शनिवार, 3 नवंबर 2018

स्पेस युग की एक विरह कथा

अरविन्द दुबे
"प्रोक्सिमा बी के राजकुमार का रोयल स्पेस शिप स्पेस पोर्ट पर उतर गया है", यह खबर सुनते ही वेरोनिका के सपनों को मानो पंख लग गए।
"तो राजकुमार ने स्पेस मेल पर किया अपना वादा निभाया, मैं तो सोच रही थी कि राजकुमार मेरा मन रखने के लिए कह रहे थे। इसका मतलब राजकुमार के दिल में मेरे लिए कुछ है वरना वे चार से ज्यादा प्रकाश वर्षों की दूरी तय कर के यहॉ तक क्यों आते", वेरोनिका सोच रही थी।
अपनी इस पहली आमने-सामने की मुलाकात के लिए वह बड़े मनोयोग से तैयार हो रही थी पर डर रही थी कि पता नहीं राजकुमार को उसकी ये साज-संवार, ये मेक-अप पसंद भी आएगा कि नहीं, उनके में ग्रह में न जाने कैसे परिधान पसंद किए जाते होंगे? राजकुमार को तो वह उतना ही जानती है जितना उसने उन्हें वर्चुअल इमेज डिस्पले पर देखा है।
स्पेस पोर्ट पर जा कर वेरोनिका को पता चला कि राजकुमार को क्वेरेन्टटाइन हाउस में रखा गया है।
"आपको पता है वे प्रोक्सिमा सेंचुरी आकाश गंगा के हमारे पृथ्वी जैसे ही एक ग्रह के यूनीवरसल यूनीवर्सल रिपब्लिक के क्राऊन प्रिंस हैं?"
"हम जानते हैं। राजकुमार दूसरी गेलेक्सी के निवासी हैं इसलिए उनके प्लेनेट का माइक्रोबियल मैप हमारे पास नहीं है इसलिए पहले हम राजकुमार के शरीर और शिप के माइक्रोबियल फ्लोरा को प्रयोगशाला में कल्चर किया जाएगा फिर उनके लिए उपयुक्त एंटीबायोटिक परख कर उन्हें और उनके शिप को स्टरलाइज किया जाएगा तब तक राजकुमार क्वेरेंटाइन हाउस में ही रहेंगे", स्पेस पोर्ट का अधेड कर्मचारी वेरोनिका को समझा रहा था।
वेरोनिका के उत्साह पर एकदम जैसे पानी पड़ गया भारी कदमों से वह वापस लौट आई
एक सप्ताह बीत गया पर वेरोनिका को स्पेस पोर्ट से कोई समाचार नहीं मिला तो वेरोनिका एक बार फिर स्पेस पोर्ट के आफिस पहुंच गई।
"सारी मिस वेरोनिका, हमने प्रिंस के शरीर और शिप से जो माइक्रोफ्लोरा कल्चर किया है उसको नष्ट करने के लिए हमारे पास कोई एंटीबाइटिक उपलब्ध नहीं है।"
"तो फिर?"
"हमें अफसोस है कि इन परिस्थितियों में हम प्रिंस को अपने ग्रह में प्रवेश की इजाज़त नहीं दे सकते हैं।"
" क्या", वेरोनिका चीखी, "आप लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं? वे प्रोक्सिमा बी ग्रह के यूनीवर्सल रिपब्लिक के क्राउन प्रिंस हैं प्रोक्सिमा बी बिलकुल हमारी प्रथ्वी जैसा ग्रह है, प्रोक्सिमा सेंचुरी आकाशगंगा का जीवन से भरपूर एक ग्रह। हाऊ ड़ेयर यू .....तुम एक क्राउन प्रिंस का स्वागत करने की जगह उनकी एंट्री बेन कर रहे हो....यू नो रोयल प्रोटोकाल......"
"शांत हो जाईए मिस, हम सब जानते हैं, सारा रॉयल प्रोटोकाल समझते हैं पर हमारे लिए अपनी पृथ्वी की सुरक्षा सर्वोपरि है हम किसी भी हालत में प्रिंस को अपने ग्रह में प्रवेश की आग्या नहीं दे सकते हैं उन्हें वापस जाना ही होगा।
" अंकल प्लीज, कुछ तो करिए ये हमारी मोहब्बत का सवाल है, मैं आपकी बेटी के समान हूँ", वेरोनिका ने हथियार डाल दिये थे और वह गिडगिडाने लगी थी।
"बेटे अगर आपकी जगह पर मेरी अपनी बेटी भी होती तब भी मुझे यही करना पड़ता क्योंकि हमारे लिए पृथ्वी की रक्षा से बढ़ कर कुछ नहीं है।
"अंकल"
"हमने प्रिंस का माइक्रोफ्लोरा सुरक्षित रख लिया है हम कोशिश करेंगे कि हम उसके लिए एंटीबाइटिक विकसित कर सकें। जैसे ही हम अपनी कोशिश में सफल होंगे, हम आपको सूचित कर देंगे।
वेरोनिका जान गई थी कि अब प्रिंस से मिलना संभव नहीं है।
आंखों में आंसू भरे वेरोनिका स्पेस पोर्ट से बाहर निकल रही थी। दूर आकाश में प्रिंस का स्पेस शिप धीरे-धीरे आंखों से ओझल हो रहा था।

बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

हीरों वाली चिड़िया

                 डा अरविन्द दुबे
आइसुर स्पेस एजेंसी के प्रमुख का फ़ोन रात के तीन बजे बजा तो वे चौंके। दूसरी तरफ़ से उनके चिरपरिचित प्रतिद्वंदी देश एसीरेमा की स्पेस एजेंसी में प्लांट किया गया उनका भेदिया बोल रहा था।
“कहो ट्रिपल वन”, उन्होनें भेदिए को उसके कूट नाम से संबोधित किया।
“आसमानी चिड़िया की खबर है”
“उगलो”
“चिड़िया तो हीरों की बनी है। जो उसे पकड़ पाएगा वही सिकंदर बनेगा।“
“अच्छा”
“उनके बहेलिए तो जाल लेकर चिड़िया को पकड़ने निकलने ही वाले हैं। चिठ्ठी आपके लेटर बाक्स में डाल दी है, तुरंत पढ़िए।

प्रमुख ने फ़ोन पटका और दूसरे कमरे में छिपा कर रखे गए फ़ेक्स पर आई रिपोर्ट पढ़ने लगे जिसे उस भेदिए ने अभी-अभी भेजा था। एसीरेमा  स्पेस एजेंसी के वैज्ञानिकों बड़े ही गोपनीय तरिके से एक बड़े धात्विक एस्टीरोइड बी सी-1784 पर एक मानव रहित स्पेस प्रोब भेजी थी, जो हाल में ही उस एस्टीरोइड का नमूना लेकर लौटी थी जिसका उनकी लैब में परीक्षण किया जा रहा था। बिना मेहनत किए ही इस मिशन और उस एस्टीरोइड की संरचना की गोपनीय जानकारी प्राप्त करने के लिए उन्होंने आइसुर के एक जासूस “ट्रिपल वन” को एसीरेमा  स्पेस एजेंसी में प्लांट किया  था।

रिपोर्ट पढ़ते ही प्रमुख की नींद उड़ गई। सेम्पल एनालाइसिस में उस एस्टीरोइड पर एक ऐसी धातु का पता लगा था जिसका आपेक्षिक घनत्व मात्र पोइंट दो थ यानि एक दम हल्की, गलनांक सत्तर हजार डिग्री सेंटीग्रेड, क्वथनांक और भी ज्यादा और कठोरता अब तक ज्ञात सारी धातुओं से एक हज़ाज गुना ज्यादा।
“कितने काम की होगी ये धातु? इससे अंतरिक्ष यानों पर थर्मल टाइल्स नहीं लगानीं पड़ेंगीं, इससे मिसाईल स्पेस प्रोब न जाने क्या-क्या बनाया जा सकेगा। ट्रिपल वन ठीक कहता था, जो इसको पायेगा वही अंतर्राष्ट्रीय डाँन होगा, अजेय और अभेद्य होगा”, वह सोच रहे थे।

अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार जिस एस्टीरोइड पर जिस देश के अंतरिक्ष यान पहले पहुंच कर उसे अपनी “टेरीटरी” घोषित कर देते थे तब से उस एस्टीरोइड की हर चीज उस देश की संपत्ति मानी जाती थी। एसीरेमा में शीघ्र से शीघ्र अति गोपनिय तरीके से अंतरिक्ष यानों का बेड़ा भेज कर एस्टीरोइड बी सी-1784 को अपनी “टेरीटरी” घोषित करने की तैयारी चल रही थी।

‘नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा”, आइसुर स्पेस एजेंसी के प्रमुख बुदबुदाए।

अगले ही क्षण उन्होंने इमरजेंसी मेसेजिंग सिस्टम का बटन्। दबाया। एक घंटे में सारे बड़े स्पेस अधिकारी, तकनीशियन, इंजीनियर, आइसुर के राष्ट्रपति और सारा मंत्रिमंडल वीडियो कांफ़्रेंसिंग पर था।
“अपने स्पेस स्टेशन को अलर्ट करो, उस पर डोक्ड सारे स्पेस शटल्स पर एटोमिक हथियार लोड किए जाएं। “टेरीटरी” घोषित करने के लिए खनन करने वाले स्पेस शटल्स पर माइनिंग इक्वपमेंट लोड करके उनका बेड़ा रवाना करो। हर हाल में एस्टीरोइड बी सी-1784 पर हमार अधिकार होना चाहिए। हीरों की चिड़िया हाथ से जानी नहीं जानी चाहिए”, आइसुर के राष्ट्रपति ने त्वरित आदेश दिए।

पलक झपकते ही आइसुर यानों के बेड़े रवाना कर दिए गए। खबर है कि आइसुर के इस षडयंत्र की खबर एसीरेमा को भी मिल गई है। उन्होंने भी कौंटर एक्शन के लिए पूरी तैयारी के साथ एक्सप्लोरर और लड़ाकू यानों के बेड़े रवाना कर दिए हैं। अंतरिक्ष में एक विनाशकारी परमाणु युद्ध किसी भी समय शुरू हो सकता है।

रविवार, 28 अक्तूबर 2018

माफ़ करना ग्रांड पा


डा  अरविन्द दुबे
जब से गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) के किनारों पर लगे टीलोमीयर्स, जो कि मानव शरीर में बढ़ती आयु से संबंधित परिवर्तनों की वजह होते हैं, को एक एंजायम टीलोमरेज द्वारा हर कोशिका विभाजन के समय झड़ने से बचा कर मानव की आयु को बढ़ाने के सफ़ल प्रयास होने लगे हैं, तब से सैद्धांतिक रूप से मानव अमर हो गया है। अंग प्रत्यारोपण अब इतना सफ़ल और सरल हो गया है कि खराब होने पर लोग मशीन के पुर्जों की तरह अपना कोई भी अंग कितनी भी बार बदलवा लेते हैं। लोग अब अंत तक युवा रह कर सैकड़ों वर्षों तक जी रहे हैं और  हजारों वर्षों तक जीने की तमन्ना रखते हैं। म्रृत्यु तो अब किसी दुर्घटना या बढ़ते तनावों के चलते की जाने वाली आत्महत्याओं से ही होती है। कुछ देशों के निवासी तो इन परिस्थितियों का आनंद उठा रहे थे। वे परिवार और बच्चों के झंझटों से मुक्त वर्तमान में जीते थे जिससे मानव की आयु कई गुना बढ़ जाने वाबजूद उन देशों की आबादी बढ़ नहीं रही थी पर कुछ देशों में एक ऐसे धर्म को मानने वाले लोग रहते थे जिन्हें उनके धर्मगुरु मात्र संख्या बल के आधार पर दुनिया पर राज करने का सपने दिखाते थे। इसलिए वे बराबर बच्चे पैदा किए जा रहे थे और अपने देश की आबादी को बेतहाशा बढ़ा रहे थे। ऐसे लोगों से परेशान होकर उन देशों की सरकारों नेफ़ैमिली लिमिटघोषित कर दी थी जिसमें एक जोड़े से उत्पन्न खानदान के सदस्यों की  संख्या निश्चित थी।फ़ैमिली लिमिटके अंदर आने वाले सदस्यों के लिए इलाज, निवास, यात्रा, पढ़ाई आदि की सुविधाएं या तो मुफ़्त थीं या उन पर भारी सब्सिडी दी जाती थी।फ़ैमिली लिमिटके बाद पैदा हुए सदस्यों को कोई सरकारी सुविधा या सब्सिडी नहीं थी। बिना सब्सिडी यह सब इतना महंगा था कि एक आम आदमी इसे अफ़ोर्ड नहीं कर सकता था।

कद-काठी से मजबूत और युवा दिखने वाले पांच सौ वर्षीय उदीमा खान अभी अभी टीलोमरेज रीप्लेनिश सेशन से गुनगुनाते हुए लौटे थे। टेक्नीशियन ने बताया था कि उनका टीलोमरेज लेबिल बिलकुल सही है और वे लंबे समय तक ऐसे ही युवा बने रहेंगे।
अब बाईसवीं शादी कर ही डालूं”, पांच सौ वर्षीय उदीमा खान सोच रहे थे।

तभी सामने से उनके पड़पोते शफ़ीक और उनकी पत्नी हिना आते दिखे। शफ़ीक और हिना दोनो ही 100 वर्ष से ऊपर के हैं परफ़ैमिली लिमिटके चलते उनका कोई बच्चा नहीं है।
गए, जवानी का एक और घूंट पी कर दादा मियां”, हिना ने हिकारत से कहा।
“तुम्हें मतलब”
हां है, और कितना जीना चाहते हो, शर्म नहीं आती। हम यहां एक बच्चे के लिए तरस रहे हैं और ये-------, कयामत के दिन क्या मुंह दिखाएंगे हम?
करो ना हमने रोका हैभुनभुनाते हुए उदीमा खान रेलिंग पर जाकर खड़े हो गए और आसमान ताकने लगे।
पर उदीमा खान यह नहीं देख पाए कि हिना और शफ़ीक़ चुपके से उनके पीछे आकर खड़े हो गए हैं।

एक हलका सा धक्का और उदीमा खान अठारहवीं मंजिल से सीधे नीचे पक्के फ़र्श गिरे और उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

माफ़ करना पड़दादा हुजूर, हमारे जीने के लिए आपकी ये कुर्बानी जरूरी थी, अल्लाह हमें माफ़ करना  हिना और शफ़ीक़ ने एक साथ कहा और दुआ में हाथ ऊपर उठा दिए।

Every living being is made up cells, the basic unit of life. Every cell has a nucleus (barring a few). This nucleus contains genetic material. At the time of cell division this genetic material gets arranged in filamentous structures called “Chromosomes”. These chromosomes are made up of thousands of base pairs namely Adenine, Guanine, Cytosine and Thiamine which are said to be arranged in double helical structure. End of these chromosomes are protected by sequence of few thousand base pairs called “Telomeres” just like the plastic caps at the tips of shoelaces. When cells undergo cell division these telomeres save the chromosome tips from chipping. Instead the telomeres are chipped off in this process and gradually get shorter after each division. After number of cell divisions (50 t0 70 for a human somatic cell) telomeres become so short that cell looses the capacity to divide further. Such cells undergo “apoptosis” or self programmed death. Because of this every living organism gradually age and is mortal (liable to die ultimately) barring few unicellular organisms that have the capacity of asexual reproduction. An enzyme “Telomerase” can prevent and even reverse this telomere shortening. Experiments on mice have shown that by introducing the gene which activates telomerase production can prevent this telomere shortening and not only these cells keep on dividing for longer periods and so stops the aging, it also reverts the signs aging in them. These experiments are successfully reproduced in human cells too. Scientists see this telomerase as a key of everlasting youth and ultimately the immortality. If in near or distant future this dream comes true then what will happen? Humans will live for hundreds or even thousands years. Death will only by accidents or by suicide due to increasing social tensions. What will be the social scenario and what will happen to interpersonal relations?   

My short SF story (LAGHU KATHA) in Hindi addresses this issue. 

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

एक शहर की मौत


डा0 अरविन्द दुबे
आज उस शहर की अन्तिम निशानी भी पानी में समा गर्इ। यह उसके घंटाघर के ऊपर लगे तड़ित चालक (ऊंची इमारतों को आकाशीय विद्युत से बचाने का यंत्र) की नोंक थी। वैसे तो यह अपने आप में कोर्इ खास चीज नहीं थी पर परिस्थितियों के चलते यह उस मरते शहर की पहचान बन गर्इ थी। हर रोज कुछ तमाशबीन उस डूबते हुए शहर को देखते जुड़ते, आपस में बातें करते, अरे अभी तो उस घंटाघर का गुम्बद दिख रहा है.....लो आज उसका आखिरी कंगूरा भी डूबा...अब तो बस तड़ित चालक का सरिया ही बचा है....

बच्चों के लिए तो तड़ित चालक का वह सरिया, वह डूबते कंगूरे ही पूरा एक शहर था क्योंकि असली शहर तो उन्होंने कभी देखा ही नहीं था। किस्से कहानियों में उन्होंने सुना था कि एक जमाने में यह बेहद जिंदा शहर था। यह शहर कभी सोता नहीं था, यहां हर पल जिंदगी धड़कती थी। यह शहर समुद्री व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था। यहां लोगों के सपने रहते थे, सपने जगाने वाले रहते थे। वे लोग रहते थे जिन्हें सपने दिखाने की कला आती थी। वे लोग अभिनेता कहे जाते थे। लोग उनके जैसा बनने की सोचते, वैसे ही व्यवहार करते, उसी तरह सपने देखते और सपने पूरे होने पर निराश होते। इसी तरह उनकी जिंदगी कट जाती थी।

वह शहर बहुतों के लिए वैसा ही था जैसा कि अस्पताल के आपात चिकित्सा कक्ष में पड़ा कोर्इ असाध्य रोगी होता है, जिसकी मौत तो निश्चित हो चुकी होती है पर उसकी चलती सांसें उसके होने का अहसास दिलाती रहतीं हैं। शहर के मरने का यह सिलसिला तो एक ताब्दी पहले शुरू हुआ था, तबसे यह शहर धीरे-धीरे किश्तों में मर रहा था। पहले तो सिर्फ लोग बातें करते थे, यही हाल रहा.....समय रहते लोग चेते तो यह शहर एक दिन खत्म हो जाएगा.... इसके जैसे समुद्र के किनारे बसे बहुत सारे शहर कर्इ देश एक याद बन कर रह जाएंगे।

भविष्यवाणियां होती रहीं, सभाएं होतीं रहीं, चिंता करने के नाटक किए जाते रहे पर कुछ ठोस नहीं हुआ। लोग शहर की ओर आती अदृश्य मौत के चरचे करते, योजनाएं बनाते। इस तरह के हर शहर.....हर देश के लिए योजनाएं बनती पर एक आदमी की मौत की तरह इन हरों की मौत हर दशक इनके और करीब आती जाती। पिछले पचास सालों से तो सिर्फ उस शहर की लाश ही पड़ी थी जिस पर धीरे-धीरे समुद्री पानी की परतें चढ़ती जा रहीं थीं। इस शहर की मौत इतने धीरे-धीरे आर्इ थी कि लोग उसे मरता देखने के अभ्यस्त हो गए थे। उस शहर का हर रोज मरना उनके रोज के अनुभवों का एक जरूरी हिस्सा बन गया था। लोग जब फुरसत में होते तो इस शहर की मौत की चर्चा कर लेते मानों यह उनके लिए समय काटने का कोर्इ गल हो। वैसे तो यह शहर उनके लिए तभी मर गया था जब शहरके निचले हिस्सों को खाली कर देने के सरकारी आदेश हुए थे। हर साल समुद्र का पानी शहर में चढ़ता जाता तो लोग ऊंची जगह की ओर खिसकते जाते। अब तो पुराना पूरा का पूरा शहर समुद्र के पानी में डूब चुका है और शहर के पास की पहाड़ी पर कंक्रीट की कालोनियां कुकरमुत्तेां की तरह उग आर्इं हैं। यही एक अकेला शहर नहीं था जो धीरे-धीरे मर रहा था। दुनिया के विभिन्न भागों में समुद्र के तटों पर ऐसे बहुत सारे शहर मर रहे थे या मरने की विभिन्न स्थितियों में थे। ज्यादातर लोग इसे प्राकृतिक आपदा समझते थे पर बहुत सारे लोग थे जो जानते थे कि यह इंसानी भूलों का खामियाजा है जो इन हरों को भुगतना पड़ रहा है। वे जानते थे कि इंसान की पर्यावरण से छेड-छाड़ की अति ने ही विवश किया है इन हरों को अकाल मृत्यु मरने के लिए, मगर कैसे?

विनायक भी आज इस मरते शहर की आखिरी झलक देखने के लिए गया था वह वहां चारों ओर हरहराते समुद्री पानी के अलावा कुछ देख नहीं पाया। लोगों ने एक ओर इशारा करके बताया कि पिछले महीने तक उस बिन्दु पर कुछ दिखार्इ दे रहा था। घर में घुसते ही विनायक दादू से टकरा गया। विनायक के दादू देश की एक वैज्ञानिक संस्था में वैज्ञानिक थे। रिटायरमेन्ट के बाद अब तो ज्यादातर घर पर ही रहते हैं, कोर्इ किताब पढ़ते हैं या फिर विनायक से बतियाते हैं। विनायक को भी दादू का साथ बहुत भाता है।

कहां से रही है सवारी, घर में घुसते ही दादू ने पूछ लिया।
गया था समुद्र के किनारे तक
अच्छा मरता हुआ पुराना शहर देखने, वहां अभी भी कुछ दिखता है?
कुछ भी तो नहीं, सिवाय पानी के
तो इसका मतलब एक और शहर भी इंसान की करतूतों की भेंट चढ़ गया।
क्या मतलब दादू, इंसान की करतूतों के?”
हां
इसमें भला इंसान की क्या करतूत? सब जानते हैं कि समुद्र का तल हर बरस बढ़ रहा है और शहर धीरे-धीरे डूब रहा है और फिर यह प्रक्रिया कोर्इ सौ साल से चल रही है।
यही तो बात है तुम ने कभी गौर से सोचा ही नहीं कि समुद्रों का स्तर कैसे बढ़ने लगा? आज जिस घटना को तुम इस 23वीं ताब्दी में देख रहे हो वह तो बीसवीं ताब्दी के खत्म होते ही शुरू हो गर्इ थी।“
क्या मतलब दादू?”
तुम ग्रीन हाउस प्रभाव जानते हो विनायक?”
थोड़ा-थोड़ा
थोड़ा-थोड़ा कितना?”
वातावरण में कुछ गैसें होती हैं जिन्हें हम ग्रीन हाउस गैसें कहते हैं।
बिल्कुल सही, वातावरण में पाई जाने वाली कार्बन डार्इआक्साइड, मीथेन, नाइट्रस आक्साइड, जल वाष्प्, ओजोन और क्लोरोफ्लोरोकार्बन मुख्यत: ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करने वाली गैसें हैं।
दादू यह क्लोरोफ्लोरोकार्बन क्या होता है?”
यह दरअसल बीसवीं ताब्दी के फ्रिज, एयरकंडीशनर या प्रषीतन में प्रयोग होने वाले पदार्थ हैं। खास बात यह है कि यह गैसें एक बार वातावरण में पहुंच जाएं तो बरसों और ताब्दियों तक नष्ट नहीं होती, ज्यों की त्यों बनी रहती हैं।
पर इसका पुराने शहरके डूबने से क्या रिश्ता है?”
रिश्ता है विनायक। इन गैसों की परतों में से होकर सुदूर अंतरिक्ष के विकरण और ऊष्मा तो हम तक सकती है पर धरती पर से पैदा ऊष्मा इन गैसों को भेद कर सुदूर अंतरिक्ष में नहीं जा पाती है।
पर दादू इसे ग्रीन हाउस प्रभाव क्यों कहते हैं?”
विनायक ठंडी, जगहों पर पौधे उगाने के लिए बडे़ बड़े ग्रीन हाउस बनाए जाते हैं। इन ग्रीन हाउस में पौधे कांच के या प्लास्टिक के बने शे में रखे जाते हैं। यह कांच या प्लास्टिक बाहर की गर्मी और धूप अंदर तो आने देता है पर अंदर की गर्मी बाहर नहीं जाने देता है। यही काम पृथ्वी के वातावरण के लिए यह गैसें करतीं हैं। अत: इन गैसों के इस गर्मी बचाए रखने के प्रभाव को ग्रीन हाउस प्रभाव कहा जाने लगा।
यह तो और भी अच्छा है दादू। अगर धरती की सारी गर्मी जाकर सुदूर अंतरिक्ष में विलीन हो जाती उसे धरती पर रोकने वाली यह गैसें होतीं तो धरती तो एक दम ठंडी हो जाती।
बिल्कुल सही विनायक, अगर ऐसा नहीं होता तो धरती इतनी ठंडी हो जाती कि उस पर जीवन पनप ही नहीं सकता था। इन्हीं गैसों की वजह से पृथ्वी का तापक्रम जीने लायक रहता है।
लो और अभी आप कह रहे थे कि .....”
पूरी बात तो सुनो विनायक। ग्रीन हाउस गैसों का यह गुण, जिसने पृथ्वी को जीने लायक बनाया, वही इंसान की छेड़-छाड़ की वजह से पृथ्वी के लिए मुसीबत बन गया। इस ग्रीन हाउस गैसों में सबसे असरदार गैस है कार्बन डाइआक्साइड और इस कार्बन डार्इ आक्साइड का सबसे बड़ा हिस्सा आता है उस र्इंधन से जो बीसवीं, इक्कीसवीं  सदी में इंसान ने खूब इस्तेमाल किया था।
मतलब कोयला, लकड़ी, पेट्रोल, डीजल?”
हां विनायक इंसान ने इन र्इंधनों को तब इतना अधिक इस्तेमाल किया कि उसके पास पेट्रोल बचा कोयला लकड़ी।
मतलब दादू तब लोग सौर ऊर्जा और नाभिकीय ऊर्जा प्रयोग नहीं करते थे”, विनायक ने ताज्जुब ने पूछा।
नहीं विनायक उस समय यह उतने प्रचलित ईंधन नहीं थे। सौर ऊर्जा का प्रयोग होने लगा था पर इंसान आसानी से इन्हें अपनाने को तैयार नहीं था। वह तब इसे गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत कहता था।
ताज्जुब है
हां आज तो तुम्हें ताज्जुब लगेगा ही।
पर दादू हमारे पुराने शहर के डूबने का इससे क्या मतलब?”
जैसे जैसे यह खनिज र्इंधन जलते गए वातावरण में कार्बन डार्इआक्साइड की मात्रा बढ़ती गयी। यहां तक कि इन्सान के इस अंधाधुंध इर्ंधन इस्तेमाल के कारण सात से आठ गैगाटन कार्बन डार्इ आक्साइड की मात्रा हर साल धरती की ग्रीन हाउस गैसों में जुड़ने लगी। धरती के वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइड की परतें और घनी होने लगीं। अब धरती की गरमी पृथ्वी के वातावारण से बिल्कुल नहीं निकल पाती थी।
तब तो धरती और गरम होने लगी होगी दादू?”
हां विनायक धरती का तापक्रम एक ताब्दी में चार डिग्री तक बढ़ा।
फिर दादू?”
फिर क्या पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र जो हमेशा बर्फ से ढके रहते थे उनकी बर्फ पिघलने लगी। बर्फ के बडे़-बड़े ग्लेशियर पिघल गए और बहुत सारा पानी समुद्रों में बहकर मिला। जानते हो कितना?”
कितना दादू?”
इतना कि समुद्रों का जल स्तर तीन मीटर तक बढ़ गया।
ओह, और हमारे यह बहुत सारे शहर उसी में समा गए, क्यों दादू?”
हां विनायक
इसका मतलब अपना शहर हमने ही डुबोया। पर आदमी करता क्या दादू? र्इंधन का इस्तेमाल बंद कर देता क्या?”
पर खनिज र्इंधन का इतना इस्तेमाल जरूरी था? आज हम उन र्इंधनों से काम चला नहीं रहे हैं जिन्हें वह इक्कीसवीं ताब्दी में गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत कहता था.....जिनका प्रयोग उसे झंझट लगता था?”
हां दादू इंसान चेता भी तो सब कुछ खोकर।
विनायक अपनी गलती से हमने कितने शहर खो दिए?”
हां दादू कब तक हम अपने डूबते शहर छोड़कर ऊंची पहांड़ियों पर भागते रहेंगे?”
विनायक यह इतना सरल नहीं है कि एक डूबता शहर छोड़ा और ऊंची पहाड़ी पर कालोनी बना ली। एक वक्त आएगा कि ध्रुवों पर की बर्फ ही खत्म हो जाएगी। हरे-भरे क्षेत्र रेगिस्तान में बदल जाएंगे। हो सकता है कि वह वक्त आए कि धरती से कुछ उगे ही नहीं, जहां हम रह रहे हैं धरती का वह हिस्सा रहने के काबिल ही रहे”, कहते हुए दादू कहीं दूर देख रहे थे मानो क्षितिज पार उन्हें आने वाली ताब्दियां दिखार्इ दे रहीं हों।

विनायक ने धीरे से दादू का कंधा छुआ।
दादू मैं समझ गया हूं। कुदरत से छेड़-छाड़ अच्छी नहीं। यह आज मैं समझा हूं कल सब समझेगें... अगर उन्हें अपने आपको बचाना है तो उन्हें समझना ही होगा। आगे से कोर्इ शहर नहीं मरेगा दादू हमारी पीढ़ी आपको यह वचन देती है।

दादू ने अपने कंधे पर रखा विनायक का हाथ हौले से छुआ, उनकी आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे थे।