य कैथेटर जोया के पेट में डालकर उसे जोया के पेट की दीवार से सर्जिकल स्टेपलर के द्वारा फिक्स कर दिया और दूसरी ओर उसे एक स्टेराइल बैग से जोड़ दिया। जिस से बाद में भी यदि जोया के पेट से कोई द्रव या रक्त बहेगा तो वह इस कैथेटर के जरिए बैग में पहुंच जाएगा और जोया के पेट में कोई गंदगी नहीं बचेगी। अलवर के ह्रदय की धड़कन अब काबू में आ रही थी। ऑपरेशन का मुख्य कार्य समाप्त हो चुका था। अब केवल जोया के पेट को बंद ही करना था। इस भारहीनता की स्थिति में इसके लिए सुई और धागे का प्रयोग नहीं किया जा सकता था। इसके लिए कुछ विशेष प्रकार के सर्जिकल स्टेपल की व्यवस्था थी। परत दर परत स्टेपल लगाते हुए अलबर्ट ने पेट की दीवार को बंद कर दिया। अंत में त्वचा पर कई स्टेपल लगाकर उसके ऊपर एक भी संक्रमित गॉज़, जिसमें कुछ औषधि भी लगी हुई थी, लगाकर जब टेप से उसे अल्बर्ट में जोया के पेट पर चिपकाया तो उसने अंगूठा उठा कर जैसे मनु को सूचना दी, खुश हो जाओ सारा काम समाप्त हो गया है। जोया की जान बच गई है। आल इज़ वेल।’ 

एनेस्थेटिक रोबोट अभी भी जोया के शरीर में अभी भी निश्चेतक डेसफ्लोरेन और ऑक्सीजन का मिश्रण पहुंचा रहा था। अलबर्ट ने अपने आप को ऑपरेशन टेबल से छुड़ाया और लगभग तैरते हुए टेबल के दूसरी तरफ पहुंचकर उसने एनेस्थेटिक रोबोट को एनेस्थीसिया रोकने का निर्देश दिया। चूंकि निश्चेतक दवा विश्व डेसफ्लोरेन फेफड़ों में दवा का प्रवाह बंद करते ही यह धीरे-धीरे शरीर से अपने आप निकल जाती थी। इसलिए इसमें रिवर्सल औषधियों (वे औषधियां जो निश्चेतक दवाओं का प्रभाव समाप्त करने के लिए ऑपरेशन समाप्त होने के बाद रोगी की चेतना लौटाने के लिए के बाद प्रयोग की जाती हैं) की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।

जोया के बायोफिजिकल पैरामीटर्स की स्क्रीन अभी भी खुली थी। धीरे-धीरे उसके सारे पैरामीटर सामान्य हो रहे थे। मनु ने देखा एक बार जोया कराही। उसने अपने हाथ पैर हिलाए। उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से अल्बर्ट की तरफ देखा। 

‘घबराइए नहीं, अब वह होश में आ रही है। धीरे-धीरे वह पूरे होश में आ जाएगी।’ 

कुछ मिनट और बीते अलबर्ट ने धीरे से जोया के दोनों गालों को थपथपाया, जोया जीभ दिखाओ, जीभ दिखाओ जोया, जोया जीभ बाहर निकालो।’ 

तीन चार बार कहने के बाद जोया ने अपनी जीभ बाहर निकाली।

मनु और अल्बर्ट दोनों ने अपने हाथ दुआ के लिए ऊपर उठा दिए। अलबर्ट ने अपने सीने पर क्रॉस बनाया। 

कुछ समय बाद जोया और होश में आई। 

अलबर्ट ने पूछा, ‘कैसी हो जोया जोया?’ 

जोया मुंह से कुछ नहीं बोली। बस उसने अपना मुट्ठी बांधकर अपना एक अंगूठा ऊपर की तरफ उठा दिया। मनु की सारी बेचैनी समाप्त हो गई। अलबर्ट ने आगे बढ़कर जोया के माथे पर चूम लिया। मनु शरारत से मुस्कुराए जैसे कह रहे हों, ‘वाह तुम तो बड़े छुपे रुस्तम निकले।’

लगभग तैरते हुए मनु बाहर गए शल्य कक्ष के बाहर गए और दल के अन्य सदस्यों को जोया की कुशलता की सूचना दी। लोग हर्ष से चिल्लाने लगे। अलबत्ता अल्बर्ट अभी भी जोया के सिरहाने खड़ा था और उसके पूरे होश में आने का इंतजार कर रहा था। इसके लिए उसे बहुत प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। जोया पूरे होश में आई। जोया अब सुरक्षित थी। अलबर्ट ने उसे दर्द से मुक्ति पाने के लिए पीड़ाहारी औषधि (पेनकिलर ड्रग) का इंजेक्शन दिया, एन्टिबॉयोटिक्स के इँजेक्शन भी दिए। उसकी नाक में पड़ी नली (नेजोगैस्ट्रिक ट्यूब) का एक बार सक्शन किया और उसे कलेक्टिंग बैग से जोड़ दिया। उसने नार्मल सेलाइन से भरा एक इन्फ्यूज़न पंप जोया की इंट्रावेनस लाइन से जोड़ दिया और आपरेशन के डिटेल लिखने लगा जो सिग्नल जुड़ने पर उसे पृथ्वी के कंट्रोल रूम के विशेषज्ञों से साझा करने होंगे।      

अब इन लोगों को जोया को यान में ही किसी सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट करना था। अलबर्ट ने फैसला किया जोया को शल्य कक्ष में ही दूसरी टेबल पर रखेगा और पोस्ट ऑपरेटिव पीरियड (आपरेशन के बाद के समय) में सारे लोग पारी बदल-बदल कर जोया की तीमारदारी करेंगे।

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पृथ्वी के मिशन कंट्रोल रूम में एक कंट्रोलर की आवाज गूंजी, वी हैव लॉस्ट सिगनल टू मंगलयान १5, इट्स एन इमरजेंसी (हमारा हमारा यान से संपर्क टूट गया है यह एक आपात स्थिति है)।’ 

यह सूचना अब और कंट्रोलर के पास से भी आने लगी। कंट्रोल रूम में खलबली मच गई। पृथ्वी पर स्थापित अन्य अर्थ स्टेशनों से संपर्क किया गया तो वहां से भी यही एस.ओ.एस (खतरे में दिया जाने वाला समाचार/सिग्नल) मिला कि यान से संपर्क नहीं हो पा रहा है। सारे लोग परेशान होने लगे। 

‘इसका मतलब खराबी कंट्रोल रूम से नहीं यान की तरफ से है।’ मिशन कंट्रोल के प्रमुख चिल्लाए, यान के एंटीना चेक करो।’ 

इंजीनियरिंग टीम यान से संपर्क साधने में जुट गई। 

मिशन कंट्रोल में घबराहट और दुख का माहौल था। सबसे ज्यादा चिंतित चिकित्सा विशेषज्ञों की टीम थी क्योंकि उन्हें पता था किस अंतरिक्ष यान में एक अंतरिक्ष यात्री की जान खतरे में है। उसका ऑपरेशन बीच में रुक गया है। उस को तुरंत सहायता की आवश्यकता है। क्या जब तक सिग्नल मिलेगा तब तक जोया सस्टेन कर सकेगी? जो लोग वैज्ञानिक होने के नाते अपने आप को नास्तिक कहते थे वह भी इस आपात परिस्थिति में उस परमपिता परमेश्वर या किसी अदृश्य के सामने दुआ में हाथ फैलाए थे कि रक्षा करना, ईश्वर रक्षा करना, जोया की रक्षा करना। क्योंकि हम इस समय असहाय है और तेरे ही सहारे हैं। 

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अंतत: वैज्ञानिकों को सफलता मिली 60 मिनट बाद यान से पुन: संपर्क जुड़ा। 

‘हेलो अर्थ स्टेशन हियर, आर यू लिसनिंग मी? (हेलो अर्थ स्टेशन क्या आप मुझे सुन रहे हैं?) ओवर।’ 

मनु ने जब अर्थ स्टेशन की आवाज सुनी तो उन्हें लगा कि जिंदगी की ओर से पैगाम आया है। यान के दल के लोगों के चेहरे खिल गए और वह चिल्लाने लगे।

‘दिस इज़ मंगलयान 5, आई एम लिसनिंग, ओवर।’ 

अब चिकित्सा विशेषज्ञ दल के लोग उस तरफ से ट्रांसमिशन पर थे। 

‘हाउ इज़ जोया?’ एक चिकित्सा विशेषज्ञ का  हड्‍बड़ाया स्वर सुनाई दिया।

‘जोया इस पॉइंट फाइन (जोया ठीक है)। स्लीपिंग कामली, ओवर (शांति से सो रही है)।’

चिकित्सा विशेषज्ञ के दिल की धड़कन काबू में आई।

‘आस्क अलबर्ट कैन वी रीस्टार्ट ऑपरेशन नाउ (अलबर्ट से पूछिए कि हम दोबारा? ओवर।’ नीचे से विशेषज्ञ का चिंता भरा स्वर सुनाई दिया। 

अलबर्ट अब तक ट्रांसमिशन डेस्क तक आ चुका था उसने उत्तर देने की जिम्मेदारी संभाली। 

‘डोंट वरी सर, वी हैव कम्पलीटेड इट (आप फिक्र न करें, हमने उसे पूरा कर लिया है)।’ 

व्हाट, व्हाट हैव यू डन (क्या, तुमने क्या कर लिया है?)?’ चिकित्सा विशेषज्ञ कनफ्यूज थे जैसे कि उन्होने  कुछ गलत सुन लिया हो।

‘वी हैव कम्पलीटेड रिमैनिंग पार्ट ऑफ दी ऑपरेशन सक्सेसफुली (हमने बची शल्य क्रिया को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है)।’ अलबर्ट ने सधे स्वर में उत्तर दिया। 

‘हाउ?’

‘मैनुअली।’

‘ओह माई गॉड।’ चिकित्सा विशेषज्ञ का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया।

‘बट यू आर.......(लेकिन तुम तो........)’

‘मियर एन एनेस्थेटिस्ट (सिर्फ एक एनेस्थेटिस्ट हो)।’ अलबर्ट ने हंसते हुए वाक्य पूरा किया।

‘आई नो डूड, यू आर ए हार्ड नट।’ चिकित्सा विशेषज्ञ भी हंस रहे थे। 

अंतरिक्ष के घुप अंधेरे में मंगलयान-15 निर्बाध गति से बढ़ा जा रहा था।

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विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान

आज वैज्ञानिक इस आशा में पृथ्वी जैसे ग्रहों की खोज कर रहे हैं कि कल कहीं अगर उन्हें दूसरी जगह बसना पड़ा तो उसके लिए इस तरह के ग्रह एक समाधान साबित होंगे। या फिर वे अपने जैसे लोगों की सभ्यता ढूंढ रहे हैं? हम नए-नए ग्रहों की यात्रा के सपने देख रहे हैं। उनको टेराफॉर्म करके उन पर बसने का मन बना रहे हैं। ऐसी अंतरिक्ष यात्राओं में जहां यात्रा का समय सालों में होगा, जहां तक रेडियो सिग्नल पहुंचने तक में 40-50 मिनट लगेंगे, ऐसी जगहों पर जाने पर अगर अंतरिक्ष यात्रियों में कभी कोई शल्य चिकित्सकीय आपात स्थिति उत्पन्न हुई तो उसका निवारण कैसे होगा? यह एक वास्तविक प्रश्न है जिसका उत्तर चिकित्सा विशेषज्ञ, स्पेस एजेंसी और इससे जुड़े अनेक विषयों के विशेषज्ञ ढूंढ रहे हैं। अब तक इसका कोई उचित समाधान नहीं मिला है इसके लिए वैज्ञानिकों ने रोबोटिक सर्जरी का सहारा लेने का मन बनाया है। हां रोबोटिक सर्जरी ने इसमें कुछ आशाएं जगाई हैं। उनका सोचना है कि या तो इन सर्जिकल रोबोट्स को पृथ्वी से रोबोटिक सर्जन द्वारा नियंत्रित किया जाएगा या फिर ये स्वयं ही अपने अपनी मेमोरी में भरे आंकड़ों के आधार पर किसी अंतरिक्ष यात्री की शल्य चिकित्सा कर सकेंगे। मई 2006 में मिलान की सान राफेल यूनिवर्सिटी के विश्वविख्यात हार्ट सर्जन कार्लो पेपोन ने एक ऐसे सर्जिकल रोबोट को प्रोग्राम किया जिसने बिना किसी नियंत्रक सर्जन की मदद के 50 मिनट की लंबी हृदय शल्य चिकित्सा सफलतापूर्वक संपन्न की। इसके लिए डॉक्टर कार्लो पेपोन ने इस सर्जिकल रोबोट की मेमोरी में इस तरह के करीब दस हजार ऑपरेशन के आंकड़े भरे थे। ऑपरेशन की सफल समाप्ति पर डॉक्टर कार्लो पेपोन ने कहा कि आने वाले समय में इस तरह की रोबोटिक सर्जरी को अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान प्रयोग किया जा सकेगा जिससे इस प्रकार की अंतरिक्ष यात्राओं में आने वाली शल्य चिकित्सा आपात स्थितियों से आसानी से निपटा जा सकेगा। पर क्या यह पद्यति एक पूर्णतया सफल और भूल रहित पद्यति साबित होगी? प्रस्तुत विज्ञान कथा इसी विषय को ध्यान में रखकर लिखी गई है। 


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