शनिवार, 26 नवंबर 2016

लौट आओ नीनो

हथियारों की बढती होड के दुष्परिणामों से आगाह कराती यह कहानी मैने बहुत पहले लिखी थी। कहानी में शब्दों की संख्या अधिक होने के कारण हर संपादक का आग्रह यह रहा कि मैं इसे संपादित करके छोटा करके भेजूं। मरता क्या न करता क्योंकि छपास कि चाह बहुत प्रबल थी इसलिए संपादक की इच्छानुसार इसे संपादित करके छोटा करके भेजा गया और इसी रूप में यह छपी भी। आज यहां इस कहानी को मूल रूप में प्रस्तुत करके मन की भडास निकाल पा रहा हूं। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी……                                                                                                                                                                                
                                                                                                                                                            वैसे तो आसमान में उडनतश्तरियां दिखने की खबरें कभी-कभी ही सुनार्इ देती थीं पर पिछले दो महीनों में तो जैसे इन उड़नतश्तरियों की बाढ़ ही गयी थी। अब तो हर जगह इन्हीं के चरचे थे। दुनियां भर में लाखों लोगों ने इन्हें देखा था। लोगों ने इन उड़नतश्तरियों से निकलते दो पैरों वाले जीव भी देखे थे। पर लोग इनसे डरते थे आमतौर पर कोर्इ कभी भी इनके पास जाने की हिम्मत नहीं करता था। तरह-तरह की अफवाहें फैल रहीं थीं। कोर्इ किसी विकसित देश पर आरोप लगाता कि ये उनकी चाल है, उन्होंने अन्य देशों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिये ये तश्तरीनुमा यान बनाहैं और उनके अंदर से निकलने वाले ये जीव अति आधुनिक किस्म के रोबो हैं, जिन्हें विशेष प्रकार से जासूसी के लिये विकसित किया गया है। इसके विपरीत अफवाहें ये भी थीं कि ये किसी दूसरे ग्रह से आये यान हैं। वहां के प्राणी हम पृथ्वीवासियों के बारे में बहुत कुछ जानना चाहते हैं इसलिये वे पर्यटन के लिये पथ्वी पर घूमने आते हैं। कभी ये अफवाह भी उडती कि वे अपने ग्रह पर हमारी पथ्वी के जंतुओं और वनस्पतियों की उन जातियों को ले जाना चाहते हैं जो उनके अपने ग्रह पर नहीं पार्इ जातीं हैं कभी कहीं ये सुनने को मिलता कि वे पृथ्वी के जीवधारियों पर कोर्इ प्रयोग करने के लिये आते हैं। क्योंकि कर्इ बार यान जहां उतरता उसके आस पास बहुत सारे जानवर मरे हुपाये जाने के समाचार मिलते। ये भी सुनने को मिलता कि उन जीवधारियों की आंख, नाक, कान या अन्य अंग गायब थे। कोर्इ ऐसे यान देखने का दावा भी करता और बताता कि वे एक मक्के के खेत में उतरे और बहुत सारे भुट्टे तोड़ ले ए, बाजरे की बालियां ले कोर्इ कहता कि उसने उन्हें एक भेड़, भैंस, मुर्गी और खरगोश पकड़ कर, अपने यान में बंद करते देखा। जितने मुंह, उतनी ही बातें। कुछ लोगों का मानना था कि ये लोग हमलावर लुटेरे हैं। ये पृथ्वी की सभ्यता को समाप्त करके उस पर अपनी कॉलोनी विकसित करना चाहते हैं। कर्इ विकसित देशों ने तो अपने परमाणु अस्त्रों के साथ उन पर आकाश में ही हमला कर दियां उनके पर ये अस्त्र उन तश्तरीनुमा यानों का कुछ खास नहीं बिगाड़ पा वे इन तश्तरीनुमा यानों को भेदते ऐसे गुजर गये मानो वे पानी के अंदर से होकर गुजर गये हों। हमले के बाद ये यान ऐसे दिखते मानो कुछ हुआ ही हो।
हमेशा ये यान तश्तरी के आकार में ही दिखते हों ऐसा नही था कभी सिगार की क्ल का यान दिखता तो कभी हंसिये का आकार बनाते एक से अधिक यानों का समूह दिखता, कभी आसमान में चमकीली पट्टी दिखती। फिर भी लोग इन यानों को उडनतश्तरियां ही कहते। जिन लोगों से इन यानों का सामना हुआ था उन्होने बाद में बताया कि यान नजदीक आने पर उनकी कार, हवार्इ जहाज या अन्य वाहन की विद्युत प्रणाली एकदम ठप हो गर्इ थी जो बाद में यान गुजर जाने पर अपने आप ठीक हो थी।
कुल मिलाकर इन उडन तश्तरियों को लेकर लोगो में  कौतूहल, रोमांच और डर का मिला-जुला भाव था। लोगों को लगने लगा था कि पृथ्वी पर जीवन का अंत अब निकट गया है, पुराणों मे वर्णित प्रलय की धारणा अब सच होने वाली है।
वैज्ञानिक इन उड़न तश्तरियों को लेकर बहुत परेशा भी थे और उत्साहित भी। बड़ी बड़ी सभाएं होतीं, व्याख्यान होते, तरह-तरह के अनुमान लगाजाते। इसी तरह की एक छोटी सभा विनय और राजन के स्कूल में भी आयोजित की गर्इ थी। सभा के बाद विनय और राजन कौतूहल और उत्साह से भरे थे।
अगले कर्इ दिन विनय और राजन ने उड़नतश्तरियों के बारे में जानकारी जुटाने मे बिता पत्रिकाओं की कतरनों किताबों जहां से भी उन्हे इन के बारे में जानकारी मिल सकती थी, उन्होंने प्राप्त करने की कोशिश की।
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विनय और राजन का गांव एक पहाड़ की तलहटी में बसा है। पहाड़ों के बीच से निकलती एक छोटी सी जल-धारा गांव के किनारे से गुजरती है। शाम को दोनो दोस्त आकर यहीं बैठते हैं और तरह-तरह की बातें करते हैं। दोनो को यहां से सूर्यास्त देखना बहुत अच्छा लगता है। आज तो सूर्यास्त होने के बाद भी दोनो बातों में लीन थे।
चल राजन घर चलते हैं, सूरज छिप गया। वैसे भी जब से ये उडनतश्तरियों वाली खबरें उड़नी शुरू हुर्इ हैं, मम्मी-पापा सूरज छिपने के बाद घर से बाहर रहने को मना करते हैं।
राजन उठ ही रहा था कि उसकी नजर आसमान में चमकते एक तारे पर पड़ी।
देख विनय वह तारा देख, कितना चमकीला है’,राजन ने उस चमकते तारे की ओर उंगली उठार्इ।
विनय ने पलट कर तारे को देखा, ‘हां पर गौर से देख, यह कितना तेज चल रहा है, यह किसी हवार्इ जहाज की लाइट होगी।
हवार्इ जहाज की लाइट....ऐसी......’ राजन एक टक तारे की ओर देख रहा था जो अब उसे आकार में बड़ा होता लग रहा था।
चल राजन घर चलें’, कह कर दोनो दोस्त घर जाने के लिमुड़े।
चमकीला तारा तेजी से उनकी तरफ बढ रहा था।
भाग राजन भाग, ये कोर्इ तारा नहीं कोर्इ उडनतश्तरी है’, विनय का स्वर कांप रहा था।   
चमकीला तारा अब उनके काफी नजदीक था, बिना आवाज उनकी तरफ आता हुआ, मानो हवा में तैर रहा हो। भागते में राजन को ठोकर लगी और वह गिर गया।
विनय ने सुझाया रोशनी तेजी से इधर रही है, भागना संभव नही है। चलो यहीं छिप जाते हैं।
दोनो दोस्त एक छोटे से गढ्ढे में छिप गये। राजन डर से कांप रहा था।
थोड़ी देर में वह सारा क्षेत्र एक नारंगी रंग को रोशनी से नहा उठा। विनय को लगा कि वातावरण में गरमी बढ़ गयी है। धीरे-धीरे एक बड़ी, घंटी नुमा आकृति वहां पृथ्वी पर आकर टिक गयी। दोनो मित्र सांस रोके यह दृश्य देख रहे थे। थोड़ी देर मे इस घंटी नुमा आकृति में कर्इ स्थानों पर रोशनी की खिड़कियां चमकने लगीं। इन खिड़कियों से रोशनी की तेज धाराएं निकलकर सामने के सारे क्षेत्र को आलोकित करने लगीं।
विनय और राजन सांस रोके चुपचाप सामने का दृश्य देख रहे थे। उस घंटी नुमा यान में एक छोटा रोशनी का दरवाजा चमका। उससे चमकीली, आंखों को चुंधिया देने वाली सफेद रोशनी चमकी। राजन और विनय के श्चर्य की सीमा रही जब उन्होने उस रोशनी भरे दरवाजे से दो पैरों पर चलने वाले जीवों को निकलते देखा। वे संख्या में कुल पांच थे। राजन की तो चीख निकलने वाली ही थी कि विनय ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसे चिल्लाने से रोका।
उस घंटी नुमा यान से निकलने वाले प्रकाश पुंजों की रोशनी में वे पांचो जीवधारी, जहां तक प्रकाश जा रहा था वहां तक, घूमने लगे। वे कभी झुक कर वहां का छोटा पौधा देखते, उसे उखाड़ लेते, उसका उलट-पलट कर निरीक्षण करते और फेंक देते। राजन और विनय गढ्ढे से थोड़ा सा सिर निकाल कर उन्हें देख रहे थे। वे पृथ्वी के आम आदमी से थोड़ा सा छोटे थे। उनके सिर करीब-करीब तिकोने थे। उनके हाथ लम्बे थे जो घुटनेां तक पहुंचते थे। वे सब के सब नंगे थे। उनमे से एक ने अपने सिर पर एक हैलमेट जैसी कोर्इ सुनहरी टोपी पहन रखी थी जिसमे दोनो ओर दो चमकीले टुकड़े लगे थे जो इतना चमक रहे थे मानो उनके नीचे भी कोर्इ रोशनी हो। हैलमेट से एक एंन्टिना जैसी चीज लटकी थी जो चलने पर इधर-उधर हिलती थी। उसकी बांह पर टाइमपीस (अलार्म वाली घड़ी) जैसे कोर्इ दो यंत्र बंधे थे। बाकी चारों प्राणी नंगे सिर थे। उनके सिरों पर बाल नहीं थे। उनके सबके गले में एक मोटी नली के आकार की चीज लटकी थी जिसे वे बार-बार, किसी चीज के निरीक्षण के लिये, आंखों पर लगाते थे।
राजन और विनय बुरी तरह डरे हुथे क्योंकि उनमे से वह हेलमेट वाला जीव उनके गढ्ढे की तरह बढ़ा रहा था। वे दोनो एक दूसरे से लिपट कर, सांस रोके, किसी अनहोनी का इंतजार करने लगे।
एक तेज आवाज हुर्इ और राजन और विनय की चीख निकल गर्इ। हेलमेट वाला जीव आगे बढ़ते हुये उसी गढ्ढे में गिर पड़ा था जिसमें राजन और विनय सांस रोके लेटे थे। गिरने वाले जीव के मुंह से हल्की आवाज निकली मानो कहीं भौरा भनभनाया हो। उसके दोनो हाथों पर बंधी घड़ियों जैसे यंत्र चमकने लगे। सारा गढ्ढा रोशनी से भर गया। राजन और विनय आप में दुबकते जा रहे थे। उनका यह डर और कर्इ गुना बढ गया जब उन्होने देखा कि हैलमेट वाले जीव को गढ्ढे में गिरते देख, उसके चारों साथी भी उसी गढ्ढे में पहुंचे थे। उन यंत्रों की रोशनी मे विनय और राजन ने उनको ध्यान से देखा। उन जीवों की लम्बी बाहों में छोटी-छोटी गद्देदार हथेलियां थी जिनसे तीन-तीन काफी लम्बी उंगलियां और एक अपेक्षाकृत छोटा अंगूठा जुड़ा था। उनके रीर पर कहीं भी बाल नहीं थे। मांस तो मानो उनके रीरों पर था ही नही। गहरी बादामी या करीब-करीब काली खाल, नीचे की हड्डियों पर चढ़ी लगती थी। उनके रीर मे सब से ज्यादा विचित्र और ध्यान खींचने वाली चीज थी, उनकी आंखें। उनकी आंखें उनके चेहरे के मुकाबले काफी बड़ी थीं। आंखों में ज्यादातर भाग में काली पुतली थी। आंख में सफेद भाग तो नाम मात्र को ही था। उनके गाल नहीं थे, चेहरे पर उभरे होठ भी हीं थे। मुंह की जगह बस एक चिरा स्थान भर था। उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि मानो किसी मरियल से  चिम्पांजी के बाल मूंड़ दिये हों।
भौंरे की भनभनाहट जैसी आवाजें फिर होने लगीं। शायद  वे आपस में कुछ बातें कर रहे थे। पर उनकी बात-चीत में ब्द नहीं थे, सिर्फ आवाजें थीं । उन्होने अपने गले में लटके नली जैसे यंत्रों को अपनी बड़ी आंखों पर लगाया और गौर से विनय और राजन को देखने लगे। भौंरे की भनभनाहट फिर हुयी और वे पांचो अपने लम्बे पैरों को सावधानी से रखते हुये, सहमे विनय और राजन की ओर बढ़े।
नहीं’, राजन चिल्लाया हमें मत मारो’, वह रोने लगा।
खबरदार, आगे मत बढ़ना’, विनय चिल्लाया और उसने पास पड़ी लकड़ी उठा ली।
वे पांचो जहां थे वहीं ठिठक गये। विनय का साहस बढ़ा। उसने लकड़ी घुमार्इ, ‘आगे मत बढना वरना सिर फोड़ दूंगा।
वे पांचो अपनी जगह पर निश्चल खडे़ थे। भौंरे की भनभनाहट फिर शुरू हुर्इ। एक बात विनय ने गौर की। जब वह कुछ बोलता है तो हैलमेट वाले जीव के हैलमेट पर लगे चमकीले टुकड़ों में प्रकाश लपकता है।
ओह इसका मतलब ये एक प्रकार की स्क्रीन हैं’, उसने मन ही मन सोचा।
पांचों जीवों ने एक दूसरे की ओर अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से देखा फिर हैलमेट वाले के हैलमेट के सामने की स्क्रीन चमकने लगी। भनभनाहट में एक अस्पष्ट स्वर उभरा, ‘नमस्तेऔर साथ ही उस चमकती स्क्रीन पर भी रोमन अंग्रेजी में उमरा नमस्ते
तुमने कहा ये, नमस्ते’, राजन का मुंह खुला का खुला रह गया।
हां’, भनभनाहट में स्वर भी उभरा और स्क्रीन पर रोमन अंग्रेजी में चमका भी।
तुम हमारी भाषा समझते हो? तुम हिंदी बोल सकते हो?’
नहीं
पर तुम तो बोल रहे हो! जो तुम बोल रहे हो वही हमारी भाषा है, वही है हिंदी
मालूम
पर तुम तो कहते हो तुम हिंदी नहीं बोल सकते?’
सही
क्या मतलब?’
जो तुम बोलते हो हम उसे अपनी भाषा में सुनते हैं फिर हम अपनी भाषा में बोलते हैं तुम उसे अपनी हिंदी में सुनते हो।
मगर कैसे?’
लेंग्वेज ट्रांसफार्मेशन सिस्टम’, उसने अपने हेलमेट के दोनो ओर लगे चमकीले टुकड़ों पर हाथ रखा, ‘और सायकोस्कोप’, उसने अपने गले में पडे नलियों वाले उपकरण को हिला कर दिखाया।
लेंग्वेज ट्रांसफार्मेशन सिस्टम क्या’, राजन लेंग्वेज ट्रांसफार्मेशन सिस्टम के बारे में जानना चाहता था। 
जब तुम बोलते हो कभी तुम्हारे होंठ आपस में छूते हैं तो कुछ ब्द बनते हैं जैसे कि , , , और म। जीभ तालू में आगे छूती है तो , , और बनते हैं। जीभ दांतों को छूती है तो , और बनते हैं। जहां यह जीभ मुंह में टकराती है वहां की तंत्रिकाएं उत्तेजित होती हैं  और दिमाग को सिग्नल भेजती हैं। दिमाग में हर अक्षर के लिये अलग अलग इलेक्ट्रिक चार्ज बनता है जिसे हमारा यह सिस्टम पहचान कर पहले एनालोग मोड में बदलता है फिर  उन्हें हमारी भाशा के ब्दों में बदलता है जिसे हम समझते हैं। जब हम बोलते हैं तो यही क्रिया यह तब तुम्हारे लिये भी दोहराता है। हमारे इलेक्ट्रिक चार्ज इसके स्वर तंत्र में जाते हैं जिन्हें यह  तुम्हारी भाषा के ब्दों में बदल देता है’,  हैलमेट वाला जीव अपनी भनभनाहट भरी आवाज में एक दम साफ हिंदी बोल रहा था।
इसका मतलब तुम मानसिक ऊर्जा का प्रयोग करते हो’, विनय ने आश्चर्य से पूछा।
हां ये साइकोट्रॉनिक या मानसिक ऊर्जा हमारे ग्रह में बहुत कामयाबी से  प्रयोग की जाती है। बाकी प्रकार की ऊर्जा का इस्तेमाल तो हम रोजमर्रा के मामूली कार्यों के लिए भी बहुत कम ही करते हैं।
पर तुमने ये कैसे जाना कि हमारी भाषा हिंदी ही है?’
हमारे इस सिस्टम के कम्प्यूटर में तुम्हारे प्लेनेट का वॉयस-मैप है। तुम अभी बोला था अपनी भाषा में। हमारे कम्प्यूटर ने उसको एनालायज किया और ये पता लगने पर कि जो भाषा तुम बोल रहे हो वह हिंदी है, अपने हिंदी मोड को एक्टीवेट कर दिया। तभी तो हम तुमसे तुम्हारी भाषा में संवाद कर पा रहे हैं।’   
और सायकोस्कोप’, राजन का डर कम होने लगा था।
तुम्हारी सारी भावनाएं जैसे गुस्सा, डर, प्यार, नफरत, खुशी, दुख; तुम्हारे मस्तिष्क के लिम्बिक सिस्टम, हायपोथेलेमस और केन्द्रकों के एक जालिका तंत्र के उत्तेजित होने के कारण पैदा होती हैं। इन भावनाओं के पैदा होते समय इन तंत्रिका कोशिकाओं से जो विद्युत संकेत निकलते हैं उन्हीं को हमारा यह सायकोस्कोप पकड़ लेता है फिर उसे एनालोग मोड में बदल कर अंतत: हमारी भाषा में बदल देता है। तभी हमने जाना कि तुम क्या सोच रहे थे हमारे बारे में। तुम डर रहे हो   हमसे?’
......नहीं तो, हम क्यों डरेंगे, क्यों विनय’, राजन हकलाया।
झूठ, हमारा सायकोस्कोप तो कहता......’
मतलब तुम हमारी भाषा को सुनते ही नही देखते भी हो’, विनय ने सवाल किया।
ठीक
इसका मतलब तुम बहुत सारी भाषाएं बोल सकते हो।
नही हमारी भाषा एक ही है हम वही बोलते हैं, उसे तुम अपनी भाषा में समझते हो।
वही, वही
पर तुम हो कौन?’
दोस्त
दोस्त, पर दोस्त का नाम क्या है?’
नाम .... नाम क्या’, उसके हेलमेट की सारी बत्तियां जल उठीं।
ओह, नाम....नेम.....तुम्हारा आइडेंटिफिकेशन
ओह आइडेंटिफिकेशन, नी...’
क्या, नी.....?
हॉ नी ..... नो
ठीक, तो तुम नीनो हो?’
नो, नो, नी...नी
ठीक है, ठीक है, पर हम तुम्हें नीनो कहेंगे।
ठीक
नीनो तुम कहां से आये हो?’
बहुत दूर एक आकाश गंगा से....करीब 14,000 प्रकाश वर्ष दूर से
क्या’, राजन के स्वर मे विस्मय था इतनी दूर से ! ‘कैसे?’
हमारा शिप चलता प्रकाश से हजारों गुना तेज।
असंभव, प्रकाश से तेज तो कुछ चल ही नही सकता।
तुम्हारी स्थितियों में नहीं पर हमारी स्थितियों में ये हो सकता है क्योंकि हम अपने शिप में साइकोट्रॉनिक इनर्जी इस्तेमाल करते हैं।’ 
साइकोट्रानिक इनर्जी, ये क्या है?’
ये इनर्जी का अलग डाइमेंशन है, अलग आयाम.....मानसिक आयाम...मेंटल इनर्जी। यह मेंटल इनर्जी अपने को तरह-तरह की इनर्जी में बदल सकती है। यही मेंटल इनर्जी हमारे रीर के इनर्जी फील्ड को कंट्रोल करती है, वही इनर्जी फील्ड जिसको तुम लोग कहते हो औरा या  प्रभामंडल।
प्रभामंडल तो हमारे देवताओं की तस्वीरों में मुह के चारों ओर बना होता है
हॉ हर जीव का एक औरा होता है, उसका बायोलोजीकल इनर्जी फील्ड यह तुम्हें नंगी आंखों से तो नहीं दिखता है पर उसे एक खास किस्म की फोटो ग्राफी द्वारा देखा जा सकता है। इस औरा को कन्ट्रोल करती है मेंटल या साइकोट्रॉनिक इनर्जी। इसी इनर्जी के जेनरेटर से चलता है हमारा ये शिप। हम लोगो की ही मेंटल इनर्जी से चार्ज होता है ये जेनेरेटर। इसलिये हमें अपने इस शिप को चलाने के लिये अलग से किसी र्इंधन की जरुरत ही नहीं पड़ती। चूंकि यह  इनर्जी का अलग आयाम है इसलिए गुरूत्वाकर्षण के सामान्य नियम इस पर लागू नहीं होते हैं।  इसलिये हमारा यह  यान भार हीनता की स्थिति में पहॅुच जाता है और जरा से बल से यह बहुत तेजी से गति बढ़ा लेता है और तब पूर्ण रुप से  मेंटल डाइमेंशन में ये प्रकाश की गति से लाखों गुना तेज चल सकता है। इसी कारण हम अपनी गेलेक्सी से तुम्हारे ग्रह तक थोड़े से समय में ही गए।
विश्वास नहीं होता।
तुम साइकोट्रॉनिक इनर्जी के बारे में जानते नहीं इसीलिए ऐसा सोचते हो।
विनय ने घूम कर देखा तो दूर उनके गॅाव के लोग चले रहे थे इस जगह को घेरते, शो करते, मरने-मारने पर उतारू और हथियारों से लैस। क्योंकि उन्हें लगा था कि उनके गांव के दो बच्चे खतरे में हैं।  विनय को  लगा कि अगर उन्हें रोका गया तो गजब हो जाएगा। वह वहीं से चिल्लाया, ‘गोली मत चलाना, हमें कोर्इ खतरा नहीं है, ये लोग दोस्त हैं, दोस्त।
भीड़ का शो थम गया। पर वे लोग अभी बढ़ते रहे थे। राजन चिल्लाया, ‘वहीं रूक जाओ, वहीं। नहीं तो ये लोग घबरा कर भाग जाएंगें।
भीड़ थम गर्इ पर उनका घेरा धीरे-धीरे सिकुड़ रहा था।
राजन का डर समाप्त हो चुका था। वह अब इन जीवों से बात करने के  पूरे मूड में था।
तुम दोस्त हो ये माना पर यहां क्यों आए, घूमने ?
नहीं .... मुश्किल, बहुत मुश्किल में हैं हम लोग।
क्या, क्या तुम भी परेशानी में हो, कैसी परेशानी?’
हमारा प्लेनेट बिलकुल तुम्हारे प्लेनेट जैसा है। तरह-तरह के लोग हैं, कर्इ देश हैं। हर देश एक दूसरे से लड़ता है। क्तिषाली देश कमजोर देश के खिलाफ अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करते हैं। उन्होने औरों को डराने के लिए विनाश के बहुत सारे खतरनाक हथियार बनाए, बहुत सारे खतरनाक हथियार इकठ्ठे किए.....साइकोट्रोनिक इनर्जी के हथियार....एटॉमिक हथियार....एंटी ग्रेविटी हथियार और बहुत सारे निश्चित लक्ष्यभेदी स्मार्ट हथियार।  थोड़ा समय पहले उनमें आपस में भयंकर लड़ार्इ हुर्इ। इसमें इन सारे हथियारों का जम कर प्रयोग किया गया। हमारे पूरे के पूरे ग्रह का विनाश हो चुका है। सारी आबादी या तो मारी जा चुकी है या फिर वहां से भाग चुकी है।  हमारे प्लेनेट को फिर से रहने लायक बनने में जाने कितना वक्त लगेगा, वह कभी दोबारा जीवन पनपने लायक बन भी पाएगा कि नहीं, कोर्इ नहीं जानता।  हम भी वहां से जान बचा कर भागे हैं, अपने इस जेनेरेशन शिप में हमें तलाश है किसी ऎसी जगह की जगह जहां हम फिर से बस सकें और अपनी सभ्यता बचा सकें। अफ़सोस हमने अपने आप को खुद ही मिटा डाला
 ‘अच्छा तभी आप आए धरती की तरफ
हां बहुत सारे ग्रह ढूंढे। एक यही जगह मिली जहां जिंदगी रहती है....जहां जीवन है।
तो रह जाओ यहीं। हम हिन्दुस्तान वाले तो अपने मेहमानों की बड़ी कद्र करते हैं।
नहीं
क्यों ?’
ठीक नहीं ये प्लेनेट भी। हमने बहुत घूम कर देखा। हमारे और ग्रुप भी यही कहते हैं।
क्यों क्या खराबी है यहां नीनो’, राजन बिफर पड़ा।
बिलकुल हमारे प्लेनेट जैसा है यह , वैसा ही खराब।
खराब, तुम्हारे प्लेनेट जैसा खराब?’
हां .... हम आपस में लड़े, हमारी सभ्यता खत्म हो गर्इ आज हम भटक रहे हैं, रहने की जगह की तलाश रहे हैं। तुम्हारे ग्रह के लोग क्या कर रहे हैं, वही जो हमने किया। यहां भी लोग हथियार जमा कर रहे हैं , लड़ रहे हैं।  तुम भी खत्म हो जाओगे हमारी तरह, भटकेागे हमारी तरह, हमारी तरह  तलाश करेागे रहने की जगह। नहीं, नहीं ऐसी जगह नहीं चाहिये जहां बस कर एक बार फिर उजड़ना पड़े, कोर्इ और जगह देखेंगे हम।
विनय आवाक खड़ा था वे पांचो जीव वापस अपने यान की ओर लौट रहे थे। उसका मन हुआ चिल्लाकर कहे, ‘लौट आओ नीनो, लौट आओ। हम बच्चों की पीढ़ी पर एक बार भरोसा तो कर के देखो नीनो। आने वाला कल हमारा है। हम बनायेंगे इस ग्रह को तुम्हारे रहने लायक।
पर वे जीवधारी अपने यान मे बैठ चुके थे। यान उड़ा जा रहा था सुदूर अंतरिक्ष मे किसी ऐसे बसेरे की तलाश में जहां यह हथियारों को होड़ हो, जहां उनकी शांत सभ्यता फिर से पनप सके।

                                               ˜डा0 अरविन्द दुबे

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