(पिछिली पोस्ट से जारी……)
इसलिए उस ने बड़ी फौज जमा
की। अलादीन ने कहा, इतनी अधिक सेना की क्या जरूरत है। मुझे आज्ञा दें तो मैं
थोड़ी-सी ही सेना ले कर वैरी को खत्म कर दूँ। बादशाह ने अनुमति दे दी और अलादीन ने
युद्ध कौशल से थोड़ी-सी सेना के बल पर ही दुश्मन को हरा दिया। बादशाह इस विजय का
समाचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, उस की शक्ति बहुत बढ़ गई। अलादीन का भी दूर-दूर
तक नाम हुआ। अलादीन इसी प्रकार कई वर्ष तक सम्मानपूर्वक रहा।
जिस जादूगर ने अलादीन को
गढ़ेवाली गुफा में बंद किया था उसे विश्वास था कि अलादीन वहीं मर-खप गया होगा। फिर
भी एक दिन उसे बैठे-बैठे खयाल आया कि देखें तो उस का क्या हाल है।
उस ने अपने दालान में बैठ
कर संदूकचे से रमल की पुस्तकें और यंत्र निकाले और कई घंटों तक विचार करता रहा कि
अलादीन का क्या हाल है। उसे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि बार-बार रमल फेंकने पर भी
यही मालूम हुआ कि अलादीन अत्यंत धनवान हो गया है और उस का विवाह चीन की राजकुमारी
से हो गया है। इस बात को जान कर उस के हृदय में ईर्ष्या की लपटें उठने लगीं। उस का
चेहरा लाल हो गया ओर आँखों से जैसे खून टपकने लगा। वह सोचता रहा कि भाग्य की
विडंबना देखो कि सारी मेहनत मैं ने की और उस का फल भोग रहा है वह आवारा दरजी का
बेटा।
उस ने कई दिनों तक इस बात
पर विचार किया और अंत में इस नतीजे पर पहुँचा कि घर में पड़े-पड़े पछताने से कोई
लाभ नहीं हैं, एक बार फिर चीन की यात्रा करनी चाहिए। किसी तरह अलादीन से वह जादू
का चिराग लेना चाहिए जिस से वह इतना अमीर बना है कि शहजादी को ब्याह सके। उस ने यह
भी सोचा कि अगर संभव हो तो अलादीन को मार भी डालना चाहिए। अजीब बात यह थी कि
अलादीन को जादू का छल्ला देने के बाद वह उस के बारे में भूल ही गया था। अलादीन को
भी उस की याद न रही थी। दोनों चिराग से अभिभूत थे।
जादूगर घोड़े पर बैठ कर
चीन को चल पड़ा। उस ने रातों को सरायों में सोने के अलावा कहीं दम न लिया और कुछ
महीनों में चीन जा कर अलादीन के नगर में, जो राजधानी थी, पहुँच गया। उस ने एक सराय
में कमरा किराए पर लिया और नगर में घूम कर अलादीन के बारे में पता लगाने लगा। एक
दिन बहुत-से लोग अलादीन के विचित्र महल की बातें कर रहे थे। उस ने पूछा, यह अलादीन
कौन है? लोगों ने कहा, तुम विदेशी हो इसीलिए उसे नहीं जानते। वह बड़ा ही अमीर है,
बादशाह का दामाद है और उस का महल शाही महल से कहीं बढ़ कर शानदार है। हम लोग
बताएँगे तो तुम्हें विश्वास नहीं होगा, अपनी आँखों से उस का महल देखोगे तो विश्वास
होगा।
जादूगर ने कहा, मैं
वास्तव में परदेशी हूँ। मैं अफ्रीका का रहनेवाला हूँ। कल ही यहाँ आया हूँ। आप लोग
कृपा करके बताएँ कि अलादीन का विचित्र महल कहाँ पर है तो मैं भी उसे देखूँ। लोगों
ने उसे अलादीन के महल का पता बता दिया। उस जादूगर ने जा कर महल को चारों ओर से भली
प्रकार से देखा। उसे निश्चय हो गगा कि उसी चिराग के बल पर अलादीन ने यह महल बनवाया
है क्योंकि चिराग का जिन्न हर बात कर सकता है। वह सराय में वापस आ कर अपना कमरा
बंद करके फिर रमल की पुस्तकें खोल कर बैठ गया और विचार करने लगा कि इस समय वह
चिराग कहाँ है। उसे मालूम हुआ कि चिराग किसी आदमी के पास नहीं है बल्कि उसी महल के
एक कमरे में रखा हुआ है। साथ ही उसे यह भी मालूम हुआ कि अलादीन इस समय महल में
नहीं है और कई दिनों तक महल में नहीं आएगा। वह यह सब जान कर बड़ा प्रसन्न हुआ
क्योंकि अलादीन की अनुपस्थिति में वह आसानी से धूर्ततापूर्वक चिराग को हथिया सकता
था और चिराग हाथ में आने के बाद उसे अलादीन या किसी और की क्या चिंता थी।
अपनी पुस्तकें आदि बंद
करके वह सराय के मालिक के पास गया और अलादीन के विचित्र महल की बड़ी प्रशंसा करने
के बाद कहने लगा कि महल देख कर तो मैं बड़ा प्रसन्न हुआ, अब चाहता हूँ कि उस के
मालिक को भी देखूँ। सरायवाले ने कहा, यह क्या मुश्किल है। वह हर हफ्ते सवार हो कर
शहर में निकलता है। लेकिन अभी पाँच दिन तक न आएगा क्योंकि शिकार खेलने के लिए दूर
के किसी जंगल में गया है। जादूगर के लिए इतनी सूचना काफी थी। वह कुछ देर तक सोचता
रहा फिर एक ठठेरे की दुकान पर गया जहाँ धातु की वस्तुएँ बनती थीं। उस ने ठठेरे से
कहा कि मुझे ताँबे के बारह सुंदर और बड़े चिराग चाहिए। ठठेरे ने कहा, आज तो नहीं
हो सकता किंतु कल तुम्हें चिराग मिल जाएँगे। जादूगर ने कहा, कोई हर्ज नहीं। कल ही
दे देना। लेकिन यह ध्यान रहे कि उन्हें खूब रगड़ कर देना ताकि वे चमचमाने लगें।
दाम जो भी माँगोगे दे दूँगा। ठठेरे ने चिराग बनाना मंजूर कर लिया।
दूसरे दिन जादूगर ने
ठठेरे से बारह सुंदर चमचमाते हुए नए चिराग लिए और उन्हें एक खूबसूरत टोकरी में रख
कर अलादीन के महल की ओर चला। जब पास पहुँचा तो ऊँची आवाज में हाँक लगाने लगा,
पुराने दीपकों से बदल कर नए चिराग ले जाओ, पुराने दीपकों से बदल कर नए चिराग ले
जाओ। गलियों में खेलनेवाले लड़के वहाँ जमा हो गए और पागल समझ कर हो-हल्ला करने लगे
और मजाक में उसे अजीब नामों से पुकारने लगे। अधिक अवस्था के लोग भी उस की विचित्र
हाँक को सुन कर हँसने लगे और कहने लगे कि यह आदमी पागल हो गया है जो उल्टा व्यापार
कर रहा है।
जादूगर ने न तो बड़ी उम्र
के लोगों के हँसने की परवा की न लड़कों की भद्दी बातों का बुरा माना। वह बराबर यही
आवाज लगाता रहा। पुराने दीपकों से बदल कर नए चिराग ले जाओ। उस समय बदर बदौर अपनी
सुसज्जित बारहदरी में बैठी थी। उस ने जादूगर की आवाज सुनी लेकिन समझ न सकी कि वह
क्या कह रहा है क्योंकि लड़के बहुत शोर कर रहे थे। इसलिए उस ने एक दासी से, जो उस
के पिता के महल से उस के साथ आई थी, कहा कि बाहर जा कर देखो कि कैसा शोर हो रहा
है। वह दासी थोड़ी देर बाद हँसती हुई वापस आई तो शहजादी ने कहा, क्यों दाँत निपोर
रही है? बताती क्यों नहीं कि क्या बात है? दासी ने अपनी हँसी पर काबू पा कर कहा,
मालकिन, एक अजीब पागल आदमी है। नए दीये लिए है। उन्हें बेचता नहीं बल्कि कहता है
कि पुराने दीये दे कर नए ले जाओ।
शहजादी हँसने लगी। दासी
ने कहा, एक मैला-कुचैला दीया मैं ने अंदर रखा देखा है। ऐसे शानदार महल में वह
अच्छा नहीं लगता। आप कहें तो उसे बदल लाऊँ। यह वही जादू का चिराग था। उसे मैला तो
होना ही था क्योंकि जरा-सी रगड़ से जिन्न आ जाता था। अलादीन को चाहिए था कि हमेशा
अपने ही पास वह चिराग रखता किंतु विनाशकाले विपरीत बुद्धिः। फिर इतने दिनों के
ऐश-आराम के बाद वह चिराग की रक्षा की ओर से बेपरवाह भी हो गया। उस ने बादशाह और
बदर बदौर को उस के बारे में कुछ न बताया था क्योंकि जादू की बात से शायद उसे
धोखेबाज समझा जाता। उस की माँ इस समय तक मर चुकी थी और इस समय अलादीन और जादूगर के
अलावा कोई मनुष्य उस चिराग का रहस्य नहीं जानता था।
शहजादी को दासी की बात
पसंद आई। उस ने एक दास से कहा, यह दासी जो चिराग बता रही है उसे ले जाओ ओर इस के
बदले में नया चिराग ले आओ। वह दास जो चिराग को ले कर जादूगर के पास गया और बोला,
यह पुराना दीया लो और नया दीया दे दो। जादूगर इसे देखते ही समझ गया कि यही उस का
वांछित चिराग है। उस ने दास के हाथ से चिराग लिया और उस के आगे टोकरी दी कि इनमें
से जो दीप कर चाहो छाँट कर ले जाओ। दास ने उस में से सब से अच्छा चिराग ले कर
मालकिन को दे दिया। यह होने के बाद लड़कों ने फिर शोर करना शुरू कर दिया।
जादूगर आगे बढ़ा लेकिन अब
उस ने आवाज लगाना बंद कर दिया था। अब लड़कों को भी उसे छेड़ने में मजा नहीं आ रहा
था इसलिए वे भी इधर-उधर बिखर कर अपने खेलों में लग गए। जादूगर ने जब दोनों महलों
के बीच का मैदान पार कर लिया और तंग और सुनसान गलियों में घुसा तो तेज-तेज चलने
लगा। एक बिल्कुल निर्जन स्थान में उस ने टोकरी और सारे नए चिराग कूड़े में फेंक
दिए और जादू के चिराग को निकाला। वह सराय में भी न गया क्योंकि वह रमल की सामग्री
अपने साथ ले आया था और जादू का चिराग पाने के बाद उसे सराय में रखे सामान और घोड़े
की क्या चिंता होनी थी। आधी रात तक वह उसी निर्जन स्थान में रहा फिर उस ने चिराग
को रगड़ा। जिन्न ने प्रकट हो कर आदेश माँगा तो जादूगर ने कहा कि मुझे और अलादीन के
पूरे के पूरे महल को उठा कर अफ्रीका में मेरे निवास स्थान पर पहुँचा दो। जिन्न ने
तुरंत उस की आज्ञा का पालन किया और जादूगर के साथ अलादीन के महल को उस के अंदर के
सभी लोगों के साथ अफ्रीका पहुँचा दिया।
बादशाह के बारे में पहले
ही बताया जा चुका है कि वह रोजाना अपने महल की छत पर चढ़ कर अलादीन के महल को देखा
करता था। दूसरे दिन वह हमेशा की तरह उस महल को देखने गया तो उसे साफ मैदान ही
दिखाई दिया। उस ने अपनी आँखों को मला। उसे आश्चर्य हुआ कि सूरज साफ चमक रहा है, न
बादल हैं न कुहरा, फिर भी अलादीन का महल क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। उस ने चारों
ओर आँखें फाड़-फाड़ कर देखा किंतु उसे महल नहीं दिखाई दिया। बादशाह को ऐसा मानसिक
उद्वेग हुआ कि वह उस मैदान को जहाँ पर कल शाम तक वह महल खड़ा था देखता ही रहा,
देखता ही रहा।
वह सोच रहा था कि हो क्या
गया और कैसे हो गया। इतना बड़ा और रत्नों और सोने-चाँदी से जगमगाता हुआ महल ऐसे
नजर से गायब हो गया जैसे पहले कभी था ही नहीं। उस का जरा-सा भी निशान नहीं दिखाई
देता। अगर वह जमीन में धँसा होता तो उसके कंगूरे तो भूमि से निकले दिखाई देते, और
यदि किसी कारण गिर पड़ा होता तो उस के मलबे का ढेर दिखाई देता। किंतु यह विश्वास
होने पर भी कि महल नहीं है उस ने किसी दास या कर्मचारी से कुछ न कहा क्योंकि बात
इतनी अविश्वसनीय थी कि उसे अपना दृष्टि-भ्रम ही समझता था। बार-बार उधर देखने के
बाद वह निराश हो कर विश्रांत कक्ष में चला गया।
वहाँ जा कर उस ने मंत्री
को बुलाया। वह आया और कहने लगा, पृथ्वीनाथ, आज आप ने इस समय यहाँ क्यों बुलाया है?
कोई विशेष बात है क्या? बादशाह ने कहा, इस से अद्भुत बात क्या होगी जो आज हुई है?
तुमने मैदान की ओर भी देखा है? मंत्री बोला, आप ने आज बड़े सरदारों की विशेष सभा
बुलाई थी, मैं तो सुबह से उसी के प्रबंध में लगा हूँ। मैं ने कुछ नहीं देखा।
बादशाह ने कहा, तुम अभी महल की छत पर चढ़ो और देख कर बताओ कि अलादीन का महल दिखाई
देता है या नहीं।
मंत्री ने राजाज्ञा के
अनुसार ऊपर जा कर देखा तो उसे भी चटियल मैदान के अलावा कुछ न दिखाई दिया। उस ने भी
चारों ओर आँखें फाड़-फाड़ कर देखा और जब उसे विश्वास हो गया कि महल अदृश्य है तो
नीचे उतर कर बादशाह के समीप आया। बादशाह ने पूछा कि तुम्हें अलादीन का महल दिखाई
दिया या नहीं। मंत्री ने हाथ जोड़ कर कहा, स्वामी, इस सेवक ने पहले ही निवेदन किया
था कि यह सब जादू के सिवा कुछ नहीं। आप ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया।
बादशाह ने क्रोध में भर
कर कहा, यह समय तुम्हारी बात को सच या झूठ साबित करने का नहीं है। मुझे बताओ कि वह
बदमाश और मक्कार अलादीन कहाँ है। मैं उसे मृत्युदंड दूँगा। मंत्री ने कहा, सरकार,
वह तीन-चार दिन पहले आप से छुट्टी ले कर एक सप्ताह के लिए शिकार खेलने को गया है।
मैं अभी पता लगाता हूँ कि इस समय वह कहाँ है। बादशाह ने गरज कर कहा, तुम चुने हुए
तीस बहादुर फौजी अफसरों को भेजो जो चारों तरफ नाकेबंदी भी कर लें। ऐसा न हो कि वह
बदमाश कहीं छुप कर निकल जाए।
शाही आदेश पा कर यह तीस
अफसर उस तरफ चले जिधर अलादीन शिकार खेलने गया था और सिपाहियों को भी इधर-उधर चौकसी
के लिए भेज दिया गया। अलादीन शिकार खेल कर लौट रहा था। शहर से दस बारह मील निकल कर
इन अफसरों ने उसे देखा और उसे सलाम करके कहा, बादशाह की आज्ञा है कि हम आप को उन
के सामने पहुँचाएँ। अलादीन ने देखा कि अफसरों ने उस के चारों ओर से घेरा डाल लिया
है। अलादीन यह तो समझ गया कि यह रंग-ढंग गिरफ्तारी के हैं। वह उन के साथ चलने लगा।
जब नगर लगभग एक मील रह गया तो अफसर उस के सामने जंजीरें ले कर आए और कहा कि इन्हें
पहन लीजिए। उस ने कहा, मेरा अपराध क्या है जिसके लिए मेरी गिरफ्तारी हो रही है?
उन्होंने कहा, यह हम नहीं जानते। हमें तो सिर्फ यह कहा गया है कि आप को जंजीरों
में जकड़ कर बादशाह के सामने पेश करें।
अलादीन कहता भी क्या।
फौजियों ने उस की गर्दन और हाथ-पाँव को ऐसा जंजीरों से जकड़ा कि वह हिल-डुल भी
नहीं सकता था। कुछ देर बाद उसे घोड़े से भी उतार दिया गया और एक सवार ने उस की
जंजीर थाम ली। शहर में लोगों ने यह देखा तो उन्हें विश्वास हो गया कि अब इसका
प्राणांत होनेवाला है क्योंकि मृत्युदंड के भागी ही को इस तरह से ले जाया जाता है।
लोग इस से भड़क गए। अलादीन सभी को प्यारा था और सभी उस के कृतज्ञ थे। चुनांचे जिसे
भी जो अस्त्र-शस्त्र मिला वह उसे ले कर दौड़ा आया।
फौजी सवारों ने देखा कि
वे लोग अलादीन को छुड़ाने के लिए आ रहे हैं तो उन्होंने उसे एक घोड़े पर लादा और
कौशलपूर्वक जनता से बचा कर उसे किले में ले आए और द्वारपाल ने खतरा देख कर किले का
द्वार बंद कर लिया। अलादीन को उसी बँधी हुई हालत में बादशाह के सामने पेश किया
गया। बादशाह गुस्से में अंधा हो रहा था। उस ने पहले ही जल्लाद को बुला रखा था।
अलादीन को देखते ही उस ने चीख कर कहा, इस से बहस करने की कोई जरूरत नहीं है। अभी
इसका सिर उड़ा दिया जाए।
जल्लाद ने अलादीन की
जंजीर खोल कर उसे बिठाया और उस की आँखों पर पट्टी बाँधी। फिर उस ने हवा में दो-तीन
बार तलवार लहराई। जल्लाद लोग यह इसलिए करते हैं कि असली हाथ सधा हुआ पड़े। इतने
में मंत्री ने हाथ जोड़ कर कहा, सरकार, अलादीन को मारने में जल्दी न कीजिए। बड़ी
गड़बड़ी हो जाएगी। इसका वध होते ही लोग विद्रोह कर देंगे और आप की जान पर बन आयगी।
बादशाह ने गुर्रा कर कहा, किसकी हिम्मत है विद्रोह करने की? बकवास मत करो। मंत्री
बोला, उधर किले की दीवार पर देखिए। बाहर तो लाखों सशस्त्र लोग जमा हैं। बादशाह ने
देखा कि सैकड़ों आदमी किले की दीवार पर चढ़ गए हैं और अंदर कूदनेवाले ही हैं। अब
बादशाह सचमुच ही डर गया। उस ने जल्लाद से कहा, तलवार दूर फेंक दो। राजाज्ञा के
अनुसार जल्लाद ने तलवार दूर फेंक दी।
बादशाह ने एक बड़े सरदार
को आज्ञा दी कि ऊँचे स्वर में घोषणा करे कि बादशाह ने अलादीन का अपराध क्षमा करके
उसे छोड़ दिया है। सरदार की घोषणा के बाद नियमानुसार मुनादी करनेवालों ने सारे शहर
में इस क्षमादान की घोषणा की। सरदार की घोषणा पर जो नागरिक विद्रोह के लिए शस्त्र
धारण करके किले की दीवारों पर चढ़ गए थे वे भी बाहर कूद गए। सारे नगर में यह
समाचार तुरंत फैल गया और सभी को इस से बड़ी प्रसन्नता हुई।
इधर अलादीन ने बादशाह से
कहा, सरकार, आप ने प्राणदान दे कर मुझ पर बड़ी कृपा की किंतु अब कृपापूर्वक यह भी
बता दिया जाए कि मैं ने कौन-सा अपराध किया था जिसकी यह सजा मिलनेवाली थी। बादशाह
ने पहले तो केवल घृणापूर्वक उसे देखा किंतु जब उस ने दुबारा यही प्रश्न किया तो उस
ने कहा, मक्कार, तू मुझ से ऐसे अपराध पूछता है जैसे कि जानता ही नहीं। मेरे साथ
महल की छत पर आ। मैं तुझे तेरा अपराध बताऊँगा नहीं बल्कि दिखाऊँगा। यह कह कर
बादशाह उसे महल की छत पर ले गया और उस से पूछने लगा, बताओ, तुम्हारा बनवाया महल
कहाँ है?
अलादीन भी आश्चर्य से
आँखें फाड़ कर देखने लगा लेकिन उसे महल का निशान भी देखने को न मिला। वह ऐसा
हक्का-बक्का हुआ कि जड़वत बहुत देर तक खड़ा रहा। बादशाह ने फिर पूछा, अब चुप क्यों
हो? बताओ महल का क्या हुआ। अलादीन ने कहा, महल वाकई गायब है लेकिन इसमें मेरा कोई
दोष नहीं है, मेरा तो इतना बड़ा महल चला गया। बादशाह ने कहा, तुम्हारा महल जाए
भाड़ में। मुझे तो यह चिंता है कि मेरी बेटी कहाँ गई। मैं उस के दुख में पागल हो
गया हूँ। तुम अगर खैरियत चाहो तो मेरी बेटी का पता लगाओ वरना अब जब मैं तुम्हें
दंड दूँगा तो ऐसी व्यवस्था करूँगा कि तुम्हारे समर्थक भी कुछ न कर सकें। अलादीन ने
कहा, इस की जरूरत नहीं। मुझे भी अपनी पत्नी के गुम हो जाने का दुख कम नहीं है। आप
मुझे चालीस दिन का समय दे दीजिए। इस काल में यदि मैं शहजादी का पता न लगा सका तो
स्वयं ही अपना सिर काट कर आप के पाँवों पर डाल दूँगा। बादशाह ने यह स्वीकार किया।
बादशाह ने कहा, चालीस
दिनों तक तुम्हारी छुट्टी है, तुम जहाँ चाहो खोज कर सकते हो। लेकिन यह न समझना कि
तुम मुझ से बच कर निकल सकोगे। तुम संसार में चाहे जहाँ भी रहोगे मैं तुम्हें
पकड़वा मँगाऊँगा। अलादीन यह सुन कर महल से बाहर निकला। वह अपने दुर्भाग्य पर रोता
हुआ जा रहा था। सरदार और अमीर-उमरा भी उस के दुख से दुखी हो कर उस से मुँह छुपाने
लगे, वे उस की तसल्ली के लिए कहते भी क्या। अलादीन ने चालीस दिन की अवधि तो ले ली
थी किंतु उस की समझ में खुद भी नहीं आ रहा था कि महल और बदर बदौर को कहाँ ढूँढ़े।
तीन दिनों तक वह शहर में भटकता रहा। हर जान पहचानवाले से पूछता, भाई, तुम्हें
मालूम हो तो बताओ कि मेरा खोया हुआ महल कहाँ मिल सकता है। लोग उस पर तरस खाते और
आपस में कहते, बेचारा पागल हो गया है। कितना भला आदमी है किंतु दुर्भाग्य की मार
से किसे छुटकारा मिला है। वे लोग दया करके उसे कुछ खाने-पीने को दे देते। इस से
अधिक कर भी क्या सकते थे।
तीन दिन बाद वह बिल्कुल
निराश हो गया। कहाँ तो कल तक यह हाल था कि लोगों में अशर्फियाँ लुटवाता था और अपनी
बुद्धि और पराक्रम से राजदरबार में बड़ा सम्मान प्राप्त किए था कहाँ यह हाल कि लोग
उसे पागल समझ कर तरस खाते और उसे भीख के तौर पर कुछ टुकड़े दे देते। अंत में वह
अर्धविक्षिप्त अवस्था में शहर से बाहर निकल कर जंगल में चला गया। बड़ी दूर तक जाने
के बाद उसे एक नदी मिली। उस ने सोचा कि मेरी पत्नी तो अब मुझ से मिलने से रही, अब
जीवन व्यर्थ है। और जीवन भी कितने दिन का है। अवधि के अंत में बादशाह उसे मरवा ही
देगा। उस ने सोचा कि नदी में डूब मरूँ।
फिर उसे खयाल आया कि
मुसलमान के लिए आत्महत्या वर्जित है। उस ने सोचा कि मैं नदी में स्नान करके फिर
नमाज पढ़ूँगा और भगवान से निरंतर अपने उद्देश्य की सफलता की प्रार्थना करूँगा। यह
सोच कर वह नदी में उतरा लेकिन उस का पाँव फिसल गया और वह तैरना नहीं जानता था
इसलिए डूबने लगा। तभी उस का हाथ एक छोटी-सी चट्टान पर लगा और उस ने उसे कस कर पकड़
लिया।
यह डूबना भी उस के लिए
सौभाग्यपूर्ण हुआ। वह छल्ले को भूल गया था किंतु छल्ले के पत्थर पर रगड़ खाने से
छल्ले का जिन्न आ गया और बोला, स्वामी, क्या आज्ञा है? अलादीन ने कहा, पहले मुझे
डूबने से बचाओ, फिर तुम से कुछ बात करूँगा। जिन्न ने उसे उठा कर किनारे पर बिठाया।
कुछ देर बाद अलादीन सावधान हुआ तो उस ने पूछा, तुम क्या मुझे बता सकते हो कि मेरा
महल कहाँ गायब हो गया और मेरी पत्नी यानी शहजादी कैसी है? जिन्न ने कहा, यह मैं
बता सकता हूँ। जिस जादूगर ने आप को उस गढ़े में बंद किया था जहाँ से पहली बार मैं
ने आप को निकाला था वही जादूगर आप की पत्नी के साथ आप के महल को उड़ा ले गया है।
वह अफ्रीका का रहनेवाला है और वहीं पर अपने निवास नगर में महल को ले गया है। उस के
हाथ जादू का चिराग लग गया था।
अलादीन ने कहा, क्या तुम
शहजादी के समेत महल को वापस ला कर उस की पुरानी जगह पर रख सकते हो? जिन्न ने कहा,
यह मेरा काम नहीं है, यह चिराग के जिन्नों का काम है। हम लोग एक-दूसरे के कामों
में दखल नहीं दे सकते। अलादीन ने कुछ सोच कर कहा, अच्छा, क्या तुम मुझे उस जगह
पहुँचा सकते हो जहाँ वह महल है? जिन्न बोला, यह जरूर कर सकता हूँ। चुनांचे अलादीन
ने जिन्न से यही करने को कहा और जिन्न ने कुछ क्षणों ही में अफ्रीका के उस नगर में
उसे पहुँचा दिया जहाँ जादूगर रहता था और जहाँ उस ने चीन से महल को ला कर रखा था।
अलादीन को उस के महल के सामने उतार कर जिन्न गायब हो गया।
यद्यपि उस समय रात काफी
बीत गई थी और अँधेरा हो गया था तथापि अलादीन ने अपना महल पहचान लिया। वह एक पेड़
के नीचे जा बैठा और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देने लगा जिसने तीन-चार दिन की
परेशानी के बाद उसे पत्नी के निकट पहुँचा दिया था। उसे ऐसा संतोष मिला कि वह पेड़
के नीचे भूमि पर ही सो गया। सुबह पक्षियों के कलरव से उस की आँख खुली तो वह अपने
महल के और समीप जा कर बैठ गया और महल को ध्यान से देखने लगा।
कुछ देर बाद अलादीन उस
खिड़की के सामने टहलने लगा जो बदर बदौर के रहने के कमरे में थी। उसे आशा थी कि
शहजादी जाग कर उसे देखेगी। शहजादी रात भर जादूगर की काम चेष्टाओं से बचने की
परेशानी में लगी रही थी इसलिए वह बहुत देर तक सोती रही। उधर अलादीन यह सोचने लगा
कि आखिर जादूगर इस महल को यहाँ लाया कैसे। उस ने यही निष्कर्ष निकाला कि मैं चिराग
को महल में रख कर भूल गया था, वहीं से किसी तरह जादूगर ने उसे हथिया लिया होगा
क्योंकि चिराग के जिन्नों के अलावा महल को और कोई ला ही नहीं सकता। वह सोचता रहा
कि महल में इतने पहरे के बावजूद जादूगर को चिराग मिला कैसे लेकिन वह बिल्कुल न समझ
पाया कि यह संभव कैसे हुआ। उस ने सोचा कि शहजादी से भेंट होने पर ही यह रहस्य
खुलेगा किंतु यह भी समस्या थी कि उस से भेंट कैसे हो।
जादूगर ने न जाने किस
कारण महल में निवास नहीं किया था। वह निकट ही अपने बने हुए घर में रहता था। दिन
में वह आम तौर पर बाहर अपने जादूगरी के कामों में लगा रहता था, केवल शाम से आधी
रात तक वह शहजादी के आगे प्रेम निवेदन करके उसे परेशान किया करता था। इस समय भी वह
महल में नहीं था। जब शहजादी की आँख खुली तो उस के कमरे में उसे सजाने-सँवारने के
लिए दासियों की भागदौड़ होने लगी। एक दासी ने खिड़की से देखा कि अलादीन महल के
बाहर टहल रहा है। उस ने बदर बदौर से जा कर कहा, तो उस ने अपनी एक विश्वस्त दासी से
कहा कि बाहर जा कर देखो, वह आदमी अलादीन हो तो उसे चोर दरवाजे से यहाँ ले आओ। वह
दासी बाहर जा कर होशियारी से अलादीन को ले आई।
इतने दिनों बाद पति-पत्नी
मिले तो पहले तो एक-दूसरे से लिपट कर खूब रोए। फिर उन्होंने अपने ऊपर पड़नेवाली
विपदाओं का एक-दूसरे से वर्णन किया। फिर अलादीन ने शहजादी से कहा, एक बात अच्छी
तरह याद करके बताओ। महल के अंदर के कमरे में एक पुराना चिराग रखा रहता था। वह अभी
तक है या नहीं। उस की पत्नी ने कहा, हम लोगों पर जो कुछ मुसीबत पड़ी वह उसी चिराग
के संबंध में मेरे द्वारा की हुई मूर्खता के कारण ही पड़ी। यह कह कर उस ने जादूगर
द्वारा नए दीपकों के बदले पुराने दीपकों को लेने के छल द्वारा उक्त चिराग के
हथियाने का सारा हाल कहा। अलादीन ने कहा, तुम बेकार ही अपने को दोषी समझ रही हो।
गलती तो मेरी ही थी कि मैं ऐसी चीज की तरफ से लापरवाह हो गया। मैं ने तुम्हें चिराग
के बारे में बताया भी कुछ नहीं था इसलिए अगर तुमने उसे पुराना और बेकार चिराग समझा
तो तुम्हें कैसे दोष दिया जाए। शहजादी ने कहा, मैं तो अपनी मूर्खता पर अपने को
बार-बार धिक्कारती हूँ। जब अचानक मैं महल समेत इस नई जगह में आ गई तो पहले तो कुछ
समझ ही नहीं पाई कि क्या हुआ। फिर उसी दिन जादूगर मेरे पास आया और कहने लगा कि तुम
अब अफ्रीका में हो। अपने पति और पिता से मिलने की आशा छोड़ दो। मैं ने पूछा कि मैं
यहाँ कैसे आ गई। उस ने हँसते हुए और अपनी चालाकी की शान झाड़ते हुए बताया कि जिस
चिराग को तुमने पुराना समझ कर मुझे नए चिराग के बदले में दे दिया था यह सब उसी का
चमत्कार है।
अलादीन ने कहा, खैर, यह
तो हुआ। अब तुम पहले यह बताओ कि वह चिराग इस समय कहाँ है। और यह भी बताओ कि जादूगर
ने अभी तक तुम्हें भ्रष्ट तो नहीं किया है? बदर बदौर बोली, चिराग को वह दुष्ट
हमेशा अपने वस्त्रों के अंदर अपने सीने से सटाए रखता है। तुम्हारी दूसरी बात का
जवाब यह है कि अभी तक तो भगवान की दया से मेरी पवित्रता बची हुई है, आगे की बात
नहीं कह सकती। वह तो रात होने पर रोजाना मेरे पास आता है और तरह-तरह से मुझे
फुसलाने का प्रयत्न करता है किंतु मैं उस की तरफ देखती भी नहीं। उस ने बलात्कार
शायद इसलिए नहीं किया कि उसे आशा है कि कुछ दिनों में मैं पिता और पति से अलग से
अलग होने का दुख भूल जाऊँगी और प्रेमपूर्वक उसकी अंकशायिनी बनूँगी। मैं ने तो तय
कर लिया है कि खुद उस से नहीं बोलूँगी और उस ने बलात्कार किया तो आत्महत्या कर लूँगी।
अलादीन ने कहा, वह मेरे
प्राणों का शुरू से ग्राहक रहा है और अब भी उसे अवसर मिलेगा तो मारने की चेष्टा
करेगा। इस के अतिरिक्त वह तुम से भी पशुवत यौन व्यवहार करना चाहता है, बाद में
तुम्हें मार डालेगा। मुझे सुन कर बड़ी प्रसन्नता हुई कि वह तुम्हें भ्रष्ट नहीं कर
सका। इस समय बाहर जाता हूँ, दोपहर तक फिर वापस आऊँगा। मैं उसी चोर दरवाजे से
आऊँगा। मैं दूसरे कपड़े पहने हुए आऊँगा। इसलिए तुम वहाँ ऐसी होशियार और विश्वस्त
दासी को रखना जो मेरे चेहरे को पहचानती हो। तुम मुझे कुछ धन भी दो क्योंकि मुझे हम
दोनों की मुक्ति का उपाय करना है और आज का काम भी चलाना है।
बदर बदौर ने उसे
अशर्फियों की एक थैली दी क्योंकि अलादीन तो फकीर बन कर चीन के राजमहल से निकला था
हालाँकि कपड़े हमेशा जैसे पहने था। शहजादी की वही विश्वस्त दासी अलादीन को चोर
दरवाजे से हो कर महल के बाहर कर आई। अलादीन आगे बढ़ने लगा। एक सुनसान रास्ते पर
उसे एक गरीब किसान आता मिला। उस ने किसान को रोक कर कहा, मुझे एक खास वजह से
तुम्हारे कपड़ों की जरूरत है। तुम मुझे अपने कपड़े दो और उस के बदले में मेरे
कपड़े पहन लो। इस के लिए मैं तुम्हें कुछ धन भी दूँगा। किसान को क्या आपत्ति थी,
उसे फटे-पुराने कपड़ों के बदले नए कपड़े मिल रहे थे। वह राजी हो गया। अलादीन ने उस
से कपड़े बदल कर उसे एक अशर्फी दी और कहा कि कोई पूछे तो कि किसने तुम्हें कपड़े
दिए है तो बताना मत।
फिर वह एक पंसारी के यहाँ
गया और उस ने एक दुर्लभ वस्तु माँगी। पंसारी ने कहा, मेरे पास वह है तो लेकिन तुम
उसे खरीद न सकोगे, वह बहुत ही कीमती है। किंतु अलादीन ने उसे एक अशर्फी दी तो वह
फौरन वह चीज, जो वास्तव में महा भयंकर विष था, दे दी। फिर अलादीन ने एक नानबाई की
दुकान में जा कर भोजन किया और चोर दरवाजे से फिर महल के अंदर प्रवेश किया। यह सब
होशियारी उस ने इसलिए की कि वह अपनी उपस्थिति का तनिक भी संदेह नहीं देना चाहता
था।
अब उस ने अपनी पत्नी से
कहा, यहाँ से छूटने के लिए तुम्हें नाटक करना होगा। इसे अच्छी तरह समझ लो क्योंकि
इस के अलावा छुटकारे की और कोई सूरत नहीं है। तुम अपना शोकवेश त्याग दो और रात में
जादूगर के आने तक अपना पूरा श्रृंगार करके बैठ जाओ। जब वह आए तो तुम उस का
मुस्कुरा कर स्वागत करना। उस के पूछने पर उस से कहना कि मैं ने सोचा कि कब तक पिता
और पति से बिछड़ने का शोक करती रहूँगी। अब तो मैं ने तुम्हीं को पति की जगह मान
लिया है और चाहती हूँ कि तुम्हारे ही साथ आनंदपूर्वक समय बिताऊँ और तुम्हारे साथ
बैठ कर शराब पियूँ।
शहजादी इस पर चौंकी तो
अलादीन ने उसे रोक कर कहा, तुम उस से पुरानी शराब मँगाना जिसे लेने के लिए वह
स्वयं ही बाहर जाएगा। इस बीच तुम एक प्याले में शराब भर कर उस में इस पुड़िया की
दवा घोल कर रख देना। इसे अन्य प्यालों से अलग रखना। मद्यपान आरंभ होने पर एक दासी
तुम्हारे इशारे पर ही प्याला तुम्हारे हाथ में देगी। तुम कहना कि हमारे यहाँ की
रस्म है कि प्रेमीजन एक-दूसरे के हाथ का प्याला बदल कर पीते हैं। इस प्रकार तुम यह
दवा मिला प्याला उसे दे देना और वह खुशी के मारे इसे पूरा पी जाएगा। इसे पीते ही
वह बेहोश हो जाएगा। मैं इस बीच चोर दरवाजे से निकल कर बाहर मैदान में एक पेड़ के
नीचे बैठूँगा। जब जादूगर बेहोश हो जाए तो दासी को भेज कर मुझे बाहर से बुला लेना।
इतना काम कर सकोगी?
शहजादी ने यह स्वीकार
किया। अलादीन उस समय एक अन्य कक्ष में चला गया और दिन ढलते ही चोर दरवाजे से निकल
कर एक पेड़ के नीचे जा बैठा। इधर शहजादी ने होशियारी के साथ अपनी साज-सज्जा करवानी
शुरू की। अफ्रीका आने के बाद तो उस ने कपड़े भी नहीं बदले थे। उस ने गले में
बहुमूल्य मोतियों की माला पहनी और हाथों में रत्नजटित कंगन। उस ने नए वस्त्र पहने
जिनमें बढ़िया इत्र लगाया गया था। कमर में उस ने पटका बाँधा और दासियों से कहा कि
मैं ने अभी तक जादूगर को अच्छी तरह देखा भी नहीं है, वह आए तो इशारा कर देना कि
वही है ताकि उसे मेरे व्यवहार से यह न मालूम हो कि मैं ने उसे नहीं देखा है।
जादूगर के आने पर दासी ने
इशारा दे दिया कि चिराग बदलनेवाला छली आ गया। शहजादी मुस्कुराती हुई उस के स्वागत
के लिए उठी और उस का हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठा लिया। यद्यपि वह सम्मानार्थ
दूर ही बैठना चाहता था क्योंकि बहरहाल वह राजकुमारी थी। जादूगर इस बात से खुश तो
हुआ लेकिन समझ न पाया कि शहजादी के व्यवहार में यह परिवर्तन कैसे हो गया। इसलिए
चुपचाप बैठा रहा।
शहजादी ने मोहक मुस्कान
बिखेरते हुए कहा, तुम यह सोच रहे हो न कि आज इस ने अपनी सूरत कैसे बदल डाली। बात
यह है कि अभी तक मैं अपने पिता से अलग होने और अपने पति के बिछोह में घुली जाती
थी। आज मुझे यह खयाल आया कि मेरा पति बेचारा तो कभी का स्वर्ग सिधार गया होगा,
मेरे पिता ने मेरे गायब हो जाने पर क्रोध में आ कर उसे मरवा डाला होगा। अब पति तो
जिंदा ही नहीं रहा और पिता से मिलने की आशा न है न इच्छा क्योंकि वह मेरे पति का
हत्यारा है। मैं ने सोचा है मैं उनकी याद में कब तक घुल-घुल कर जियूँ। इसीलिए मैं
ने पति की जगह तुम्हें ही मान लिया है। आज मैं तुम्हारे साथ भोजन करूँगी। किंतु
अभी भोजन का समय नहीं हुआ है, तब तक हम लोग कुछ पिएँ-पिलाएँ। मैं ने बहुत दिनों से
अच्छी शराब नहीं पी है। तुम्हारे शहर में अच्छी शराब मिलती है?
जादूगर यह सुन कर फूला न
समाया और बोला, आप के लायक तो शहर में शराब नहीं मिलेगी लेकिन मैं ने अपने तहखाने
में बड़ी पुरानी शराबें रखी हैं। मैं उन्हीं में से ला रहा हूँ। शहजादी ने कहा, तुम
क्यों जा रहे हो? किसी आदमी को भेज कर क्यों नहीं मँगा लेते? जादूगर ने कहा, मुझे
खुद ही जाना पड़ेगा। न कोई आदमी तहखाने तक जा पाएगा न उस का ताला ही खोल सकेगा।
शहजादी ने कहा, अच्छा जाओ लेकिन जल्दी आना। मुझे तुम्हारे बगैर अच्छा नहीं लगता।
जादूगर के जाने के बाद शहजादी ने एक प्याले के शराब में दवा घोली और एक दासी के
हवाले कर दी।
कुछ ही देर में जादूगर
उत्तम मदिरा ले कर आ पहुँचा और दोनों मद्यपान करने लगे। शहजादी शराब के साथ
स्वादिष्ट गजक अपने हाथ से उठा-उठा कर जादूगर के आगे रखती। उस ने जादूगर से कहा,
अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें गाना भी सुना सकती हूँ लेकिन यहाँ मेरा साथ देने के
लिए अच्छे वादक नहीं हैं। इसलिए हम लोग बातें ही करेंगे। जादूगर ऐसे प्रिय वचन सुन
कर खुशी से पागल हो गया। शहजादी ने एक जाम भर कर जादूगर के नाम पर पिया। इस के बाद
उस ने शराब की बहुत तारीफ की और कहा, तुम ने इस शराब की जितनी प्रशंसा की थी यह उस
से भी अधिक अच्छी है। फिर उस ने जादूगर को एक प्याला अपने हाथ से भर कर दिया। उस
ने उसे पी कर कहा, यह शराब मेरी ही है किंतु इस ने पहले कभी मुझे इतना आनंद नहीं
दिया जितना इस समय दे रही है। इसी प्रकार वे धीरे-धीरे मद्यपान करते रहे और मधुर
वार्तालाप करते रहे।
फिर शहजादी ने दासी को
संकेत किया और उस ने अफ्रीकी की नजर बचा कर पहले से तैयार किया हुआ प्याला शहजादी
को दे दिया। उस ने दूसरा मामूली शराब का प्याला भर कर जादूगर को दिया। शहजादी
बोली, हमारे चीन की एक यह भी रस्म है कि दो प्रेमीजन मद्यपान करते हैं तो एक-दूसरे
के हाथ से ले कर प्याला पीते हैं। यह कह कर अपना प्याला जिस में दवा के नाम पर विष
मिला हुआ था उस ने जादूगर को दिया और बड़े नाज-नखरे के साथ उस के हाथ का मामूली
शराब का प्याला अपने हाथ में ले लिया। जादूगर पर उस के हाव-भाव से जो नशा चढ़ा वह
शराब से भी अधिक था। उस ने कहा, हे जगत मोहनी, तुम्हारा चीन देश हर तरह से सभ्यता
और संस्कृति, विद्या, सौंदर्य आदि में हमारे अफ्रीका से बढ़ा-चढ़ा हे। यह बड़ी ही
मनमोहक रीति तुमने मुझे सिखाई। मैं आगे से हमेशा यहाँ के लोगों में इसका निर्वाह
और प्रसार करूँगा।
शहजादी ने तो देखने भर के
लिए प्याला मुँह से लगाया किंतु मदमत्त जादूगर एक ही बार में गटगट करके जहरीली
शराब का पूरा प्याला पी गया। प्याला नीचे रखते ही वह पीठ के बल गिर पड़ा। जब
शहजादी ने देखा कि वह हिलडुल तक नहीं रहा है तो उस ने अपनी विश्वस्त दासी से धीरे
से कहा कि अब चोर दरवाजे से अलादीन को ले आए। अलादीन अंदर आया तो उस ने देखा कि
वही दुष्ट जादूगर जो पहले उस का चचा बन कर उसे मौत के मुँह में झोंक आया था और इस
समय भी उस की पत्नी को उड़ा कर, उस की मौत का सामान कर चुका था विष के प्रभाव से
मरा पड़ा है। शहजादी भी समझ गई कि यह प्याले में दवा नहीं थी, जहर था। उस ने
अलादीन से कहा, तुम ने अपनी बुद्धि से इस दुष्ट को मार कर बहुत अच्छा किया। अलादीन
ने कहा, अच्छा अब तुम दूसरे कमरे में चली जाओ, यहाँ मुर्दों के पास अधिक ठहरना ठीक
नहीं है।
शहजादी अपनी दासियों समेत
जब दूसरे कमरे में चली गई तो अलादीन ने जादूगर के वस्त्र उघाड़ने शुरू किए ताकि
चिराग मिले। जैसा शहजादी की बात से मालूम हुआ था जादूगर उसी चिराग को कपड़ों की कई
तहों में लपेट कर अपनी सीने से बाँधे रहता था। अलादीन ने चिराग निकाल कर जादूगर की
लाश को उस के वस्त्र यथावत पहना दिए। इस के बाद उस ने चिराग को उठा कर हलके से
रगड़ा। तुरंत ही जिन्न आ खड़ा हुआ और विनीत भाव से कहने लगा कि मेरे लिए क्या
आज्ञा है। अलादीन ने कहा, तुरंत ही इस महल को ले जा कर चीन की राजधानी में उसी जगह
स्थापित कर दो जहाँ यह पहले था। जिन्न ने स्वीकृति में सिर हिलाया और गायब हो गया।
इस के साथ ही महल हवा में उठा और दो क्षणों में चीन के राजमहल के सामने अपने
पुराने स्थान पर स्थापित हो गया।
जिन्न का काम इतना सुचारु
था कि किसी को पता भी नहीं चला कि क्या हुआ। केवल उठने और रखे जाते समय महल धीरे
से हिला। अब शहजादी उस कमरे में आई और उसे अलादीन ने बताया कि हम लोग अब वापस चीन
में हैं। शहजादी बड़ी प्रसन्न हुई किंतु अलादीन ने कहा, खुशी फिर मनाना। इस समय हम
दोनों ही इतनी चिंताओं और श्रम के मारे हैं कि हमें आराम चाहिए। हम लोग भूखे भी
हैं। अब खाना खाएँ और इसी जादूगर की लाई शराब पिएँ और सो रहें। उन्होंने ऐसा ही
किया।
चीन का बादशाह अपनी
पुत्री के लिए बड़ा उद्विग्न रहता था और यद्यपि उसे मालूम था कि अलादीन का महल
गायब हो चुका है तथापि वह रोज सवेरे अपने महल की छत पर चढ़ कर उस तरफ देखा करता और
पुत्री को याद करके रोया करता। उस दिन भी वह सदा की भाँति अपने महल की ऊपरी मंजिल
पर गया और उस ने उस दिशा में देखा तो उसे अलादीन का महल अपनी जगह खड़ा हुआ दिखाई
दिया। वह कुछ देर आँखें फाड़ कर देखता रहा, फिर जब उसे विश्वास हो गया तो जल्दी से
उतर कर उस ने घोड़ा मँगाया और दो-चार नौकरों के साथ ही उधर चल पड़ा। अलादीन ने उसे
देखा तो दौड़ कर महल के बाहर आया ताकि सम्मानपूर्वक उस की बाँह पकड़ कर उसे घोड़े
से उतारे। किंतु बादशाह ने कहा, मैं तुम से तभी बात करूँगा जब अपनी बेटी को देख
लूँगा। अलादीन ने कहा, आप अंदर तो चलें। किंतु बादशाह वहीं खड़ा रहा।
अलादीन ने जा कर अपनी
पत्नी से कहा कि तुरंत बाहर जा कर अपने पिता को अंदर लाओ, वे मेरे कहने से नहीं आ
रहे हैं। वह दौड़ी हुई बाहर आई और बादशाह को अंदर ले गई। बादशाह को अतीव प्रसन्नता
हुई और उस ने पूछा कि तुम इतने दिनों तक कहाँ रहीं और तुम पर क्या बीती। बदर बदौर
ने बताया कि अफ्रीका के एक जादूगर ने अपने जादू से मेरे और दास-दासियों समेत सारे
महल को उड़ा कर अपने नगर में पहुँचा दिया था। उस ने कहा, अलादीन के पराक्रम और
बुद्धि से मैं उस जादूगर की कैद से छूटी। मुझे सब से बड़ा भय यह था कि आप ने क्रोध
में आ कर मेरे पति को मरवा डाला होगा। भगवान को बड़ा धन्यवाद है कि आप ने उसे
मरवाया नहीं।
बादशाह की समझ में कुछ
नहीं आ रहा था तो उसे चिराग की करामात और जादूगर द्वारा छल से उस चिराग के हथियाने
की बात बताई गई। अलादीन ने दूसरा कमरा खोल कर जादूगर की लाश भी दिखाई। अब बादशाह
को विश्वास हुआ और पश्चात्ताप में भर कर कहने लगा, बेटे, मैं ने तुम्हारे साथ बड़ा
अन्याय किया। वह तो भगवान की दया थी कि तुम्हारे प्राण बच गए। बेटी के शोक ने मुझे
अंधा बना दिया था। अब तुम मेरी सारी बातें बूढ़े की मूर्खता समझ कर माफ कर दो।
अलादीन ने कहा, मुझे उस
बारे में आप से कोई शिकायत नहीं है। जो कुछ हुआ इसी जादूगर के कारण हुआ और मेरे
प्राण भी जाते तो उसी के कारण जाते। आप को कभी फुरसत हुई तो मैं विस्तारपूर्वक
पहले की कहानी भी बताऊँगा कि इस ने मेरे बचपन में मेरे साथ कैसी दुष्टता की।
बादशाह ने कहा, मैं बाद
में जरूर वह कहानी सुनूँगा। पहले तुम इस कुकर्मी की लाश को तो महल से दूर करो। इस
के बारे में लोगों को मालूम भी नहीं होना चाहिए वरना शहजादी की भी बदनामी हो सकती
है।
अलादीन ने दो विश्वस्त
आदमियों को आदेश किया कि अफ्रीकी जादूगर की लाश चोर दरवाजे से ले जा कर घने जंगल
में फेंक दें जहाँ पर पशु-पक्षी इसे नोच कर खा जाएँ। फिर बादशाह ने अपने महल में आ
कर आदेश दिया कि बदर बदौर के सकुशल वापस आ जाने के उपलक्ष्य में नगर में हर जगह
राग-रंग और उत्सव हों। नगर निवासियों ने इस घोषणा का हृदय से स्वागत किया,
विशेषतया इसलिए कि वे अलादीन के सकुशल आने और पुनः प्रतिष्ठित होने से बहुत खुश
थे।
अलादीन दो बार जादूगर के
कारण मारे जाने से बच गया लेकिन तीसरी बार भी उस पर मुसीबत आते-आते बच गई। अफ्रीकी
जादूगर का एक छोटा भाई था जो उस की भाँति ही जादू में निपुण था। वह किसी दूर देश
में रहता था। दोनों भाई वर्ष में एक बार रमल द्वारा एक-दूसरे के कुशल-मंगल का
समाचार जान लेते थे। अतएव कुछ महीनों के बाद जब छोटे भाई ने रमल के नक्शे फैला कर
बड़े भाई का हाल जानना चाहा तो उसे मालूम हुआ कि चीन की राजधानी के एक आदमी ने उसे
विष दे कर मार डाला है। वह आदमी पहले बहुत निर्धन था किंतु इस समय बड़ा धनवान और
बादशाह का दामाद है।
यह जान कर वह बहुत रोया।
फिर उस ने सोचा कि कायरों की तरह रो-पीट कर बैठे नहीं रहना चाहिए, अपने भाई के
हत्यारे से इस हत्या का बदला लेना जरूरी है। वह अपना जादू का सामान और रुपया-पैसा
ले कर घोड़े पर बैठा और मारा-मारा कुछ महीनों में चीन की राजधानी पहुँचा। उस ने
उसी दिन एक घर किराए पर लिया और दूसरी सुबह वह शहर घूमने निकला।
घूमते-घूमते वह एक ऐसी
जगह पहुँचा जहाँ शहर के बेफिक्रे और निठल्ले लोग जमा हो कर बातचीत में सारा दिन
बिताते थे। वह भी चुपचाप उन की बातें सुनने लगा। बहुत देर तक उसे कोई मतलब की बात
सुनने को नहीं मिली। वे लोग खा-पी भी रहे थे और गप्पें भी मार रहे थे। कुछ ही देर
में उन लोगों में फातिमा बीबी की बातें होने लगीं और उन में से हर एक फातिमा बीबी
के स्वभाव और आचार-व्यवहार की प्रशंसा करने लगा। यह बातचीत सुन कर जादूगर को आशा
हुई कि इस बात से मेरा मतलब पूरा होने की संभावना है।
वह कुछ देर तक सुनता रहा
लेकिन चूँकि विदेशी आदमी था इसलिए उन लोगों की दी हुई सूचनाएँ उस की समझ में नहीं
आ रही थीं। उस ने उस समूह के एक व्यक्ति को अलग ले जा कर उस से पूछा कि यह फातिमा
बीबी कौन हैं और उनमें क्या विशेषता है। उस ने कहा, तुम परदेशी मालूम होते हो वरना
इस नगर में तो हर आदमी फातिमा बीबी को केवल जानता ही नहीं उस का भक्त भी है। वह
वृद्धा बड़ा पवित्र और सदाचारी जीवन व्यतीत करती है। सारी उम्र उस ने ईश्वर आराधना
के सिवाय कुछ नहीं किया है। उस में ऐसी चमत्कारी शक्ति है कि किसी के सिर में चाहे
जितना दर्द हो वह हाथ से छू भी दे देती है तो दर्द दूर हो जाता है। जादूगर ने पूछा
कि वह रहती कहाँ है। उस आदमी ने जादूगर को फातिमा बीबी के घर का पता दे दिया।
जादूगर उस की गली को
पूछते-पूछते उस के घर जा पहुँचा किंतु उस समय वह अंदर नहीं गया। बाहर ही से देख कर
उस ने मकान की पूरी तरह पहचान कर ली। आधी रात के लगभग वह अपने मकान से उठ कर
फातिमा बीबी के घर जा पहुँचा। बंद दरवाजे को उस ने अपने साथ लाए हुए औजारों से खोल
लिया। अंदर देखा कि वृद्धा अपने आँगन में चाँदनी में खाट पर एक पुराना बिस्तर
बिछाए सो रही है। उस ने एक हाथ में नंगी तलवार ली और दूसरे से उसे जगाया और कहा,
अगर तुम ने जरा-सी भी आवाज निकाली तो तुम्हें अभी मार डालूँगा। अपनी जान की सलामती
चाहती हो तो जैसा कहूँ वैसा करो।
फातिमा बीबी की घिग्घी
बँध गई। जादूगर ने कहा, मुझे तुम्हारी और किसी चीज से मतलब नहीं है, सिर्फ
तुम्हारे बाहर पहने जानेवाले कपड़े चाहिए। उस बेचारी ने अंदर जा कर खूँटी पर टँगे
हुए अपने कपड़े दे दिए। जादूगर ने उन्हें पहन लिया। फिर वह फातिमा बीबी से कहने
लगा कि जो-जो निशान तुम्हारे चेहरे पर हैं वह मेरे चेहरे पर बना दो और मेरे चेहरे
और हाथ-पाँव की खाल का रंग भी अपने जैसा कर दो। वह जादूगर का मुँह देखने लगी तो
जादूगर बोला, तुम डरो मत, इत्मीनान रखो कि मैं तुम्हें जान से नहीं मारूँगा। मैं
एक खास जरूरत से तुम्हारा वेश धारण करना चाहता हूँ और बस। वह बेचारी उसे अंदर ले
गई। दिया जला कर उस ने एक-दो तरह के लेप और तेल निकाले और उस बदमाश के चेहरे और
हाथ-पाँव का रंग अपने जैसा बना दिया। फिर उस के दाढ़ी-मूँछ मुँड़े हुए चेहरे पर
अपने चेहरे जैसी झुर्रियाँ भी बना दीं। उस ने उसे अपने सिर की पगड़ी भी दी और अपनी
सुमिरनी और लकुटिया भी उसे दे दी। फिर अपना बुरका भी उसे दे दिया और कहा, मैं घर
से बाहर बुरका पहन कर निकलती हूँ, तुम भी बाहर जाना तो इसे ओढ़ कर ही जाना। अब जो
कुछ तुमने कहा था वह मैं ने कर दिया। शीशा ले कर देख लो, तुम्हारी और मेरी सूरत
में अब कोई अंतर नहीं है।
जादूगर ने दर्पण में अपना
मुख देखा तो उसे बिल्कुल फातिमा जैसा पाया। यद्यपि उस ने वादा किया था कि उसे
मारेगा नहीं फिर भी उस ने बुढ़िया को पटक कर गला दबा कर मार डाला। तलवार से इसलिए
नहीं मारा कि उस ने जो फातिमा बीबी के कपड़े पहने थे उन पर खून के छींटे पड़ जाते
और उस का छद्म वेश छुपा न रहता। फिर उस ने घर के अंदर बने एक गढ़े में फातिमा बीबी
की लाश उठा कर फेंक दी। रात उस ने फातिमा बीबी की खाट पर सो के गुजारी और अगली
सुबह घर से निकला। उसे मालूम था कि यह दिन फातिमा बीबी के बाहर आने का नहीं है
किंतु इस सिलसिले में भी कोई उस से पूछता तो इस के लिए भी उस ने एक अच्छा बहाना
सोच लिया था। वह बाहर निकल कर अलादीन के महल की ओर, जिसे उस ने पहले ही देख रखा
था, चला। रास्ते में उस के चारों ओर लोग जमा होने लगे। कोई श्रद्धापूर्वक उस का
आँचल चूमता कोई उस से आर्शीवाद माँगता, कोई उस से सिर का दर्द दूर करने की
प्रार्थना करता।
जादूगर तो छल-कपट में
प्रवीण था ही। वह बराबर कुछ बुड़बुड़ाता जा रहा था। जैसे कोई पवित्र मंत्र पढ़ रहा
हो। वह चाहता था कि लोगों की भीड़ अधिक से अधिक हो जाए इसलिए जहाँ जल्दी से निबट
सकता था वहाँ भी देर लगाता था। इस प्रकार जब वह अलादीन के महल के सामने पहुँचा तो
बड़ी भीड़ जमा हो गई और बड़ा कोलाहल करने लगी। काफी धक्का-मुक्की भी होने लगी
क्योंकि हर आदमी उस के पास जा कर उस से आर्शीवाद लेना चाहता था और उस के वस्त्र का
स्पर्श करके कृतकृत्य होना चाहता था।
उन दिनों अलादीन शिकार पर
गया हुआ था। बदर बदौर ने जब सुना कि महल के बाहर बहुत शोरगुल हो रहा है तो उस ने
एक दासी को आज्ञा दी कि बाहर जा कर देखे कि कैसा शोर हो रहा है। दासी ने कुछ देर
बाद जा कर बदर बदौर को बताया कि पवित्रात्मा वृद्धा फातिमा बीबी महल के बाहर के
मैदान में है। बदर बदौर ने तो पहले ही फातिमा बीबी के बारे में सुन रखा था, अब वह
महल के सामने खुद ही आई तो उसे बुलाना भी बदर बदौर ने [RK1] जरूरी समझा। उस ने अंगरक्षकों के सरदार
को आज्ञा की कि फातिमा बीबी को महल में ले आओ। सरदार वहाँ पहुँचा तो उसे देख कर भीड़
छँट गई।
जादूगर ने अंगरक्षकों के
सरदार को देखा तो खुश हुआ कि महल में जाने को मिलेगा। सरदार ने उसे सलाम करके कहा,
देवी जी, शहजादी को आप के दर्शन की बड़ी इच्छा है। कृपया आप मेरे साथ महल में
पदार्पण करें। जादूगर ने कहा, मैं जरूर चलूँगी। शहजादी तो बड़ी भली महिला हैं। यह
कह कर जादूगर महल में गया। बारहदरी में बदर बदौर ने उस का स्वागत किया।
फातिमा बने हुए जादूगर ने
उसे बहुत आशीर्वाद दिए और संसार की असारता और भगवदभक्ति के महत्व पर प्रवचन किया।
शहजादी के कहने पर वह एक ओर सिर झुका कर बैठ गया जैसे विनय मुद्रा में हो।
कुछ देर के बाद शहजादी ने
कहा, माता, मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे पास रहो ताकि मैं तुम से आत्मज्ञान प्राप्त
करूँ और परलोक सुधारूँ। जादूगर बोला, बेटी, यह कैसे हो सकता है? तुम्हारे महल में
दास-दासियों और सेवकों की हमेशा भीड़ रहती है और बड़ा शोर होता है। यहाँ मेरे भगवत
भजन में बड़ी बाधा पड़ेगी। शहजादी ने कहा, अगर महल के अंदर नहीं रहना चाहतीं तो
महल के अंतर्गत कई मकान महल से अलग भी बने हैं, तुम उनमें से कोई पसंद करके उस में
रह सकती हो।
जादूगर को जैसे मुँहमाँगी
मुराद मिल गई। वह जानता था कि महल के अंदर रह कर वह अपनी दुष्टतापूर्ण योजना भली
प्रकार लागू कर सकता है। वह बोला, बेटी, मैं संसार त्यागी स्त्री हूँ। मुझे यह
उचित तो नहीं मालूम होता कि यहाँ राजमहल के वैभव के बीच रहूँ। किंतु तुम जैसे
सच्चे मन से परमार्थ का मार्ग खोजना चाहती हो उसे देख मेरा कर्तव्य हो जाता है कि
मैं तुम्हारी सहायता करूँ। मैं किसी भी बाहरी मकान में रह लूँगी। शहजादी यह सुन कर
उठ खड़ी हुई और बोली, पहले यही काम निबटा लिया जाए। मेरे साथ चल कर खुद ही खाली
मकानों में से किसी को अपने रहने के लिए पसंद कर लो। जादूगर ने उस के साथ जा कर कई
मकान देखे और एक को अपने लिए पसंद किया। शहजादी ने सेवक भेज कर फातिमा का
हलका-फुलका घरेलू सामान मँगा दिया और जादूगर फातिमा बन कर महल में डट गया।
शहजादी ने उस से कहा कि
मेरे साथ ही भोजन करो। जादूगर को डर था कि भोजन के समय कहीं शहजादी मेरा छद्मरूप
पहचान न ले। उस ने हँस कर कहा, मुझे तुम्हारे तर माल से क्या लेना-देना? मैं तो
दिन में एक बार रोटी के कुछ टुकड़े मेवों की गिरी के साथ खाया करती हूँ। वह तुम
मेरे यहाँ भेज देना। शहजादी बोली, ऐसा ही सही। मैं तुम्हारे लायक खाना भिजवाती
हूँ। लेकिन तुम भोजन के बाद मेरे पास आना। यह कह कर शहजादी चली गई और उस ने रोटी
और मेवे जादूगर के लिए भिजवा दिए। जादूगर ने भोजन लानेवाले सेवक से कहा, जब शहजादी
भोजन कर लें तो मुझे बताना।
शहजादी के भोजन करने के
बाद सेवक ने आ कर उस से कहा कि शहजादी ने भोजन समाप्त कर लिया है और आप की
प्रतीक्षा में हैं। जादूगर उठ कर बारहदरी में गया जहाँ शहजादी बैठी थी। शहजादी ने
उठ कर उस का स्वागत किया और फिर इधर-उधर की बातें होने लगीं। शहजादी ने कहा, तुम
महल के अंदर नहीं रहना चाहती हो तो न सही लेकिन महल को देख तो लो। यह कह कर वह
जादूगर को महल के विभिन्न भाग दिखाने लगी। जादूगर ने इसे भी अपना सौभाग्य समझा
क्योंकि अपनी योजना पूरी करने के लिए उसे महल का पूरा नक्शा जानना जरूरी था और
योजना के पूर्ण होने के बाद उसे महल से भागने में भी आसानी होती।
सारा महल दिखाने के बाद
शहजादी उसे फिर बारहदरी में लाई और कहा, यहाँ की एक-एक चीजें देखो। ऐसी शानदार
बारहदरी दुनिया में कहीं और न होगी। जादूगर ने घूम- घूम कर बारहदरी को देखा और हर
चीज की प्रशंसा की। अंत में वह शहजादी के साथ बारहदरी ही में वार्तालाप के लिए बैठ
गया। कुछ देर में बोला, बेटी, यह बारहदरी अद्वितीय है। किंतु कोई और भी चाहे तो धन
व्यय करके ऐसी बारहरदरी बनवा सकता है। अगर इसमें एक चीज आ जाए तो इसका सौंदर्य भी
पूर्ण हो जाए और यह सदा के लिए अद्वितीय बनी रहे।
शहजादी ने पूछा कि क्या
चीज चाहिए। जादूगर बोला, इस के बीचोबीच छत से रूख नामी पक्षी का विशाल अंडा लटकाया
जाए। रुख का अंडा एक ही है। उस जैसी चीज के कारण यह बारहदरी हमेशा के लिए अद्वितीय
रहेगी। शहजादी ने कहा, रूख पक्षी कैसा होता है और उस का अंडा कहाँ मिलेगा। जादूगर
बोला, मुझे इन दुनियादारी की बातों में न घसीटो। जो यह बारहदरी बना सकता है वह रूख
का अंडा भी ला सकता है। अब और कुछ बातें करो। शहजादी ने इस बारे में कुछ न पूछा
किंतु मन में यह बात धरे रही।
दो-चार दिन में अलादीन
शिकार से लौटा तो उस ने देखा कि शहजादी सदा की भाँति प्रसन्नचित्त नहीं है। उस ने
इस उदासी का कारण पूछा। पहले तो शहजादी इस बात पर चुप रही किंतु अलादीन पीछे पड़
गया। उस ने कहा, मुझ से तुम्हारी उदासी नहीं देखी जाती। भगवान के लिए बताओ कि इसका
क्या कारण है। मैं वादा करता हूँ कि जो कुछ मुझ से बन पड़ेगा वह मैं तुम्हारी
प्रसन्नता के लिए जरूर करूँगा। शहजादी ने कहा, हमारी बारहदरी संसार में इस समय
अद्वितीय है। किंतु इसमें एक कमी है, वह पूरी हो जाए तो यह संसार में सदा के लिए
अद्वितीय हो जाए। अगर इस के बीच में छत से रूख पक्षी का अंडा लटकाया जाए तो इसका
मुकाबला कभी नहीं हो सकेगा।
अलादीन ने कहा, अच्छी बात
है। लेकिन तुम जरा देर के लिए दूसरे कमरे में चली जाओ। शहजादी चली गई तो अलादीन ने
अपने कपड़ों के बीच से निकाल कर जादू के चिराग को रगड़ा। तुरंत ही जिन्न आ खड़ा
हुआ। अलादीन ने कहा, रूख नाम के पक्षी का एक अंडा ला कर इस बारहदरी के बीच में छत
से लटका दो।
किंतु जिन्न आज्ञापालन
करने के बजाय इतनी जोर से गरजा कि सारा महल हिल गया। अलादीन भी बेहद घबरा गया।
जिन्न ने गरजते हुए कहा, दुष्ट कृतघ्न, मैं ने और चिराग के दूसरे जिन्नों ने सदा
तेरी आज्ञा का पालन किया और तू जिस योग्य न था वह सब कुछ तुझे दिलाया। तू कमबख्त
इसका अहसान मानने के बजाय हमें यह कह रहा है कि अपने असली स्वामी ही को ला कर तेरी
बारहदरी की सजावट बनाएँ? अलादीन यह सुन कर थर-थर काँपने लगा।
जिन्न फिर बोला, इस बात
पर हमें चाहिए था कि तेरे इस महल के और इस के निवासियों के टुकड़े-टुकड़े करके हवा
में उड़ा देते। किंतु तेरी मौत अभी नहीं लिखी। इसीलिए तूने या तेरी स्त्री ने यह
बेहूदा माँग अपनी इच्छा से नहीं की है बल्कि किसी के बहकाने से की है। हम तुझे
छोड़ देते हैं पर अब तेरी आज्ञा पर न आएँगे। हाँ, जाने से पहले मैं तुझे एक बड़े
खतरे से होशियार किए देता हूँ। तेरी स्त्री ने एक जादूगर के बहकावे में आ कर यह
माँग की है। यह जादूगर उस जादूगर का छोटा भाई है जिसे तूने विष दे कर मारा था। वह
अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए आया है क्योंकि उसे रमल से अपने भाई की हत्या
की बात मालूम हो गई थी। उस ने फातिमा बीबी के घर जा कर उसे मार डाला है और उस का
वेश बना कर तेरे महल के एक बाहरी मकान में रह रहा है।
उस ने शहजादी को इसलिए
बहकाया है कि मैं क्रोध में आ कर तुम दोनों को मार डालूँ। तुम उस से होशियार रहो
वरना वह भाई का बदला लिए बगैर नहीं रहेगा। यह कह कर जिन्न गायब हो गया।
अलादीन तो फातिमा के बारे
में जानता ही था। उस ने कुछ देर सोच कर अपनी योजना बना ली। वह शहजादी के कमरे में
गया। शहजादी उस से रूख के अंडे के बारे में कुछ पूछे इस से पहले वह सिर पकड़ कर
लेट गया और हाय-हाय करने लगा। शहजादी के पूछने पर उस ने बताया कि अचानक सिर में
बहुत तीव्र पीड़ा होने लगी है जिसने मुझे बेहाल कर दिया है। शहजादी बोली, यह
सौभाग्य की बात है कि बीबी फातिमा यहीं हैं, वे चुटकी बजाते ही तुम्हारा दर्द दूर
कर देंगी। यह कह कर उस ने एक सेवक से कहा कि बीबी फातिमा को बुला लाओ, मालिक के
सिर में दर्द हो रहा है।
जादूगर ने देखा कि जिन्न
ने भी अलादीन को नहीं मारा तो वह खुद उसे मारने की तैयारी करके आया। अलादीन ने
कहा, माता जी, मेरे सौभाग्य से आप यहाँ हैं वरना मैं सिर दर्द के मारे मर ही जाता।
आप की कृपा हो तो मेरी पीड़ा एक क्षण में दूर हो सकती है। मेरे हाल पर दया कीजिए
और अपने आशीर्वाद और मंत्रों के द्वारा मेरी पीड़ा दूर कीजिए। इस दर्द ने मेरा
बुरा हाल कर रखा है। यह कह कर अलादीन ने अपना सिर झुका कर उस के आगे कर दिया।
जादूगर ने एक हाथ अलादीन
के सिर पर रखा और दूसरे से अपने कपड़ों में छुपाई हुई कटार निकालने लगा। अलादीन
होशियार था ही। उस ने फुर्ती से उस का हाथ मरोड़ कर कटार छीन ली और उस की छाती में
उतार दी। वह एक मिनट तड़प कर मर गया।
शहजादी ने दूर से देखा तो
चीख कर कहने लगी, मेरे प्रियतम, यह घोर पाप तुमने क्यों किया क्यों? ऐसी
पवित्रात्मा वृद्धा की हत्या कर दी! किंतु अलादीन ने उस से कहा, दास-दासियों को
हटा दो और तुम मेरे पास आओ। सब के हटने के बाद शहजादी पास आई तो अलादीन ने जादूगर
का मुखावरण हटाते हुए कहा, अच्छी तरह देखो। मैं ने फातिमा बीबी को नहीं, इस नरक के
कीड़े को मारा है। शहजादी ने मृत चेहरा देखा तो वास्तव में पुरुष दिखाई दिया।
अलादीन ने कहा, यह दुष्ट
तुम्हारा अपहरण करनेवाले जादूगर का छोटा भाई था। यह खुद जादूगर था और अपने भाई की
मौत का बदला लेने के लिए यहाँ आया था। इस ने बेचारी फातिमा के घर जा कर उस से अपना
रूप बदलवाया और फिर यहाँ आ कर तुम्हें बहका कर हम दोनों को मरवाना चाहा। चिराग के
जिन्नों का असली स्वामी रूख का अंडा है। मेरी माँग पर जिन्न बहुत बिगड़ा और कहने
लगा कि तुमने अपनी ओर से यह माँग की होती तो तुम्हें, तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे
महल को अभी खत्म कर देता। किंतु तुमने बहकावे में आ कर यह माँग की है इसलिए छोड़
देता हूँ लेकिन अब तुम्हारे बुलाने पर न आऊँगा। यह कहने के बाद उसी ने उस जादूगर
का पूरा हाल मुझे सुनाया।
शहजादी ने यह सुन कर
भगवान को धन्यवाद दिया। कमी ही किस चीज की रह गई थी जो जिन्न को फिर बुलाया जाता।
दोनों ने विश्वस्त सेवकों द्वारा इस जादूगर की लाश भी जंगल में फिंकवा दी। उस के
बाद दोनों पति-पत्नी शांति और सुख से रहने लगे। कुछ वर्ष और बीते तो चीन का बादशाह
अति वृद्धावस्था के कारण हलकी-सी बीमारी के बाद मर गया। बदर बदौर के अतिरिक्त उस
के और कोई संतान न थी इसलिए उस की मौत के बाद वही रानी बनी और अलादीन के हाथ में
सारा राज्य-प्रबंध आ गया। लंबे अरसे तक दोनों ने राज्य सुख भोगा।
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