ईसाई
ने कहा, मैं
मिस्र की राजधानी
काहिरा का निवासी
हूँ। मेरा बाप
दलाल था। उस
के पास काफी
पैसा हो गया।
उस ने मरने
के बाद मैं
ने भी वही
व्यापार आरंभ किया।
एक दिन मैं
अनाज की मंडी
में अपने दैनिक
व्यापार के लिए
गया तो मुझे
अच्छे कपड़े पहने
एक आदमी मिला।
उस ने मुझे
थोड़े-से तिल
दिखा कर पूछा
कि ऐसे तिल
क्या भाव बिकते
हैं। मैं ने
कहा इनका मूल्य
सौ मुद्रा प्रति
मन है। उस
ने कहा कि
तुम इन्हें इस
मूल्य पर बेच
दो और खरीदनेवाला
मिल जाए तो
उसे मेरे पास
ले आना, मैं
फलाँ सराय में
ठहरा हूँ।
मैं
ने व्यापारियों से
मोल-भाव किया
तो उन्होंने कहा
कि हम एक
सौ मुद्रा प्रति
मन पर सारे
तिल खरीद लेंगे।
मैं उस सराय
में गया जहाँ
का पता मुझे
दिया गया था
और व्यापारी ने
गोदाम खुलवा कर
अपना माल तुलवाया।
वह एक सौ
पचास मन निकला।
माल गधों पर
लदवा कर मैं
ने मंडी के
व्यापारियों को दिया
और उन से
उस का मूल्य
ले कर सराय
में गया और
साढ़े सोलह हजार
मुद्राएँ उस के
आगे रखीं। उस
ने कहा कि
दस मुद्रा प्रति
मन के हिसाब
से डेढ़ हजार
मुद्राएँ तो तुम्हारी
ही हुईं, तुम
इन्हें ले लो
और बाकी पंद्रह
हजार मुद्राएँ भी
अपने पास रखो,
जरूरत पड़ने पर
मैं तुम से
ले लूँगा।
यह
कह कर वह
अपने नगर को
चला गया। एक
महीने बाद मेरे
पास आ कर
बोला कि मेरा
रुपया तुम्हारे पास
है। मैं ने
कहा, 'रुपया तैयार
है, कहें तो
अभी दे दूँ।
लेकिन आप घोड़े
से तो उतरिए
और कुछ खा-पी कर
ताजादम हो जाइए।'
उस ने कहा,
'मुझे एक जरूरी
काम से फौरन
जाना है। तुम
रुपए निकलवा रखो।
मैं थोड़ी देर
में लौट कर
तुम से ले
लूँगा।'
मैं
ने रुपए निकलवा
लिए लेकिन वह
लौट कर न
आया। एक महीने
तक उस की
प्रतीक्षा करने के
बाद मैं ने
उस की रकम
को सुरक्षापूर्वक तहखाने
में रखा। तीन
महीने बाद वह
मुझे फिर दिखाई
दिया। मैं ने
उस से कहा
कि आप अपनी
रकम तो ले
लीजिए। उस ने
हँस कर कहा,
'जल्दी क्या है,
ले लूँगा। मैं
जानता हूँ कि
मेरा धन ईमानदार
आदमी के पास
है।' यह कह
कर वह फिर
चला गया।
एक
वर्ष बाद वह
फिर दिखाई दिया
तो मैं ने
कहा, 'अब तो
आप अपना पैसा
ले ही लीजिए,
अगर आप इसे
इस बीच व्यापार
में लगाते तो
अच्छा मुनाफा कमाते।
खैर, अब मेरे
घर चल कर
भोजन करें और
रुपया लें।' उस
ने कहा, 'अच्छा
चलता हूँ किंतु
भोजन में कोई
विशेष आयोजन न
करना।'
मैं
ने उस के
सामने भोजन रखा।
वह बाएँ हाथ
से खाने लगा।
मैं ने यह
भी देखा कि
वह हर काम
बाएँ हाथ से
करता था। मुझे
यह देख कर
इसका कारण जानने
की उत्कंठा हुई।
मैं ने सोचा
कि यह व्यक्ति
बड़ा सभ्य और
सुसंस्कृत है, इस
से इस बात
का कारण पूछूँ
तो यह बुरा
न मानेगा। इसलिए
जब हम लोग
भोजन कर चुके
और नौकर हमारे
भोजन के बर्तन
ले गए तो
हम लोग दूसरे
दालान में जा
बैठे। मैं ने
उस का पान
आदि से सत्कार
किया और यह
चीजें भी उस
ने बाएँ हाथ
से लीं।
मैं
ने उस से
कहा, 'अगर आप
नाराज न हों
तो एक बात
पूछूँ। क्या कारण
है कि आप
जो भी काम
करते हैं बाएँ
हाथ ही से
करते हैं। दाहिने
हाथ से कुछ
भी नहीं करते।
यहाँ तक कि
खाना भी आप
ने बाएँ हाथ
से ही खाया।
उस ने यह
सुन कर ठंडी
साँस भरी और
आस्तीन उलट कर
दाहिना हाथ, जो
हमेशा लंबी आस्तीन
से ढका रहता
था, मुझे दिखाया।
मैं ने देखा
कि उस का
दाहिना हाथ कलाई
से गायब है।
मैं ने पूछा
कि आपका हाथ
कैसे कटा तो
वह दुखी हो
कर रोने लगा,
फिर उस ने
अपनी कहानी सुनाई।
उस
ने कहा मैं
बगदाद का रहनेवाला
हूँ। मेरा पिता
वहाँ के प्रमुख
रईसों में से
था। मैं ने
मिस्र देश की
बड़ी प्रशंसा सुनी
थी और उसे
देखना चाहता था,
विशेषतः मिस्र की राजधानी
काहिरा को देखने
की मेरी बड़ी
इच्छा थी। जब
तक मेरा बाप
जिंदा रहा उस
ने मुझे मिस्र
को जाने की
अनुमति न दी।
जब उस का
देहांत हो गया
तो मैं स्वतंत्र
हो गया और
मैं ने बहुत
दिनों की इच्छा
की पूर्ति करना
चाहा। मैं ने
बगदाद और मोसिल
की बहुत-सी
व्यापार वस्तुएँ खरीदीं और
मिस्र की ओर
चल दिया। काहिरा
पहुँच कर मैं
एक सराय में
उतरा। इस सराय
का नाम मसरूर
था। दो-चार
दिन बाद मैं
ने किराए पर
एक घर और
एक गोदाम लिया।
मैं ने कुछ
सेवक भी रखे
और उन से
कहा कि बाजार
से मेरे खाने
के लिए कुछ
ले आओ। उन्होंने
नाना प्रकार के
व्यंजन मेरे सामने
ला कर रखे।
मैं ने भोजन
कर के शहर
की दर्शनीय मस्जिदें,
किले आदि देखे
और सारा दिन
सैर सपाटे में
बिताया।
दूसरे
दिन मैं अच्छे
कपड़े पहन कर
अपनी गठरियों से
दो-चार थान
निकाल कर उन्हें
बाजार ले गया
ताकि उनके मूल्य
का अनुमान करूँ।
मेरा आगमन पहले
ही लोगों को
ज्ञात था इसलिए
मेरे पास कई
दलाल आ गए।
उन्होंने मेरे थान
बजाजों को दिखाए
और उन्हें बेच
डाला। मैं रोज
थोड़ा-थोड़ा माल
बाजार लाता और
वह बिक जाता।
किंतु मेरा घर
बाजार से बहुत
दूर था और
मुझे माल लाने
की मजदूरी काफी
पड़ जाती थी।
इसलिए दलालों ने
मुझे सलाह दी
कि 'यदि तुम
हम पर विश्वास
करो तो हम
तुम्हें अच्छी तरकीब बताएँ।
तुम अपना सारा
बेचनेवाला माल इन
व्यापारियों की दुकानों
में रखवा दो।
हर सप्ताह सिर्फ
एक दिन सोमवार
या गुरुवार को
बाजार आया करो
और व्यापारियों से
अपने बिके हुए
माल का दाम
ले लिया करो।
इसमें तुम्हारी रोज
की मजदूरी भी
बचेगी और समय
भी। इस खाली
समय में तुम
नील नदी या
अन्य सुंदर स्थानों
की सैर करके
जी बहलाया करना।'
मैं
ने यह स्वीकार
कर लिया। मैं
दलालों को अपने
घर ले गया
और एक बार
ही उन्हें सारा
बिकनेवाला माल दे
दिया। वे माल
को ले कर
मेरे साथ बाजार
आए और सारा
माल व्यापारियों की
दुकानों पर रखवा
दिया। उन्होंने मुझे
मेरे माल की
रसीद लिख दी
और मैं ने
भी लिख कर
दे दिया कि
मैं महीने-महीने
आ कर बिके
माल का दाम
वसूल किया करूँगा।
यह सब कर
के मुझे बड़ा
संतोष मिला और
मैं ने अपने
कुछ समवयस्कों से
मित्रता कर के
उनके साथ घूमना-फिरना शुरू किया।
अक्सर मैं उनके
साथ बाजार भी
जाता और वहाँ
के मोल-भाव
को देख कर
ज्ञान और मनोरंजन
प्राप्त करता।
एक
दिन मैं बदरुद्दीन
व्यापारी की दुकान
पर बैठा हुआ
था। एक अत्यंत
संभ्रांत स्त्री, जो कीमती
पोशाक और तरह-तरह के
जेवर पहने थी
और जिसके साथ
कई साफ- सुथरी
सेविकाएँ भी थीं,
आ कर मेरे
पास बैठ गई।
मुझे इच्छा होने
लगी कि वह
अपने चेहरे से
नकाब हटाए तो
मैं नेत्र सुख
उठाऊँ। उस ने
मेरी इस इच्छा
को समझ लिया
और बहाने से
दो क्षण के
लिए नकाब को
झटके से उठा
दिया। मैं उस
के अनुपम रूप
को देख कर
ठगा-सा रह
गया। उस ने
बदरुद्दीन से साधारण
कुशल-क्षेम पूछने
के बाद एक
जरी का थान
माँगा। उस ने
एक थान दिखाया
जो उस सुंदरी
को पसंद आया।
उस ने पूछा
यह थान कितने
का है, मैं
इसे ले जाऊँगी
और कल इसका
दाम भिजवा दूँगी।
बदरुद्दीन
ने कहा थान
छह हजार छह
सौ मुद्राओं का
है किंतु यह
इनका माल है
और मैं ने
इनसे वादा किया
है कि उनके
बिके हुए सारे
माल की कीमत
आज ही इन्हें
दूँगा, अगर मेरा
माल होता तो
मुझे चिंता नहीं
थी, आप जब
भी चाहतीं इसका
दाम दे देतीं।
उस स्त्री ने
कहा आप एक
दिन के लिए
भी नहीं ठहर
सकते? बदरुद्दीन ने
कहा कि मजबूरी
है, मुझे आज
ही इनके माल
की कीमत देनी
होगी। वह सुंदरी
इस पर नाराज
हो गई। उस
ने थान बदरुद्दीन
के सामने फेंक
दिया और बोली,
'तुम व्यापारी लोगों
में सभ्यता और
शील बिल्कुल नहीं
होता, तुम अपने
अलावा किसी का
विश्वास नहीं करते।'
यह कह कर
वह तमक कर
उठ खड़ी हुई
और दुकान से
चल दी।
वह
कुछ ही दूर
गई थी कि
मैं ने पुकार
कर कहा कि
आप आइए, मैं
आप को कष्ट
पहुँचाए बगैर सौदा
कर लूँगा। वह
स्त्री लौट आई
क्योंकि उसे यह
तो मालूम था
कि माल का
मालिक मैं हूँ।
मैं ने वह
थान उसे दे
कर कहा कि
आप इसे शौक
से ले जाएँ,
यह आप ही
का है - चाहे
दाम दें या
न दें। वह
यह सुन कर
प्रसन्न हुई और
बोली कि भगवान
आप को धनी
और सुखी रखे।
मैं ने उस
से चुपके से
कहा, 'लेकिन आप
को थान ले
जाने के पहले
यह करना होगा
कि मुझे आप
अपने अनूप रूप
का रसास्वादन करने
दें।' उस ने
अपने मुख पर
पड़ी हुई जाली
की नकाब हटा
दी। मैं पहले
से भी अधिक
चकित दृष्टि से
उसे टकटकी बाँध
कर देखने लगा।
उस ने कुछ
क्षणों के बाद
नकाब फिर डाल
लिया और थान
उठा कर चली
गई।
मैं
कुछ देर तक
अवाक और भ्रमित-सा बैठा
रहा। फिर मैं
ने व्यापारी बदरुद्दीन
से पूछा कि
यह स्त्री कौन
है। उस ने
कहा कि वह
अमुक व्यापारी की
पुत्री है, उसके
पिता के पास
असंख्य धन था,
उस का देहांत
हो गया है
और वही सारी
संपत्ति की स्वामिनी
है। मैं कुछ
देर में उठ
कर अपने निवास
स्थान पर पहुँचा
किंतु उसी सुंदरी
के ध्यान में
निमग्न रहा। मैं
ने भोजन भी
नहीं किया और
रात भर उस
की मोहिनी छवि
मेरी आँखों में
समाई रही।
दूसरे
दिन मैं फिर
बाजार गया और
अपने मित्र बदरुद्दीन
की दुकान पर
जा बैठा। मुझे
पहुँचे कुछ ही
क्षण बीते थे
कि वह अपनी
सेविकाओं के समूह
के साथ वहाँ
पहुँच गई और
बोली, 'देखा तुम
लोगों ने कि
मैं अपने वादे
का कितना ध्यान
रखती हूँ?' मैं
ने कहा कि
आप पर मुझे
पूरा भरोसा था
और आप ने
बेकार ही इतनी
जल्दी दाम पहुँचाने
का कष्ट किया।
वह बोली कि
यह ठीक है
किंतु लेन-देन
में खरापन अच्छा
रहता है। यह
कह कर उस
ने छह हजार
छ्ह सौ मुद्राओं
की थैली मुझे
दी और मेरे
पास बैठ गई।
मैं
ने कुछ क्षणों
में, जब बदरुद्दीन
तथा अन्य लोगों
का ध्यान इधर
न था, उस
से अपने प्रेम
का निवेदन किया।
उस ने कुछ
उत्तर न दिया
और उठ कर
चली गई। मैं
ने समझा कि
मेरे प्रेम निवेदन
से यह रुष्ट
हो गई है
अतएव और दुखी
हुआ। कुछ देर
बाद मैं भी
वहाँ से उठ
कर निरुद्देश्य ही
एक ओर चल
दिया। काफी दूर
जा कर जब
एक गली में
पहुँचा तो किसी
ने मेरी पीठ
पर हाथ रखा।
मैं ने पलट
कर देखा तो
वह उसी सुंदरी
की एक सेविका
थी। मुझे उसे
देख कर खुशी
हुई। उस ने
धीरे से कान
में कहा कि
मेरी मालकिन तुमसे
बात करना चाहती
हैं और तुम्हें
बुला रही हैं।
मैं
तुरंत उस परिचारिका
के साथ हो
लिया। थोड़ी दूर
जा कर देखा
कि वह सुंदरी
एक सर्राफ की
दुकान पर बैठी
है। वह मेरी
प्रतीक्षा अधीरतापूर्वक कर रही
थी और उस
ने मुझे तुरंत
हाथ पकड़ कर
अपने समीप बिठा
लिया और बोली,
'तुम ही मेरे
प्रेम में व्याकुल
नहीं हो, मेरी
भी यही दशा
है। किंतु बदरुद्दीन
के सामने यह
कहना उचित नहीं
था।' उस ने
कहा कि या
तो तुम मेरे
घर चलो या
मैं तुम्हारे घर
आऊँ। मैं ने
कहा मेरा किराए
का मकान तुम्हारे
आगमन के योग्य
नहीं है, मैं
ही आ जाऊँगा।
उस ने कहा,
'ठीक है, कल
बुधवार है। तीसरे
पहर तुम अमुक
गली में आ
कर अमुक व्यापारी
का मकान पूछना।
मैं वहीं मिलूँगी।'
मैं
घर आ गया।
वह दिन और
रात बेचैनी से
बिताई। दूसरे दिन सवेरे
ही मैं ने
बढ़िया कपड़े पहने। निश्चित
समय पर एक
थैली पचास अशर्फियों
की अपनी कमर
में बाँध कर
उस सुंदरी की
बताई हुई गली
में पहुँचा। मैं
ने एक आदमी
से उस का
मकान पूछा तो
उस ने बता
दिया। मैं ने
अपने किराए के
ऊँट के चालक
को किराया दे
कर कहा कि
कल सुबह यहीं
से मुझे ले
जाना और मेरे
घर पहुँचा देना।
घर के दरवाजे
पर जा कर
ताली बजाई तो
दो गुलाम लड़कों
ने द्वार खोला
और कहा कि
अंदर आइए, मालकिन
आप की राह
देख रही हैं।
मैं
अंदर गया तो
देखा कि सात
सीढ़ी ऊँचे फर्श
की एक विशाल
बारहदरी है जिसके
चारों ओर जाली
का घेरा है।
उस के आगे
एक फूलों का
बाग था। इस
के अलावा कई
घने वृक्ष भी
उस भवन में
थे। कई फलों
से लदे हुए
पेड़ भी थे
जिन पर पक्षी
कलरव कर रहे
थे। पक्षियों की
मधुर ध्वनि के
अतिरिक्त ऊँचाई पर बने
हुए कुंडों से
निर्झर रूप में
पानी उस बाग
में गिर रहा
था। वे कुंड
बड़े विशाल और
सुंदर थे और
उनमें अजगर के
मुख की आकृति
के परनाले बने
थे, जिन से
पानी बाग में
गिरता था। पानी
भी स्फटिक मणि
की भाँति स्वच्छ
और अत्यंत निर्मल
था।
दोनों
गुलाम मुझे एक
मकान में ले
गए जो अत्यंत
सुंदर था और
उसमें भाँति- भाँति
की सजावट की
चीजें रखी थीं।
वहाँ एक गुलाम
मेरे पास रहा
और दूसरा दौड़
कर अपनी मालकिन
को खबर करने
के लिए गया।
कुछ ही देर
में वह सुंदरी
हंस जैसी मंद
और शालीन गति
से चलती हुई
आई। वह अत्यंत
मूल्यवान वस्त्र पहने थी
और सिर से
पाँव तक जेवरों
से लदी हुई
थी। उसे देख
कर मैं खुशी
से पागल हो
गया। वह भी
मुझे देख कर
अत्यंत प्रसन्न हुई। हम
दोनों एक दालान
में बैठ कर
बातें करने लगे।
कुछ देर में
भोजन बन गया।
हम दोनों ने
साथ ही भोजन
किया और फिर
बातें करने लगे।
थोड़ी देर बाद
गुलाम हमारे पास
फल, मेवे और
शराब लाए। कुछ
सेविकाएँ मीठे स्वर
में गाने लगीं
और कुछ अन्य
प्रकार की परिचर्या
करने लगीं। मेरी
प्रेमिका भी अपने
हाव-भाव और
अपने मधुर गायन
से मेरी प्रसन्नता
बढ़ाती रही।
इसी
तरह सारी रात
आनंद से बीती।
सवेरा हुआ तो
मैं ने पचास
अशर्फियों की थैली
चुपके से उस
के गाव तकिए
के गिलाफ के
अंदर रख दी
और उस के
पास से उठ
कर कहा कि
अब मैं चलता
हूँ।
उस
ने पूछा कि
अब कब आओगे।
मैं ने कहा
कि आज शाम
को फिर आऊँगा।
वह हँसी-खुशी
मुझे द्वार तक
पहुँचा गई। सवारी
के लिए ऊँटवाला
दरवाजे पर मेरी
प्रतीक्षा कर रहा
था। ऊँट पर
बैठ कर मैं
अपने घर आया
और ऊँटवाले से
कहा कि शाम
को मुझे फिर
उसी मकान पर
पहुँचा देना। अपने घर
से मैं ने
तरह-तरह की
खाद्य वस्तुएँ उस
सुंदरी के घर
भिजवाईं।
शाम
को निश्चित समय
पर ऊँटवाला आया।
मैं ने एक
और पचास अशर्फियों
की थैली कमर
से बाँधी और
अपनी प्रेमिका के
साथ सारी रात
बिता कर सुबह
फिर चुपके से
वह थैली उस
के पास छोड़
कर विदा हुआ।
इसी तरह मैं
काफी समय तक
उस के यहाँ
जाता रहा और
रोजाना पचास अशर्फियों
की एक थैली
उस के पास
छोड़ आता। कुछ
ही समय में
मेरा सारा धन
समाप्त हो गया
और मैं ने
उस के यहाँ
जाना छोड़ दिया।
धनाभाव में मेरी
बुरी हालत हो
गई और मेरी
समझ में नहीं
आ रहा था
कि क्या करूँ।
एक
दिन सवेरे के
समय मैं शाही
किले के पास
घूमने गया। वहाँ
काफी भीड़-भाड़
थी। अचानक मैं
ने देखा कि
एक आदमी घोड़े
पर सवार आ
रहा है और
उस की जीन
से एक लंबी
डोर के सहारे
एक मुद्राओं की
थैली लटक रही
है। संयोग से
एक लकड़हारा उस
के समीप से
निकला। उस ने
लकड़ियों की खरोंच
से बचने के
लिए घोड़े का
रुख यकायक फेरा।
इस से वह
थैली मेरे बिल्कुल
पास आ गई।
मैं ने लालच
में आ कर
थैली को झटके
से अपने कब्जे
में कर लिया।
सवार ने जब
देखा कि थैली
गायब है तो
अपनी तलवार म्यान
के अंदर रखे
हुए ही उसे
मेरे सिर पर
मारा। मैं गिर
पड़ा। आसपास के
लोग उस सवार
को बुरा-भला
कहने लगे कि
तुम ने इस
बेचारे को क्यों
मारा। उस ने
कहा तुम लोगों
को कुछ नहीं
मालूम, यह चोर
है और इसने
मेरी थैली चुराई
है।
मेरे
दुर्भाग्य से उसी
समय सिपाहियों की
गश्त आ पहुँची।
गश्त के मुखिया
यानी दारोगा ने
पूछा कि भीड़
क्यों लगाए हो।
सवार ने अपनी
थैली के खोने
की बात कही।
दारोगा ने पूछा
कि तुम्हें किसी
पर शक है
या नहीं तो
उस ने मेरी
ओर इशारा करके
कहा कि थैली
इस आदमी ने
चुराई है। दारोगा
ने पूछा तो
मैं ने इनकार
किया। फिर भी
सवार ने जोर
दे कर कहा
कि चोर यही
है। अब दारोगा
ने सिपाहियों को
आदेश दिया कि
मेरी तलाशी ली
जाए। मेरी तलाशी
ली गई तो
थैली मेरे पास
से निकली। दारोगा
ने सवार से
कहा कि अगर
यह थैली तुम्हारी
है तो कुछ
पहचान बताओ जिससे
सिद्ध हो सके
कि थैली तुम्हारी
ही है। उस
ने एक विशेष
प्रकार के सिक्कों
का नाम ले
कर कहा कि
इस थैली में
इस प्रकार के
बीस सिक्के हैं।
थैली को खोल
कर देखा गया
तो उसमें वास्तव
में उस प्रकार
के बीस सिक्के
निकले।
दारोगा
ने थैली सवार
को दे दी
और मुझे पकड़
कर काजी के
सामने पेश कर
दिया। काजी ने
आदेश दिया कि
इसका दाहिना हाथ
काट दो क्योंकि
चोरी की यही
सजा है। चुनांचे
मेरा हाथ काट
दिया गया। फिर
काजी ने कहा
कि यह तो
चोरी का दंड
हुआ। इसने झूठ
भी बोला तो
इसलिए झूठ के
दंडस्वरूप इसका एक
पाँव भी काटा
जाए। अब मैं
ने उस सवार
के, जो गवाह
के तौर पर
वहाँ था, पाँव
पकड़े और अनुनय-विनय की
कि मुझे काफी
सजा मिल चुकी
है, अब इस
नई सजा से
मुझे बचाओ। उसे
मुझ पर दया
आई और उस
ने काजी से
कहा कि मैं
अपना अभियोग वापस
लेता हूँ, इसे
झूठ बोलने का
दंड न दें।
अतएव काजी ने
पाँव काटने का
आदेश वापस ले
लिया।
सवार
वास्तव में भला
आदमी था। उस
ने वह थैली
मुझे दे दी
और कहा, 'तुम्हारे
व्यवहार और सूरत-शक्ल से
यह नहीं मालूम
होता कि तुम
पेशेवर चोर हो,
तुम पर जरूर
कोई ऐसी विपत्ति
पड़ी होगी कि
तुम ने ऐसा
काम किया।' यह
कह कर वह
अपनी राह चला
गया। वहाँ जो
लोग थे वे
मुझ पर दया
करके एक घर
में ले गए।
वहाँ उन्होंने मुझे
कुछ खाने-पीने
को दिया, एक
गिलास शराब पिलाई
और मेरे हाथ
में दवा लगा
कर खून बंद
करने के बाद
उस पर पट्टी
बाँध दी। मैं
धीरे-धीरे अपने
घर आया। अब
कोई सेवक वहाँ
नहीं था, क्योंकि
निर्धनता के कारण
मैं ने सब
को हटा दिया
था। कुछ देर
में जी घबराया
कि अकेले कैसे
रहूँ। सोचा कि
अपनी प्रेमिका के
पास चलूँ। एक
बार खयाल आया
कि मेरी ऐसी
हालत देख कर
वह भी मुझ
से घृणा करने
लगेगी। किंतु और कोई
व्यक्ति ऐसा था
भी नहीं जिसका
मैं सहारा लेता।
अतएव एक अन्य
रास्ते से गिरता
पड़ता मैं उस
के घर पहुँच
गया और एक
बिस्तर पर चुपचाप
लेट गया।
कुछ
देर में वह
सुंदरी मेरे आने
का समाचार पा
कर मेरे पास
आई। मैं ने
अपना कटा हुआ
हाथ अपनी आस्तीन
में छुपा लिया।
मुझे अशक्त और
पीड़ा से तिलमलाता
देख कर बोली,
'प्रियतम, यह तुम्हारी
क्या दशा है?'
मैं ने सारी
घटना को छुपाने
का निर्णय किया
और कहा कि
मेरे सिर में
बहुत दर्द हो
रहा है इसीलिए
तड़प रहा हूँ।
वह बोली, 'यह
तुम बहाना बना
रहे हो। तुम्हें
कोई और कष्ट
है। केवल सिर
दर्द से तुम
ऐसे तड़पनेवाले नहीं
हो। कुछ दिन
पहले तक तो
तुम हट्टे-कट्टे
थे। यह तुम्हें
क्या हो गया
है।'
मैं
ने उस की
बात का कुछ
उत्तर न दिया
लेकिन मुझे अपनी
दशा पर रोना
आ गया। उस
ने कहा, 'देखो,
तुम्हें सारा हाल
सच-सच बताना
पड़ेगा। अगर झूठ
बोलेगे या हाल
छुपाओगे तो मैं
समझूँगी कि तुम्हें
मुझ से बिल्कुल
प्रेम नहीं है
और अभी तक
जो प्रेम प्रदर्शन
करते थे वह
केवल ढोंग था।'
मैं ने और
रो कर कहा,
'प्रियतमे, तुम मुझ
से मेरा हाल
न पूछो। मेरा
हाल ऐसा नहीं
है कि बताया
जा सके। कम
से कम मैं
अपने मुँह से
अपनी दशा के
वर्णन करने का
साहस नहीं जुटा
पा रहा हूँ।'
इस
पर वह चुप
हो गई, और
मेरे सिर पर
हाथ फेरने लगी।
इसी भाँति काफी
समय बीत गया।
शाम हुई तो
उस ने कहा,
'चलो हम लोग
भोजन कर लें।'
मैं ने सोचा
कि दाहिना हाथ
तो है ही
नहीं, भोजन कैसे
करूँगा। इसलिए मैं ने
कहा कि मुझे
भूख नहीं है।
उसने कहा, 'बड़े
खेद की बात
है कि तुम
इतने पीड़ित और
दुखित हो कि
भोजन भी नहीं
करते और फिर
भी मुझ से
अपना हाल छुपा
रहे हो। अच्छा,
यह शराब पियो।'
मैं ने शराब
का प्याला बाएँ
हाथ से पकड़ा
और आँसू बहाते
हुए शराब पीने
लगा। मेरी प्रेमिका
ने पूछा, 'तुम
क्यों ठंडी साँसें
ले रहे हो
और क्यों तुम्हारी
आँखों में आँसू
हैं?' मैं ने
कहा कि मेरे
हाथ में सूजन
हो गई है,
उसमें बहुत दर्द
हो रहा है।
उस ने कहा
कि मैं देखूँ
क्या हो गया
है तुम्हारे हाथ
में। इस पर
मैं ने कुछ
न कहा और
प्याले की सारी
मदिरा एक ही
बार में पी
ली। प्याले में
शराब बहुत थी।
पीड़ा और थकान
के अलावा शराब
के तेज नशे
ने जो असर
किया तो मैं
लगभग बेहोश-सा
हो कर सो
गया। उस सुंदरी
ने मुझे सोता
जान कर मेरी
पीड़ा का भेद
जानना चाहा और
आस्तीन उलट कर
देखा तो मेरा
दाहिना हाथ कटा
हुआ पाया। उसे
बहुत ताज्जुब और
दुख हुआ।
मैं
जागा तो उसे
बहुत उदास और
दुखी देखा। उस
ने मुझ से
यह नहीं कहा
कि मैं तुम्हारा
हाथ देख चुकी
हूँ। शायद वह
सोच रही थी
कि मैं इस
बात से बुरा
मानूँगा। लेकिन उस ने
अपने सेवकों से
कहा कि तुरंत
मुर्ग की गाढ़ी
यखनी तैयार करो।
उन्होंने थोड़ी ही देर
में यखनी बना
दी। उसे पी
कर मेरे शरीर
में शक्ति आई
और मैं वहाँ
से चलने के
लिए उठ खड़ा
हुआ। मेरी प्रेमिका
ने मेरा दामन
पकड़ लिया। वह
कहने लगी, 'मैं
तुम्हें इस दशा
में जाने न
दूँगी। तुम मुझ
से अपने दुर्भाग्य
और दुख का
कारण नहीं बताते।
फिर भी मैं
जानती हूँ कि
तुम्हारी यह दशा
मेरे ही कारण
हुई है। मुझे
इस से जो
पश्चात्ताप हो रहा
है उसे तुम
नहीं समझ सकते।
मैं इस सदमे
को झेल नहीं
सकूँगी और मेरा
अंत समय निकट
ही समझो। अब
तुम वही करो
जो करने को
मैं तुम से
कहूँ।'
यह
कह कर उस
ने अपने सेवकों
से कहा कि
मुहल्ले के पुलिस
दारोगा और कुछ
माननीय निवासियों को बुलाओ।
उनके आने पर
उस स्त्री ने
मेरे नाम अपनी
सारी संपत्ति लिख
दी और कागज
पर उनकी गवाही
ले ली। इस
के बाद उन्हें
कुछ भेंट आदि
दे कर विदा
किया। उस के
जाने के बाद
उस ने एक
संदूक खोला जिसमें
मेरी दी हुई
सारी अशर्फियों की
थैलियाँ रखी थीं।
उस ने कहा
कि तुम यह
थैलियाँ मेरे लिए
छोड़ गए थे
लेकिन मैं ने
उन्हें हाथ भी
नहीं लगाया है।
यह कह कर
उस ने संदूक
में ताला डाल
दिया और उस
की चाबी मुझे
दे दी।
उसी
दिन से वह
स्त्री बीमार पड़ गई।
उस का रोग
तेजी से बढ़ता
गया और वह
तीन सप्ताह बाद
मर गई। मैं
ने उस के
सारे अंतिम संस्कार
पूरे किए और
फिर उस सारी
संपत्ति को ले
कर, जो उस
ने मेरे नाम
कर दी थी,
बगदाद आ गया।
वे तिल जो
तुम ने बिकवाए
थे, उसी के
धन से खरीदे
गए थे।
उस
बगदाद के व्यापारी
ने सारा हाल
कह कर मुझ
से कहा, 'अब
तुम्हें मेरे बाएँ
हाथ से खाने
का रहस्य मालूम
हो गया। मैं
तुम्हारा आभारी हूँ कि
तुम ने इतना
समय लगा कर
और कष्ट सह
कर मेरी कहानी
सुनी और मेरे
जी को हलका
किया। तुम्हारे शालीन
व्यवहार और भद्रता
से मुझे बहुत
ही आनंद मिला
है। मेरे तिलों
का जो दाम
तुम्हारे पास है
वह तुम्हीं रख
लो। किंतु मैं
तुम से एक
बात चाहता हूँ।
मैं बहुत दिनों
से बगदाद में
हूँ और बहुत
दिनों से देशाटन
छोड़ चुका हूँ।
मैं चाहता हूँ
कि तुम मेरी
सहायता करो ताकि
मैं नगर जा
कर व्यापार करूँ।
साल में जो
भी मुनाफा होगा
उसमें से हम
लोग आधा-आधा
बाँट लिया करेंगे।
मैं ने कहा,
'आप की कृपा
की तो कोई
सीमा ही नहीं
मालूम होती। आप
ने तिलों का
सारा मूल्य मुझे
दे डाला और
अब अपने विशाल
व्यापार में मुझे
साझीदार बना रहे
हैं। मुझे इस
बात से हार्दिक
प्रसन्नता होगी कि
व्यापार में आप
की सहायता करूँ।'
इस
के बाद एक
शुभ मुहूर्त में
हम लोगों ने
अपनी यात्रा आरंभ
की। हम लोग
बगदाद से कूच
करके कई देशों
के प्रमुख नगरों
में व्यापार के
लिए गए फिर
ईरान पहुँचे। वहाँ
से आप की
राजधानी काशगर आए। हम
लोगों को इस
तरह का व्यापार
करते हुए कई
वर्ष हो गए
थे। और हमारे
पास काफी धन
हो गया था।
फिर उस आदमी
ने कहा कि
अब मेरी इच्छा
है कि मैं
ईरान में स्थायी
रूप से रहने
लगूँ। चुनांचे हम
लोगों ने अपनी
सारी धन-संपत्ति
आधी-आधी बाँट
ली और खुशी-खुशी एक-दूसरे से विदा
ली। वह ईरान
में जा कर
रहने लगा और
मैं काशगर में
बस गया।
यह
कह कर ईसाई
व्यापारी ने कहा,
'मेरी यह कहानी
कुबड़े की कहानी
से विचित्र है
या नहीं?' बादशाह
ने आँखें तरेर
कर कहा, 'बिल्कुल
बकवास है। तुम्हारी
कहानी में कोई
दम नहीं है।
मैं तुम चारों
को उस कुबड़े
के बदले मरवा
दूँगा।' अब मुसलमान
व्यापारी आगे बढ़ा
और बोला, 'सरकार,
मुझे भी मौका
दिया जाए। मुझे
आशा है मेरी
कहानी अधिक मनोरंजक
होगी।' बादशाह ने उसे
कहानी सुनाने की
अनुमति दे दी।
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