मंगलवार, 21 नवंबर 2023

बैलों वाली कार

पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी राजस्थान और ग्रंथ विकास प्रकाशन जयपुर ने मिलकर समकालीन बाल विज्ञान कथाकारों की बाल विज्ञान कथाओं का एक संग्रह, "समकालीन बाल विज्ञान कथाएं" शीर्षक शीर्षक से प्रकाशित किया है। इसका संपादन बाल साहित्यकार जाकिर अली 'रजनीश' ने किया है। इसमें मेरी भी एक बाल विज्ञान कथा "बैलों वाली कार" संकलित है जो आपकी टिप्पणियों हेतु यहां प्रस्तुत है।

बैलों वाली कार

डॉ. अरविन्द दुबे


धरती पर दो पहिया और चार चहिया वाहन खरीदने और बेचने की होड़ इस कदर बढ़ी कि अंधाधुंध प्रयोग होने से पृथ्वी पर पेट्रोलियम के भंडार ही समाप्त हो गए। पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहन बनाने वाली कंपनियां बंद हो गईं। कारें फालतू हो कर गैराजों में खड़ी हो गईं। 

जिनके पास पेट्रोल या डीजल से चलने वाले वाहन थे उन्होंने इन्हें प्रयोग करने का एक अनोखा तरीका ढूंढ निकाला। इन बेकार पड़ी वाहनों और कारों में बैलों को जोता जाने लगा। कार का आगे का शीशा हटा दिया जाता था। अंदर बैठा चालक बैलों की रासें पकड़कर कार चलाता था।  लोग इसे ‘बुलॉक कार’ या ‘बैलों वाली कार’ कहते थे। बाद में कार बनाने वाली कुछ कंपनियां भी इस धंधे में उतर आईं। उन्होंने इसमें कुछ और बदलाव किए। अब वे कार के साथ-साथ बैलों को भी सप्लाई करते हैं। जिन्हें चारा नहीं सिर्फ इनर्जी की गोलियां खिलानी होती हैं। कार में एक कंप्यूटर लगा होता है और बैलों के मस्तिष्क में भी एक कंप्यूटर चिप लगाई जाती है जिससे कार के अंदर बैठे-बैठे कंप्यूटर द्वारा बैलों को नियंत्रित किया जाता है। ऐसी कंप्यूटर वाली बुलॉक कारों को अमीर लोग बहुतायत से प्रयोग कर रहे हैं हालांकि आम आदमी का साधन तो साइकिल ही है।

राजू गर्मी की छुट्टियों में ऐसी ही बुलॉक कार में बैठकर अपने पिता के साथ हॉस्टल से घर आ रहा था। न जाने क्या हुआ कि कार में जुते हुए बैल बेकाबू हो उठे। वे बैलों वाली कार लेकर सरपट दौड़ने लगे। राजू के पिता कार के कंप्यूटर से जितना उन्हें नियंत्रित करने के आदेश देते तो वे उतना ही सरपट भागते। कार उलटने-उलटने को हो जाती। राजू के पिता के माथे पर पसीना चुहचुहाने लगा। 

राजू भी परेशान था। उसने घबराकर पूछा, ‘‘पापा यह सब क्या हो रहा है?” 

‘‘मैं खुद भी नहीं समझ पा रहा हूं बेटे। कंप्यूटर से कोई भी आदेश दो, कोई सिग्नल दो, बस बैल भड़क कर भागना शुरू कर देते हैं। लगता है बैलों के मस्तिष्क में फिट माइक्रोचिप के आस-पास वाले हिस्से में सूजन आ गई है। जिस से माइक्रोचिप से सिग्नल लीक होने लगे हैं। सूजन के कारण चिप के चारों ओर का उनका मस्तिष्क इन फालतू सिग्नलों को ग्रहण करने लगा है।” 

‘‘पर ऐसा क्यों पापा?” राजू घबरा रहा था। 

‘‘माइक्रोचिप के आसपास के मस्तिष्क में सूजन होने से ऐसा हो जाता है और वे सामान्यतः माइक्रोचिप से निकलने वाले फालतू सिग्नल, जिन्हें स्वस्थ दशा में वे जान भी नहीं पाते, पकड़ने लगते हैं। इसलिए हमारे हर कमांड पर उनके मस्तिष्क के इस सूजे भाग को एक बिजली का सा झटका लगता है और वे बिलबिलाकर दौड़ना शुरू कर देते हैं।”

‘‘अब क्या होगा पापा?”

‘‘यही मैं भी सोच रहा हूं बेटे। जब कार कंपनी हमें बैल सप्लाई करती हैं तो वे दोनों बैलों के मस्तिष्क में फिट इन ‘‘माइक्रोचिप‘‘ को पूरी तरह मिलाते हैं जिस से हमारे कंप्यूटर के कमांड को दोनों बैल एक ही तरह से समझें।”

‘‘पर अब पापा?” 

‘‘राजू बेटे लगता है कि एक बैल के माइक्रोचिप के आसपास के मस्तिष्क में सूजन होने से वह मेल समाप्त हो रहा है।”

‘‘इसका मतलब पापा? ”

‘‘इसका मतलब यह कि हमारे सिग्नल को एक स्वस्थ बैल एक तरह से समझ रहा है और सूजे मस्तिष्क वाला बैल दूसरी तरह से।”

‘‘यह तो बहुत खतरनाक होगा पापा, एक बैल दौड़ना चाहेगा तो दूसरा धीमे चलेगा, एक दाएं जाएगा तो दूसरा बाएं, यानि कि हमारी कार कभी भी पलट सकती है?” 

‘‘हां।” पापा ने चिंतित स्वर में कहा।

‘‘पापा अगर हम बैलों को कोई भी सिग्नल न दें तो?” 

‘‘राजू मैं ऐसा कर रहा हूं, पर सूजन वाले बाएं बैल की माइक्रोचिप से सिग्नल लीक होना रुक ही नहीं रहा है।” 

‘‘हे भगवान अब क्या होगा?” 

‘‘पता नहीं, पर मैं कोशिश करूंगा, अंत तक कोशिश करूंगा।”

‘‘पर कैसे पापा?”

‘‘सोचता हूं कार के बोनट तक किसी तरह पहुंच जाऊं और बैलों को कार से जोड़ने वाली रॉड को काट दूं।” 

‘‘पर ऐसी उछलती, सरपट दौड़ती कार में? नहीं पापा बहुत खतरनाक है यह, नहीं पापा, नहीं............. ”                                               

‘‘नहीं बेटे मुझे ऐसा करना होगा...........मैं तुम्हारा पापा हूं न। यकीन करो मुझे कुछ नहीं होगा।” 


राजू के पापा ने उस तेज और धक्के खाती कार का दरवाज़ा खोला फिर वे खिसक कर कार के बोनट की ओर बढ़े। तभी कार एक खड्डे में जा गिरी और उलट गई। 

राजू तेजी से चिल्लाया, ‘‘पापा।” 

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“क्या हूआ बेटे?” पापा राजू के ऊपर झुके उसका सिर सहला रहे थे।

राजू कुछ बोल नहीं रहा था।

‘‘क्या हुआ, क्या कोई बुरा सपना देखा?” पापा पूछ रहे थे।

राजू ने धीरे-धीरे ऑंखें खोली। सामने पापा थे। वह पापा से लिपट गया ‘‘पापा आप ठीक तो हैं न?” 

‘‘हां बेटे मैं बिलकुल ठीक हूं, पर तुझे क्या हुआ है?”

‘‘पर पापा, वह बैल.........वह बैलों वाली कार................वह दुर्घटना...........”

‘‘ओहो! तो जनाब ने आज फिर कोई बुरा सपना देखा। कितनी बार तुमसे कहा है कि सोते समय उल्टे-सीधे कॉमिक्स न पढ़ा करो। तो क्या देखा आपने आज के इस सपने में?” 

  राजू ने अपने पिता को अपने सपने के बारे में पूरी कहानी सुनाई। कहानी खत्म होते-होते राजू के पिता ने राजू के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए। 

‘‘पापा मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा है कि ये सब सिर्फ एक सपना था।‘‘ राजू कह रहा था।

‘‘सच कहते हो राजू सचमुच ये सपना नहीं था। तुमने बंद ऑंखों से हमारा आने वाला कल देखा है...........ऊर्जा के संसाधनों के साथ जो अति हम आज कर रहे हैं उसका कल देखा है। शायद प्रकृति तुम्हारे सपने के माध्यम से हमें चेता रही है।‘‘ पापा कहीं दूर देख रहे थे। 


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