(पिछिली पोस्ट से जारी……)
वह बेचारी अपने कारागार
की तंग कोठरी में रात-दिन विलाप किया करती। उसी कोठरी से लगा हुआ खलीफा के आवास का
आँगन था। वह अक्सर शाम को उस आँगन में टहलता और उसी समय अपनी प्रशासनिक समस्याओं
पर विचार किया करता था। एक शाम को वह वहाँ टहल रहा था कि उसे अत्यंत करुण ध्वनि
सुनाई दी। वह उसे सुन कर खड़ा हो गया। उसने ध्यान से सुना तो अपनी प्रेयसी फितना
की आवाज पहचानी। वह कान लगा कर सुनने लगा। फितना रो-रो कर कह रही थी, अभागे गनीम,
तू कहाँ है? तूने मेरी इतनी सेवा की और मेरी भलाई की और उसका बदला यह मिला कि
आर्थिक रूप से बिल्कुल बरबाद हो गया। मालूम नहीं तू अब जिंदा है या खलीफा के डर से
मर गया।
कुछ देर बाद उसकी आवाज
फिर आई, ओ खलीफा हारूँ रशीद, तूने निरपराध गनीम पर ऐसा अत्याचार किया जैसा किसी
बादशाह ने किसी पर नहीं किया होगा। क्या तुझे ईश्वर का भय नहीं है? कयामत में जब
सारे लोग ईश्वर के समक्ष होंगे और जब उनसे उनके भले-बुरे कामों की पूछताछ की जाएगी
उस समय तू अपने इस महाअन्याय का क्या औचित्य देगा? यह कहने के बाद फितना जोरों से
विलाप करने लगी। खलीफा यह सुन कर बड़ी चिंता में पड़ा। उसने सोचा कि अगर फितना सच
कह रही है और गनीम निर्दोष है तो वास्तव में उस पर और उससे भी अधिक उसकी बहन पर
अन्याय हुआ। खलीफा के लिए जो भगवान का प्रतिनिधि होता है ऐसा अन्याय किसी प्रकार
उचित नहीं है।
वह अपने कक्ष में गया और
वहाँ राजमहल के मुख्य अधिकारी मसरूर को बुलाया और उसे आदेश दिया कि फितना को
कैदखाने से निकाल कर मेरे पास ले आओ। मसरूर को फितना से स्नेह था। वह यह आदेश पा
कर बड़ा प्रसन्न हुआ और फितना के पास जा कर बोला, सुंदरी, चलो, तुम्हें खलीफा ने
बुलाया है। मुझे विश्वास है कि अब तुम कैद से छूट जाओगी। फितना तुरंत ही तैयार हो
गई और मसरूर ने उसे खलीफा के सामने पेश कर दिया। खलीफा ने उसे देखते ही पूछा,
तुमने यह कैसे कहा कि कयामत में मैं ईश्वर को मुँह नहीं दिखा सकूँगा। मैंने किस निरपराध
व्यक्ति को हानि पहुँचाई है? तुम्हें मालूम है कि मैं न्याय के लिए प्रसिद्ध हूँ
और किसी पर भी अन्याय नहीं करता न किसी और को अन्याय करने देता हूँ।
फितना समझ गई कि वह अभी
जो विलाप कर रही थी उसे खलीफा ने सुन लिया है। वह जमीन से सिर लगा कर बोली, मालिक,
मेरे मुँह से कुछ अनुचित निकला हो तो मैं क्षमा चाहती हूँ। यह जरूर कहूँगी कि
दमिश्क का व्यापारी गनीम रंचमात्र भी अपराधी नहीं है। उसने मेरे प्राण बचाए और
मुझे अपने घर में आराम से रखा। पहले वह मुझे देख कर मेरी ओर आकृष्ट हुआ था किंतु
जब उसे मालूम हुआ कि मैं आपकी सेवा में हूँ तो उसका रवैया बिल्कुल बदल गया। उसने
मुझ से स्पष्ट कहा कि शासक की संपत्ति प्रजाजन के लिए त्याज्य है। उसके बाद वह
मुझसे पवित्र प्रेम करता रहा है, अपना बिस्तर हमेशा दूसरे कमरे में लगवाता रहा है।
यह सुन कर खलीफा ने फितना को जमीन से उठाया और कहा कि तुम अपना पूरा हाल बताओ कि
मेरी अनुपस्थिति में तुम्हें क्या-क्या अनुभव हुए हैं।
फितना ने आद्योपरांत अपना
वृत्तांत सुनाया। खलीफा ने फितना से कहा, तुम्हारी बात के ढंग से लग रहा है कि तुम
झूठ नहीं बोल रही हो। परंतु मेरी समझ में यह नहीं आया कि जब मैं इतने दिनों से आया
हुआ हूँ तो तुम अब तक चुप क्यों रही और फिर अपना हाल भेजा भी तो लिख कर भेजा। इस
देरी का क्या कारण है? फितना बोली, सरकार, इसका कारण यह है कि एक महीने से अधिक
हुआ गनीम अपना तमाम माल-असबाब मेरे सुपुर्द करके बाहर चला गया। इस बीच मेरी किसी
आदमी से बात ही नहीं हुई जो आप के आगमन का समाचार देता। बहुत दिनों में अपनी दासी
द्वारा आप का समाचार ज्ञात हुआ तो फौरन ही मैंने पत्र भेजा।
खलीफा ने कहा, अब मुझे
वास्तव में यह महसूस हो रहा है कि मैंने गनीम और उसकी माँ और बहन के साथ घोर
अन्याय किया है। मैं चाहता हूँ कि इस अन्याय का निराकरण करने के लिए उसका कुछ
उपकार करूँ। तुम्हारे विचार से मुझे इस दशा में कार्य करने के लिए क्या करना
चाहिए। फितना ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया कि खलीफा का क्रोध दूर हो गया है
और वह दया दर्शाना चाहता है। उसने सिर झुका कर कहा, आप यह मुनादी करवा दीजिए कि
गनीम का अपराध क्षमा किया गया। वह यह मुनादी सुनेगा तो वापस आ जाएगा। खलीफा ने
कहा, ठीक है, मैं ऐसी ही घोषणा करवाए देता हूँ। उसका जो नुकसान हुआ है उससे दुगुना
उसे दे दूँगा। और जब वह आएगा तो तुम्हारा विवाह भी उसके साथ कर दूँगा। खलीफा ने यह
घोषणा तो करवा दी किंतु उसका कोई फल नहीं हुआ। न गनीम आया न किसी और ने उसका
समाचार दिया। इस पर फितना ने खलीफा से कहा कि आप अनुमति दें तो मैं स्वयं गनीम को
खोजने निकलूँ। खलीफा ने अनुमति दे दी।
फितना दूसरे दिन सवेरे ही
एक तोड़ा अशर्फियों का ले कर निकली। बड़ी मसजिद में जा कर उसने संतों और फकीरों को
दान दिया और उनसे अपने मनोरथ की सिद्ध के लिए आशीर्वाद प्राप्त किए। फिर वह
जौहरियों के बाजार में गई और एक दलाल से मिली। यह दलाल बहुत ही धर्मप्राण व्यक्ति
था और विदेशियों तथा बीमारों को भरसक सहायता किया करता था। इसीलिए कई धनवान व्यक्ति
उसके पास पुण्यार्जन के निमित्त धन भेजा करते थे और जिस दीन-दुखी को सहायता चाहिए
होती थी वह उसके पास आया करता था।
फितना ने उसे अशर्फियों
की थैली दे कर कहा कि इस धन को भी दीन-दुखियों के काम में लगा देना। दलाल ने उसके
राजसी वस्त्राभरण देखे तो समझ गया कि यह खलीफा की पत्नी या प्रेयसी है। उसने सिर
झुका कर कहा, सुंदरी, मैं तुम्हारी आज्ञा से बाहर नहीं हूँ किंतु अच्छा होगा कि आप
अपने हाथों ही से यह पुण्य कार्य करें। आप यदि मेरे घर चलने का कष्ट करें तो बहुत
अच्छा रहेगा। मेरे यहाँ दो स्त्रियाँ आई हैं जो अत्यंत दीन दशा में हैं।
वे कल ही इस नगर में आई
हैं और यहाँ उनकी कोई जान-पहचान नहीं है। मैंने उन्हें इसलिए अपने घर में ठहराया
है कि वे अत्यंत दयनीय दशा में थीं। उनके वस्त्र मैले-कुचैले और फटे-पुराने थे।
धूप में चलने के कारण उनका रंग सँवला गया था और भूख-प्यास ने उनके शरीरों को अति
दुर्बल कर दिया था और वे हड्डियों का ढाँचा भर रह गई थीं। मैंने उन्हें अपनी पत्नी
के सुपुर्द कर दिया कि वह उनकी अच्छी तरह देखभाल करे। मेरी पत्नी ने उन्हें गरम
पानी से नहलाया और सुखद शैय्या बिछवा कर उन्हें आराम करने को कहा और पहनने के लिए
उचित वस्त्रादि दिए। उनकी ऐसी खराब हालत थी कि मैंने उनसे उनका हाल पूछना ठीक नहीं
समझा। अब आप उचित समझें तो मेरे घर पधार कर उनका हाल पूछ लें।
दलाल ने अपने घर का पता
बताया तो फितना ने अपना शाही टट्टू तुरंत उस ओर दौड़ा दिया। दलाल भी उसके साथ
दौड़ने लगा। फितना ने कहा, आप इस प्रकार न दौड़िए। आप जैसे सज्जन व्यक्ति के साथ
मैं यह व्यवहार नहीं करना चाहती। आप अपना एक दास मेरे साथ कर दीजिए और स्वयं बाद
में धीरे-धीरे आइए। दलाल ने अपना दास साथ कर दिया और फितना दलाल के घर जा कर सवारी
से उतरी। दास ने अंदर जा कर सूचना दी कि एक बादशाही महल की महिला मिलने आई है।
दलाल की पत्नी यह सुन कर जल्दी से उठी कि घर के दरवाजे पर जा कर राजमहिषी का
स्वागत करे। फितना ने इसका अवसर न दिया। वह स्वयं दास के पीछे-पीछे चल कर जनानखाने
में आ गई। दलाल की पत्नी उसके पाँव चूमने को झुकी। फितना ने यह भी न करने दिया।
उसका सिर उठा कर वह बोली, महाभागे, मैं उन दो परदेशी स्त्रियों को देखने आई हूँ जो
कल आपके घर पर आई हैं। दलाल की पत्नी उसे ले कर आगंतुकाओं की चारपाइयों के पास आ
गई।
फितना ने उनके पास जा कर
कहा, देवियो, मैं आप लोगों का हाल-चाल पूछने और आपकी सेवा करने के लिए आई हूँ। वे
स्त्रियाँ गनीम की माँ और बहन थीं। माँ ने फितना को आशीष दी, भगवान तुम्हें इस
सत्कार्य का भरपूर फल दे। हम लोगों पर तो ऐसी आपदा पड़ी है जो कि भगवान शत्रु पर
भी न डाले। यह कह कर वह रोने लगी। उसे रोते देख कर फितना और दलाल की पत्नी की
आँखों में आँसू आ गए। फिर फितना ने कहा, माताजी, आप कृपया अपना वृत्तांत मुझे
बताएँ, मैं भरसक आपकी सहायता करूँगी।
गनीम की माँ ने कहा,
बेटी, खलीफा की प्रेयसी फितना हमारे दुर्भाग्य का कारण बन गई है। फितना यह सुन कर
भी चुप ही रही और ध्यानपूर्वक प्रौढ़ा की बात ऐसे सुनने लगी जैसे फितना को जानती
ही न हो। गनीम की माँ ने कहा, मैं दमिश्क के प्रसिद्ध व्यापारी स्वर्गीय अय्यूब की
पत्नी हूँ। मेरा पुत्र गनीम व्यापार के लिए बगदाद आया था। वहाँ उस पर फितना को
भगाने का आरोप लगाया गया और खलीफा ने उसके वध की आज्ञा दी। लेकिन वह न मिला तो खलीफा
ने दमिश्क के हाकिम को आदेश दिया कि गनीम की माँ और बहन को तीन दिन बीच शहर में
कोड़े मारे जाएँ और घर का सामान लुटवा दिया जाए और घर गिरवा कर जमीन के बराबर करवा
दिया जाए। हाकिम ने ऐसा ही किया और तीन दिन तक हम माँ-बेटी को पिटवा कर दमिश्क से
निकाल दिया। इस सब पर भी हम दोनों को अपने भाग्य से कोई शिकायत नहीं रहेगी अगर
मेरा प्यारा बेटा हमें देखने को मिल जाए। खलीफा की प्रेयसी के कारण हम पर और हमारे
पुत्र पर जो कुछ अन्याय हुआ है वह हम खुशी से और हमेशा के लिए माफ कर देंगे और
हमें उससे पूरी सहानुभूति और पूरा प्यार हो जाएगा अगर हमारा प्यारा गनीम हमें मिल
जाए।
फितना बोली, माताजी, मैं
ही वह अभागी फितना हूँ जो तुम्हारे दुर्भाग्य का कारण बनी। किंतु मेरे दुर्भाग्य
से आप लोगों की जितनी प्रतिष्ठा नष्ट हुई है भगवान चाहेगा तो उस से दुगुनी बनेगी
और जो कुछ तुम्हारी धन हानि हुई है उसके बदले कई गुना धन तुम्हें मिलेगा। मेरी बात
पर खलीफा ने विश्वास कर लिया है और मुनादी करवा दी है कि गनीम का अपराध क्षमा कर
दिया गया और गनीम खलीफा के दरबार में हाजिर हो। माताजी, अब तुम धीरज रखो। खलीफा अब
तुम लोगों से कुपित नहीं है। वह गनीम से मिलना चाहता है। वह चाहता है कि जो अन्याय
उससे गनीम पर हुआ है उसका पूरा बदला उसे काफी इनाम-इकराम दे कर कर दे। उसने मुझ से
यह भी कहा है कि गनीम आएगा तो मैं तेरा विवाह उसके साथ कर दूँगा। आज से तुम मुझे
भी अपनी बेटी समझो।
गनीम की माँ यह सुन कर
पहले तो स्तंभित रही फिर खुशी के आँसू बहाने लगी। उसने उठ कर फितना को गले लगा
लिया और रोने लगी। फितना भी उस से चिमट कर रोने लगी। फिर गनीम की माँ के साथ
अलकिंत के पास गई और उसे गले लगा कर प्यार किया। फिर उन दोनों को धीरज बँधाते हुए
कहने लगी, यहाँ पर गनीम का जो कुछ धन था उसका नुकसान नहीं हुआ है। वह सुरक्षित है
और तुम लोगों को पूरा का पूरा मिलेगा यद्यपि मैं जानती हूँ कि धन से तुम्हारी
तसल्ली नहीं होगी क्योंकि तुम गनीम को पाना चाहती हो। भगवान ने चाहा तो वह भी
तुम्हें आ मिलेगा। भगवान के लिए कोई बात कठिन नहीं है। जब उसने तुम पर इतनी अनुकंपा
की है तो गनीम का तुम से आ मिलना क्या मुश्किल है।
यह लोग यह बातें कर ही
रही थीं कि दलाल आ गया और बोला, कुछ देर पहले मैंने देखा कि एक ऊँटवाला एक निर्बल
रोगी को कजावे में रस्सी से बाँध कर यहाँ के बड़े औषधालय में लाया है। मैंने और
ऊँटवाले ने उसे ऊँट से कजावे समेत उतारा। हमने बहुत कुछ इसका हाल पूछा परंतु उसने
रोने के सिवा और कोई जवाब नहीं दिया। मैंने उसे नितांत शक्तिहीन देखा तो यहाँ ले
आया और उसे अपने बगलवाले मकान में उतारा। मैंने उसे साफ कपड़े पहनाए हैं और बाजार
से उसके लिए परहेजी खाना मँगवाया है। खाना खा कर शायद उसे बोलने की ताकत आ जाए।
फिर उनका हाल पूछ कर एक हकीम को लाऊँगा कि उसका ठीक इलाज हो सके।
फितना ने यह सुना तो बोल
उठी, महोदय, मुझे भी उस बीमार के पास ले चलिए क्योंकि मैं भी उस रोगी को देखना
चाहती हूँ। दलाल फितना को वहाँ ले गया। गनीम की माता ने कहा, इस धर्मात्मा दलाल के
पास दूर-दूर से दीन-दुखी आया करते हैं। बेटी, यह रोगी कहीं तुम्हारा भाई ही न हो।
फितना जब उस मकान में पहुँची तो देखा कि एक नौजवान मरीज पलंग पर पड़ा है, उसके बदन
की हड्डियाँ भर रह गई हैं, उसका चेहरा बिल्कुल पीला और भयानक हो गया है और उसकी आँखों
से निरंतर आँसू बह रहे हैं। फिर भी हृदय की भावनाओं ने अनजाने ही जोर मारा तो उसके
पास झपट कर पहुँची और गौर से देखा तो पहचाना कि यह गनीम ही है। वह रो कर कहने लगी,
हाय गनीम, तुम्हारी यह दशा। गनीम ने आँखें खोलीं और ध्यान से उसे देख कर बोला, अरे
सुंदरी, तुम यहाँ। और यह कह कर बेहोश हो गया।
अब दलाल आगे बढ़ा। उसने
फितना से कहा, आप अभी यहाँ से हट जाइए। कहीं ऐसा न हो कि आपको देख कर हर्षातिरेक
के मारे मर जाए। फितना चली गई तो दलाल ने गुलाबजल छिड़क कर गनीम को सचेत किया और
उसे एक शक्तिवर्धक शर्बत पिलाया। वह होश में आया तो चारों ओर देख कर बोला, सुकुमारी,
तुम कहाँ हो? तुम वास्तव में मेरे सामने आई थी या मैंने तुम्हें स्वप्न में देखा
था? दलाल बोला, यह स्वप्न नहीं, सत्य था। अब मुझे मालूम हुआ कि तुम्हीं गनीम हो।
खलीफा ने मुनादी करवाई है कि तुम्हारा अपराध क्षमा किया गया। तुम धैर्य रखो।
तुम्हारी साथिन तुम्हें सब कुछ बताएगी। मैं तुम्हारे लिए भरसक प्रयत्न करूँगा।
फिर दलाल दवा आदि के लिए
चला गया। इधर फितना गनीम की माँ और बहन के पास गई और उसने दोनों को बताया कि
आगंतुक रोगी गनीम ही है। गनीम की माँ वह सुन कर अपनी खुशी न सँभाल सकी और बेहोश हो
गई। दलाल भी दवा लेने के पहले किसी काम से वहाँ आया था। फितना और दलाल के प्रयत्न
से वह होश में आई और कहने लगी कि मुझे तुरंत मेरे बेटे के पास ले चलो। दलाल ने उसे
रोका और कहा, यह ठीक नहीं रहेगा। बहुत कमजोर है। तुम्हारी दशा देख कर उसे दुख होगा
और उसकी हालत और खराब हो जाएगी। इसलिए तुम अभी उसके पास न जाओ। माँ ने यह बात मान
ली।
फितना ने कहा, माता जी,
चिंता न करें। मैं और आप साथ-साथ ही गनीम के पास चलेंगे। मैं इस समय विदा लेती
हूँ। महल में जा कर मुझे खलीफा को गनीम के मिलने का समाचार भी देना है। यह कह कर
वह खलीफा के महल की ओर चल दी। महल में जा कर उसने खलीफा के पास संदेश भिजवाया कि
मैं तुरंत ही आपको एक महत्वपूर्ण संदेश एकांत में देना चाहती हूँ। खलीफा दरबार से
उठ कर अंदर आया। फितना ने उसके पाँव चूम कर कहा, सरकार, गनीम और उसकी माँ-बहन सभी
मिल गए हैं। खलीफा को यह सुन कर आश्चर्य और हर्ष हुआ। उसने कहा, भाई, तुमने तो
कमाल कर दिया। कैसे उन लोगों का पता लगाया? फितना ने दलाल से मिलने और उसके घर जा
कर पहले गनीम की माँ-बहन और फिर स्वयं गनीम से मिलने का हाल कहा और बताया कि
यद्यपि दोनों महिलाएँ कठिनाइयों के कारण इस समय कृशगात हो रही हैं किंतु बड़ी
सुंदर हैं। खलीफा ने मन में निश्चय किया कि उन्हें देखूँगा और उनके सारे अपमान की
भरपाई कर दूँगा।
उसने फितना से कहा, मैं
तुम्हें गनीम के साथ जरूर ब्याह दूँगा। अब तुम जाओ उन सब को यहाँ लाओ। दूसरे दिन
सुबह फितना अधीरतापूर्वक दलाल के घर पहुँची और गनीम का हाल पूछा। दलाल ने कहा,
क्षमादान की बात सुन कर उसकी दशा सँभल गई और अब उसे आपके वियोग के अलावा कोई कष्ट
नहीं है। हाँ, वह यह लालसा रखता है कि शीघ्रातिशीघ्र आपको और अपनी माँ-बहन को,
जिनका उल्लेख मैंने कर दिया है, देखे।
यह सुन कर फितना पहले
अकेली ही गनीम के पास गई, उसकी माँ और बहन को उसने कमरे के बाहर ही छोड़ दिया और
कहा कि मैं बुलाऊँ तब अंदर आना। फितना के साथ दलाल भी था। उसने कहा, दोस्त, यही वह
सुंदरी है जिसे देख कर कल तुम अचेत हो गए थे और बाद में कह रहे थे कि शायद मैंने
स्वप्न देखा है। अब इससे अच्छी तरह मिलो। गनीम ने फितना की ओर देखा और कहा, मेरी
प्यारी मित्र, पहले तुम यह बताओ कि तुम महल छोड़ कर मुझसे मिलने किस तरह आई। मैं
तो समझता हूँ कि खलीफा एक क्षण को भी अपने पास से जाने नहीं देता। उसने तुम्हें
कैसे आने दिया? फितना ने कहा कि मैं खलीफा की पूर्ण अनुमति से यहाँ आई हूँ और उसने
मुझसे यह भी वादा किया है कि तुम्हारे साथ मेरा विवाह करवा देगा।
गनीम यह सुन कर बहुत खुश
हुआ और बोला, तुम सच कहती हो कि खलीफा तुम्हारा मेरे साथ विवाह करा देगा? क्या
इतनी सुखदायी बात संभव है? फितना ने कहा, इसमें आश्चर्य की तो बात ही नहीं है।
खलीफा ने तुम्हें मरवा देने की जो आज्ञा दी थी वह गलत संदेह के आधार पर थी। जब तुम
उसके हाथ न लगे तो उसने दमिश्क के हाकिम को आदेश दिया कि दमिश्कवाला तुम्हारा घर
खुदवा कर जमीन के बराबर करवा दिया जाए, तुम्हारी संपत्ति लुटवा दी जाए और तुम्हारी
माँ और बहन को तीन दिन तक सड़कों पर कोड़े लगवा कर दमिश्क से निकलवा दिया जाए। बाद
में जब उसे मुझ से मालूम हुआ कि उसके सम्मान के ख्याल से तुमने मुझसे संबंध
स्थापित नहीं किया था तो वह अपने जल्दबाजी में लिए हुए अन्याय पर लज्जित हुआ और अब
सोच रहा है कि जैसे भी हो सके अपने अन्याय का प्रतिकार करे।
गनीम ने विस्तार से अपनी
माँ और बहन के बारे में पूछा। फितना ने बताया तो वह रोने लगा। फितना ने कहा, जो हो
गया उसे भूल जाओ। अब रोने की जरूरत नहीं, तुम्हारी माँ और बहन यहीं हैं। गनीम ने
कहा कि उन्हें अंदर क्यों नहीं लाती? फितना ने बुलाया तो दोनों अंदर दौड़ी आईं और
गनीम को गले लगा कर देर तक रोती रहीं। दलाल ने उन सभी को धीरज बँधाया। फिर गनीम ने
अपना पूरा हाल बताया। उसने कहा, खलीफा के भय से बगदाद से भाग कर मैं एक गाँव में
जा कर छुपा रहा। वहाँ मैं बीमार हो गया। मैं मसजिद में असहाय पड़ा रहता। एक किसान
को मुझ पर दया आई और वह मुझे उठा कर अपने घर ले गया। जहाँ तक उससे हो सका उसने
मेरी दवा-दारू कराई। किंतु जब मेरा रोग बढ़ता ही गया तो उसने एक ऊँटवाले को किराया
दे कर कहा कि इस रोगी को बगदाद के बड़े शफाखाने में पहुँचा दे जहाँ बड़े-बड़े हकीम
इसका इलाज करेंगे। ऊँटवाले ने मुझे रस्सियों से कजावे से बाँध दिया क्योंकि मुझ
में बैठने की शक्ति भी नहीं थी और मैं ऊँट से गिर जाता। इसके बाद फितना ने
सविस्तार अपना हाल बताया कि किस तरह खलीफा ने उसकी काल्पनिक कब्र पर मातम किया,
कैसे उसने महल में पत्र भिजवाया, कैसे वह कैद में डाली गई और फिर दुबारा कैसे
खलीफा की निगाहों में चढ़ी। गनीम की माँ और बहन ने भी अपना हाल बताया। फिर फितना
ने कहा, अब हम सभी को दयामय भगवान को धन्यवाद देना चाहिए कि हम सब पर मुसीबत डाल
कर हमें उससे बाहर निकाला।
दो-चार दिन में गनीम का
रोग पूर्णतः जाता रहा और फितना ने सोचा कि उसे खलीफा के सामने पेश किया जाए, लेकिन
इसके लिए गनीम के पास उपयुक्त वस्त्र मौजूद नहीं थे।
फितना फिर महल में जा कर
धन लाई और हजार अशर्फियाँ दलाल को दे कर कहा कि इससे गनीम और उसकी माँ और बहन के
लिए राजदरबार में पहने जाने योग्य कपड़े सिलवा दो। दलाल को इन बातों का बहुत ज्ञान
था। उसने बढ़िया रेशमी थान खरीदे और तीन दिन के अंदर होशियार दर्जियों से तीनों के
लिए कपड़ों के कई जोड़े तैयार करवा दिए।
फिर फितना ने एक दिन
खलीफा से इन लोगों की भेंट का निश्चित किया। उस दिन गनीम और उसकी माँ-बहन नए कपड़े
पहन कर दलाल के घर में दरबार में बुलाने की प्रतीक्षा करती रहीं। खलीफा के
आदेशानुसार मंत्री जाफर बहुत-से सैनिकों और सरदारों के साथ आया और गनीम का हाल-चाल
पूछने के बाद उससे कहा कि मैं तुम्हें और तुम्हारी माँ-बहन को खलीफा के महल में ले
जाने के लिए आया हूँ। अतएव गनीम एक बढ़िया घोड़े पर सवार हुआ और फितना ने उसकी माँ
और बहन को पर्देदार कजावों में ऊँटों पर बिठाया और एक गुप्त मार्ग से दोनों
स्त्रियों को महल में ले आई। गनीम को मंत्री अपने साथ बाजारों से होता हुआ लाया और
दरबार में ले गया। दरबार पूरी शान से लगा था।
सारे सरदार और राजदूत उपस्थित
थे। गनीम ने भूमि को चूम कर खलीफा को प्रणाम किया और खलीफा की प्रशंसा में एक
स्वरचित कसीदा पढ़ा जिसकी सभी लोगों ने प्रशंसा की।
खलीफा ने कहा, गनीम, हम
तुम्हें देख कर बहुत खुश हुए। हम चाहते हैं कि तुम हमारे सामने विस्तारपूर्वक बताओ
कि तुमने हमारी प्रिय दासी के प्राण किस प्रकार बचाए।
गनीम ने वह सारा वृत्तांत
सविस्तार सुनाया। खलीफा उसे सुन कर प्रसन्न हुआ और आज्ञा दी कि गनीम को भारी खिलअत
(सम्मान, वस्त्राभरण) दी जाए। गनीम ने खिलअत पहन कर फिर सलाम किया और कहा, मालिक
मैं चाहता हूँ कि आजीवन आपकी चरणसेवा में लगा रहूँ। खलीफा ने यह स्वीकार कर लिया
और उसे अपना दरबारी बनाने के साथ एक उच्च पद पर आसीन भी कर दिया। इसके बाद वह
दरबार खत्म करके महल में आ गया।
महल में आ कर उसने मंत्री
को बुलाया और कहा कि गनीम को यहाँ ले आओ। उसने फितना को भी बुलाया और उससे कहा कि
गनीम की माँ और बहन को यहीं ले आओ। दोनों स्त्रियों ने भूमिचुंबन करके खलीफा का
अभिवादन किया। खलीफा ने कहा, मैंने तुम दोनों को बड़ा कष्ट दिया है किंतु अब उस की
पूरी भरपाई कर दूँगा। जुबैदा ने फितना से जलन होने के कारण उसके साथ कमीनी हरकत
की। उसका दंड यह है कि उसकी यह जलन और बढ़े। मैं गनीम की बहन से विवाह करूँगा। और
उसे रानी का पद दूँगा जिससे वह जुबैदा के अधीन न रहे। गनीम की माँ, तुम्हारी उम्र
अभी अधिक नहीं हुई, तुम हमारे मंत्री जाफर से विवाह कर लो। गनीम, तुम्हें फितना से
प्रेम है और मैं इसका विवाह तुम्हारे साथ कराऊँगा। यह कह कर खलीफा ने काजी और
गवाहों को बुलाया और तीनों निकाह वहीं पढ़वा दिए। गनीम इसी बात को बहुत समझता कि
अलकिंत खलीफा की दासी बन जाए, किंतु खलीफा ने उसे रानी का दरजा दे दिया। इस पर
गनीम फूला न समाया। खलीफा ने यह भी आज्ञा दी कि यह सारा वृत्तांत लिखवा कर शाही
ग्रंथागार में रखा जाए और उसकी नकलें सारे बड़े देशों को भेजी जाएँ।
मलिका शहरजाद ने गनीम और
फितना की कहानी समाप्त की तो दुनियाजाद ने इसकी बड़ी तारीफ की। शहरजाद ने कहा कि
अगली कहानी इससे भी अच्छी है। शहरयार ने कहा, मैं भी अगली कहानी सुनना चाहता हूँ,
लेकिन अब दिन निकल आया है। अगली कहानी कल सुनाना।
स्रोत-इंटरनेट से कापी-पेस्ट
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें