शहरजाद
ने कहा कि
हे स्वामी, एक
वृद्ध और धार्मिक
प्रवृत्ति का मुसलमान
मछुवारा मेहनत करके अपने
स्त्री-बच्चों का पेट
पालता था। वह
नियमित रूप से
प्रतिदिन सवेरे ही उठकर
नदी के किनारे
जाता और चार
बार नदी में
जाल फेंकता था।
एक दिन सवेरे
उठकर उसने नदी
में जाल डाला।
उसे निकालने लगा
तो जाल बहुत
भारी लगा। उसने
समझा कि आज
कोई बड़ी भारी
मछली हाथ आई
है लेकिन मेहनत
से जाल दबोच
कर निकाला तो
उसमें एक गधे
की लाश फँसी
थी। वह उसे
देखकर जल-भुन
गया, उसका जाल
भी गधे के
बोझ से जगह
जगह फट गया
था।
उसने
सँभाल कर फिर
नदी में फेंका।
इस बार जो
खींचा तो उसमे
सिर्फ मिट्टी और
कीचड़ भरा मिला।
वह रो कर
कहने लगा कि
मेरा दुर्भाग्य तो
देखो, दो-दो
बार मैंने नदी
में जाल डाला
और मेरे हाथ
कुछ नहीं आया।
मैं तो इस
पेशे के अलावा
और कोई व्यवसाय
जानता भी नहीं,
मैं गुजर-बसर
के लिए क्या
करूँ।
उसने
जाल को धो-धा कर
फिर पानी में
फेंका। इस बार
भी उसके हाथ
दुर्भाग्य ही लगा,
जाल में कंकड़,
पत्थर और फलों
की गुठलियों के
अतिरिक्त कुछ भी
नहीं था। यह
देखकर वह और
भी रोने-पीटने
लगा। इतने में
सवेरे का उजाला
भी फैल गया
था। उसने भगवान
का ध्यान धरा
और विनय की,
'हे सर्व शक्तिमान
दीनदयाल प्रभु, तुम जानते
हो कि मैं
हर रोज सिर्फ
चार बार नदी
में जाल फेंकता
हूँ। आज तीन
बार फेंक चुका
हूँ और कुछ
हाथ नहीं आया
और मेरी सारी
मेहनत बेकार गई।
अब एक बार
जाल फेंकना रह
गया है। अब
तू कृपा कर
और नदी से
मुझे कुछ दिलवा
दे और मुझ
पर इस प्रकार
दया कर जैसी
किसी समय हजरत
मूसा पर की
थी।'
यह
कहकर उसने चौथी
बार जाल फेंका
और खींचा तो
भारी लगा। उसने
सोचा इस बार
तो जरूर मछलियाँ
फँसी होंगी। बड़ा
जोर लगा कर
उसे बाहर निकालकर
देखा कि उसमें
सिवाय एक पीतल
की गागर के
और कुछ नहीं
है। गागर के
भार से वह
समझा कि उसमें
कुछ बहुमूल्य वस्तुएँ
होंगी क्योंकि उसका
मुँह सीसे के
ढक्कन से अच्छी
तरह बंद था
और ढक्कन पर
कोई मुहर लगी
थी। मछुवारे ने
मन में कहा
कि यह अंदर
से खाली हुआ
तो भी इसे
बेच कर पैसे
मिल जाएँगे जिससे
आज का काम
किसी तरह चलेगा।
उसने
गागर को उलट-पलट कर
और हिला-डुला
कर देखा लेकिन
उसमें से कोई
शब्द नहीं निकला।
फिर वह कहीं
से एक चाकू
लाया और बहुत
देर तक मेहनत
करके उसका मुँह
खोला। अब वह
झाँक कर गागर
के अंदर देखने
लगा लेकिन उसे
कुछ नहीं दिखाई
दिया। उसी समय
उसने देखा कि
गागर से धुआँ
निकल रहा है।
वह आश्चर्य से
देखने लगा कि
क्या होता है।
गागर में से
बहुत सा धुआँ
निकल कर नदी
के ऊपर आकाश
में फैल गया।
कुछ ही देर
में वह धुआँ
सिमट कर एक
जगह आ गया
और उसने एक
भी भीषण दैत्य
का आकार ले
लिया। मछुवारा घबराकर
भागने को हुआ
लेकिन उसने सुना
कि दैत्य हाथ
उठाकर कह रहा
है कि ऐ
सुलेमान, मेरा अपराध
क्षमा कीजिए, मैं
कभी आपकी आज्ञा
का उल्लंघन नहीं
करूँगा। मछुवारा यह सुनकर
अपना डर भूल
गया और बोला,
'अरे भूत, तू
क्या बक रहा
है? सुलेमान को
मरे अठारह सौ
वर्षों से अधिक
हो गए हैं।
तू कौन है,
मुझे बता कि
तू इस गागर
में किस प्रकार
बंद हो गया।'
दैत्य
ने उसे घृणापूर्वक
देखकर कहा, 'तू
बड़ा बदतमीज है,
मुझे भूत कहता
है।' मछुवारा बिगड़
कर बोला, 'और
कौन है तू?
तुझे भूत न
कहूँ तो गधा
कहूँ?'
दैत्य
ने कहा, 'तेरे
मरने में अब
अधिक समय नहीं
है। मैं तुझे
शीघ्र ही मार
डालूँगा। तू अपनी
बकबक बंद कर
और मुझसे बात
ही करनी है
तो जुबान सँभाल
कर के कर।'
मछुवारा
घबराकर बोला, 'तू मेरी
हत्या क्यों करना
चाहता है? क्या
तू इस बात
को भूल गया
कि मैंने ही
तुझे गागर के
बंधन से छुड़ाया
है।'
दैत्य
बोला, 'मुझे भली
प्रकार ज्ञात है कि
तूने ही गागर
खोली है लेकिन
इस बात से
तेरी जान नहीं
बच सकती। हाँ,
मैं तेरे साथ
एक रियायत करूँगा।
मैं तुझे यह
निर्णय करने का
अधिकार दूँगा कि मैं
किस प्रकार तुझे
मारूँ।'
मछुवारे
ने कहा, 'तेरे
हृदय में जरा
भी न्यायप्रियता नहीं
है। मैंने तेरा
क्या बिगाड़ा है
कि तू मुझे
मारना चाहता है?
क्या मेरे इस
अहसान का बदला
तू इसी प्रकार
देना चाहता है
कि अकारण मुझे
मार डाले।'
दैत्य
बोला, 'अकारण नहीं मार
रहा। मैं तुझे
बताता हूँ कि
तुझे मारने का
क्या कारण है,
तू ध्यान देकर
सुन। मैं उन
जिन्नों (दैत्यों) में से
हूँ जो नास्तिक
थे। अन्य दैत्य
मानते थे कि
हजरत सुलेमान ईश्वर
के दूत (पैगंबर)
हैं और उनकी
आज्ञाओं का पालन
करते थे। सिर्फ
मैं और एक
दूसरा दैत्य, जिसका
नाम साकर था,
सुलेमान की आज्ञा
से विमुख हुए।
बादशाह सुलेमान ने क्रुद्ध
होकर अपने प्रमुख
मंत्री आसिफ बिन
वरहिया को आदेश
दिया कि मुझे
पकड़कर उसके (सुलेमान के)
सामने पेश करे।
मंत्री ने मुझे
पकड़ कर उसके
सामने खड़ा कर
दिया। सुलेमान ने
मुझसे कहा कि
तू मुसलमान होकर
मुझे पैगंबर मान
और मेरी आज्ञाओं
का पालन कर।
मैंने इससे इनकार
कर दिया। सुलेमान
ने इसकी मुझे
यह सजा दी
कि मुझे इस
गागर में बंद
किया और अभिमंत्रित
करके सीसे का
ढक्कन इसके मुँह
पर जड़ दिया
और उस पर
अपनी मुहर लगा
दी और एक
दैत्य को आज्ञा
दी कि गागर
को नदी में
डाल दे। अतएव
वह मुझे नदी
में डाल गया।
उस समय मैंने
प्रण किया कि
सौ वर्षों के
अंदर जो आदमी
मुझे निकालेगा उसे
मैं इतना धन
दे दूँगा कि
वह आजीवन सुख
से रहे और
उसके मरणोपरांत भी
बहुत-सा धन
उसके उत्तराधिकारियों के
लिए रह जाए।
इस अवधि में
मुझे किसी ने
न निकाला। फिर
मैंने प्रतिज्ञा की
कि अब सौ
वर्ष के अंदर
जो मुझे मुक्त
करेगा उसे मैं
सारे संसार के
खजाने दिलवा दूँगा।
फिर भी किसी
ने मुझे न
निकाला। फिर मैंने
प्रतिज्ञा की कि
सौ वर्षों की
तीसरी अवधि में
जो मुझे मुक्त
करेगा उसे मैं
बहुत बड़ा बादशाह
बना दूँगा और
हर रोज उसके
पास जाकर उस
की तीन इच्छाए
पूरी करूँगा। जब
इस तीसरी अवधि
में भी किसी
ने मुझे न
निकाला तो मुझे
बड़ा क्रोध आया
और उसी अवस्था
में मैंने प्रण
किया कि जो
मुझे अब बाहर
निकालेगा मैं अत्यंत
क्रूरतापूर्वक उसके प्राण
लूँगा। हाँ, उसके
साथ इतनी रियायत
करूँगा कि वह
जिस प्रकार से
मरना चाहेगा मैं
उसे उसी प्रकार
से मारूँगा। अब
चूँकि तूने मेरी
इस प्रतिज्ञा के
बाद मुझे निकाला
है इसीलिए अब
तू बता कि
तुझे किस प्रकार
मारूँ।'
मछुवारा
यह सुन कर
आश्चर्यचकित और भयभीत
हुआ और सोचने
लगा कि दुर्भाग्य
ही मेरे पीछे
पड़ गया है
जो मैं भलाई
करके उसके बदले
मृत्युदंड पा रहा
हूँ। वह गिड़गिड़ाकर
दैत्य से बोला,
'भाई, तुम अपनी
प्रतिज्ञा भूल जाओ,
मेरे छोटे-छोटे
बच्चों पर दया
करो। यदि तुम्हारी
समझ में मैंने
कोई अपराध किया
है तो भी
मुझे क्षमा कर
दो। क्या तुमने
सुना नहीं कि
जो दूसरों के
अपराध क्षमा करता
है ईश्वर उसके
अपराध क्षमा करता
है?'
दैत्य
ने कहा, 'यह
बातें रहने दे।
मैं तुझे मारे
बगैर नहीं रहूँगा;
तू सिर्फ बता
कि किस प्रकार
मरना चाहता है।'
मछुवारा
अब बहुत ही
भयभीत हुआ क्योंकि
उसने देखा कि
दैत्य उसे मारने
का हठ नहीं
छोड़ रहा है।
अपने स्त्री-पुत्रों
की याद करके
वह अत्यंत दुखी
हुआ। उसने एक
बार फिर दैत्य
का क्रोध शांत
करने का प्रयत्न
किया और उससे
अनुनयपूर्वक कहा, 'हे दैत्यराज,
मैंने तो तुम्हारे
साथ इतनी भलाई
की है, तुम
इसके बदले मुझ
पर दया भी
नहीं कर सकते?'
दैत्य बोला, 'इसी
भलाई करने के
कारण तो तेरी
जान जा रही
है।' मछुवारे ने
फिर कहा, 'कितने
आश्चर्य की बात
है कि तुम
अपने उपकारकर्ता के
प्राण लेने पर
तुले हो। यह
मसल मशहूर है
कि अगर कोई
बुरों के साथ
भलाई करता है
तो उसका कुपरिणाम
ही उठाता है।
यह कहावत तुम्हारे
ऊपर पूरी तरह
लागू होती है।'
दैत्य ने कहा,
'तुम चाहे जितने
सवाल-जवाब करो
और चाहे जितनी
कहावतें कहो, मैं
तो तुम्हारी जान
लेने के प्रण
से हटता नहीं।'
मछुवारे
ने अंत में
अपनी रक्षा का
एक उपाय सोचा।
वह दैत्य से
बोला, 'अच्छा, अब मैं
समझ गया कि
तुम्हारे हाथ से
मेरी जान नहीं
बच सकती। यदि
भगवान की यही
इच्छा है तो
मैं उसे प्रसन्नतापूर्वक
स्वीकार करता हूँ।
लेकिन मैं तुझे
उसी पवित्र नाम
की - जिसे सुलेमान
ने अपनी मुहर
में खुदवाया था
- सौगंध देकर कहता
हूँ कि जब
तक मैं अपने
मरने का तरीका
सोच कर तय
करूँ तुम मेरे
एक प्रश्न का
उत्तर दो।' दैत्य
इतनी बड़ी सौगंध
से निरुपाय हो
गया और काँपने-सा लगा।
उसने कहा, 'पूछ,
क्या पूछना चाहता
है। मैं तेरे
प्रश्न का उत्तर
दूँगा।'
मछुवारे
ने कहा, 'मुझे
तेरी किसी बात
पर विश्वास नहीं
होता। तू इतना
विशालकाय प्राणी है, इतनी
छोटी-सी गागर
में कैसे समा
गया। तू झूठ
बोलता है।' दैत्य
बोला, 'जिस पवित्र
नाम की सौगंध
तूने मुझे दिलाई
है मैं उस
की साक्षी देकर
कहता हूँ कि
मैं उसी गागर
में था।' मछुवारे
ने कहा, 'मुझे
अब भी विश्वास
नहीं है कि
तू सच कहता
है। इस गागर
में तो तेरा
एक पाँव भी
नहीं आएगा, तू
पूरा का पूरा
किस प्रकार इसमें
समा गया?' दैत्य
ने कहा, 'क्या
मेरे इतनी बड़ी
सौगंध खाने से
भी तुझे विश्वास
नहीं आता?' मछुवारा
बोला, 'तेरे कसम
खाने से क्या
होता है? मैं
तो तभी मानूँगा
जब तुझे अपनी
आँखों से गागर
के अंदर देखूँ
और उसमें से
आती हुई तेरी
आवाज न सुनूँ।'
यह
सुन कर दैत्य
फिर धुएँ के
रूप में परिवर्तित
हो गया और
सारी नदी पर
फैल गया। फिर
वह धुआँ रूपी
दैत्य एक स्थान
पर इकट्ठा हो
गया और धीरे-धीरे गागर
में जाने लगा।
जब बाहर धुएँ
का नाम-निशान
न रहा तो
गागर के अंदर
से दैत्य की
आवाज आई, 'अब
तो तुझे मालूम
हुआ कि मैं
झूठ नहीं कहता
था, इसी गागर
में बंद था?'
मछुवारे ने इस
बात का उत्तर
न दिया। उसने
गागर का ढकना,
जिस पर सुलेमान
की मुहर लगी
हुई थी, गागर
के मुँह पर
रखा और उसे
मजबूती से बंद
कर दिया। फिर
वह बोला, 'ओ
दैत्य, अब तेरी
बारी है कि
तू गिड़गिड़ा कर
मुझसे अपना अपराध
क्षमा करने को
कहे। या फिर
मुझे यह बता
कि तू स्वयं
मेरे हाथ से
किस प्रकार मरना
चाहता है। नहीं,
मेरे लिए तो
यही उचित होगा
कि मैं तुझे
फिर इसी नदी
में डाल दूँ
और नदी के
तट पर घर
बनाकर रहूँ और
जो भी मछुवारा
यहाँ जाल डालने
आए उसे चेतावनी
दे दिया करूँ
कि यहाँ एक
गागर में एक
महाभयंकर दैत्य बंद है,
उसे कभी बाहर
न निकालना क्योंकि
उसने प्रण किया
है कि जो
भी उसे बाहर
निकालेगा उसके हाथ
से मारा जाएगा।'
यह
सुन कर दैत्य
बहुत घबराया। उसने
बहुत हाथ-पाँव
मारे कि गागर
से निकल आए
किंतु यह बात
असंभव थी क्योंकि
गागर के मुँह
पर सुलेमान की
मुहर लगा हुआ
ढकना था और
उस मुहर के
कारण यह विवश
था। उसे क्रोध
तो बहुत आया
किंतु उसने क्रोध
पर नियंत्रण किया
और अनुनयपूर्वक बोला,
'मछुवारे भाई, तुम
कहीं मुझे फिर
नदी में न
डाल देना। तुम
क्या मेरी बात
सच समझते थे?
मैं तो केवल
परिहासस्वरूप ही तुम्हें
मारने की बात
कर रहा था।
खेद है कि
तुमने मेरी बात
को सच समझ
लिया। अब मुझे
निकाल लो।'
मछुवारे
ने हँसकर कहा,
'क्यों भाई, जब
तुम गागर के
बाहर थे तब
तो अपने को
बड़ा शक्तिशाली दैत्य
राज समझते थे
और अकड़ते थे,
अब क्या हुआ
कि गागर के
अंदर जाते ही
अपने को बड़ा
दीन-हीन समझ
रहे हो। मैं
तो अब तुम्हें
नदी में जरूर
डालूँगा और प्रलयकाल
तक तुम इसी
गागर में बंदी
बने रहोगे।' दैत्य
ने कहा, 'भगवान
के लिए मुझे
नदी में वापस
फेंकने का इरादा
छोड़ दे।' इस
प्रकार दैत्य ने बड़ी
दीनता से छुटकारे
की भीख माँगी,
बहुत अनुनय-विनय
की लेकिन मछुवारा
टस से मस
न हुआ। फिर
दैत्य बोला, 'यदि
तुम मुझे इस
बार छोड़ दो
तो मैं तुम्हारे
साथ बड़ा उपकार
करूँगा।' मछुवारा बोला, 'तू
महाधूर्त है। मैं
तेरी बात पर
कैसे विश्वास करूँ?
अगर मैंने तुझे
छोड़ दिया तो
तू फिर मुझे
मारने पर उद्यत
हो जाएगा। तू
इस उपकार का
भी मुझे ऐसा
ही कुफल देगा
जैसा गरीक नामी
बादशाह ने हकीम
दूबाँ के साथ
किया था।' दैत्य
ने यह पूछने
पर कि यह
कहानी क्या है,
मछुवारे ने कहना
शुरू किया।
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