पुराने
जमाने में बसरा
में एक बड़ा
ऐश्वर्यवान और न्यायप्रिय
बादशाह राज करता
था। उसे सबकुछ
प्राप्त था किंतु
उसे बहुत दिनों
तक कोई संतान
नहीं हुई जिससे
वह बहुत दुखी
रहता था। नगर
निवासी भी बादशाह
के साथ मिल
कर भगवान से
प्रार्थना किया करते
थे कि राजकुमार
का जन्म हो।
अंत में भगवान
ने उन सब
की बात सुनी
और मलिका को
गर्भ रहा और
नौ महीने बाद
उसके एक पुत्र
पैदा हुआ। उसका
नाम रखा गया
जैनुस्सनम। बादशाह ने अपने
राज्य के सभी
प्रख्यात ज्योतिषियों को बुला
कर आज्ञा दी
कि शहजादे का
भविष्य पूर्णरूपेण बताएँ। सबने
उसकी जन्मपत्री अलग-अलग बनाई
किंतु सब ने
बाद में एकमत
हो कर कहा
कि यह शहजादा
बड़ा साहसी और
प्रतापवान होगा और
अपनी पूर्ण आयु
को भोगेगा किंतु
इसके सामने जीवन
में कई खतरे
आएँगे। बादशाह ने कहा,
इसमें तो चिंता
की कोई बात
नहीं है। जो
साहसी होता है
वह खतरों का
सामना करता ही
है। फिर बादशाहों
का तो काम
ही है कि
खतरों से जूझें।
यह खतरे और
विपत्तियाँ ही बादशाहों
को जीवन का
मार्ग दिखाती हैं।
तुम लोगों ने
जी खुश करनेवाली
भविष्यवाणी की है।
यह कह कर
बादशाह ने ज्योतिषियों
को अच्छा इनाम
दे कर विदा
किया।
शहजादा
बड़ा हुआ तो
उसकी शिक्षा-दीक्षा
के लिए प्रत्येक
विषय के लिए
योग्यतम गुणी नियुक्त
किए गए। कुछ
ही दिनों में
वह प्रत्येक विद्या
और कला में
निपुण हो गया।
किंतु बुढ़ापे की
औलाद होने की
वजह से वह
लाड़ में कुछ
बिगड़ भी गया
और अपव्ययी हो
गया। कुंछ समय
के बाद उसका
पिता रोगग्रस्त हुआ
और कोई दवा
उस पर प्रभावकारी
न हुई। मरने
के पहले उसने
जैनुस्सनम को नसीहत
की कि तुम
निठल्ले और स्वार्थी
लोगों की संगत
से बचना और
अपव्यय न करना
और जैसा बादशाहों
को शोभा देता
है दंड और
उदारता की नीतियों
में संतुलन रखना।
फिर बूढ़ा बादशाह
मर गया। जैनुस्सनम
ने निश्चित अवधि
तक उस का
मातम किया और
फिर राजसिंहासन पर
बैठा। अनुभव तो
था नहीं, एकबारगी
इतना कोष पाया
तो दोनों हाथों
से लुटाने लगा
और भोग-विलास
में प्रवृत्त हो
गया। उसकी माँ
ने बहुत समझाने
की कोशिश की
किंतु उसने उसकी
बात अनसुनी कर
दी। फलतः खजाना
खाली हो गया।
राज्य-प्रबंध चौपट
हो गया और
सैनिक नौकरी छोड़ने
लगे।
अब
उसकी समझ में
आया कि कहाँ
गड़बड़ हो गई।
उसने अपने नौजवान
मित्रों को उच्च
पदों से हटा
दिया और अनुभवी
राज्य-प्रबंधकों को
रखा। उन्होंने उसे
उसकी भूलें बताई
और किसी तरह
राज्य-प्रबंध चलाए
रखा किंतु अच्छी
तरह राज्य संचालन
के लिए धन
की आवश्यकता थी
और जैनुस्सनम रात-दिन इसी
चिंता में रहने
लगा कि धन
कहाँ से प्राप्त
किया जाए।
एक
रात को उसने
स्वप्न में देखा
कि एक वृद्ध
उससे मुस्कुरा कर
कह रहा है
- ओ जैनुस्सनम, तुम
यह बात समझ
लो कि हर
रंज के बाद
खुशी आती है
और हर विपत्ति
के बाद सुख
मिलता है। इसलिए
निराश न हो।
यदि चाहते हो
कि इस दुख
से उबरो तो
फौरन अकेले ही
काहिरा चले जाओ
जो मिस्र की
राजधानी है। वहाँ
तुम्हारा भाग्य जागेगा और
तुम्हारे दुख दूर
हो जाएँगे। जगने
पर उसने अपनी
माँ से सपने
का हाल कहा
और यह भी
कहा कि मैं
अपना भाग्य जगाने
को काहिरा जाऊँगा।
उसकी माँ ने
समझाया, बेटे, सपने तो
रोजाना ही दिखाई
देते हैं और
अजीब-अजीब दिखाई
देते हैं, वे
सच्चे थोड़े ही
होते हैं। तुम्हें
अकेले इतनी लंबी
यात्रा नहीं करनी
चाहिए। जैनुस्सनम जिद्दी तो
था ही, कहने
लगा, अम्मा, तुम
कैसी बातें करती
हो। ऐसे सपने
गलत नहीं होते।
बड़े-बड़े नबियों
को महत्वपूर्ण बातें
सपने ही में
दिखाई दीं। मुझे
जो वृद्ध सपने
में दिखाई दिया
वह कोई महान
संत था, उसकी
बात झूठी नहीं
हो सकती। माँ
ने उसे बहुत
समझाना चाहा कि
इस बेकार की
खतरनाक यात्रा से बाज
आए किंतु जब
जैनुस्सनम कोई बात
मन में ठान
लेता था तो
उसे पूरा ही
करके छोड़ता था।
उसने राज्य का
प्रबंध अपनी माँ
के सुपुर्द किया
और स्वयं गुप्त
रूप से महल
से निकल कर
काहिरा की ओर
रवाना हो गया।
उसने अपने साथ
एक भी आदमी
न लिया।
कई
दिनों की जोखिम-भरी ओर
कष्टदायी यात्रा करने के
बाद वह काहिरा
के सुंदर और
विशाल नगर में
जा पहुँचा। हारा-थका वह
एक मसजिद के
अंदर जा कर
सो रहा। उसने
फिर स्वप्न में
उसी बूढ़े को
देखा जो कह
रहा था, मैंने
तुम्हारा साहस देखने
के लिए तुम्हें
काहिरा बुलाया था। तुम
इस परीक्षा में
पूरे उतरे। तुम
बड़े शक्तिशाली राजा
बनोगे। तुम बसरा
लौट जाओ। वहीं
पर तुम्हें अपार
धन राशि मिलेगी।
जैनुस्सनम
जगा तो सोचने
लगा कि इस
बूढ़े ने मुझे
अच्छा बेवकूफ बनाया,
अगर बसरा ही
में मुझे धन
प्राप्ति होनी थी
तो काहिरा तक
क्यों दौड़ाया। उसने
सोचा कि यह
भी अच्छा हुआ
कि यह बात
मैंने अपनी माँ
के सिवा किसी
और से नहीं
कहीं, नहीं तो
सभी लोग मेरी
मूर्खता पर हँसते।
खैर, बेचारा फिर
बसरा को चल
पड़ा और कुछ
दिनों में वहाँ
कुशलतापूर्वक पहुँच गया। उसकी
माँ को उसके
इतनी जल्दी लौट
आने पर आश्चर्य
हुआ और उसने
इसका कारण पूछा
तो जैनुस्सनम ने
काहिरा की मसजिद
में देखे दूसरे
सपने का हाल
बताया। माँ ने
उसे धीरज दे
कर कहा, ठीक
ही है बेटा,
तुम्हें यहीं बसरा
में यथेष्ट धन
प्राप्त होगा।
रात
को जैनुस्सनम ने
फिर सपने में
उसी बूढ़े को
देखा। वह कह
रहा था, सुनो
जैनुस्सनम, अब वह
समय आ गया
है जब तुम्हें
अतुलित धनराशि मिलनेवाली है।
अब मेरी बात
को ध्यान दे
कर सुनो। तुम्हारे
पिता ने पहले
अमुक जगह महल
बनवाया था और
वहाँ रहते थे।
फिर उन्होंने यह
महल बनवाया। पुराने
महल में कोई
नहीं रहता था।
तुम वहाँ एक
फावड़ा ले कर
अकेले जाओ और
जमीन खोदना शुरू
करो। थोड़ी देर
बाद तुम्हें बड़ा
खजाना मिलेगा।
जैनुस्सनम
ने सुबह अपनी
माँ को बताया
कि रात को
वही बूढ़ा फिर
मेरे सपने में
आया था और
उसने यह कहा
है। यह सुन
कर उसकी माँ
हँसने लगी। बोली,
यह बूढ़ा भी
अजीब है। दो
बार सपने में
आ कर उसने
तुम्हें बेकार इधर से
उधर दौड़ाया, अब
तीसरी बार भी
कुछ बकवास कर
गया, जिसका कोई
मतलब नहीं हो
सकता। जैनुस्सनम ने
कहा, अब तो
मुझे भी उसकी
बात पर विश्वास
नहीं रहा है
लेकिन यह अंतिम
बार है जब
उसकी बात मान
रहा हूँ। इस
बार भी कुछ
हाथ न आया
तो आयंदा उसकी
बात पर ध्यान
न दूँगा। माँ
ने कहा, चलो,
यह भी करके
देख लो। इतना
तो स्पष्ट है
कि पुराने मकान
का सहन खोदने
में काहिरा की
यात्रा से कम
मेहनत है। जैनुस्सनम
ने कहा, कुछ
अजब भी नहीं
कि इस बार
उसकी बात ठीक
निकले। माँ ने
कहा, तुम जो
चाहो करो, मैं
तो अब भी
कहती हूँ कि
यह सब बेकार
की बातें हैं।
जैनुस्सनम
ने कुछ उत्तर
दिया किंतु माँ
से छुपा कर
उसने पुराने महल
को खोदना शुरू
कर दिया। उसने
लगभग एक गज
गहरा गढ़ा खोद
डाला लेकिन वहाँ
एक पैसा भी
नहीं निकला। वह
यकायक बैठ गया
और सोचने लगा
कि मैं फिर
मूर्ख बना। मेरी
माँ को मालूम
होगा तो बहुत
हँसेगी और कहेगी
कि लड़का पागल
हो गया है,
बेकार ही महल
खोद कर खराब
किया। कुछ देर
सुस्ताने के बाद
वह फिर उठा
और खोदने लगा।
अकस्मात उसका फावड़ा
किसी कड़ी चीज
पर पड़ा और
उसने सँभल कर
खोदा तो संगमरमर
की एक चट्टान
पाई। उसको हटाया
तो उसके नीचे
सीढ़ियाँ दिखाई दीं। उसने
एक मोमबत्ती जलाई
और उसके उजाले
में सीढ़ियों से
नीचे उतर गया।
अंदर एक बड़ी
दालान मिली जिसकी
दीवारें चीनी मिट्टी
की और छत
बिल्लौर पत्थर की बनी
थी और उसमें
सीप की बनी
हुई चार तिपाइयाँ
रखीं थीं। हर
तिपाई पर दस
देंगें समाक पत्थर
की बनी थीं।
(समाक एक सफेद
नरम पत्थर होता
है।) पहले उसने
सोचा कि देगों
में उम्दा शराब
होगी। लेकिन उसने
एक देंग का
ढक्कन खोला तो
उसे अशर्फियों से
भरा पाया। उसने
और देंगें भी
अशर्फियों से भरी
पाईं।
अब
उसने एक मुट्ठी
अशर्फियाँ लीं और
जा कर अपनी
माँ को दिखाईं।
वह यह देख
कर बड़े आश्चर्य
में पड़ी, फिर
बोली, बेटे, भगवान
ने तुम पर
कृपा की है
किंतु अब की
बार इस धन
को पहले की
तरह न उड़ा
देना। जैनुस्सनम ने
कहा, विश्वास रखो,
अब मैं तुम
से पूछे बगैर
कुछ भी खर्च
नहीं करूँगा। फिर
उसकी माँ ने
कहा कि मैं
भी उस जगह
जा कर वह
धन देखना चाहती
हूँ।
जैनुस्सनम
उसे ले गया।
उसने अशर्फियों से
भरी चालीस देंगें
देखीं। फिर उसकी
माँ ने इधर-उधर नजर
दौड़ाई तो एक
कोने में समाक
पत्थर का बना
हुआ एक और
पात्र दिखाई दिया।
जैनुस्सनम ने उसे
खोल कर देखा
तो उसमें सोने
की बनी एक
चाबी निकली। राजमाता
ने कहा, निश्चय
ही यहाँ कोई
और खजाना है
जिसकी चाबी यहाँ
रखी है। वे
लोग दालान में
घूम कर देखने
लगे कि चाबी
कहाँ लग सकती
है। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते
उन्हें दालान के एक
ओर एक दरवाजा
दिखाई दिया जिसमें
ताला लगा था।
उन्होंने उसमें वह चाबी
लगाई तो ताला
खुल गया। ताला
खोल कर वे
लोग अंदर गए
तो एक विशाल
कक्ष देखा। उसमें
आदमी की कमर
जितने ऊँचे नौ
सोने के खंभे
बने थे। आठ
खंभों के ऊपर
अलग-अलग मनुष्यों
की हीरे की
बनी मूर्तियाँ रखी
थीं जिनके कारण
वह कक्ष जगमग
कर रहा था।
जैनुस्सनम उन मूर्तियों
का सौंदर्य देखता
ही रहा गया।
नवें खंभे पर
कोई मूर्ति नहीं
थी। उस खंभे
पर एक सफेद
रेशमी कपड़ा मढ़ा
था जिस पर
लिखा था, प्रिय
पुत्र, यह आठों
मूर्तियाँ अनुपम और अमूल्य
हैं किंतु नवें
खंभे के लिए
जो मूर्ति है
वह इससे भी
बढ़ कर है।
अगर तुम उसे
भी प्राप्त करना
चाहते हो तो
काहिरा चले जाओ।
वहाँ मेरा पुराना
सेवक मुबारक रहता
है। वह वहाँ
का प्रसिद्ध आदमी
है और तुम्हें
उसका मकान बगैर
दिक्कत के मिल
जाएगा। मुबारक को जब
मालूम होगा कि
तुम मेरे पुत्र
हो तो वह
उस जगह ले
जाएगा जहाँ से
नवीं मूर्ति तुम्हें
मिल सकती है।
यह
पढ़ कर जैनुस्सनम
और धन-दौलत
को भूल गया
और उसे नवीं
मूर्ति प्राप्त करने की
धुन सवार हो
गई। उसने अपनी
माँ से कहा,
अम्मा, अब मैं
नवीं मूर्ति पाए
बगैर नहीं रह
सकता। मैं फिर
काहिरा जाऊँगा। उसकी माँ
बोली, अब मैं
तुम्हें कैसे रोक
सकती हूँ। तुम
ऐसे महान सिद्ध
के आदेश पर
काम कर रहे
है जो सर्वज्ञ
है। तुम्हें उसके
आदेश के पालन
से कोई हानि
नहीं हो सकती।
तुम राज्य-प्रबंध
की भी चिंता
न करो, मैं
मंत्री की सहायता
से सब सँभाल
लूँगी। लेकिन अब तुम
पहले की तरह
अकेले न जाना।
अब की बार
तुम्हें अकेले जाने का
आदेश भी नहीं
दिया गया है।
चुनांचे
दूसरे दिन जैनुस्सनम
कुछ चुने हुए
सेवकों को साथ
ले कर काहिरा
की ओर चल
दिया। कुछ दिनों
बाद वह वहाँ
कुशलपूर्वक पहुँचा। वहाँ जा
कर लोगों से
बातचीत की तो
मालूम हुआ कि
मुबारक सचमुच ही वहाँ
का विख्यात नागरिक
है। बादशाह को
उसका घर ढूँढ़ने
में कोई कठिनाई
नहीं हुई। उसका
भवन विशाल था।
दरवाजे पर आवाज
लगाने पर एक
नौकर ने द्वार
खोला। जैनुस्सनम ने
कहा, मैं परदेशी
हूँ। तुम्हारे स्वामी
की उदारता के
बारे में बहुत
कुछ सुना है।
मैं चाहता हूँ
कि उनका मेहमान
बनूँ।
नौकर
ने अंदर जा
कर अपने स्वामी
को यह बताया
और उससे आदेश
पा कर जैनुस्सनम
और उसके आदमियों
को अंदर ले
गया। जैनुस्सनम ने
देखा कि वह
मकान अंदर से
और भी शानदार
था। एक सजी
हुई दालान में
मुबारक उसकी प्रतीक्षा
कर रहा था।
उसे देख कर
मुबारक ने उठ
कर सलाम किया
और पूछा कि
आप कौन हैं,
कहाँ से आए
हैं?
जैनुस्सनम
ने कहा, तुमने
मुझे पहचाना नहीं।
मैं बसरा के
स्वर्गवासी बादशाह का पुत्र
जैनुस्सनम हूँ। मुबारक
ने कहा, मैं
तो स्वर्गवासी बसरा
नरेश का क्रीतदास
हूँ। लेकिन मैंने
आपको नहीं देखा।
आपकी उम्र कितनी
होगी? जैनुस्सनम ने
कहा कि मैं
बीस वर्ष का
हूँ। मुबारक ने
कहा, ठीक है,
मैं बाइस वर्ष
पूर्व बसरा से
यहाँ आया था।
लेकिन फिर भी
मैं आश्वस्त हो
जाना चाहता हूँ
कि आप उसी
बादशाह के पुत्र
हैं। क्या आप
कोई बात ऐसी
बता सकते हैं
जिससे इस विषय
में मेरी तसल्ली
हो जाए।
जैनुस्सनम
ने कहा, कुछ
दिन पहले एक
स्वप्न देख कर
मैंने अपने पिता
के पुराने महल
में खुदाई की
थी। मुझे उसमें
अशर्फियों से भरी
हुई चालीस देंगें
मिलीं। मुबारक ने पूछा
कि आपने इन
देंगों के अलावा
और कुछ देखा?
जैनुस्सनम ने कहा,
एक सोने की
चाबी से मैंने
एक दरवाजा खोला
तो उस कक्ष
में मैंने आठ
स्वर्ण-स्तंभों पर रखी
हुई मानवाकार हीरे
की मूर्तियों को
देखा। नवाँ खंभा
भी सोने का
था किंतु उस
पर कोई मूर्ति
नहीं थी। उस
पर एक सफेद
रेशमी कपड़ा मढ़ा
था जिस पर
मेरे पिता की
हस्तलिपि में लिखा
था कि नवीं
मूर्ति सबसे अच्छी
है और अगर
तुम उसे पाना
चाहो तो काहिरा
में मुबारक के
पास जाओ। मुबारक
यह सुन कर
उसके पाँव पर
गिर कर बोला,
निस्संदेह आप मेरे
स्वामी हैं। मैं
आपको इच्छित स्थान
पर अवश्य ले
जाऊँगा। किंतु अभी आप
थके हैं, दो-चार दिन
आराम करें। मैंने
काहिरा के प्रमुख
व्यक्तियों को भोज
दिया है, आप
भी वहीं चले।
जैनुस्सनम ने सहर्ष
यह स्वीकार कर
लिया। मुबारक उसे
भोज स्थान पर
ले गया और
स्वयंसेवकों की भाँति
बादशाह जैनुस्सनम के पास
खड़ा रहा। वहाँ
उपस्थित लोग ताज्जुब
से देखने और
एक-दूसरे से
पूछने लगे कि
यह कौन है
जिसकी मुबारक दासों
की भाँति सेवा
कर रहा है।
जब
सब मेहमान खाना
खत्म कर चुके
तो मुबारक ने
उनसे कहा, आप
लोग आश्चर्य में
होंगे कि मैं
इस नवयुवक की
इतनी सेवा क्यों
कर रहा हूँ।
आश्चर्य की कोई
बात नहीं है।
यह बसरा के
बादशाह हैं मैं,
इनके पिता का
गुलाम था। वे
मुझे मुक्त करने
से पहले मर
गए। अतएव अब
मैं इनका गुलाम
हूँ। यह अपने
पिता के एकमात्र
उत्तराधिकारी हैं। इस
पर जैनुस्सनम ने
कहा, मैं इस
उपस्थित समूह के
समक्ष घोषणा करता
हूँ कि मैंने
इन्हें अपनी दासता
से मुक्त किया।
सिर्फ एक बात,
जो अभी मैंने
इनसे कही है,
इन्हें करनी पड़ेगी।
यह
सुन कर मुबारक
ने सिर झुका
कर शाहजादे का
आभार प्रकट किया।
इसके बाद मदिरा
का दौर चला।
शाम तक सब
लोग शराब पीते
रहे, फिर मुबारक
ने फल आदि
दे कर सब
को विदा किया।
जैनुस्सनम ने रात
भर आराम किया
और दूसरे दिन
कहा, भाई, अब
मेरी यात्रा की
थकन दूर हो
गई है। मैं
यहाँ घूमने नहीं
बल्कि नवीं मूर्ति
लेने आया हूँ।
अब यह आवश्यक
है कि उस
काम के लिए
चला जाए। मुबारक
ने कहा, अच्छी
बात है किंतु
आपको एक बात
जाननी जरूरी है।
मार्ग में बहुत-सी भयोत्पादक
बातें होंगी। यह
आवश्यक है कि
आप किसी बात
से भय न
खाएँ और किसी
बात पर ध्यान
न दें। नवयुवक
बादशाह ने कहा,
आप इत्मीनान रखें।
मैं किसी भूत-प्रेत से न
डरूँगा और जैसा
आप कहेंगे वैसा
ही करूँगा। वैसे
भी मैं बादशाह
हूँ, मुझे किसी
बात से डरना
नहीं चाहिए।
मुबारक
यह सुन कर
आश्वस्त हुआ। उसने
अपने नौकरों को
यात्रा की तैयारी
का आदेश दिया।
दूसरे दिन वे
दोनों घर से
चले। मार्ग के
दर्शनीय स्थल देखते
हुए वे लोग
कई दिनों बाद
एक बहुत सँकरे
रास्ते से चलने
लगे। मुबारक ने
घोड़े और साथ
के नौकर वहीं
छोड़ दिए और
आदेश दिया कि
हम लोगों के
लौटने तक तुम
लोग यहीं हमारी
प्रतीक्षा करना। अब वह
जैनुस्सनम को ले
कर पैदल चला।
एक बार फिर
उसने कहा, अब
भयानक स्थान शुरू
होता है। आप
किसी अजीब से
अजीब बात को
देख कर भी
डरिएगा नहीं। फिर वह
उसे ले कर
एक नदी के
तट पर आ
कर बैठ गया
और बोला, इस
नदी को पार
करके हमें अपने
उद्देश्य की प्राप्ति
होगी।
जैनुस्सनम
ने कहा, इतनी
बड़ी नदी हम
कैसे पार करेंगे?
यहाँ तो कोई
नाव भी नहीं
है। मुबारक ने
कहा, यहाँ अभी
जिन्नों के बादशाह
की भेजी हुई
जादू की नाव
आएगी। आप को
मैं फिर चेतावनी
देता हूँ कि
उसका माँझी कैसा
भी अजीब दिखे,
आप एक शब्द
भी न निकालें
और न भयभीत
हों। आप आश्चर्यवश
हो कर उससे
कुछ पूछताछ भी
न करें। नाव
पर चढ़ने के
बाद एक शब्द
भी आप के
मुख से निकला
कि तुरंत यह
नाव अथाह जल
में डूब जाएगी।
जैनुस्सनम ने कहा,
मैं बिल्कुल चुप
रहूँगा। और भी
जो बातें जरूरी
हों वह आप
मुझे बता दें
ताकि मैं उनका
ध्यान रखूँ।
वे
लोग यह बातें
कर ही रहे
थे कि उन्होंने
एक चंदन की
नाव, जिसमें नीला
रेशमी पाल लगा
हुआ था, अपनी
ओर आते देखी।
उस बड़ी नाव
का केवट एक
माँझी था जिसका
सिर हाथी का-सा था
और शेष शरीर
सिंह जैसा। नाव
किनारे पर आई
तो उसने एक-एक करके
दोनों को अपनी
सूँड़ से उठा
कर नाव में
बैठा दिया और
पलक झपकते ही
पार ले जा
कर उसी प्रकार
उन्हें दूसरे तट पर
उतार दिया। फिर
वह नाव अदृश्य
हो गई। मुबारक
बोला, अब हम
लोग जिन्नों के
देश में हैं।
यहाँ की सुंदरता
स्वर्गोपम है। देखिए,
कैसे लहललाते खेत
हैं जिनके चारों
ओर सुंदर फूल
और सब्जियाँ लगी
हैं। फलदार पेड़
की शाखाएँ फलों
के भार से
धरती छू रही
हैं। जगह-जगह
सुंदर पक्षी कलरव
कर रहे हैं।
जैनुस्सनम
भी उस स्थान
की शोभा देख
कर मग्न हो
गया। उसे लग
रहा था कि
उसकी रास्ते की
सारी थकन उतर
गई है, वह
बहुत देर तक
वहाँ की प्राकृतिक
सुषमा का आनंद
लेता रहा। फिर
दोनों आगे बढ़े
और एक दिशा
में चलने लगे।
काफी देर चलने
के बाद वे
एक किले के
पास पहुँचे। यह
किला हीरे से
निर्मित था। किले
के चारों ओर
बड़ी गहरी और
चौड़ी खाई थी।
खाई और किले
की दीवार के
बीच लंबे और
घने पेड़ थे
जिन्होंने किले को
लगभग छुपा रखा
था। किले के
मुख्य द्वार के
सामने खाई पर
बारह गज लंबा
और छह गज
चौड़ा सीपी का
पुल बना हुआ
था। मुख्य द्वार
पर भयानक जिन्नों
का पहरा बैठा
था ताकि बादशाह
की अनुमति के
बगैर कोई अंदर
न आ सके।
मुबारक
वहीं ठहर गया।
उसने जैनुस्सनम से
कहा, अगर हम
यहाँ से आगे
बढ़े तो यह
महाभयानक जिन्न हमें जीवित
नहीं छोड़ेंगे। अब
मैं हम दोनों
की रक्षा के
लिए मंत्र पढ़ूँगा
जिससे यहाँ जिन्न
हमारे समीप न
आ सकें। यह
कह कर मुबारक
ने अपनी कमर
से बँधा हुआ
एक थैला खोला।
उसमें चार पटके
थे। उसने एक
पटका अपनी कमर
और दूसरा अपनी
पीठ पर बाँधा।
बाकी दो पटके
उसने इसी तरह
बाँधने के लिए
जैनुस्सनम को दिए।
फिर उसने जमीन
पर दो चादरें
बिछाईं। उन चादरों
के कोनों और
किनारों पर पत्थर
रख कर उसने
उन्हें स्थिर कर लिया।
फिर वह जैनुस्सनम
से बोला, अब
मैं जिन्नों के
बादशाह का आह्वान
करता हूँ। उसी
का यह किला
है। अगर वह
यहाँ किसी भयानक
रूप में आएगा
तो उसका मतलब
यह होगा कि
वह हमारे आने
से प्रसन्न नहीं
है और हम
लोग बड़े दुख
में पड़ जाएँगे।
किंतु अगर वह
मानवीय रूप में
आया तो आप
की कामना पूर्ण
हो जाएगी। आप
इस बात का
ध्यान रखें कि
वह चाहे जो
रूप भी धर
कर आए, उसे
झुक कर सलाम
करें किंतु किसी
भी दशा में
उस चादर या
उन पटकों को
अपने शरीर से
अलग न होने
दें। यह शरीर
से अलग हुए
कि आपका शरीरांत
हो जाएगा। जिन्नों
के बादशाह के
आगमन पर आप
यह कहें कि
मेरे पिता का,
जो आप का
सेवक था, अब
देहांत हो चुका
है और जो
कृपा आप मेरे
पिता पर किया
करते थे वह
मुझ पर भी
करें। जब वह
पूछे कि मैं
तुम पर कौन-सी कृपा
करूँ तो आप
कहें कि मुझे
अपने महल के
तहखाने के लिए
नवीं मूर्ति भी
दे दीजिए।
इस
प्रकार मुबारक ने जैनुस्सनम
को सारी बातें
दुबारा समझाईं और फिर
मंत्र पढ़ने लगा।
कुछ ही देर
में बड़े जोर
से बादल गरजने
लगा और ऐसा
भयंकर शब्द हुआ
कि जान पड़ता
था कि जमीन
फट जाएगी। जैनुस्सनम
यह कांड देख
कर बहुत डरा।
उसने बाहरी तौर
पर तो शांति
रखी किंतु उसका
दिल जोरों से
धड़कने लगा। मुबारक
ने उसकी यह
दशा देखी तो
बोला, अब आपको
घबराने की जरूरत
नहीं। जितनी भयानकता
होनी थी हो
ली। अब यह
अँधेरा भी छँट
जाएगा और उजाला
हो जाएगा। ऐसा
ही हुआ। कुछ
ही क्षणों में
बादल, बिजली सब
गायब हो गए
और प्रकाश फैल
गया। उसके बाद
जिन्नों का बादशाह
एक सुंदर मनुष्य
के रूप में
प्रकट हुआ।
मुबारक
के समझाने के
अनुसार जैनुस्सनम ने खड़े
हो कर झुक
कर जिन्नों के
बादशाह को सलाम
किया। जिन्नों का
बादशाह मुस्कुराता हुआ उसके
समीप आया और
बोला, मेरे बेटे,
तुम्हारा स्वर्गीय पिता मेरा
बड़ा घनिष्ठ मित्र
था, मुझे उससे
बड़ा स्नेह था।
जब भी वह
मेरे पास आता,
मैं उसे हीरे
की एक सुंदर
मूर्ति भेंट में
देता। वह उसे
अपने साथ ले
जाता। इस प्रकार
मैंने उसे आठ
मूर्तियाँ दीं। मैंने
उससे यह भी
कहा कि तुम
नवीं मूर्ति के
लिए भी स्वर्ण-स्तंभ बनवाओ और
उस पर एक
सफेद रेशमी चादर
में अपने बेटे
के लिए संदेश
लिख कर छोड़
दो। तुमने वह
संदेश पढ़ा और
उसके अनुसार यहाँ
आए हो। मैंने
तुम्हारे पिता से
प्रतिज्ञा की थी
कि नवीं मूर्ति
मैं जैनुस्सनम को
दूँगा। नवीं मूर्ति
सुंदरता में पहले
की आठ मूर्तियों
से कहीं अच्छी
है। मैंने भी
अपने प्रण के
पालन हेतु वृद्ध
के रूप में
तुम्हें सपना दिया
था और मैंने
ही तुम्हारे पहले
महल में छुपा
हुआ खजाना तुम्हें
दिलवाया था और
तुमने अशर्फियों की
देंगें पाईं और
फिर अंदर के
कमरे में जा
कर उसे खोल
कर तुमने स्वर्ण-स्तंभ पर स्थापित
हीरक मूर्तियों को
देख कर और
फिर अपने पिता
द्वारा लिखित संदेश को
पढ़ा। मुझे मालूम
है कि उस
संदेश को पढ़
कर ही तुम
मुबारक के साथ
यहाँ आए हो।
उसके
बाद जिन्नों के
बादशाह ने कहा,
तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी
होगी और तुम्हें
तुम्हारी वांछित वस्तु मिलेगी।
अगर मैं तुम्हारे
पिता से उसका
वादा न करता
तो भी नवीं
मूर्ति तुम्हें ही देता।
लेकिन उससे पहले
तुम्हें मेरा एक
काम करना होगा।
तुम मेरे लिए
एक कन्या लाओ।
उसकी अवस्था पंद्रह
वर्ष की होनी
चाहिए। वह रूपवती
भी हो और
उसका हृदय भी
निर्मल हो। किंतु
मैं तुम्हें चेतावनी
देता हूँ, तुम
उसके साथ भूल
कर भी दुष्कर्म
न करना वरना
तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
जैनुस्सनम ने कहा,
मैं आपकी आज्ञानुसार
आपके उपभोग के
लिए एक पंद्रह
वर्ष की कन्या
जरूर लाऊँगा। किंतु
कठिनाई यह है
कि मैं उसका
वाह्य सौंदर्य तो
देख सकता हूँ
किंतु उसके अंतःकरण
का हाल मुझे
किस प्रकार ज्ञात
हो सकता है?
हम मनुष्य एक-
दूसरे के दिल
का हाल नहीं
जानते।
जिन्नों
का बादशाह मुस्कुरा
कर बोला, तुम
बुद्धिमान हो। तुम्हारी
बात ठीक है।
तुम मनुष्य तो
एक-दूसरे के
दिल का हाल
नहीं ही जानते,
हम जिन्न लोग
भी एक-दूसरे
के दिल की
बात नहीं जान
पाते। लेकिन मैं
तुम्हारी कठिनाई दूर करूँगा।
मैं तुम्हें एक
दर्पण दूँगा। इस
आईने से तुम्हें
हर एक कन्या
के अंतःकरण का
ज्ञान हो जाएगा।
जब तुम्हें कोई
पंद्रह वर्ष की
सुंदरी मिले तो
उसका रूप इस
शीशे में देखना।
यदि उसका अंतःकरण
निर्मल होगा तो
वह इस दर्पण
में भी सुंदरी
दिखाई देगी। किंतु
अगर उसका हृदय
मलिन होगा तो
वह इसमें कुरूप
दिखाई देगी। किंतु
उसकी पवित्रता अक्षुण्ण
रखने की जो
शर्त मैंने रखी
हैं मैं तुम्हें
उसकी याद दिलाता
हूँ। यह शर्त
टूटी और तुमने
उस कन्या को
खराब किया तो
मैं तुम्हारे प्राण
ले लूँगा। इस
बात में कोई
रियायत नहीं होगी।
जैनुस्सनम
ने कहा कि
मुझे आपकी शर्त
मंजूर है, मैं
कन्या को आपके
पास पवित्र स्थिति
में लाऊँगा। जिन्नों
के बादशाह ने
वह जादुई शीशा
उसे दे कर
कहा, बेटे, अब
जाओ। यही शीशा
तुम्हारे भाग्य को चमकाएगा।
जैनुस्सनम और मुबारक
दोनों ने जिन्नों
के बादशाह को
प्रणाम किया और
वह गायब हो
गया। यह दोनों
फिर नदी के
तट पर आए
जहाँ उस विचित्र
माँझी ने उन्हें
क्षण भर ही
में दूसरे तट
पर पहुँचा दिया।
फिर वे उस
जगह पर गए
जहाँ उनके सेवक
उनकी प्रतीक्षा में
थे। वहाँ जा
कर वे अपने
घोड़ों पर सवार
हुए और काहिरा
पहुँच गए।
काहिरा
में जैनुस्सनम ने
कुछ दिनों तक
आराम किया। तत्पश्चात
मुबारक से कहा
कि अब मैं
जिन्नों के बादशाह
के लिए कन्या
ढूँढ़ने जाता हूँ।
मुबारक ने कहा,
इसके लिए बाहर
जाना बेकार है।
काहिरा में जितनी
सुंदर कन्याएँ हैं
उतनी संसार में
कहीं नहीं। जैनुस्सनम
ने कहा, आप
की बात ठीक
है किंतु काहिरा
की सुंदरियाँ मिलें
कैसे? मुबारक ने
कहा, आप इसकी
चिंता न करें।
यहाँ एक बुढ़िया
रहती है। वह
सारे नगर की
कन्याओं की खबर
रखती है। मैं
उसे बुला कर
यह काम उसके
सुपुर्द करता हूँ।
मुझे आशा है
कि वह बगैर
किसी कठिनाई के
आपकी वांछित कन्या
ले आएगी। यह
कह कर मुबारक
ने उस बुढ़िया
को बुलाया। वह
महाधूर्त थी और
कुटनीपन के काम
में अति निपुण
थी। उसने दो-चार दिन
ही में बीसियों
पंद्रह वर्ष की
सुंदरियाँ ला कर
खड़ी कर दीं।
उन सब के
चेहरे तो सौंदर्य
में सूरज-चाँद
को शरमाते थे
किंतु जब जैनुस्सनम
ने उनका रूप
जादू के दर्पण
में देखा तो
हर एक को
कुरूप पाया, एक
भी लड़की ऐसी
नहीं मिली जो
उस दर्पण में
सुंदर दिखाई देती।
अब
तो मजबूरी में
दूसरी जगह तलाश
करना ही था।
जैनुस्सनम और मुबारक
दोनों बगदाद आए
और एक बड़ा-सा मकान
ले कर रहने
लगे। वे बड़ी
उदारता बरतते और रोजाना
सैकड़ों आदमी उनके
घर खाना खाते।
उस मुहल्ले में
मुराद नामक एक
ईर्ष्यालु व्यक्ति रहता था
जो प्रत्येक धनवान
से जलता था
क्योंकि वह स्वयं
निर्धन था। वह
जैनुस्सनम की उदारता
का यश सुन-सुन कर
कुढ़ता रहता था।
एक
दिन शाम की
नमाज के बाद
मसजिद में बैठ
कर मुराद ने
मुहल्लेवालों से कहा
- भाइयो, सुना है
हमारी गली में
एक आदमी रहने
लगा है जो
बेतहाशा धन लुटाता
है। शहर में
शायद ही कोई
ऐसा आदमी हो
जिसकी उसने सहायता
न की हो।
मुझे तो ऐसा
मालूम होता है
कि कोई चोर-डाकू है
वरना उसके पास
इतना धन कहाँ
से आया। हम
लोगों को सावधान
रहना चाहिए। खलीफा
को मालूम हुआ
कि हमारी गली
में कोई अपराधी
रहता है तो
हम सब भी
जाएँगे। लोगों ने कहा,
तुम ठीक कहते
हो। हमें इस
आदमी की शिकायत
कोतवाल से कर
देनी चाहिए। तुम
खुद ही यह
काम क्यों नहीं
कर देते? मुराद
बोला, अच्छी बात
है। कल मैं
ही कोतवाल से
उसकी शिकायत करूँगा।
मुराद
को पता नहीं
था किंतु उन
आदमियों के बीच
मुबारक भी बैठा
सारी बातें सुन
रहा था। दूसरे
दिन सुबह मुबारक
एक थैली में
पाँच अशर्फियाँ और
कुछ रेशमी थान
ले कर मुराद
के घर गया।
मुराद ने उसे
देख कर कटु
स्वर में पूछा,
तुम कौन हो
और यहाँ किस
लिए आए हो?
मुबारक ने अत्यंत
विनम्रता से कहा
कि हम दो
परदेशी हैं जो
आपके पड़ोस में
रहने लगे। फिर
उसने अशर्फियों की
थैली और रेशमी
थान उसे दे
कर कहा, मेरे
मालिक शहजादे ने
आपकी सच्चरित्रता की
ख्याति सुन कर
मुझे आपके पास
भेजा है और
कहलवाया है कि
यह तुच्छ भेंट
स्वीकार करें, मुझे अपना
सेवक समझें और
अवसर मिले तो
दर्शन दें।
यह
सुन कर मुराद
बिल्कुल पिघल गया।
उसने कहा, शहजादे
से कहिए कि
मैं इस बात
पर बड़ा लज्जित
हूँ कि अभी
तक आपकी भेंट
को न आ सका। कल
जरूर आऊँगा। फिर
नमाज के बाद
मसजिद में उसने
मुहल्लेवालों से कहा,
उस उदार व्यक्ति
के बारे में
मुझे भ्रम था।
अब मुझे मालूम
हुआ है कि
वह चोर-डाकू
नहीं बल्कि किसी
देश का राजकुमार
है। अब उसकी
शिकायत कोतवाल से करने
का कोई मतलब
नहीं है। अन्य
लोगों ने भी
मुराद से सहमति
प्रकट की।
दूसरे
दिन मुराद अच्छे
कपड़े पहन कर
जैनुस्सनम के पास
गया। जैनुस्सनम ने
उसकी बहुत खातिर-तवाजो की। मुराद
ने पूछा, आप
इस नगर में
किस उद्देश्य से
आए हैं? जैनुस्सनम
ने कहा, मैं
एक पंद्रह वर्ष
की अत्यंत रूपवती
कन्या चाहता हूँ
जिस का मन
भी उतना ही
निर्मल हो जितना
उस का मुख।
मुराद ने कहा,
ऐसी कन्या का
मिलना कठिन है
किंतु मेरी जानकारी
में एक ऐसी
लड़की है। उसका
पिता एक भूतपूर्व
राज्य मंत्री है।
उसने अपनी बेटी
की संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा खुद की
है। वह कन्या
अनिंद्य सुंदरी भी है।
चाहेंगे तो उसका
पिता उसका हाथ
सहर्ष आपके हाथ
में दे देगा।
जैनुस्सनम ने कहा,
लेकिन मैं उसे
पहले खुद देखूँगा।
मुझे शरीर के
सौंदर्य के साथ
मन का सौंदर्य
भी चाहिए।
मुराद
बोला, मुख दिखाने
की बात मैं
तय कर दूँगा
किंतु आप उसके
स्वभाव को कैसे
जानेंगे? स्वभाव तो बहुत
दिन साथ रहने
पर ही जाना
जाता है। जैनुस्सनम
ने कहा, मैं
किसी का मुख
देख कर ही
उसके मन की
बात जान लेता
हूँ। मुराद ने
कहा कि मैं
आज ही जा
कर उस लड़की
के पिता से
बात करता हूँ।
दूसरे दिन मुराद
के साथ जा
कर जैनुस्सनम कन्या
के पिता से
मिला। भूतपूर्व मंत्री
ने जैनुस्सनम के
परिवार आदि के
बारे में पूछताछ
कर अपनी पुत्री
के विवाह की
सहमति प्रकट की
और पुत्री को
बुला कर कहा,
बेटी, दो क्षणों
के लिए इन्हें
अपना चेहरा दिखा
दो।
लड़की
ने चेहरे से
नकाब उठाया तो
जैनुस्सनम उसका रूप
देख कर चकाचौंध
हो गया और
सोचने लगा कि
यह तो मेरी
ही हो कर
रहे तो अच्छा
हो। फिर उसने
जादुई शीशे में
उसका चेहरा देखा।
दर्पण में भी
वह पूर्ण सुंदरी
दिखाई दी। यानी
जैनुस्सनम को ऐसी
ही लड़की मिल
गई जैसी ढूँढ़ने
वह निकला था।
दोनों का विवाह
तय हो गया।
दो-चार दिनों
में भूतपूर्व मंत्री
ने काजी और
गवाहों को बुला
कर निकाह पढ़वा
दिया। जैनुस्सनम ने
लाखों के जेवर
चढ़ावे में दिए
और भूतपूर्व मंत्री
ने भी भारी
दहेज दे कर
कन्या को विदा
कर दिया।
जैनुस्सनम
ने भी इस
विवाह के उपलक्ष्य
में बगदाद के
प्रमुख व्यक्तियों को भोज
दिया। फिर मुबारक
ने उससे कहा
कि अब हमें
यहाँ रहने की
आवश्यकता नहीं है,
वापस काहिरा चलना
चाहिए। जैनुस्सनम ने कहा,
भाई, अब मेरा
काहिरा जाने को
जी नहीं चाहता।
वहाँ जा कर
अपनी पत्नी को
मुझे जिन्नों के
बादशाह को दे
देना पड़ेगा। मैं
चाहता हूँ कि
उसे ले कर
अपने देश चला
जाऊँ और उसके
साथ आराम से
रहूँ। मुबारक ने
कहा, ऐसी बात
मन में भी
न लाइए। याद
रखिए कि जिन्नों
के बादशाह से
जो प्रतिज्ञा आपने
की है उसे
भंग किया तो
वह आपको जीवित
नहीं छोड़ेगा। आप
अपनी पत्नी से
संभोग करने के
पहले ही काल
के ग्रास बन
जाएँगे। अब आपके
लिए यही उचित
है कि अपने
चित्त को दृढ़
करें और अपनी
इच्छाओं पर संयम
रख कर इस
कन्या को जिन्नों
के बादशाह को
सौंप दें। उसके
प्रसन्न रहने ही
में आपकी हर
तरह भलाई हैं।
जैनुस्सनम
ने कुछ देर
विचार करके कहा,
आप की बात
बिल्कुल ठीक है।
मैंने तय किया
है कि इस
कन्या के साथ
शारीरिक संपर्क नहीं करूँगा।
किंतु संभव है
कि बाद में
मेरा चित्त डाँवाडोल
हो जाए। इसलिए
आप इस कन्या
को अपने जिम्मे
रखें और रास्ते
भर मुझे उसका
मुँह न देखने
दें। इसके बाद
मुबारक ने यात्रा
की तैयारी पूरी
की और सारे
साज-सामान के
साथ काहिरा होते
हुए जिन्नों के
देश की ओर
यह सब लोग
चले। सुंदरी ने
जब यह देखा
कि मेरा पति
मेरे सामने नहीं
आता तो उसने
एक दिन मुबारक
से इस बारे
में प्रश्न किया।
मुबारक ने कहा,
सुंदरी, तू अपने
पति को कभी
नहीं देख सकेगी।
उसने तुझ से
विवाह अपनी पत्नी
बनाने के लिए
नहीं बल्कि जिन्नों
के बादशाह को
देने के लिए
किया था। वह
तो तुम्हें बहुत
चाहता है किंतु
अगर उसने तुम्हें
जिन्नों के बादशाह
को न दिया
तो उसके हाथ
से मारा जाएगा।
वह यह सुन
कर रोने लगी
और बोली, तुम
लोग कयामत में
खुदा को क्या
मुँह दिखाओगे? तुम
विवाह का ढोंग
रचा कर मुझे
जिन्नों के हाथों
से मरवाने के
लिए लाए हो।
वे दोनों भी
दुखी हुए किंतु
कर ही क्या
सकते थे।
जैनुस्सनम
ने कन्या को
जिन्नों के बादशाह
को भेंट किया
तो वह उसे
देख कर बड़ा
खुश हुआ और
बोला, मैं तुम
से बहुत खुश
हूँ कि तुम
मेरे लिए ऐसी
अच्छी कन्या लाए।
अब तुम तुरंत
अपने देश जाओ।
वहाँ तुम्हें तहखाने
में नवें खंभे
पर वांछित हीरक
मूर्ति मिलेगी। जैनुस्सनम उससे
विदा हो कर
मुबारक के साथ
काहिरा गया, फिर
कुछ दिन वहाँ
रह कर बसरा
की ओर रवाना
हुआ। इस सारे
अरसे में वह
अपनी सुंदरी पत्नी
को याद करके
रोता रहा जिसे
उसने मरने के
लिए जिन्नों के
बादशाह को दे
दिया था और
वह भी उसके
और उसके पिता
के साथ छल
कर के। सारे
रास्ते शोकमग्न रह कर
वह बसरा पहुँचा।
उसके
मंत्री और सभासद
उसकी वापसी पर
बहुत खुश हुए।
सब से मिलने-जुलने के बाद
वह अपनी माँ
के महल में
गया और उसे
यात्रा का पूरा
वृत्तांत बताया और कहा
कि बगदाद के
भूतपूर्व मंत्री की पुत्री
से विवाह करके
उसे जिन्नों के
बादशाह को दे
आया हूँ। बुढ़िया
ने अत्यंत प्रसन्न
हो कर कहा,
अब तुम्हें जरूर
नवीं हीरे की
मूर्ति मिल जाएगी।
अब तुम उस
जगह चलो जहाँ
पहलेवाली आठ मूर्तियाँ
हैं। जैनुस्सनम ने
मुँह से तो
कुछ न कहा
किंतु मन में
कहता रहा कि
ऐसी सुंदर जीवित
मूर्ति को खोने
के बाद मैं
मुर्दा मूर्ति ले कर
क्या करूँगा। इसी
कुढ़न को लिए
हुए माँ के
साथ तहखाने में
आया। किंतु वहाँ
जा कर देखा
कि नवें खंभे
पर हीरे के
बदले एक सुंदरी
खड़ी है। पास
जा कर देखा
तो वही कन्या
थी जिससे उसने
विवाह किया था।
जैनुस्सनम
उसे देख कर
स्तंभित रह गया।
सुंदरी बोली, तुम्हें तो
दुख हो रहा
होगा कि इसे
तो मैं मरने
के लिए छोड़
आया था, यह
फिर मेरे सिर
पड़ गई। जैनुस्सनम
ने कहा, भगवान
ही जानता है
कि तुम्हें छोड़ने
का मुझे कितना
दुख था। किंतु
मैं वचनबद्ध था।
और फिर इस
बात का डर
था कि वचन
तोड़ने पर जिन्नों
का बादशाह मुझे
मार डालेगा। मैंने
तो रास्ते में
भी कई बार
सोचा कि वचन
तोड़ कर तुम्हें
अपने महल में
ले आऊँ, किंतु
मेरे वयोवृद्ध मित्र
ने मुझे इस
बात से रोके
रखा। मुझे नवीं
मूर्ति की बिल्कुल
चिंता नहीं थी
किंतु मुबारक ने
जिन्नों के बादशाह
को नाराज करने
से मुझे बाज
रखा। अब मैंने
तुम्हें बैठे ही
पा लिया है।
अब मुझे नवीं
मूर्ति की तो
क्या, सारे संसार
के धन-दौलत
और राजपाट की
कोई परवाह नहीं
है।
जैनुस्सनम
की माँ आश्चर्य
के साथ यह
सब बातें देख-सुन रही
थी कि अचानक
एक घनघोर शब्द
हुआ और सारा
भवन हिलने लगा।
जैनुस्सनम की माँ
यह देख कर
और घबराई और
चीख पड़ी। इतने
में जिन्नों का
बादशाह मनुष्य रूप में
प्रकट हुआ और
जैनुस्सनम की माँ
से बोला, मलिका,
मैं तुम्हारे पुत्र
से ही स्नेह
रखता था। मैं
इसे सफल बादशाह
देखना चाहता था
इसलिए मैंने तरह-तरह से
इसके शौर्य, विनय,
आत्मसंयम और प्रतिज्ञा-पालन की
परीक्षा ली। यह
सुंदरी और सच्चरित्र
कन्या भी मैंने
अपने लिए नहीं,
वास्तव में तुम्हारे
पुत्र के लिए
चुनी थी। इसलिए
मैंने इसे यहाँ
पहुँचा दिया और
यह लो, नवें
खंभे पर लगाने
के लिए यह
हीरक मूर्ति भी
लो। यह कह
कर उसने खंभे
पर हीरक मूर्ति
लगाई और गायब
हो गया। सब
लोग बहुत खुश
हुए और राज्य
में कई दिनों
तक बादशाह के
विवाह का महोत्सव
रहा।
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