गुरुवार, 2 नवंबर 2023

विज्ञान कथा पत्रिका के जुलाई-सितम्बर 2021अंक में प्रकाशित मेरी विज्ञान कथा

त्रिशंकु**

डा. अरविन्द दुबे

चौबीसवीं शताब्दी के आते-आते पृथ्वी का वातावरण इतना विषाक्त हो चला था कि लोगों का जीना मुहाल हो गया। करीब 90 प्रतिशत  लोग सांस के रोगों से, गुर्दे के रोगों से या हृदय रोगों से पीड़ित होने लगे। ओजोन परत में छेद इतने बृहद हो गए कि सूर्य का पराबैंगनी विकिरण सीधे-सीधे लोगों की त्वचा पर पड़ने लगा। बार-बार अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियां और समझौते होते रहे, राष्ट्राध्यक्ष प्रदूषण पर रोक लगाने के करारनामों पर हस्ताक्षर करते रहे, संयुक्त विज्ञप्तियां जारी की जाती रहीं पर जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। व्यक्तिगत स्तर पर कोई कुछ नहीं कर रहा था। कोई कुछ समझ भी नहीं रहा था। पर्यावरणविद और वैज्ञानिक बार-बार लोगों को चेताते रहे पर लोगों को लगता यह तो आने वाले समय की बात है हमारी जिंदगी में यह सब कहां होने वाला है?  हम तो जैसे चलते हैं, चलते रहेंगे, जो करते हैं, करते रहेंगे।

पर एक दिन ऐसा आया कि यह सब दूर की बात नहीं रही, वर्तमान की बात हो गई। लोगों में जब त्वचा का कैंसर* महामारी की तरह फैलना शुरू हुआ, तब सब लोग चेते। यह पृथ्वी के वातावरण में सबसे ऊपरी स्तर पर पाई जाने वाली ओजोन परत के क्षरण का कमाल था। अब सूर्य से आने वाले प्रकाश में पराबैंगनी विकिरण की मात्रा 28 गुना तक बढ़ गई थी। यही पराबैगनी विकिरण लोगों में त्वचा का कैंसर उत्पन्न कर रहा था। कुछ लोगों ने इस आपत्ति को भी अवसर की तरह भुनाया। उन्होंने इसके लिए सनस्क्रीन औषधियां## बनानी शुरू कर दीं। यह विज्ञापित किया जाता था कि यह परा बैगनी विकिरण को रोकने में शत-प्रतिशत प्रभावी हैं। वैज्ञानिक कहते रहे कि किसी भी औषधि से ऐसा संभव नहीं है इसलिए अपने शरीर को मोटे सफेद कपड़ों@ में ढके रहें पर विज्ञापन बाजी के आगे उनकी आवाज कौन सुनता? 

पृथ्वी का वायुमंडल इतना गर्म हो चला था कि बाहर जाने पर मोटे कपड़े पहने पहनना कष्टदायक होता था। दूसरे स्त्रियों में फैशन के चलते छोटे कपड़े पहनने की होड़ इतनी बढ़ गई थी कि कहीं कहीं तो स्त्रियां प्रगैतिहासिक काल में लौट जाने को आतुर दिखती थीं। जहां स्त्रियां कपड़ों से अपना बदन ढकने को स्वीकार भी कर रही थी वहां गहरे या काले रंग के कपड़ों का प्रयोग अधिक हो रहा था। वैज्ञानिक तथ्य# के इतर उनका विश्वास था कि गहरे या काले कपड़े प्रकाश को रोककर विकिरण से उनकी अधिक रक्षा कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त मध्यम आय-वर्ग की स्त्रियां थीं जो एक तरफ तो कपड़े छोटे करने की फैशन का मोह भी त्याग नहीं पा रही थी तो दूसरी ओर महंगी सन-स्क्रीन को खरीदने की उनकी क्षमता भी नहीं थी। उनकी इस समस्या को बेईमान व्यवसायियों ने खूब भुनाया। उन्होंने अपने घटिया लोशन व क्रीम, विकिरण रोकने के शत-प्रतिशत झूठे दावों पर इस वर्ग को बेचकर खूब लाभ कमाया। 

कुछ छद्म त्वचा रोग विशेषज्ञ भी इस में कूद गए। इन्होंने तरह-तरह के चिकित्सा तंत्रों के उदाहरण देकर लोगों को घर में सनस्क्रीन बनाने के नुस्खे सिखाने शुरू कर दिए। इससे नेट पर उनके अभिदाता ¼सब्सक्राइबर½ तो बढ़े पर इन उपायों को अपनाने वाले लोग सुरक्षा के झूठे भ्रम में पड़कर अपनी त्वचा को गहरा नुकसान पहुंचा रहे थे। 

स्थिति यह बन गई थी कि हर घर में त्वचा के कैंसर का एक-दो रोगी मिलने लगे। इधर गुर्दे के रोग भी बेतहाशा बढ़ रहे थे। हालांकि गुर्दे का प्रत्यारोपण और स्टेम कोशिकाओं से अंग बनाने का कार्य एक व्यवसाय का रूप ले चुका था फिर भी यह आमजन के लिए महंगा था। गुर्दे के बढ़ते रोगों के कारण ये उपाय भी प्रत्यारोपण हेतु गुर्दों की आवश्यकता की पूर्ति भी नहीं कर पा रहे थे। आज भी 21वीं शताब्दी की तरह गुर्दे या अन्य अंगों के प्रत्यारोपण हेतु लंबी प्रतीक्षा सूची होती थी। कुछ रोगी तो अपनी बारी आने से पहले ही काल-कवलित हो जाते थे। कुल मिलाकर स्थिति यह थी कि पृथ्वी पर लोगों का जीना मुहाल था। लेकिन जाएं तो जाएं कहां, यह बहुत बड़ा प्रश्न था। 

वैज्ञानिक लगातार पृथ्वी जैसे रहने योग्य (अर्थलाइक या हैबिटेबल½ ग्रहों की खोज में जुटे थे। यह ग्रह ऐसे थे जो अपने स्थिर तारे से इतनी दूर रहकर उसका चक्कर लगाते थे कि जल इनमें तरल स्थिति में रह सकता था। इन पर जीवन पनपने योग्य परिस्थितियां थी। लोगों को एकदम पृथ्वी जैसा ग्रह तो अब तक नहीं मिल पाया था पर पास की आकाशगंगा अल्फा सेंचुरी और शनि के उपग्रह टाइटन पर ऐसी परिस्थितियां मिली थीं जिनमें जीवन पनप सकता था। पर परिस्थितियां होने से क्या होता है? 

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एक अंतर्राष्ट्रीय अरबपति अंतरिक्ष व्यवसायी की नजर इस पर गई। उसने अपने यानों को वहां भेजना शुरू कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से उसने ग्रह पर नियंत्रिण वातावरण में कुछ लाख लोगों के लिए बस्तियां बसाने की योजना की जब घोषणा की तो लोगों को सहसा भरोसा ही नहीं हुआ। यह बहुत बड़ा कार्य था जिसे किसी विकसित देश द्वारा करने की योजना बनाई जाती तब तो बात कुछ समझ में आती। पर एक प्राइवेट कंपनी ऐसा कर सकती है यह लोगों की समझ से परे था। इतिहास गवाह है कि दूरदृष्टि रखने वाले विजनरियों ने हमेशा से असंभव को संभव कर दिखाया है। न जाने क्यों यह कंपनी अपना कार्य काफी गोपनीय तरीके से कर रही थी। जैसा कि आमतौर पर होता है अफवाहों का बाजार गर्म होने लगा। कयास लगाए जाने लगे। कोई कहता कि कंपनी को उस ग्रह पर कोई विशिष्ट धातु मिल गई है जिसका उपयोग जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स या कृत्रिम अंगों के निर्माण में होगा और इससे उस व्यवसायी के वारे-न्यारे हो जाएंगे। इसलिए कंपनी उत्साहित होकर इसमें पैसा लगा रही है। बस्तियां बसाना तो एक बहाना है। कोई कहता कि वहां पर एक बड़ा पर्यटन स्थल बनाया जा रहा है जहां लोग घूमने या मजे करने जाया करेंगे। खरबपतियों के बच्चों की शादियां और कुछ समारोह भी वहां हुआ करेंगे। जितने मुंह उतनी ही बातें। पर एक दिन कंपनी की प्रवक्ता ने सारी अफवाहों का अंत कर दिया। उसने घोषणा की उन्होंने वहां पर नियंत्रित वातावरण में एक बस्ती बसाई है। उन्होंने ग्रह का नया नामकरण किया, ‘प्लेनेट हेवन’।

प्लेनेट हेवन की घोषणा के साथ ही यह ग्रह सब की चर्चा का विषय बन गया। प्लेनेट हेवन के प्राकृतिक वातावरण की वायु रोगाणु मुक्त थी। उसके डोम की दीवारों से छनकर उतना ही विकिरण वहां के निवासियों तक पहुंचता था जितने की उन्हें आवश्यकता थी। पूरा वातावरण शरीर में उर्जा जगाने वाला था। एजेंसी भी उसे इसी तरह प्रचारित कर रही थी, 

‘पृथ्वी के वातावरण ने जो विषैले तत्व आपके शरीरों में भर दिए हैं उन से मुक्ति पाने को, अपने शरीर को डिटॉक्सिफाई करने को प्लेनेट हेवन पधारें। यहां पर थोड़े समय का प्रवास आपको पूरी तरह से तरोताजा कर देगा। इससे वापस पृथ्वी पर लौट कर आप अतिरिक्त ऊर्जा के साथ अपने कार्यों को कर पाएंगे।’ 

समय गुजरता गया। प्लेनेट हेवन अब उच्च आय-वर्ग के लोगों का पसंदीदा पिकनिक स्पॉट बन चुका था। कोई प्रतिवर्ष तो कोई कुछ वर्षों की आवृत्ति पर यहां पृथ्वी के विषाक्त वातावरण से मुक्ति पाने हेतु, पृथ्वी की समस्याओं से दूर प्लेनेट हेवन के सुरम्य में वातावरण में अस्थाई प्रवेश हेतु जाने लगा। मध्यम आय-वर्ग के लोगों के लिए यह एक आकाश-कुसुम ही बना रहा। अंततः कुछ व्यवसायियों ने इसमें भी अवसर खोज निकाला। कुछ व्यवसायियों ने अपने व्यवसाय में एक निश्चित धनराशि का निवेश करने पर प्लेनेट हेवन के लॉटरी कूपन देने शुरू कर दिए। फिर सारे कूपनों को एकत्रित करके लाटरी आयोजित की जाती थी। किसी एक भाग्यशाली विजेता को प्लेनेट हेवन जाने का मौका मिलता था। इससे एक ओर कुछ लोगों को प्लेनेट के सूक्ष्म प्रवास का मौका तो मिला ही दूसरी ओर ऐसे व्यवसायियों के व्यवसाय ने दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की की। इनसे सीख लेकर कुछ बीमा कंपनियों ने अपने अभिदाताओं से निश्चित धनराशि प्रीमियम के तौर पर लेनी शुरू की। एक निश्चित समयांतराल पर उनके बीच लाटरी डाली जाती थी। जिस भाग्यशाली को मौका मिल जाता वह प्लेनेट हेवन की सूक्ष्म सैर कर आता था। बाकी लोग इसी आशा में प्रीमियम जमा करते रहते थे कि कभी उनकी भी बारी आएगी। यदि बीमे की अवधि समाप्त होने तक उनकी बारी नहीं आती थी तो उन्हें अवधि की समाप्ति पर एक निश्चित धनराशि मिलती थी जिसे वे प्लेनेट हेवन पर जाने के लिए प्रयोग कर सकते थे। इसके लिए प्लेनेट हेवन के शुल्क में छूट का भी प्रावधान था। कुल मिलाकर मध्यम आय वर्ग के लोग सारी जिंदगी प्लेनेट हेवन जाने का सपना पाले रहते थे। निम्न आयवर्ग वाले लोग प्लेनेट हेवन कभी जा तो नहीं पाते थे पर उनके सपनों में, उनकी बातों में, उनकी अदम्य आकांक्षाओं में प्लेनेट हेवन बसता था। 

इसके अतिरिक्त अकूत धन के स्वामी कुछ ऐसे लोग भी थे जो करीब-करीब पूरे तौर पर प्लेनेट हेवन पर बस गए थे। वहीं से वे अपने व्यवसाय का संचालन करते थे। ऐसे लोगों के लिए प्लेनेट हेवन चलाने वाली एजेंसी की प्रीमियम योजनाएं थी। इसके अतिरिक्त धन-कुबेरों का एक और वर्ग भी था। ये वे लोग थे जो बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के मालिक थे। पृथ्वी पर अपना सफल जीवन व्यतीत करने के पश्चात अपने रिटायरमेंट का बाकी समय प्लेनेट हेवन के सुरम्य और स्वस्थ वातावरण में बिताना चाहते थे। इसके लिए अलग से व्यवस्था की गई थी। यही वह स्थान था जिसके बारे में पहले-पहल यह अफवाह उड़ी थी कि प्लेनेट हेवन की एजेंसी प्लेनेट हेवन पर बस्ती बसाना चाहती है। ये सुव्यवस्थित आवासीय संरचनाएं थी जहां का माहौल शांत था, सुखद था और स्वस्थ था। लोग वहां अपनी बची जिंदगी पृथ्वी की भागमभाग से दूर हंसी-खुशी से काटते थे। ये अति विकसित  पर गांव जैसी एक संरचनाएं थीं  जहां जीवनयापन की सारी सुविधाएं थीं। एक ओर जहां जिम, पार्क, और खेलों की सुविधाएं थी तो भोजन के लिए रेस्टोरेंट, माल और एक छोटा सा बाजार भी होता था जहां एजेंसी के द्वारा दिए गए कूपन से यह सुविधाएं प्राप्त की जा सकती थी। इस प्रकार के निवासों में रहने के लिए एजेंसी से एक करार किया जाता था। वहां सारे लोग स्वस्थ रहते थे। बीमारी वहां के निवासियों के लिए अपवाद थी। यह बीसवीं शताब्दी के एक बहुचर्चित ‘रामराज्य कंसेप्ट’ का मूर्तिमान स्वरूप था, जहां ‘दैहिक, दैविक, भौतिक तापा; प्लेनेट हेवन काहु न व्यापा’ चरितार्थ हो रहा थे। इस प्रकार की बस्तियों में रहने वाले लोग एक बहुत बड़ी धनराशि एजेंसी के पास जमा करते थे। पृथ्वी के कुछ वर्षों के समयांतराल पर एक निश्चित धनराशि की किस्त और जमा की जाती थी। पृथ्वी पर इसके लिए बैंक में एक ‘गारंटी-फंड’ जमा करना होता था जिससे किसी आकस्मिक आपदा या बीमारी आदि के खर्चों की पूर्ति की जाती थी। यदि कोई व्यक्ति अपने करार की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ हो जाता था या उसे कोई संक्रामक बीमारी होने का शक होता था तो उसे तुरंत वापस पृथ्वी पर भेजने की व्यवस्था थी। जहां एक निश्चित समय तक उसे ‘क्वारंटीन’ में रहना होता था। मेडिकल जांच के पश्चात ही उसे पृथ्वी के किसी स्थान पर प्रवेश मिलता था।

प्लेनेट हेवन की जितनी प्रसिद्ध थी उसका गुणवत्ता नियंत्रण भी उतना ही कठोर था। उसमें किसी प्रकार की कोई ढ़िलाई नहीं दी जाती थी। किसी व्यक्ति को प्लेनेट हेवन में प्रवेश हेतु पूर्णतया निरोग होना और संक्रमण मुक्त होना आवश्यक था। जो लोग प्लेनेट हेवन में दीर्घ आवास हेतु आवेदन करते थे उनकी पूरी शारीरिक व रक्त जांचों के अतिरिक्त जेनेटिक मैपिंग भी कराई जाती थी ताकि यह पता लग सके कि उन्हें भविष्य में कोई ऐसी बीमारी तो नहीं होने वाली है जिसे बाद में प्लेनेट हेवन का दोष बताया जा सके या जो प्लेनेट हेवन के सुरम्य वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले। इसके अतिरिक्त दीर्घ प्रवास के इच्छुक इन व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक जांच (साइकोलॉजिकल टेस्ट) व व्यक्तित्व संबंधी जांच (पर्सनैलिटी टेस्ट) भी की जाती है। शारीरिक और मानसिक जांचों में पास होने पर ही किसी व्यक्ति को प्लेनेट हेवन में प्रवेश मिलता था। इसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी होने पर आवेदन पत्र का संज्ञान ही नहीं लिया जाता था। एजेंसी के लोग जानते थे कि प्लेनेट हेवन को लोग इतना महत्व उसके वातावरण की शुचिता को लेकर ही दे रहे थे। इसलिए कंपनी इस बिंदु पर कोई समझौता करने के लिए सोचती भी नहीं थी। इस बिंदु पर एजेंसी बहुत प्रभावशाली लोगों के आवेदन भी रद्द कर चुकी थी। इसके लिए एजेंसी ने पृथ्वी पर और प्लेनेट हेवन के बफर एरिया में परीक्षण कक्ष स्थापित किए थे। इन में आवेदनकर्ताओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की गहन जांच के बाद ही विस्तृत विवरण वाले प्रमाण पत्र जारी किए जाते थे। 

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एक  स्पेस एजेंसी के प्रमुख बिनानियो ने अपने व्यवसाय में अथाह पैसा कमाया था। वह दुनिया भर में अपनी राजसी जीवन शैली के लिए विख्यात था। सारी जिंदगी सारे भोग-विलास का उपभोग कर वह अपने जीवन से पूर्णतया तृप्त हो चुका था। उसकी आधिकारिक पत्नी स्वर्ग सिधार चुकी थी। संतानों ने पूरे व्यवसाय को संभाल रखा था। सारे जीवन में उसने इतना धन अर्जित कर लिया था कि वग उसका हिसाब तक याद कर पाने में असमर्थ था। उस समय के धनकुबेरों की तरह वह अब अपने जीवन के बचे वर्ष प्लेनेट हेवन में बिताना चाहता था। कुछ माह पूर्व उसने इसके लिए आवेदन किया था। आज उसे ‘मेडिकल क्लीयरेंस’ मिलनी थी। इसके बाद आगे का कार्य आसान था। धन के लेन-देन का कार्य हो ही चुका था। इसके बाद उसे वहां ले जाने वाली आवश्यक सामानों की किट मुहैया की जानी थी। इसके बाद उसकी एक माह की ट्रेनिंग होगी जिससे वह अंतरिक्ष यात्रा के लिए तैयार हो सके। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उसको अपनी यात्रा की तिथि मिल जाएगी। इसके बाद उसे अपने आप को इस लंबी अंतरिक्ष यात्रा के लिए मानसिक स्तर पर तैयार करना था। वह अब सब से नाता तोड़कर प्लेनेट हेवन में बस जाने वाला था। हालांकि पृथ्वी से उसका डिजिटल संपर्क जीवन पर्यंत रह सकता था। वह अपनी कंपनी के कर्मचारियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सलाह के लिए उपलब्ध रह सकता था। पर एक बार प्लेनेट हेवन में बस जाने वाले लोग अक्सर वहीं जाकर रम जाते थे। वे पृथ्वी से संपर्क कम ही करते थे। मानो उन्होंने पृथ्वी की जिंदगी से संन्यास ले लिया हो। 

उस समय बिनानियो प्लेनेट हेवन के पृथ्वी के ऑफिस (अर्थ आफिस) में एक स्वचालित कुर्सी पर बैठा था। उसकी बारी आने पर यह स्वचालित कुर्सी अपने आप चलकर गंतव्य काउंटर तक पहुंच जाएगी। तब तक वह प्लेनेट हेवन के सपनों में खोया था। 

अचानक उसकी तंद्रा टूटी। उसकी स्वचालित कुर्सी अब खिसकने लगी थी। मेडिकल क्लीयरेंस वाला काउंटर अगली पंक्ति के कोने पर था। पर यह क्या उसकी स्वचालित कुर्सी जब मेडिकल क्लीयरेंस काउंटर के सामने पहुंची तो वहां रुकी नहीं। 

‘अरे अरे, यह क्या? मुझे तो मेडिकल क्लीयरेंस लेनी है.......यह कुर्सी आगे क्यों जा रही है........कोई गलती हुई है।’ उसने तेज स्वर में कहा ताकि मेडिकल क्लीयरेंस काउंटर तक उसकी आवाज पहुंच सके। 

मेडिकल क्लीयरेंस काउंटर के एंड्रॉइड की मशीनी आवाज ब्लू-टूथ से जुड़े उनके हेडफोन में गूंजी, ‘कोई गलती नहीं हुई है श्रीमान, आपको काउंसलर रूम में जाना है।’

‘काउंसलर रूम, ऐसा क्यों?’ उसे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी। उसकी स्वचालित कुर्सी अब काउंसलर रूम में थी। उनके सामने एक युवा काउंसलर था। उसने उसकी नेम प्लेट पढ़ी, डा. जी.जे. हैरिस। 

‘आप मिस्टर बिनानियो, क्या मैं सही हूं?’ काउंसलर ने बिना किसी औपचारिकता के कहा। 

‘,जी आज तो मेरी मेडिकल क्लीयरेंस मिलनी है। बाकी सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं।’ बिनानियो ने कुछ सशंकित स्वर में कहा। 

‘जी।’ 

‘तो फिर मुझे यहां आपके पास क्यों भेजा गया है? मेडिकल क्लीयरेंस रिपोर्ट तो काउंटर नंबर.............’ 

‘क्योंकि उससे पहले मुझे आपसे कुछ बात करनी है।’ 

‘मुझसे बात करनी है, क्या बात करनी है?’ उसका दिल तेजी से किसी बुरे समाचार की आशंका में धड़क रहा था। 

काउंसलर ने बड़े सलीके से अपनी दराज से एक फाइल उठाई। फाइल में लगे पेपर-टैग वाले पाउच को खोला और उस पर एक सरसरी नजर डाली। 

‘मैं आपको मेडिकल क्लीयरेंस नहीं दे सकता।’ काउंसलर ने सपाट स्वर में घोषणा की। 

क........क........क्यों आई एम फाइन।’ 

‘आप सही कहते हैं, पर हमें आपके रक्त की पॉलीमरेज चैन रिएक्शन (पी.सी.आर.) में एक विजातीय (फॉरेन) डी.एन.ए. मिला है, जो शक के दायरे में है।’ 

क्या.........क्या मतलब है इसका?’ 

‘इसका मतलब है कि आपको किसी रोगाणु का संक्रमण हुआ है। पर अभी उस संक्रमण का इनक्यूबेशन काल चल रहा है। इसलिए आपके शरीर में उस संक्रमण के कोई लक्षण प्रकट नहीं हुए हैं।’ 

‘ऐसा.........ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसा नहीं हो सकता है। तैयारी के अंतिम क्षणों में मुझे किसी का कोई संक्रमण न लग जाए इसलिए मैं पिछले एक  माह से मैंने अपने आप को क्वारंटीन कर रखा है। फिर ये कैसे...... कैसे हो सकता है?’ 

‘किसी को संक्रमण सिर्फ साथ रहने वाले मानवों या प्राणियों से ही लगे, यह जरूरी नहीं है। यह तो किसी को निर्जीव पदार्थों से भी लग सकता है जैसे खाना, अखबार या अन्य सामान जिसको पहले किसी संक्रमित प्राणी ने छुआ हो।’

‘इसका मतलब इसका कोई और उपाय नहीं है?’ बिनानी होने ‘उपाय’ शब्द पर विशेष जोर देते हुए कहा। 

‘शायद नहीं।’ 

‘देख लीजिए कोई उपाय हो तो?’ 

‘नहीं।’ 

‘आप मुंह तो खोलिए मैं पूरा कर दूंगा।’ बिनानियो अब खुलकर बात करने के मूड में था। 

‘आप दो सप्ताह इंतजार कर लीजिए। अगर आप की पी.सी.आर. रिपोर्ट नेगेटिव हो गई तो कोई परेशानी ही नहीं होगी।’ 

‘अगर न हुई तो?’ 

‘देन आई एम सॉरी।’ 

‘सोच लीजिए, मैं आपकी जिंदगी बदल दूंगा। आज तक मुझे किसी ने न नहीं कहा है। आप न जाने क्यों..........’ ‘ऐसा नहीं है कि मुझे अच्छी जिंदगी अच्छी नहीं लगती। पर मेरे एक निर्णय पर वहां रहने वाले हजारों लोगों का भरोसा टिका है। हमने उनके स्वास्थ्य की गारंटी ली है।’ 

‘पर मैं क्या बीमार हूं? मैं भी तो...............’ 

‘अगर मुझे वहां अकेले आप को भेजना होता तो मैं यह कर देता। पर वहां पहले से लोग रह रहे हैं। उनकी कुशलता का प्रश्न है।’ 

‘देखो डाक्टर हैरिस, अच्छा तो यह होता कि आप उनकी कुशलता से पहले अपनी कुशलता के बारे में सोचते। आप जितना सोच सकते हैं मैं आपको उससे भी ज्यादा दे सकता हूं। मैं जिंदगी बदल दूंगा आपकी।’ 

‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि बार-बार आप मुझे जिंदगी बदलने की बात कहकर धमकी दे रहे हैं या ऑफर?’ 

‘जो भी आप समझें डा. हैरिस। मैं आपके फोन की प्रतीक्षा करूंगा।’ बिनानियो ने सामने रखी रिपोर्ट उठा ली और जाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया।

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बिनानियो आज फिर एक बार काउंसलर रूम में कुर्सी पर बैठा था। पर उसके सामने आज दूसरा काउंसलर था। पहले वाले काउंसलर डॉ. जी.जे. हैरिस की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उसी के स्थान पर यह नया काउंसलर आया था। पिछली बार पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पी.सी.आर.) में एक विजातीय (फॉरेन) डी.एन.ए. पाए जाने पर बिनानियो को दो सप्ताह तक कुछ औषधियां लेने की सलाह देकर दोबारा पी.सी.आर. जांच कराने की सलाह दी गई थी। यदि यह जांच भी पॉजिटिव आती है तो बिनानियो का प्रार्थना पत्र रद्द कर दिया जाएगा। एक बार किसी कारण से प्रार्थना पत्र रद्द हो जाने पर पांच वर्षों तक दोबारा आवेदन नहीं किया जा सकता था। 

‘आप?’ काउंसलर ने प्रश्नवाचक निगाहें बिनानियो के चेहरे पर टिका दीं। 

‘मैं बिनानियो, आपने नाम तो सुना होगा............स्पेस एजेंसी का.......... में वही उसका सीईओ बिनानियो डी रिवेरा।’ 

‘ओह, आज आपका अपॉइंटमेंट है क्या?’ 

‘नहीं।’

‘तो?’ 

‘मेरा केस अलग है। पिछली बार मेरी पी.सी.आर. रिपोर्ट में एक फॉरेन डी.एन.ए. मिला था। दो हफ्ते बाद मुझे......’ ओह तो वह आप हैं?’ 

‘जी, आज मैंने अपना रिपीट सैंपल दे दिया है।’ 

‘उसकी रिपोर्ट तीन दिन बाद मिलेगी, काउंटर संख्या..............’ 

‘मालूम है।’ 

‘तब फिर आप मेरे पास............?’ 

‘मान लो यह रिपोर्ट पॉजिटिव आई डॉक्टर स्मिथ तो?’ बिनानियो ने काउंसलर के सामने रखी नेम प्लेट पढ़कर कहा। 

‘तो आप प्लेनेट हेवेन नहीं जा पाएंगे, वेरी सिंपल।’ 

‘ऐसा मत कहिए डॉ स्मिथ, कुछ न कुछ उपाय तो आपको करना होगा। मैंने पहले वाले डॉक्टर से भी प्रार्थना की थी पर उन्होंने तो........................ बेचारे कार दुर्घटना में मर गए।’ बिनानियो ने बुरा मुंह बनाया। 

‘तो आप मुझे धमकी दे रहे हैं?’ स्मिथ का स्वर तेज हो गया। 

‘कहां, मैं तो प्रार्थना कर रहा हूं कि आप इस बार रिपोर्ट पॉजिटिव आए तो आपको कुछ उपाय करना होगा। जो आप बोलेंगे उससे कहीं ज्यादा आपको मिलेगा। आपकी जिंदगी बदल जाएगी। पहले वाले तो नासमझ थे.......... भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।’ बिना ने अपने सीने पर क्रॉस बनाया। 

‘आप मुझे लालच दे रहे हैं? धमकी दे रहे हैं? बेईमानी के लिए उकसा रहे हैं?’ स्मिथ जैसे फट पड़ा। 

गनीमत थी कि उसकी तेज आवाज उस वातानुकूलित (एयरकंडीशंड) कमरे से बाहर नहीं पहुंच रही थी नहीं तो वहां लोगों की भीड़ एकत्रित हो जाती।

‘आप बेकार में नाराज हो गए। मैं तो आपके फायदे की बात कर रहा था। अपना नाहक चिल्लाए जा रहे हैं, जबकि आप जानते हैं कि मैं कौन हूं? कोई मुझ पर चिल्लाए यह मुझे पसंद नहीं है।’ बिनानियो ने स्वर को भरसक नरम करने की असमर्थ कोशिश करते हुए कहा। 

‘आई एम सॉरी मैं माफी चाहता हूं। मुझे आपसे तेज स्वर में बात नहीं करनी चाहिए थी। पर आपको भी मुझे उकसाना नहीं चाहिए था। हम कंपनी के ईमानदार अधिकारी हैं। हमारी विश्वसनीयता के बल पर कंपनी यहां तक पहुंची है। हम इसकी इज्जत को बट्टा नहीं लगा सकते इसलिए अब मुझे ऐसे प्रस्ताव मत दीजिए।’ स्मिथ ने स्वर पर पूरा नियंत्रण रखते हुए कहा।


बिनानियो को गुस्सा आ रहा था। आज तक किसी का इतना साहस नहीं हुआ था कि बिनानियो के आगे तेज स्वर में बोले और यह दो टके का काउंसलर उसे उपदेश दे रहा था। उसका मन किया कि बदतमीज की गर्दन मरोड़ दे। कुछ सोचकर वह गुस्सा पी गया। इसकी मौत से क्या होगा? हैरिस की मौत से क्या मिला? उसे अपने जज्बातों पर काबू रखना है। उसने अपनी जेब से अपना कार्ड निकाला। उसे वह हाथ से मेज पर काफी देर तक दबाए रहा फिर उठ कर खड़ा हो गया। बिना एक शब्द बोले मुड़ा और कमरे से बाहर निकलने लगा। 

पीछे से नए काउंसलर के शब्द सुनाई दे रहे थे, ‘मुझे क्षमा करना मिस्टर बिनानियो। मैंने आपसे तेज स्वर में बात की है। मैं अपनी कंपनी से गद्दारी नहीं कर सकता............किसी कीमत पर नहीं।’ 

सामने मेज पर बिनानियो का डिजिटल कार्ड चमक रहा था। 

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रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। बिनानियो की आंखों में नींद नहीं थी। बिनानियो बहुत उद्विग्न था। आज तक उसने जो चाहा, हासिल किया था। अपने चातुर्य और धूर्तता के बल पर उसने अपना व्यवसायिक साम्राज्य खड़ा किया था। ज्यादातर तो उसे जीभ हिलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती थी। लोग उसकी इच्छा जानते ही उसके लिए मनचाही वस्तु हाजिर कर देते थे। जिस पर उसकी नजर टेढ़ी हुई वह उसी समय दुनिया से उठ जाता था। यह पृथ्वी पर उसकी अंतिम इच्छा थी जिसे जीनोम के एक टुकड़े ने मटियामेट कर दिया है। तो क्या उसकी यह इच्छा अधूरी रह जाएगी? प्लेनेट हेवन पहुंचने का उसका सपना क्या सपना ही रह जाएगा? आज तक उसने हर बेईमान-ईमानदार को खरीद लिया है, कभी धन से तो कभी डर से। यहां पर उसकी कोई युक्ति काम क्यों नहीं कर रही है? 

‘अगर इसका दूसरा सैंपल भी पॉजिटिव आया तो?’ बिनानियो सोच रहा था।  

विजियोफोन की घंटी बजी। फोन करने वाले ने अपने फोन पर वीडियो ऑफ कर रखा था। ट्रूकॉलर पर जो नाम चमका उसे पढ़कर बिनानियो हैरान था। यह डा. स्मिथ की कॉल थी। उसे प्लेनेट हेवन के अर्थ ऑफिस में हुआ अपना अपमान याद हो आया। पर उसने उत्सुकतावश फोन उठाया। 

‘कहिए मिस्टर स्मिथ, आप आधी रात को?’ 

‘जी मैं, अभी आप सोए नहीं होंगे? क्या मेरा अनुमान सही है?’ 

‘ज्यादा बातें नहीं। मैं तुम्हारी बातें बहुत सुन चुका हूं। फोन क्यों किया यह बताओ?’ बिनानियो ने रूखे स्वर में कहा। 

‘आपने इतना बड़ा बिजनेस एम्पायर खड़ा किया है। पर आपको क्या कब कैसे और कहां कहना चाहिए यह अभी तक समझ में नहीं आया?’ 

‘तुम मुझे बात करने का तरीका सिखाओगे? खैर बताओ कहना क्या चाहते हो?’ बिनानियो ने तेज स्वर में कहा।

‘कहना क्या है? जहां हर जगह सीसी कैमरे लगे हों, जहां की हर बात टेप की जाती हो, जहां हैरिस की मौत के बाद आपका हर मूवमेंट और शब्द रिकॉर्ड किया जा रहा हो, वहां आप मुझे ऑफर देने लगेंगे तो आपको क्या सुनने को मिलेगा? वही न जो मैंने आपसे कहा था?’ स्मिथ बिना रुके बोलता चला गया, ‘वह तो आपने अक्लमंदी का काम किया कि अपना कार्ड वहां छोड़ आए। नहीं तो जब तक आपका मेरा दोबारा संपर्क होता सारा काम बिगड़ चुका होता।’ 

‘ठीक है, अब बताओ क्या कहना चाहते हो? 

‘काम कठिन है। बाय द वे आप का ऑफर क्या है?’ 

‘मांग कर देखो तुम्हारी मांग से ज्यादा ही होगा।’ बिनानियो ने लापरवाही से कहा। 

फोन अचानक कट गया। हड़बड़ी में बिनानियो ने फिर संपर्क करने की कोशिश की पर स्मिथ का फोन बंद था। बिनानियो को घबराहट होने लगी। 

यह तो बात बनते-बनते बिगड़ने लगी।’ उसने सोचा। 

थोड़ी देर में बिनानियो के फोन पर एक मैसेज आया। यह स्मिथ के उन फोन नंबरों से नहीं था जो उसके जासूसों ने उसे ला कर दिए थे। उसने मैसेज पढ़ा और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आई। 

वह स्मिथ के फोन की प्रतीक्षा कर रहा था। उसे पता था जिसके बाद स्मिथ का फोन जरूर आएगा। 

थोड़ी देर बाद ऐसा ही हुआ। 

‘बड़े मंझे खिलाड़ी लगते हो?’ फोन मिलते ही बिनानियो ने चुटकी ली। 

‘बताओ क्या कहते हो?’ स्मिथ ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न किया। 

‘इस काम के लिए तुम्हारी यह डिमांड बहुत ज्यादा ज्यादा नहीं है?’

’नहीं, बिल्कुल नहीं। वैसे क्या तुम्हें यह काम छोटा लगता है?’ 

‘इतना बड़ा भी नहीं, जितनी बड़ी तुम्हारी डिमांड है।’ 

‘तुम्हारे लिए नहीं होगा, पर मेरे लिए है। इसके बाद तुम्हारी दुनिया ही नहीं बदलेगी, मेरी दुनिया भी बदल जाएगी। इसके बाद न सिर्फ मुझे यह नौकरी छोड़नी होगी वरन् मुझे अपने पहचान के सारे लोगों को छोड़कर किसी अजनबी जगह पर जाना होगा जहां मुझे कोई पहचान न सके।’ 

‘फिर भी?’ बिनानियो ने टोका।

‘ठीक है, फोन रखता हूं।’ 

फोन कट गया। 

बिनानियो भौंचक्का था। इतने से काम के लिए कोई इतनी बड़ी मांग कर सकता है, यह उसने सोचा भी नहीं था। पर उसे यह चाहिए ही है, चाहे जो हो। 

उसने आगे फोन उठाया और आवेग में स्मिथ का नंबर मिला दिया। 

उधर से आवाज आने से पहले ही उसने कहा, ‘ओके डन।’

‘मैं जानता था।’ उधर से स्मिथ की आवाज आई। ‘तो फिर फंड ट्रांसफर का इंतजाम करिए।’

‘मगर काम?’ 

‘बिल्कुल होगा। मैं जानता हूं कि आप अपनी रकम वसूल करने में सक्षम हैं।’

‘बहुत चालाक आदमी हो तुम।’ बिनानियो ने फोन रख दिया। 

बिनानियो और स्मिथ दोनो अपने काम में लग गए। समय कम था। इधर बिनानियो को फंड ट्रांसफर करना था तो उधर स्मिथ को बिनानियो का ब्लड सैंपल अपने रक्त के सैंपल से बदलना था। दोनों के लिए ही यह एक ‘छोटा सा काम’ था। 

पृथ्वी पर सबसे विदा लेकर जब बिनानियो प्लेनेट हेवन के लिए जाने वाली स्पेस शटल में बैठ रहा था तो स्मिथ अपनी नौकरी से त्यागपत्र देकर किसी अनजान जगह पर अपनी नई दुनिया बसा चुका था। 

प्लेनेट हेवन तक की लंबी यात्रा बिनानियो के लिए सुखद नहीं थी। जब भारहीनता की स्थिति में वह सीट पर फीतों से बंधा सोने का उपक्रम कर रहा होता तब भी उसके सपनों में जीनोम का वह टुकड़ा बार-बार आता। उसे लगता इस तरह से तो वह बीमार हो जाएगा। 

जैसे-तैसे उसकी यात्रा समाप्त हुई। अब उसे एक निश्चित अवधि के लिए प्लेनेट हेवन के ‘बफर-जोन’ में रहना था। यहां पर चिकित्सा विशेषज्ञ उसकी बराबर निगरानी करेंगे। 

‘बस यह अवधि गुजर जाए तो फिर वह प्लेनेट हेवन के सुरम्य वातावरण में होगा। पर वह दिन कब आएगा?’ उसने सोचा। 

पर ऐसा होने से पहले ही अचानक परिस्थितियां बदलने लगी। एक जांच में बिनानियो को हल्का बुखार पाया गया। बफर जोन के चिकित्सा विशेषज्ञ सक्रिय हो उठे। बिनानियो भी किसी अज्ञात आशंका से चिंतित होने लगा। 

‘घबराने की कोई बात नहीं। अंतरिक्ष यात्रा में लोगों को अक्सर ऐसा हो जाता है। हम आज से आपकी चिकित्सा प्रारंभ करते हैं। कुछ समय में आप ठीक हो जाएंगे। तब हम आपको प्लेनेट हेवन के लिए क्लीन चिट दे देंगे।’ चिकित्सक ने से ढ़ाढ़स बंधाया। 

‘ऐसा ही हो।’ बिनानियो ने सोचा। 

चिकित्सक ने बिनानियो के रक्त का नमूना लिया। उसे खाने के लिए कुछ गोलियां दे दीं। बिनानियो का दिल अभी भी धड़क रहा था। उसे अर्थ ऑफिस का काउंसलर डॉ हैरिस बहुत याद आ रहा था।

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बिनानियो का क्वॉरेंटाइन पीरियड समाप्त होने वाला था पर उसकी बीमारी तो समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी। बुखार कभी बढ़ जाता था तो कभी उतर जाता था। बिनानियो को अब चिंता होने लगी। क्या प्लेनेट हेवन के इतने पास आकर भी उसकी प्लेनेट हेवन में रहने की यह तमन्ना अधूरी रह जाएगी? पृथ्वी पर तो उसके संपर्क थे, पैसा था, रुतबा था पर यहां तो वह एक आम नागरिक था। यहां का सारा सिस्टम ‘कैशलेस’ था। यहां की अपनी सुविधाएं थी जिनके लिए अलग से कोई भुगतान नहीं करना होता था। इसलिए यहां के निवासियों के पास कोई करेंसी नहीं होती थी। हर व्यक्ति के लिए आवश्यक वस्तु प्लेनेट हेवन में बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराई जाती थी। व्यसनों से संबंधित वस्तुएं यहां उपलब्ध नहीं थीं। यदि कोई किसी व्यक्ति को कोई व्यसन होता था तो पहले पृथ्वी पर ही उसकी चिकित्सा की जाती थी। जब वह व्यसनमुक्त हो जाता था तभी उसे प्लेनेट हेवन के लिए पंजीकृत किया जाता था। वैसे तो प्लेनेट हेवन के निवासियों की हर रूचि, भोजन की पसंद-नापसंद का ध्यान रखा जाता था पर इनका अंतिम निर्णय प्लेनेट हेवन के पोषण विशेषज्ञ (डाइटीशियन) का होता था जो यह तय करता था कि उनकी पसंद की वह वस्तु उनके स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें दी जा सकती है या नहीं? यदि जा सकती है तो कितनी और एक निश्चित समय अवधि में कितनी बार? क्योंकि प्लेनेट हेवन की निवासियों की स्वास्थ्य की जिम्मेदारी वहां के प्रबंधकों की होती थी। 

बिनानियो पर लगभग वज्रपात हुआ जब प्लेनेट की मेडिकल टीम ने आकर बताया कि उसे किसी एलियन वाइरस का संक्रमण हुआ है। इस वाइरस की जीनोम सीक्वेंसिंग किसी ज्ञात वाइरस से नहीं मिलती है। इसलिए इसके लिए उनके पास कोई टीका या औषधि उपलब्ध नहीं है। वैसे तो क्वॉरेंटाइन अवधि में औषधियों के प्रयोग के कारण बिनानियो की हालत बहुत बिगड़ी नहीं थी पर बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा था। 

बिनानियो ने प्रतिवाद भी किया कि वह तो अर्थ ऑफिस से मेडिकल क्लीयरेंस लेकर आया था। इस पर प्लेनेट हेवन के चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना था कि एक तो जिस चिकित्सा अधिकारी ने उसकी मेडिकल जांच की थी वह वहां से नौकरी छोड़ चुका है दूसरे और कहीं से उसका पता भी नहीं लग रहा है। 

‘पर ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तो आपके स्पेसशिप के नियंत्रित वातावरण में आया हूं। अगर मुझे कुछ हुआ है तो यह आपके शिप के वातावरण में गड़बड़ी के कारण हुआ होगा।’ बिनानियो प्लेनेट हेवन के अधिकारियों पर आक्रामक हो रहा था। 

‘यही तो हम सोच रहे हैं। हमने अर्थ ऑफिस को संदेश दिया है। हमें आशा है कि हम इसका पता लगाकर रहेंगे।’ 

यह प्लेनेट हेवन के लिए अति संवेदनशील मामला था। बिनानियो उन्हें विश्व-अदालत में घसीट सकता था। अंततः उन्होंने इसका पता लगा ही लिया। अर्थ स्टेशन ने उन्हें स्मिथ द्वारा जारी की गई बिनानियो की पहली रिपोर्ट भी उपलब्ध करा दी जिसमें बिनानियो के शरीर में एक एबनॉर्मल डीएनए होने की सूचना दी गई थी। 

फिर कड़ियां जुड़ने लगीं। स्मिथ की मृत्यु भी इसमें एक कड़ी थी। अंतरिक्ष यात्रा के दौरान शून्य गुरुत्वाकर्षण में रहने के कारण वह डीएनए (रोगाणु) जो पृथ्वी की परिस्थितियों में निष्क्रिय था, अब अपना असर दिखाने लगा। ऐसी संभावना पृथ्वी पर वैज्ञानिकों ने जताई भी थी इसलिए प्लेनेट हेवन के अधिकारी इस को लेकर बहुत सतर्क रहते थे। 

बिनानियो का षड्यंत्र उजागर हो चुका था प्लेनेट हेवन के अधिकारियों ने बिनानियो को प्लेनेट हेवन में प्रवेश देने से मना कर दिया। अर्थ ऑफिस को समाचार भेज दिया गया। वहां भी यह खबर तेजी से फैली। पृथ्वी पर विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई गई। बिनानियो के रोगाणु की जीनोम सीक्वेंसिंग पृथ्वी पर भी किसी रोगाणु से भी मेल नहीं खाती थी। इसलिए पृथ्वी पर भी इसके लिए कोई टीका या औषधि उपलब्ध नहीं थी। अब खतरा यह था कि यदि बिनानियो का यह रोगाणु पृथ्वी पर आकर किसी तरह से फैल गया तो? विशेषज्ञों के अनुसार बिनानियो को पृथ्वी पर वापस लौटने देना पृथ्वीवासियों के लिए एक आत्मघाती कदम हो सकता था। इसलिए बिनानियो को पृथ्वी पर लौटने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। 

अब आखिर बिनानियो कहां जाए? प्लेनेट हेवन के अधिकारियों ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी। बफर जोन में बिनानियो को लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता था। दूसरे इससे प्लेनेट हेवन के निवासियों और कर्मचारियों की ओर से विरोध के स्वर भी उठ सकते थे। 

प्लेनेट हेवन की लोकप्रियता को देखते हुए इसके स्वामियों ने कुछ और पृथ्वी जैसे ग्रहों पर इस तरह की बस्तियां बसाने की योजनाएं बनाई थीं। इसके लिए कई ग्रहों पर काम चल रहा था। पृथ्वी और प्लेनेट हेवन के विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि बिनानियो को नए विकसित होते किसी ग्रह पर रखा जाए। वहां कार्गो-शिप उसे उसकी जरूरत का सारा सामान उपलब्ध कराते रहेंगे। यदि कभी बिनानियो इस रोगाणु के संक्रमण से मुक्त हो सका तो पृथ्वी के अधिकारी बिनानियो को पृथ्वी पर वापस लौटने की इजाजत दे देंगे। पर कौन जाने वह समय कभी आएगा भी या नहीं?

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**इसी नाम की प्रकाशनाधीन लघु उपन्यासिका का सार संक्षेप।

* त्वचा का कैंसर संक्रामक रोग नहीं है इसलिए इसे महामारी नहीं कहा जा सकता है।

## वे औषधियां जो प्रकाश के पराबैंगनी विकिरण को त्वचा तक पहुंचने से रोकती हैं।

@ सफेद कपड़े विकिरण के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देते हैं।

# गहरे या काले रंग के कपड़े प्रकाश व विकिरण के अधिकांश भाग को अवशोषित कर लेते हैं।  

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विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान

अंतरिक्ष यात्रा के दौरान एक अंतरिक्ष यात्री का कई तरह के अंतरिक्षीय खतरों से का सामना होता है। जहां अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी, सौर विकरण उसके शरीर को प्रभावित करते हैं वहीं पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलते समय और उसमें पुन: प्रवेश के समय, अंतरिक्ष प्रवास में उसके सोने और जागने के चक्र में परिवर्तन के कारण उसके शरीर में स्रवित होने वाले स्ट्रेस हार्मोन यथा कॉर्टिसोल, एड्रिनलिन आदि की मात्रा में वृद्धि हो जाती है जिसके कारण उसकी रोग प्रतिरोध क्षमता कम होने लगती है। एक चिकित्सकीय जर्नल ‘फ्रंटियर्स ऑफ माइक्रोबायोलॉजी’ के 7 फरवरी 2019 के अंक में नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, अमेरिका के वैझानिक सतीश कुमार मेहता और उनके साथियों द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर गुरुत्वाकर्षण में परिवर्तनों के कारण स्ट्रेस हार्मोन के स्रवण में वृद्धि होने से उत्पन्न होने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता की यह कमी अंतरिक्ष  यात्रा से वापस आने के ६० दिनों बाद तक भी जारी रह सकती है। ऐसे में उनके अंदर पहले से विद्यमान, सुसुप्त वाइरस पुनर्जाग्रत (रीएक्टिवेट) हो जाते हैं। लेखकों के इस समूह ने पाया कि अंतरिक्ष यात्रियों की लार और मूत्र के नमूनों में हरपीस सिंपलेक्स, वेरीसेला जोस्टर (चिकेनपॉक्स वाइरस) और साइटोमेगेलो नाम के वायरस की मात्रा बढ़ जाती है। अंतरिक्ष यात्रियों की अंतरिक्ष में प्रवास की अवधि जितनी आधिक होती है उनकी लार और मूत्र के नमूनों में इन वाइरस की मात्रा उतनी ही अधिक होती है। हालांकि अंतरिक्ष यात्रियों में इन वाइरस के दुष्प्रभाव अब तक नहीं देखे गए हैं। पर यदि अंतरिक्ष यात्राएं बहुत लंबी हुई तो कौन जाने कि इन वाइरस के बुरे प्रभाव भी इन अंतरिक्ष यात्रियों में  नजर आने लगें। लेखकों का मानना है कि यदि हम लंबी अंतरिक्ष यात्राओं की योजना बना रहे हैं तो हमें अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान यात्रियों के शरीर में होने वाले प्रतिरक्षा तंत्र के परिवर्तनों पर भी निगाह रखनी होगी।


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