(पिछिली पोस्ट से जारी……)
दूसरे
दिन उसने चुपके
से अपनी माँ
के संदूक से
निकलवा कर जवाहर
की वह मूर्ति
देखी जो उसके
मामा ने अपनी
बहन को दी
थी। वह सचमुच
ही मूर्ति देख
कर जवाहर पर
मर मिटा। अब
उसका जी न
खाने-पीने में
लगता था न
किसी से बोलने-
चालने में। वह
रात-दिन अपनी
प्रिया के ध्यान
में निमग्न रहने
लगा। जब सालेह
अपनी बहन से
विदा लेने आया
तो उसने भानजे
की बदली हुई
हालत देख कर
पूछा कि क्या
बात है, तुम्हारी
तबियत तो ठीक
है? बद्र ने
कहा, मेरे स्वास्थ्य
को कुछ नहीं
हुआ है लेकिन
आप अभी यहाँ
से न जाएँ।
मेरा जी घबराने
लगा है और
मुझे आप के
साथ ही रह
कर संतोष होता
है। आप दो-चार दिन
और रुकिए। हम
लोग कल शिकार
के लिए चलेंगे।
सालेह
ने यह मंजूर
कर लिया। वास्तव
में बद्र चाहता
था कि अपनी
माँ से छुपा
कर अपने मामा
से अपने दिल
की हालत कह
दे और शिकार
ही से आगे
बढ़ कर वह
अपनी प्रिया की
खोज में निकल
जाए। माँ से
साफ-साफ कहना
संभव ही नहीं
था क्योंकि वह
उसे किसी हालत
में नहीं जाने
देती। चुनांचे दोनों
मामा-भानजा कुछ
सेवकों के साथ
शिकार पर निकल
गए। वहाँ दोनों
ने एक हिरन
के पीछे अपने
घोड़े डाल दिए।
इसी चक्कर में
पहले दोनों अपने
सेवकों से अलग
हो गए, फिर
एक-दूसरे से
भी। बद्र एक
घने वृक्ष के
नीचे घोड़े से
उतर कर बैठा
और अकेले में
अपनी प्रिया का
नाम ले कर
रुदन करने लगा।
कुछ देर बाद
सालेह भी उसे
ढूँढ़ता हुआ आया
तो देखा कि
एक पेड़ के
नीचे बद्र विरह
विलाप कर रहा
है।
सालेह
समझ गया कि
मैंने अपनी बहन
से जो शहजादी
जवाहर के बारे
में कहा था
वह इसने सुन
लिया है। वह
घोड़े से उतर
कर धीरे-धीरे
आ कर एक
पेड़ की आड़
में खड़ा हो
कर सुनने लगा।
बद्र कह रहा
था, हे मेरी
प्राण प्यारी समंदाल
पुत्री, मैं तो
तुम्हारी मूर्ति देख कर
ही अपना धैर्य
खो बैठा हूँ।
मेरा विश्वास है
कि तुम सारे
संसार की राजकुमारियों
ही से नहीं,
चंद्रमा से भी
अधिक सुंदर हो।
तुमने मेरे हृदय
पर अधिकार कर
लिया है। लेकिन
मैं कहाँ जाऊँ
कि तुम मुझे
मिलो। सालेह को
इससे अधिक सुनने
का धैर्य न
रहा। वह आगे
बढ़ कर बद्र
के पास जा
बैठा और बोला,
इसका मतलब यह
है कि तुमने
हम-भाई बहन
की बातें सुन
ली हैं। हमने
तो इस बात
का ध्यान रखा
था कि तुम्हें
कुछ न मालूम
हो लेकिन हम
लोगों की होशियारी
कुछ काम नहीं
आई।
बद्र
ने कहा, जो
कुछ होना था
वह तो हो
ही गया। अब
सोचिए कि आगे
क्या होना है।
यदि आप चाहते
हैं कि मैं
जीवित रहूँ तो
मेरे विवाह का
संदेशा ले कर
जाएँ और उसके
पिता को राजी
करें। सालेह ने
उसे दिलासा देते
हुए कहा, तुम
अब अपने नगर
को जाओ। मैं
अभी समंदाल देश
जाता हूँ और
तुम्हारे विवाह की बात
वहाँ के बादशाह
से चलाता हूँ।
बद्र बोला, नहीं
मामाजी, आप मुझे
बहला रहे हैं।
अगर आप को
वास्तव में मेरे
प्राणों की चिंता
होती तो ऐसी
दशा में मुझे
अकेला नहीं छोड़ते।
अगर आप को
वास्तव में मुझसे
प्रेम है तो
मुझे भी अपने
साथ ले चलें।
सालेह ने कहा,
भाई, कैसी बातें
करते हो? तुम्हें
तुम्हारी माँ की
अनुमति के बगैर
मैं किस तरह
ले जा सकता
हूँ?
बद्र
ने कहा, फिर
तो हो चुका।
आप अच्छी तरह
जानते हैं कि
मेरी माँ मुझे
प्राणों से भी
अधिक चाहती हैं।
वे मुझे कभी
आपके साथ जाने
नहीं देंगी।
सालेह
अजीब चक्कर में
पड़ा कि किस
तरह वह इस
स्थिति से निकले।
उसने कुछ देर
सोच कर कहा,
मैं तुम्हें अपने
साथ तो नहीं
ले जा सकता
किंतु यह अँगूठी
देता हूँ जिस
पर इस्मे-आजम
(चमत्कारी महामंत्र) खुदा है।
इसे पहन कर
निःशंक पानी में
घुस जाना, तुम्हें
कुछ नहीं होगा।
बद्र ने अँगूठी
पहन ली। सालेह
ने कहा, अब
तुम्हारे हाथ में
चमत्कारी अँगूठी है और
जो कुछ मैं
कर सकता हूँ
वह सब तुम
कर सकते हो।
तुम मेरे पीछे-पीछे आओ।
यह कह कर
वह हवा में
उड़ने लगा। बद्र
भी उसके पीछे
उड़ता हुआ समुद्र
तट पर पहुँचा।
फिर वह अपने
मामा के पीछे
समुद्र में गोता
लगा गया और
दोनों तेजी से
चलते हुए सालेह
के राज्य में
पहुँच गए। बद्र
को सालेह अपनी
माँ के पास
ले गया।
बद्र
ने आदरपूर्वक नानी
के हाथ चूमे
और वह भी
उसे देख कर
बड़ी प्रसन्न हुई
और आशीर्वाद देने
लगी और उसे
खूब प्यार करने
लगी। उसने परिवार
की अन्य स्त्रियों
से भी मिलवाया
और सब लोग
बहुत देर तक
बातें करते रहे।
इस
बीच सालेह ने
अवकाश पा कर
अपनी माँ से
बद्र का सारा
हाल बताया कि
वह किस प्रकार
समंदाल देश की
शहजादी के पीछे
पागल हो गया
है। उसने कहा
कि अब तुम
बद्र को रखना,
मैं समंदाल के
बादशाह से बद्र
के लिए जवाहर
को माँगने जा
रहा हूँ। उसने
कहा, मैंने और
गुल अनार ने
इस बात का
बहुत ध्यान रखा
कि इस बात
की भनक बद्र
को न लगे
किंतु उसे मालूम
हो ही गया
और अब सिवाय
इसके कुछ नहीं
हो सकता कि
जल्दी से जल्दी
विवाह की बात
की जाय।
सालेह
की माँ बड़ी
चिंतित हुई। उसने
कहा, यह तुम
क्या कर रहे
हो? क्या तुम
यह नहीं जानते
कि समंदाल का
बादशाह बहुत ही
घमंडी है? तुमने
उसकी बेटी की
बात ही अपनी
बहन से क्यों
की? इसी से
तो बद्र पर
पागलपन चढ़ा है।
सालेह ने कहा,
आप की बात
ठीक है, मेरी
भूल थी। किंतु
अब और किया
भी क्या जाय।
अगर जवाहर न
मिली तो बद्र
निश्चय ही अपनी
जान दे देगा।
मैं इस सिलसिले
में जो भी
हो सकेगा करूँगा।
मैं
वहाँ जा कर
विवाह की प्रार्थना
करने के पहले
बादशाह को बहुमूल्य
रत्नों की भेंट
दूँगा और फिर
चतुरता से बात
शुरू करूँगा। आशा
है कि मैं
अपने कार्य में
सफलता प्राप्त करूँगा।
उसकी
माँ बोली, बेटा
यह सब ठीक
हैं फिर भी
मुझे बड़ा डर
लग रहा है।
वह बादशाह बेहद
घमंडी है और
क्रोध में न
जाने क्या करे।
तुम मेरे सबसे
कीमती जवाहरात ले
जाओ और उसे
भेंट दो। किंतु
इस समय बद्र
को अपने साथ
न ले जाओ,
उसे मेरे पास
ही छोड़ जाओ।
इसके अलावा यह
ध्यान रखना कि
बड़ी चतुराई से
बात शुरू की
जाय, किसी भी
दशा में उसे
क्रुद्ध नहीं होने
देना है क्योंकि
वह क्रुद्ध हुआ
तो विवाह तो
होगा ही नहीं,
और भी कोई
मुसीबत आ सकती
है।
यह
कह कर बुढ़िया
ने अपना संदूकचा
खोला और बहुमूल्य
रत्न सालेह को
दिए और ताकीद
की कि कोई
भी बात शुरू
हो इससे पहले
यह भेंट उसे
देना ताकि वह
प्रसन्न रहे। सालेह
ने माँ के
दिए हुए रत्न
एक सुंदर मंजूषा
में रखे और
थोड़ी-सी सेना
ले कर समंदाल
देश की ओर
चल दिया। कुछ
काल में वह
वहाँ पहुँच गया।
समंदाल के बादशाह
ने उसका यथोचित
स्वागत किया। स्वयं सिंहासन
से उतर कर
उससे मिला और
अपने बगल में
उसे बिठाया। सालेह
विनयपूर्वक बैठ गया।
उससे समंदाल के
बादशाह ने कहा,
शायद आप किसी
राजनीतिक कार्यवश आए हैं।
मेरे लायक जो
काम हो वह
बताइए। सालेह ने कहा,
कोई राजनीतिक कार्य
नहीं था, केवल
आपके दर्शन की
इच्छा थी। हाँ,
एक व्यक्तिगत कार्य
भी था। यदि
आप मेरी बात
को ध्यानपूर्वक सुनना
चाहें तो मैं
निवेदन करूँ। समंदाल के
बादशाह ने हँस
कर कहा, जरूर
कहिए। कहिए, आपकी
क्या सेवा करूँ।
सालेह
ने अपने सेवक
के हाथ से
रत्नों का संदूकचा
लिया और समंदाल
के बादशाह से
कहा, मेरी ओर
से यह तुच्छ
भेंट स्वीकार करें।
बादशाह ने प्रसन्नतापूर्वक
भेंट को स्वीकार
किया। फिर सालेह
ने कहा, हम
दोनों के देशों
में जो परंपरागत
मैत्री रही है
और जिस प्रकार
आप जैसे प्रतापी
नरेश की दया
हम लोगों पर
रही है उसी
से प्रोत्साहित हो
कर में आपसे
अपने हृदय की
बात कहने के
लिए आया हूँ।
आप का मन
अति स्वच्छ है
और आप किसी
की प्रार्थना नहीं
टालते इसीलिए मैं
निवेदन कर रहा
हूँ कि मेरी
बहन का नाम
गुल अनार है।
बहुत दिन पूर्व
उसका विवाह ईरान
के सम्राट के
साथ हुआ था।
उसका एक बेटा
है जो इस
समय ईरान का
सम्राट है। वह
न केवल अतीव
सुंदर है अपितु
प्रत्येक प्रकार की विद्याओं
और कलाओं में
भी निपुण है।
वह पंद्रह वर्ष
की अवस्था से
राज-काज देख
रहा है। अब
वह विवाह योग्य
हो गया है।
मेरी आप से
सविनय प्रार्थना है
कि आप उसे
अपने दासत्व के
लिए स्वीकार करें
और अपनी अद्वितीय
पुत्री जवाहर का विवाह
मेरे भानजे बद्र
के साथ कर
दें।
समंदाल
देश का राजा
अभी तक तो
बड़ा शालीन रहा
था किंतु यह
सुनते ही उसका
चेहरा और आँखें
लाल हो गईं।
सालेह का हृदय
काँपने लगा। कुछ
क्षणों के उपरांत
समंदाल नरेश ने
कहा, सालेह, मैं
समझता था कि
तुम बड़े समझदार
आदमी हो। लेकिन
आज मालूम हुआ
कि तुममें बिल्कुल
बुद्धि नहीं है।
मैंने सौजन्य के
नाते तुम्हारी अभ्यर्थना
अवश्य की किंतु
इसका यह अर्थ
तो नहीं है
कि तुम्हें अपनी
बराबरी की हैसियत
दे दूँ। क्या
तुम नहीं जानते
कि मेरा ऐश्वर्य
और वैभव कितना
अधिक है? क्या
तुम नहीं जानते
कि तुम्हारा राज्य
मेरे राज्य के
सामने अति तुच्छ
है? तुम्हारी हिम्मत
कैसे हुई कि
मेरी पुत्री जवाहर
का नाम अपनी
जुबान से निकालो।
तुम्हारी मौत तो
तुम्हें यहाँ नहीं
खींच लाई है?
सालेह
ने घबरा कर
कहा, शायद आपने
मेरी बातों का
अर्थ ठीक नहीं
समझा। मैं बूढ़ा
आदमी हूँ। मैं
अपने लिए जवाहर
को नहीं माँग
रहा। मैं तो
यह कह रहा
हूँ कि आप
अपनी पुत्री का
विवाह मेरे भानजे
यानी ईरान के
सम्राट बद्र के
साथ कर दीजिए।
समंदाल
का बादशाह यह
सुन कर और
क्रुद्ध हुआ और
आपे से बाहर
हो कर कहने
लगा, तूने यह
कह कर मेरा
और अपमान किया
है। कमबख्त, तू
समझता है तेरे
भानजे की कोई
बराबरी मेरी बेटी
से हो सकती
है? तेरा भानजा
क्या चीज है।
यह कह कर
उसने अपने सिपाहियों
को आज्ञा दी
कि सालेह को
पकड़ कर उसका
सिर काट लें।
सालेह इस स्थिति
को पहले ही
से भाँपे हुए
था। उसके कुछ
सेवक बादशाह का
क्रोध देख कर
पहले ही भाग
गए थे और
अपनी सेना के
बजाय भाग कर
अपने देश को
चले गए थे।
किंतु
सालेह तड़प कर
समंदाल के सैनिकों
के बीच से
निकल गया और
टेढ़े-मेढ़े रास्तों
से चल कर
अपनी सेना में
जा पहुँचा। उसका
सेनापति उसकी दशा
सुन कर आगबबूला
हो गया और
बोला, आप अपनी
सेना की कमी
को न देखिए।
एक बार हमें
जौहर दिखाने का
आदेश दीजिए, फिर
देखिए क्या तमाशा
होता है।
सालेह
ने आक्रमण का
आदेश दिया। समंदाल
की सेना ने
सामना किया किंतु
परास्त हुई। सालेह
ने उस बादशाह
को कैद कर
लिया और उसकी
पुत्री को पकड़
लाने के लिए
उसके महल पर
चढ़ दौड़ा। किंतु
जवाहर को पहले
से इसकी भनक
लग गई थी
और वह कुछ
दासियों के साथ
भाग कर एक
सुनसान द्वीप में जा
छुपी। इधर सालेह
के जो सेवक
पहले ही भाग
कर अपने देश
में पहुँचे थे
उन्होंने जा कर
सालेह की माता
से कहा कि
समंदाल के बादशाह
ने अब तक
सालेह को मरवा
डाला होगा। वह
बेचारी यह सुन
कर पछाड़ खा
कर गिर पड़ी
और बेहोश हो
गई। दूसरे लोग
भी रोने-पीटने
लगे। बद्र भी
वहाँ मौजूद था।
उसे बड़ी ग्लानि
हुई कि मेरे
कारण मेरे मामा
की जान गई।
उसने सोचा कि
अब मैं इन
लोगों को क्या
मुँह दिखाऊँ। यह
सोच कर वह
ईरान के लिए
चल पड़ा।
बद्र
बड़ी हड़बड़ी में
चला था इसलिए
पानी में रास्ता
भूल गया और
कई दिन बाद
भटकता हुआ उसी
टापू में पहुँचा
जहाँ पर जवाहर
ने आश्रय लिया
था। वह थक
कर एक पेड़
के नीचे आराम
कर रहा था
कि उसे एक
ओर से कुछ
स्त्रियों की बोली
सुनाई दी। वह
उधर गया तो
देखा कि एक
शहजादी दासियों से घिरी
बैठी है। वह
समझ गया कि
यही मेरी प्रेयसी
है। उसने पास
जा कर कहा,
भगवान की बड़ी
दया है कि
आपसे भेंट करने
का अवसर मिला।
मैं आपका सेवक
हूँ। अगर आपकी
कुछ सहायता कर
सकूँ तो मुझे
प्रसन्नता होगी। जवाहर बोली,
आपके वचनों से
मुझे बड़ा धैर्य
मिला। मैं बड़ी
मुसीबत में हूँ।
मैं समंदाल नरेश
की बेटी जवाहर
हूँ। पड़ोस के
एक राजा सालेह
ने हम पर
आक्रमण कर के
मेरे पिता को
कैद कर लिया
है। मैं किसी
तरह भाग कर
यहाँ पर आ
कर छुपी हूँ।
बद्र
ने बगैर आगा-पीछा सोचे
अपना सच्चा परिचय
दे दिया। उसने
कहा, मैं ईरान
का सम्राट हूँ।
मेरा नाम बद्र
है। सालेह साहब
मेरे मामा हैं।
वे आपके साथ
मेरे विवाह का
संदेशा ले कर
आपके पिता के
पास गए थे
किंतु आपके पिता
ने उन्हें मार
डालने का आदेश
दिया। इस पर
मेरे मामा की
सेना ने आपके
देश पर चढ़ाई
कर दी और
आपके पिता को
कैद कर लिया।
अब आप धैर्य
रखिए। सालेह केवल
यह चाहते हैं
कि आपके पिता
आपको मुझ से
ब्याह दें। अब
मैं इन दोनों
बादशाहों से मेल
करा दूँगा।
जवाहर
बद्र के रूप
और शील को
देख कर मोहित
थी किंतु जब
उसे मालूम हुआ
कि इसी नवयुवक
के कारण मेरे
राज्य पर विपत्ति
आई है तो
उसके हृदय में
क्रोध भर गया।
चूँकि उसका सीधा
सामना नहीं कर
सकती थी इसलिए
उसने छल से
काम लिया। वह
जादूगरनी थी लेकिन
मंत्र पढ़ने के
लिए भी किसी
तरह के पानी
की जरूरत होती
है और वह
टापू निर्जल था।
उसने कहा, ईरान
के सम्राट, मुझे
आपसे मिल कर
बड़ी प्रसन्नता हुई।
वास्तव में मेरे
पिता ने बड़ी
भूल की कि
मेरा विवाह आप
से नहीं किया
शायद वे आपको
देखते तो इनकार
न करते। खैर,
अब तो मेरे
पास आ कर
बैठिए। यह कह
कर उसने हाथ
बढ़ाया। बद्र ने
पास आ कर
उसका हाथ पकड़ना
चाहा तो उसने
हाथ खींच लिया
और उसके मुँह
पर थूक दिया
और इस प्रकार
जल की कमी
पूरी कर के
मंत्र पढ़ कर
उसे लाल पीठ
और पाँवों का
पक्षी बना दिया
और एक दासी
से कहा, इसे
इससे भी अधिक
निर्जल द्वीप में छोड़
दे ताकि यह
वहाँ भूखा-प्यासा
मर जाए।
दासी
पक्षी रूपी बद्र
को पकड़ कर
ले चली। मार्ग
में उसे उस
पर दया आई
कि ऐसा लाड़-प्यार का पाला
जवान बगैर दाना-पानी के
तड़प-तड़प कर
मरेगा। उसने यह
भी सोचा कि
यद्यपि शहजादी ने क्रोध
में उसे ऐसा
दंड दिया है
किंतु स्वभावतः वह
दयालु है और
क्रोध उतरने पर
इसकी मौत पर
उसे पछतावा ही
होगा। इसलिए उसने
तय किया कि
उसे निर्जन द्वीप
में तो छोड़े
किंतु वह हरा-भरा द्वीप
हो जहाँ वह
जीवित रह सके।
उसने यही किया,
ऐसे द्वीप में
उसे ले जा
कर छोड़ा जहाँ
सघन वृक्ष थे
और पानी के
झरने थे और
जगह-जगह पर
तालाब भी थे।
इधर
सालेह ने महल
में बहुत तलाश
करवाई किंतु जवाहर
कहीं न मिली।
उसने क्रोध में
आ कर अपने
सेवकों को आदेश
दिया कि समंदाल
नरेश को बंदीगृह
में तरह-तरह
के कष्ट दो
क्योंकि उसे जवाहर
के बारे में
मालूम होगा और
जब कष्ट से
बेचैन हो जाएगा
तो उसका पता
बताएगा। फिर वह
अपने देश में
वापस आया और
दूसरे दिन अपनी
माँ से पूछा
कि बद्र दिखाई
नहीं देता, क्या
बात है। उसकी
माँ ने कहा
कि जब मैंने
समंदाल नरेश के
तुमसे कुपित होने
का समाचार सुना
और वहाँ से
तुम्हारी सहायता के लिए
दूसरी बड़ी सेना
भेजी उसी समय
से बद्र कहीं
दिखाई नहीं देता
है, पता नहीं
वह कहाँ चला
गया।
सालेह
यह सुन कर
बड़ा दुखी हुआ
और सोचने लगा
कि इतना सारा
झंझट बेकार ही
हुआ, मैंने बद्र
की प्रसन्नता के
लिए ही यह
सब किया था
और इस समय
बद्र ही गायब
है। उसे बड़ी
लज्जा लगी कि
अब वह अपनी
बहन को क्या
मुँह दिखाएगा। उसने
अपने सरदारों और
समस्त उच्च कर्मचारियों
को आदेश दिया
कि सारे देश
में खोज कर
के बद्र का
पता लगाया जाय।
किंतु कई दिनों
तक तलाश होने
पर भी उसका
पता नहीं चला।
फिर सालेह ने
सोचा कि संभव
है कि बद्र
खुद भी उसकी
सहायतार्थ समंदाल देश को
गया हो। इसलिए
सालेह ने अपनी
माँ को राज्य
का प्रबंध सौंपा
और स्वयं समंदाल
देश को चल
पड़ा।
इधर
ईरान में मलिका
गुल अनार ने
बहुत दिनों तक
प्रतीक्षा की किंतु
सालेह या बद्र
किसी की वापसी
न हुई। फिर
उसने दोनों के
साथ गए शिकारियों
को पुछवाया कि
वे आए हैं
या नहीं। उन्होंने
वापस आ कर
मलिका का आदेश
सुना तो उसके
पास आए और
कहने लगे, दोनों
ने एक हिरन
के पीछे घोड़े
डाल दिए थे
और हम पीछे
रह गए। बहुत
दिनों तक हम
उन्हें ढूँढ़ते रहे। वे
तो नहीं मिले
किंतु उनके घोड़े
एक पेड़ से
बँधे हुए मिले।
हम उन्हीं घोड़ों
को ले कर
चले आए।
शिकारियों
की बात सुन
कर मलिका को
इत्मीनान हुआ कि
घोड़ों को छोड़
कर सालेह और
बद्र दोनों समुद्र
में प्रवेश कर
गए होंगे और
सालेह के राज्य
में चले गए
होंगे। प्रकट में उसने
शिकारियों और सिपाहियों
को आज्ञा दी
कि बद्र और
सालेह को उसी
वन में ढूँढ़ते
रहें जहाँ से
वे गायब हुए
थे। फिर वह
अपनी दासियों की
नजर बचा कर
समुद्र में पैठ
गई और अपने
मायके पहुँची। वहाँ
जा कर अपनी
माँ से पूछा
कि सालेह और
बद्र अचानक गायब
हो गए हैं,
कहीं ऐसा तो
नहीं कि वे
यहाँ आए हों।
उसकी
माँ ने कहा,
बेटी, उन दोनों
का हाल मैं
क्या बताऊँ। उन
दोनों के यहाँ
पर आने से
मुझे बड़ी प्रसन्नता
हुई किंतु जब
सालेह ने बताया
कि बद्र समंदाल
की शहजादी के
पीछे पागल है
और उससे विवाह
न हुआ तो
जान दे देगा
तो मैं चिंतित
हुई कि वह
बादशाह तो बड़ा
घमंडी है, इस
विवाह के लिए
कैसे तैयार होगा।
सालेह ने कहा
कि मैं विवाह
का प्रस्ताव ले
कर जाता हूँ।
मुझे जो आशंका
थी वही हुआ।
समंदाल नरेश ने
क्रुद्ध हो कर
सालेह को पकड़
लिया और उसका
वध करने का
आदेश दिया। उसके
साथ के कुछ
लोग भाग कर
यहाँ आए और
हाल सुनाया। मैंने
यह सुन कर
एक बड़ी सेना
सालेह को छुड़ाने
के लिए भेजी।
यह हाल सुन
कर बद्र किसी
ओर को चुपचाप
निकल गया। उधर
सालेह समंदाल नरेश
के बंधन से
निकल भागा और
अपनी थोड़ी-सी
सेना से समंदाल
के बादशाह को
हरा कर उसे
कैद कर लिया।
वापस आने पर
जब उसे बद्र
के गुम होने
का हाल मालूम
हुआ तो यहाँ
ढुँढ़वाने के बाद
उसकी खोज में
फिर समंदाल चला
गया।
गुल
अनार यह सुन
कर रोने लगी।
वह अपने भाई
को बुरा-भला
भी कहने लगी
कि अच्छी शहजादी
का जिक्र किया
कि लड़के का
दिमाग ही फिर
गया। उसकी माँ
ने कहा, इसमें
संदेह नहीं कि
सालेह को चाहिए
था कि जवाहर
का उल्लेख तुमसे
करते समय सावधानी
बरतता कि बद्र
को यह मालूम
न हो पाता।
किंतु अब तुम
चिंता न करो।
वह बद्र को
जरूर ढूँढ़ निकालेगा।
तुम्हारे लिए यही
उचित है कि
ईरान जा कर
राज्य प्रबंध सँभालो
वरना वहाँ कोई
उपद्रवी व्यक्ति गड़बड़ी कर
सकता है। गुल
अनार ने माँ
की सलाह मान
ली और ईरान
वापस आ गई।
ईरान आ कर
उसने एक और
समझदारी का काम
किया। उसने राजधानी
में घोषणा करवा
दी कि बद्र
का हालचाल मालूम
हो गया है,
वह सकुशल है
और शीघ्र ही
यहाँ वापस आएगा।
सभी लोग इस
बात को सुन
कर प्रसन्न हुए
और यथानियम अपना-अपना काम
मुस्तैदी से करने
लगे।
अब
बादशाह बद्र का
हाल सुनिए। जब
दासी उसे पक्षी
के रूप में
पृथ्वी के एक
टापू पर छोड़
आई तो वह
अपने को पक्षी
के शरीर में
देख कर बड़ा
आश्चर्यान्वित हुआ। उसे
मालूम भी न
था कि ईरान
किधर है और
उसके पंखों में
इतनी शक्ति भी
न थी कि
उड़ कर किसी
दूर देश को
जाता। और ईरान
पहुँच भी जाता
तो क्या लाभ
था, उसे पक्षी
के रूप में
कौन पहचान पाता।
मजबूरी में उस
द्वीप के फल
और दाने खाता
रहता और रात
को किसी डाल
पर बैठ कर
सो जाता। कुछ
दिन बाद एक
चिड़ीमार जाल ले
कर वहाँ आया
और उसे देख
कर आश्चर्य करने
लगा। उसने इतना
सुंदर पक्षी कभी
नहीं देखा था।
उसने जाल बिछाया
और अन्य पक्षियों
के साथ बद्र
को भी पकड़
लिया और नगर
में आ कर
बाजार में पक्षियों
को बेचने के
लिए बैठ गया।
कई
लोगों ने उस
लाल रंग के
पक्षी का दाम
पूछा। चिड़ीमार ने
कहा, यह तुम
लोगों के काम
का नहीं है।
तुम इस का
क्या करोगो? भून
कर खाने के
लिए ही तो
खरीद रहे हो।
इसका क्या दोगे?
दो-चार आने
या हद से
हद एक रुपया।
तुम दूसरे पक्षी
ले लो। इसे
तो मैं यहाँ
के बादशाह को
भेंट दूँगा। वह
इसकी कद्र करेगा
और मुझे अच्छा
इनाम देगा। उस
बहेलिए ने ऐसा
ही किया। वह
पक्षी को ले
कर राजमहल की
ओर गया। संयोग
से उस समय
बादशाह महल के
छज्जे पर बैठा
हुआ बाजार का
तमाशा देख रहा
था। उसने बहेलिए
के पिंजरे में
वह सुंदर पक्षी
देखा तो सेवकों
द्वारा बहेलिए को बुलाया।
बहेलिया आया तो
बादशाह ने पूछा,
इस पक्षी को
कितने में बेचोगे?
बहेलिए ने भूमि
चूम कर कहा,
पृथ्वीपाल, मैं इसे
बेचने के लिए
नहीं लाया हूँ,
सरकार को भेंट
देने के लिए
लाया हूँ। ऐसे
सुंदर पक्षी की
कद्र बादशाह के
अलावा और कौन
कर सकता है?
बादशाह
चिड़ीमार की बात
सुन कर बहुत
प्रसन्न हुआ। उसने
चिड़ीमार को दस
अशर्फियाँ दिलवाईं और पिंजरा
रखवा लिया। उसने
अपने सेवकों को
आज्ञा दी कि
इस पक्षी को
सोने के पिंजरे
में रखा जाए
ओर इसकी दाने-पानी की
प्यालियाँ नीलम की
हों। एक दिन
बाद उसने सेवकों
से पूछा कि
लाल रंग के
पक्षी का क्या
हाल है। उन्होंने
कहा, हमने उसके
लिए अच्छा से
अच्छा दाना और
पानी रखा किंतु
वह कुछ खाता-पीता ही
नहीं है। बादशाह
के खाने का
समय हो गया
था। उसने भोजन
भी मँगवाया और
पक्षी को भी
पिंजरे से निकाल
कर अपने हाथ
पर बिठाया। ज्यों
ही शाही भोजन
की तश्तरियाँ लगीं
कि पक्षी बने
हुए बद्र ने
कूद-कूद कर
स्वादिष्ट राजसी व्यंजन खाना
शुरू कर दिया।
बादशाह को यह
देख कर हँसी
आई कि यह
पक्षी भी राजसी
व्यंजनों का शौकीन
हैं। उसने दासियों
को आज्ञा दी
कि मलिका को
भी बुला लाएँ
ताकि वह इस
पक्षी का तमाशा
देखें।
मलिका
आई तो मुँह
खोले हुए किंतु
पक्षी को देखते
ही उसने मुँह
पर नकाब डाल
लिया। बादशाह ने
आश्चर्य से पूछा,
मलिका, यहाँ तो
केवल मैं हूँ
और महल की
दासियाँ। यहाँ कौन
बेगाना मर्द बैठा
है जिससे तुम
परदा कर रही
हो? मलिका ने
कहा, आप गैर
मर्द को अपने
हाथ पर लिए
बैठे हैं। बादशाह
ने कहा, तुम
पागल तो नहीं
हो गई हो?
आदमी किसी आदमी
को हाथ पर
ले कर कैसे
बैठ सकता है?
मलिका ने कहा,
नहीं, मैं ठीक
कह रही हूँ।
यह पक्षी जिसे
आप हाथ पर
लिए बैठे हैं
स्वाभाविक पक्षी नहीं है।
यह आदमी है
जिसे जादू के
जोर से पक्षी
बना दिया गया
है।
बादशाह
का कौतूहल बढ़ा।
उसने विस्तारपूर्वक सारा
हाल बताने को
कहा तो मलिका
ने बताया, यह
ईरान का बादशाह
है। इसका नाम
बद्र है। इसकी
माता गुल अनार
है जो एक
प्रख्यात जलदेश की शहजादी
है। इसकी नानी
का नाम रानाफर्राशी
है, वह भी
एक अन्य जलदेश
की राजकुमारी थी।
प्रख्यात जलदेश समंदाल की
शहजादी जवाहर ने क्रोध
में आ कर
इसे जादू के
जोर से पक्षी
बना दिया है।
बादशाह को यह
सुन कर बड़ा
खेद हुआ। वह
बोला, देखो भाग्य
भी कैसे-कैसे
खेल खिलाता है।
कहाँ तो यह
बादशाह था, कहाँ
अब पक्षी बन
कर पिंजरे में
बंद है। एक
बात बताओ। तुम
अगर इतना सब
जानती हो तो
यह भी जानती
होगी कि यह
किसी तरह अपने
पूर्व रूप को
प्राप्त कर सकता
है या नहीं।
मलिका
ने कहा, यह
क्या मुश्किल है।
मैं भी जादू
जानती हूँ और
इसलिए मैंने इसका
रूप भी पहचान
लिया और इसका
इतिहास भी जान
लिया। किंतु मैं
परदेदार औरत हूँ,
इसे अपने सामने
इसके असली रूप
में न लाऊँगी।
आप इसे ले
कर दूसरे कक्ष
में चले जाइए,
फिर मैं जो
कुछ करने को
आपसे कहलवाऊँ वह
कीजिए। वह अपने
असली रूप में
आ जाएगा।
बादशाह
पक्षी को ले
कर दूसरे कमरे
में चला गया।
इधर रानी ने
एक पात्र में
जल मँगवाया और
उस पर मंत्र
पढ़ने लगी। कुछ
देर में पात्र
का जल खौलने
लगा। मलिका ने
थोड़ा अभिमंत्रित जल
बादशाह के पास
भिजवाया और जल
ले जानेवाली दासी
से कहा, बादशाह
से कहना कि
इस जल को
उस पक्षी पर
छिड़क कर कहें
कि इस मंत्र
की शक्ति से
तथा समस्त संसार
के रचयिता सर्वसमर्थ
भगवान की इच्छा
से तू अपने
पूर्वरूप को प्राप्त
हो जा और
अगर तू स्वाभाविक
रूप से पक्षी
हो कर ही
जन्मा है तो
इसी शरीर में
रह।
बादशाह
ने मलिका की
इच्छानुसार यह शब्द
कहे और तुरंत
ही बादशाह बद्र
अपने असली रूप
में आ गया।
बादशाह को उसका
रूप और चेहरे
पर राजसी भाव
देख कर बड़ी
प्रसन्नता हुई कि
वह पक्षी की
योनि से छूट
गया। बद्र अपने
पुराने शरीर को
पा कर खुशी
के आँसू बहाने
लगा। उसने हाथ
उठा कर भगवान
को इस कृपा
के लिए धन्यवाद
दिया और फिर
बादशाह के चरणों
में गिर पड़ा
और उसे भाँति-भाँति रूप से
धन्यवाद देते हुए
उसके चिरायु और
सर्वाधिक वैभवशाली होने की
कामनाएँ करने लगा।
मलिका ने यह
देखा तो संतुष्ट
हो कर अपने
आवास में वापस
चली गई।
बादशाह
ने बद्र को
उठा कर गले
लगाया और फिर
उसे अपने साथ
बिठा कर भोजन
कराया। भोजन के
उपरांत उसने बद्र
से पूछा कि
तुम से शहजादी
जवाहर इतनी नाराज
क्यों हो गई
थी कि तुम्हें
इतना बड़ा दंड
दे बैठी। बद्र
ने उसे आद्योपांत
सारी कथा कह
सुनाई। बादशाह को यह
सुन कर बड़ा
आश्चर्य हुआ। उसने
कहा, भाई, तुम्हारी
कहानी तो लिख
कर रखने के
लायक है। अच्छा,
जो हुआ सो
हुआ। अब तो
तुम फिर से
अपने रूप में
आ गए हो।
अब क्या इरादा
है। जो मदद
मुझसे माँगो मैं
देने के लिए
तैयार हूँ।
बद्र
ने कहा, मेरे
गायब होने के
बाद मेरी माता
दुख से तड़प
रही होगी। वैसे
तो आपने मुझ
पर जो अहसान
किया है वही
क्या कम है,
किंतु यदि मेरी
प्रसन्नता की बात
पूछते हैं तो
मेरे लिए एक
जहाज का प्रबंध
करा दीजिए जिससे
मैं अपने देश
ईरान को चला
जाऊँ और अपनी
माँ को धैर्य
दे कर अपना
राज्य प्रबंध सँभालूँ।
बादशाह
ने खुशी से
मंजूर कर लिया।
उसने अपने सेवकों
को आज्ञा दी
कि बद्र को
ईरान वापस ले
जाने के लिए
एक बढ़िया जहाज
सजाया जाए। ऐसा
ही किया गया
और बादशाह से
धन्यवादपूर्वक विदा ले
कर बद्र ने
ईरान के लिए
यात्रा शुरू कर
दी। दस दिन
तक जहाज आराम
से चलता रहा
लेकिन ग्यारहवें दिन
मुसीबत खड़ी हो
गई। समुद्र में
एक प्रचंड तूफान
आया। साथ ही
हवा का रुख
भी बदल गया।
जिससे जहाज अपने
रास्ते से भटक
गया। कुछ ही
देर में जहाज
के सारे मस्तूल
टूट गए और
जहाज काग की
तरह लहरों पर
उछलने लगा। देखते
ही देखते उसका
तला एक जलगत
चट्टान से टकराया
और जहाज टुकड़े-टुकड़े हो गया।
औरों का मालूम
नहीं क्या हुआ
किंतु बद्र एक
तख्ते के सहारे
तैरता हुआ कुछ
घंटों में भूमि
पर जा लगा।
यह एक द्वीप
था जिसमें समुद्रतट
पर एक ओर
पहाड़ था और
दूसरी ओर दूर
पर एक नगर
दिखाई दे रहा
था। बद्र जल
से निकल कर
भूमि पर आया
और आराम करने
के लिए लेट
गया।
किंतु
तुरंत ही घोड़े,
गाएँ और बहुत-से दूसरे
जानवर आ कर
शोर करने लगे
और उसे समुद्र
की ओर ढकेलने
लगे। वह किसी
तरह उनसे बच
कर एक पहाड़
की खोह में
जा छुपा और
कुछ देर आराम
करने के बाद
और कपड़े सुखाने
के बाद नगर
में जाने के
लिए उद्यत हुआ
किंतु वे जानवर
फिर आ गए
और चिल्ला-चिल्ला
कर उसका रास्ता
रोकने लगे। वह
किसी तरह उनसे
बचता-बचाता नगर
में प्रविष्ट हो
गया। वहाँ उसे
यह देख कर
आश्चर्य हुआ कि
सड़कों आदि पर
सफाई आदि खूब
है किंतु दुकानदार
कम ही हैं।
काफी देर बाद
उसे एक दुकान
में एक बूढ़ा
दिखाई दिया जो
वहाँ रखे फलों
को पोंछ- पोंछ
कर साफ कर
रहा था। बद्र
ने पास जा
कर उसे सलाम
किया। उसने बद्र
को देखा तो
उसके रूप से
बहुत प्रभावित हुआ।
फिर उसके सलाम
का जवाब दे
कर उसने पूछा,
तुम कौन हो?
कहाँ से आए
हो? बद्र ने
संक्षेप में अपना
परिचय दिया। इसके
बाद बूढ़े ने
पूछा, मेरे अलावा
तुम्हें और किसी
ने तो यहाँ
नहीं देखा? बद्र
ने कहा, नहीं,
आपके सिवा किसी
मनुष्य को मैंने
यहाँ पर पास
से नहीं देखा।
मुझे बड़ा आश्चर्य
है कि ऐसा
स्वच्छ और सुंदर
नगर ऐसा वीरान
क्यों हैं। बूढ़ा
बोला, अच्छा, अच्छा,
तुम बाहर खड़े
न रहो, अंदर
आ जाओ।
बद्र
अंदर गया तो
बूढ़ा बोला, यह
बड़ा अच्छा हुआ
कि अभी तक
तुम्हें किसी ने
नहीं देखा है।
इस नगर की
बड़ी विचित्र कथा
है। किंतु तुम
भूखे-प्यासे मालूम
होते हो, पहले
खाना खाओ फिर
मैं यहाँ की
बातें तुम्हें बताऊँगा।
बद्र खा-पी
कर तृप्त हुआ
तो वृद्ध ने
कहना शुरू किया,
देखो बादशाह बद्र,
यहाँ पर तुम्हें
बहुत होशियारी से
रहना है, यह
जादू नगरी है।
यहाँ की शासिका
एक स्त्री है।
वह अत्यंत रूपवती
है और साथ
ही मंत्र विद्या
में निपुण। वह
बड़ी विलासिनी भी
है। तुमने देखा
होगा कि नगर
के बाहर समुद्र
तट पर बहुत-से जानवर
हैं जो हर
एक को रोकने
की कोशिश करते
हैं कि वह
इस शहर में
प्रवेश न करे।
वे सब पहले
तुम्हारी तरह मनुष्य
थे। यहाँ की
मलिका ने उन्हें
अपने मंत्र बल
से पशु बना
रखा है।
बद्र
को आश्चर्य हुआ।
उसने पूछा, मलिका
आदमी को जानवर
क्यों बना देती
है?
बूढ़े
ने कहा, मैंने
तुम्हें बताया न कि
मलिका बड़ी विलासप्रिय
है। जब कोई
तरुण सुंदर पुरुष
उसे दिखाई देता
है तो वह
उसे पकड़वा मँगाती
है। मैंने इसीलिए
तुमसे पूछा था
कि तुम्हें किसी
ने देखा तो
नहीं। वह उसका
बड़ा आदर-सत्कार
करती है और
उसके साथ भोग-विलास करती है।
कुछ दिनों में
जब उसका जी
उस आदमी से
भर जाता है
और जब उसके
जाल में कोई
और रूपवान पुरुष
आ जाता है
तो वह इस
पहले आदमी को
बैल, घोड़ा या
कोई और जानवर
बना कर छोड़
देती है। ताकि
उसका भेद किसी
पर प्रकट न
हो। यह सब
बेचारे जानवर किसी समय
उसके प्रेमपात्र रह
चुके हैं। जब
भी कोई दुर्भाग्य
का मारा सुंदर
जवान आदमी इस
नगर में आना
चाहता है तो
वे शोर मचा
कर उसे रोकने
की कोशिश करते
हैं। वे बेचारे
कोई भाषा तो
बोल नहीं पाते
कि अपनी दुर्दशा
का पूरा हाल
कहें। सिर्फ चिल्ला-चिल्ला कर यही
कहना चाहते हैं
कि वापस चले
जाओ, इस मनहूस
शहर के अंदर
न आना वरना
तुम्हारी हालत भी
हमारे जैसी हो
जाएगी। लेकिन आनेवाला उनके
अभिप्राय को समझने
में असमर्थ रहता
है और उनके
शोरगुल को अनसुना
कर नगर में
चला जाता है
और रानी के
जाल में फँस
कर कुछ दिनों
बाद पशु बन
कर उन पशुओं
में जा मिलता
है।
बद्र
यह सुन कर
बहुत घबराया और
कहने लगा, हे
ईश्वर, यह कैसा
अन्याय है। मैं
अभी-अभी एक
जादूगरनी के जादू
से छूटा हूँ
और दूसरी के
देश में आ
फँसा हूँ। बूढ़े
के पूछने पर
उसने विस्तार में
जवाहर द्वारा अपने
पक्षी बनाए जाने
और अज्ञात द्वीप
की रानी द्वारा
फिर से मनुष्य
बनाए जाने की
कहानी कही। बूढ़े
ने कहा, इसमें
संदेह नहीं कि
तुम बड़े खराब
देश में आ
फँसे हो लेकिन
तुम्हारा भाग्य प्रबल था
कि तुम सब
से पहले मुझ
से मिले। अब
तुम इसी दुकान
में रह कर
काम करो। मुझे
यहाँ का हर
एक व्यक्ति जानता
है, तुम्हें यहाँ
रहने में कोई
कष्ट न होगा
किंतु खबरदार किसी
और से मेल-जोल नहीं
बढ़ाना वरना मुसीबत
में फँस सकते
हो।
बादशाह
बद्र ने वृद्ध
को बड़ा धन्यवाद
दिया कि तुमने
मुझे खतरे से
सावधान कर दिया।
वह उसकी दुकान
में बैठा रहता
और दुकान का
काम किया करता।
जो भी व्यक्ति
उस बूढ़े की
दुकान पर आता
वह बद्र के
रूप को देख
कर ठगा-सा
रह जाता। देखनेवालों
को यह भी
आश्चर्य होता कि
यह अभी तक
दुष्ट रानी के
फंदे से किस
तरह बच पाया
है क्योंकि वह
तो किसी रूपवान
मनुष्य को अपने
पाश में फँसा
कर जानवर बनाए
बगैर छोड़ती ही
नहीं है। कई
लोगों ने बुड्ढे
से पूछा कि
क्या यह जवान
आदमी तुम्हारा दास
है। बुड्ढे का
हमेशा एक ही
जवाब होता, भाइयो,
यह मेरा दास
नहीं है, मेरा
भतीजा है। इसके
पिता यानी मेरे
भाई का हाल
ही में देहांत
हो गया है।
वह मरते समय
बिल्कुल निर्धन हो गया
था और इस
जवान का कोई
ठिकाना नहीं था।
मेरा भी कोई
पुत्र नहीं है।
इसलिए मैंने इसे
बुला कर अपने
पास रख लिया
है। सुननेवाले कहते,
यह सुन कर
तो हमें बड़ी
प्रसन्नता हुई कि
तुमने इस पितृहीन
को आश्रय दिया
किंतु हमें इस
बात का बड़ा
भय और खेद
है कि अगर
किसी ने मलिका
से इसके रूप
की प्रशंसा कर
दी तो इस
बेचारे की छुट्टी
समझो। वह इसे
ले जाएगी और
कुछ दिनों तक
इसके साथ भोग-
विलास कर के
इसे भी जानवर
बना कर चरने
के लिए छोड़
देगी।
इस
पर बूढ़ा कहता,
होता तो वही
है जो भगवान
चाहता है किंतु
मुझे आशा है
कि जब मैं
मलिका से निवेदन
करूँगा कि यह
मेरा भतीजा और
दत्तक पुत्र है
तो वह इस
पर दया करेगी
और इसे पशु
न बनाएगी। बद्र
को यह सुन
कर ढाँढ़स होता।
किंतु
बूढ़े की यह
आशा व्यर्थ सिद्ध
हुई। लगभग एक
महीने बाद की
बात है कि
बद्र हमेशा की
तरह बूढ़े की
दुकान पर बैठा
हुआ था। उसी
समय मलिका की
सवारी उधर से
निकली। उसके आगे-पीछे बड़ी
सेना चल रही
थी। बद्र उठ
कर दुकान के
अंदर गया और
उसने वृद्ध से
पूछा कि यह
शानदार सवारी किसकी है।
वृद्ध ने बताया
कि यह सवारी
उसी मलिका की
है जिसके बारे
में मैंने तुमसे
पहले कहा था।
उसने बद्र से
कहा कि तुम
घबराओ नहीं, अपने
साधारण स्थान पर जा
कर बैठो।
बद्र
अपनी जगह जा
बैठा और तमाशा
देखने लगा। फौज
के जितने अफसर
थे सभी उस
बूढ़े को सलाम
करते जाते थे।
सारी फौज की
वर्दी गुलाबी थी।
उनके पीछे ख्वाजासराओं
के दस्ते थे
जो उम्दा कमख्वाब
के जोड़े पहने
हुए थे। दुकान
के सामने से
निकलने पर उनके
प्रमुखों ने भी
वृद्ध को सलाम
किया। उनके पीछे
स्त्रियों का एक
दल आया। वे
कीमती कपड़े और
जड़ाऊ जेवर पहने
हुए थीं ओर
उनके हाथों में
बर्छियाँ चमक रही
थीं। इन सशस्त्र
दासियों के बीच
में एक मुश्की
घोड़े पर, जिसका
साज सुनहरा था
जिसमें कई जगह
हीरे जड़े हुए
थे, अत्यंत भव्य
परिधान पहने हुए
रानी सवार थी।
सभी दासियों ने
भी झुक-झुक
कर वृद्ध को
प्रणाम किया। जब मलिका
की सवारी दुकान
के सामने आई
तो उसकी नजर
बद्र पर पड़ी।
वह उसे देखते
ही उस पर
मर-मिटी और
उसने दुकान के
मालिक बूढ़े को
आवाज दी।
(अगली पोस्ट में जारी……)
स्रोत-इंटरनेट से कापी-पेस्ट
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें