रविवार, 18 दिसंबर 2016

बार्इसवीं सदी की लड़की

‘‘और कैसा चल रहा है तुम्हारा अफेयर,’’दीदी ने आज पूछ ही लिया।
‘‘अफेयर, कौन सा?
‘‘कौन सा, व्हाट डू यू मीन,’’ अब दीदी के चौंकने की बारी थी, ‘‘कर्इ अफेयर हैं क्या तुम्हारे?’’
‘‘हां अब तक छब्बीस, पर प्रेजेंट में सिर्फ पांच जिनमें मैं सीरियस हॅू,’’ संयत स्वर में उसने उत्तर दिया।
क्या.......क्या पांच अफेयर्स एक साथ! जिनमें तुम सीरियसली इन्वोल्वड हो, डोट जोक वीरा। मैं सीरियसली पूंछ रही हॅू।
‘‘सीरियसली ही बता रही हॅू दीदी, पांच अफेयर्स में मैं सीरियसली इन्वोल्वड हॅू’’
‘‘ओह मार्इ गॉड,’’ दीदी ने माथे पर हाथ मारा।
‘‘क्यों......क्यों.....क्यों, इसमें इतना आष्चर्य करने की क्या बात है? लुक दीदी लुक हियर......दिस इज वेरोनिका, फाइव फीट टेन इंच टॉल........फेयर, स्लिम, स्मार्ट.......फिफ्टी टू के.जी. फिर भी उसके पांच ही ही अफेयर्स हैं.....सिर्फ पांच। इजंट इट पिटी दीदी? सिर्फ पांच अफेयर्स, मेरा तो सहेलियों के सामने सिर र्म से झुक जाता है।
‘‘ओह कम ऑन वीरा, बहुत सारे अफेयर्स होना भी कोर्इ गर्व की बात हुर्इ?
‘‘दीदी आपको तो सौ साल पहले पैदा होना चाहिए था.....इक्कीसवीं सदी में। मैने पढ़ा है कि इक्कीसवीं शताब्दी में लडकियां सारी-सारी जिंदगी एक ही पुरुष के साथ काट देती थीं....रबिश । लगता है दीदी तुम भी उसी पीढ़ी की हो.....लिविंग फॉसिल। बस एक जीजा जी को पकड़ा तो आज तक उन्हीं से चिपकी चली आ रही हो। दीदी ये बार्इसवीं शताब्दी है, वह भी खत्म होने वाली है। अपग्रेड करो, आपने आपको अपग्रेड करो दीदी।’’
‘‘अच्छा जो तुम आजकल हर महीने प्रेमी बदलती फिरती हो, तुम समझती हो यह तुम्हारा विकास है?’’
‘‘ऑफ कोर्स दीदी, मैं खूबसूरत हॅू चार्मिग हॅू मुझ पर लड़के दीवाने हैं फिर क्यों न जिंदगी का मजा लूटूं ........ दिस इज़ लेटेस्ट पैशन दीदी, लेटेस्ट पैशन।’’,
‘‘लेटेस्ट पैशन.......या लेटेस्ट फैशन’’, दीदी ने चिढ़ कर कहा।
‘‘तुम नहीं समझ पाओगी दीदी......यह मेरा प्रिविलेज है, मार्इ प्रिवलेज.......मैं चाहे ये करूं मै चाहें वो करूं मेरी मरजी.........’’
‘‘ठीक है, ठीक है पर सारी जिदगीं यू ही अफेयर ही करती रहेगी या सेटल भी करेगी?’’
‘‘क्यों मेरे सेटल होने में क्या कमी है? मेरे पास अच्छी-खासी नौकरी है, यह दो कमरे का फ्लैट है, थोड़ा-बहुत पैसा बैंक में भी है। क्या कमी है कहां से अनसेटल्ड हॅू  मैं?’’
‘‘वह सब तो ठीक है वीरा पर शादी? तू अब तैंतीस साल की हो गर्इ हैफिर ज्यादा उम्र में शादी.......?’’
‘‘आर्इ ऑब्जेक्ट मार्इ डियर एंटीक दीदी, मेरी नजर में शादी एक औरत की जिदगी का अल्टीमेट अचीवमेंट नहीं है।’’
‘‘क्या’’, दीदी ने पूछा।
‘‘हां दीदी.......अपनी इस मानसिकता से बाहर आओ....... शादी हमारी जिंदगियों की एकमात्र उपलब्धि नहीं है। मैं बार-बार कहती हॅू उस इक्कीसवीं सदी की दकियानूसी मानसिकता से पल्ला झाड़ो।’’
‘‘शादी तुझे दकियानूसी मानसिकता लगती है? माइ डियर वीरा ये पृथ्वी पर जीवन चलते रहने की शर्त है, कंडीशन ऑफ अवर एक्जिस्टेंस’’
‘‘.....न दीदी कंडीशन ऑफ अवर एक्जिस्टेंस शादी नहीं, प्रजनन है.......रिप्रोडक्शन।
‘‘वही तो, तभी तो शादी जरूरी है?’’
‘‘किसने कहा कि रिप्रोडक्शन के लिए शादीजरूरी है? यह एक बीमार मानसिकता है, एक रूढिवादी सोच, जो तुम्हारी जैसे एंटीक पीस को ही मुबारक हो।’’
‘‘देख वीरा मुझे लगता है कि तू गलत है। शादी किसी के साथ बंधन में बंध जाना भर ही नहीं है।’’
‘‘तो?’’
‘‘यह एक दूसरे के बीच भावना और जिम्मेदारी का ट्रांसफर भी है।
‘‘लेकिन सारे विकसित देषों में तो लोग दिन पर दिन शादी से दूर भाग रहे है कि नहीं? वहां ज्यादातर जोड़े लिविंग टूगेदर में बंधे हैं।
‘‘बंधे, बंधते तो लिविग टूगैदर ही क्यों अपनाते? वीरा दरअसल लिविंग टुगैदर अपनाने वाले ये लोग जिम्मेदारी से भागते हैं। दोनों में से कोर्इ भी किसी की या परिवार की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है, डरते हैं ऐसे में संतान हुर्इ तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?’’
‘‘हर रिलेशनशिप में संतान हो क्या यह जरूरी है दीदी.......एक और बुर्जुआ कंसेप्ट.......’’
‘‘हां वीरा जरूरी है, दुनिया चलाने के लिए यह जरूरी है......कंडीशन फोर अवर एक्जिस्टेंस। नहीं तो कुदरत ने इस प्रोसेस को बनाया ही क्यों होता?
ओ के दीदी अब जाने भी दो… यह बताओ तुम क्या कहने आर्इ हो.....जो इतनी देर से उपदेश की झड़ी लगाए हो?’’
‘‘मै तो सिर्फ इतना पूछ रही हॅू कि तू शादी करेगी कि नही?’’
‘‘जरूर करूंगी या कहॅू करनी ही होगी, कंडीशन आफॅ अवर एक्जिस्टेंस, वरना तुम और मां मिल कर मुझे जीने दोगे?
तो कब?
कोर्इ प्रिंस चार्मिंग तो मिले...हेल्दी वेलदी एंड स्मार्ट,’’ वेरोनिका खुल कर हंसी।
‘‘पर कब मिलेगा तुझे तेरा प्रिंस चार्मिंग, तैंतीस साल की तू हो गर्इ। जानती है ज्यादा उम्र में मां बनना खतरनाक होगा, तेरे लिए और तेरे बच्चे के लिए भी…तेरे बच्चे में कोर्इ जन्मजात विकार भी हो सकता है।’’
‘‘ओह कम आन दीदी.......’’
‘‘देख वेरोनिका आज बार्इसवीं शताब्दी में भी शादी का कोर्इ परफेक्ट आल्टरनेटिव नहीं है। आज भी शादी जिंदगी की एक महत्वपूर्ण घटना है। वरना हमसे ओर जानवरों में फर्क क्या?’’
‘‘समझ गर्इ दीदी, आज मां ने पूरी तरह तैयार करके तुम्हें मेरे पास भेजा है। बार्इसवीं ताब्दी में भी माओं की सोच बदली नहीं है। बेटी की शादी करके उसे घर से भगाओ ओर चैन की सांस लो।’’
‘‘बुरा किया क्या? तो तेरा जबाब क्या है?’’
‘‘सोचूंगी.....सोचूंगी दीदी। पर आज तो मुझे डेट पर जाना है .......बाप रे, साढे पांच बज गए अभिषेक वहां कब से वहां मेरा इतंजार कर रहा होगा? मैं चली दीदी, बाय’’, खटपट सेंडिल बजाती वेरोनिका तेजी से बाहर निकल गर्इ।
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आज वेरोनिका का मन उद्वेलित है। दीदी जब भी आती है मन में एक झंझा उठा जाती हैं। कभी-कभी तो उसे भी यही लगता है कि उसकी यह फास्ट लाइफ उसे कहीं नहीं ले जाएगी। इससे तो दीदी की एंटीक जिंदगी ही भली। एक न एक दिन उसे फैसला करना ही होगा, किसी न किसी को अपना हम सफर बना ही लेना होगा। आज भी स्त्री अपनी इस नियति से बाहर कहां निकल पार्इ है? पर ऐसे ही कैसे वह किसी को अपना भविष्य सौंप सकती है? एक छोटी से चीज तक लेते समय तक तो उसे उलट-पलट कर हर तरह से परखना होता है फिर यह तो उसके सहजीवन का प्रश्न है। जब भी वेरोनिका अपने हमसफर के बारे में सोचती है उसकी सोच अभिषेक पर आकर ठहर जाती है।
अभिषेक उसका छब्बीसवां प्रेमी है। आज किसी स्त्री या पुरूष की लोकप्रियता, कमनीयता या डै्शिंग होना उसकी प्रेमिकाओं या प्रेमियों की संख्या से ही नापी जाती है। आजकल तो यह युवाओं का पैशन है जिसके खाते में जितनी अधिक प्रेमकथाएं होती हैं उसे उतना ही ज्यादा स्मार्ट माना जाता है। हालांकि इस प्रकार के अधिकांश प्रेम संबंध अल्पजीवी ही होते हैं। वेरोनिका के कुछ प्रेम संबंध तो कुछ हफ्तों ही चल पाए। अभिषेक के साथ ही वह पिछिले दो वर्षों से डेट कर रही है। जब भी दीदी किसी वीकेंड पर उससे मिलने आती है तो उसे उपदेश की डोज देना नहीं भूलती है। सीधी-सादी है, अपने चौथे प्रेमी से ही शादी रचा कर युवावस्था के चार्म का दी एंड कर दिया। देखने में तो ठीक-ठाक है, कमाती है स्मार्ट है। पर कुछ लोग होते ही ऐसे हैं बहिन जी” ब्रांड के। दूर से आती मेट्रो की आवाज ने वेरोनिका की विचार श्रंखला पर रोक लगार्इ। वह लपक कर कंपार्टमेंट में चढ़ गर्इ।
आज वह अभिषेक के साथ आर-पार का फैसला करने का सोचकर आर्इ थी। सीट मिलते ही उसने एक बार फिर अपने पर्स को खोल कर चेक किया। सारा सामान अपनी जगह पर है, सारी तैयारी पूरी है। आज अभिषेक के बारे में या कहो अपनी जिंदगी के बारे में आखिरी फैसला हो ही जाना है। आखिर अगले अप्रैल में वह चौतीस की हो जाएगी । लो दीदी तुम्हारी रोज-रोज की चख-चख खत्म हुर्इ।
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स्टेशन से जैसे ही वेरोनिका बाहर निकली अभिषेक दिख गया। निकास द्वार के ठीक सामने बाइक पर बैठ कर एक ओर पैर टिकाए खडा था। उसे देखते ही वेरोनिका की दिल की धडकनें बढ़ गर्इं। वैसे भी अभिषेक को देखते ही वेरोनिका पर खुमार या चढ़ने लगता है पर आज की बात कुछ अलग थी। आज यह मिलन की उत्तेजना नहीं थी, शायद कोर्इ चोर था जिसे वह अपने दिल में छिपा कर लार्इ थी।  
‘‘हाय’’, दूर से ही अभिषेक ने हाथ हिलाया। जबाब में वेरोनिका सिर्फ मुस्करार्इ। पास आते ही अभिषेक ने उसका हाथ थाम लिया। वेरोनिका बिना कुछ बोले अभिषेक की बाइक पर बैठ गर्इ। 
‘‘चलें’’ अभिषेक ने पूछा।
‘‘कहां?’’
‘‘जहां तुम कहो’’
‘‘ओहो! आज तो बडे रोमाटिक हो रहे हो्……… एंड सबमिसिव’’
‘‘आर्इ एम आलवेज, खास कर जब तुम साथ हो’’
‘‘झूठे’’, वेरोनिका ने धीरे से अभिषेक की पीठ पर चपत लगार्इ।
‘‘पहले कुछ खाने चलें वीरा, पेट में चूहे कूद रहे हैं। तुम्हारे आने के एक्साइटमेंट में सवेरे से कुछ खाया नहीं है।’’
‘‘ओह कम आन, डोंट-प्रेंक एज टीन एज लवर।’’
‘‘ओके जैसी आपकी मर्जी, आइ एम आलवेज एट योर सर्विस’’, अभिषेक ने बाइक आगे बढ़ार्इ।
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 खाना अच्छा था पर वेरोनिका ढंग से खा नहीं पा रही थी। न जाने क्यों उसे घबराहट हो रही थी।
‘‘तुम ठीक तो हो वीरा?’’
‘‘हां-हां क्यों’’
‘‘यूं ही, आज तो तुम ऐसे बिहेव कर रही हो जैसे कि कार्इ टीन एज़ लड़की अपनी पहले डेट पर आर्इ हो, घबरार्इ... शरमार्इ सी’’
‘‘नही तो’’
‘‘वही तो
“अच्छा एक बात बताओ वीरा इतने लम्बे समये से हम लोग मिल रहे हैं पर तुमने मेरे सवाल का अभी तक जबाब नहीं दिया’’
‘‘कौन सा सवाल?’’
‘‘अच्छा जी तो हालात यह हैं कि आपको सवाल तक याद नहीं है। लो फिर दोहराता हॅू अपना सवाल, मुझसे शादी करोगी वीरा......आर्इ लव यू’’
‘‘नॉटी’’, वेरोनिका हंसी।
‘‘......न आर्इ एम सीरियस, वीरा शादी करोगी मुझसे?
‘‘सोचने का थोड़ा वक्त दो मुझे’’
‘‘ओह कम आन, हम पिहले दो सालों से एक दूसरे को जानते हैं……मिल जुल भी रहे हैं  और कितना वक्त लोगी तुम?
‘‘समझने की कोशिश करों अभि, प्लीज।’’
‘‘पर आज कोर्इ डेडलाइन तो दो.....आखिर कब तक....?’’
‘‘.के. नेक्स्ट वीकेंड’’
‘‘रियली! ओह मार्इ गॉड वीरा, आर्इ लव यू’’ अभिषेक खुशी से पागल हो रहा था। वेरोनिका गहरी नजरों से अभिषेक कोदेख रही थी।
‘‘वीरा, डू यू वांट हु हैव सम फन? मैं आज बहुत खुश हूं..........प्लीज......लेट्स हैव........’’
‘‘ओ के’’
‘‘क्या!’ अभिषेक का मुंह विस्मय से खुला रहा गया, ‘‘फिर से कहो वीरा’’
‘‘हां, हां हां’’, क्यों, इसमें ताज्जुब की क्या बात है, आय एम नॉट सो आर्थोडोक्स, यू नो इट।’’
‘‘नहीं-नहीं बात नहीं। यह प्रपोजल तो मैने तुम्हें कर्इ बार दिया पर आज तक तो तुमने हां नहीं कहा?
‘‘तभी तो आज हां कहा न’’
‘‘तो फ्लैट पर चलें’’, अभिषेक ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। वेरोनिका ने कोर्इ जबाब नहीं दिया बस अभिषेक के बढ़े हाथ को थाम लिया।
थोड़ी देर में वे दोनों अभिषेक के फ्लैट में थे। फ्लैट में अभिषेक अकेला ही रहता था। बार्इसवीं ताब्दी के इस समय में वैसे तो विवाह पूर्व या विवाहेतर शारीरिक संबंध कोर्इ टैबू या वर्जित फल नहीं थे पर वेरोनिका अभिषेक के साथ इससे अब तक बचती आर्इ थी क्योंकि ऐसे संबंधों  के अपने रिस्क थे इंफेक्शन से प्रेग्नेंसी तक। बार्इसवीं शताब्दी के युवा शारीरिक संबंधों ्के मामले में आमतौर पर उस समय के अल्ट्रा परफेक्ट ह्यूमन लाइक रोबोट्स के साथ को प्राथमिकता देते थे। उसे मनमाफिक प्रोग्राम करिए और बस, सब कुछ आपके नियत्रण में।
‘‘क्या सोच रही हो वीरा’’, अभिषेक ने अपने हाथ वीरा के कधों पर रखे, ‘‘आइ लव यू वीरा’’, उसकी आंखों में झाकते हुए अभिषेक ने धीरे से कहा।
वेरोनिका की आंखें चमक उठीं। वह पंजों के बल उचकी और उसने अभिषेक के होठों को अपने होठों से जकड़ लिया। यह पकड़ इतनी मजबूत थी कि अभिषेक को तकलीफ होने लगी। वह कसमसाया, ‘‘वीरा।’’
वीरा को जैसे होश आया उसने अभिषेक के होठों की पकड ढ़ीली की और मुस्कारार्इ।
ओफ्फो मार डाला, इतना पैशन, आज तो खुदा खैर करे’’, अभिषेक अपने होठ मल रहा था।
वेरोनिका कुछ बोली नहीं उसने हाथ का इशारा किया और भागते हुए बाथरूम में प्रवेश कर दरवाजा बंद कर लिया।
बाथरूम में जाकर वेरोनिका ने अपने पर्स से वह पॉलीथीन बैग निकाला जो उसकी सहेली उसे अपने जेनेटिस्ट अंकल से लाकर दे गर्इ थी। अपने मुंह में अब तक भरी लार उसने इस बैग में उगल दी। अपने होठों के बैग के साथ मिले द्रव से उसी बैग में धो दिया ताकि अभिषेक के होठों के उस प्रगाढ़ चुंबन के बाद अभिषेक के होठों की जो कोशिकाएं उसके होठों से चिपक गर्इं हों वह भी छूट कर उसे बैग में गिर जाएं।
कुछ मिनटों बाद जब बरोनिका बाथरूम से वापस आर्इ तो सामान्य लग रही थी।
‘‘क्या हुआ, सब ठीक तो है न’’, अभिषेक ने चिंतातुर स्वर में पूछा।
‘‘हुं, अभि आइ एम नॉट फीलिंग वैल’’
‘‘होता है, होता है, एक्साइटमेंट में कभी-कभी ऐसा होता है।’’
‘‘नहीं-नहीं अभि कुछ गड़बड़ है.......आज नहीं’’
‘‘प्लीज वीरा’’, अभिषेक ने याचना की।
‘‘नो अभिषेक, आज नहीं फिर कभी’’, वीरा ने दृढ़ स्वर में कहा।
अभिषेक के चेहरे  पर खीझ दिखने लगी थी पर संयत होते हुए बोला ‘‘जैसी तुम्हारी मर्जी।’’
‘‘थैंक्यू अभि, क्या तुम मुझे मेट्रो स्टेशन तक छोड दोगे?’’
‘‘योर हम्बल सर्वेंट’’, अभिषेक मुस्कराया।
‘‘यू नॉटी.....’’, वेरोनिका हंसी।
‘‘चलें वीरा....यू आलवेज डिसअपोइंट भी ........वैल नेक्ट टाइम।’’
मेट्रो स्टेशन पर वेरोनिका को छोड़ते समय अभिषेक ने पूछा, ‘‘वीरा मेरे सवाल का जबाब कब मिलेगा?’’
‘‘नेक्स्ट संडे, पॉजिटिवली’’
‘‘रियली!  मैं फोन करूंगा’’
‘‘.के.’’, वीरा ने कहा और स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ने लगी।
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‘‘मैं अंदर आ सकती हॅू’’ साइटोजीन लेबोरेटरी के मुख्य आफिस के गेट पर खड़े होकर वेरोनिका ने पूछा
प्रश्न के उत्तर में अंदर कुसी पर बैठे अधेड़ व्यक्ति ने प्रश्नवाचक निंगाहों से वेरोनिका की ओर देखा।
‘‘मैं वेरोनिका, नेहा की फ़्रें......उसने आपको फोन किया होगा ?
‘‘ओह हां, कम कम.....बैठो…… बस एक मिनट मैं इस फाइल को देख लूं।
वेरोनिका सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गर्इ। साइटोजीन देश की निजी क्षेत्र की जानी-मानी जेनेटिक्स प्रयोगशाला है जो मानव जीनोम की मैपिग और स्वीकेंसिग करती है।  
प्राणियों का शरीर र्इंट़ों जैसी संरचनाओं का बना होता है इन्हें कोशिकाएं कहते हैं। हर कोशिका में एक केंद्रक होता है जिसमें धागे के आकार की एक दूसरे में उलझी रचनाएं होती हैं जिन्हे क्रोमोसोम कहते हैं। ये क्रोमोसोम एक प्राकर के जैविक अम्लों के मिलने से बनते हैं जिन्हें डी.एन.. कहा जाता हैं। डी.एन.. के समूहों को ही जीन कहते हैं जो तरतीब से इन क्रोमोसोमों पर स्थित होते हैं। हमारे शरीर के हर काम के लिए, बनावट के लिए, यहां तक कि व्यक्तित्व के विकास के लिए जीन समूह ही जिम्मेदार होते हैं। कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो इन जीन समूहों में विकृतियों की वजह से ही पैदा होती हैं। बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी में वैज्ञानिकों की इन जींस में रूचि बढ़ी। उन्होनें इन पर अनुसंधान करने शुरू किए। इक्कीसवीं ताब्दी में जब पूरे मानव जीनोम का अध्ययन और वि्श्लेषण किया गया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। लोगों को पता चला कि यह तो मानव रीर की खुली किताब है जिससे किसी व्यक्ति के बारे में कुछ भी जाना जा सकता है। मसलन उसका व्यक्तित्व कैसा होगा, उसके अपने जीवन काल में कब-कब और कौन-कौन सी बीमारी होने की संभावनाएं हैं, उसका व्यवहार कैसा होगा? अब तो व्यवसायिक कंपनियों ओर प्रयोगशालाओं की इस क्षेत्र में रूचि बढ़ने लगी। पहले-पहल जब मानव जीनोम का अध्ययन किया गया था तो इस पर अरबों रूपए खर्च हुए थे पर इस बार्इसवीं सदी में तो अंगूठे के आकार के ऑटोमेटिक मानव जीनोम स्वीकेंसर बाजार में उपलब्ध हैं जिनसे किसी व्यक्ति के जीनोम का पूरा ब्योरा कुछ घंटों में ही मिल जाता है, वह भी सिर्फ कुछ हजार रूपए में। हालांकि हर देश की सरकार ने सिर्फ आनुवंशिक बीमारियों की जांच-पड़ताल के लिए ही मानव जीनोम की मैपिंग की अनुमति दी है और यह भी नियम बनाया है कि इससे मिली जानकारी के आधार पर किसी के प्रति कोर्इ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। पर चोरी-छिपे बहुत कुछ हो रहा है। नौकरी पर रखने से पहले नियोक्ता गुपचुप प्रत्याशियों का जीन विश्लेषण करवा लेते है। ओैर इस आधार पर योग्य और अयोग्य कर्मचारियों की छटनी करते हैं। बीमा कंपनियां इससे उनके क्लाइंट को भविष्य में होने वाली बीमारियों की जानकारी करती हैं और जिन्हें भविष्य में कोर्इ गंभीर बीमारी होने वाली होती हैं उनका या तो बीमा ही नहीं करतीं हैं या उनसे ज्यादा प्रीमियम मांगतीं हैं। और तो और लोग जीवन साथी के चुनाव तक में चोरी-छिपे या बता कर इसका प्रयोग करने लगे हैं। व्यावसायिक क्षेत्रों में इस प्राकर की अवैध हयूमन जीनोम स्वीकेंसिग का कोड वर्ड हैं ‘‘जीन कुंडली’’। साइटोजीन जैसी बहुत सारी कंपनियां दिखावे के लिए तो आनुवंशिक बीमारियों के लिए ही जीनोम स्वीकेंसिंग करती हैं पर उनकी असली आमदनी तो इसी प्रकार की अवैध जीन कुंडलियों से ही है।
 कुर्सी पर बैठा वह अधेड़ व्यक्ति अपनी फाइल बंद कर के वेरोनिका की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘कहिए’’
‘‘वो नेहा ने आपको फोन किया होगा’’
‘‘हां-हां...आप वेरोनिका हैं न आपको अपने फियांसे अभिषेक की जीन कुंडली चाहिए?’’
‘‘जी’’
‘‘सेंपल लार्इं हैं’’
‘‘जी’’, वेरोनिका ने अपने हैंड बैग से एक प्लास्टिक का लिफाफा निकाल कर उस व्यक्ति की ओर बढ़ाया। लिफाफे की तली में थोड़ा सा गंदला तरल पदार्थ पड़ा था। अधेड़ व्यक्ति ने लिफाफे को हिला कर उसमें भरे तरल की जांच की।
 ‘‘स्पिट सेंपल’’
‘‘जी’’
‘‘सेंपल ठीक से तो लिया है न?
‘‘जी, मैने अभिषेक को इतने फोर्स से किस किया था कि उसका होंठ ओर जीभ टूटकर मेरे मुंह में आने से जरा सी ही बची थी’’, वह हंसीं।
‘‘गुड, तब तो काम बन जाएगा। आप ऐसा करिए बाहर काउंटर पर इसकी फीस जमा कर दीजिए और अपना पता लिखा दीजिए। हम परसों तक आपको आपके फियांसे की जीन कुडली डिलीवर कर देंगे।
‘‘थैंक्यू’’, वेरोनिका ने कहा और आफिस से निकल गर्इ।

हालांकि साइटोजीन लैब से बरोनिका को यह आश्वासन मिला था कि वे अभिषेक की ‘‘जेनेटिक मैपिंग’’ की रिपोर्ट उसके पास स्वयं ही भिजवा देंगे पर उसे इंतजार करना मुश्किल हो रहा था। दूसरे उसने अभिषेक से रविवार तक उसके प्रपोजल का जबाब देने का वादा भी किया था। इसलिए तीसरे दिन वह स्वयं ही साइटोजीन लैब के आफिस पहुंच गर्इ। 

 ‘‘आपकी रिपोर्ट तैयार है हम खुद ही इसे आपके पास भिजवा देते। बेकार ही आपने यहां आने की तकलीफ उठार्इ’’, कमरे में पहुचते ही उस प्रयोगशाला के अधिकारी ने कहा।
‘‘बस ऐसे ही, उत्सुकतावश मैने सोचा कि मैं ही रिपोर्ट पता कर लूं। आपसे कुछ समझना होगा तो वह भी समझ लूंगी।
अधिकरी ने फाइलों के ढेर से एक गहरे लाल रंग की फाइल छांटी और उसके पहला पन्ना देखकर फाइल वेरोनिका की ओर बढ़ा दी।
‘‘सब ठीक तो है सर’’, वेरोनिका ने पूछा।
‘‘सब कुछ ठीक नहीं है, प्रॉब्लम तो बड़ी है। ऐसा करें आप हमारे जेनेटिक एक्सपर्ट से मिल लें.........इलेवंथ फ्लोर रूम इलेवन जीरो वन।’’
वेरोनिका की धक्का सा लगा, तो क्या इस बार भी?
उसने फाइल खोली। यह बहुत से पन्नों का एक रिकार्ड था। जिस पर तरह-तरह के रंगों में कैपीटल में ए.टी.जी.सी. लिखे थे जो उसकी समझ से परे थे। सबसे उपर वाले पेज पर रिपोर्ट थी ‘‘क्रोमोसोम फोर कंटेंस फिफ्टी प्लस न्यूक्लियोटाइड रिपीट ऑफ हंटिंगटिन जीन। इंप्रेशन-मैक्सिमम चांस ऑफ हंटिंगटिंस डिसीज डेवलेपमेंट। एडवाइस-कंसल्ट योर फिजीशियन इमीडिएटली।
वेरोनिका ने प्रश्नवाचक निगाहों से अधिकारी की ओर देखा।
‘‘आप स्पेशलिस्ट से मिल लें.......प्लीज।’’
स्पेशलिस्ट के कमरे में पहुंच कर वेरोनिका ने अपने हाथ की फाइल उसके सामने रख दी। ये तो उसकी सहेली के वही अंकल थे जिन्हें वह सैंपल दे गर्इ थी।’’
‘‘ओह यू आर वेरोनिका न...... एम आर्इ राइट?’’
‘‘यस अंकल....यह क्या है, कुछ एक्सप्लेन करिए।’’
‘‘हुं’’, उन्हों ने फाइन खोल कर रिपोर्ट पढी, ‘‘वेरोनिका आर्इ थिंक तुमने बायोलोजी तो पढी है’’
‘‘जी’’, वेरोनिका ने थूक निगला।
‘‘यह एक प्रकार की न्यूरोडीजेनरेटिव बीमारी है’’
‘‘मतलब?’’
‘‘इसमें दिमाग की कोषिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं। अक्सर इस बीमारी के लक्षण 35 से 45 वर्ष की उम्र में दिखने लगते हैं।’’
‘‘कैसे लक्षण?’’
‘‘ऐसे रोगियों के हाथ-पैर मांसपेशियां अपने आप चलती रहती हैं जिन पर रोगी का कोर्इ नियत्रण नहीं रह जाता है। वह तरह-तरह से हाथ पैर नचाता है, मुंह बनाता है, जिसे वह चाह कर भी रोक नहीं पाता। ऐसे लगता है जैसे कि वह कोर्इ फूहड़ नाच, नाच रहा है।
 ‘‘बस?’’
‘‘अरे नहीं, वेरोनिका धीरे-धीरे उसकी बोलने, चलने, निर्णय लेने की क्षमता, याददाश्त; सब बुरी तरह प्रभावित होन लगती है।’’
‘‘ओह मार्इ गॉड’’
‘‘हां वेरोनिका लक्षण उत्पन्न होने पर ज्यादा से ज्यादा बीस साल के अंदर ऐसे सारे रोगी निमोनिया या दिल की बीमारी से मर जाते हैं या फिर वे आत्महत्या कर लेते हैं।
‘‘पर अंकल इस मामले में क्या गुंजायश है?’’
‘‘अभिषेक के क्रोमोसोम में पचास से ज्यादा ट्राइन्यूक्लियोटाइड रिपीट है। मतलब इसे तो बीमारी होने की संभावना बहुत ज्यादा है।’’
‘‘यह ट्राइन्यूक्लियोटाइड रिपीट क्या है?
‘‘वेरोनिका तुम जानती होगी कि जीन, डी.एन.. अणुओं के बने होते हैं और डी.एन.. अणु में चार प्रकार के बेस पेयर्स होते है।’’
‘‘हां-हां पता है, एडीनाइन, साइटोसीन, थाइमीन और गुआनीन।’’
‘‘हां, हर मुनष्य में क्रोमोसोम संख्या चार पर हंटिंग्टिन जीनों का एक जोड़ा पाया जाता है। इस जीन में डी.एन.. के तीन बेस पेयर्स-साइटोसीन एडीनाइन-गुआनीन की तिकड़ी की कर्इ बार पुनरावृत्ति होती है।’’
‘‘अच्छा इसी को ट्राइन्यूक्लिओटाइड रिपीट कहते हैं।’’
‘‘हां, एक समान्य जीन में इस तिकड़ी की ज्यादा से ज्यादा 26 बार पुनरावृत्ति होती है।
“ओ के”
सामान्य मानव रीर में यह हंटिंग्टिन जीन मस्तिष्क और तंत्रिकाओं के विकास के लिए बहुत जरूरी होता  है।’’
‘‘पर हंटिंग्टन डिसीज में?’’
‘‘हां जब किसी म्यूटेशन से इस जीन में साइटोसीन एडीनाइन-गुआनीन की यह तिकड़ी 40 से ज्यादा बार रिपीट होने लगती हैं तो यही परिवर्तित जीन हंटिंग्टिन डिसीज उत्पन्न कर देता है।’’
“अभिषेक के मामले में तो यह रिपीट पचास से भी ज्यादा है’’, वेरोनिका का दिल बैठता जा रहा था।
‘‘हां, इसका मतलब है कि अभिषेक को हंटिंग्टिन डिसीज होने की संभावना लगभग -प्रतिशत हैं और यह कम उम्र में ही दिखार्इ देने लगेगी।’’
वेरोनिका के सब्र का बांध टूट रहा था। उसके स्तर में नमी आती जा रही थी, ‘‘इसका कोर्इ इलाज तो होगा अंकल?’’
‘‘सॉरी, अब तक तो नहीं’’
‘‘थैंक्यू अंकल’’, वह उठी और अपने आंसुओं छिपाने का असफल प्रयास करते हुए मुड़ कर कमरे से बाहर चली गर्इ।
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घर पहंच कर वेरोनिका अपने बिस्तर पर ढ़ह गर्इ। तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी। फोन उठाया तो उस की स्क्रीन पर अभिषेक का नाम चमक रहा था। उसे याद आया आज अभिषेक ने अपने प्रयोजल का जबाब मांगा था।
‘‘क्या करूं........नहीं........नही.......भावनाओं के आवेग में बह कर तो वह अपनी जिंदगी बरबाद नहीं कर सकती। मैं दीदी की तरह इक्कीसवीं सदी की एंटीक पीस नहीं हूं, मैं बार्इसवीं सदी की लड़की हूं ……… प्रेक्टीकल और मैच्योर।
‘‘सॉरी अभिषेक ......सॉरी, आफ्टर आल इट्स माइ लाइफ........गुड बार्इ......अभिषेक............गुड बार्इ फार एवर’’, उसने मन ही मन कहा।
अभिषेक की काल बार-बार आ रही थी। वेरोनिका ने फैसला कर लिया कि वह इस फोन को कभी रिसीव नहीं करेगी।
                                                                                                    डा0 अरविन्द दुबे

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 05 अगस्त 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    

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  2. बड़ी रोचक है कहानी -- और ये बिंदास लड़की कौतुहल से भरी है ---- बहुत बधाई आपको -- इस तरह की कहानी पहली बार पढ़ रही हूँ --------- शुभकामना

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