गुरुवार, 2 नवंबर 2023

ड्रीम 2047 के अप्रैल 2023 के विज्ञान कथा विशेषांक में प्रकाशित मेरी विज्ञान कथा

पृथ्वी के रखवाले

डॉ. अरविन्द दुबे

18 नवंबर सन 2066, आज का दिन सितारों, उल्काओं, आकाशीय घटनाओं में रुचि रखने वालों के लिए बहुत खूबसूरत, रहस्यमई और कौतूहल से परिपूर्ण होने वाला था। क्योंकि वैज्ञानिक मिखाइल मासलोव के उल्का वर्षा भविष्यवाणी कैलेंडर के अनुसार आज लियोनिड उल्का तूफान दिखने वाला था। 

    मिलिंद एक शौकिया एस्ट्रोनॉमर हैं, मतलब उनके पास खगोल विज्ञान की कोई डिग्री वगैरह नहीं है। बस आसमान निहारने का शौक था। जिसने उन्हें बहुत कुछ सिखा दिया। वे एक अच्छे खासे एमेच्योर एस्ट्रोनॉमर बन गए। ऐसा व्यक्ति इस उल्का तूफान या मिट्योर बर्स्ट की घटना को लेकर शांत बैठा रहेगा यह तो संभव ही नहीं था। इसीलिए भी रात होते ही वे अपना पिकनिक ब्लैंकेट लेकर अपनी बिल्डिंग की छत पर आकर जम गए थे। 

    मिलिंद मेरी ही सोसाइटी में रहते हैं और अपने आप में खोए रहने वाले जीव हैं। पर न जाने क्यों मुझसे उनकी बहुत अच्छी पटती है। एक तो मैं उन्हें बिना बात तब नहीं टोकता जब वह आकाश के अध्ययन में खोए होते हैं। इसके अतिरिक्त मेरी भी थोड़ी बहुत रूचि आकाश के अध्ययन और खगोल विज्ञान में है।  जिससे मिलिंद मुझसे अपने मन की बात आसानी से कर सकते हैं। इसलिए जब मिलिंद ने सोसायटी बिल्डिंग की छत पर अपना आसन जमाया तो मेरे सोने से पूर्व बारह बजे रात उन्होंने मुझे फोन किया, “मिश्रा जी क्या आज आप ऊपर नहीं आएंगे?” 

“क्यों?” 

“अरे आपको याद नहीं आज ही तो कयामत की रात है।” वह हंसे। 

“कयामत की रात, क्यों?” 

“लो इतनी जल्दी भूल गए? उस दिन ही तो हम लोग आपस में बात कर रहे थे आज तो आकाश में खगोलीय आतिशबाजी का नजारा देखने को मिलेगा।“ 

“अरे हां, आज तो 18 नवंबर है। इस बार तो उल्का तूफान ही आने वाला है।” मैंने खुश होते हुए कहा। 

“हां वही। तभी तो मैं कहूं कि अभी तक आप आए क्यों नहीं?” 

    हालांकि मैं काफी गहरी नींद में आ गया था। पर एक तो मिलिंद का आग्रह और दूसरे उल्का तूफान देखने का कौतूहल, नींद का मोह छूट गया। एक स्वेटर डाल एक चादर और कंबल लेकर मैं भी सोसायटी बिल्डिंग की छत पर पहुंच गया, जहां मिलिंद अपना सारा सामान फैलाए बैठे हुए थे। 

हम बहुत देर तक उल्का वर्षा देखते रहे। आज तो उल्काओं की भरमार थी। अचानक मिलिंद चौंके। 

“यह देखिए मिश्रा जी, यह क्या है?” 

मैंने भी अपना ध्यान उस पर केंद्रित किया। आसमान में एक छोर से दूसरे छोर तक चमकीली रोशनी की एक काफी चौड़ी रेखा खिंच गई थी जो अपेक्षाकृत काफी समय तक रही। उल्का वर्षा या उल्का तूफान में तो इतने बड़े मेटियोरॉइड नहीं होते ज्यादा से ज्यादा दस मिलीमीटर के या आधा ग्राम तक के ही मेटियोरॉइड होते हैं। यह तो एकदम असामान्य बात है इसकी जानकारी मुझे भी थी। अतः मैंने मिलिंद की हां में हां मिलाई। 

“यह कुछ और ही चीज है मिश्राजी ।”  मिलिंद ने सशंकित होते हुए कहा। 

“क्या हो सकता है?” मैंने प्रति प्रश्न किया। 

मिलिंद के पास मेरी बात का कोई उत्तर नहीं था। 

मैंने शक जाहिर किया, “कहीं ऐसा तो नहीं कि उस उल्का तूफान की आड़ लेकर हमारे किसी शत्रु देश ने हम पर नॉन-न्यूक्लियर मिसाइलें दागी हो ताकि हम यही समझते रहे कि यह कोई उल्का हैं।”

“आप भी न मिश्रा जी, हमेशा शक ही करते रहते हैं। हमेशा आप बात का ‘ग्रे’ पहलू ही ढूंढते हैं।” मिलिंद ने चिढ़ कर कहा। 

“नहीं-नहीं मैंने तो एक बात कही है।” मैंने खिसियाते हुए कहा। 

    रात समाप्त होने लगी थी। आसमान में सूरज उगने से पहले की लाली दिखने लगी थी। अब इस प्रकाश में उल्काएं दिखनी बंद होने वाली थी, हालांकि उल्का तूफान अपने चरम पर था। मैने और मिलिंद ने अपना-अपना सामान उठाया और नीचे उतरने लगे। 

“आइए मिश्रा जी एक कप गरमा-गरम चाय हो जाए, तब आप अपने घर चले जाना।” 

मैंने मिलिंद की हां में हां मिलाई और मिलिंद के घर की सीढ़ियां उतरने लगा। चाय पीते-पीते ही हम लोगों ने टी.वी. खोल लिया ताकि अगर जाग रहे हैं तो सवेरे के समाचारों की जानकारी भी ले ली जाए। देखें कल की रात की संवाददाताओं ने क्या और कैसी रिपोर्टिंग की है? हमारी उत्सुकता इस बारे में भी थी कि आकाश में एक किनारे से दूसरे किनारे तक खिंची रोशनी की चमकीली चौड़ी पट्टियां क्या थी? उनका रहस्य क्या था? टी.वी. पर पहली खबर भी यही थी। 

इसके साथ दूसरी बड़ी खबर भी थी कि कल हमारे देश के 3 आयुध भंडारों में अचानक आग लग गई है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार एक लाल रंग की चमकीली चीज आसमान से सीधी भंडार के ऊपर गिरी जिससे उन में भयंकर आग लग गई है। आयुध भंडारों पर पर किसी शत्रु देश द्वारा मिसाइलों की के हमलों की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। 

दिन चढ़ते चढ़ते ऐसी खबरें दुनिया के कई विकसित और विकासशील देशों से आने लगीं। कुछ लोग इसे कंप्यूटर की गलती साबित करने में लगे थे। उनके अनुसार हो सकता है कि किसी छोटी उल्का गिरने से किसी देश के आयुध भंडार को कोई नुकसान हुआ हो। जिसे उसकी कंप्यूटर प्रणाली अपने ऊपर मिसाइल हमले की तरह रिकॉग्नाइज किया हो फिर ऑटोमेटिक डिफेंस प्रणाली ने उस दिशा में उसके शत्रु देश की गलत पहचान कर उसके खिलाफ मिसाइल दाग दी हो। जब एक देश के ऑटोमेटिक सिस्टम ने दूसरे देश के ऊपर मिसाइल दागी हो तो प्रत्युत्तर में दूसरे देश की ऑटोमेटिक डिफेंस प्रणाली ने भी मिसाइल दागी हो और यह सिलसिला चल निकला हो। इसमें हर देश के नॉन-न्यूक्लियर आयुधों के भंडार को ही लक्ष्य बनाया गया था इससे यह शक भी हो रहा था इसमें कोई ह्यूमन फैक्टर भी शामिल है और जानबूझकर ऐसा किया गया है। वरना कोई मिसाइल न्यूक्लियर और नॉन न्यूक्लियर आयुध भंडार में भेद कैसे कर सकती है? 

परग्रहियों (एलियंस) में विश्वास रखने वाले लोग इसे एलियन इनवेजन (परग्रहियों का हमला) वाली थ्योरी को लेकर चल रहे थे। जितने मुंह उतनी बातें थी। 

आग बुझाने के बाद जब मलबे की सफाई शुरू हुई तो सबसे पहले यह ढूंढने का प्रयास किया गया कि वह हथियार किस प्रकार का था जिससे आयुध भंडारों को निशाना बनाया गया था? बैलेस्टिक एक्सपर्ट सिर्फ इतना बता सके कि किसी तीव्र गतिज ऊर्जा वाले हथियार का प्रयोग किया गया है। तभी एक विचित्र बात हुई। जले आयुधों का मलबा साफ करते समय उन्हें एक फीट लंबी छह इंच चौड़ी किसी विशेष धातु की, जो न तो पृथ्वी पर पाई जाती थी न वह इसकी जानकारी ही जुटा पाए थे यह कौन सी धातु है, की पट्टियां मिलनी शुरू हो गईं। हर देश के आयुधों के मलबे में इस प्रकार की पट्टियां मिलीं । जिन पर या तो अंग्रेजी में कुछ लिखा था या फिर जिन देशों में अंग्रेजी बोली और समझी नहीं जाती वहां उन्हीं की भाषा में उन पर कुछ लिखा हुआ था। इसका एलियन कनेक्शन तब पक्का हो गया जब इस पर उकेरी गई चेतावनी पढ़ी गई जिसका अर्थ यह था-

“पृथ्वीवासियों तुम हमारे सहवांशिक हो। हम तुमसे एक करोड़ प्रकाश वर्ष दूर एक दूसरे सौरमंडल में रहते हैं। हमारे और आपके आनुवंशिक पदार्थ इतने मिलते हैं कि हमारे और आपके बीच में अंगों का प्रत्यारोपण तक हो सकता है। पूरे ब्रह्मांड में थोड़े से ही ग्रह हैं जिन पर जीवन होने की संभावनाएं हैं और ऐसे ग्रह और भी कम  ही हैं जिन पर हमारे और आपके जैसे जीव जिन्हें आप मानव कहते हो, रहते हैं। हम जतन से आपकी रक्षा करते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि अगर हम पर कोई मुसीबत आई तो हमें आपकी सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है। हम बहुत दिनों से देख रहे हैं कि आप पृथ्वी वाले ऐसे काम कर रहे हो जिससे आगे चलकर आपकी सभ्यता के नष्ट हो जाने का खतरा आप पर मंडरा रहा है। आपने घातक परमाणु अस्त्र तैयार किए हैं और उनको बराबर बढ़ाते जा रहे हो। आप छोटे-छोटे राष्ट्रों में विभाजित हो और एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के प्रति शत्रुता रखता है। इसलिए यह हथियार आपके लिए और खतरनाक हो जाते हैं क्योंकि अंततः तो आपको इन हथियारों को एक दूसरे पर ही प्रयोग करना है। दूसरों को मारोगे तो क्या आप बच जाओगे?  इसलिए आरोप-प्रत्यारोप का दौर बंद करो। दूसरे के साथ दुश्मनी मत करो। प्रेम से रहो। इसमें हमारी और आपकी दोनों की ही भलाई है। अब भी अपनी आदतों से बाज आ जाओ। इस पृथ्वी को नष्ट होने से बचा लो। अपनी प्रजाति को नष्ट होने से बचा लो। अगर आप नहीं माने तो हम ही आपको नष्ट कर देंगे क्योंकि हम किसी भी कीमत पर पृथ्वी को अपने हाथ से जाने नहीं देंगे। लेकिन हम चाहते हैं कि आप बने रहो। आपकी पृथ्वी हरी-भरी बनी रहे। आप एक दूसरे के साथ मिलकर रहो। इसलिए चेतावनी स्वरूप हमने आपके नॉन-न्यूक्लियर आयुध भंडारों पर केवल काइनेटिक हथियारों से हमला किया है। काइनेटिक हथियार वह होते हैं जिनमें हम किसी प्रकार के विस्फोटक का प्रयोग नहीं करते। इनमें हमारे यहां बहुतायत से पाई जाने वाली एक विशेष प्रकार की धातु के आपके यहां की नाप में बीस  फीट लंबे और एक फुट व्यास के नुकीले ठोस सिलेंडर हम पृथ्वी की कक्षा से ऊपर से ऐसे ही छोड़ देते हैं। जब ये पृथ्वी के वातावरण में पहुंचते हैं आपकी पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से इनकी गति आपके यहां की माप में करीब 36,000 किलोमीटर प्रति सेकेंड तक हो जाती जाती है और इनका तापक्रम भी बहुत अधिक हो जाता है। इस विशाल गतिज ऊर्जा और अत्यधिक तापक्रम के कारण यह बिना विस्फोटक के ही भयंकर विनाश कर सकते हैं। जब यह किसी ठोस वस्तु से टकराते हैं तो ये उसको छेद कर उसके अंदर जाने की क्षमता रखते है। इस प्रक्रिया में यह अपना काम करने के बाद स्वयं वाष्पित हो जाते है और किसी को इन का कोई प्रमाण नहीं मिल पाता है। इसलिए प्रमाण ढूंढने की कोशिश मत करो। आप इसे हमारी चेतावनी समझें। इस प्रकार के जो भी हथियार आपने इकट्ठे कर रखे हैं उनको धीरे-धीरे नष्ट करना शुरू करो। जिस से आपको को नुकसान भी न हो और यह हानिकारक हथियार नष्ट भी हो जाएं। अगर आपने ऐसा नहीं किया इसका परिणाम आपको भुगतना भी पड़ सकता है। हमें बस इतना ही कहना है।” 

देशों की मीडिया ने इस प्रकार के आयुधों एक अलग ही नाम दे दिया “रॉड्स फ्रॉम द गॉड” या “ईश्वर की लाठी”। 

इस बात को अब एक वर्ष हो गया है। विश्व की सरकारों ने इस पर अमल करना शुरू कर दिया है। आज जगह-जगह परमाणु निषेध संधियों पर हस्ताक्षर हो रहे हैं। इस बात पर भी हस्ताक्षर किए जा रहे हैं कि कैसे धीरे-धीरे इन बनाए गए हथियारों को निष्क्रिय किया जाए ताकि परमाणु हथियारों की यह होड़ समाप्त हो सके और मानवता चैन की नींद सो सके। 

मानव जाति धीरे-धीरे एक शांतिप्रिय विश्व की ओर बढ़ रही है। 

-------------------------

विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान

सन् 1975 में उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम के बीच हुए संघर्ष में विश्व के प्रमुख राष्ट्रों के दो भाग हो गए थे जिनमें एक भाग उत्तरी वियतनाम और एक भाग दक्षिणी वियतनाम को समर्थन दे रहा था। अमेरिका का समर्थन दक्षिणी वियतनाम के साथ था। इस युद्ध में ऐसे आयुधों का प्रयोग किया गया था जो ठोस धातु के बने थे। जिनका अगला सिरा नुकीला था और पिछले सिरे पर धातु के पंख लगे थे। इनमें किसी बारूद या परमाणु वारहेड का प्रयोग नहीं किया गया था। पर यह युद्ध में बंकरों को बंद करो को नष्ट करने में इन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन आयुधों को ‘लेज़ी डॉग वेपन कहा’ जाता था। 

इसी अनुभव से प्रभावित होकर अमेरिका ने एक आयुध परियोजना शुरू की थी जिसके अंतर्गत टंगस्टन धातु से बने 20 फुट लंबे और 1 फुट व्यास के एक सिरे पर नुकीले सिलेंडर पृथ्वी की कक्षा में किसी कृत्रिम उपग्रह पर स्थापित किए जाने थे। आवश्यकता पड़ने पर इन सिलेंडरों को पृथ्वी के वातावरण में प्रक्षेपित किए जाने की योजना थी। इससे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण हर सेकंड इनकी गति बढ़ती जाती और इनका तापक्रम भी पृथ्वी के वायुमंडल की रगड़ से लगातार  बढ़ता जाता। जब ये आयुध पृथ्वी पर किसी लक्ष्य पर टकराते तो बिना बारूद या परमाणु वारहेड के प्रयोग के इनसे भीषण तबाही होने की संभावना थी। इस परियोजना को अमलीजामा पहनाया गया या नहीं इसके बारे में तो निश्चित रूप से कहना संभव नहीं है पर उस समय इन आयुधों ‘रॉड फ्रॉम द गॉड’ और इस परियोजना को ‘आपरेशन थोर’ कहा जाता था। प्रस्तुत विज्ञान कथा “ईश्वर की लाठी” इसी परिकल्पना पर आधारित है। 

कहानी में वर्णित वैज्ञानिक मिखाइल मासलोव का उल्का वर्षा भविष्यवाणी कैलेंडर और लियोनिड उल्का तूफान स्थापित वैज्ञानिक तथ्य हैं।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें