सिंदबाद
ने कहा, दोस्तो,
मैंने दृढ़ निश्चय
किया था कि
अब कभी जल
यात्रा न करूँगा।
मेरी अवस्था भी
इतनी हो गई
थी कि मैं
कहीं आराम के
साथ बैठ कर
दिन गुजारता। इसीलिए
मैं अपने घर
में आनंदपूर्वक रहने
लगा। एक दिन
अपने मित्रों के
साथ भोजन कर
रहा था कि
एक नौकर ने
आ कर कहा
कि खलीफा के
दरबार से एक
सरदार आया है,
वह आपसे बात
करना चाहता है।
मैं भोजन करके
बाहर गया तो
सरदार ने मुझसे
कहा कि खलीफा
ने तुम्हें बुलाया
है। मैं तुरंत
खलीफा के दरबार
को चल पड़ा।
खलीफा
के सामने जा
कर मैंने जमीन
चूम कर प्रणाम
किया। खलीफा ने
कहा, 'सिंदबाद, मैं
चाहता हूँ कि
सरान द्वीप के
बादशाह के पत्र
के उत्तर में
पत्र भेजूँ और
उसके उपहारों के
बदले उपहार भेजूँ।
तुम यह सब
ले जा कर
सरान द्वीप के
बादशाह को पहुँचा
दो।'
मुझे
यह आदेश पा
कर बड़ी परेशानी
हुई। मैंने हाथ
जोड़ कर कहा,
'हे समस्त मुसलमानों
के अधिपति, मुझ
में आपकी आज्ञा
का उल्लंघन करने
का साहस तो
नहीं है किंतु
मैंने समुद्र की
कई यात्राएँ की
हैं और हर
एक में ऐसे
ऐसे जानलेवा कष्ट
झेले हैं कि
अब दृढ़ निश्चय
किया है कि
कभी जहाज पर
पाँव नहीं रखूँगा।'
यह कह कर
मैंने खलीफा को
संक्षेप में अपनी
छहों यात्राओं की
विपदा सुनाई। खलीफा
को यह सब
सुन कर आश्चर्य
बहुत हुआ किंतु
उसने अपना निर्णय
न बदला। उसने
कहा, 'वास्तव में
तुम पर बड़े
कष्ट पड़े हैं
लेकिन मेरे कहने
से एक बार
और यात्रा करो
क्योंकि इस काम
को तुम्हारे अतिरिक्त
कोई नहीं कर
सकता। फिर तुम
कभी यात्रा न
करना।'
मैंने
देखा कि खलीफा
अपने निश्चय से
हटनेवाला नहीं है
और तर्क-वितर्क
से कोई लाभ
न होगा इसीलिए
मैंने यात्रा पर
जाना स्वीकार कर
लिया। खलीफा ने
मुझे राह खर्च
के लिए चार
हजार दीनार देने
को कहा और
कहा कि तुम
तुरंत ही अपने
घर जाओ और
घर की व्यवस्था
ठीक करके यात्रा
की तैयारी शुरू
कर दो। मैं
घर जा कर
अपने काम- काज
को समेटने लगा
और यात्रा के
लिए तैयारी करके
कुछ दिनों के
बाद खलीफा के
दरबार में जा
पहुँचा।
मुझे
खलीफा के सामने
हाजिर किया गया।
मैंने रीति के
अनुसार धरती चूम
कर खलीफा को
प्रणाम किया। खलीफा मुझे
देख कर प्रसन्न
हुआ और उसने
मेरी कुशलक्षेम पूछी।
मैंने भगवान की
अनुकंपा और खलीफा
की दया की
प्रशंसा की। खलीफा
ने मुझे चार
हजार दीनार यात्रा
व्यय के लिए
दिलाए।
मैं
खलीफा की आज्ञानुसार
उसके दिए हुए
उपहार ले कर
बसरा बंदरगाह पर
आया और वहाँ
से एक जहाज
ले कर सरान
द्वीप को चल
दिया। यात्रा निर्विघ्न
समाप्त हुई। मैं
सूचना दे कर
सरान द्वीप के
बादशाह के सामने
गया और अपना
परिचय दिया। उसने
कहा, हाँ सिंदबाद,
मैंने तुम्हें पहचान
लिया। तुम कुशल-मंगल से
तो हो। मैंने
बादशाह की न्यायप्रियता
और मृदु स्वभाव
की प्रशंसा की
और कहा कि
मैं खलीफा की
ओर से आपके
लिए कुछ भेंट
और एक पत्र
लाया हूँ।
खलीफा
ने जो उपहार
भेजे थे उनमें
अन्य वस्तुओं के
अतिरिक्त एक अत्यंत
सुंदर लाल रंग
का कालीन था
जिसका मूल्य चार
हजार दीनार था।
उस पर बहुत
ही सुंदर सुनहरा
काम किया हुआ
था। एक प्याला
माणिक का था
जिसका दल एक
अंगुल मोटा था।
प्याले पर एक
मनुष्य का चित्र
बना था जो
तीर-कमान से
एक शेर का
शिकार कर रहा
था। एक राज
सिंहासन भी था,
जो ऊपर से
नीचे तक रत्नों
से जड़ा था
और हजरत सुलेमान
के तख्त को
भी मात करता
था। इसके अलावा
और बहुत-सी
मूल्यवान और दुर्लभ
वस्तुएँ थीं। उपहारों
को देखने के
बाद बादशाह ने
खलीफा का पत्र
पढ़ा।
खलीफा
ने अपने पत्र
में लिखा था,
'आपको अब्दुल्ला हारूँ
रशीद का, जो
भगवान की दया
से अपने पूर्वजों
का उत्तराधिकारी है,
प्रणाम पहुँचे। हमें आपका
पत्र और आपके
भेजे हुए उपहार
प्राप्त हुए। हमें
इन बातों से
बड़ी प्रसन्नता है
कि हम आप
के उपहारों के
बदले में कुछ
उपहार आप को
भेज रहे हैं।
हमें पूर्ण आशा
है कि यह
पत्र आपकी सेवा
में पहुँचेगा और
इससे आपको ज्ञात
होगा कि आपके
लिए हमारे मन
में कितना प्रेम
हैं।'
सरान
द्वीप का बादशाह
यह पत्र पढ़
कर बहुत खुश
हुआ। अब मैंने
विदा माँगी। वह
अपनी कृपालुता के
कारण मुझे विदा
न करना चाहता
था किंतु जब
मैंने इसके लिए
बार - बार अनुनय
की तो उसने
मुझे खिलअत (सम्मान
परिधान) तथा बहुत
- सा इनाम दे
कर विदा किया।
मैं अपने जहाज
पर वापस आया
और कप्तान से
कहा कि मैं
शीघ्रातिशीघ्र बगदाद पहुँचना चाहता
हूँ। उसने जहाज
को तेज चलाया
किंतु भगवान की
कुछ और ही
इच्छा थी। हमारा
जहाज चले तीन-चार ही
दिन हुए थे
कि समुद्री लुटेरों
ने आ कर
हमें घेर लिया।
हम उनका सामना
करने में असमर्थ
रहे। लुटेरों ने
जहाज का सारा
सामान भी लूट
लिया और हम
सब लोगों को
भी बंदी बना
लिया। हममें से
जिन लोगों ने
प्रतिरोध करना चाहा
उन्हें लुटेरों ने मार
डाला। फिर लुटेरों
ने हम लोगों
के कपड़े उतार
कर गुलामों जैसे
कपड़े, जो गाढ़े
के बने होते
हैं, पहनाए और
एक दूरस्थ द्वीप
में ले जा
कर हमें बेच
डाला।
मुझे
एक मालदार व्यापारी
ने खरीद लिया।
उसने अपने घर
ले जा कर
मुझे अपने गुलामों
जैसे कपड़े पहनाए
और मुझे खाने-पीने को
दिया। वह यह
तो जानता नहीं
था कि मैं
कौन हूँ और
क्या करता हूँ।
उसने एक दिन
मुझसे पूछा कि
तुम्हें कोई काम
आता है या
नहीं तब मैंने
बताया कि मेरा
धंधा व्यापार का
था और समुद्री
लुटेरों ने हमारा
जहाज लूट लिया
और हम लोगों
को गुलाम बना
कर बेच दिया।
मालिक ने पूछा
कि तुम्हें तीर
चलाना आता है
या नहीं। मैंने
कहा कि बचपन
में मैंने इसका
अभ्यास किया था
और अब भी
इसे भूला नहीं
हूँगा।
अब
मालिक ने धनुष-बाण दे
कर मुझे अपने
साथ एक हाथी
पर बैठाया और
नगर से कई
दिनों की राह
पर स्थित एक
बड़े वन में
गया। वहाँ एक
बड़ा वृक्ष दिखा
कर कहा कि
इस पर छुप
कर बैठो और
इधर से जो
हाथी निकले तो
उसे मारो, जब
कोई हाथी शिकार
हो जाए तो
मुझे आ कर
बताओ।
यह
कह कर उसने
मेरे पास कई
दिनों के लिए
भोजन रख दिया
और स्वयं वापस
शहर को चला
गया।
मैं
वृक्ष पर चढ़
गया। रात भर
प्रतीक्षा करता रहा
किंतु कोई हाथी
न दिखाई दिया।
दूसरे दिन सवेरे
के समय वहाँ
हाथियों का एक
झुंड आया। मैंने
कई तीर छोड़े
और एक हाथी
घायल हो कर
गिर पड़ा और
अन्य हाथी भाग
गए। मैं शहर
में आया और
अपने मालिक को
बताया कि मेरे
तीर से एक
हाथी गिरा है।
वह यह सुन
कर बहुत प्रसन्न
हुआ और उसने
तरह-तरह के
स्वादिष्ट भोजन मुझे
खिलाए। दूसरे दिन हम
दोनों उसी जंगल
में गए। मालिक
के कहने पर
मैंने गड्ढा खोद
कर हाथी को
गाड़ दिया। मालिक
ने कहा, जब
हाथी सड़ जाए
तो उसके दाँत
निकाल कर ले
आना क्योंकि यह
बहुमूल्य वस्तु है।
मैं
दो महीने तक
यही काम करता
रहा। मैं उसी
वृक्ष पर चढ़ता-उतरता रहता था।
मैंने इस बीच
कई हाथियों को
निशाना बनाया। एक दिन
मैं उस वृक्ष
पर चढ़ा था
कि हाथियों का
एक विशाल समूह
आया। वे सब
पेड़ को घेर
कर खड़े हो
गए और अत्यंत
भयानक रव करने
लगे। वे संख्या
में इतने अधिक
थे कि सारी
धरती काली दिखाई
देती थी और
उनके पैरों की
धमक से भूकंप
आ रहा था।
उन्होंने मुझे देख
लिया था और
वे पेड़ को
उखाड़ने लगे। यह
देख कर मैं
डर के मारे
अधमरा हो गया।
तीर-कमान मेरे
हाथ से गिर
पड़े। एक बड़े
हाथी ने अंतत:
सूँड़ लपेट कर
उस वृक्ष को
उखाड़ ही डाला।
मैं धरती पर
गिर गया। उसने
मुझे उठा कर
पीठ पर रख
लिया।
मैं
मुर्दे की तरह
उसकी पीठ पर
पड़ा रहा। वह
मुझे ले कर
एक ओर चला
और शेष हाथी
उसके पीछे चले।
हाथी मुझे एक
लंबे-चौड़े मैदान
में ले गए
और मुझे उतार
कर एक ओर
चले गए और
अदृश्य हो गए।
फिर मैं उठा
और चारों ओर
देखने लगा। कुछ
दूर पर मुझे
एक बड़ा खड्ढा
दिखाई दिया जिसमें
हाथियों के अस्थिपंजरों
के ढेर लगे
थे। अब मैंने
सोचा कि हाथी
कितना बुद्धिमान जीव
होता है। जब
हाथियों ने देखा
कि मैं उनके
दाँतों के लिए
ही उनका शिकार
करता हूँ तो
उन्होंने खुद मुझे
यहाँ ला कर
यह खड्ड दिखाया
और यह इशारा
किया कि तुम
हमें मत मारो
बल्कि यहाँ से
जितने चाहो हाथी
दाँत ले लो।
मालूम होता था
कि जब कोई
हाथी मृत्यु के
निकट होता है
तो खड्ड में
गिर कर मर
जाता है।
मैं
वहाँ एक क्षण
के लिए ही
ठहरा और वापस
अपने मालिक के
यहाँ पहुँचा। रास्ते
में मुझे एक
भी हाथी नहीं
दिखाई दिया। मालूम
होता था कि
सभी हाथी उस
जंगल को छोड़
कर किसी दूर
के जंगल में
चले गए थे।
मेरा मालिक मुझे
देख कर बड़ा
प्रसन्न हुआ और
कहने लगा, 'अरे
अभागे सिंदबाद, तू
अभी तक कहाँ
था? मैं तो
तेरी चिंता में
मरा जा रहा
था। मैं तुझे
ढूँढ़ता हुआ उस
जंगल में गया
तो देखा कि
पेड़ उखड़ा पड़ा
है और तेरे
तीन-कमान जमीन
पर पड़े हैं।
मैंने बहुत खोजा
किंतु तेरा पता
न मिला। मैं
तेरे जीवन से
निराश हो कर
बैठ गया था।
अब तू अपना
पूरा हाल सुना।
तुझ पर क्या
बीती और तू
अब तक किस
प्रकार जीवित बचा है?'
मैंने
व्यापारी को पूरा
हाल सुनाया। वह
उस खड्ड की
बात सुन कर
बहुत प्रसन्न हुआ।
मेरे साथ वह
उस खड्ड तक
पहुँचा और जितने
हाथी दाँत उसके
हाथी पर लद
सकते थे उन्हें
लाद कर शहर
वापस आया। फिर
उसने मुझ से
कहा, 'भाई, आज
से तुम मेरे
गुलाम नहीं हो।
तुमने मेरा बड़ा
उपकार किया है,
तुम्हारे कारण मेरे
पास अपार धन
हो जाएगा। मैंने
तुम से अभी
तक एक बात
छुपा रखी थी।
मेरे कई गुलाम
हाथियों ने मार
डाले हैं। जो
कोई हाथियों के
शिकार को जाता
था दो या
तीन दिन से
अधिक नहीं जी
पाता था। भगवान
ने तुम्हें हाथियों
से बचाया। इससे
मालूम होता है
कि तुम बहुत
दिन जिओगे। इससे
पहले बहुत-से
गुलाम खो कर
भी मैं मामूली
लाभ ही पाता
था, अब तुम्हारे
कारण मैं ही
नहीं इस नगर
के सारे व्यापारी
संपन्न हो जाएँगे।
मैं तुम्हें न
केवल स्वतंत्र करूँगा
बल्कि तुम्हें बड़ी
धन-दौलत भी
दूँगा और अन्य
व्यापारियों से भी
बहुत कुछ दिलवाऊँगा।'
मैंने
कहा, 'आप मेरे
स्वामी हैं। भगवान
आपको चिरायु करे।
मैं आपका बड़ा
कृतज्ञ हूँ कि
आपने समुद्री डाकुओं
के पंजे से
मुझे छुड़ा लिया
और मेरा बड़ा
भाग्य था कि
मैं इस नगर
में आ कर
बिका। अब मैं
आपसे और अन्य
व्यापारियों से इतनी
दया चाहता हूँ
कि मुझे मेरे
देश पहुँचा दें।'
उसने कहा, 'तुम
धैर्य रखो। जहाज
यहाँ पर एक
विशेष ॠतु में
आते हैं और
उनके व्यापारी हमसे
हाथी दाँत मोल
लेते हैं। जब
वे जहाज आएँगे
तो हम लोग
तुम्हारे देश को
जाने वाले किसी
जहाज पर तुम्हें
चढ़ा देंगे।' मैंने
उसे सैकड़ों आशीर्वाद
दिए।
मैं
कई महीनों तक
जहाजों के आने
की प्रतीक्षा करता
रहा। इस बीच
मैं कई बार
जंगल में गया
और हाथी दाँत
लाया और इनसे
उसका घर भर
दिया। व्यापारियों को
भी उस खड्ड
के बारे में
बताया और वे
सभी वहाँ से
हाथी दाँत ला
कर अत्यंत संपन्न
हो गए। जहाजों
की ॠतु आने
पर जहाज वहाँ
पहुँचे। मेरे स्वामी
व्यापारी ने अपने
घर के आधे
हाथी दाँत मुझे
दे दिए और
एक जहाज पर
मेरे नाम से
उन्हें चढ़ा दिया
और अनेक प्रकार
की खाद्य सामग्री
भी मुझे दे
दी। अन्य व्यापारियों
ने भी मुझे
बहुत कुछ दिया।
मैं जहाज पर
कई द्वीपों की
यात्रा करता हुआ
फारस के एक
बंदरगाह पर पहुँचा।
वहाँ से थल
मार्ग से बसरा
आया और हाथी
दाँत बेच कर
कई मूल्यवान वस्तुएँ
ली। फिर बगदाद
आ गया।
बगदाद
आ कर मैं
तुरंत ही खलीफा
के दरबार में
पहुँचा और उससे
पत्र और उपहारों
को सरान द्वीप
के बादशाह के
पास पहुँचाने का
हाल कहा। खलीफा
ने कहा कि
मेरा ध्यान सदैव
तुम्हारी कुशलता की ओर
लगा रहता था
और मैं भगवान
से प्रार्थना करता
था कि तुम्हें
सही-सलामत वापस
लाए। जब मैंने
अपना हाथियोंवाला अनुभव
उसे सुनाया तो
उसे यह सुन
कर बड़ा आश्चर्य
हुआ और उसने
अपने एक लेखनकार
को यह आदेश
दिया कि मेरे
वृत्तांत को सुनहरे
अक्षरों में लिख
ले और शाही
अभिलेखागार में रखे।
फिर उसने मुझे
खिलअत और बहुत-से इनाम
दे कर विदा
किया।
सिंदबाद
ने कहा कि
मित्रो, इसके बाद
मैं किसी यात्रा
पर नहीं गया
और भगवान के
दिए हुए धन
का उपभोग करता
हूँ। फिर उसने
हिंदबाद से कहा
कि अब तुम
बताओ कि कोई
और मनुष्य ऐसा
कहीं है जिसने
मुझ से अधिक
विपत्तियाँ झेली हों।
हिंदबाद ने सम्मानपूर्वक
सिंदबाद का हाथ
चूमा और कहा,
'सच्ची बात तो
यह है कि
इन सात समुद्र
यात्राओं के दौरान
जितनी मुसीबत आपने
उठाई और जितनी
बार प्राणों के
संकट से बच
कर निकले उतनी
किसी की भी
शक्ति नहीं है।
मैं अभी तक
बिल्कुल अनजान था कि
अपनी निर्धनता को
रोता था और
आपकी सुख-सुविधाओं
से ईर्ष्या करता
था। मैं रूखी-सूखी खाता
हूँ किंतु भगवान
को लाख धन्यवाद
है कि अपने
स्त्री-पुत्रों के बीच
आनंद से रहता
हूँ। ऐसी कोई
विपत्ति मुझ पर
नहीं आई जैसी
विपत्तियाँ आपने उठाई
हैं। वास्तव में
जो सुख आप
भोग रहे हैं
आप उससे अधिक
के अधिकारी हैं।
भगवान करें आप
सदैव इसी प्रकार
ऐश्वर्यवान और सुखी
रहें।'
सिंदबाद
ने हिंदबाद को
चार सौ दीनारें
और दीं और
उससे कहा कि
तुम अब मेहनत-मजदूरी करना छोड़
दो और मेरे
मुसाहिब हो जाओ।
मैं सारी उम्र
तुम्हारे स्त्री-बच्चों का
भरण-पोषण करूँगा।
हिंदबाद ने ऐसा
ही किया और
सारी आयु आनंद
से बिताई।
स्रोत-इंटरनेट से कट-पेस्ट
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