रविवार, 11 सितंबर 2016

अलिफ लैला-30 नूरुद्दीन अली और बदरुद्दीन हसन की कहानी (प्रथम भाग)

मंत्री जाफर ने कहा कि पहले जमाने में मिस्र देश में एक बड़ा प्रतापी और न्यायप्रिय बादशाह था। वह इतना शक्तिशाली था कि आस-पड़ोस के राजा उससे डरते थे। उसका मंत्री बड़ा शासन- कुशल, न्यायप्रिय और काव्य आदि कई कलाओं और विधाओं में पारंगत था। मंत्री के दो सुंदर पुत्र थे जो उसी की भाँति गुणवान थे। बड़े का नाम शम्सुद्दीन मुहम्मद था और छोटे का नूरुद्दीन अली। जब मंत्री का देहांत हुआ तो बादशाह ने उसके दोनों पुत्रों को बुला कर कहा कि तुम्हारे पिता के मरने से मुझे भी बड़ा दुख है, अब मैं तुम दोनों को उनकी जगह नियुक्त करता हूँ, तुम मिल कर मंत्रिपद सँभालो। दोनों ने सिर झुका कर उसका आदेश माना। एक मास पर्यंत अपने पिता का शोक करने के बाद दोनों राज दरबार में गए। दोनों मिल कर काम करते थे। जब बादशाह आखेट के लिए जाता तो बारी-बारी से हर एक को अपने साथ ले जाता तो और दूसरा राजधानी में रह कर शासन कार्य को देखता।
एक शाम को, जब दूसरी सुबह को बड़ा भाई बादशाह के साथ शिकार पर जानेवाला था, दोनों भाई आमोद-प्रमोद कर रहे थे। हँसी-हँसी में बड़े भाई ने कहा कि हम दोनों एक मत हो कर इतना बड़ा राज्य चलाते हैं, हम क्यों ऐसा करें कि एक ही दिन संभ्रांत परिवारों की सुशील कन्याओं से विवाह करें, तुम्हारी क्या राय है? छोटे ने कहा कि मैं आपकी आज्ञा से बाहर नहीं हूँ, जैसा आप कहेंगे वैसा ही होगा।
दोनों को मद्यपान से नशा भी रहा था। बड़े भाई ने कहा, 'सिर्फ एक रात में शादी होना ही काफी नहीं है। हमारी पत्नियों को भी एक ही रात में गर्भ रहना चाहिए।' छोटे ने हँस कर कहा कि वह भी हो जाएगा। फिर बड़े ने कहा कि हमारी संतानें भी एक ही दिन जन्में और तुम्हारे यहाँ पुत्र हो मेरे यहाँ पुत्री हो। छोटे ने कहा, बहुत अच्छी बात है। बड़े ने कहा कि जब तुम्हारा बेटा और मेरी बेटी बड़े हो जाएँ उनका विवाह भी कर दिया जाए क्योंकि शुरू से साथ-साथ रहेंगे तो उन्हें एक-दूसरे से प्रेम हो ही जाएगा। छोटे भाई ने कहा, इससे अच्छी क्या बात हो सकती हैं कि मेरे बेटे के साथ आपकी बेटी की शादी हो।
बड़े ने कहा, 'लेकिन एक शर्त है। मैं शादी में तुम से दहेज भरपूर लूँगा। इसमें नौ हजार अशर्फियाँ नकद, तीन गाँव और दुल्हन की सेवा के लिए तीन दासियाँ। छोटे ने मजाक को बढ़ाते हुए कहा, 'यह आप कैसी बातें कर रहे हैं? हम दोनों की पदवी बराबर है। फिर लड़केवाला दहेज कहाँ देता है? वह तो दहेज लेता है। आपको चाहिए कि आप शादी में भरपूर दहेज मुझे दें, कि मुझसे दहेज लें।'
यद्यापि मजाक ही हो रहा था किंतु बड़ा भाई अत्यंत क्रोधी स्वभाव का था। वह बिगड़ कर बोला, 'तुम समझते हो कि तुम्हारा बेटा मान-सम्मान में मेरी बेटी से अधिक होगा। मैं तो आशा करता था कि तुम मेरी बेटी की मान-प्रतिष्ठा करोगे, लेकिन मालूम होता है तुम उसका बड़ा अपमान करोगे।' दोनों भाई नशे में थे। यह बेकार बहस थी क्योंकि शादी किसी की नहीं हुई थी और संभावित पुत्र और पुत्री के विवाह के दहेज का झगड़ा हो रहा था। लेकिन बहस बढ़ती ही गई और हास-परिहास से गंभीर रूप ले बैठी।
अंत में बड़े ने कहा, 'सवेरा होने दे। मैं तुझे बादशाह के सामने ले जा कर दंड दिलाऊँगा, तब तुझे मालूम होगा कि बड़े भाई से गुस्ताखी करने का क्या फल होता है।' यह कह कर वह अपने शयन कक्ष में चला गया। छोटा भी अपने कमरे में कर अपने पलंग पर लेट गया। किंतु उसे रात भर नींद आई। वह गुस्से में जलता-भुनता रहा और सोचता रहा कि यह भाई जो मजाक की बात पर भी इस तरह बात करता है कोई गंभीर बात पैदा होने पर क्या करेगा।
दूसरे दिन सुबह शम्सुद्दीन मुहम्मद तो बादशाह के साथ शिकार पर चला गया और इधर छोटे भाई ने बहुत-से रत्नाभूषण आदि एक मजबूत खच्चर पर लादे, बहुत-सा खाने-पीने का समान रखा और शहर छोड़ कर चल दिया। सेवकों से कह दिया कि दो-एक दिन के लिए जा रहा हूँ। वह अरब देश की राह पर चल पड़ा। बहुत दिन की कष्टप्रद यात्रा के बाद उसका खच्चर बीमार हुआ और मर गया। वह बेचारा अपना सामान कंधे पर रख कर पैदल ही चलने लगा। हसना नामी शहर से वह बसरा की ओर बढ़ रहा था कि उसे एक घुड़सवार उसी तरफ जाता हुआ मिला। घुड़सवार को उस पर दया आई और उसने नूरुद्दीन अली को अपने पीछे घोड़े पर बिठा लिया और बसरा तक पहुँचा दिया। बसरा पहुँच कर नूरुद्दीन अली ने उसे बहुत धन्यवाद दिया।
बसरा नगर में नूरुद्दीन अली ने देखा कि एक बड़ी सड़क पर भीड़ सड़क के दोनों ओर खड़ी हुई है। वह भी वहीं खड़ा हो गया। कुछ ही देर में एक अमीराना सवारी आई जिसके साथ बहुत से नौकर-चाकर थे। जिस भव्य व्यक्तित्ववाले आदमी की सवारी निकल रही थी उसे लोग झुक-झुक कर सलाम कर रहे थे। वह उस राज्य का मंत्री था। नूरुद्दीन अली के सलाम करने पर मंत्री ने उसे देखा और उसके विदेशी परिधान और उसके चेहरे पर उच्च वंशीयता की छाप देख कर उससे पूछा कि तुम कौन हो, कहाँ से रहे हो। नूरुद्दीन अली ने कहा, 'सरकार, मैं मिस्र देश के काहिरा नगर का निवासी हूँ। अपने संबंधियों से मेरा झगड़ा हो गया है इसीलिए देश-देश घूम रहा हूँ।' मंत्री ने कहा, 'इस यायावरी में तुम बहुत दुख उठाआगे। मेरे साथ चलो बड़े आराम से रहोगे।'
अतएव नूरुद्दीन अली मंत्री के साथ रहने लगा। मंत्री उसकी विद्या-बुद्धि देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। एक दिन मंत्री ने एकांत में उससे कहा 'बेटे, अब मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ, अब मुझे अधिक दिनों तक जीने की आशा नहीं है। मेरी संतान केवल एक बेटी है जो बड़ी रूपवती है। वह अब विवाह योग्य है। कई सामंत और धनी-मानी व्यक्ति उससे विवाह करना चाहते हैं। किंतु मैंने यह स्वीकार नहीं किया। मुझे वह बेटी बहुत ही प्रिय है। मैं समझता हूँ कि वह तुम्हारे योग्य है। अगर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं तो मैं तुम्हारे साथ उसका विवाह बादशाह से अनुमति ले कर कर दूँ और साथ ही मंत्री पद के लिए तुम्हें अपना उत्तराधिकारी बनाऊँ और सारी संपत्ति भी तुम्हारे नाम कर दूँ।'
नूरुद्दीन अली ने कहा, 'मैं आपको अपना बुजुर्ग मानता हूँ, जो कुछ आपका आदेश होगा मैं वैसा ही करूँगा।' मंत्री ने उसकी स्वीकृति पाई तो बहुत खुश हुआ। उसने विवाह की तैयारियाँ शुरू कर दी और नगर निवासियों में से खास-खास लोगों को यह बात बताने के लिए बुलाया। जब सब लोग एकत्र हुए तो नूरुद्दीन अली ने अलग ले जा कर मंत्री से कहा, 'मैंने अपने कुटुंब के बारे में अभी तक किसी को कुछ नहीं बताया। अब यह बताता हूँ। मेरे पिता मिस्र के बादशाह के मंत्री थे।
'हम दो भाई हैं। दूसरा भाई मुझसे बड़ा है। मेरे पिता की मृत्यु के उपरांत बादशाह ने हम दोनों भाइयों को उनका कार्य भार दे दिया। हम कुछ समय तक शासन कार्य विधिपूर्वक करते रहे। एक दिन मेरी अपने बड़े भाई के साथ एक बात पर बहस हो गई। उसने मुझसे ऐसे कटु शब्द कहे कि मैंने देश छोड़ दिया।'
मंत्री ने जब यह वृत्तांत सुना तो और भी प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि यह तो बहुत अच्छी बात है कि यह भी मंत्री का बेटा निकला। उसने एकत्र हुए नागरिकों से कहा, 'मैं एक बात में आपकी सलाह लेना चाहता हूँ। मेरा एक भाई मिस्र के बादशाह का मंत्री है। उसके केवल एक पुत्र है। उसने मिस्र में अपने बेटे का विवाह करना चाहा और उसे यहाँ मेरे पास भेज दिया ताकि मैं उसका विवाह करके उसे अपने पास रखूँ। आप क्या कहते हैं? सभी ने एक स्वर से कहा कि बहुत ही अच्छी बात है, भगवान वर-वधू को चिरायु करे। मंत्री ने सब लोगों को भोजन कराया और रस्मी तौर पर शादी की मिठाई बाँटी। काजी ने कर विवाह संपन्न किया। फिर सब लोग मंत्री के घर से विदा हो गए।
मंत्री ने सेवकों को आज्ञा दी कि नूरुद्दीन को स्नान कराओ। स्नान के बाद नूरुद्दीन अपने मामूली कपड़े ही पहनना चाहता था किंतु मंत्री के सेवकों ने उसे वे रत्नजड़ित मूल्यवान वस्त्र पहनाए जो मंत्री ने इस अवसर के लिए भेजे थे। उसके शरीर और वस्त्रों पर नाना प्रकार की सुगंध भी लगाई और उसका अन्य साज-श्रृंगार किया। फिर नूरुद्दीन अली अपने श्वसुर यानी मंत्री के पास गया। मंत्री उसे देख कर प्रसन्न हुआ, प्यार से उसे अपने पास बिठाया। फिर उसने पूछा, 'तुम मिस्र के मंत्री के बेटे हो। फिर भी तुमने परदेश में रहना पसंद किया। ऐसी क्या बात हो गई थी कि तुम दोनों भाइयों की ऐसी ठनी कि तुम्हें देश छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा। अब तुम मेरे दामाद हो। हम एक हो गए हैं। अब तुम्हें मुझसे कोई भेद छुपाना नहीं चाहिए। तुम साफ बताओ कि घर क्यों छोड़ा।'
नूरुद्दीन अली ने उसे सविस्तार बताया कि किस तरह हँसी हँसी में पैदा हुई एक बात कटु विवाद का रूप ले बैठी। मंत्री यह वृत्तांत सुन कर बहुत हँसा और बोला, 'सिर्फ इतनी-सी बात पर तुम अपने भाई से अलग हो गए और अपना देश छोड़ बैठे? बेकार बात थी कि तुम्हारा और तुम्हारे भाई का एक साथ विवाह होता, एक साथ संतानें होतीं; तुम्हारे यहाँ पुत्र और उसके यहाँ पुत्री होती और उनके विवाह में दहेज का प्रश्न उठता। लेकिन हाँ, तुम्हारे भाई की ज्यादती थी कि हँसी-हँसी में होनेवाली बात को खींच कर इतना कटु बना दिया। तुम्हारा देशत्याग समझदारी की बात तो नहीं थी किंतु मेरे सौभाग्य से यह सब हो गया। खैर, अब यहाँ समय लगाओ। अपनी दुल्हन के पास जाओ। वह तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है।' नूरुद्दीन अली उसकी आज्ञा मान कर अपनी पत्नी के पास चला गया।
इधर मिस्र में उस दिन की कहा-सुनी के एक महीने बाद जब बड़ा भाई शम्सुद्दीन मुहम्मद शिकार से वापस आया तो उसे सेवकों ने बताया कि उसका भाई दो दिन के लिए जाने को कह कर वापस नहीं लौटा। शम्सुद्दीन मुहम्मद को इस पर बड़ा खेद हुआ क्योंकि उसने समझ लिया कि नूरुद्दीन अली मेरे कटु वचनों से क्रु्द्ध हो कर किसी दिशा में निकल गया है। उसने चारों ओर उसकी तलाश में आदमी भिजवाए जो दमिश्क और हलब तक हो आए किंतु उसे खोज सके क्योंकि वह तो बसरा में था। अंत में शम्सुद्दीन निराश हो कर बैठ रहा। उसने समझ लिया कि नूरुद्दीन जीवित नहीं है।
फिर शम्सुद्दीन मुहम्मद ने विवाह किया। संयोग से उसका विवाह उसी दिन और उसी समय पर हुआ जब नूरुद्दीन का विवाह बसरा में हो रहा था। इससे भी अजीब बात थी कि नौ महीनों के बाद एक ही दिन नूरुद्दीन अली के घर में पुत्र और शम्सुद्दीन मुहम्मद के यहाँ कन्या का जन्म हुआ। नूरुद्दीन के पुत्र का नाम बदरुद्दीन हसन रखा गया। बसरा का मंत्री नाती के जन्म पर बहुत ही प्रसन्न हुआ। उसने बहुत बड़ा समारोह किया और अच्छी तरह सेवकों को इनाम और फकीरों को भिक्षा दी। फिर कुछ दिन बाद वह नूरुद्दीन अली को शाही दरबार में ले गया और बादशाह से निवेदन किया कि मेरी जगह मेरे दामाद को मंत्री बना दीजिए। वह पहले भी कई बार उसे दरबार में ले गया था और बादशाह नूरुद्दीन की बुद्धि और चातुर्य से प्रभावित था। अतएव उसने बगैर किसी हिचक के नूरुद्दीन अली को अपना मंत्री बना दिया। पुराना मंत्री यानी नूरुद्दीन का ससुर यह देख कर अत्यंत प्रसन्न हुआ कि नूरुद्दीन अली में इतनी प्रबंध कुशलता है और वह ऐसी न्यायप्रियता और मृदुल स्वभाव से काम करता है कि राजा-प्रजा सभी का प्रिय हो गया है।
चार वर्षों के बाद अवकाश-प्राप्त मंत्री बीमार हो कर मर गया। नूरुद्दीन अली ने उसका बड़ा मातम किया और सारे मृतक संस्कार अच्छी तरह से किए। बदरुद्दीन हसन जब सात वर्ष का हुआ तो उसके पिता ने उसका विद्यारंभ कराया और बड़े-बड़े विद्वानों को उसका शिक्षक नियुक्त किया। बदरुद्दीन ऐसा कुशाग्रबुद्धि था कि कुछ ही समय में उसने पूरा कुरान कंठस्थ कर लिया। बारह बरस का हुआ तो उसने सारी प्रचलित विद्याएँ अच्छी तरह पढ़ लीं। वह अत्यंत सुंदर और सुशील भी था। जो भी उसे देखता उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाता था।
एक दिन नूरुद्दीन अली अपने पुत्र को राजदरबार में ले गया। बदरुद्दीन ने बादशाह को ऐसे विधिपूर्वक प्रणाम किया और उसके प्रश्नों का इतनी बुद्धिमानी से उत्तर दिया कि बादशाह बहुत खुश हुआ। उसने बदरुद्दीन को इनाम-इकराम भी दिया। नूरुद्दीन अपने पुत्र के प्रशिक्षण पर बहुत ध्यान दिया करता था और बराबर उसे ऐसी बातें सिखाता था जिससे बेटे को लाभ हो और वह संसार में उच्च पद के योग्य सिद्ध हो। इसी तरह कई वर्ष निकल गए।
फिर नूरुद्दीन बीमार पड़ गया। किसी इलाज से वह ठीक ही नहीं होता था और उसकी बीमारी बढ़ती चली जाती थी। अपना अंत समय आया देख कर उसने बदरुद्दीन को अपने निकट बुला कर उपदेश दिया, 'बेटे, यह जीवन नश्वर हे और संसार असार है। तुम मेरे मरने पर दुख करना और भगवान की इच्छा समझ कर संतोष करना। हमारे खानदान के लोग ऐसा ही करते हैं और जिन अध्यापकों ने तुम्हें पढ़ाया है उनका भी यही कहना था। अब मैं जो कहता हूँ उसे ध्यान से सुनो।
'मुझे आशा है कि मैं जैसा कहूँगा वैसा ही तुम करोगे। मैं वास्तव में मिस्र देश का निवासी हूँ। मेरे पिता वहाँ के बादशाह के मंत्री थे। उनके मरने पर मैं और मेरा बड़ा भाई शम्सुद्दीन मुहम्मद दोनों मंत्री बना दिए गए। मेरा बड़ा भाई अब तक वहाँ का मंत्री है लेकिन मैं किसी कारण से यहाँ चला आया।' फिर उसने एक छोटे कलमदान से एक कागज निकाल कर बेटे को दिया और कहा, 'फुरसत से इसे पढ़ना। इसमें तुम्हें सारा हाल मिलेगा। मेरे विवाह और अपने जन्म की तिथियाँ भी तुम इसमें लिखी पाओगे।' यह कह कर नूरुद्दीन अली बेहोश हो गया।
बदरुद्दीन को पिता की मृत्यु निकट देख कर बड़ा रंज हुआ। वह रोने-पीटने लगा। लेकिन बदरुद्दीन को कुछ देर बाद होश आया। उसने बेटे से कहा, 'अब मैं कुछ देर ही का मेहमान हूँ। मैं इस अंतिम समय पर तुम्हें कुछ उपदेश कर रहा हूँ जिन्हें तुम हमेशा याद रखना। पहली बात तो यह कि किसी से बहुत घनिष्ठ मित्रता करना अपने भेद किसी से कहना। दूसरी यह कि किसी व्यक्ति पर अत्याचार करना क्योंकि अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि यह दुनिया लेन-देन की जगह है, जैसी भलाई-बुराई तुम करोगे वैसा ही तुम्हें बदला मिलेगा। तीसरी बात यह है कि कभी ऐसी बात मुँह से निकालना जिससे तुम्हें बाद में लज्जित होना पड़े, और यह भी याद रखो कि बहुत बोलनेवाला आदमी हमेशा लज्जित होता है और जो कम बोलता है और सोच-समझ कर बोलता है उसे लज्जा नहीं उठानी पड़ती क्योंकि गंभीरता से आदमी का मान बढ़ता है और उसके प्राणों को भी खतरा नहीं होता और बकवासी आदमी ऊटपटाँग बातें करके मुसीबत उठाता है। चौथी बात यह है कि मद्यपान कभी करना क्योंकि मदिरा बुद्धि को भ्रष्ट कर देती है। पाँचवीं बात यह है कि हाथ रोक कर खर्च करना और मितव्ययिता को हमेशा अपना सिद्धांत बनाए रखना। मतलब यह नहीं कि इतना कम खर्च करो कि लोग तुम्हें कंजूस कहने लगें लेकिन इतना खर्च करना कि निर्धन हो जाओ। जो धनवान होता है उसे हजार दोस्त घेरे रहते हैं मगर जब पैसा नहीं रहता तो कोई बात भी नहीं पूछता।'
नूरुद्दीन अली इस प्रकार अपने पुत्र को जीवन के लिए उपयोगी बातें अपने अंतिम श्वास तक बताता रहा। जब वह मर गया तो बदरुद्दीन ने बड़े समारोहपूर्वक गमी की सारी रस्में कीं।
इतना कहने के बाद रानी शहजाद ने बादशाह शहरयार से कहा कि यहाँ तक कहानी सुन कर खलीफा हारूँ रशीद बहुत प्रसन्न हुआ इसलिए मंत्री जाफर ने कथा को आगे बढ़ाया। उसने कहा कि बदरुद्दीन ने, जिसे बसरा में जन्म लेने के कारण लोग बसराई कहने लगे थे, उस देश की रीति के अनुसार एक महीने तक घर में बैठ कर पिता की मृत्यु का मातम किया। इस पर बादशाह को आपत्ति ही क्या होती किंतु बदरुद्दीन को बाप के मरने का इतना शोक हुआ कि इसके बाद भी दरबार में गया। जब दूसरा महीना भी बीत गया तो बादशाह को बड़ा क्रोध आया। उसने बदरुद्दीन हसन के बजाय दूसरे व्यक्ति को मंत्री नियुक्त कर दिया और एक दिन नए मंत्री को आज्ञा दी कि पुराने मंत्री की जमीन-जायदाद जब्त कर लो और बदरुद्दीन हसन को गिरफ्तार करके मेरे सामने लाओ।
नया मंत्री सिपाहियों की एक टुकड़ी ले कर बदरुद्दीन के घर की ओर चला। बदरुद्दीन के एक गुलाम ने यह देख लिया और वह दौड़ कर अपने स्वामी के निकट गया और उसके पाँवों पर गिर कर उसके वस्त्रों को चूम कर बोला कि आप तुरंत घर छोड़ दें। बदरुद्दीन ने पूछा कि आखिर बात क्या है। गुलाम ने कहा कि अधिक कुछ कहनेसुनने का अवसर नहीं है, बादशाह ने आपकी संपत्ति जब्त करने और आपको गिरफ्तार करने का आदेश दिया है और नया मंत्री राजमहल से सिपाही ले कर चल चुका है। बदरुद्दीन यह सुन कर घबरा गया और बोला कि मैं कुछ रत्न और रूपया-पैसा तो ले लूँ। गुलाम ने कहा कि कुछ लीजिए, सिर्फ अपनी जान ले कर निकल जाइए क्योंकि मंत्री का किसी क्षण भी इस मकान में प्रवेश हो सकता है।
यह सुन कर बदरुद्दीन पैदल जा रहा था इसलिए उसके कब्रिस्तान पहुँचते-पहुँचते सूरज डूब गया। वह अपने पिता की उस लंबी-चौड़ी कब्र पर पहुँचा जहाँ वह दफन था। यह कब्र नूरुद्दीन ने अपने जीवन काल ही में अपने लिए बनवा ली थी।
वह कब्र पर जा कर बैठा ही था कि उसकी एक यहूदी व्यापारी से भेंट हुई। यहूदी ने बदरुद्दीन को पहचाना और कहा कि आप यहाँ रात में कैसे आए। बदरुद्दीन ने कहा कि मैंने स्वप्न में अपने पिता को देखा था जो नाराज हो कर मुझ से कह रहे थे कि तू मुझे बिल्कुल भूल गया और मुझे दफन करने के बाद मेरी कब्र पर भी नहीं आया इसीलिए मैं परेशान हो कर तुरंत ही घर से चल पड़ा और यहाँ पहुँच गया। इसीलिए मैंने कोई सेवक आदि भी अपने साथ नहीं लिया।
यहूदी को उसकी बात पर विश्वास हुआ और वह समझ गया कि बदरुद्दीन पर कोई मुसीबत आई है। उसने कहा, 'आपको शायद नहीं मालूम कि आपके पिता ने व्यापार में भी पैसा लगाया था। कई जहाजों पर उनका हजारों दीनार का माल लदा हुआ है और वे जहाज व्यापार यात्राओं पर हैं। आपके पिता मुझ पर बड़े कृपालु थे और मैं अपने को उनका सेवक समझता था। अब उस माल के मालिक आप हैं। चाहें तो अपने पहले जहाज के माल को मेरे हाथ बेच दें मैं उसे छह हजार मुद्राओं से खरीदने के लिए तैयार हूँ।'
बदरुद्दीन के पास तो कानी कौड़ी थी। उसने इन मुद्राओं को भगवान की देन समझा और सौदा मंजूर कर लिया। यहूदी ने कहा 'अच्छी तरह सोच लीजिए, छह हजार मुद्राएँ दे कर मैं आपके पहले जहाज के माल का स्वामी हो जाऊँगा चाहे माल कितने ही का हो। क्या आप यह सौदा पूरी रजामंदी से कर रहे हैं?' बदरुद्दीन ने कहा, हाँ मैं पूरी रजामंदी से माल बेच रहा हूँ। यहूदी ने कहा, 'मालिक, मैं आपके ऊपर पूरा विश्वास करता हूँ किंतु दूसरों को दिखाने के लिए जरूरी है कि आप यह क्रय पत्र लिखित रूप में मुझे दें।' यह कह कर उसने कमर से बँधा हुआ कलमदान निकाला। बदरुद्दीन ने लिख कर दे दिया,' मैं बसरा पहुँचनेवाले अपने पहले जहाज का माल इसहाक यहूदी के हाथ छह हजार मुद्राओं में बेचता हूँ।' यह लिख कर नीचे हस्ताक्षर कर दिए। यहूदी ने वह कागज लिया और बदरुद्दीन को छह हजार मुद्राओं की थैली दे कर चला गया।
बदरुद्दीन अब अपने पिता की कब्र से लिपट कर अपने दुर्भाग्य पर रोने लगा और बहुत देर तक रोता रहा। यहाँ तक कि रोते-रोते सो गया। इसी अरसे में एक जिन्न उधर घूमता-फिरता निकला। बदरुद्दीन का सुंदर रूप देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने इतना सुंदर कोई मनुष्य नहीं देखा था। उसे देर तक देखने के बाद वह आकाश में पहुँचा। परी से उससे कहा कि 'जमीन पर मेरे साथ चलो। मैं वहाँ पर एक कब्रिस्तान में एक कब्र पर रोता हुआ ऐसा आदमी दिखाऊँगा जिसकी सुंदरता पर तुम भी मोहित हो जाओगी।' परी ने स्वीकार किया। दोनों जमीन पर आए और जिन्न ने सोते हुए बदरुद्दीन की ओर उँगली उठा कर कहा, 'ऐसा सुंदर मनुष्य कहीं देखा है?'
परी ने बदरूद्दीन को गौर से देखा और बोली, 'वास्तव में यह अत्यंत रूपवान है किंतु मैं काहिरा में जो मिस्र की राजधानी है एक विचित्र बात देख कर आई हूँ। यदि तुम उसे जानना चाहो तो बताऊँ।' जिन्न ने कहा, जरूर बताओ। परी बोली, मिस्र के बादशाह का एक मंत्री है जिसका नाम शम्सुद्दीन मुहम्मद है। उसकी एक बीस बरस की पुत्री है जो अतीव सुंदरी है। बादशाह ने उसके रूप की प्रशंसा सुन कर मंत्री से कहा कि उस कन्या का विवाह मेरे साथ कर दो।
मंत्री ने हाथ जोड़ कर कहा कि महाराज, मुझे इस अनुग्रह से क्षमा करें। कारण पूछने पर उसने कहा कि मेरा छोटा भाई नूरुद्दीन अली भी मेरे साथ आपका मंत्री था, वह बहुत दिन हुए घर छोड़ कर चला गया। सुना है कि वह बसरा का मंत्री हो गया था। और अब जीवित भी नहीं है। लेकिन उसके यहाँ एक बेटा हुआ था जो अब भी होगा। फिर मंत्री ने बादशाह को एक तकरार बताई जो उसके और उसके भाई के बीच हुई थी और कहा कि चूँकि मैंने भाई को वचन दे दिया था कि अपनी पुत्री का विवाह उसके पुत्र के साथ करूँगा इसलिए मैं मजबूर हँ और आपकी आज्ञा का पालन नहीं कर सकूँगा। आपके लिए तो काहिरा में अमीरों की अनगिनत सुंदरी कन्याएँ हैं, जिससे चाहे विवाह करें।
बादशाह मंत्री की बात सुन कर अत्यंत क्रुद्ध हुआ। उसने कहा कि तुम मुझे इतना छोटा समझते हो कि मेरे साथ रिश्तेदारी भी करो, मैं तुम्हें इस गुस्ताखी की ऐसी सजा दूँगा कि तुम्हें हमेशा याद रहे। अब तुम्हारी कन्या एक बदसूरत गुलाम से ब्याही जाएगी। यह कह कर बादशाह ने घुड़साल में काम करनेवाले एक महाकुरूप कुबड़े हब्शी गुलाम को दूल्हे की तरह सजाने का आदेश दिया। इस गुलाम का पेट भी बहुत बड़ा था और पाँव भी टेढ़े थे। उसने मंत्री से कहा कि जाओ, अपनी पुत्री के उस गुलाम के साथ विवाह करने की तैयारी करो।
मंत्री बेचारा अत्यंत दुखी मन से अपने भवन में आया। बादशाह की आज्ञा टाली नहीं जा सकती थी इसलिए उसने विवाह की तैयारियों का आदेश दिया। रात को काहिरा में गुलामों ने बरात सजाई और कुबड़े गुलाम को हम्माम में भेजा और खुद हम्माम के द्वार पर एकत्र हो गए। कुबड़े और बदसूरत गुलाम को नहला-धुला कर अच्छे कपड़े पहनाए गए। उसी समय जिन्न से परी ने कहा, 'कुरूप गुलाम को शादी के कपड़े पहनाए गए हैं और इस समय उसका दू्ल्हे की तरह श्रृंगार किया जा रहा है। कितने दुख की बात है कि मंत्री की इतनी सुंदर कन्या इतने कुरूप गुलाम की पत्नी बने।'
यह सुन कर जिन्न बोला, 'अगर हम लोग कुछ ऐसा करें कि उस कन्या का विवाह इस सुंदर युवक से हो जाए तो कैसा रहे?' परी ने कहा, 'मैं तो दिल से चाहती हूँ कि कुछ ऐसा किया जाए कि बादशाह का अन्याय घटित हो सके, गुलाम को धोखा दे कर उसकी जगह इस युवक को बिठा दिया जाए। इससे बादशाह को भी उनके अनुचित क्रोध का फल मिल जाएगा और मंत्री और उसकी पुत्री का भी गुलाम के साथ रिश्तेदारी करने के अपमान से बचाव हो जाएगा।'
जिन्न ने परी से कहा कि अगर तुम मेरी सहायता करो तो यह काम हो सकता है। मैं इसके जागने के पहिले ही इसे उठा कर काहिरा में पहुँचा दूँगा। चुनाँचे जिन्न और परी एक क्षण ही में बदरुद्दीन हसन को उठा कर काहिरा में हम्माम के पास ले गए।
बदरुद्दीन की आँख खुली तो वह स्वयं को नई जगह पा कर बहुत घबराया और चीत्कार करने ही वाला था कि जिन्न ने उसके कंधे पर हाथ रख कर उससे चुप रहने के लिए कहा। फिर उसे समझाया, 'मैं तुम्हें एक मशाल देता हूँ, उसे ले कर शादी के जुलूस में सम्मिलित हो जाओ, मंत्री के मकान में निडर हो कर चले जाओ और अंदर जा कर कुबड़े के दाहिनी ओर बैठ जाना, इसके पहले गाने-बजानेवालों को जो बरात के साथ होंगे खूब इनाम देना और अंदर जा कर दुल्हन की बंदियों को भी मुट्ठी भर कर सिक्के देना, यह खयाल मत करना कि तुम्हारी थैली खाली हो जाएगी। तुम किसी से डरना और मेरे बताए पर काम करते जाना।'
अतएव बदरुद्दीन मशाल ले कर भीड़ में शामिल हो गया। कुछ देर में दूल्हा बना गुलाम भी हम्माम से बाहर निकला और शाही घोड़े पर बैठ कर दुल्हन के घर की ओर चला। बदरुद्दीन ने गाने-बजानेवालों को मुट्ठी भर-भर कर रुपए दिए, वे इससे बड़े प्रसन् हुए। बरात मंत्री के द्वार पर पहुँची तो द्वारपाल ने बरातियों को बाहर रोक दिया। गाने-बजानेवालों को तो अंदर जाना ही था, उन्होंने इस खुले हाथवाले बराती यानी बदरुद्दीन के भी अंदर जाने की अनुमति द्वारपाल से लड़ झगड़ कर दिलवा दी और कहा कि यह गुलाम नहीं, उच्च वर्ग का परदेशी है। उन्होंने उसके हाथ से मशाल भी ले ली और उसे दूल्हे की दाहिनी ओर बिठा दिया, दूल्हे की बाईं ओर दुल्हन बैठी थी। दुल्हन यद्यपि अतीव सुंदरी थी किंतु कुरूप गुलाम से ब्याही जाने पर अ्त्यधिक शोक संत्प्त और मुरझाई हुई थी।
कुछ क्षण में दुल्हन की बाँदियाँ हाथ में मशालें ले कर आईं। उनके साथ काहिरा की अन् स्त्रियाँ भी थीं। वे सब कहने लगीं कि इस कुबड़े की तरफ देखा भी नहीं जाता, हम लोग तो अपनी सुंदरी दु्ल्हन का हाथ इस सजीले जवान को देंगे जो उसके पास बैठा है। उ्न्होंने इस बात का भी खयाल किया कि बादशाह की आज्ञा से गुलाम का विवाह हो रहा है और ऐसी बातें करने पर उन्हें दंड मिल सकता है। उ्न्होंने ऐसा शोरगुल किया कि गाने-बजाने की आवाजें तक दब गईं।
कुछ देर में फिर गाना-बजाना शुरू हो गया। रात भर यह राग-रंग चलता रहा। डोमिनियों ने सात प्रकार के राग गाए और प्रत्येक राग पर दुल्हन को एक नया जोड़ा पहनाया गया। जोड़े बदलने के बाद दुल्हन ने गुलाम को घृणापूर्वक देखा और उसके पास से उठ कर अपनी सहेलियों के साथ बदरुद्दीन के समीप जा बैठी। बदरुद्दीन ने जिन्न के आदेशानुसार बाँदियों आदि को मुट्ठी भर-भर इनाम देना शुरू किया और मुट्ठी भर-भर सिक्के उछालने भी शुरू किए। स्त्रियाँ एक-दूसरे से लड़-झगड़ कर सिक्के उठाने लगीं और बदरुद्दीन की ओर प्रशंसा के भाव से देखने लगीं और उसे आर्शीवाद देने लगीं। वे एक-दूसरे को इशारे से बता रही थीं कि यह सुंदर युवक ही दुल्हन के लायक है, यह कुबड़ा गुलाम उसके लायक नहीं है।
महल के अन्य सेवकों में भी यह बात होने लगी। कुबड़े की कान में कुछ तो भनक पड़ी किंतु वह साफ सुन सका क्योंकि गाने-बजाने की आवाज भी ऊँची थी और सामने तरह-तरह के तमाशे भी हो रहे थे। दुल्हन जब सारे जोड़े बदल चुकी तो गाना-बजाना बंद हो गया। अब सेवकों ने बदरुद्दीन को उठने का इशारा किया। वह उठ कर खड़ा हो गया। अब सारे लोग उस कक्ष से बाहर चले गए और दुल्हन भी अपनी सहेलियों के साथ अपने भवन चली गई। वहाँ उसे सेविकाओं ने सोने के समय के कपड़े पहना दिए। इस कक्ष में गुलाम और बदरुद्दीन ही रह गए।
गुलाम ने क्रुद्ध दृष्टि से बदरुद्दीन को देख कर कहा, 'अब तेरा यहाँ क्या काम है? क्यों खड़ा है यहाँ? जाता क्यों नहीं?' वह बेचारा घबरा कर बाहर जाने को उद्यत हुआ किंतु परी और जिन् ने, जो अदृ्श्य रूप से वहाँ मौजूद थे, उससे कहा कि तुम बाहर जाओ, हम लोग इस कुबड़े ही को भगा देंगे और तुम दुल्हन के कमरे में चले जाना। परी और जिन्न के आश्वासन पर बदरुद्दीन वहीं पर रुका रहा। उसकी जगह कुबड़े को ही भागना पड़ा। हुआ यह कि जिन्न ने बिल्ली का रूप धारण कर लिया और वह बिल्ली कुबड़े को तेज नजरों से देखने लगी। कुबड़े ने डपट कर और हाथ फटकार कर भगाना चाहा मगर वह बिल्ली भयानक रूप से गुर्राने लगी और अंगारे जैसी लाल आँखों से देखने लगी। साथ ही उसने अपना आकार बढ़ाना शुरू किया और गधे जितनी हो गई।
अब कुबड़ा घबड़ाया और भागने को तैयार हुआ। बिल्ली ने और आकार बढ़ाया और भैंस जैसी हो गई और गरज कर बोली, 'ठहर कमीने, तू जा कहाँ रहा है। तेरा अंत निकट है।'
कुबड़ा गुलाम डर के मारे जमीन पर गिर पड़ा। उसने कपड़ों से मुँह छिपा लिया और कहा, 'भैंसे जी महाराज, मुझसे क्या कसूर हुआ है?' भैंसा बना हुआ जिन्न बोला, तेरा यह साहस कि मेरी प्रेयसी से विवाह रचाए? कुबड़े ने कहा, 'मालिक, मुझे क्षमा करें, मुझे मालूम नहीं था कि मंत्री की क्न्या आपकी प्रेमिका है।' भैंसा बोला, 'अच्छा तेरी जान नहीं लूँगा लेकिन जैसा कहूँ वैसा कर। तू इसी तरह आँखें बंद करके रात भर यहाँ रह और जब सवेरा हो जाय तो भाग जाना, इधर मुड़ कर भी नहीं देखना वरना मैं सींगों से तेरा पेट फाड़ डालूँगा।' वह भैंसा  मनुष्य के रूप में गया। उसने कुबड़े को सिर के बल दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और कहा, 'अगर तुमने रात में कभी हिलने-डुलने की कोशिश की तो तुझे इसी दीवार से रगड़ कर खत् कर दूँगा।' फिर परी और जिन्न वहाँ से चले गए।
इधर बदरुद्दीन हँसी-खुशी से दु्ल्हन के भवन पहुँचा। वहाँ एक वृद्धा परिचारका उसे देख कर बड़ी प्रस्न्न हुई और बोली, 'बड़ा अ्च्छा हुआ कि कुबड़े की जगह तुम आए। अब तुम इस कमरे में जाओ जहाँ दुल्हन तुम्हारी प्रतीक्षा में है। उसके साथ रात भर आनंद करना।' फिर वह बदरुद्दीन को कमरे में भेज कर बाहर से कमरा बंद करके चली गई।
मंत्री की पुत्री ने उससे पूछा कि तुम तो मेरे पति के साथी हो, यहाँ कैसे आए। बदरुद्दीन ने कहा, 'मैं तुम्हारे पति का साथी नहीं, स्वयं तुम्हारा पति हूँ।' बादशाह की आदत हँसी-मजाक करने की है इस लिए उसने कुबड़े की बारात सजाई थी किंतु वा्स्तव में उसने तु्म्हारे साथ मेरी शादी करवाई है। उस कुबड़े से सभी हँसी-ठट्ठा करते हैं सो बादशाह ने भी किया। वह वापस घुड़साल में काम करने के लिए भेज दिया गया है। तुम इत्मीनान रखो, वह अब कभी तुम्हें सूरत नहीं दिखाएगा।'
मंत्री की पुत्री जो पहले बड़ी उदास थी अपने पति को देख कर बड़ी प्रसन्न हुई। वह कहने लगी, 'मैं तो दुख और चिंता के मारे मरी जा रही थी, ऐसे कुरूप कुबड़े के साथ जीवन कैसे कटेगा। भगवान का लाख-लाख धन्यवाद है कि उसने मुझे कुबड़े से बचा कर तुम जैसा पति दिया है।'
यह कह कर वह बदरुद्दीन से लिपट गई। बदरुद्दीन भी उसके रूप और प्रेम को देख कर भावविभोर हो गया। उसने अपनी पगड़ी और थैली एक चौकी पर रखा और भारी पोशाक उतार दी। सोते समय पहननेवाली टोपी, एक मिर्जई और तंग मुहरी का पाजामा, ही उसके बदन पर रहा। ज्ञातव् हो कि इतना खर्च करने पर भी उसकी थैली जिन्न के जादू के कारण भरी की भरी रही थी। शयन काल के वस्त्र पहन कर बदरुद्दीन अपनी दुल्हन को बगल में ले कर सो रहा।
रात में जिन्न और परी फिर आए। अब उन्हें शरारत सूझी। उन्होंने तय किया कि बदरुद्दीन को जैसे सोते में बसरा से काहिरा लाए थे वैसे ही कहीं और पहुँचा दिया जाय। चुनाँचे उन्होंने उसे उठा कर दमिश्क नगर की जामा मस्जिद के बाहर लिटा दिया। फिर दोनों वहाँ से चले गए।
सवेरे अजान की आवाज सुन कर दमिश्कवासी जब नमाज पढ़ने आए तो सीढ़ियों पर बदरुद्दीन को सोया देख कर ताज्जुब में पड़े कि यह कौन है और यहाँ क्यूँ सो रहा है। कोई कहता है कि रात में अपनी पत्नी से लड़-झगड़ कर गया है और इतना गुस्से में था कि रात के पहननेवाले कपड़े भी नहीं बदले। किसी ने कहा, यह बात नहीं है, यह रात को बहुत देर तक शराब पीता रहा है और घर का रास्ता भूल कर लड़खड़ाता हुआ यहाँ आया और गिर कर सो गया। इसी प्रकार वे लोग भाँति-भाँति की अटकलें लगाने लगे क्योंकि किसी को पता नहीं था कि वह कौन है और क्यों पड़ा है।
बदरुद्दीन कुछ तो सवेरे की ठंडी हवा से और कुछ चारों ओर घिरे लोगों की आवाज से जाग गया और अपने को अपरिचित जगह एक मस्जिद के सामने देख कर बड़े आश्चर्य में पड़ा और उसने लोगों से पूछा कि यह कौन-सी जगह है और मैं यहाँ कैसे आया। लोगों ने कहा, भाई, यह तो हम लोग भी सोच रहे हैं कि तू कौन है और यहाँ कैसे आया। तुझे तो यह भी नहीं मालूम है कि यह कौन-सी जगह है। यह दमिश्क का नगर है और यह यहाँ की जामा मस्जिद है।' बदरुद्दीन ने कहा, 'बड़े आश्चर्य की बात है कि कल रात मैं काहिरा में सोया था और आज सुबह दमिश्क में पहुँच गया।' उसकी बात सुन कर लोगों ने समझा कि यह पागल है और उसकी जवानी और खूबसूरती को देख कर उसके उन्मादग्रस्त होने पर खेद प्रकट करने लगे।
एक बु्ढ्ढे ने कहा, 'बेटे, तू क्या बातें कर रहा है। यह कैसे हो सकता है कि रात को तुम काहिरा में हो और सुबह दमिश्क  पहुँच जाओ।' बदरुद्दीन ने कहा, 'मैं सच कहता हूँ, पिछली रात मैं काहिरा में था और उससे पिछली रात में बसरे में था।' यह सुन कर आसपास के लोग ठहाका मार कर हँसने लगे और शोरगुल करने लगे। वे कहने लगे, 'तुम बिल्कुल मूर्ख हो या फिर किसी गुप्त कारण से ऐसे बेसिरपैर की बातें कर रहे हो। बड़े ही खेद की बात है कि तुम जैसे भले-चंगे दिखनेवाले आदमी की मानसिक दशा विछिप्त सी हो जाए।' एक आदमी ने कहा, 'तुम खुद ही बताओ यह कैसे संभव है कि कोई रात को काहिरा में सोए और सुबह दमिश्क में जागे। मालूम होता है तुमने सपना देखा है और अभी तक ठीक तरह से जागे नहीं हो, उसी सपनों की दुनिया में खोए हो।'
बदरुद्दीन हसन ने कहा, 'मैं बिल्कुल ठीक कहता हूँ। कल रात को काहिरा में मेरा विवाह हुआ था।' लोग और हँसे और कहने लगे कि यह वाकई अभी तक सपना देख रहा है। बदरुद्दीन बोला, 'नहीं, सच्ची बात है, सपना नहीं है। रात को मेरी दुल्हन ने सात रागों पर सात जोड़े बदले। उसका विवाह एक कुबड़े गुलाम से किया जा रहा था किंतु फिर मेरे साथ कर दिया गया। मैं अ्च्छे वस्त्र और भारी पगड़ी पहने था और मुद्राओं से भरी एक थैली भी मेरे पास थी। मालूम नहीं वे चीजें कौन ले गया और मुझे यहाँ छोड़ गया।'
बदरुद्दीन जितना अपनी बात पर जोर देता था उतना ही लोग हँसते और उसे पागल बताते थे। वह तंग कर एक ओर चला गया तो भीड़ उसके पीछे हो ली। सभी लोग चि्ल्ला रहे थे, 'पागल है।' उसके ऊपर पत्थर भी फेंके जाने लगे। बदरुद्दीन घबरा कर एक हलवाई की दुकान में घुस गया। यह हलवाई पहले पश्चिमी क्षेत्रों में लुटेरों का सरदार था और लूटमार से जीवन निर्वाह करता था। कुछ काल से वह इस निद्यकर्म को छोड़ कर ईमानदारी से रोजी कमाने लगा था। वह बहुत परोपकारी और मिलनसार हो गया था और आम लोग उसके प्रशंसक थे फिर भी उसे क्रुद्ध करना कोई भी नहीं चाहता था क्योंकि उसका अतीत लोगों को मालूम था, उससे लोग भय भी खाते थे।
हववाई ने सब को डाँट-डपट कर भगा दिया और बदरुद्दीन से पूछा कि क्या बात है। उसने फिर अपना पूरा हाल बताया तो हलवाई ने कहा, 'तुम बड़े समझदार लगते हो लेकिन यह कहानी अब और किसी से कहना वरना लोग तुम्हें पागल ही कर छोड़ेंगे। मेरे कोई संतान नहीं है। मैं तुम्हें गोद ले लूँगा और जब तुम मेरे दत्तक पुत्र बन जाओगे तो तुम्हें छेड़ने का किसी को साहस नहीं रहेगा।' बदरुद्दीन को अपने वर्ग से नीचे के आदमी का दत्तक पुत्र बनने के विचार से दुख तो हुआ लेकिन और कोई चारा भी नहीं था। इसलिए उसने हलवाई की बात मान ली। हलवाई ने उसे अच्छे कपड़े पहनाए और मित्रों और संबंधियों को बुला कर गोद लेने की रस् पूरी कर दी। काजी के सामने भी कार्यवाही हो गई। बदरुद्दीन ने हलवाई का काम सीखा और हसन हलवाई के नाम से मशहूर हो गया।

उधर काहिरा में क्या हुआ यह भी सुनिए। मंत्री शम्सुद्दीन की पुत्री जब सवेरे सो कर उठी तो उसने अपने पति को अपने पास पाया। वह समझी कि वह शौच आदि के लिए गया होगा और वह उसकी प्रतीक्षा करने लगी। इतने में मंत्री शम्सुद्दीन शोकाकुल दशा में वहाँ आया क्योंकि वह समझता था कि कुबड़ा गुलाम ही उसका दामाद हो गया है। उसने दुखी स्वर में अपनी पुत्री को पुकारा। उसने जब दरवाजा खोला तो बड़ी प्रसन्नबदन थी। मंत्री को आश्चर्य हुआ क्योंकि गुलाम की प्त्नी होने पर उसे दुखी होना चाहिए था। उसने पूछा, तुम इतनी खुश कैसे हो, मैं तो सोचता था तुम रो रही होगी। लड़की बोली, 'पिताजी, मेरा विवाह कुरूप कुबड़े के साथ नहीं हुआ बल्कि एक अति रूपवान नवयुवक के साथ हुआ है।'                                                                                                          स्रोत-इंटरनेट से कट-पेस्ट

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें