सरकार,
मेरा सबसे बड़ा
भाई जिसका नाम
बकबक था, कुबड़ा
था। उसने दरजीगीरी
सीखी और जब
यह काम सीख
लिया तो उसने
अपना कारबार चलाने
के लिए एक
दुकान किराए पर
ली। उस की
दुकान के सामने
ही एक आटा
चक्कीवाले की दुकान
थी। चक्कीवाले का
काम अच्छा चलता
था और वह
बहुत धनवान था
किंतु मेरे भाई
का काम नया
था और वह
बेचारा रोज कमाता
और रोज खाता
था।
एक
दिन मेरा भाई
काम कर रहा
था और सामने
चक्कीवाले के मकान
की ऊपर की
खिड़की खुली थी।
कुछ देर में
चक्कीवाले की अति
सुंदर पत्नी वहाँ
आ खड़ी हुई।
मेरा भाई उसके
रूप पर मर
मिटा और उसे
टकटकी लगाए देखता
रहा। जब स्त्री
की दृष्टि उस
पर पड़ी तो
उसने तुरंत ही
खिड़की बंद कर
ली क्योंकि वह
बड़ी पतिव्रता थी।
दूसरे दिन वह
खिड़की न खुली।
तीसरे दिन उस
स्त्री ने खिड़की
खोली तो फिर
मेरे भाई को
अपनी ओर देखता
पाया। वह समझ
गई कि यह
आदमी मुझ पर
बुरी नजर रखता
है। वह इस
बात पर जल
गई किंतु उसने
इसे दंड देना
चाहा। वह इसकी
ओर देख कर
मुस्कुरा दी। यह
भी हँस दिया।
फिर वह शरमा
कर चली गई।
यह मूर्ख इससे
समझा कि स्त्री
मुझे चाहने लगी
है।
अब
उस स्त्री ने
अपनी योजना आरंभ
की। उसने अपनी
सेविका के हाथ
कई गज बहुमूल्य
कपड़ा दरजी के
पास भेजा कि
मेरे लिए तुरंत
ही अच्छा परिधान
बना दे। मेरे
भाई ने समझा
कि यह वास्तव
में मुझे चाहने
लगी है नहीं
तो इतना मूल्यवान
कपड़ा नए दरजी
के पास क्यों
भेजती। उसने मेहनत
से दिन भर
लग कर शाम
तक परिधान तैयार
कर दिया। दूसरे
दिन सेविका के
आने पर उसने
कहा कि अपनी
स्वामिनी से कहना
कि अपने सारे
परिधान मुझी से
सिलवाया करें, मैं बहुत
शीघ्र और अत्यंत
उत्तम सिलाई करता
हूँ। सेविका थोड़ी
दूर जा कर
लौट आई और
कहने लगी, मैं
तुम्हें अपनी मालकिन
का एक संदेश
देना तो भूल
ही गई। उसने
पुछवाया है कि
उस की रात
तो तुम्हारे ध्यान
में जागते ही
कटी, तुम्हारी रात
कैसी बीती। मेरा
भाई यह सुन
कर अत्यंत प्रसन्न
हुआ और बोला
कि उनसे कह
देना कि मेरी
तो चार रातें
उनकी याद में
जागते बीती हैं।
थोड़ी
देर में सेविका
फिर आई और
कहने लगी कि
मेरी मालकिन ने
यह रेशमी कपड़ा
दिया है कि
उसके लिए परिधान
बनाया जाए। मेरा
मूर्ख भाई मनोयोग
से उसे सीने
लगा। सेविका के
जाने के थोड़ी
देर बाद वह
मनमोहिनी फिर खिड़की
पर आ गई
और तरह-तरह
के हाव-भाव
के साथ अपनी
लंबी केशराशि, उन्नत
यौवन और पतली
कमर का प्रदर्शन
कर के चली
गई। इस मूर्ख
ने प्रेम के
नशे में दिन
भर लग कर
वह कपड़ा भी
सी दिया। शाम
को सेविका आ
कर यह दूसरा
वस्त्र भी ले
गई। सिलाई उसने
न पहले कपड़े
की दी न
दूसरे कपड़े की।
अतएव मेरे भाई
को दूसरे दिन
भी भूखा ही
सोना पड़ा। भूख
से व्याकुल हो
कर उसने शाम
को अपने मित्रों
से कुछ पैसा
उधार लिया और
किसी तरह पेट
भरा।
दूसरे
दिन सवेरे सेविका
ने आ कर
उससे कहा कि
मेरे मालिक ने
तुम्हें बुलाया है। पहले
तो मेरा भाई
घबराया किंतु फिर सेविका
के इस कथन
से आश्वस्त हो
गया कि मालकिन
ने मालिक को
तुम्हारे सिए हुए
वस्त्र दिखाए कि तुमने
कितनी होशियारी से
उस की ठीक
नाप के कपड़े
बनाए हैं। इससे
मालिक भी बहुत
खुश हुए और
चाहते हैं कि
अपने वस्त्र भी
तुमसे सिलवाएँ। दरअसल
मेरी मालकिन चाहती
हैं कि इसी
बहाने तुम्हारा उनके
घर आना हो
जाए जिससे बाद
में मिलन की
कोई तरकीब निकल
सके।
मेरा
भाई यह सुन
कर फूला न
समाया। वह सेविका
के साथ चला
गया। चक्कीवाले ने
उस की बड़ी
प्रशंसा की और
खूब स्वागत-सत्कार
किया। उसने उसे
एक थान दिया
कि इसमें से
मेरे लिए कई
वस्त्र बना दो
और जो कपड़ा
बचे मुझे वापस
कर दो। मेरे
भाई ने लग
कर पाँच-सात
दिन में वे
वस्त्र तैयार कर दिए।
चक्कीवाला इन्हें देख कर
बड़ा खुश हुआ।
उसने एक कीमती
थान और दिया
कि वैसे ही
उत्तम वस्त्र सिए
जाएँ। मेरे भाई
ने फिर कर्ज
ले कर अपने
खाने-पीने का
काम चलाया और
दूसरे थान के
कपड़े भी सी
दिए।
कपड़े
ले कर वह
चक्कीवाले के पास
गया तो चक्कीवाला
और प्रसन्न हुआ।
उसने कहा कि
तुम्हें सिलाई तो अभी
मैं ने दी
नहीं। मेरा भाई
चुप रहा तो
चक्कीवाले ने खुद
हिसाब लगा कर
सारे कपड़ों की
उचित सिलाई के
पैसे दिए। मेरा
भाई उन्हें लेनेवाला
ही था कि
वही कमबख्त दासी
चक्कीवाले के पीछे
खड़ी हो कर
इशारा करने लगी
कि खबरदार, कुछ
न लेना, वरना
काम बिगड़ जाएगा।
मेरा भाई ऐसा
मूर्ख निकला कि
उसने सिलाई तो
क्या उस डोरे
का दाम भी
नहीं लिया जो
उसने सीने में
लगाया था। कहने
लगा कि सिलाई
देने की क्या
जरूरत है, फिर
देखा जाएगा।
चक्कीवाले
से विदा हो
कर वह अपने
मित्रों के पास
फिर कर्ज लेने
पहुँचा किंतु उसे निराश
होना पड़ा। मित्रों
ने कहा कि
तुम उधार ले
कर कभी वापस
तो करते नहीं,
तुम्हें एक पैसा
भी नहीं देंगे।
फिर वह मेरे
पास आया कि
कुछ पैसे दो,
मैं कई दिन
से भूखा हूँ।
मैं ने उसे
थोड़ा-सा धन
दिया क्योंकि मैं
भी कौन अमीर
था। इन पैसों
से उसका कुछ
दिन तक इस
तरह काम चला
कि रोज दो-एक सूखी
रोटियाँ खा लेता
था।
एक
दिन मेरा भाई
फिर चक्कीवाले के
यहाँ गया। वह
उस समय चक्की
पर काम कर
रहा था। उसने
समझा कि यह
सिलाई माँगने आया
है। उसने जेब
में हाथ डाल
कर कुछ सिक्के
उसे देने के
लिए निकाले। इसी
समय सेविका ने
पीछे से इशारा
किया कि अगर
सिलाई ली तो
हमेशा के लिए
काम बिगड़ जाएगा।
अतएव उस बेचारे
ने उस दिन
भी कुछ न
लिया और कहा
कि मैं सिलाई
लेने नहीं आया
था, यूँ ही
पड़ोसी होने के
नाते तुम्हारी कुशल-क्षेम पूछने के
लिए आया था।
चक्कीवाला उस की
भद्रता से बड़ा
प्रभावित हुआ और
उसे एक और
कपड़ा सीने को
दिया। मेरे भाई
ने उसे भी
उसी दिन सी
दिया और दूसरे
दिन चक्कीवाले के
पास ले गया।
चक्कीवाले ने सारे
पैसे देने चाहे
लेकिन सेविका ने
फिर इशारा किया
कि एक पैसा
भी लिया तो
मालकिन कभी तुम्हारे
सामने न आएँगी।
इसलिए उसने कहा,
जल्दी क्या है,
साहब? पैसे भी
ले लूँगा। मैं
तो आपका हाल-चाल पूछने
के लिए आता
हूँ, पैसे के
लिए नहीं आता।
यह कह कर
फिर वह बेचारा
अपनी दुकान में
आ कर भूखा-प्यासा काम करने
लगा।
लेकिन
चक्कीवाले की पत्नी
को इतनी बात
से संतोष न
हुआ। पैसे तो
उसे बाद में
मिल जाने ही
थे। वह उसे
कठोर दंड दिलवाना
चाहती थी। इसलिए
एक दिन उसने
अपने पति को
पूरी बात बता
दी कि वह
मुझ पर बुरी
नजर रखता है,
इसीलिए उसने इतने
ढेर सारे कपड़े
सी कर भी
सिलाई नहीं ली।
चक्कीवाला यह सुन
कर बड़ा क्रुद्ध
हुआ। उसने दो-चार दिन
तक सोच विचार
कर के मेरे
भाई को अच्छी
तरह दंड देने
की योजना बनाई।
उसने एक दिन
इसे शाम के
खाने पर बुलाया।
खाना खाने के
बाद दोनों देर
तक बातें करते
रहे। फिर चक्कीवाले
ने कहा कि
अब बहुत रात
बीत गई है,
कहाँ जाओेगे इस
समय। यह कह
कर उसे एक
जगह सुला दिया।
आधी
रात को उसने
मेरे भाई को
जगाया और कहा,
भाई, मेरी मदद
करो नहीं तो
मेरी बड़ी हानि
हो जाएगी। मेरा
खच्चर जो चक्की
चलाता था बीमार
पड़ गया है
और चक्की बंद
पड़ी है।
मेरे
भाई ने कहा,
चक्की चलवाने के
लिए क्या कर
सकता हूँ। उसने
कहा कि तुम
खच्चर की जगह
चक्की में बँध
जाओ और उसे
चारों ओर दौड़
कर घुमाओ। मेरे
भाई को बड़ा
आश्चर्य हुआ और
वह आनाकानी करने
लगा। किंतु चक्कीवाले
ने उसे चक्की
से बाँध ही
दिया और कहा
कि तेज दौड़ो।
मेरे भाई ने
चलना शुरू किया
तो चक्कीवाले ने
उसे एक चाबुक
मारा। इसने पूछा
यह क्या बात
है। उसने कहा
कि खच्चर को
मैं इसी तरह
तेज चलाया करता
हूँ, तुम भी
तेज न चलोगे
तो सारा अनाज
बगैर पिसा रह
जाएगा। मेरा भाई
बेचारा दौड़ने लगा लेकिन
दो-चार चक्कर
लगाने के बाद
बेदम हो कर
बैठ रहा। चक्कीवाले
ने दस बार
चाबुक उसे मारे
और उसे खूब
गालियाँ दीं जैसी
वह खच्चर को
दिया करता था।
मेरे
भाई की सुबह
तक यही दशा
रही। सुबह चक्कीवाला
उसे वैसा ही
बँधा छोड़ कर
अपनी स्त्री के
पास यह कहने
को गया कि
अपने प्रेमी की
दशा देख लो।
इसी बीच सेविका
ने आ कर
उसे खोला और
कहा कि मुझे
और मालकिन को
तुम पर दया
आई है, इसीलिए
मैं ने तुम्हें
छुड़ाया है। इसने
कुछ उत्तर न
दिया और गिरता
पड़ता अपने घर
आया। इस प्रकार
उसके सिर से
प्रेम का भूत
उतरा।
खलीफा
ने कहा कि
आज ईद है,
इस नाई को
इनाम दे कर
विदा करो। मैं
ने यह कह
कर विदा ली
कि सारे भाइयों
की बातें सुना
कर ही इनाम
लूँगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें