पूर्वकाल
में किसी गाँव
में एक बड़ा
भला मानस रहता
था। उसकी पत्नी
अतीव सुंदरी थी
और भला मानस
उससे बहुत प्रेम
करता था। अगर
कभी घड़ी भर
के लिए भी
वह उसकी आँखों
से ओझल होती
थी तो वह
बेचैन हो जाता
था। एक बार
वह आदमी किसी
आवश्यक कार्य से एक
अन्य नगर को
गया। वहाँ के
बाजार में भाँति-भाँति के और
चित्र-विचित्र पक्षी
बिक रहे थे।
वहाँ एक बोलता
हुआ तोता भी
था। तोते की
विशेषता यह थी
कि उस से
जो भी पूछा
जाए उसका उत्तर
बिल्कुल मनुष्य की भाँति
देता था। इसके
अलावा उसमें यह
भी विशेषता थी
कि किसी मनुष्य
की अनुपस्थिति में
उसके घर पर
जो-जो घटनाएँ
घटी होती थीं
उन्हें भी वह
उस मनुष्य के
पूछने पर बता
देता था।
कुछ
दिनों बाद उस
भद्र पुरुष का
विदेश जाना हुआ।
जाते समय उसने
तोते को अपनी
पत्नी के सुपुर्द
कर दिया कि
इसकी अच्छी तरह
देख-रेख करना।
वह परदेश चला
गया और काफी
समय बाद लौटा।
लौटने पर उसने
अकेले में तोते
से पूछा कि
यहाँ मेरी अनुपस्थिति
में क्या-क्या
हुआ। उसकी अनुपस्थिति
में उसकी पत्नी
ने खूब मनमानी
की थी और
शील के बंधन
तोड़ दिए थे।
तोते ने अपने
स्वामी से सारा
हाल कह सुनाया।
स्वामी ने अपनी
पत्नी को खूब
डाँटा-फटकारा कि
तू मेरे पीठ
पीछे क्या-क्या
हरकतें करती है
और कैसे-कैसे
गुल खिलाती है।
पत्नी-पति से
तो कुछ न
बोली क्योंकि बातें
सच्ची थीं। लेकिन
यह सोचने लगी
कि यह बातें
उसके पति को
किसने बताई। पहले
उसने सोचा कि
शायद किसी सेविका
ने यह काम
किया है। उसने
एक एक सेविका
को बुलाकर डाँट
फटकार कर पूछा
किंतु सभी ने
कसमें खा-खाकर
कहा कि हमने
तुम्हारे पति से
कुछ नहीं कहा
है। स्त्री को
उनकी बातों का
विश्वास हो गया
और उसने समझ
लिया कि यह
कार्रवाई तोते ने
की है। उसने
तोते से कुछ
न कहा क्योंकि
तोता इस बात
को भी अपने
स्वामी को बता
देता। किंतु वह
इस फिक्र में
रहने लगी कि
किसी प्रकार तोते
को अपने स्वामी
के सन्मुख झूठा
सिद्ध करें और
अपने प्रति उसके
अविश्वास और संदेह
को दूर करें।
कुछ
दिन बाद उसका
पति एक दिन
के लिए फिर
गाँव से बाहर
गया। स्त्री ने
अपनी सेविकाओं को
आज्ञा दी कि
रात में एक
सेविका सारी रात
तोते के पिंजरे
के नीचे चक्की
पीसे, दूसरी उस
पर इस तरह
पानी डालती रहे
जैसे वर्षा हो
रही है और
तीसरी सेविका पिंजरे
के पीछे की
ओर दिया जला
कर खुद दर्पण
लेकर तोते के
सामने खड़ी हो
जाए और दर्पण
पर पड़ने वाले
प्रकाश को तोते
की आँखों के
सामने रह-रह
कर डालती रहे।
सेविकाएँ रात भर
ऐसा करती रहीं
और भोर होने
के पहले ही
उन्होंने पिंजरा ढक दिया।
दूसरे
दिन वह भद्र
पुरुष लौटा तो
उसने एकांत में
तोते से पूछा
कि कल रात
को क्या-क्या
हुआ था। तोते
ने कहा, 'हे
स्वामी, रात को
मुझे बड़ा कष्ट
रहा; रात भर
बादल गरजते रहे,
बिजली चमकती रही
और वर्षा होती
रही।' चूँकि विगत
रात को बादल
और वर्षा का
नाम भी नहीं
था इसलिए आदमी
ने सोचा कि
यह तोता बगैर
सिर-पैर की
बातें करता है
और मेरी पत्नी
के बारे में
भी इसने जो
कुछ कहा वह
भी बिल्कुल बकवास
थी। उसे तोते
पर अत्यंत क्रोध
आया और उसने
तोते को पिंजरे
से निकाला और
धरती पर पटक
कर मार डाला।
वह अपनी पत्नी
पर फिर विश्वास
करने लगा लेकिन
यह विश्वास अधिक
दिनों तक नहीं
रहा। कुछ महीनों
के अंदर ही
उसके पड़ोसियों ने
उसके उसकी पत्नी
के दुष्कृत्यों के
बारे में ऐसी-ऐसी बातें
कहीं जो उस
तोते की बातों
जैसी थीं। इससे
उस भद्र पुरुष
को बहुत पछतावा
हुआ कि बेकार
में ही ऐसे
विश्वासपात्र तोते को
जल्दी में मार
डाला।
मछुवारे
ने इतनी कहानी
कहकर गागर में
बंद दैत्य से
कहा कि बादशाह
गरीक ने तोते
की कथा कहने
के बाद अपने
मंत्री कहा, 'तुम दुश्मनी
के कारण चाहते
हो कि मैं
दूबाँ हकीम को
जिसने मेरा इतना
उपकार किया है
और तुम्हारे साथ
भी कोई बुराई
नहीं की है
निरपराध ही मरवा
डालूँ। मैं तोते
के स्वामी जैसा
मूर्ख नहीं हूँ
जो बगैर सोचे-समझे ऐसी
बात जल्दबाजी में
करूँ।'
मंत्री
ने निवेदन किया,
'महाराज, तोता अगर
निर्दोष मारा भी
गया तो कौन
सी बड़ी बात
हो गई। न
स्त्री का दुष्कृत्य
कोई बड़ी बात
है। किंतु जो
बात मैं आप
से कह रहा
हूँ वह बड़ी
बात है और
इस पर ध्यान
देना जरूरी है।
फिर आप के
बहुमूल्य जीवन के
लिए एक निरपराध
व्यक्ति मारा भी
जाय तो इस
में खेद की
क्या बात है।
उसका इतना अपराध
है ही कि
सभी लोग उसे
शत्रु का भेदिया
कहते हैं। मुझे
उससे न ईर्ष्या
है न शत्रुता।
मैं जो कुछ
कहता हूँ आप
ही के भले
के लिए कहता
हूँ। मुझे इससे
कुछ लेना-देना
नहीं कि वह
अच्छा है या
बुरा, मैं तो
केवल आप की
दीर्घायु चाहता हँ। अगर
मेरी बात असत्य
निकले तो आप
मुझे वैसा ही
दंड दें जैसा
एक राजा ने
अपने अमात्य को
दिया था। उस
अमात्य को अंतत:
राजाज्ञा से मरना
ही पड़ा था।'
बादशाह ने पूछा
किस राजा ने
अमात्य को प्राण-दंड दिया
और किस बात
पर दिया। मंत्री
ने यह कहानी
कही।
स्रोत-इंटरनेट
से कट-पेस्ट
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