गुरुवार, 11 अक्तूबर 2018

रहस्यमय कुआं


डॉ. अरविन्द दुबे

वैसे तो ये कुआं भी आम कुओं जैसा ही था, पर था बड़ा पुराना। कभी इसका पानी प्रयोग में आता होगा पर बरसों से इससे पानी नहीं निकाला गया था। इससे पानी लिया जाना कब बन्द किया गया था कोई निश्चित रूप से नहीं बता सकता। कहने का मलतब यह कि बरसो से वीरान पड़ा था ये कुआं। काफी गहरा और अंधेरा था ये कुआं। ऊपर से पत्थर गिराओं तो छपाक की आवाज होती थी जिससे लगता था कि कुयें की तली में थोड़ा बहुत पानी है।

बरसों पहले कुछ उत्साही युवकों ने इस कुये का पुन: चालू करने की मुहिम शुरू की थी। इसके लिये वे कमर में रस्सी बांध कर कुये के अंदर उतरे थे। ऊपर खड़े लोग इस रस्सी के दूसरे छोर को कस कर पकड़े थे कि जब नीचे से इशारा मिले तो वे रस्सी ऊपर खीच लें।  इसके अलावा तीन-चार बाल्टियां भी रिस्सयों से बांध कर कुयें में लटकाई गयीं थीं। योजना ये थी कि नीचे उतरे युवक तली पर की गंदगी इन बाल्टियों में भर कर, रस्सी हिला कर जब ऊपर की ओर इशारा करेंगे तो ऊपर खड़े लोग इन बािल्टयों को को ऊपर खीच लेंगे और बाहर निकाल कर खाली कर देंगे। इसके बाद वे इन खाली बाल्टियों को दोबारा कुयें में उन युवकों के पास पहुंचा देंगे। इस तरह से एक बार अगर कुयें की सफाई हो जायेगी तो इसका पानी पीने के काम आ सकेगा। अन्दर गये युवकों को अगर कोई परेशानी होगी तो अपनी कमर में बंधी रिस्सयों को हिला कर वे संकेत देंगे ताकि उन्हें जल्दी से ऊपर खींचा जा सके।
कुये बाहर अपार जनसमुदाय जमा था, किसी मेले का सा माहौल था। गांव की पीने के पानी की समस्या जो दूर होने वाली थी। पर ऊपर खड़े लोग प्रतीक्षा करते रहे समय बीतता रहा। जब बहुत देर तक बाल्टी वाली कोई रस्सी न हिली और न युवकों की कमर में बंधी रस्सी ही हिली तो उन्हें फिक्र होने लगी। उन्होने कुये में झांक कर देखने की कोशिश की पर कुआं इतना गहरा था कि उसके अन्दर कुछ नजर  ही न आता था। घबरा कर वे युवकों को आवाज देने लगे पर कुयें के अन्दर से कोई आवाज नहीं आई। उन्होने हड़बड़ाहट में रिस्सयां ऊपर खीचनी शुरू कीं। तीनों युवक ऊपर आ गये। पर ये क्या उनमें से कोई किसी तरह की हरकत नहीं कर रहा था। आनन-फानन में तीनों की कमर से रस्सी खोल कर उन्हें पास के अस्पताल में ले जाया गया जहां डाक्टरो ने दो को तो तुरंत मृत घोषित कर दिया। उत्सव का माहौल शोक में बदल गया।
तीसरे युवक को ठीक होने में समय लगा। पर मानसिक रूप से वह कभी स्वस्थ न हो पाया। अब वह पागलों की सी हरकतें करता है। कभी बोलता है तो बताता हैं कि कुये में कोई था जिसने सबकी गर्दन दबाई थी। कभी-अपनी ही गर्दन दबा कर कुये के अन्दर घटी घटना का विवरण देने की कोशिश करता है। उसकी बेतरतीब बातें सुन कर लोगों को यकीन हो चला है कि सचमुच कुये में कोई दैवी आत्मा निवास करती है जो नहीं चाहती कि कोई उस कुयें का पानी प्रयोग करे।
गांव की कुछ युवतियों ने जीवन से निराश होकर या किन्ही अन्य कारणों से जब से इस कुयें में कूद कर आत्म हत्या की है तब से तो लोगों का ये विश्वास पक्का हो गया है कि इस कुयें में कोई चुड़ैल निवास करती है। उनका कहना है कि लड़कियों ने आत्महत्या नहीं की थी वरन उनके अनुसार जब ये लड़कियां सबेरे शौच के लिये गयीं थी तो उन्होंने उस कुयें की मुडेर पर एक बूढ़ी स्त्री को बैठे देखा। उसने लड़की को अपने पास बुलाया। जब लड़की उस स्त्री के पास पहुंची तो उसने लड़की की आंखों में सीधे-सीधें झांका। बस फिर क्या था लड़की पूरी तरह से उसके बस में हो गयी। वह बूढी औरत कुयें में उतर गयी और अन्दर से आवाज देकर लड़की को अपने पास बुलाने लगी। लड़की तो जैसे अपने बस में नहींं थी सो कठपुतली की तरह आगे बढ़ी और झम्म से कुयें में कूद गई। यही एक-एक कर के उन सारी लड़कियों के साथ हुआ।
तरह-तरह से लोग उन लड़कियों से जुडी कहानियां सुनाते हैं और बाद में ये कहना नहीं भूलते कि वह औरत थोड़े ही थी वह तो कुयें के अन्दर की चुडैल थी जो अपने शिकार की तलाश में रोज सुबह की घुघलके में कुये की मुडेर पर आकर बैठती है। जितने मुंह उतनी बातें। पर कभी भी किसी ने ये सवाल नहीं किया कि इस घटना को खुद किसने अपनी आंखों से देखा था? अगर देखा था तो वह कैसे चुडैल के वश में आने से बच गया? क्यों नहीं उसने चीख पुकार मचा कर औरों का ध्यान खीचने की कोशिश की?
कभी-कभी कुछ लोग तो प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा भी करते हैं और बताते हैं कि वे इस लिये बच गये कि उस औरत को देखते ही उन्होंने हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू कर दिया था। बीच में कछ नई विचारधारा के लोगों ने ऊपर से ही कुये के अन्दर झांकने की कोशिश की थी पर कुआं इतना गहरा था कि ऊपर से कुछ दिखाई ही नहीं दिया तब उन्होने दो तीन पेट्रोमेक्स तार में बांध कर कुयें के अन्दर डालने की कोशिश की। अचानक कुयें के अन्दर  से नीली हरी रोशनी निकलने लगी फिर एक विस्फोट हुआ। सारे लोग सिर पर पांव रख कर भागे।
मीडिया ने इस खबर को काफी बढ़ा-चढा कर प्रसारित किया और ये सिद्ध करने में कोई कसर नहीं रखी कि कुयें में किसी चुडैल का निवास है। बहुत से वैज्ञानिक सोच वाले लोगों ने इसके खण्डन की कोशिश भी की पर जनसाधरण में आज भी ये मान्यता है कि उस कुयें में चुडैल रहती है। जो सबेरे के घुंधलके में तरह-तरह के रूप (इंसान से लेकर जानवर तक के) बनाकर अपनें शिकार के लिये कुये से बाहर आती है।
अब हाल ये है कि रात की तो बात दूर दिन में भी लोग उस कुये के पास से नहीं निकलते। अगर निकलना भी पडे तो वहां से गुजरते समय हुनमान चालीसा पढ़ते रहते हैं। लोग अब उसे  बाकायदा चुडैल वाला कुआं कहने लगे हैं। संयोग से एक बार ऐसा हुआ कि कुयें के पास जिस किसान का खेत था उसे सबेरे के धुंधलके में उस खेत हल चलाते समय शायद सांप ने डंस लिया। चुडैल के डर से उसका इलाज नहीं करवाया गया था। तमाम झाड-फूंक  के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। गांव के लोगों ने उपचार के आभाव में हुई इस मृत्यु को कुयें वाली चुडैल  के खाते में ही लिख दिया। अब तो हालत ये है कि लोग ये सोच कर डरे रहते हैं कि गांव पर कोई आपत्ति आने वाली है। जब भी गांव में कोई शादी-ब्याह, किसी के यहां बच्चे का जन्म या कोई और मांगलिक कार्यक्रम होता है तो लोग उस समय इस कुयें वाली चुडैल का हिस्सा निकालना नहीं भूलते। इस हिस्से को एक काले कपड़े में बांध कर शनिवार के दिन उस कुयें में डाल दिया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि माता हम पर कृपा रखना। हमारे इस मांगलिक कार्य में कोई विघ्न न डालना।
बरसों से इस कुयें वाली चुडैल के बारे में अनेक कथायें कहीं-सुनी जाती हैं। हर साल उनमें एक दो घटनायें और जुड़ जाती हैं। प्रशांत मूलत: इसी गांव का रहने वाला है।चूंकि उसके पिता सरकारी सेवा में हैं अत: वह अपने परिवार के साथ शहर में ही रहता है। वहीं के एक स्कूल में आठवी कक्षा में पढ़ता है। चूंकि ये शहर गांव से बहुत दूर है इसलिये वह अपने परिवार के साथ सिर्फ गर्मी की लम्बी छुट्टियों में ही गांव आता है। गांव आते ही उसे उसके ताऊ जी चेतावनी देते हैं, "खबरदार, चुडैल वाले कुयें की तरफ न जाना।"
उसने भी अपनी दादी और ताऊ के मुह से चुडैल की बहुत सारी कहानियां सुनीं है। लेकिन प्रशान्त का मन है कि मानता नहीं। वह देखना चाहता है कि आखिर चुडैल वाले कुये में है क्या ? उसे डर भी लगता है, एक तरफ तो चुडैल से तो दूसरी तरह उसे भी ज्यादा ताऊ जी से।
पिछली बार जब उसने अपने गांव में कही जाने वालीं ये चुडैल की कहानियां अपने विज्ञान के अध्यापक को सुनाईं थीं तो वे खूब हंसे थे। प्रशांत चिढ़ गया, "आप मानोगे नहीं पर ये सब सच है। मेरे गांव के कितने लोगों ने तो उसे देखा तक है।"
उसके विज्ञान अध्यापक काफी देर तक उसे समझाते रहे कि ये सब कहानिया कोरी गप्पें हैं पर प्रशान्त तर्क पर तर्क दिये जा रहा था। अतत: वे बोले, "ठीक है इस बार मैं भी चलूंगा तुम्हारे साथ, तुम्हारे गांव, तुम्हारी इस चुडैल आंटी से मिलने।"
इसी सिलसिले में वे एक दिन प्रशांत के परिवार के साथ उसके गांव गये। वे लोग जब गांव पहुंंचे तो शाम हो चुकी थी।
"कल दिन में ही चलेंगे कुयें पर," अध्यापक जी ने सुझाव दिया।
"हां यही ठीक रहेगा। क्योंकि सबेरे को तो चुडैल निकल कर कुये की मुडेर पर बैढ़ती  हैं शिकार की तलाश में। खतरा उठाना ठीक नहीं," प्रशांत के ताऊ जी ने समर्थन किया।
अध्यापक जी हंसे, "नहीं वह बात नहीं। मैं तो दिन में इसलिये जाना चाहता था क्योंकि दिन में काफी रोशनी होती है। ऐसे में नजरों का धोखा होने की सम्भावना नहीं होगी।"
"मतलब आप समझते हैं कि ये बस हम लोगों की नजरों का धोखा है?"
"शायद।"
"और ये धोखा हम सालों से खाते आ रहे हैं?" प्रशांत के ताऊ जी चिढ़ गये।
"हो सकता है," अध्यापक जी ने शान्त स्वर में उत्तर दिया।
"सारे नफा नुकसान की जिम्मेदारी आपकी होगी, आप ही जानिये," ताऊ जी ने चेताया।
"कहें तो स्टाम्प पेपर पर लिख कर दे दूँ," अध्यापक जी ने जबाब दिया।
ताऊ जी पैर पटकते वापस चले गये।
रात को अध्यापक जी प्रशांत के साथ गांव के कुछ और बुजुर्गों‌ से चुडैल वाले कुयें की जानकारी लेने निकले। लोगों ने चुडैल के बारे में एक से बढ़कर एक कहानियां अध्यापक जी का सुनाईं। कुछ ने तो उन्हें डराने की कोशिश भी की तो कुछ ने उन्हें समझाया कि वहां जाते समय अपने साथ लोहे का चाकू या और कोई लोहे की चीज जरूर लेते जायें, साथ में हनुमान चालीसा भी पढ़ते रहें।"
"हमारें शरीरों मे कुदरती तौर पर काफी लोहा होता है। क्या उतना काफी नहीं है आप लोगों की इस चुडैल के लिये," अध्यापाक जी ने मुस्करा कर जबाब दिया। कुछ लोगों ने तो उन्हें चेतावनी तक दे डाली, "आप बेकार में इस मसले टांग अड़ा रहे हैं। अगर चुडैल नाराज हो गयी तो हमारे गांव पर कहर बरपा कर देगी. .  .गावं पर कोई मुसीबत आई तो इसके जिम्मेदार आप होंगे. . . अगर गांव पर मुसीबत आई तो छोंडेंगे हम आपको भी नहीं।" आदि धमकियां सुन कर वापस लौटते समय अध्यापक जी चुप थे।
प्रशांत ने ही चुप्पी तोड़ी, "यही ठीक रहेगा सर कि आप इसमें कुछ न करें।"
"कल देखा जायेगाअभी तो चल कर सोते हैं, थकान काफी हो रही हैं," अध्यापक जी शांन्त थे।
 उस रात प्रशान्त को काफी देर से नींद आई वह भी कुछ समय बाद कुत्ते भौंकने की आवाज से खुल गई। उसने उठ कर, अध्यापक जी जिस खाट पर सो रहे थे वहां आकर झांका, चारपायी खाली थी।
"कहां गये होंगे वे," उसने सोचा, "कहीं चुडैल उन लड़कियों की तरह अपने वशीभूत कर के तो नहीं ले गई उन्हें?"
उसे डर लगने लगा। उसने हड़बड़ाहट में ताऊ जी और अपने पिता को जगाया।
"मैंने पहले ही मना किया था इस मास्टर को, अब देखना क्या  हो," वे भुंनभुना रहे थे।
तय ये हुआ कि आस-पड़ोस के आठ दस लोगों को लेकर चुडैल वाले कुयें की तरफ चला जाय और इस मास्टर को ढूंढा जाये। पर इसकी जरूरत नहीं पड़ी। इन सारे लोगों के जाने के लिये तैयार होने से पहले ही मास्टर जी लौट आये, हाथ में एक झोला लिये और एक टार्च पकडे।
"कहिये कैसी रही," ताऊ जी ने आगे बढ़कर व्यंग किया।
"हम लोग काफी डर गये थे हमें तो लगा था कि ..."
"चुडैल पकड़ ले गई मुझे यहीं न," प्रशांत के पिता की बात काट कर उत्तर देते हुये अध्यापक जी मुस्कराये।
"मुझे अभी वापस जाना है,"  अध्यापक जी ने एकाएक कहा।
"अभी इस रात में, सबेरे चले जाइयेगा," प्रशांत के ताऊ जी ने सुझाव दिया।
"नहीं अभी जाना जरूरी है। आप बस बस अड्डे तक पहुचवाने की व्यवस्था कर दें। वहां से कोई न कोई सवारी मिल ही जायेगी। मैं फिर चार-पांच दिन बाद आऊंगा।
अध्यापक जी को उसी समय भिजवाने की व्यवस्था कर दी गई।
"लगता हैं उस मास्टर की मुलाकात हो गयी है चुडैल से। तुमने उसका चेहरा देखा? लगता था कि चुडैल ने उठा-उठा कर पटका है उसे," ताऊ जी हंस रहे थे। "देखना  वह मास्टर अब इस गांव की ओर  दोबारा मुँह न करेगा," ताऊ जी फिब्तयां कस रहे थे, प्रशांत का चेहरा ग्लानि से लाल हो रहा था।
पर अध्यापक जी फिर वापस लौटे। अब की बार वे अकेले न थे। उनके साथ कई और लोग थे जिनमें कुछ वैज्ञानिक थे। वे अपने साथ एक क्रेन और खुदाई वाली मशीन भी लाये थे। उन लोगों ने गांव वालों से छाते मांगे। छाते खोल कर रिस्सयों में बांध कर उल्टे करके वे उन्हें कुयें में डालते फिर बाहर खींच लेते। करीब आधे घंटे ये क्रम चला। इसके बाद उन्होने बड़ी पावर के बल्ब तारों के सहारे से कुयें में लटकाये और बाहर से अपने साथ लाये जेनेरेटर से उनमें बिजली पहुंचाई। सारा कुआं रोशनी से भर गया। लोग कौतूहल से सब कुछ देख रहे थे। जिस-जिस को खबर लगती वह चुडैल वाले कुयें की तरफ दौड़ा आता। दोपहर होते -होते वहां हजारों की भीड जमा हो गयी।
पीठ पर आक्सीजन का सिलेन्डर लगा, मुंह पर मास्क लगा कर दो लोग अपनी कमर में रिस्सयां बांध कर उस जगमगाते कुये में उतर गये। इधर क्रेन के द्वारा लोहे की रस्सी में बंधी लोहे की बड़ी-बड़ी बाल्टियां कुये में लटकाई गईं। कुयें में उतरे लोगों ने इनमें कुये का कचरा भरना शुरू किया। धीरे-धीरे ढ़ेर सारा मलबा कुयें के अन्दर से निकाला गया। कुयें को उसके सोते तक खोदने का काम पूरा किया गया। इसमें काफी समय लगा।
ये सब होते -होते शाम हो गई। अध्यापक जी के साथ आये और लोग तो लौट गये पर अध्यापक जी उस दिन गॉव में ही रूक गये। सारे क्षेत्र में इस घटना की चर्चा थी। कहीं से भनक पाकर दूरदर्शन की एक टोली भी गांव में आ गई। आज मास्टर जी सबके हीरो थे। सब जानना चाहते थे कि आखिर मास्टर जी ने ये सब किया कैसे? कहां गई वह चुडैल? अगर वह चुडैल नहीं थी तो अब तक की सारी घटनायें क्या थीं। हर आदमी के मन में एक सवाल था।
शाम को दूरदर्शन की टोली के आग्रह पर प्रधान की चौपाल पर जमावड़ा हुआ। अध्यापक जी बताने लगे, "पहली बार जब प्रशांत ने इस कुयें के बारे में मुझसे बात की तो मुझे लगा था कि शायद कुयें में कोई ऐसी गैस भर गई हो जिससे कुयें में उतरने वाले व्यक्ति को सांस लेने के लिये आक्सीजन न मिल पाती हो और उनकी मौत हो जाती हो। मैने पढ़ा था कि जब कहीं भरा पानी सूखने लगता हैं तो नीचे दलदल बन जाती है। इस दलदल में जब पत्तिया, वनस्पतियां या जानवर गिर कर सड़ने लगते हैं तो यहां पर एक तरह की गैस बनने लगती है  जिसे "मार्श गैस" या "दलदल की गैस" कहते हैं। इस गैस में मुख्यत: मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड होती हैं। इसे "प्राकृतिक या नेचुरल गैस" भी कहते हैं।"
"और शायद इन्हीं जहरीली गैसों की वजह से इस कुयें में उतरे लोगों की मौत हुई होगी," दूरदर्शन का ऐंकर अध्यापक जी की बात पूरी करने की कोशिश कर रहा था। "नहीं ये गैसें, खासकर मीथेन, जहरीली नहीं होती। कुयें में उतरे लोगों की मौत तो इसलिये हुई होगी कि वहां उन्हें सांस लेने के लिये आक्सीजन नहीं मिली होगी क्योंकि हवा की जगह तो वहां ये मार्श गैस भरी होगी।"
"पर उनमें से एक आदमी तो मरा नहीं था पर पागल हो गया था, वह तो कुछ और ही कहानी बताता है," एक ग्रामीण ने शंका जाहिर की।
"दरअसल जब सांस लेने लिये आक्सीजन न हो तो पहले दिमाग की कोशिकाओं में सूजन आती है, फिर वे गलने लगती हैं। उनका पर से नियंत्रण खत्म हो जाता है। चुंकि हमारा मस्तिष्क ही सांस लेने व दिल धड़कने की क्रियाओं को चलाता है फलत: ऐसा होने पर सांस और  दिल धड़कने की क्रिया बंद हो जाती है और उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। यदि ऐसे में किसी व्यक्ति को बचा भी लिया जाये तो कभी-कभी उसके मस्तिष्क को कुछ भागों की कोशिकायें आक्सीजन की कमी से हमेशा-हमेशा के लिये नष्ट हो जाती हैं या सूख जाती हैं। मस्तिष्क की कोशिकाओं की  खासियत ये होती हैं कि एक बार नष्ट हो जाने पर वे पुनर्जीवित नहीं हो पातीं इसलिये मस्तिष्क का वह प्रभावित भाग हमेशा-हमेशा के लिये खराब  हो जाता है।  इसलिये ऐसा व्यक्ति तरह -तरह की असामान्य हरकतें करने लगता है जिसे आप पागल होना भी कहते हैं।"
"पर  इस कुयें में लालटेन डालते ही पूरा कुंआ नीली रोशनी से भर गया था और वह विस्फोट,"  किसी ने पूछा।
खुली जगह पर जब दलदलों में ऐसी गैस बनती है तो वह हवा के साथ उड़ जाती है और किसी को इसका पता भी नहीं लगता पर कुयें जैसी बन्द जगहों में ये पानी के ऊपर पीले धुंधलके की तरह तैरती रहती है। अगर ऐसे में इसका सम्पर्क खुली आग से हो जाये, जैसा कि लालटेन अन्दर लटकाने के साथ हुआ होगा तो ये ऐसी बंद जगह में नीली लौ के साथ जलनें लगती है और इसमें विस्फोट हो जाता है।"
"पर आपने ये बात कैसे जाना कि ये गैस मीथेन ही है," एक दूरदर्शन संवाददाता शक जाहिर कर रहा था।
"शक तो मुझे पहले से ही था पर इसको परखना भी जरूरी था। दूसरे आप सब लोगों का कहना था कि सबेरे के धुंधलके में चुडैल से भी मुलाकात हो जाती हैं तो उससे मुलाकात करनी भी जरूरी थी।"
लोगों में हंसी की एक लहर दौड़ गयी।
"मैने सोचा कि चुडैल से मिलने और गांव वाले तो मेरे साथ जाने से रहे तो मैने अकेले ही भोर में कुयें पर जाने की योजना बनाई, साथ मे था ये पतला तार, पांच सेल की टार्च, 50 मिलीलीटर की डाक्टरी सिरिंज और इसके मुह पर लगी ये प्लाटिक की पतली ट्यूब।मैं इसको लेकर कुयें पर गया। मैने पहले पतले तार में बांध कर अपनी टार्च जलाकर कुयें में लटकाई। वहां न नीली रोशनी थी और न कोई विस्फोट हुआ क्योंकि टार्च में लालटेन की तरह कोई खुली आग तो होती नहीं। कोई और असमान्य बात भी नजर नहीं आई। फिर मैने उस प्लास्टिक की पतली ट्यूब के अलगे सिरे पर लकडी का टुकड़ा बांधकर कुयें में लटकाया।"
"लकडी का टुकड़ा क्यों," किसी ने पूछा।
"ताकि इस प्लास्टिक ट्यूब का अलगा हिस्सा मुड़े नहीं और ट्यूब आसानी से कुयें की तली तक पहुंच जाये। इसे मैने 50 मिलीलीटर की सिरिज में लगाकर नीचे से गैस सिरिज में भरने की कोिशश की। कई बार प्रयास करने पर जब मुझे लगा कि कुयें की गैस इस सिरिंज में आ गई होगी तो मैने तेजी से इसकें मुंह पर लगी सिरिज के मुंह से प्लास्टिक की नली हटाकर एक मोमबत्ती का टुकडा फंसा दिया ताकि इसमें भरी गैस वापस न निकल जाये। सिरिज के दूसरे हिस्से को भी मैने पिघली मोम से भरकर सील कर दिया। इस सिरिज को लेकर मैं तुरंत रात में ही अपनी प्रयोगशाला को चला गया ताकि गैस लीक न हो जाये। वहां मेरा शक सही निकला। परीक्षणों में पता चला कि सिरिंज में भरी गैस "मार्श गैस" ही है, मुख्यत: मीथेन।
"आपकी चुडैल से मुलाकात हुई उस दिन?" किसी ने चुटकी ली।
"हां हुई।"
"क्या!" कई लोगों ने आश्चर्य से कहा।
"हां, जब मैं कुयें की तरफ बढ़ रहा था तो अंधेरे में मुझे दो आंखें चमकती दिखाई दीं। मैनें टार्च की रोशनी उन पर डाली तो सारा मामला समझ में आया।"
"कैसा मामला?"
"कुये पर पहले कभी घिर्री लगाने के लिये उसकी जगत पर दो खम्भे बनाये गये होंगे। वक्त के साथ एक खम्भा तो गिर गया है पर एक अभी खड़ा है।"
सबने स्वीकृति में सिर हिलाया।
"उसी खम्भे पर आकर बैठती थी ये बिल्ली"
"बिल्ली?" कई आवाजें एक साथ आईं।
"हां बिल्ली यानि कि आपकी चुडैल। बिल्ली की आंखों में एक खास किस्म का पदार्थ होता है जिससे उसकी आंखें अंधेरे में भी चमकती हैं। आप लोगो ने देखा होगा?" भीड में से बहुत से लोगों ने सहमति में सिर हिलाया।
"जब ये बिल्ली उस खम्भे पर चढ़कर आंखें चमकाती थी तो अंधेरे में ये खम्भा आपको नारी आकृति जैसा लगता था और उस पर बैठी बिल्ली की आंखे आपको उसकी आंखों जैसी दिखती थीं। टार्च की रोशनी पड़ते ही घबराकर भागी ये चुडैल।"
लोगों में एक बार फिर हंसी की लहर दौड़ गई।
"पर उन लडकियों की मौतें, उस किसान की मौत?" भीड़ में कुछ खिसियाये लोग ऐसे भी थे जो अभी भी हार मानने को तैयार नहीं थे।
"लड़कियों की मौत तो निश्चित रूप से आत्महत्या ही रही होगी। कारण तो उनके घर-परिवार वाले या मित्र-परिचित ही बेहतर जानते होंगे और उस किसान को तो आप भी जानते हैंं, सांप ने काटा था। अगर झाड़-फूंक की जगह उसका इलाज कराया होता तो शायद वह भी आज जिंदा होता।"
"कुदरत ने कैसा अजीब खेल खेला है इस गांव में," किसी ने टिप्पणी की।
"नहीं ये इस तरह की पहली घटना नहीं है। दलदली क्षेत्रों में तो ऐसी घटनायें आम हैं। जब कभी इस मार्श गैस मेंं आग लग जाये तो ये दलदल के ऊपर  के पानी पर नीली लौ के साथ जलने लगती है। कई देशों में ऐसी घटनाओं पर बहुत सारी किंवदंंतियां प्रचलित हैं। जिनमें आयरलैंड, स्काटलैण्ड व इन्गलैण्ड के कुछ भागों में प्रचलित "विल ओ विस्प" और न्यूफाउन्डलेण्ड में दिखने वाली "जैक-ओ- लेन्टर्न" जैसी रहस्यमयी दलदली रोशनियां बहुत मशहूर हैं। हमारे देश में ही आपने कई बार अखबारों में पढ़ा होगा कि पुराने बरसों से बंद पड़े कुयें की सफाई करने लोग उसमें उतरे और उनकी मौत हो गई।"
दूरदर्शन के एंकर ने सहमति मे सिर हिलाया।
"ऐसे कुओं की सफाई करने से पहले उनमें खुले छातों को उल्टा लटका कर बार-बार बाहर खींचना चाहिये ताकि इस तरह से उनके अन्दर भरी मार्श गैस बाहर निकल सके। इसके बाद कुयें के अन्दर जलती आग डालें। अगर नीली रोशनी न दिखे या विस्फोट न सुनाई दे तभी कुयें में उतरा जाये। हो सके तो ऐसे कुओं की सफाई के लिये इस कार्य के विशेशज्ञों का सहारा लिया जाये।"
इसके बाद महफिल बर्खास्त हो गई।
इस घटना को कई साल हो चुके हैं। कुआं खूब पानी दे रहा है। गांव वालों की पीने के पानी की समस्या काफी हद तक हल हो गयी है। अब आदमी, जानवर, बच्चे उस कुये के आस-पास ही जमे रहते हैं। अब न दिन में, न रात में कोई भी उस कुये के पास जाने से नहीं डरता। सब कुछ बदल गया है। अगर नहीं बदला हैं तो उस कुयें का नाम। लोग अब भी उसे चुडैल वाला कुआं ही कहते हैं।



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