गुरुवार, 2 नवंबर 2023

जब वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाला कोई व्यक्ति पुराणों में वर्णित दधीच की कथा पड़ता है तो वह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि आखिर दधीच को हड्डियों की कौन सी बीमारी हो गई होगी या उनकी हड्डियों में क्या हुआ होगा जिससे उनकी हड्डियां इतनी कठोर हो गईं कि उन्हें उस समय आयुध बनाने के लिए धातुओं से भी ज्यादा कड़ा और उपयुक्त पाया गया। अब तक चिकित्सा विज्ञान में हड्डियों की जितनी भी बीमारियां वर्णित हैं उनमें एक बीमारी "ओस्टियोपेट्रोरोसिस" मैं हड्डियां सघन तो हो जाती हैं पर ऐसी हड्डियां मजबूत नहीं कमजोर हो जाती हैं।

मैंने पुराणों में वर्णित दधीच के प्रकरण को एक अलग नजर से देखा है और इस पर आधारित एक विज्ञान कथा लिखी है जो विज्ञान प्रगति पत्रिका के अक्टूबर 2023 अंक में प्रकाशित हुई है एवं आप  के अवलोकनार्थ यहां प्रस्तुत है।    

दधीचि 

डॉ. अरविन्द दुबे

भारत के एक प्रहरी स्पेस स्टेशन एस.एन. 257 पर ह्यूमन लाइक इंटेलिजेंस वाले कृत्रिम बुद्धि रोबोट तेनुक-1375 व सिरमट-267 बहुत देर से सामने की वर्चुअल स्क्रीन पर नजरें टिकाए बैठे हैं। भारत ही नहीं पृथ्वी के हर देश ने अंतरिक्ष में इस प्रकार के प्रहरी स्पेस स्टेशन स्थापित किए गए हैं जो अंतरिक्ष से न सिर्फ अपने देश की सीमाओं की निगरानी करते हैं वरन आवश्यकता पड़ने से पर इन पर अंतरिक्ष से ही आक्रमण करने की व्यवस्था है। हर देश ने अपने स्पेस स्टेशन पर विकसित हथियार तैनात कर रखे हैं। हालांकि अब इस प्रकार की नौबत ही कम आती है। पहले पृथ्वीवासियों में आपसी झगड़े बहुत होते थे। कभी-कभी सत्ता के विस्तार के लिए, कभी अपनी सत्ता को बचाने के लिए और कभी-कभी राष्ट्र अध्यक्षों के अहम के कारण एक बड़ी आबादी युद्ध की चपेट में आ जाती थी। अब तक पृथ्वी कई बार उजड़ कर बस चुकी है। 

पर अब ऐसा नहीं होता है। पृथ्वी के सारे राष्ट्र अब आपस में एक दूसरे का सहयोग करते हैं।  पृथ्वी के राष्ट्रों के आपसी सहयोग की सबसे बड़ी वजह है पृथ्वी पर लगातार होने वाले पर परग्रहियों के आक्रमण। प्रमाण मिलते हैं कि 22 वीं शताब्दी में पृथ्वीवासियों के मस्तिष्क में यह प्रश्न बराबर कौंधता था कि क्या पूरे ब्रह्मांड में उनके ग्रह पर ही जीवन है? इसका उत्तर जानने के लिए उन्होंने कई तरह के कार्यक्रम बनाकर अंतरिक्ष में कई खोजी यान और सिग्नल भेजे। पहले तो उन्हें इसमें कोई सफलता नहीं मिली पर तेईसवीं शताब्दी के प्रारंभ में उन्हें अपने सिग्नलों के उत्तर मिलने लगे। इनका गहराई से परीक्षण किया गया तो ब्रह्मांड में अन्य जीवित सभ्यता के प्रमाण मिले। पृथ्वी के लोग बहुत उत्साहित थे। तरह-तरह की योजनाएं बनने लगी कैसे उनसे मिलेंगे? कैसे उनसे संपर्क करेंगे? उन्हें लगा कि अन्य ग्रहों से उनके लंबे संबंधों का मार्ग खुलने वाला है। इस कार्यक्रम से जुड़े कुछ लोगों का डर यह भी था कि अगर परग्रहियों ने पृथ्वीवासियों से मित्रवत व्यवहार न किया तो क्या होगा? अगर वे पृथ्वीवासियों से शक्तिशाली और आक्रामक हुए तो क्या होगा पर जोश में अधिकतर लोग इस पर विचार करने को तैयार ही नहीं थे। 

कुछ समय बाद परग्रही सभ्यता के कुछ अंतरिक्ष यान पृथ्वी पर उतरे। पृथ्वीवासियों ने मित्रता और आक्रमण दोनों की तैयारी कर ली थी। पर इन यानों में कोई जीवित प्राणी नहीं था। उनमें कुछ कुछ कैमरे जैसी संरचनाएं रोबोटिक भुजाएं थीं। ये रोबोटिक भुजाएं जहां से चाहतीं अपनी रुचि की चीजें उठाकर यान में बंद कर लेतीं थीं। उन्होंने बहुत से जीवित प्राणियों, पालतू व जंगली पशुओं को उठाकर यान में बंद कर लिया। जाते-जाते जब एक यान की रोबोटिक भुजा ने एक स्त्री, एक पुरुष और एक  बच्चे को उठाकर जब यान में डाला तो पृथ्वी के सारे यान उन पर एक साथ टूट पड़े पर अपने सारे विकसित हथियारों के बावजूद भी वे उन यानों का कुछ भी बिगाड़ न सके। 

पृथ्वी वासियों में डर की लहर फैल गई। निश्चित रूप से परग्रहियों की यान तकनीक बहुत विकसित थी। हो सकता था कि उनकी हथियारों की तकनीक भी इसी तरह काफी विकसित हो। धीरे-धीरे अन्य अन्य प्रकार के परग्रही यान पृथ्वी पर आने लगे। जिनमें कुछ तो आक्रामक हो जाते थे। पृथ्वी के सारे राष्ट्र आपसी मतभैद और वैमनस्य भूल कर एकजुट होने लगे। अब उनकी लड़ाई दूसरे ग्रह से आए परग्रहियों से थी। वे जानते थे कि अगर वे अब भी आपस में लड़ते रहे और एकजुट न हुए तो पृथ्वी पर एक दिन परग्रहियों का कब्जा हो जाएगा। 

इस पैतीसवीं शताब्दी में सुरक्षा, युद्ध, व्यवसाय, शिक्षा, चिकित्सा आदि के तरीके पूरी तरह बदल गए हैं। चिकित्सा विज्ञान में उन्नति के चलते शरीर के सारे अंगों के प्रत्यारोपण और रोबोटिक इंप्लांट उपलब्ध हैं। क्योंकि अंग प्रत्यारोपण बार-बार नहीं किया जा सकता है और यह काफी जोखिम भरा भी हो सकता है। दूसरे इसके शरीर द्वारा नकार देने की अब नगण्य ही सही पर संभावनाएं होती हैं। इसलिए अधिकांश लोग इसके लिए रोबोटिक इंप्लांट का विकल्प ही चुनते हैं। ऐसा नहीं है कि किसी अंग में कोई खराबी आने पर ही लोग उसका रोबोटिक इंप्लांट लगवाते हों। कई बार तो लोग किसी अंग की क्षमता बढ़ाने के लिए सामान्य अंग को निकलवा कर उसको रोबोटिक इंप्लांट से प्रतिस्थापित करवा लेते हैं। पर दो अंगों हृदय और मस्तिष्क के रोबोटिक इंप्लांट कि प्रक्रिया बहुत जटिल होती हैं इसलिए इनका प्रचलन अधिक नहीं है। हृदय के रोबोटिक इंप्लांट का विकल्प लोग तभी चुनते हैं जब उनके हृदय की क्षमता कम होने लगती है या उनको कोई ऐसी आनुवंशिक या जीनीय बीमारी होती है जिसमें आगे चलकर हृदय के क्षतिग्रस्त होने की आशंका होती है। मस्तिष्क का प्रत्यारोपण अन्य अंगों से अलग है। इसमें अंगों के प्रत्यारोपण की तरह पूरे अंग को निकालकर उसका रोबोटिक रूप प्रत्यारोपित नहीं किया जाता है। इसमें आवश्यकता पड़ने पर आंशिक रोबोटिक प्रत्यारोपण किए जाते हैं। मस्तिष्क की जिस क्षमता में खराबी आती है उसी से संबंधित कोई चिप मस्तिष्क में प्रत्यारोपित कर दी जाती है। यदि किसी व्यक्ति के बोलने की क्षमता में दोष आता है तो उसके वाणी क्षेत्र में एक चिप इंप्लांट कर उसका वाणी-दोष सुधार दिया जाता है। यदि किसी बीमारी के कारण किसी व्यक्ति की आंखों की रोशनी चली जाती है या सुनने की क्षमता समाप्त हो जाती है या कोई हाथ पांव लुंज हो जाता है तो मस्तिष्क में उस प्रक्रिया को संचालित करने वाले क्षेत्र में रोबोटिक चिप लगाकर उन क्षमताओं को पुनर्जीवित  किया जाता है। पर मस्तिष्क इंप्लांट एक खतरा भी रहता है। मस्तिष्क की किसी क्षमता किसी चिप द्वारा संचालित करने से मस्तिष्क के उस क्षेत्र की प्राकृतिक क्षमता धीरे-धीरे निष्क्रिय हो जाती है। फिर मस्तिष्क की वह क्षमता उस चिप पर ही निर्भर हो जाती है। अगर ऐसे में चिप में कोई दोष आ जाए तो चिप को बदलना ही पड़ता है। चिप लगवाने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क के उस क्षेत्र की प्राकृतिक क्षमता चिप निकालने के बाद दोबारा प्राप्त नहीं की जा सकती है। इसलिए मस्तिष्क की सामान्य क्षमता वाले लोग मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाने का जोखिम काफी नापतोल कर लेते हैं। फिर भी मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाने के लिए चिप लगवाने वाले लोगों की कमी नहीं है। इसलिए इस प्रकार के चिप के निर्माण का व्यवसाय काफी प्रगति पर है। एक से एक जटिल न्यूरल चिप का निर्माण हो रहा है। वैसे तो इन चिप का प्रयोग कृत्रिम बुद्धि वाले रोबोट से लेकर कई प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, स्पेसशिप और तरह-तरह के मशीनों में हो रहा है। इस क्षेत्र में कार्य करने रहे वैज्ञानिकों को न्यूरल साइंटिस्ट कहा जाता है। 

भारत के न्यूरल साइंटिस्ट दधीचि की गिनती विश्व के एक अग्रणी न्यूरल साइंटिस्ट के रूप में होती है। उनके द्वारा निर्मित विशेष प्रकार के हथियार परग्रहियों से युद्ध में जीत की गारंटी माने जाते हैं। वे काफी समय से देख रहे थे कि जिन यानों में परग्रही आते हैं वे एक विशेष प्रकार की धातु से बने होते हैं जिन पर पृथ्वीवासियों के परंपरागत हथियार असरदार नहीं है। पर यह कौन सी धातु है इसका कोई सुराग पृथ्वीवासियों के पास नहीं था। दधीचि को लगता था कि अगर इन यानों को नष्ट करना है तो उन्हें उस धातु की प्रकृति का पता करना होगा जिससे वे बने हैं। पर वह धातु कहीं उपलब्ध ही नहीं थी। उन्होंने बहुत सोचकर उस धातु को ही परग्रहियों के विरुद्ध हथियार बनाने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने अति तीव्र ऊर्जा वाली एक किरण का आविष्कार किया। यह किरण सीधी रेखा में चलती है। जब यह किसी धातु से टकराती है तो यह उस धातु की निचली कक्षा से इलेक्ट्रॉन निकाल देती है जिससे उस धातु का परमाणु अस्थिर हो जाता है जिससे स्थिर करने के लिए उच्च कक्षा से एक इलेक्ट्रॉन आकर विस्थापित इलेक्ट्रॉन की जगह लेता है। इसके लिए उच्च कक्षा वाले इलेक्ट्रॉन से इतनी ऊर्जा निकल जाती है कि वह निम्न कक्षा वाले इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा के बराबर हो जाए। इसके साथ इस प्रक्रया घातक किरणें भी निकलती हैं। उन्होंने ऐसे किरण उत्पादक यंत्रों को उच्च ऊर्जा वाले लीनियर एक्सीलेटर से जोड़ा। इस संयोजन से निकला किरण-पुंज जब यान की धातु से टकराता है तो अपार ऊर्जा और घातक किरणें उत्पन्न होती है। इससे परग्रहियों के यानो में स्वत: ही आग लग जाती है जिससे उनकी धातु पिघल जाती है और इसके साथ निकली हानिकारक किरणों से परग्रहियों की मृत्यु हो जाती है। दधीचि के इन हथियारों को ‘सुपर थर्मल वेपन’ कहा जाता है। 

इन हथियारों की सफलता के बाद इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन किया गया। अब इन्हें हर देश के स्पेस स्टेशन पर स्थापित किया गया है। कोई राष्ट्र इनका दुरुपयोग न कर सके विश्व भर में स्थापित सारे सुपर थर्मल वेपन का नियंत्रण एक ही संस्था के पास रखा गया है वैज्ञानिक दधीचि इसके प्रमुख हैं।

विश्व के सारे राष्ट्रों के स्पेस स्टेशनों पर तैनात इतने सुपर थर्मल आयुधों को एक साथ नियंत्रित करने के लिए एक अति विकसित कंप्यूटर की आवश्यकता थी जिसके निर्माण की जिम्मेदारी भी दधीचि ने ली। लंबे शोध के बाद उन्होंने मानव डी.एन.ए. व कार्बन नैनोट्यूब को एक साथ मिलाकर एक ऐसी जटिल चिप का निर्माण कर लिया जिससे वे अपने सुपर कंप्यूटर में लगाकर अपने संस्थान के नियंत्रण कक्ष से ही विश्व भर में तैनात इस प्रकार के हथियारों का संचालन कर सकते हैं और परग्रहियों पर भारी पड़ सकते हैं। वे इसका प्रमाण कई बार दे चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में परग्रहियों द्वारा किए गए हमलों में इन हथियारोँ के कारण परग्रहियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है इसलिए उनके हमले अब काफी कम हो गए हैं। पृथ्वीवासियों को कई शताब्दियों बाद चैन की नींद सोने का मौका मिला है। 

पर पृथ्वीवासियों की यह चैन की नींद एक दिन टूट ही गई। कई तरह के परग्रहियों ने अपने विशेष यानों के साथ पृथ्वी पर आक्रमण कर दिया। पृथ्वीवासी डरे तो थे पर उन्हें दधीचि के सुपर थर्मल हथियारों पर पूरा भरोसा था। आनन-फानन में हमले की तैयारी कर ली गई। दधीचि के सुपर थर्मल हथियार परग्रहियों के यानों और आयुधों पर कहर ढा रहे थे। वे उनकी टोली को आगे बढ़ने नहीं दे रहे थे। पृथ्वीवासी आश्वस्त थे कि अंतत: जीत उनकी ही होगी। 

सब कुछ सही और आशा के अनुरूप चल रहा था पर अचानक न जाने क्या हुआ कि दधीचि के सुपर थर्मल हथियारों ने एकाएक काम करना बंद कर दिया। जब कंट्रोल फैसिलिटी से संपर्क किया गया तो पता लगा कि हथियारों के सेंट्रल कंप्यूटर में कोई खराबी आ गई है। ऐसे समय में यह खराबी पृथ्वीवासियों के लिए मृत्यु का आमंत्रण थी। तुरंत दधीचि से संपर्क किया गया। दधीचि ने कंप्यूटर की जांच की और माथा पीट लिया। कंप्यूटर की मुख्य चिप जल गई थी। परग्रहियों के आयुध पृथ्वी पर विनाश का तांडव कर रहे थे। शहर जल रहे थे बस्तियां उजड़ रही थीं। लाखों की संख्या में लोग मर रहे थे। 

कंप्यूटर के फेल होने की खबर पाते ही पृथ्वी के सारे राष्ट्राध्यक्षों और सेनाध्यक्षों में खलबली मच गई। हर किसी के मन में एक ही प्रश्न था “क्या पृथ्वी परग्रहियों के कब्जे में चली जाएगी?” थोड़ी ही देर में भारत सहित कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष दधीचि के संपर्क में थे। 

“हमें तुरंत दूसरी चिप चाहिए। किसी भी तरह इन आयुधों को पुनः चालू करना होगा।आप जितने और जो भी संसाधन कहेंगे हम उपलब्ध करा देंगे।” भारत के राष्ट्राध्यक्ष लगभग गिड़गिड़ा रहे थे। 

“मैं समझता हूं, पर इसको बनाने में कम से कम एक वर्ष का समय लगेगा। यह चिप अन्य रोबोट इंप्लांट से भिन्न है। इसे मानव के डी.एन.ए. और कार्बन नैनोट्यूब्स से मिलाकर बनाया गया है। इसे तुरंत तैयार नहीं किया जा सकता है।” 

“आपको कुछ तो करना होगा, नहीं तो हम परग्रहियों के गुलाम हो जाएंगे। हमारे पास समय नहीं है आपको इसका समाधान अभी जुटाना होगा। हमें यह चिप........” 

“..........मुझे कुछ सोचने सोचने का समय दीजिए।” दधीचि ने बात काटते हुए कहा। 

राष्ट्राध्यक्ष चुप हो गए। 

“ठीक है।” थोड़ी देर बाद दधीचि ने बोलना शुरू किया “ठीक है, आप डॉक्टर वेदब्रह्म को तुरंत खोज कर मेरे पास भेजिए।” उन्होंने एक न्यूरो सर्जन का नाम सुझाया। “तब तक मैं कुछ करता हूं। हां जब तक मैं न कहूं तब तक कोई मेरे कक्ष में नहीं आएगा। अभी आप सब लोग मेरे कक्ष से बाहर चले जाएं।” 

अति विकसित संचार प्रणाली के कारण कुछ ही क्षणों में डॉक्टर वेदब्रह्म का पता लग गया। एक राकेट यान भेजकर उन्हें तुरंत बुला लिया गया और इसकी सूचना दधीचि को दे दी गई। 

“ठीक है, उनसे कहो कि वह प्रयोगशाला परिसर में अपने सहायकों के साथ आ जाएं और किसी आकस्मिक ऑपरेशन के लिए तैयार रहें। मैं अपना कार्य शुरू करता हूं। उनसे कहो कि ठीक 10 मिनट बाद मेरे निजी कक्ष में आ जाएं।” 

न्यूरो सर्जन वेदब्रह्म और भारत के राष्ट्राध्यक्ष वहां सांस रोके खड़े थे। हालांकि दधीचि ने सिर्फ 10 मिनट का समय दिया था पर यह 10 मिनट उन्हें युगों से बड़े लग रहे थे। 10 मिनट का समय बीतते वेदब्रह्म ने दधीचि के कक्ष में प्रवेश किया। उनके साथ भारत के राष्ट्राध्यक्ष और सेनाध्यक्ष भी थे। 

दधीचि भूमि पर निश्चेट लेटे थे। सामने कंप्यूटर पर एक लाल निशान ब्लिंक कर रहा था। न्यूरोसर्जन वेदब्रह्म को कुछ अजीब सा लगा। उन्होने आगे बढ़कर दधीचि को हिलाया। उनके शरीर में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उन्होंने उनके सीने से वस्त्र हटा कर देखा। उनकी सांस नहीं चल रही थी। दधीचि अब नहीं थे वह उनका निष्प्राण शरीर था। वेदब्रह्म ने घबराकर कंप्यूटर की ओर देखा। उन्होंने लाल बिंदु पर क्लिक किया। एक पेज खुल कर सामने आ गया। घबराए वेदब्रह्म उसको पढ़ने लगे। 

“जब मैंने सुपर थर्मल आयुध बनाए तो मुझे लगा कि मैंने इन्हें किसी एक राष्ट्र को सौंप दिया तो एक दिन प्रतिकूल परिस्थितियों में वह इनका दुरुपयोग कर सकता है। इसलिए मैंने इनका नियंत्रण अपने पास ही रखने का निर्णय लिया। इतनी अधिक संख्या में तैनात आयुधों को एक जगह से संचालित करने के लिए एक अति जटिल कंप्यूटर चिप की आवश्यकता थी जिसे सामान्यत: उपलब्ध तरीकों से बनाया नहीं जा सकता था। अतः मैंने इसके लिए मानव डी.एन.ए. व कार्बन नैनोट्यूब का प्रयोग कर एक अति विकसित चिप बनाई जो वास्तव में मानव मस्तिष्क का एक कार्यकारी मॉडल था। इसे कंप्यूटर में लगाकर मैंने विश्व भर में तैनात अपने सारे आयोजनों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया तो मेरे मन में विचार आया कि इस चिप को अगर किसी मानव के मस्तिष्क में आरोपित किया जाए तो यह पूरे मानव मस्तिष्क की तरह कार्य करने लगेगी। इसका अर्थ यह था कि मेरा पूरे मानव मस्तिष्क का रोबोट इंप्लांट बनाने का सपना सच हो जाएगा। पर इसे लगवाने के लिए कौन तैयार होगा? अतः मैंने इस प्रयोग को अपने ऊपर ही आजमाने का फैसला किया। मैंने इसके लिए न्यूरोसर्जन वेदब्रह्म को अपना राजदार बनाया। उनके द्वारा मैंने इसको अपने मस्तिष्क में आरोपित करा लिया। 

मेरा प्रयोग सफल रहा। अब यह चिप ही मेरे मस्तिष्क की जगह कार्य कर रही है और इसका कार्य मेरे प्राकृतिक मस्तिक से सैकड़ों गुना तेज और बेहतर है। इसने मेरे पूरे मस्तिष्क का कार्य संभाल लिया है इसलिए मेरा पूरा मस्तिष्क अब निष्क्रिय हो गया होगा। यह चिप इतनी जटिल है कि इस के निर्माण में कई वर्षों का समय लग सकता है। पर हमें पृथ्वी को बचाने के लिए यह चिप अभी चाहिए। इसलिए अब मेरे पास एक ही विकल्प है कि मैं अपने मस्तिष्क में लगी यह चिप निकलवा कर कंट्रोल कंप्यूटर में लगवा दूं। चूंकि इस चिप ने मेरे मस्तिष्क के सारे ऐच्छिक और अनैच्छिक कार्य संभाल लिए हैं इसलिए मेरे मस्तिष्क से इस चिप निकलने का अर्थ है मेरी मृत्यु। पर अब परिस्थितयां  ऐसी बन गईं महैं कि मुझे अपनी पृथ्वी और खुद में से किसी एक का चुनाव करना ही होगा। पृथ्वी को बचना चाहिए दधीचि तो फिर पैदा हो जाएंगे। यही सोच कर मैंने अपनी चिप को निर्देश देकर अपने हृदय और स्वांस गति बंद कर दी है। डाक्टर वेदब्रह्म मेरे मस्तिष्क से यह चिप निकालकर मेरे सुपर कंप्यूटर में लगा कर आप मेरी सुपर थर्मल आयुध प्रणाली को पुनर्जीवित कर पृथ्वी को बचाइए। पृथ्वीवासियों को कहिए कि वे दधीचि की यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें।” 

यह पढ़कर वेदब्रह्म का मस्तिष्क एक क्षण के लिए शून्य हो गया। पर उन्होंने अपने आप को संभाला गर्दन घुमा कर उन्हें दधीचि के निश्चेष्ट शरीर को देखा। उन्होंने अपने सहायकों को अंदर आने को और अन्य लोगों को बाहर जाने को कहा। अब उन्हें एक बड़ा और जटिल ऑपरेशन करना था। सधे कदमों से वह दधीचि के निष्प्राण शरीर की ओर बढ़े और अपने काम में लग गए।

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विज्ञान कथा के नेपथ्य का विज्ञान

यह विज्ञान कथा वेदों में वर्णित मिथकीय पात्र दधीचि के व्यक्तित्व पर आधारित है। मेरा मानना है कि वेदों में वर्णित दधीचि की कथा एक संपूर्ण विज्ञान कथा है पर कुछ विशेषज्ञ उसमें विज्ञान के तत्वों का अभाव देखते हुए उसे ‘आद्य विज्ञान कथा’ मानते हैं। मेरा मानना है किसी विज्ञान कथा में अंतर्निहित विज्ञान को, जिस कालखंड में वह विज्ञान कथा लिखी गई है, उस समय के प्रचलित विज्ञान के मापदंडों पर व्याख्यायित किया जाना चाहिए। दधीचि वाली विज्ञान कथा का संदर्भ लेते हुए आज के वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर इस विज्ञान कथा को लिखने का प्रयास किया गया है। इस विज्ञान कथा में अन्य ग्रहों पर जीवन की तलाश में जिस बाईसवीं शताब्दी के जिस प्रोग्राम की बात की गई है उसे सेटी (SETI) सर्च फॉर एक्सट्राटेरिस्ट्रियल इंटेलिजेंस कहते हैं जिसके अंतर्गत अन्य ग्रहों पर जीवन के संकेत ढ़ूंढ़े जा रहे हैं। परग्रहियों के यानों को नष्ट करने के लिए जिस सिद्धांत का विवरण दिया गया है, वह सिद्धांत एक्स-किरणों के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है। एक्स-रे फ्लोरोसेंस एनालाइजर भी इसी सिद्धांत पर कार्य करते हैं। हालांकि इनमें इतनी ऊर्जा तो नहीं उत्पन्न होती है जो किसी यान को पिघला दे और नष्ट कर दे। इतनी ऊर्जा उत्पन्न होना लेखक की कल्पना ही है।

इसे निम्न लिंक पर भी पढ़ सकते हैं।

https://drive.google.com/.../1Ycf0jWuLzQEQ0anciSx.../view...

https://drive.google.com/.../12ftcs1Aq.../view...




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