मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

हम सब शर्मिंदा हैं (भाग-2)

 रक्षामंत्री सकते में स्मार्ट आयुधों वाली परियोजना का क्या होगा। उस पर जो काम हुआ है उसकी जानकारी तो डाक्टर भंडारकर के कम्प्यूटर रिकार्ड में होगी पर उन फाइलों को खोलने के लिये पासवर्ड तो डाक्टर भंडारकर को ही पता होगा। देश के शीर्षस्थ रक्षा-वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और राजनीतिज्ञों की वीडियो कान्फ्रेंसिंग पर आधारित एक आपात बैठक हुर्इ। मुद्दा यह था कि वह जानकारी जो सिर्फ डाक्टर भंडारकर के दिमाग में है उस तक पहुंचने का या उनकी कम्प्यूटर फाइलों को पढ़ने क्या तरीका है इसके लिए देश के प्रख्यात मस्तिष्क शल्य-चिकित्सक डाक्टर विनय सांघी ने एक तरीका सुझाया डाक्टर सांघी वर्षों से मस्तिष्क की टोपोग्राफी पर काम कर रहे थे।  किस तरह की सूचनाएं मस्तिष्क में कहां संग्रह की जाती हैं और किस प्रकार इलेक्ट्रोड लगाकर उन्हें पुन: प्राप्त किया जा सकता है, इस पर वह वर्षो से बंदरों पर कुछ सफल, कुछ असफल प्रयोग करते आए थे। परंतु इस प्रक्रिया को अब तक कभी किसी मानव पर आजमाया नहीं गया था। इस प्रक्रिया में एक बाधा थी। इस के लिये इसी अवस्था में डाक्टर भंडारकर के मस्तिष्क को आपरेशन करके उनकी खोपड़ी से बाहर निकालना होता। प्रधानमंत्री ने जब सुना तो पहले तो वह इसके लिए राजी नहीं हुए पर यह राष्ट्र की सुरक्षा का मामला था। अंतत: उन्होंने अपनी भावनाओं को दबा लिया और भरे मन से अपने परम प्रिय मित्र पर अमानुषिक प्रयोग करने की अनुमति दे दी। बाकी डाक्टर भंडारकर के परिवार में कोर्इ था ही नहीं जिससे अनुमति लेनी पड़ती। डाक्टर सांघी मनोयोग से अपने काम में जुट गए।  
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आखिर वह दिन ही गया। डाक्टर सांघी ने नया कारनामा कर दिखाया। एक बड़े प्लेटफार्म पर पारदर्शी कांच की मोटी दीवारों वाला एक बड़ा बर्तन रखा था। इसमें पानी जैसा एक द्रव भरा था। यह वही द्रव था जो हमारे मस्तिष्क ने हमेशा बहता रहता है। इसे मस्तिष्क-द्रव या सेरिब्रोस्पाइनल फ्लू कहते है। इसमें डाक्टर भंडारकर का मस्तिष्क तैर रहा था मस्तिष्क की मुख्य धमनी शिरा मोटी पी0वी0सी0 की नलियों से जुड़ी थी जिनके द्वारा डाक्टर भंडारकर के वर्ग का आक्सीजनित रक्त एक हार्ट-लंग मशीन द्वारा उस मस्तिष्क में भेजा जा रहा था। मस्तिष्क में विभिन्न स्थानों पर पतले माइक्रो-इलैक्ट्रोड लगाये थे जिनसे जुड़े बारीक तार बाहर रखे एक कृत्रिम वॉयस-बॉक्स तक आते थे और साथ ही एक कम्प्यूटर में जुड़ते थे।  सामने सेना रक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारी बैठे थे।
                            डाक्टर सांघी ने कम्प्यूटर पर कुछ टाइप किया। यह डाक्टर भंडारकर का अपना व्यक्तिगत कंप्यूटर था।  कंप्यूटर कम्प्यूटर की स्क्रीन पर उभरा,प्लीज एंटर दी पासवर्ड।

डाक्टर सांघी एक कंप्यूटर जैसी दिखने वाली मशीन की ओर मुड़े। मशीन दिखने में तो एक कंप्यूटर के स्क्रीन की तरह दिखती थी पर यह मानव कान का एक कार्यकारी मॉडल थी। इसके सामने बोलने पर इसके अंदर लगे पर्दे में उसी प्रकार कंपन होते थे जैसे कि आवाज सुनने पर मानव के कान में पाए जाने वाले परदे में होते हैं। फिर मशीन इस श्रव्य ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा बदल देती थी। इन इलेक्ट्रिकल इंपल्स को बारीक तारों द्वारा डाक्टर भंडारकर के मस्तिष्क के श्रवण क्षेत्र में लगे में लगे इलेक्ट्रोड्स में पहुंचाया जा रहा था।
डाक्टर सांघी ने स्क्रीन की ओर मुंह करके कहा,डाक्टर भंडारकर
कृत्रिम वॉयस-बॉक्स पर खामोशी थी।
डाक्टर भंडारकर, पास वर्ड प्लीज
कृत्रिम वॉयस-बॉक्स पर अब भी खामोशी थी। डाक्टर सांघी के माथे पर पसीना छलक आया।
डाक्टर भंडारकर को इनाम के तौर पर प्लेजर एरिया पर इंपल्स भेजो, क्विक”, उन्होंने अपने सहायक की ओर मुड़ कर कहा।
सहायक ने अपने सामने रखे की-बोर्ड पर दो-तीन बटन दबा स्क्रीन पर उभरा प्लेजर सेंटर स्टीमुलेटेड।
जार में रखे मस्तिष्क में हल्की हरकत हुर्इ, कृत्रिम वॉयस-बॉक्स में कराहने का स्वर सुनार्इ दिया। डाक्टर सांघी की आखों में चमक आर्इ।
कम आन डाक्टर, कम आन... स्पीक...स्पीक, मोर रिवार्ड इज वेटिंग”, उन्होंने अपने सहायक को इशारा किया। 
सहायक ने फिर स्क्रीन के बटनों से छेड़-छाड़ शुरू कर दी। स्क्रीन पर उभरा प्लेजर एरिया स्टीयुलेटेड टेन टाइम्स।
इस बार फिर जार में रखे मस्तिष्क में कुछ अधिक हरकत हुर्इ। कृत्रिम वॉयस-बॉक्स में कराहने की आवाज आर्इ फिर सपाट यांत्रिक स्वर उभरा,हैलो
डाक्टर सांघी के चेहरे की चमक वापस लौटी, आपकी स्मार्ट-वेपनरी की रिसर्च किस स्टेज में है?
वॉयस-बॉक्स पर खामोशी छार्इ रही।
डाक्टर सांघी के शारे पर सहायक ने मस्तिष्क को फिर प्लेजर के लि स्टीमुलेट किया।
वॉयस-बॉक्स में आवाज उभरी, लास्ट स्टेज
इसका मतलब हमारे पास स्मार्ट-वेपन का  फंक्शनल मॉडल मैाजूद है
यस
रेडी-टू-यूज
यस
उसके डिटेल्स कहां हैं
वॉयस-बॉक्स पर खामोशी थी।
सांघी तेज स्वर में बोले, डिटेल्स?
मेरे कम्प्यूटर में
पासवर्ड?”
वॉयस-बॉक्स पर खामोशी थी।
पासवर्ड?
वॉयस-बॉक्स के स्वर में खरखराहट हुर्इ, सॉरी
पर क्यों?
इंसान की नीयत का भरोसा नहीं।
क्या?
हां, हमने उसे परमाणु हथियार दिए....क्या किया उसने....इंसानियत को खत्म करने के लिये इस्तेमाल किया...आज पूरी मानवता का अस्तित्व खतरे में...
सो व्हाट”, डाक्टर सांघी चिल्ला रहे थे।
स्मार्ट वेपन परमाणु हथियार से भी खतरनाक... इंसान की इन्हें सौंपना बहुत खतरनाक....वह इन्हें पाने के योग्य नहीं...नॉट वर्दी.... ब्रूटल डिसओनस्ट ग्रीडी एनीमल....
ओह शट-अप। पहले तुमने सरकार का अरबों रूपया खराब किया और अब उपदेश दे रहे हो।
मैं लज्जित हूँ.....अशेम्ड....मैने ऐसा प्रोजेक्ट लिया...ऐसा वेपन बनाया पर मैं इसे बेर्इमान इंसानों को नहीं दूंगा.....नो...नेवर
व्हाट?
यू हैव टू, यू हैव टू .....दे ने इस पर अरबों रुपया खर्च किया है.....तुम्हें सब कुछ बताना होगा”, डाक्टर सांघी हांफ रहे थे।
गिव हिम सीवियर पेन सेन्सेशंस, सिवियर”, डाक्टर सांघी अपने आपे से बाहर हो रहे थे।
पूरे सभागार में सन्नाटा छा गया। लोग इस स्थिति के लिये तैयार नहीं थे पर कोर्इ डाक्टर सांघी का विरोध नहीं कर पा रहा था।
सहायक ने बटन दबाए।  स्क्रीन पर कर्इ बत्तियां एक साथ जल उठीं। जार में रखा मस्तिष्क जोरों से हिल रहा था। वॉयस-बॉक्स पर पहले कराहने की आवाज आर्इ जो फिर चीखों में बदल गर्इ। 
बीच-बीच में डाक्टर सांघी चिल्ला रहे थे, पासवर्ड प्लीज, पासवर्ड
चीखों के बीच सुनार्इ दिया,यस...यस..आर्इ विल...स्टाप इट...
ओके
देर तक वॉयस-बॉक्स से कोर्इ आवाज नहीं आर्इ। डाक्टर सांघी ने सहायक को इशारा किया। उसने फिर कुछ बटन दबा मस्तिष्क की फड़कन और वॉयस-बॉक्स की चीखें बढ़ने लगीं।
यस पासवर्ड “, डाक्टर सांघी हांफ रहे थे।
पास...वर्ड...एस...आर...वी...डाट...डाट”, एक चीख के बाद वॉयस-बॉक्स से  आवाज आर्इ।
डाक्टर सांघी का चेहरा खिल उठा।
उन्होने पास रखे डाक्टर भंडारकर के कम्प्यूटर में पास-वर्ड फीड करके एंटर किया। थोड़ी देर बार कम्प्यूटर स्क्रीन पर उभरा, कमांड टेकेन आल फाइल्स डिलीटेड
डाक्टर सांघी सकते में
भंडारकर तुमने मुझे गलत कमांड दिया... गलत कमांड; कम्प्यूटर से सब कुछ मिटा डालने का.... यू रास्कल..... गिव हिम मोस्ट सिवीयर पेन सेंशेशंस, क्विक।
डाक्टर सांघी बहुत गुस्से में थे उन्होंने सहायक की बांह पकड़ कर एक झटके में उसे कुर्सी पर से खींच लिया और उसकी जगह पर जा बैठे। उन्होंने कर्इ बटन एक साथ दबा एक साथ कर्इ बत्तियां जलीं फिर बुझ गर्इं। अबकी बार जार में पड़े मस्तिष्क में कोर्इ हरकत नहीं हुर्इ।  वॉयस-बॉक्स भी खामोश था। डाक्टर सांघी चौंके। वह अपनी कुर्सीसे ऎसे उठे मानो उसमें कोर्इ स्प्रिंग लगा हो। उन्हें लगा जरुर कोर्इ अनहोनी हो गर्इ है। वह भाग कर जार के पास पहुंचे और उन्होने गौर से उसमें पड़े मस्तिष्क को देखा तो अपना माथा पीट लिया। आवेश में उन्होंने मस्तिष्क को इतने तीव्र पेन-सेंशेशंस दे दिए गए थे कि मस्तिष्क के श्रवण एरिया में लगे इलेक्ट्रोड्स के आस पास का सारा क्षेत्र जल कर बेकार हो गया था। वह अपने कदम घसीटते हुए लौटे और अपनी सीट पर आकर मानो ढह गए। सब कुछ खत्म हो गया था।
वॉयस-बॉक्स खामोश था। डाक्टर सांघी अपने कुर्सी के हत्थे पर सिर रखे रोए जा रहे थे और कह रहे थे, देखा गुस्से में मैने तुम्हारे साथ क्या कर दिया...तुम जो मेरे इतने अच्छे दोस्त थे। अगर तुम्हारी स्मार्ट-बेपनरी हमारे पास हो तो एक दिन एक, सिर्फ एक ही आदमी का गुस्सा क्या कर डालेगा ? हो सकता है यह सारी दुनिया ही मिटा डाले। गुस्से में हम क्या कर बैठते हैं हम खुद नहीं जानते। तुमने सच कहा, मानव जाति अभी तुम्हारे स्मार्ट हथियारों को ग्रहण करने के काबिल नहीं हैं। दूसरों पर काबू पाने की सोचने से पहले हमें खुद पर काबू पाना सीखना होगा। डाक्टर भंडारकर तुमने सचमुच एक बार फिर पूरी दुनियां को जीवनदान दिया है। पर हमने जो तुम्हारे साथ किया है उसके लिए हम हमेशा शर्मिंदा रहेंगे।  

1 टिप्पणी:

  1. नया विषय,अच्छी कहानी मगर अन्त अपेक्षित लगता है। मैंने अपनी कहानी गर्भकुण्ड का सौदा में कुछ ऐसा ही अन्त किया था। आदर्शवादी।

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