चीन की राजधानी में
मुस्तफा नाम का एक दरजी रहता था। वह गरीब आदमी था और बड़ी कठिनाई से अपने
परिवारवालों का पेट भरता था। उस के पुत्र का नाम अलादीन था जो कुछ काम-काज नहीं
करता था सिर्फ खेल-कूद में समय बिताता था। माता-पिता की बातों की उपेक्षा कर के
सवेरे ही घर से निकल जाता और अपनी ही तरह के आवारा लड़कों के साथ दिन भर खेलता
रहता। वह कुछ बड़ा हुआ तो उस के पिता ने उसे अपना काम सिखाने के लिए अपनी दुकान पर
बिठाना शुरू किया किंतु न प्यार से न मार से, उसे कुछ भी सिखाया न जा सका। वह पिता
की आँख बचा कर दुकान से भाग जाता और दिन भर खेल-कूद में बिता कर शाम को घर लौटता
और मार खाता। मुस्तफा बहुत खीझता और परेशान होता कि मेरे मरने के बाद यह क्या
करेगा। इसी चिंता में वह बीमार हो गया और कुछ महीनों बाद उस की मृत्यु हो गई।
अलादीन की माँ जानती थी
कि अलादीन से दुकान न चल सकेगी इसलिए उस ने दुकान बेच दी और रूई खरीद कर सूत कातने
का धंधा करने लगी। बूढ़ी माँ के इस कष्ट का भी अलादीन पर कोई प्रभाव न पड़ा। जब वह
उस से कुछ काम करने को कहती तो वह उस से गाली-गलौज और झगड़ा करता। उस का साथ तो
आवारा लोगों का था कि वह किसी भले आदमी की बात भी नहीं सुनता था।
कुछ दिन और बीते। अलादीन
चौदह वर्ष का हो गया किंतु उस में बिल्कुल बुद्धि न आई, उसे यह विचार तक नहीं आया
कि कुछ कमाई करके अपना और माँ का पेट पालना उस का कर्तव्य है। एक दिन वह बाजार में
खिलंदड़ापन कर रहा था कि एक परदेशी ने कुछ देर तक उसे गौर से देखा और फिर उस के
बारे में पूछताछ की कि यह किसका लड़का है और कहाँ रहता है।
वास्तव में वह परदेशी
अफ्रीका का रहनेवाला एक जादूगर था और एक खास उद्देश्य से चीन आया हुआ था। वह जादू
के अलावा रमल इत्यादि कई और विद्याएँ भी जानता था। वह जिस काम के लिए आया था उस
में सहायता देने के लिए उसे यही लड़का उपयुक्त मालूम हुआ। एक दिन अकेले में अलादीन
को पा कर वह बोला, बेटे, तुम मुस्तफा दरजी के लड़के तो नहीं हो? उस ने कहा, हूँ
तो, किंतु कई वर्ष पूर्व मेरे पिता का देहांत हो गया है। यह सुन कर अजनबी ने उसे
खींच कर अपने सीने से लगा लिया और खूब प्यार किया और आहें भर कर रोने लगा। अलादीन
को इस पर आश्चर्य हुआ और उस ने पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो।
जादूगर आहें भरता हुआ
बोला, हाय बेटा, क्या कहूँ। तुम्हारा पिता मेरा बड़ा भाई था। मैं कई वर्षों तक
देश-विदेश की यात्रा करने के बाद चीन आया हूँ। इस नगर में आने का मेरा उद्देश्य
यही था कि मैं अपने बड़े भाई से मिलूँ। मैं इस खयाल से बहुत खुश था और मुझे
विश्वास था कि इतने लंबे समय के बाद मुझे देख कर वे भी बड़े प्रसन्न होंगे।
तुम्हारे मुँह से उनकी मृत्यु का समाचार सुन कर मुझे ऐसा दुख हुआ है जो कहा नहीं
जा सकता। मेरे यहाँ आने का उद्देश्य तो मिट्टी में मिल गया और मार्ग का सारा श्रम
वृथा हुआ। अब मेरी भगवान से प्रार्थना है कि तुम्हें लंबी उम्र दे। मैं तुम में
तुम्हारे पिता के सारे हाव-भाव और चाल-ढाल देखता हूँ। तुम्हारी सूरत भी उनसे मिलती
है, तुम्हें देख कर मुझे बड़ा संतोष होता है। यह कह कर उस ने जेब से कुछ पैसे
निकाले और उसे दे कर कहा, बेटा, तुम्हारी माँ कहाँ रहती है? तुम उन से मेरा सलाम
कहना और कहना कि कल अवकाश मिलने पर मैं तुम्हारे घर अवश्य आऊँगा और फिर उस जगह पर
बैठूँगा जहाँ भाई साहब बैठते थे और इस तरह मन को संतोष दूँगा। अलादीन ने उसे अपने
घर का पता बता दिया।
जादूगर के जाने के बाद
अलादीन माँ के पास पहुँचा और बोला, अम्मा, क्या मेरे कोई चचा भी है। माँ ने इस से
इनकार किया तो वह बोला, अभी एक आदमी मुझ से कह रहा था कि मैं तुम्हारा चचा हूँ। जब
मैं ने उसे पिताजी के मरने की बात बताई तो वह मुझे गले लगा कर बहुत रोया और उस ने
मुझे बहुत प्यार भी किया और पैसे भी दिए। उस ने तुम्हें सलाम कहा है और कहा है कि
कल फुरसत मिली तो आऊँगा और उस जगह बैठ कर अपने मन को संतोष दूँगा जहाँ मेरा भाई बैठता
था। उस की माँ ने कहा, तुम्हारे पिता का तो एक ही भाई था जो उस के जीवनकाल ही में
मर गया। मैं ने तुम्हारे पिता से किसी और भाई के बारे में कुछ नहीं सुना।
दूसरे दिन अलादीन बाजार
में अन्य लड़कों के साथ खेल रहा था तो उसे वही जादूगर मिला। उसे गले से लगा कर दो
अशर्फियाँ दीं और कहा, इनसे खाद्य सामग्री ले कर अपनी माँ से खाना पकवा रखना, मैं
शाम को तुम्हारे घर आऊँगा और हम सब लोग मिल कर भोजन करेंगे। तुम एक बार फिर अपने
घर का ठीक-ठीक पता बताओ जिस से मैं शाम को वहाँ पहुँच सकूँ। अलादीन ने समझा कर
पूरा पता बता दिया और जादूगर चला गया। अलादीन भी तुरंत अपने घर गया और उस ने अपनी
माँ को दो अशर्फियाँ दे कर सारा हाल बताया। उस की माँ बाजार से अच्छी खाद्य
सामग्री लाई और पड़ोसियों से पकाने और खाने के लिए अच्छे बरतन उधार माँग कर सारी
दोपहर और तीसरे पहर भोजन बनाने में लगी रही।
भोजन तैयार होने पर उस ने
अलादीन से कहा, अब शाम हो गई है। तुम्हारा चचा मकान की तलाश में भटक रहा होगा, तुम
बाजार जा कर उसे अपने घर ले आओ। अलादीन ने जादूगर को अच्छी तरह घर का पता बताया था
फिर भी वह उसे लेने के लिए उठा। किंतु द्वार पर पहुँच कर उसे लगा जैसे कोई दरवाजा
खुलवा रहा है। दरवाजा खोलने पर उस ने देखा कि वही जादूगर दो बोतल शराब और कुछ फल
हाथों में लिए खड़ा है। उस ने यह चीजें अलादीन को दीं और खुद मकान के अंदर चला
गया। उस ने अलादीन की माँ को नम्रतापूर्वक नमस्कार किया और उस से पूछा कि मेरा भाई
किस जगह बैठा करता था। उस ने जादूगर को वह जगह दिखा दी।
जादूगर ने वहाँ जा कर सिर
झुकाया, फिर उस जगह को कई बार चूमा। इस के बाद वह रोते हुए कहने लगा, हाय हाय, मैं
कैसा भाग्यहीन हूँ, भाई साहब। मैं इतनी दूर से यात्रा में तरह-तरह का कष्ट उठा कर
यहाँ इसीलिए आया था कि तुम्हारे दर्शन करूँ। किंतु तुम्हारे दर्शन मेरे भाग्य में
न थे, तुम पहले ही महायात्रा पर चले गए। अलादीन की माँ ने उसे उसी जगह बैठने को
कहा तो वह बोला कि मैं अपने भाई की जगह कैसे बैठ सकता हूँ। अलादीन की माँ ने इस
बारे में और आग्रह न किया और कहा, जहाँ जी चाहे बैठो। वह एक जगह बैठ गया और उस ने
बातचीत शुरू कर दी।
उस ने कहा, भाभी, तुम्हें
आश्चर्य तो हो रहा होगा कि यह कौन है लेकिन मैं तुम्हें सारी बात बताए देता हूँ।
मैं इसी नगर में पैदा हुआ था किंतु चालीस वर्ष पूर्व मैं ने यह शहर छोड़ दिया।
पहले मैं हिंदोस्तान गया। फिर फारस गया और इस के बाद मिस्र देश। इन महान देशों में
कई वर्षों तक रह कर मैं अफ्रीका के बड़े देशों में जा कर रहा। वहाँ मैं ने देखे कि
बड़े अच्छे लोग रहते हैं इसलिए मैं वहीं जा कर बस गया। इस के बावजूद मैं अपने
जन्मस्थान को नहीं भूला। मुझे परिवारवालों और इष्ट मित्रों की बड़ी याद आती रही,
विशेषतः अपने बड़े भाई की। मेरी सदैव आकांक्षा बनी रही कि जा कर उन से मिलूँ इस
बार मैं ने अपना कारोबार गुमाश्तों के सुपुर्द कर दिया और लंबी यात्रा करके यहाँ
आया तो यह कुसमाचार मिला कि वे परलोकवासी हो गए हैं। इस से मुझे इतना दुख हुआ जिस
का मैं वर्णन नहीं कर सकता। कितने दुख की बात है कि मैं ने इतनी लंबी यात्रा के
कष्ट उठाए और सब कुछ बेकार गया। खैर, मुझे अलादीन को देख कर तसल्ली हुई। यह मेरे
प्रिय भाई की निशानी है। इसीलिए इसे पहली ही बार देख कर समझ लिया कि यह मेरे भतीजे
के अलावा और कोई नहीं हो सकता। इस ने तुम्हें यह भी बताया होगा कि इस के पिता की
मृत्यु की बात सुन कर मुझे कितना रोना आया था। भगवान को धन्यवाद है कि मैं ने उन
के पुत्र को देखा, जैसे उन्हीं को दूसरे रूप में देख लिया।
यह बातें सुन कर अलादीन
की माँ का भी जी भर आया और वह अपने पति की याद में फूट-फूट कर रोने लगी। अब जादूगर
ने यह बातें छोड़ दीं और अलादीन से पूछा, बेटा, तुम जीविका के लिए क्या करते हो,
तुमने कौन-सा धंधा अपनाया है और कौन-सा हुनर सीखा है? अलादीन ने शर्मा कर गर्दन
झुका ली। उस की माँ ने कहा, यह बिल्कुल निकम्मा है। इस के पिता ने बहुत कोशिश की
कि यह कुछ सीख जाए लेकिन इस ने कुछ न सीखा। इस ने सारा समय खेल-कूद ही में बरबाद
किया है। आप ने भी इसे खेलते ही पाया होगा। आप इसे समझाएँ कि कुछ ढंग की बात सीखे
और किसी कारआमद काम के सीखने में जी लगाए। इसे अच्छी तरह मालूम है कि इस का बाप
कोई जायदाद नहीं छोड़ गया है। इसे यह भी मालूम है कि मैं दिन भर चरखा कातती हूँ और
किसी प्रकार रूखी-सूखी का जुगाड़ करती हँ। कई बार मैं ने झुँझला कर चाहा कि इसे घर
से निकाल बाहर करूँ ताकि भूखों मरने लगे तो कुछ काम-काज करे। लेकिन अपना ही पैदा
किया हुआ बेटा होने की वजह से इस के साथ निर्दयता नहीं कर सकती। यह कह कर बुढ़िया
फिर रोने लगी। जादूगर ने अलादीन से कहा, बेटा, क्या तुम्हारी माँ ठीक कह रही है?
तुम अब बड़े हो गए हो। तुम्हें चाहिए कि कोई व्यापार करो। जरूरी नहीं है कि कोई एक
खास काम ही करो, जिस पेशे में तुम्हारा जी लगता हो वही शुरू करो। तुम अपने मन की
बात खुल कर मुझ से कहो, मुझ से जितनी भी हो सकेगी तुम्हारी सहायता करूँगा।
अलादीन इतना सुन कर भी
चुप रहा। जादूगर ने फिर कहा, बेटे, अगर तुम चाहते हो कि ऐसा काम करो जिस में धन और
प्रतिष्ठा दोनों मिले तो वह बजाजी का काम है। तुम चाहो तो मैं तुम्हें बजाजे की
बड़ी दुकान खुलवा दूँ जिस में देश-विदेश के थान और तरह-तरह का कपड़ा हो और तुम उस
में आराम से बैठ कर धन कमाओ। मैं सिर्फ यह चाहता हूँ कि तुम अपने मन की बात खुल कर
मुझ से करो ताकि मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार तुम्हारी सहायता कर सकूँ। अलादीन ने
इशारे से कहा कि मुझे बजाजी का काम पसंद है और वही करना चाहता हूँ। उस ने देखा था
कि कपड़े के व्यापारी बड़ी शान-शौकत से रहते हैं, अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं और
भाँति-भाँति का स्वादिष्ट भोजन करते हैं। जादूगर ने कहा, अगर तुम्हें यह काम पसंद
है तो बड़ी अच्छी बात है। कल मैं तुम्हारे लिए अच्छे कपड़े खरीद दूँगा क्योंकि इन
कपड़ों में तुम्हारा व्यापारी समाज में प्रवेश नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हारा परिचय
एक बड़े व्यापारी से करा दूँगा और एक दुकान तुम्हें किराए पर ले दूँगा।
अलादीन की माँ, जो अब तक
उस के अलादीन के चचा होने पर विश्वास न करती थी, उस की बातें सुन कर खुश हो गई। उस
ने अलादीन का हाथ उसे पकड़ाया और कहा, अब तुम्हीं इसे राह पर लगाओगे तो लगेगा। यह
कह कर उस ने भोजन निकाल कर परोसा और तीनों ने जी भर कर खाना खाया और बाद में मद्य,
फल आदि खाए। फिर जादूगर कहने लगा कि अब रात काफी हो गई है, मैं जाता हूँ। कल सुबह
फिर आऊँगा।
दूसरे दिन वह फिर आया और
अलादीन को उस दुकान में ले गया जहाँ सिले-सिलाऐ कपड़े बिकते थे। उस ने अलादीन से
कहा कि तुम्हें इन में से जो भी कपड़े का जोड़ा पसंद हो वह ले लो, मैं उस के दाम
दे दूँगा। अलादीन यह सोच कर बहुत खुश हुआ कि उस का चचा उस के लिए यह करने को तैयार
है। उस ने एक मूल्यवान जोड़ा पसंद किया। जादूगर ने उसे वह दिलवा दिया और उस से मेल
खाते हुए जूते, पटका, पगड़ी आदि भी दिलवा दी। अलादीन ने सारी चीजें पहन लीं और
शीशे में अपने को देखा तो बहुत खुश हुआ। फिर जादूगर उसे उस बड़े बाजार में ले गया
जहाँ बड़े-बड़े व्यापारियों का व्यवसाय था। उस ने अलादीन से कहा, अगर तुम चाहते हो
कि इन लोगों की तरह बनो तो यहाँ अक्सर आया करो और इन लोगों के तौर-तरीके देखा करो।
फिर उस ने अलादीन को शाही इमारतें और अन्य दर्शनीय स्थल दिखाए।
इस के बाद वह अलादीन को
उस सराय में ले गया जहाँ वह ठहरा था। वहाँ कई व्यापारी भी ठहरे थे जिन से जादूगर
ने मित्रता कर ली थी। जादूगर ने अलादीन को उन सब से मिलाया। सब ने एक साथ भोजन
किया और सब लोग देर तक बातें करते रहे। शाम हुई तो अलादीन ने घर वापस जाना चाहा।
जादूगर ने कहा कि तुम्हारा अकेले जाना ठीक नहीं है, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। यह
कह कर वह उसे उस के घर ले आया। अलादीन की माँ ने अपने बेटे को बहुमूल्य वस्त्र
पहने देखा तो अति प्रसन्न हुई और जादूगर की बड़ी प्रशंसा करने लगी और कहने लगी कि
मेरा बेटा तो नालायक है फिर भी तुम इस पर इतने कृपालु हो। जादूगर बोला, यह अच्छा
लड़का है। अच्छी राह चलेगा। कल तो शुक्रवार है, बाजार बंद रहेंगे। परसों मैं इस के
लिए दुकान किराए पर लेने और उस में माल रखने का काम करूँगा। कल सभी व्यापारी
सैर-तमाशे को जाएँगे। मैं भी इसे बड़े बागों और उत्तम स्थानों की सैर के लिए
जाऊँगा।
यह कह कर जादूगर अपनी
सराय को वापस चला गया। अलादीन बड़ा खुश था कि उसे शहर के बाहर के बड़े बाग देखने
को मिलेंगे। अभी तक उस ने अपने घर के आसपास की गलियाँ और बाजार ही देखे थे और शहर
के बाहर के बागों या गाँवों में कभी नहीं गया था। दूसरे दिन सुबह ही से कपड़े पहन
कर वह जादूगर की प्रतीक्षा करने लगा। काफी देर तक वह न आया तो अलादीन दरवाजे के
बाहर बैठ कर उस की प्रतीक्षा करने लगा। थोड़ी देर में जादूगर आता दिखाई दिया।
अलादीन ने घर के अंदर आ कर माँ से कहा कि चचा आ गया है और मैं उस के साथ जा रहा
हूँ।
वह आगे बढ़ कर रास्ते ही
में जादूगर से मिला। जादूगर ने उस से प्यार से बातें की और कहा कि मैं तुम्हें आज
बड़े शानदार भवन और सुंदर उद्यान दिखाऊँगा। दोनों आगे बढ़े और जादूगर ने उसे सारी
सुंदर इमारतें और बाग-बगीचे दिखाए। अलादीन उन सब को देख कर बहुत खुश हुआ।
चलते-चलते वे लोग काफी
दूर निकल गए और उन्हें थकन महसूस होने लगी। किंतु जादूगर को अपने काम के लिए
अलादीन को आगे ले जाना था इसलिए एक जल स्रोत के पास बैठ कर उस ने एक पोटली निकाली
जिस में बहुत से स्वादिष्ट फल और कुलचे थे। उस ने आधे कुलचे अलादीन को दिए और कहा
कि फल जितने भी चाहो तुम खाओ। इस बीच वह तरह-तरह की उपदेश की बातें भी करता रहा
जिस से मालूम हो कि उस से बढ़ कर अलादीन का और कोई हितचिंतक नहीं है। वह कहने लगा,
बेटे, देखो अब तुम बड़े हो गए हो। अब तुम्हें बालकों के साथ खेल-कूद करना शोभा
नहीं देता। तुम्हें चाहिए कि समझदार लोगों का साथ करो और उन के रंग-ढंग सीखो।
उन्हीं की राह पर चलने से तुम्हें मान-प्रतिष्ठा मिलेगी और तुम धनवान भी हो जाओगे।
इसी तरह की बहुत-सी बातें उस ने कीं।
नाश्ता करने के बाद
जादूगर फिर अलादीन को आगे ले चला और नगर से बहुत दूर पर वे लोग पहुँच गए। अलादीन
इतनी दूर कभी भी नहीं आया था। वह थक भी गया था। वह पूछने लगा कि और कितनी दूर जाना
है। जादूगर बोला, थोड़ी ही दूर पर ऐसा सुंदर बाग है जिसके आगे अभी तक देखे हुए बाग
कुछ भी नहीं हैं। जब तुम उसे देखोगे तो स्वयं ही उस में दौड़ कर चले जाओगे। इसी
तरह वह उसे दम-दिलासा देता हुआ बड़ी दूर ले गया। वह उस का जी बहलाने के लिए
मनोरंजक कहानियाँ भी कहता जाता था। अंत में वे एक घने जंगल में जा पहुँचे जो दो
पर्वतों के बीच में था।
यही वह स्थान था जहाँ वह
दुष्ट जादूगर अलादीन को लाना चाहता था। यहीं उस का वह मनोरथ सिद्ध होना था जिसके
लिए वह अफ्रीका से यहाँ तक भाँति-भाँति के कष्ट उठा कर आया था। यहाँ पहुँच कर वह
बोला, यही वह सुंदर बाग है जिसका मैं ने जिक्र किया था किंतु वह आसानी से दिखाई
नहीं देता। उस के लिए तरकीब करनी पड़ती है। आग जला कर उस में सुगंधियाँ डालनी पड़ती
हैं। तुम यहाँ सूखी लकड़ियाँ इकट्ठी करो, मैं कहीं से आग ले कर आता हूँ। अलादीन ने
लकड़ियाँ इकट्ठी कीं और जादूगर ने कहीं से आग ला कर उन्हें सुलगाया। वे जलने लगीं
तो उस ने कुछ सुगंधित वस्तुएँ आग में छोड़ीं और मंत्र पढ़ा। कुछ देर में भूचाल आया
और जहाँ वे खड़े थे वहाँ लगभग एक वर्ग गज का पत्थर दिखाई दिया जिसके बीच में लोहे
का एक कड़ा लगा हुआ था।
अलादीन डर कर भागने लगा
तो जादूगर ने उसे पकड़ कर जोर से एक तमाचा उस के मुँह पर मारा जिस से उस के दाँतों
से खून निकलने लगा। अलादीन रो कर कहने लगा, मैं ने क्या अपराध किया जिस पर आप ने
मुझे मारा? जादूगर उसे पुचकारते हुए बोला, मैं तुम्हारे पिता की जगह हूँ।
मैं ने बगैर बात भी
तुम्हें मार दिया तो क्या हुआ। मैं तो तुम्हारी भलाई के लिए ही यह सब कर रहा हूँ
जिस से तुम बड़े आदमी बनो और तुम इसी से भाग रहे हो। अब मैं जैसा कहता जाऊँ वैसा
ही करते चलो। इस से तुम्हारा लाभ ही लाभ होगा। इसी प्रकार उस ने बहुत कुछ दिलासा
देने के लिए कहा, जिस से अलादीन आश्वस्त हो गया। जादूगर ने उसे फिर समझाया, तुमने
देखा कि मेरे मंत्र पढ़ने से भूचाल आ गया। अब तुम समझ लो कि इस पत्थर के नीचे एक
गुप्त वस्तु तुम्हारे लिए रखी है जिस से तुम अत्यंत धनवान बन जाओगे।
अलादीन ने कहा, वह कैसे
होगा? जादूगर बोला, बात यह है कि तुम्हारे अलावा कोई और आदमी उस चीज को हाथ भी
नहीं लगा सकता। तुम यह पत्थर उठाओ और जो रास्ता दिखाई दे उस पर चले जाओ। लेकिन
पहले मुझ से कुछ जरूरी बातें समझ लो। मैं तुम से यह सब इसलिए कह रहा हूँ कि वह
दुर्लभ वस्तु तुम्हारे ही लिए है। अलादीन ने जादूगर की बातें मानना स्वीकार किया।
न करता तो भी कोई रास्ता नहीं था। जादूगर ने उसे फिर प्यार से गले लगाया और कहा,
तुम बड़े अच्छे लड़के हो। यह देखो यह एक लोहे का छल्ला है। इसे पहन कर इस शिला को
उठाओ तो वह आसानी से उठ आएगी। अलादीन बोला, मैं इसे अकेला कैसे उठाऊँगा, आप भी हाथ
लगाएँ। जादूगर बोला, अगर मैं इसे हाथ लगा पाता तो खुद ही उठा लेता, तुम से उठाने
को क्यों कहता। यह सब मंत्रों की बात है, तुम नहीं समझ सकोगे। तुम भगवान का नाम ले
कर उठाओ तो, यह तुरंत उठ जाएगी।
अलादीन ने कड़े को पकड़
कर जोर लगाया तो शिला बगैर दिक्कत के उठ आई। नीचे तीन-चार हाथ गहरा गढ़ा जो नीचे
गई थीं। जादूगर ने अलादीन से कहा, बेटे, अब जो कुछ मैं कहूँ उसे ध्यान से सुनना और
याद रखना। जब तुम इस सीढ़ी से नीचे उतरोगे तो आगे जा कर एक बड़ा सुंदर भवन मिलेगा।
उस में तीन समानांतर दालान हैं। वहाँ कई ताँबे की देगें रखी हैं। उनमें अशर्फियाँ
और रुपए भरे हैं। लेकिन तुम उन्हें हाथ न लगाना क्योंकि आगे तुम्हारे लिए इस से भी
अच्छी चीज मिलेगी। जब तुम पहले दालान में जाओ तो अपने कपड़ों को कस कर अपने बदन से
बाँध लेना। दूसरे और तीसरे दालान में भी इसी तरह कपड़ों को बदन से कसे हुए प्रवेश
करना। खबरदार, दालान की दीवारों से तुम्हारा कोई अंग या तुम्हारा कपड़ा भी नहीं
छूना चाहिए। इस बात का सब से पहले ध्यान रखना जरूरी है।
बदन या कपड़ा दीवारों से
छुआ तो तुम वहीं भस्म हो जाओगे और तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए रोती-पीटती रह जाएगी।
जब तुम तीसरे दालान से
आगे बढ़ोगे तो एक बाग मिलेगा जिस में तरह-तरह से फलदार वृक्ष हैं। तुम उन्हें न
छूना। आगे जा कर तुम्हें एक चबूतरा मिलेगा जिस पर पचास सीढ़ियाँ चढ़ कर पहुँचा
जाता है। चबूतरे पर एक कमरा है जिसके एक ताक में एक दीया जलता हुआ मिलेगा। तुम उसे
उठा कर उस का तेल और बत्ती फेंक देना और उसे सावधानी से कपड़ों के अंदर रख लेना।
तुम्हारे कपड़े खराब नहीं होंगे क्योंकि वह जादू का तेल है जो फौरन सूख जायगा।
वापसी में तुम पेड़ों से जितने फल ले सको वह भी ले लेना। इस के बाद उसी तरह
दालानों की दीवारों से बचते हुए वापस आ जाना। यह कहने के बाद जादूगर ने कुछ सोचा
और लोहे का छल्ला जो उस से वापस लिया था उसे फिर दे दिया और कहा, इसे पहने रहोगे
तो किसी प्रकार की उलझन में नहीं पड़ोगे। अब तुम बेझिझक इस गढ़े में कूद जाओ और
जैसा मैं ने कहा है वैसा करो। इस से हम दोनों ही बड़े धनवान बन जाएँगे। तुम्हें
फिर सारी जिंदगी कुछ करने की जरूरत नहीं रहेगी।
अलादीन हिम्मत करके गढ़े
में कूद पड़ा। सीढ़ियों से उतर कर वह पहले दालान के सामने पहुँचा। वहाँ उस ने अपने
कपड़े को कस कर अपने शरीर से लपेट कर बाँध दिया और डरते-डरते दालान में प्रवेश
किया कि कहीं उस का कोई वस्त्र दीवार से न छू जाए। दूसरे और तीसरे दालान को भी उस
ने इसी तरह डरते-डरते पार किया और फिर बाग में आ कर चैन की साँस ली। बाग के रास्ते
से आगे बढ़ता हुआ वह ऊँचे चबूतरे पर बने कमरे में गया तो देखा एक ताक में एक दीया
जल रहा है। उस ने उस का तेल-बत्ती फेंक कर उसे वस्त्रों के अंदर सीने से बाँध
लिया। फिर वहाँ से उतर कर बाग के रास्ते वापस आने लगा और वहाँ के पेड़ों के फल
तोड़े। वे दूर से तो लाल, पीले, हरे, आदि रंगों के फल लगते थे किंतु खेलने के लिए
अपनी जेबों में तथा और जहाँ भी संभव हुआ उस ने यह रत्न भर लिए। उस ने अपनी ढीली
आस्तीनों में भी यथासंभव फल भर लिए और कलाइयों के पास आस्तीनों को कस कर बाँध दिया
ताकि फल गिर न पड़ें। अब यह हालत हो गई कि अंदर रखे रत्नों के कारण उस के कपड़े
चारों ओर से फूल गए। किसी तरह दालान की दीवारों से बचता-बचाता एक-एक कदम सँभाल कर
रखता हुआ वह सीढ़ियाँ चढ़ कर गढ़े में पहुँचा। वहाँ जा कर उस ने आवाज दी, चचा, मैं
दीया ले कर आ गया हूँ, तुम मुझे हाथ बढ़ा कर बाहर निकालो।
जादूगर ने कहा, बेटा, मैं
तुम्हें अभी निकालता हूँ लेकिन पहले तुम मुझे दीया दे दो। अलादीन ने कहा, मैं बाहर
आ कर ही दीया निकाल सकता हूँ, इस जगह नहीं निकाल सकता। तुम मुझे बाहर निकालो।
जादूगर ने कहा, नहीं, पहले चिराग दो, फिर मैं तुम्हें बाहर निकालूँगा। अब यही बहस
शुरू हो गई। अलादीन कहता था कि बाहर निकालो तब चिराग दूँगा, जादूगर कहता था पहले
चिराग दो फिर बाहर निकालूँगा। दरअसल अलादीन अपनी कठिनाई बता भी नहीं पा रहा था।
चिराग उस ने सीने के पास रख कर उस के चारों ओर फल भर लिए थ। वैसे भी उस की
आस्तीनें फलों के भार से फूली हुई थीं और गढ़े में इतनी जगह नहीं थी कि वह फलों
(रत्नों) को बाहर निकाल कर सीने के पास से चिराग निकालता। गढ़े में जगह कम होने से
उस का दम घुटा जा रहा था और वैसे भी थकावट से उस का बुरा हाल था।
जादूगर की समझ में भी यह
बात न आई और वह अलादीन की बातों को उस की जिद समझ कर इतना क्रुद्ध हुआ कि जोर से
चिल्लाया, तू मुझे चिराग नहीं देता तो यहीं चिराग को लिए मर जा। यह कह कर उस ने
मंत्र पढ़ा जिस से शिला अपने आप उठ कर गढ़े के मुँह पर आ गई और उस के ऊपर मिट्टी
भी इस तरह बराबरी से बिछ गई कि शिला का कोई चिह्न ऊपर से नहीं दिखाई देता था।
जादूगर को चिराग तो नहीं मिला जिसे पाने के लिए उस ने यह सारा खटराग किया था किंतु
उसे यह डर जरूर हुआ कि अलादीन गढ़े में मर जायगा और उस की मौत के लिए उसी को पकड़ा
जाएगा। कारण यह था कि अलादीन की माँ रोती-पीटती और कई दूसरे लोगों ने भी उस के साथ
अलादीन को वीरान जंगल की ओर जाते देखा था। वह सीधा अपनी सराय में गया और उसी दिन
अपना सामान उठा कर अफ्रीका के लिए रवाना हो गया।
यह तो पहले ही कहा जा
चुका है कि यह आदमी न तो मुस्तफा का भाई था न अलादीन का चचा। वह अफ्रीका का ही
निवासी था। उस ने चालीस वर्ष तक वहाँ पर जादू सीखा। इस के अलावा ज्योतिष, रमल आदि
कई विद्याएँ भी उस ने पढ़ीं जिसके कारण उसको गुप्त रहस्यों की जानकारी हो गई थी।
इन्हीं विद्याओं के बल पर उसे ज्ञात हुआ कि चीन देश में एक स्थान पर एक ऐसा जादू
का चिराग है जिसके स्वामी के अधीन कई जिन्न हो जाते हैं। इसी कारण वह अफ्रीका से
इतनी लंबी यात्रा कर के चीन आया था और अपनी रहस्यमयी विद्याओं से पता लगाते-लगाते
अलादीन के नगर में पहुँचा था। इन विद्याओं से उसे यह भी मालूम हुआ कि उस चिराग के
पास किसी पूर्णतः निष्कपट बालक के अलावा और कोई नहीं जा सकता, कम से कम वह जादूगर
खुद तो हरगिज नहीं जा सकता था। एक बात यह भी थी कि जादूगर खुद मोटा-ताजा था और
चाहे जितने कसे कपड़े पहनता दालानों की दीवारों से वह छू ही जाता और वहीं भस्म हो
कर रह जाता। उस ने अलादीन को इसीलिए पटाया था और उस पर इतना धन इसलिए व्यय किया था
कि अलादीन के द्वारा उसे चिराग की प्राप्ति हो जाए। उस का यह भी इरादा था कि
अलादीन से चिराग ले कर अपने मंत्रबल से उसे वहीं मार डाले और उस की आकस्मिक मृत्यु
की बात कह कर निर्दोष बना हुआ अफ्रीका चला जाए।
जब अलादीन ने उसे चिराग न
दिया, या वह चिराग न दे सका तो जादूगर निराशा और क्रोध के कारण यह भी भूल गया कि उस
का दिया हुआ जादुई छल्ला अभी अलादीन के पास है। जादूगर को शायद खुद उस छल्ले की
इतनी जरूरत भी न थी, इसलिए वह छल्ले को भूल गया।
किंतु अलादीन का जीवन इसी
छल्ले के कारण बचा। जादूगर तो मंत्रबल से गढ़े पर शिला रख कर चला गया, अलादीन यही
समझता रहा कि मेरा चचा बाहर खड़ा है। वह लगातार रोता-पीटता और चचा की मनुहार करता
रहा कि मुझे वापस निकाल लीजिए, मैं किसी तरह सीने के ऊपर से चिराग निकाल कर आप को
दे दूँगा।, इस के बाद ही मुझे गढ़े से निकालिएगा। लेकिन अब उस की कौन सुनता।
जादूगर तो इतने में मीलों आगे चला गया था। बेचारा अलादीन घंटों तक चिल्लाता रहा जब
तक प्यास ने उस का गला बंद नहीं कर दिया।
अंत में फिर वह सीढ़ी से
उतर कर दालान के बाहर बैठ गया। यहाँ कम से कम उस के हाथ-पाँव हिलाने की जगह तो थी।
वह यह देख कर और परेशान हुआ कि दालान, बाग आदि धीरे-धीरे गायब होने लगे क्योंकि वे
सब जादू के खेल थे। हाँ, उस के पास चिराग और बटोरे हुए रत्न जैसे के तैसे थे।
किंतु अब वह इनका क्या करता। वह अँधेरे में इधर-उधर भटकने लगा और फूट-फूट कर रोने
लगा। अंत में वह एक जगह थक कर बैठ गया। उस ने सोना चाहा किंतु उसे नींद भी नहीं
आई। एक पूरा दिन इसी तरह गुजर गया हालाँकि अलादीन को दिन-रात का अंतर क्या मालूम
होता।
अब उस ने समझ लिया कि अब
मुझे यहीं भूखे-प्यासे मर जाना है और मेरी माँ को मेरी कोई खबर नहीं लगेगी और वह
भी रो-रो कर मर जाएगी। वह निपट निराशा में अपने हाथ मलने लगा। इसी में उस के हाथ
का छल्ला किसी चीज से रगड़ खा गया और इस के साथ ही एक महाभयानक जिन्न उस के सामने
प्रकट हो गया और बोला, मेरे लिए क्या आज्ञा है? मैं आप का गुलाम हूँ। अलादीन भय के
मारे कुछ बोल नहीं सका तो जिन्न ने फिर कहा, स्वामी, आप डरें नहीं। मैं उस आदमी का
सेवक हूँ जो यह लोहे का छल्ला पहने हुए है। उस की आज्ञा पर मैं सब कुछ कर सकता
हूँ। अलादीन जीवन से निराश तो हो ही चुका था, डर को छोड़ कर बोला, अगर ऐसे ही
बलवान हो तो मुझे यहाँ से निकाल कर ऐसी जगह खड़ा कर दो जहाँ से मैं अपने घर को जा
सकूँ। जिन्न ने एक क्षण ही में उसे उस के सारे सामान के साथ बाहर निकाल दिया और
गायब हो गया।
अलादीन को बड़ा आश्चर्य
हुआ कि यह क्या हो रहा है। उस ने आँखें मल कर चारों ओर देखा तो पहचान गया कि यह
वही रास्ता है जिस से वह अपने नगर से आया था। बहुत देर तक इसी आश्चर्य में पड़ा
रहा कि उस अँधेरे से मैं किस प्रकार बाहर निकला और वह महाभयानक आदमी कौन था जो
स्वयं को मेरा दास कहता था। लेकिन अधिक सोच-विचार से लाभ भी क्या था। वह दो दिन का
भूखा-प्यासा था और यह भी भूल गया था कि रत्नों को फेंक-फाक कर अपना बोझ हलका करे।
उसी तरह लदा-फँदा धीरे-धीरे रेंगता हुआ-सा अपने घर की ओर चलने लगा और दो-तीन घंटे
में वहाँ पहुँच गया।
घर पहुँच कर उसे बड़ी
प्रसन्नता हुई। किंतु वह माँ से कुछ कह न सका, भूख, प्यास और कमजोरी की वजह से
बेहोश हो कर गिर पड़ा। उस की माँ भी उस की चिंता में दो दिन से सोई न थी। उसे
बेहोश होते देख कर दौड़ी और उस के मुँह पानी के छींटे दे कर और पंखा करके उसे
थोड़ी देर में होश में लाई। होश में आ कर उस ने माँ से कहा कि कुछ खाने को लाओ,
मैं ने दो-तीन दिन से कुछ खाया नहीं है। खाना तैयार था और उस की माँ उसे ले भी आई
और बोली, बेटा, थोड़ा-सा खाना। बहुत भूख में एकदम बहुत-सा खा लेने से मृत्यु तक हो
सकती है। अलादीन ने थोड़ा-सा खा कर थोड़ा पानी पिया और बोला, मैं भगवान की दया ही
से जीवित बचा। जिस आदमी को तुम अपना देवर समझे थी और जिसके हाथ में तुमने मुझे
सौंपा था उस ने मेरे साथ बड़ी दुश्मनी की और अपनी समझ में मुझे जान से मार कर चला
गया था। वह मुझ से झूठा स्नेह दिखा कर मुझ से अपना कोई काम निकलवा कर फिर मेरी
हत्या कर देना चाहता था।
थोड़ी देर आराम करके
अलादीन ने विस्तृत रूप से अपने ऊपर बीती हुई बातें अपनी माँ को बताईं। यह सुन कर
उस की माँ ने जादूगर को बहुत गालियाँ दीं और ईश्वर को धन्यवाद दिया कि अलादीन
सही-सलामत घर लौट आया। उसे अलादीन ने फल लगनेवाले रत्न भी दिए। वह बेचारी भी उनका
मूल्य नहीं जानती थी इसलिए उस ने उन्हें एक ओर रख दिया। किंतु उसे यह देख कर
आश्चर्य हुआ कि अँधेरे में वे रोशनी देने लगते हैं। खैर, इन बातों पर अधिक ध्यान
देना उस ने जरूरी न समझा। बेटे के अलग होने पर वह भी दो रातों से नहीं सोई थी और
रोते-रोते निढाल हो गई थी। अब बेटा वापस आ गया तो वह घर के एक कोने में लेटी रही
और गहरी नींद सो गई।
अलादीन भी सो गया और सारी
रात सोता रहा। सुबह वह जागा तो भूख से उस का बुरा हाल हो गया था। उस ने माँ से कहा
कि मुझे कुछ खाने को दो। वह बोली, इस समय तो घर में कुछ भी नहीं है। कल मैं ने कुछ
सूत काता था, उसे ले कर बाजार जाती हूँ। उसे बेच कर कुछ खाने को खरीदूँगी। अलादीन
को कुछ याद आया। उस ने कहा, सूत बाद में बेच लेना। अभी तो वह ताँबे का दीया ले जाओ
जो मैं लाया हूँ। उसे बेच कर कुछ ले आओ। बुढ़िया बोली, अच्छी बात है। लेकिन यह
दीया गंदा हो रहा है। मैं इसे साफ करके चमका दूँ तो इस के अधिक दाम मिलेंगे।
यह कहने के बाद बुढ़िया
चिराग को साफ करने बैठ गई। उस ने पानी और रेत से उसे साफ करना शुरू किया। ज्यों ही
उस ने दीये को जोर से रगड़ा कि एक महाभयानक विशालकाय जिन्न धरती फाड़ कर निकला और
बादल की गरज जैसी आवाज में बोला, तुम मुझे क्या आज्ञा देती हो? मैं उस व्यक्ति का
दास हूँ जिस के पास यह चिराग होता है। और केवल मैं ही नहीं, बहुत-से दूसरे जिन्न
भी उस व्यक्ति के अधीन होते हैं जिस के पास यह चिराग होता है।
बुढ़िया उस भयानक जिन्न
को देखते ही डर के मारे बेहोश हो गई। डर तो अलादीन को भी लगा किंतु चूँकि वह पहले
भी अँगूठी रगड़ने पर सामने आनेवाले जिन्न को देख चुका था इसलिए वह बेहोश नहीं हुआ।
उस ने एक हाथ से अपनी गिरती हुई माँ को सँभाला और दूसरे हाथ में चिराग उठा लिया।
फिर उस ने जिन्न को कहा, मैं बहुत भूखा हूँ, मुझे तुरंत भोजन चाहिए। जिन्न यह सुन
कर गायब हो गया और दो क्षणों बाद एक बड़ा-सा सोने का थाल अपने सिर पर रख कर प्रकट
हो गया। उस ने थाल को भूमि पर रखा। उस में बारह चाँदी की तश्तरियाँ थीं जिन में स्वादिष्ट
व्यंजन थे। इस के अलावा यह दोनों हाथों में दो शीशे की सुराहियाँ शराब की और दो
चाँदी के गिलास भी लिए था। यह समान रख कर वह गायब हो गया।
अलादीन ने माँ के मुँह पर
पानी की छींटे दिए जिस से वह होश में आ गई। अलादीन ने कहा, अम्मा, भय छोड़ कर उठ
बैठो। जल्दी से चल कर खाना खा लो नहीं तो वह ठंडा हो जाएगा। वह उठी तो तरह-तरह से
स्वादिष्ट व्यंजन देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगी कि इतना अच्छा खाना
ऐसे बढ़िया बरतनों में किस ने भेज दिया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि बादशाह ने हमारी
दशा पर तरस खा कर हमें यह चीजें भिजवाई हों। अलादीन ने कहा, अब सोच-विचार मत करो,
जल्द आ कर खाना खा लो। फिर मैं तुम्हें इस का पूरा-पूरा हाल बताऊँगा।
वे दोनों रुचिपूर्वक भोजन
करने लगे। बुढ़िया यह भी सोचने लगी कि यह बरतन किस चीज के बने हैं क्योंकि उस के
खयाल में नहीं आ सकता था कि खाने के बरतन सोने-चाँदी के हो सकते हैं। पेट-भर खाने
के बाद भी बहुत-सा भोजन बच गया जिसे उन दोनों ने उठा कर रख दिया और तीन दिन तक
खाते रहे। उस दिन खाना खाने के बाद अलादीन ने बताया कि यह भोजन वही जिन्न लाया था
जिसे देख कर तुम डर के मारे बेहोश हो गई थीं। जिसके हाथ में वह दीया होता है उस के
अधीन वह जिन्न और उस के अतिरिक्त कई और जिन्न भी होते हैं।
उस की माँ ने कहा, मुझे
तो इस बात पर विश्वास नहीं होता। और ऐसा हो तो भी इस दिए को किसी को दे डालो या
फेंक दो। मैं उस भयानक जिन्न को नहीं देखना चाहती। तुम इस छल्ले को भी निकाल कर
फेंक दो। हमें जिन्नों को बुला कर क्या करना है। हम अपने वैसे ही सीधे-सादे अच्छे
हैं। अलादीन ने कहा, वाह, तुम भी खूब बात करती हो। छल्ले के जिन्न के कारण तुम
मुझे जीता-जागता देख रही हो। चिराग के जिन्न ने भी स्वादिष्ट भोजन ला कर हमारी भूख
मिटाई है। तुम यह भी सोचो वह जादूगर, जो मेरा चचा बना हुआ था, इसी चिराग के लिए
अफ्रीका से यहाँ की यात्रा करके आया था और मुझे उस गुप्त स्थान में इसी चिराग को
लाने को भेजा था।
माँ को अब भी असंतुष्ट
देख कर अलादीन ने कहा, तुम इसे या इस के जिन्न को नहीं देखना चाहती तो मैं इसे उठा
कर घर के एक अँधेरे कोने में रख दूँगा और अवसर पड़ने पर इसका लाभ उठाऊँगा। तुम भी
किसी से इसका उल्लेख न करना। अगर हमारे पड़ोसी इस बात को जान गए तो वे हम से
ईर्ष्या करने लगेंगे ओर संभव है कि कोई हमें हानि पहुँचाने के लिए बादशाह से
शिकायत कर दे। अब तुम इस दीये को बिल्कुल भूल जाओ, मैं इसे तुम्हारी नजरों से छुपा
कर रखूँगा। लेकिन यह जादू का छल्ला मैं अपनी उँगली से अलग नहीं कर सकता। मैं
तुम्हें बता चुका हूँ कि इसी छल्ले के कारण मेरी जान बची है वरना मैं गढ़े के अंदर
ही घुट-घुट कर मर गया होता। क्या मालूम आगे भी कोई मुसीबत पड़े तो इसी की मदद से
मैं उस से छुटकारा पाऊँ। अलादीन की माँ ने कहा, अच्छा भाई, जो चाहो सो करो लेकिन
यह ध्यान रखना कि तुम्हारे जिन्न मेरे सामने न आएँ, वरना मैं डर के मारे मर ही
जाऊँगी।
इस के बाद माँ-बेटे ने दो
दिनों तक बचे हुए भोजन से काम चलाया। इस के बाद फिर भोजन का प्रश्न उठा तो माँ की
सलाह से अलादीन ने एक चाँदी की तश्तरी ली और उसे बेचने के लिए बाजार में गया। उस
की भेंट एक यहूदी से हुई जो सोने-चाँदी की चीजों का व्यापार करता था। यह यहूदी
महाधूर्त था। जो तश्तरी अलादीन के पास थी वह बहुत बड़ी थी और उस पर ऐसी बढ़िया
नक्काशी थी कि उस का दाम बहुत अधिक था। अलादीन तो उस का दाम जानता ही नहीं था।
यहूदी ने उस से पूछा, कि तुम इसका क्या लोगे तो अलादीन बोला कि जो तुम ठीक समझो वह
दे दो, मुझे तो इसका दाम मालूम नहीं है। यहूदी ने देखा कि लड़का बिल्कुल बुद्धू है
तो उस ने कहा, मैं इसे एक अशर्फी में ले सकता हूँ। यद्यपि उस का दाम कई अशर्फियाँ
थीं जैसा अलादीन को बाद में मालूम हुआ, किंतु अलादीन ने बड़ी खुशी से यह मंजूर कर
लिया। यहूदी अब यह सोच कर पछताने लगा कि यह लड़का इतना मूर्ख है तो उसे एक अशर्फी
से भी कम क्यों नहीं दिया। कुछ देर विचार करने के बाद वह अलादीन के पीछे दौड़ा कि
उस से अपनी अशर्फी ले कर और सस्ता सौदा करे किंतु अलादीन इतनी दूर निकल गया था कि
यहूदी की समझ में नहीं आया कि वह किधर गया।
अलादीन के अशर्फी भुना कर
कुछ पैसों से भोजन लिया और घर आ कर शेष रकम माँ को दे दी कि उस से अनाज आदि खाद्य
वस्तुएँ ला कर खाना पकाने का इंतजाम करे। कई दिनों तक इस तरह काम चला, फिर जब सारा
सामान खत्म हो गया तो अलादीन दूसरी रकाबी यहूदी के पास ले गया। पहले यहूदी ने उस
के एक अशर्फी से भी कम दाम लगाए किंतु अलादीन झिझका। यहूदी को डर हुआ कि कहीं
अलादीन किसी और से उस का दाम न पूछ बैठे। इसलिए उस ने कहा, यह एक अशर्फी की तो
नहीं है फिर भी जो दाम मैं एक बार दे चुका हूँ उस में कमी नहीं करूँगा। यह कह कर
उस ने उसे एक अशर्फी दे दी।
अलादीन का काम इसी तरह
चलता रहा। जब अशर्फी से खरीदा हुआ सामान खत्म हो जाता तो वह एक रकाबी ले कर फिर
उसी यहूदी के हाथ बेच आता। इसी तरह धीरे-धीरे सारी चाँदी की रकाबियाँ खत्म हो गईं।
फिर वह सोने का थाल ले कर उसी यहूदी के पास गया। उस थाल का मूल्य सैकड़ों
अशर्फियों का था किंतु धूर्त यहूदी व्यापारी ने उस के बदले दस अशर्फियाँ दीं।
अलादीन उसी से खुश हो गया।
जादूगर के दो दिन के साथ
का एक अच्छा असर यह हुआ कि अलादीन खेल में समय बरबाद करने के बजाय बाजार में जा कर
व्यापारियों से बातें करने लगा और उन से क्रय-विक्रय के ढंग सीखने लगा। यद्यपि वे
लोग उसे निर्धन बालक जान कर मुँह न लगाते थे किंतु वह चुपचाप ही उनकी बातें सुन कर
व्यापार और लेन-देन के व्यवहार की कुछ बातें सीखने लगा। एक-आध व्यापारी उसे पहचान
भी गए और कभी-कभी फुरसत में उस के साथ बात भी करने लगे।
थाल की दस अशर्फियाँ भी
उस से खर्च हो गईं तो अलादीन ने फिर जादू के चिराग को हलके से रगड़ा। वह जिन्न
सामने आ गया और नम्रतापूर्वक बोला, स्वामी, मेरे लिए क्या आज्ञा है? मैं और मेरे
अन्य कई साथी जिन्न हर समय उस आदमी की सेवा में तत्पर रहते हैं जिस के पास यह दीया
है। आप क्या चाहते हैं? अलादीन ने कहा, मैं भूखा हूँ। पहले की तरह मेरे लिए भोजन
लाओ। जिन्न यह सुन कर गायब हो गया और दो क्षण ही में पहले जैसा स्वादिष्ट व्यंजनों
से भरा थाल और शराब की सुराहियाँ और चाँदी के गिलास ले कर उपस्थित हो गया और सारा
सामान जमीन पर रख कर गायब हो गया।
इस समय अलादीन की माँ
बाहर गई हुई थी। लौट कर घर में खाद्य पदार्थों से भरा हुआ थाल देखा तो समझ गई कि
अलादीन ने फिर चिराग के जिन्न की मदद ली है। किंतु इस बार वह कुछ न बोली। दोनों ने
उस समय और उस के दो दिन बाद तक वही भोजन किया। फिर पहले की तरह अलादीन एक चाँदी की
रकाबी ले कर बाजार गया ताकि उसे यहूदी के हाथ बेचे।
रास्ते में एक ईमानदार
सर्राफ की दुकान पड़ती थी। अलादीन जब कपड़ों में रकाबी छुपाए उधर से निकला तो
सर्राफ ने उसे बुला कर कहा, बेटे, मैं ने कई बार देखा है कि तुम वस्त्रों में कुछ
छुपा कर यहूदी व्यापारी के पास जाते हो और फिर बगैर उस वस्तु के वापस आते हो।
मालूम होता है कि तुम उस के हाथ कोई चीज बेचा करते हो। शायद तुम्हें यह नहीं मालूम
की वह यहूदी एक नंबर का बेईमान है, बाजार में उस से बड़ा ठग कोई नहीं है। उस से एक
बार भी सौदा करके लोग उस की धूर्तता को समझ लेते हैं और तुम बराबर उसी से व्यवहार
रखते हो। वह निश्चय ही तुम्हें बराबर ठगता रहेगा। तुम अगर कोई चीज बेचते हो तो
मुझे दिखाओ। मैं तुम्हें उस चीज का ठीक मूल्य दूँगा और अगर वह चीज इतनी कीमती है
कि मैं खुद उसे खरीद न सकूँ तो बाजार में बड़े व्यापारियों के पास जा कर उसे सही
दामों पर बिकवा दूँगा।
अलादीन ने यह सुन कर
रकाबी अपने कपड़ों से निकाली और सर्राफ को दिखाई। उस ने उसे परख कर कहा, यह तो
बहुत मूल्यवान वस्तु है। क्या तुमने ऐसी रकाबियाँ यहूदी के हाथ बेची हैं? और बेची
हैं तो उस ने क्या दाम लगाए हैं? अलादीन ने कहा, ऐसी बारह रकाबियाँ मैं यहूदी के
हाथ बेच चुका हूँ और उस ने हर रकाबी की कीमत एक अशर्फी दी है। यहूदी ने कहा, बड़ा
अनर्थ हो गया। यह रकाबियाँ बहत्तर-बहत्तर अशर्फियों की हैं। मैं तुम्हें इस के
बदले में बहत्तर अशर्फियाँ देता हूँ। तुम और जगह जा कर पूछ लो। अगर किसी ने इस से
अधिक मूल्य लगाया तो मैं तुम्हें इसका दुगुना दूँगा। लेकिन तुम यह बात यहूदी से न
कहना वरना वह मुझ से झंझट करेगा। अलादीन ने उसे धन्यवाद दिया और किसी और जगह सौदा
न किया। कई वर्षों तक माँ-बेटे का काम इस धन से बड़ी आसानी से चला। वे चाहते तो
जिन्न से असंख्य धन ले सकते थे किंतु उन्हें उस से अधिक की जरूरत ही महसूस नहीं
हुई।
इस अरसे में अलादीन अक्सर
सर्राफे और जौहरी बाजार में जाया करता और तरह- तरह के रत्नों को देखा करता। अब वह
समझ गया कि अपने घर में उस ने जो चीजें पत्थर के फल समझ कर रक्खी थीं वे पत्थर
नहीं बल्कि ऐसे रत्न हैं जिन के मुकाबले में जौहरियों की दुकानों में रक्खे हुए
रत्न कोई हैसियत नहीं रखते। फिर भी उस की हिम्मत उन का सौदा करने की न हुई,
क्योंकि फौरन यह सवाल उठता कि इतने बड़े रत्न कहाँ से आए। उस ने इस बारे में माँ
से भी कुछ नहीं कहा। वह या तो इस पर विश्वास न करती या दूसरों से इसका उल्लेख कर
देती।
एक दिन अलादीन बाजार में
घूम रहा था। उस ने सुना कि बादशाह की तरफ से मुनादी हो रही है कि कल न कोई
व्यापारी अपनी दुकान खोले न कोई आदमी बाजार में या सड़कों पर दिखाई दे। कल शहजादी
बदर बदौर शहर के बड़े हम्माम में स्नान करेगी और फिर अपने महल को जाएगी। अलादीन
स्वभाव से बेफिक्रा तो था ही, उस की इच्छा होने लगी कि किसी तरह उस शहजादी को
देखना चाहिए जिसके परदे के लिए इतना प्रबंध हो रहा है। उस ने हम्माम के सामने का
एक मकान एक दिन के लिए किराए पर लिया और दूसरे दिन मुँह अँधेरे ही उस में जा कर
किवाड़ बंद कर लिए और वहीं बैठ कर किवाड़ों की दरारों से हम्माम की ओर देखने लगा।
कुछ देर बार अपनी दासियों के साथ शहजादी आई और हम्माम के बाहर उस ने अपने चेहरे से
नकाब उतारा और भारी कपड़े भी उतारे और हम्माम में चली गई।
अलादीन ने उस समय तक अपनी
बूढ़ी और कुरूप माँ के अलावा कोई स्त्री देखी ही नहीं थी और जानता ही नहीं था कि
स्त्रियों का सौंदर्य कैसा होता है। यहाँ उस के सामने स्वयं राजकुमारी आ गई थी जिस
से बढ़ कर सारे चीन देश में कोई सुंदरी नहीं थी। यह उस के अनिंद्य सौंदर्य को देख
कर गश खा कर गिर पड़ा। कुछ देर में वह होश में आया तो सोचा कि अब यहाँ ठहरने से
कोई लाभ नहीं क्योंकि शहजादी की एक दासी ने उस से कहा था, इस समय आप ने नकाब बाहर
उतार दिया तो कोई बात नहीं किंतु हम्माम से खुले मुँह बाहर न निकलिएगा। अलादीन ने
दरवाजे में अंदर से जंजीर लगाई और घर के पिछवाड़े से निकल कर छोटी गलियों से
छुपता-छुपाता अपने घर पहुँच गया। घर जा कर वह मुँह ढाँप कर
लेटा रहा क्योंकि वह शहजादी के प्रेम में जकड़ चुका था और विरह-व्यथा को सहन नहीं
कर पा रहा था। वह रह-रह कर ठंडी साँसें भी भरता था। उस की माँ को देख कर आश्चर्य
हुआ कि कल तक तो लड़का ठीक-ठाक था, आज इसे क्या हो गया है। उस ने पूछा, बेटे, क्या
तुम्हारी तबीयत खराब है जो इस तरह लेटे हुए आहें भर रहे हो? अलादीन ने कोई उत्तर
नहीं दिया। माँ ने उस समय अधिक पूछताछ नहीं की क्योंकि उसे भोजन भी बनाना था। वह
भोजन बनाती रही और अलादीन उसी तरह लेटा हुआ आहें भरता रहा। उस की माँ खाना बना कर
उस के पास लाई और दोनों खाने लगे किंतु अलादीन ने दो-चार कौर ही खाए और खाने से
हाथ खींच लिया। उस की माँ ने फिर पूछा, क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं जो खाना नहीं
खा रहे हो? अलादीन ने कुछ बहाना बना दिया और अपनी व्यथा माँ से न कही।
शाम के खाने के समय भी उस
का यही हाल रहा तो उस की माँ ने फिर उस के दुख का कारण पूछा। उस ने फिर चुप साध
ली। माँ भी पूछते-पूछते थक गई थी और झुँझला कर चुप हो रही कि अपना कष्ट नहीं बताता
तो न बताए। अलादीन रात भर शहजादी की याद में तड़पता रहा। लेकिन अब उस की
विरह-व्यथा उस के बर्दाश्त के बाहर हो गई थी। वह उठ कर अपनी माँ के पास जा बैठा जो
चर्खा कात रही थी। उस ने कहा, अम्मा, तुम कल से मेरी तकलीफ के बारे में पूछ रही हो
और मैं छुपाता रहा हूँ। अब मैं तुम से अपना कष्ट कहता हूँ। मुझे कोई बीमारी नहीं
है और न मुझे किसी हकीम के पास जाने की जरूरत है। कल शहजादी के हम्माम में जाने की
परसों मुनादी हुई थी। कल मैं ने एक जगह छुप कर शहजादी का अनुपम सौंदर्य देखा। उसे
देखते ही मेरे मन की ऐसी दशा हो गई जिसे मैं बता नहीं सकता। मैं उस के विरह में
व्याकुल हूँ। यही मेरी बीमारी है और इस बीमारी का इलाज सिर्फ यही हो सकता है कि
मैं बादशाह से प्रार्थना करूँ कि वह अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दे।
उस की माँ यह सुन कर
हँसने लगी और बोली, अलादीन, तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है। मेरे सामने कहा सो
कहा, और किसी के सामने ऐसी पागलपन की बात न करना। अलादीन ने कहा, मैं जानता हूँ कि
तुम यही कहोगी। मैं तुम्हें बता देना चाहता हूँ कि मैं पागल नहीं हूँ और मैं
राजकुमारी से अवश्य विवाह करूँगा। उस की माँ ने कहा, लड़के, तू क्या बेकार की
बातें कर रहा है। क्या तुझे याद नहीं रहा कि तू एक मामूली दरजी का बेटा है और तेरा
पिता बादशाह की प्रजा में एक निर्धन व्यक्ति था? तुझे क्या यह बात भी नहीं मालूम
कि बादशाह लोग विवाह-संबंध या तो बादशाह में करते हैं या फिर मंत्री आदि के कुलीन
घरानों में? अगर वे ऐसा न करें तो उनकी प्रजा में कुछ प्रतिष्ठा न रहे और राज्य का
प्रबंध भी चौपट हो जाए।
अलादीन ने कहा, अम्मा, जो
कुछ तुम ने कहा वह सब ठीक है लेकिन मैं राजकुमारी से विवाह किए बगैर नहीं रह सकता।
तुम्हें शाही महल में जा कर शहजादी के साथ मेरे विवाह का प्रस्ताव करना ही पड़ेगा।
शहजादी से मेरा विवाह नहीं हुआ तो मैं जीवित न रह सकूँगा। वैसे भी उस के वियोग में
आधा तो मर ही चुका हूँ और उस के बगैर मैं जीवन वृथा भी समझता हूँ। उस की माँ यह
सुन कर बहुत घबराई। वह कातर हो कर कहने लगी, देखो बेटे, हमें वही काम करना चाहिए
जो हमें शोभा दें। और वही बातें कहनी चाहिए जो हमारे मुँह से अच्छी लगें। कहाँ
राजा भोज, कहाँ गँगुआ तेली। तुम किसके सपने देख रहे हो। अगर अपनी हैसियत के किसी परिवार
की कन्या होती तो मैं बगैर झिझक तुम्हारे विवाह का प्रस्ताव ले कर जाती। लेकिन
इतने बड़े बादशाह के सामने ऐसा प्रस्ताव रखने की मेरी हिम्मत कैसे हो सकती है।
मेरी तो हालत यह है कि तुम्हारा बाप भी मुझ पर बिगड़ता था तो मैं डर के मारे
काँपने लगती थी और तुम कह रहे हो कि मैं बादशाह से बात करूँ और वह भी ऐसे विषय पर
जिसे मानने के लिए दुनिया में कोई भी तैयार नहीं होगा।
अलादीन इस पर भी अपनी जिद
पर अड़ा रहा और रोता-पीटता रहा तो उस की माँ ने कहा, अच्छा, मैं बादशाह के पास चली
जाऊँगी। लेकिन बड़े लोगों विशेषतः बादशाहों के पास कोई जाता है तो खाली हाथ नहीं
जाता, कुछ भेंट ले कर जाता है। बादशाह के पास जाने के लिए कोई भेंट भी होनी चाहिए
जो उस की प्रतिष्ठा के अनुकूल हो। मेरे पास ऐसी कौन-सी चीज हो सकती है जो बादशाह
को भेंट कर सकूँ? तुम क्यों ऐसी बात पर जिद कर रहे हो जो हो ही नहीं सकती। तुम
शहजादी का खयाल दिल से निकाल दो।
अलादीन ने कहा, अम्मा,
तुम क्या कर रही हो? शहजादी का प्रेम मेरे हृदय में इतना गहरा जम चुका है कि या तो
शहजादी का आलिंगन करूँगा या मृत्यु का। मैं तुम से विनय करता हूँ कि अगर तुम्हें
मेरे जीवन से जरा-सा लगाव है तो तुम यह ऊहापोह छोड़ कर बादशाह से बात करने चली
जाओ। मेरा मन कहता है कि तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। और जो तुम ने यह कहा कि
तुम्हारे पास बादशाह को भेंट देने योग्य कोई वस्तु नहीं है तो मैं उस का उपाय भी
बताता हूँ। जिन अलभ्य रत्नों को मैं गुफा से लाया था और जिन्हें तुम अभी तक
रंग-बिरंगे पत्थर समझे हुए हो वे अमूल्य हैं। पहले मैं भी नहीं जानता था कि वे
क्या चीज हैं किंतु इतने वर्षों से बाजार में घूम कर मैं ने देख लिया है कि यहाँ
के जौहरियों की दुकानों में जितने रत्न हैं उन सभी से कहीं बड़े और चमकदार मेरे
लाए हुए रत्न हैं। इनसे बढ़ कर बादशाह को कोई भी व्यक्ति कुछ भेंट नहीं दे सकता।
तुम अंदर जा कर उन रत्नों को उठा लाओ। मैं उन्हें रगड़ कर और चमका दूँगा और आकार
तथा रंग के अनुसार उन्हें एक चीनी पात्र में सजा दूँगा जिस से वे बादशाह के सामने
पेश किए जाए। तुम देखोगी तो खुद ही उन्हें पसंद करोगी।
अतः अलादीन की माँ अंदर
के ताक से उन ढेर सारे रत्नों को उठा लाई। अलादीन ने उन्हें रगड़ कर चमकाया और फिर
चीनी के एक सुंदर पात्र में सजा कर रखा तो वे सूर्य के प्रकाश में ऐसी चमक देने
लगे कि उन पर निगाह नहीं ठहरती थी। अलादीन ने अपनी माँ से कहा, अब इन्हें देखो।
तुम विश्वास करो कि इनसे बढ़ कर बादशाह को कोई और भेंट नहीं दी जा सकती। अब तुम
बताओ कि तुम्हें बादशाह के पास जाने में क्या दिक्कत है।
यद्यपि रत्न बहुत ही
जगमगा रहे थे तथापि बुढ़िया उनका मूल्य न जानने के कारण तकरार करती रही। वह बोली,
इन बेकार पत्थरों में क्या रखा है? इस भेंट से बादशाह कैसे खुश हो सकते हैं? तेरा
मनोरथ पूरा न होगा और मैं यूँ ही वापस आ जाऊँगी। मैं जो कुछ कहती हूँ वही होगा।
फिर मान लो कि मैं ने बादशाह से तेरे विवाह का प्रस्ताव किया भी तो वह मेरी बात पर
हँसेगा और मुझे पागल समझ कर दरबार से धक्के दे कर निकलवा देगा। यह भी संभव है कि
कुपित हो कर मुझे और तुम्हें दोनों को मरवा डाले। बेटा, मैं फिर कहती हूँ कि तुम
यह नादानी छोड़ दो और अपने जैसे किसी परिवार की लड़की से शादी कर लो।
अलादीन इस पर भी अपनी जिद
पर अड़ा रहा तो उस की माँ ने कहा, अच्छा, यह बताओ कि अगर बादशाह ने मुझ से पूछा कि
तुम कहाँ रहती हो और तुम्हारी आर्थिक हैसियत क्या है तो मैं क्या जवाब दूँगी? क्या
मैं उस से यह कहूँगी कि मैं गरीब दरजी की विधवा हूँ और झोपड़े जैसे मकान में रहती
हूँ? अलादीन ने कहा, तुम इस की भी चिंता न करो। मेरे पास जादू का चिराग है। चिराग
का जिन्न इतना शक्तिशाली है कि मैं उस से जो कुछ भी माँगूगा वह तुरंत प्रस्तुत कर
देगा। तुम तो कई बार यह देख चुकी हो कि कुछ भी माँगा है तो उस जिन्न ने तुरंत ला
कर दे दिया है।
जिन्न की बात सुन कर
बुढ़िया को भी भरोसा हुआ और उस का साहस बँधने लगा और उसे आशा होने लगी कि उस का
मनोरथ सिद्ध हो जाएगा। उस ने स्वीकार कर लिया कि कल वह शाही दरबार में जाएगी और
विवाह का प्रस्ताव करेगी। अगर वह यह वादा न करती तो और करती भी क्या, अलादीन तो
बुरी तरह उस के पीछे पड़ गया था और किसी तरह मानता ही न था। अलादीन ने, जो अब बाहर
घूम कर फिर कर लोक-व्यवहार में कुशल हो गया था, माँ से यह भी कहा कि यह प्रस्ताव
बादशाह को छोड़ कर और किसी के कानों में नहीं पड़ना चाहिए। माँ ने यह मंजूर कर
लिया।
यह सब तय करने के बाद
दोनों अपने-अपने बिस्तरों में चले गए। बुढ़िया तो सो गई किंतु अलादीन को अपनी
प्रेयसी की याद में नींद नहीं आई। रात भर वह तड़पता रहा। सुबह जल्दी ही उठ कर उस
ने माँ को जगाया और कहा, दरबार का समय होनेवाला है। तुम शीघ्र ही नए वस्त्र पहन कर
दरबार को जाओ। बुढ़िया ने रत्नों के पात्र को एक रेशमी रूमाल से बाँधा। इस के बाद
उसे भी एक दूसरे कपड़े में बाँध कर वह दरबार को गई। वहाँ जा कर वह चकरा गई।
दीवानखाना बहुत बड़ा था, मंत्री और सभासदों के अलावा प्रजाजनों की भी भीड़ थी जो
अपनी-अपनी फरियादें ले कर आए थे। बादशाह सब की बातें धैर्यपूर्वक सुनता था और उचित
निर्णय देता था। सारे मुकदमों का फैसला करके बादशाह राजमहल में चला गया। वहाँ अपने
विशेष राजकक्ष में उस ने मंत्री से आने को कहा और बाकी लोग धीरे-धीरे दरबार से
विदा हो गए। कुछ देर में मंत्री भी राज्य-प्रबंध के आदेश ले कर निकल आया और बाकी
दरबार भी बर्खास्त हो गया। अलादीन की माँ भी यह सोच कर घर वापस आ गई कि बादशाह से
भेंट न होगी।
अलादीन ने उसे वस्त्रों
की पोटली के समेत देखा तो समझ गया कि इसकी भेंट बादशाह से नहीं हुई हैं। वह व्यग्र
हो कर माँ से सारा हाल पूछने लगा। माँ ने कहा, मुझ से किसी ने रोक-टोक नहीं की।
मैं ने बादशाह को अच्छी तरह देखा। मैं बहुत देर तक उस के सामने खड़ी रही लेकिन
बादशाह को इतनी फुरसत नहीं मिली कि मुझ से मेरी बात पूछता। हाँ, मैं ने यह जरूर
देखा कि बादशाह अनावश्यक रूप से किसी पर क्रोध नहीं करता और सब का हाल धैर्यपूर्वक
सुन कर ठंडे दिमाग से फैसले करता है। वह हर एक छोटे-बड़े की बातें ध्यानपूर्वक
सुनता है, सचमुच उस जैसा प्रजापालक नरेश कोई नहीं होगा। आज उसे मुझ से बात करने का
अवकाश नहीं मिला। लेकिन मैं कल फिर जाऊँगी और आशा है उस से बात कर सकूँगी। अलादीन
को यह सोच कर संतोष हुआ कि माँ की हिम्मत खुल गई है, वह देर-सवेर विवाह का प्रस्ताव
कर ही देगी।
बुढ़िया दूसरे दिन फिर
उसी तरह तैयार हो कर दरबार पहुँची। किंतु उस का जाना व्यर्थ ही सिद्ध हुआ। दरबार
का द्वार बंद था और वहाँ के कर्मचारियों ने उसे बताया कि दो दिनों तक दरबार में
छुट्टी रहेगी। अतएव वह दरबार से वापस लौट आई और दरबार की छुट्टी की बात अलादीन को
बताई। तीसरे दिन फिर वह दरबार में गई किंतु उस दिन भी बड़ी भीड़ थी और उसे बादशाह
से बात करने का मौका नहीं मिला। इस के बाद वह बराबर कई दिनों तक दरबार में पहुँची
लेकिन कभी उस ने बादशाह से बात करने का अवसर नहीं पाया। रोजाना आधा दिन वहाँ बिताती
और फिर घर वापस आ जाती।
(अगली पोस्ट में जारी……)
स्रोत-इंटरनेट से कापी-पेस्ट
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें