सिंदबाद
ने कहा कि
मेरी विचित्र दशा
थी। चाहे जितनी
मुसीबत पड़े मैं
कुछ दिनों के
आनंद के बाद
उसे भूल जाता
था और नई
यात्रा के लिए
मेरे तलवे खुजाने
लगते थे। इस
बार भी यही
हुआ। इस बार
मैंने अपनी इच्छानुसार
यात्रा करनी चाही।
चूँकि कोई कप्तान
मेरी निर्धारित यात्रा
पर जाने को
राजी नहीं हुआ
इसलिए मैंने खुद
ही एक जहाज
बनवाया। जहाज भरने
के लिए सिर्फ
मेरा माल काफी
न था इसीलिए
मैंने अन्य व्यापारियों
को भी उस
पर चढ़ा लिया
और हम अपनी
यात्रा के लिए
गहरे समुद्र में
आ गए।
कुछ
दिनों में हमारा
जहाज एक निर्जन
टापू पर लगा।
वहाँ रुख पक्षी
का एक अंडा
रखा था जैसा
कि एक पहले
की यात्रा में
मैंने देखा था।
मैंने अन्य व्यापारियों
को उसके बारे
में बताया। वे
उसे देखने उसके
पास गए। उस
अंडे में से
बच्चा निकलने वाला
था। जब जोर
की ठक-ठक
की आवाज के
साथ बच्चे की
चोंच अंडा तोड़
कर निकली तो
व्यापारियों को सूझा
कि रुख के
बच्चे को भूनकर
खा जाएँ। वे
कुल्हाड़ियों से अंडा
तोड़ने लगे। मेरे
लाख मना करने
पर भी वे
न माने और
बच्चा निकालकर उसे
काट-भून कर
खा गए।
कुछ
ही देर में
चार बड़े-बड़े
बादल जैसे आते
दिखाई दिए। मैंने
पुकारकर कहा कि
जल्दी से जहाज
पर चलो, रुख
पक्षी आ रहे
हैं। हम जहाज
पर पहुँचे ही
थे कि बच्चे
के माता-पिता
वहाँ आ गए
और अंडे को
टूटा और बच्चे
को मरा देख
कर क्रोध में
भयंकर चीत्कार करने
लगे। कुछ देर
में वे उड़कर
चले गए। हमने
तेजी से जहाज
एक ओर भगाया
कि रुख पक्षियों
के क्रोध से
बचें किंतु कोई
लाभ नहीं हुआ।
कुछ ही देर
में रुख पक्षियों
का एक पूरा
झुंड हमारे सिर
पर आ पहुँचा।
उनके पंजों में
विशालकाय चट्टानें दबी थीं।
उन्होंने हम पर
चट्टान गिराना शुरू किया।
एक चट्टान जहाज
से थोड़ी दूर
पर गिरी और
उससे पानी इतना
उथल-पुथल हुआ
कि जहाज डगमगाने
लगा। दूसरी चट्टान
जहाज के ठीक
ऊपर गिरी और
जहाज के टुकड़े-टुकड़े हो गए।
सारे व्यापारी और
व्यापार का माल
जलमग्न हो गया।
मुझे ही प्राण
रक्षा का अवसर
मिला और मैं
एक तख्ते का
सहारा लेकर किसी
तरह एक टापू
पर पहुँचा।
तट
पर कुछ देर
तक सुस्ताने के
बाद मैं उस
द्वीप पर घूम
फिर कर देखने
लगा कि क्या
किया जा सकता
हैं। मैंने देखा
कि वहाँ सुंदर
फलों के कई
बाग हैं। कई
पेड़ों के फल
कच्चे थे किंतु
बहुत-से फल
पके और मीठे
थे। कई जगह
मैंने मीठे पानी
के स्रोत देखे।
मैंने पेट भरकर
पके फल खाए
और एक स्रोत
से पानी पिया।
रात हो गई
थी इसीलिए मैं
एक जगह पर
सोने के इरादे
से लेट गया।
किंतु मुझे नींद
न आई। निर्जन
स्थान का भय
भी था और
अपने दुर्भाग्य पर
दुख भी था।
मैं रोता था
और स्वयं को
धिक्कारता था कि
इतनी धन-दौलत
होने पर भी,
जिससे आयुपर्यंत सुख
और ऐश्वर्य के
साथ रह सकता
था, यह फिर
यात्रा करने की
मूर्खता क्यों की। कभी
यह भी सोचने
लगता था कि
इस द्वीप से
किस तरह निकलकर
बाहर जाया जा
सकता है।
इतने
में सवेरा हो
गया। मैं भी
अपनी उधेड़बुन को
छोड़कर उठ खड़ा
हुआ और फलवाले
पेड़ों को घूम-घूमकर देखने लगा।
कुछ ही देर
में मैंने देखा
कि वहाँ किनारे
एक बूढ़ा बैठा
है। वह बहुत
कमजोर लगता था
और मालूम होता
था कि उसकी
कमर से नीचे
का भाग पक्षाघात-ग्रस्त है। पहले
मैंने सोचा कि
यह भी मेरी
तरह का कोई
भूला-भटका यात्री
है जिसका जहाज
डूब गया है।
मैंने उसके समीप
जाकर उसका अभिवादन
किया। उसने कुछ
उत्तर न दिया,
केवल सिर हिलाया।
मैंने
उससे पूछा कि
तुम क्या कर
रहे हो। उसने
मुझे संकेत में
बताया कि चाहता
है कि मैं
उसे अपने कंधों
पर बिठाकर नहर
पार करा दूँ।
मैंने सोचा कि
शायद उस पार
यह मेरे कंधों
पर चढ़कर पेड़ों
से फल तोड़ना
और खाना चाहता
है। मैंने उसे
अपनी गर्दन पर
चढ़ा लिया।
अब
मुझे वह बात
याद आती है
तो हँसता हूँ।
नहर के पार
जाकर मैंने उतारना
चाहा तो वह
बूढ़ा जो बिल्कुल
मरियल लगता था
एकदम से शक्तिवान
हो गया। उसने
मेरी गर्दन के
चारों ओर इतने
जोर से पाँव
करे कि मेरा
दम घुटने लगा।
मेरी आँखें बाहर
को निकलने को
हुईं और मैं
अचेत होकर गिर
पड़ा। फिर उसने
पाँव ढीले किए
जिससे मैं साँस
लेने लगा और
कुछ देर में
होश आ गया।
अब बूढ़े ने
मुझे उठने का
इशारा किया और
मेरे न उठने
पर उसने एक
पाँव मेरे पेट
में गड़ाया और
दूसरा मुँह पर
मारा। इससे मैं
विवश हो गया
कि उसके कहने
के अनुसार काम
करूँ। मैं उसे
लिए घूमने लगा।
वह पेड़ों के
नीचे मुझे ले
जाता और फल
तोड़ता, खुद खाता
और कुछ मुझे
भी खाने को
दे देता।
रात
होने पर मैं
लेटने की तैयारी
करने लगा। बूढ़ा
अब भी मेरी
गर्दन से न
उतरा। वैसे ही
अपनी गर्दन के
चारों ओर उसके
पाँवों का घेरा
लिए हुए लेट
गया और सो
गया। वह भी
इसी दशा में
सो गया। सुबह
उसने ठोकर मारकर
मुझे जगाया और
उसी तरह मुझ
पर सवार होकर
वह द्वीप में
घूमता फिरा। मैं
क्रोध और दुख
से अधमरा हो
गया किंतु कुछ
कर ही नहीं
सकता था क्योंकि
वह मुझे एक
क्षण के लिए
भी नहीं छोड़ता
था और रुकने
पर एड़ियों को
ठोकरें मारता था जिससे
मुझे अतीव कष्ट
होता था।
एक
दिन मैंने वहाँ
पर कद्दू के
सूखे खोल पड़े
देखे। मैंने उन्हें
साफ किया और
उनमें पके अंगूरों
का रस निचोड़
कर भर दिया।
कुछ दिनों बाद
फिर घूमता हुआ
वहाँ गया तो
देखा कि रस
से खमीर उठ
गया है और
वह मदिरा बन
गया है। मैं
बहुत कमजोर हो
गया था इसीलिए
स्वयं को शक्ति
देने का यह
उपाय किया था।
मैंने थोड़ी- सी
शराब पी और
मुझ में शक्ति
आ गई। मैं
तेजी से चलने
लगा और गाने
भी लगा। बूढ़े
को यह देखकर
आश्चर्य हुआ। उसने
इशारे से एक
कद्दू की शराब
देने के लिए
कहा।
मैं
तो दो-चार
घूँट ही लेता
था। उसे थोड़ी
मदिरा पीकर आनंद
आया तो वह
एकदम से पूरे
कद्दू की शराब
पी गया। इससे
उसे तेज नशा
चढ़ आया। वह
गाने लगा और
झूमने और डगमगाने
लगा। जब मेरी
गर्दन पर उसकी
पकड़ ढीली हो
गई तो मैंने
उसे पृथ्वी पर
पटक दिया। उसके
गिरते ही मैंने
एक पत्थर से
उसका सिर कुचल
-कुचलकर उसे मार
डाला। मुझे उसी
पकड़ से छूट
कर बड़ा सुख
मिला और मैं
समुद्र तट पर
आ गया।
संयोग
से उसी समय
एक जहाज के
कुछ लोग जहाज
में मीठा पानी
भरने उस द्वीप
में उतरे। उन्हें
मेरी कहानी सुनकर
बड़ा आश्चर्य हुआ।
उन्होंने कहा, 'क्या तुम
सचमुच इस बूढ़े
के हाथ पड़े
थे? उसने तो
न जाने कितनों
को इसी तरह
दौड़ाकर और गला
घोंटकर मार डाला
है। उसके हाथ
से कोई नहीं
बचा। तुम वास्तव
में बहुत भाग्यशाली
हो। इस द्वीप
के अंदर कोई
नहीं जाता, सभी
इससे भय खाते
हैं।' फिर वे
मुझे अपने जहाज
पर ले आए।
कप्तान ने भी
मेरा हाल सुनकर
मुझ पर दया
की और बगैर
किराए के पूरी
सुविधा के साथ
मुझे ले चला।
यात्रा के दौरान
एक बड़े व्यापारी
से मेरी गहरी
मित्रता हो गई।
एक
अन्य द्वीप पर
पहुँच कर उस
व्यापारी ने अपने
कई नौकर जमीन
पर भेजे और
मुझे एक टोकरा
देकर कहा कि
इनके साथ चले
जाओ और जैसा
यह करें वैसा
ही तुम भी
करना और इनसे
अलग न होना
वरना बड़ी मुसीबत
में फँस जाओगे।'
मैं सब आदमियों
के साथ टापू
पर उतर गया।
द्वीप पर नारियल
के बहुत-से
पेड़ थे किंतु
वे इतने ऊँचे
थे कि उन
पर चढ़ना असंभव
लगता था। वहाँ
बहुत-से बंदर
भी थे। वे
हमारे डर से
तुरंत पेड़ों पर
चढ़ गए। अब
मेरे साथियों ने
यह किया कि
ढेले-पत्थर जमा
किए और बंदरों
पर फेंकने लगे।
मैंने भी ऐसे
ही किया। बंदर
क्रोध में आ
कर नारियल तोड़
तोड़कर हम लोगों
के सिरों पर
फेंकने लगे। कुछ
ही देर में
सारी जमीन पर
नारियल बिछ गए।
हम लोगों ने
नारियलों से टोकरे
भरे। मैं इस
प्रकार नारियल प्राप्त होने
पर आश्चर्य में
पड़ गया। फिर
मैं उन लोगों
के साथ शहर
में आया जहाँ
नारियल अच्छे दामों में
बिक गए।
व्यापारी
ने नारियलों की
कीमत में मेरा
हिस्सा मुझे देकर
कहा कि तुम
रोज इसी तरह
जाकर नारियल जमा
किया करो और
उनसे जो पैसा
मिले उसे बचाते
जाओ। कुछ दिनों
में तुम्हारे पास
इतना धन इकट्ठा
हो जाएगा कि
आसानी से अपने
देश को वापस
जा सकोगे। मैंने
उसकी बात मानी
और कई दिन
तक इसी तरह
नारियल बेचता रहा। मेरा
पास इस सौदे
से पर्याप्त धन
हो गया।
कुछ
दिनों बाद जिस
जहाज ने मुझे
बचाया था वह
उस बंदरगाह से
चला गया। मैं
वहीं रुक गया
क्योंकि मैं दूसरी
ओर जाना चाहता
था। मैंने बहुत-से नारियल
अपने पास भी
जमा कर लिए
थे। कुछ दिनों
में एक जहाज
उधर जाने वाला
आया जिधर मैं
जाना चाहता था।
मैं अपनी नारियल
की खेप लेकर
सवार हुआ। वहाँ
से जहाज उस
द्वीप में आया
जहाँ काली मिर्च
पैदा होती है।
वहाँ से हम
लोग उस टापू
में गए जहाँ
चंदन और आबनूस
के पेड़ बहुतायत
से हैं। वहाँ
के निवासी न
तो मदिरापान करते
हैं न अन्य
किसी प्रकार के
कुकर्म करते हैं।
उन दोनों द्वीपों
में मैंने नारियल
बेच कर काली
मिर्च और चंदन
खरीदा। इसके अतिरिक्त
कई अन्य व्यापारियों
के सलाह से
मैं समुद्र से
मोती निकलवाने की
योजना में उनका
भागीदार बन गया।
हम लोगों ने
बहुत से गोताखोरों
को मजदूरी पर
लगाया। भगवान की कुछ
ऐसी कृपा हुई
कि मेरे गोताखोरों
ने अन्य गोताखोरों
की अपेक्षा कहीं
अधिक मोती निकाले
और मेरे मोती
अन्य मोतियों से
बड़े और सुडौल
भी थे। इसके
बाद मैं एक
जहाज पर बसरा
बंदरगाह आ गया।
वहाँ पर मैंने
काली मिर्च, चंदन
और मोतियों को
बेचा तो मेरी
आशा से कहीं
अधिक लाभ हुआ।
मैंने उसका दसवाँ
भाग दान में
दे दिया और
अपने सुख सुविधा
की वस्तुएँ खरीदकर
बगदाद में अपने
घर पर आकर
रहने लगा।
पाँचवी
यात्रा का वृत्तांत
सुनाकर सिंदबाद ने हिंदबाद
को फिर चार
सो दीनारें दीं
और उसे तथा
अन्य मित्रों को
विदा करके अगले
दिन फिर नया
यात्रा वृत्तांत सुनने के
लिए आमंत्रित किया।
अगले दिन सब
आए और खाना
पीना होने के
बाद यात्रा वृत्तांत
आरंभ हो गया।
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