नाई
ने कहा, सरकार,
मेरा तीसरा भाई
बूबक था जो
बिल्कुल अंधा था।
वह बड़ा अभागा
था। वह भिक्षा
से जीवन निर्वाह
करता था। उसका
नियम था कि
अकेला ही लाठी
टेकता हुआ भीख
माँगने जाता और
किसी दानी का
द्वार खटखटा कर
चुपचाप खड़ा रहता।
वह अपने मुँह
से कुछ न
कहता और दानी
जो कुछ भी
देता उसे ले
कर आगे बढ़
जाता। इसी प्रकार
एक दिन उसने
एक दरवाजा खटखटाया।
गृहस्वामी ने, जो
घर में अकेला
रहता था, आवाज
दी कि कौन
है। मेरा भाई
अपने नियम के
अनुसार कुछ नहीं
बोला लेकिन दुबारा
दरवाजा खटखटाने लगा। गृहस्वामी
ने फिर पुकारा
कि कौन है।
यह बगैर बोले
फिर द्वार खटखटाने
लगा। अब घर
के मालिक ने
दरवाजा खोला और
पूछा कि तू
क्या चाहता है।
बूबक
ने कहा कि
मैं गरीब भिखमंगा
हूँ, भगवान के
नाम पर कुछ
भीख दो। गृहस्वामी
ने कहा कि
क्या तू अंधा
है, उसने कहा
कि हाँ। फिर
गृहस्वामी ने कहा,
हाथ बढ़ा। यह
समझा कि कुछ
भीख मिलेगी। उसने
हाथ फैलाया तो
घर का स्वामी
उसे खींच कर
ऊपर ले गया।
फिर उसने बूबक
से पूछा कि
तू भीख लेता
है तो कुछ
देता भी है?
उसने कहा, मैं
आशीर्वाद ही दे
सकता हूँ, तुझे
आशीर्वाद देता हूँ।
उस आदमी ने
कहा कि मैं
भी तुझे आशीर्वाद
देता हूँ कि
तेरी आँखों की
ज्योति लौट आए।
बूबक
ने उससे कहा,
तू यह बात
पहले ही कह
देता। मुझे जीना
चढ़ा कर क्यों
लाया? उसने कहा,
मैं ने तुझे
दो बार आवाज
दी थी। तू
कुछ न बोला
तो मुझे भी
बेकार जीना उतरना-चढ़ना पड़ा। बूबक
बोला कि अच्छा,
मुझे जीने से
उतार तो दे।
उसने कहा कि
सामने ही तो
जीना है, तू
खुद उतर जा।
मजबूर हो कर
बेचारा बूबक टटोल-टटोल कर
जीना उतरने लगा
लेकिन एक जगह
उसका पाँव फिसल
गया और वह
लुढ़कता हुआ नीचे
आ रहा। उसके
सिर और पीठ
में बड़ी चोट
आई जिससे वह
तिलमिला उठा। बेचारा
बड़ी देर तक
अपनी चोटों को
सहलाता हुआ गृहस्वामी
को गालियाँ देता
और उस की
भर्त्सना करता रहा।
फिर वह लाठी
टेकता हुआ आगे
भीख माँगने के
लिए बढ़ गया।
कुछ
देर में उसे
अपने दो साथी
अंधे भिखारी मिले।
उन्होंने पूछा कि
तुम्हें आज भिक्षा
में क्या मिला।
बूबक ने सारा
वृत्तांत कहा कि
किस तरह एक
घर का निवासी
उसे पकड़ कर
ऊपर ले गया
और वहाँ जा
कर उसके साथ
कैसा निष्ठुर परिहास
किया और उसे
हाथ पकड़ कर
उतारा भी नहीं।
उसने यह भी
बताया कि जीना
उतरते समय पाँव
फिसलने से उसे
कैसा कष्ट हुआ।
फिर मेरे भाई
ने उनसे कहा
कि आज मुझे
कुछ नहीं मिला
है लेकिन मेरे
पास पहले के
कुछ पैसे पड़े
है, तुम जा
कर उनसे कुछ
भोजन सामग्री खरीद
लाओ।
जो
मनुष्य बूबक को
जीने से ऊपर
चढ़ा ले गया
था वह वास्तव
में एक ठग
था। वह चुपके
से बूबक के
पीछे आ रहा
था। वे तीनों
अंधे जब अपने
निवास स्थान पर
आए तो वह
भी उनके पीछे
पीछे चल कर
उनके घर में
आ घुसा। मेरे
भाई ने फिर
अपनी जेब से
कुछ पैसे निकाल
कर एक अन्य
अंधे से कहा
कि बाजार से
कुछ खाने को
ले आओ लेकिन
पहले हम लोग
अपना हिसाब-किताब
साफ कर लें,
तुम लोग देख-भाल कर
दरवाजा अच्छी तरह बंद
कर लो कि
कोई बाहरी आदमी
न देखे। ठग
उनका व्यापार देखना
चाहता था इसलिए
वह छुपने के
लिए छत में
बँधी हुई एक
रस्सी पकड़ कर
ऊँचा लटक रहा।
अंधों
ने अपनी लाठियों
से सारे घर
को टटोला और
फिर दरवाजा बंद
कर लिया। ठग
ऊँचा लटका था
इसलिए लाठियों की
टटोल से बच
गया। अब मेरे
भाई ने कहा
कि तुम लोगों
ने मुझे ईमानदार
समझ कर अपने
जो रुपए मेरे
पास रखे थे
उन्हें वापस ले
लो, अब मैं
उन्हें अपने पास
नहीं रखूँगा। यह
कह कर वह
अपनी एक पुरानी
गुदड़ी उठा लाया
जिसके अंदर बयालीस
हजार चाँदी के
सिक्के सिले थे।
उसके साथियों ने
कहा कि इन्हें
अपने पास ही
रहने दो, हम
न इन्हें लेंगे
न गिनेंगे क्योंकि
तुम पर हमें
पूरा विश्वास है।
बूबक ने टटोल-टटोल कर
गुदड़ी की माल
का अंदाजा लगाया
और फिर गुदड़ी
को यथास्थान रख
आया।
फिर
बूबक ने जेब
से पैसे निकाल
कर खाना लाने
के लिए कहा।
एक अंधे ने
कहा, तुम पैसे
रखो, बाजार से
कुछ लाने की
जरूरत नहीं है।
मुझे आज एक
अमीर आदमी के
घर से बहुत-सा खाना
मिला है। कुछ
तो मैं ने
खा लिया है
लेकिन अब भी
बहुत कुछ बचा
हुआ है। यह
कह कर उसने
अपनी झोली से
बहुत-सी रोटियाँ
और पनीर तथा
फल-मेवे निकाले।
तीनों अंधे भोजन
करने लगे। ठग
भी अपने को
रोक न सका
और मेरे भाई
के दाहिनी तरफ
बैठ कर यह
सुस्वादु वस्तुएँ खाने लगा।
ठग
ने अपने को
छुपाने का पूरा
प्रयत्न किया था
किंतु उसके मुँह
से खाना चबाने
की ध्वनि सुन
कर बूबक चौंका।
उसने मन में
सोचा कि महाविपत्ति
आ गई, यहाँ
कोई अन्य व्यक्ति
है जो हमारे
साथ खाना भी
खा रहा है
और जिसने गुदड़ी
का भेद जान
लिया है। उसने
एक दम से
ठग का हाथ
पकड़ लिया और
चोर चोर चिल्लाता
हुआ उसे घूँसे
मारने लगा। अन्य
दोनों अंधों ने
भी ठग को
चिल्ला-चिल्ला कर मारना
शुरू कर दिया।
चोर भी जहाँ
तक उससे हो
सका उन अंधों
की मार से
बचता हुआ उन्हें
मारने लगा। वह
भी चिल्लाने लगा
कि मुझे बचाओ,
चोर मुझे मारे
डालते हैं।
आसपास
के लोग चीख-पुकार सुन कर
दरवाजा तोड़ कर
अंदर घुस आए
और पूछने लगे
कि क्या बात
है। मेरे भाई
ने कहा कि
मैं जिसे पकड़े
हुए हूँ वह
चोर है, यह
हमारी भीख से
बचाए हुए रुपए
चुराने आया है।
ठग ने लोगों
को देख कर
आँखें बंद कर
लीं और अंधेपन
का अभिनय करने
लगा और बोला,
भाइयो, यह अंधा
बिल्कुल झूठ बकता
है। सच्ची बात
यह है कि
हम चारों अंधों
ने भीख माँग
कर यह रुपया
जमा किया है।
अब यह तीनों
बेईमान मुझे मेरा
हिस्सा नहीं देते।
यह मुझे चोर
बना रहे हैं
और मुझे मार
रहे हैं। भगवान
के लिए मेरा
न्याय करो और
मुझे इनसे बचाओ।
लोग
इस मामले को
उलझा हुआ देख
कर सब को
कोतवाल के पास
ले गए। वहाँ
अंधा बने हुए
ठग ने कहा,
मालिक, हम चारों
ही दोषी हैं।
लेकिन हम कसमें
खा कर भी
अपना दोष स्वीकार
न करेंगे। अगर
हम लोगों को
एक-एक कर
के मार पड़े
तो हम अपराध
कबूल कर लेंगे।
आप पहले मुझ
से आरंभ कीजिए,
इस पर मेरे
भाई ने कुछ
कहना चाहा तो
कोतवाल ने उसे
डाँट कर चुप
कर दिया।
ठग
पर मार पड़ने
लगी। बीस-तीस
कोड़े खाने के
बाद उसने एक-एक कर
के अपनी दोनों
आँखें खोल दीं
और चिल्ला-चिल्ला
कर कहने लगा,
सरकार, हाथ रोक
लीजिए। मैं सब
कुछ बताऊँगा।
कोतवाल
ने पिटाई बंद
करवा दी तो
ठग बोला, सरकार,
असली बात यह
है कि मैं
और मेरे यह
तीनों साथी अंधे
नहीं हैं। हम
अंधे बने हुए
हैं और भीख
माँगने के बहाने
लोगों के घरों
में घुस जाते
हैं और मौका
देख कर चोरी
कर लेते हैं।
इस तरह से
हमने बयालीस हजार
रुपया जमा किया
है। आज मैं
ने इन लोगों
से कहा कि
मेरे हिस्से का
चौथाई रुपया मुझे
दे दो तो
इन लोगों ने
भेद खुलने के
भय से मुझे
रुपया न दिया
और मेरे जिद
करने पर मुझ
से मारपीट की।
अगर आप को
मेरी बात पर
विश्वास न हो
तो इन्हें भी
मेरी तरह एक-एक कर
के पिटवाइए। फिर
देखिए यह लोग
तुरंत अपना अपराध
स्वीकार कर लेंगे।
मेरे
भाई और दो
अन्य अंधों ने
भी चाहा कि
अपनी बात कहें
किंतु उन्हें बोलने
नहीं दिया गया।
कोतवाल
ने कहा कि
तुम सब अपराधी
हो। मेरे भाई
ने बहुतेरा कहा
कि यह ठग
है और हम
तीनों वास्तव में
अंधे हैं। लेकिन
कोतवाल ने उसका
विश्वास न किया
और तीनों पर
मार पड़ने लगी।
ठग
ने इन चिल्लाते
हुए लोगों से
कहा, दोस्तो, क्यों
अपनी जान दे
रहे हो। मेरी
तरह तुम भी
अपनी आँखें खोल
दो और अपना
अपराध स्वीकार कर
लो। लेकिन वे
बेचारे आँखोंवाले होते तो
आँखें खोलते, उसी
तरह पिटते और
चिल्लाते रहे। अब
ठग ने कहा,
सरकार, यह लोग
बड़े पक्के हैं,
अगर आप इन्हें
पीटते-पीटते मार
डालेंगे तो भी
यह अपना अपराध
स्वीकार नहीं करेंगे।
इन्होंने जितना अपराध किया
है इन्हें उससे
अधिक दंड मिल
चुका है। अब
हम सभी को
काजी के सामने
पेश कर दिया
जाए। वह ठीक
फैसला करेगा।
काजी
के सामने उस
ठग ने कहा,
हम लोगों ने
चोरी से वह
धन एकत्र किया
है। आज्ञा हो
तो मैं उस
राशि को आपके
सामने पेश करूँ।
काजी ने अपना
एक सेवक उसके
साथ कर दिया।
ठग उसके साथ
जा कर मेरे
भाई की गुदड़ी
उठा लाया। काजी
ने उस रकम
का चौथाई भाग
ठग को दे
दिया जिसे ले
कर वह चला
गया। शेष रकम
उसने अपने पास
रख ली और
बाकी तीन लोगों
को और पिटवाया
और देशनिकाला दे
दिया।
यह
कह कर नाई
ने खलीफा से
कहा कि मुझे
मालूम हुआ तो
मैं ढूँढ़ कर
बूबक को गुप्त
रूप से अपने
घर लाया और
कई गवाह ले
कर काजी के
सामने उसको निर्दोष
सिद्ध किया। काजी
ने ठग को
बुला कर उसका
रुपया छीन कर
उसे दंड दिया
किंतु रकम इन
लोगों को न
दी। खलीफा यह
सुन कर बहुत
हँसा। फिर नाई
ने चौथे भाई
की कहानी शुरू
कर दी।
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