बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

अलिफ लैला 45 शहजादा अबुल हसन और हारूँ रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहार की कहानी (भाग 1)

 खलीफा हारूँ रशीद के शासनकाल में बगदाद में एक अत्यंत धनाढ्य और सुसंस्कृत व्यापारी रहता था। वह शारीरिक रूप से तो सुंदर था ही, मानसिक रूप से और भी सुंदर था। वहाँ के अमीर-उमरा उसका बड़ा मान करते। यहाँ तक कि खलीफा के आवास के लोगों में भी वह विश्वस्त था और महल की उच्च सेविकाएँ उसी के यहाँ से वस्त्राभूषण आदि लिया करती थीं। खलीफा का कृपापात्र होने के कारण सभी प्रतिष्ठित नागरिक उसके ग्राहक थे और उसका व्यापार खूब चलता था। बका नामक एक अमीर का बेटा अबुल हसन विशेष रूप से उसका मित्र था और रोज दो-तीन घंटे उसकी दुकान पर बैठता था। बका फरस देश के अंतिम राजवंश का व्यक्ति था इसलिए अबुल हसन को भी शहजादा कहा जाता था।
अबुल हसन अत्यंत रूपवान युवक था। जो स्त्री-पुरुष भी उसे देखता वह मोहित हो जाता था। इसके अतिरिक्त अबुल हसन बड़ा कला प्रवीण था। गायन-वादन और कविता करने में भी वह अद्वितीय था। वह व्यापारी की दुकान में जब गाना-बजाना शुरू कर देता था तो उसे सुनने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी।
एक दिन शहजादा अबुल हसन व्यापारी की दुकान पर बैठा था। उसी समय चितकबरे रंग के खच्चर पर सवार एक युवती आई। उसके आगे-पीछे दस सेविकाएँ भी थीं। वह सुंदरी कमर में एक सफेद पटका बाँधे थी जिसमें चार अंगुल चौड़ी लेस टँकी हुई थी। वह हीरे-मोती जड़े इतने आभूषण पहने थी जिनके मूल्य का अनुमान भी कठिन काम है। उसकी दासियों की सुंदरता भी झिलमिले नकाबों के अंदर से झलक मारती थी, फिर स्वयं स्वामिनी की सुंदरता का क्या कहना।
वह युवती अपनी जरूरत का कुछ सामान लेने के लिए उक्त व्यापारी की दुकान पर आई। व्यापारी उसे देख कर झपट कर आगे बढ़ा और अत्यंत स्वागत-सत्कारपूर्वक उसे दुकान के अंदर ले आया और एक सज्जित कक्ष में बिठाया। शहजादा अबुल हसन भी एक कमख्वाब से मढ़ी हुई तिपाई ले आया और सुंदरी के सामने उसे रख कर उसके पाँव उस पर रखे और झुक कर कालीन की उस जगह का चुंबन किया जहाँ उसके पाँव रखे थे।
अब उस सुंदरी ने सुरक्षित स्थान समझ कर अपने चेहरे का नकाब उतार दिया। शहजादा अबुल हसन उसके अनुपम सौंदर्य को देख कर आश्चर्यचकित रह गया। वह सुंदरी भी शहजादे के मोहक रूप को देख कर मोहित हो गई। दोनों एक दूसरे के प्रेम-पाश में जकड़ गए। सुंदरी ने कहा कि आप बैठ जाएँ, मेरे सन्मुख आपका खड़े रहना ठीक नहीं। अबुल हसन बैठ तो गया किंतु चित्रवत उसे देखता ही रहा।
वह सुंदरी शहजादे की दशा से समझ गई कि यह मुझ पर मुग्ध है। उसने उठ कर व्यापारी को अलग ले जा कर अपनी इचिछत वस्तुओं के बारे में पूछताछ और मोलभाव किया और फिर उस शहजादे का नाम-पता पूछा। व्यापारी ने कहा, महोदया, यह नौजवान अबुल हसन है। यह बका का पुत्र है। इसका दादा ईरान का अंतिम बादशाह था। इसके परिवार की कई कन्याएँ खलीफा के वंश में ब्याही गई हैं। वह सुंदरी इस बात से बड़ी प्रसन्न हुई कि उच्चवंशीय है। उसने व्यापारी से कहा, मुझे यह नौजवान बड़ा सुसंस्कृत लगता है और इसके साथ बात कर के मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है। आप की सहायता से मुझे इससे भेंट होने की आशा है। मैं एक विशेष दासी को आपके पास भेजूँगी। उस समय आप इसे अपने साथ ले कर मेरे यहाँ आएँ। मैं इसे अपने बाग और महल की सैर कराऊँगी और इससे उसका जी खुश होगा। आप मुझ पर कृपा कर के इसे अपने साथ जरूर लाएँ।
व्यापारी समझ गया कि सुंदरी भी शहजादे पर मुग्ध है। उसने शहजादे को लाने का वादा किया। इसके बाद वह अनिंद्य सुंदरी अपने रूप की छटा बिखेरती हुई अपने घर को चल दी। शहजादा बड़ी देर तक टकटकी लगाए उस मार्ग को देखता रहा जहाँ से हो कर वह गई थी। काफी देर इसी तरह बीती तो व्यापारी ने कहा, भाई, यह तुम्हें क्या हो गया है? एक ही जगह पागल की तरह देखे जा रहे हो। लोग तुम्हें इस दशा में देखेंगे तो कितना हँसेंगे। तुम अपने को सँभालो और दूसरी बातों में ध्यान लगाओ।
शहजादे ने कहा, मित्र, यदि तुम मेरे हृदय की दशा जानते तो शायद ऐसा कहते। जब से मैंने उस मनमोहिनी को देखा है, मैं उसी का हो रहा हूँ। उसका ध्यान बिल्कुल नहीं भुला पा रहा हूँ। भगवान के लिए यह तो बताओ कि उसका नाम क्या है और वह कहाँ रहती है। व्यापारी ने कहा, मेरे प्यारे मित्र, इस सुंदरी का नाम शमसुन्निहार है। यह खलीफा की सबसे चहेती सेविका है। अबुल हसन ने कहा, यह सुंदरी यथा नाम तथा गुण है। शमसुन्निहार का अर्थ है दोपहर का सूर्य। इसका सौंदर्य वास्तव में दोपहर की सूर्य की भाँति प्रखर है जिस पर निगाह नहीं ठहरती। इसीलिए एक बार इसे देखने पर मैं और कुछ देख नही पा रहा हूँ।
व्यापारी ने समझाना चाहा कि उस सुंदरी के प्रेम में फँसना ठीक नहीं है। उसने कहा, यह खलीफा की सबसे प्यारी सेविका है और वे इसे इतना मानते है कि मुझे कह रखा है कि इसे जिस चीज की जरूरत हो इसे तुरंत दी जाए, यह मेरा निश्चित आदेश है। इस प्रकार व्यापारी ने और भी बातें कहीं कि खलीफा का प्रेम-प्रतिद्वंद्वी बनने में जान का खतरा है। लेकिन अबुल हसन पर उसके समझाने-बुझाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह शमसुन्निहार के लिए तड़पता रहा।
यह सब चल रहा था कि एक दिन शमसुन्निहार की भेजी हुई विशेष दासी आई। उसने चुपके से व्यापारी से कहा कि स्वामिनी ने आपको और शहजादे को बुलाया है। वे दोनों तुरंत उसके साथ हो लिए। शमसुन्निहार खलीफा के विशाल राजप्रासाद के एक कोने में बने हुए भव्य आवास में रहती थी। दासी दोनों आदमियों को अपनी स्वामिनी के आवास में एक गुप्त द्वार से ले गई। अंदर ले जा कर उसने दोनों को एक स्वच्छ और सुंदर स्थान पर बिठाया। तुरंत ही सुसंस्कृत सेवकों ने सोने की तश्तरियों में भाँति-भाँति के खाद्य पदार्थ ला कर रख दिए। जब वे लोग जी भर खा चुके तो एक दासी उनके लिए सुगंधित मदिरा मूल्यवान प्यालों में लाई। मद्यपान के बाद उनके हाथ धुलवाए गए और भाँति-भाँति के इत्र उनके सामने लाए गए जिन्हें उन्होंने अपने कपड़ों पर मला।
इसके बाद वही विश्वस्त दासी इन लोगों को एक अति सुंदर बारहदरी में ले गई। उसकी छत गुंबद की तरह थी और उसमें रत्न जड़े थे। सामने की ओर संगमरमर के दो विशाल खेमे थे जिनमें नीचे की ओर भाँति-भाँति के पशु-पक्षियों के सुंदर रंगों में मनोहारी चित्र बने थे। बारहदरी के फर्श पर भी तरह-तरह के फूल-बूटों के चित्र बने थे। एक ओर नाजुक-सी दो अल्मारियाँ रखी थीं। जिनमें चीनी, बिल्लौर, संगमूसा आदि के अत्यंत सुंदर पात्र रखे हुए थे। उन पात्रों पर सोने के पानी से बड़े सुंदर चित्र बने थे और सुलेख लिखे हुए थे। दूसरी ओर के खंभों में दरवाजे लगे थे। जिसके बाद बरामदा था। बरामदे के बाद बाग था। बाग की जमीन पर भी रंगीन पत्थर जड़े हुए थे। बारहदरी के दोनों ओर दो सुंदर और बड़े हौज थे जिनमें सैकड़ों फव्वारे छूट रहे थे। बाग में बीसियों तरह के पक्षी वृक्षों पर बैठे चहचहा रहे थे।
यह लोग उस अनुपम शोभा का आनंद ले ही रहे थे कि बहुत-सी दासियाँ जो सुंदर वस्त्राभूषण पहने थीं आईं और बारहदरी में बिछी हुई सुनहरे काम की चौकियों पर बैठ गईं और तरह-तरह के वाद्ययंत्र अपने सामने रख कर उन्हें ठीक करने लगीं ताकि आज्ञा मिलते ही गाना-बजाना शुरू कर दें। यह दोनों भी ऐसे स्थान पर बैठ गए जहाँ से सब कुछ देख सकें। उन्होंने देखा कि एक ओर ऊँची रत्नजटित चौकी रखी है। व्यापारी ने शहजादे से चुपके से कहा, अनुमानतः यह बड़ी चौकी स्वयं शमसुन्निहार के बैठने के लिए है। यह महल खलीफा के राजप्रासाद ही का एक भाग है किंतु इसे विशेष रूप से शमसुन्निहार के लिए बनवाया गया है। कारण यह है कि खलीफा के महल में जितनी दासियाँ और सेविकाएँ हैं उनमें वह सब से अधिक शमसुन्निहार ही को चाहता है। शमसुन्निहार को अनुमति है कि जहाँ चाहे खलीफा से पूछे बगैर चली जाए। खलीफा स्वयं भी जब इसके पास आना चाहता है तो पहले से संदेश भिजवा कर आता है। वह अभी आती ही होगी।
व्यापारी शहजादे से यही वार्ता कर रहा था कि एक दासी ने कर गानेवालियों से कहा कि गाना-बजाना शुरू करो। उन लोगों ने तुरंत अपने-अपने साजों को बजाना शुरू कर दिया और गानेवालियाँ गाने लगीं। शहजादा उस स्वर्गोपम संगीत को सुन कर मुग्ध- सा रह गया। इतने में दासियों ने शमसुन्निहार के आने की घोषणा की। शहजादा भी सँभल कर बैठ गया। सब से पहले वही विशेष और मुख्य दासी आई जिसने दस मजदूरिनों से उठवा कर बड़ी चौकी शहजारे के बैठने की जगह के पास रखवाई। फिर कई हब्शिन बाँदियाँ हथियार ले कर उस चौकी के पीछे पंक्तिबद्ध हो कर खड़ी हो गईं। बीस गायिकाएँ और वाद्यकर्मियाँ सामने खड़ी हो गईं जहाँ से वह आनेवाली थीं।
कुछ ही देर में मंद-मंद हंसगति से चलती हुई शमसुन्निहार उन्हीं प्रतीक्षारत सेविकाओं के मध्य अपनी चौकी की ओर आने लगी। उसकी दासियाँ भी सुंदर थीं किंतु उसके रूप की छटा सब से निराली थी। वह सिर से पाँव तक रत्नजटित आभूषणों से लदी थी और दो दासियों के कंधों पर हाथ रखे हुए धीरे-धीरे चल रही थी। वह कर अत्यंत शालीनतापूर्वक अपने आसन पर विराजमान हुई। बैठने के बाद उसने संकेत से उसका अभिवादन किया। फिर शमसुन्निहार ने गाने-बजानेवाली सेविकाओं को आज्ञा दी कि अपनी कला का प्रदर्शन करें। हब्शिनों ने गानेवालियों की चौकियाँ उस जगह के समीप लगा दीं जहाँ व्यापारी और शहजादे की चौकी बिछी थी। वे गानेवालियाँ व्यवस्थापूर्वक अपनी चौकियों पर बैठ गईं।
शमसुन्निहार ने एक गानेवाली से कहा कि कोई श्रृंगारिक राग गाओ। उसने अत्यंत मृदु स्वर में एक तड़पता हुआ गीत गाया। यह गीत शहजादे और शमसुन्निहार की दशा को व्यक्त कर रहा था। शहजादा भावातिरेक में बेहाल हो गया। उसने एक वादिका से बाँसुरी ली और बाँसुरी पर तड़पते हुए प्रेम की एक ध्वनि निकाली और बहुत देर तक उसे बजाता रहा। जब उसने बजाना खत्म किया तो शमसुन्निहार ने वही बाँसुरी उससे ली और एक हृदयग्राही ध्वनि निकाली जिसमें शहजादे की बजाई रागिनी से अधिक तड़प थी। शहजादे ने फिर एक वाद्य यंत्र लिया और एक अति मोहक रागिनी उस पर बजानी शुरू की। अब ऐसा वातावरण हो गया कि शहजादा और शमसुन्निहार इतने प्रेम विह्वल हो गए कि उनका संयम जाता रहा। शमसुन्निहार अपनी चौकी से उठ कर बारहदरी के अंदरूनी हिस्से में जाने लगी। शहजादा भी उसके पीछे चल दिया। दो क्षण बाद ही दोनों आलिंगनबद्ध हो गए और सुध-बुध खो कर जमीन पर गिर पड़े।
दासियों ने दौड़ कर दोनों को सँभाला और बेदमुश्क का अरक छिड़क कर दोनों को चैतन्य किया। शमसुन्निहार ने होश में आते ही पूछा कि व्यापारी कहाँ है। व्यापारी बेचारा अपनी जगह बैठा काँप रहा था। उसकी समझ में नहीं रहा था कि इस कांड की परिणति कहाँ होगी और खलीफा को यह हाल मालूम हो जाएगा तो क्या होगा। शहजादे ने कर कहा कि शमसुन्निहार तुम्हें बुलाती है तो वह उठ कर उसके पास आया। शमसुन्निहार ने उससे कहा कि मैं आप की बड़ी आभारी हूँ कि आप ने शहजादे से मेरा मिलन करवा दिया। व्यापारी ने कहा, मुझे यह आश्चर्य है कि आप लोग एक-दूसरे से मिलन होने पर भी इतने विह्वल क्यों हैं। शमसुन्निहार ने कहा कि सच्चे प्रेमियों की यही दशा होती है, उन्हें वियोग का दुख तो सालता ही है, मिलन में भी उनकी व्याकुलता कम नहीं होती।
यह कहने के बाद शमसुन्निहार ने दासियों को भोजन लाने की आज्ञा दी। शमसुन्निहार, शहजादे और व्यापारी ने रुचिपूर्वक भोजन किया। फिर शमसुन्निहार ने शराब का प्याला उठाया और एक गीत गा कर उसे पी गई। दूसरा प्याला उसने शहजादे को दिया। उसने भी एक गीत गा कर प्याला पी लिया।
यह आनंद मंगल हो ही रहा था कि एक दासी ने धीरे से कहा कि खलीफा का प्रधान सेवक मसरूर खलीफा का संदेश लाया है और आपकी प्रतीक्षा में खड़ा है। शहजादा और व्यापारी यह बात सुन कर बड़े भयभीत हुए और उनके मुँह पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। शमसुन्निहार ने उन्हें धीरज बँधाया और दासी से कहा कि तुम मसरूर को कुछ देर बातों में उलझाओ ताकि मैं शहजादे को छुपा सकूँ, मैं शहजादे को छुपा लूँगी तो मसरूर को बुलाऊँगी। वह दासी गई तो शमसुन्निहार ने आज्ञा दी कि बारहदरी के दरवाजे बंद कर दो और बाग की तरफ लगे बड़े परदे गिरा दो ताकि रोशनी आए। फिर उसने शहजादे और व्यापारी को बारहदरी के ऐसे कोने में बिठा दिया जहाँ से वे किसी को दिखाई दें। यह सब कर के उसने पूर्ववत गाने-बजाने वालियों को कला प्रदर्शन की आज्ञा दी और आदेश दिया कि मसरूर को अंदर लाया जाए।
मसरूर बीस दासों के साथ आया और शमसुन्निहार को झुक कर अभिवादन करने के बाद बोला कि खलीफा आपके विरह में व्याकुल हैं और आपसे भेंट के लिए बड़े इच्छुक हैं। शमसुन्निहार ने खुश हो कर कहा, यह तो मेरा बड़ा भाग्य है कि वे कृपा करना चाहते हैं। मैं तो उनकी दासी हूँ। जब चाहें आएँ। लेकिन मसरूर साहब, आप कुछ देर लगा कर ही उन्हें लाएँ। कहीं ऐसा हो कि जल्दी में खलीफा के स्वागत के प्रबंध में कुछ त्रुटि रह जाए।
यह कह कर शमसुन्निहार ने मसरूर और उसके सेवकों को विदा किया और खुद आँखों में आँसू भर कर शहजादे के पास आई। व्यापारी उसे आँसू बहाते देख कर घबराया कि कहीं ऐसा हो कि भेद खुल गया हो। शहजादा भी प्रेम-मिलन में यह अचानक व्याघात देख कर अत्यंत दुखी हो कर आहें भरने लगा। इतने ही में एक विश्वसनीय दासी ने शमसुन्निहार से कहा कि आप बैठी क्या कर रही हैं, नौकर-चाकर आने लगे हैं और खलीफा किसी भी समय सकते हैं। शमसुन्निहार ने सर्द आह खींच कर कहा कि भगवान भी कैसा निर्दयी है कि मिलन होते ही विरह का दुख हम पर डाल दिया। यह कह कर उसने दासी से कहा, इन दोनों को ले जा कर उस मकान में रखो जो बाग के दूसरे कोने पर है। इन्हें बिठा कर मकान में ताला लगा देना। फिर अवसर पाने पर इन्हें मकान के गुप्त द्वार से निकाल कर दजला नदी के किनारे ले जा कर नाव पर बिठा देना।
यह कह कर उसने शहजादे का आलिंगन कर के उसे विदा किया। दासी ने होशियारी के साथ शहजादे और व्यापारी को दजला नदी के तटवाले मकान में पहुँचा कर कहा कि तुम बेखटके यहाँ रहो, किसी को पता नहीं चलेगा। यह कह कर दासी तो मकान में बाहर से ताला लगा कर चली गई किंतु यह दोनों काफी देर तक इधर-उधर घूम कर देखते रहे कि शायद कहीं भागने का रास्ता मिल जाए, किंतु उन्हें कोई रास्ता नहीं मिला। फिर उन्होंने झरोखे से देखा कि खलीफा के अंगरक्षक पैदल और सवार बाग में रहे हैं। यह देख कर इन दोनों के प्राण सूखने लगे। फिर देखा कि एक ओर से बहुत-से नौजवान सेवक हाथों में मोमबत्तियाँ लिए रहे हैं, उनके पीछे सौ हथियारबंद अंगरक्षक हैं और उनके मध्य खलीफा और उसका प्रधान भृत्य मसरूर हैं। जब खलीफा रात को किसी प्रेयसी के घर जाता था तो पूरी सुरक्षा का प्रबंध किया जाता था।
शमसुन्निहार अपने मकान से निकल कर बीस सुंदर सुसज्जित दासियों के साथ खलीफा के स्वागत के लिए बाग में खड़ी हुई। उसके साथ ही दासियाँ स्वागत गान गाने लगीं। खलीफा आया तो शमसुन्निहार आगे बढ़ी और उसने सिर खलीफा के पाँवों पर रख दिया। खलीफा ने उसे उठा कर सीने से लगाया और कहा, तुम पैरों पर गिरो, मेरे बगल में बैठो ताकि मैं तुम्हारे सौंदर्य को देख कर तृप्त होऊँ। शमसुन्निहार खलीफा के बगल में बैठी और उसने एक गानेवाली को इशारा किया। गानेवाली ने एक विरह संबंधी गीत बड़े करुण स्वर में गाया। खलीफा ने समझा कि यह मेरी उपेक्षा से पैदा हुए अपने विरह दुख की अभिव्यक्ति करना चाहती है जब कि वास्तविकता यह थी कि शमसुन्निहार शहजादे के विरह में अपनी दशा की अभिव्यक्ति चाहती थी।
शमसुन्निहार यह विरह गीत सुन कर इतनी विह्वल हुई कि गश खा कर गिरने लगी। दासियों ने दौड़ कर उसे सँभाला। उधर शहजादा भी उस गीत को सुन कर इतना व्याकुल हुआ कि अचेत हो कर गिर पड़ा। उसे व्यापारी ने सँभाला। कुछ ही क्षणों में वही विश्वस्त दासी कर व्यापारी से कहने लगी, तुम दोनों का यहाँ रहना ठीक नहीं है, जल्दी से जल्दी यहाँ से चले जाओ। वहाँ सभा के रंग-ढंग अच्छे नहीं दिखाई देते। किसी क्षण भी कोई बात हो सकती है। व्यापारी बोला, तुम यह तो देखो कि शहजादा बेहोश हो गया है, ऐसी दशा में हम लोग बाहर किस तरह जा सकते हैं।
दासी झपट कर पानी और बेहोशी में सुँघानेवाली दवा ले आई और इस तरह शहजादा अपने होश में आया।
अब व्यापारी ने शहजादे से कहा कि हम लोगों का यहाँ रहना खतरनाक है, हमें तुरंत यहाँ से चल देना चाहिए। इसके बाद वह दासी दोनों को गुप्त द्वार से बाहर निकाल कर उस नहर पर लाई जो बाग से हो कर जाती थी और दजला नदी से मिलती थी। वहाँ पहुँच कर उसने धीरे से आवाज लगाई। एक आदमी नाव खेता हुआ उस स्थान पर गया। दासी ने उन दोनों को नाव पर बिठा दिया। माँझी शीघ्रता से नाव खेता हुआ दजला नदी में ले गया। शहजादे की हालत अब भी खराब थी। व्यापारी उसे बराबर समझाता जा रहा था कि तुम अपने को सँभालो, हमें दूर जाना है, अगर इस अरसे में हमें गश्त के सिपाही मिल गए तो हमारी जान के लाले पड़ जाएँगे क्योंकि वे हमें चोर समझेंगे।
खुदा-खुदा कर के यह लोग एक सुरक्षित स्थान पर नाव से उतरे। किंतु शहजादे की मानसिक अवस्था ही ठीक थी उसमें चलने की शक्ति ही अधिक थी। व्यापारी इसी चिंता में था कि क्या किया जाए। अचानक उसे याद आया कि उस जगह के समीप ही उसका एक मित्र रहता है। वह शहजादे को किसी तरह खींचखाँच कर अपने मित्र के घर ले गया। मित्र उसे देखते ही दौड़ा आया। उसने दोनों को अपनी बैठक में ला कर बिठाया और पूछा कि तुम ऐसी हालत में कहाँ से आए हो। व्यापारी ने कहा, अजीब झंझट में पड़ा हूँ। एक आदमी पर मेरा काफी रुपया उधार है। मुझे मालूम हुआ कि वह शहर छोड़ कर भागा जा रहा है। मुझे उसका पीछा कर के अपना रुपया वसूल करने की चिंता हुई। यह आदमी जो मेरे साथ है उस भगोड़े को जानता है। इसकी मदद से मैंने उसका पीछा किया। किंतु मेरा यह साथी रास्ते में अचानक बीमार हो गया। वह भगोड़ा भी मेरे हाथ से निकल गया और इस बीमार साथी को भी मुझे सँभालना पड़ रहा है। अब हम लोग रात को यहाँ रहेंगे और सुबह ही यहाँ से चलेंगे।
व्यापारी का मित्र शहजादे की चिकित्सा का यत्न करने लगा किंतु व्यापारी ने कहा कि तुम कुछ चिंता करो, यह रात भर आराम से सोएगा तो सुबह घर जाने योग्य हो जाएगा। मित्र ने दोनों के बिस्तर एक हवादार कमरे में लगा दिए। शहजादा सो तो गया किंतु कुछ ही देर में उसने स्वप्न देखा कि शमसुन्निहार मूर्छित हो कर खलीफा के पाँवों में गिर पड़ी है। वह जाग कर फिर रोने-बिसूरने लगा। व्यापारी भी खुदा-खुदा कर के रात काट रहा था ताकि सुबह होते ही अपने घर पहुँचे। वह जानता था कि उसके घरवाले चिंता में पड़े होंगे क्योंकि वह कभी रात को घर से बाहर नहीं रहता था। सुबह होते ही वह मित्र से विदा हुआ और शहजादे को ले कर अपने घर पहुँचा। उसे देख कर घरवालों को धैर्य हुआ। उसने बात बना दी कि व्यापार के एक जरूरी काम से उसे अचानक बाहर जाना पड़ गया था। अपने हृदय में वह भगवान को धन्यवाद देता था कि कितनी खतरनाक जगह से प्राण बचा कर निकल आने में सफल हुआ था।
शहजादा दो-तीन दिन व्यापारी के घर रहा, फिर उसके रिश्तेदार आए और उसे उसके घर ले गए। विदा होते समय शहजादे ने व्यापारी से कहा, भाई तुम मेरी दशा को भुला देना। जब से मैंने स्वप्न में शमसुन्निहार को अचेत देखा है मेरी अवस्था बड़ी शोचनीय हो गई है। उसका कुछ हाल मिले तो मुझ से जरूर कहलवा देना। व्यापारी ने कहा, तुम चिंता करो। वह विशेष दासी जरूर शमसुन्निहार का समाचार मुझ तक पहुँचाएगी।
व्यापारी दो-तीन दिन बाद शहजादे को देखने उसके घर गया तो देखा कि वह बिस्तर पर पड़ा कराह रहा है और उसके रिश्तेदार और कई हकीम उसके बिस्तर के आसपास बैठे परिचर्चा कर रहे हैं। उन लोगों ने व्यापारी को बताया कि हकीम लोग बहुत प्रयत्न कर रहे हैं किंतु शहजादे को कोई लाभ नहीं हो रहा है। दो क्षण बाद शहजादे ने आँखें खोलीं और व्यापारी को देख कर मुस्कुराया बल्कि हँसने भी लगा। हँसी के दो कारण थे। एक तो यह कि व्यापारी आया है और शमसुन्निहार की खबर लाया होगा, दूसरा कारण यह है कि हकीम लोग बेकार ही सिर खपा रहे हैं क्योंकि इस रोग का उनके पास कोई इलाज नहीं है।
शहजादे ने हकीमों और रिश्तेदारों से कहा, मैं इनसे अकेले में बात करना चाहता हूँ। उनके जाने पर उसने व्यापारी से कहा, मित्र, तुम देख रहे हो कि इस अनिंद्य सुंदरी का वियोग मुझे किस तरह घुला-घुला कर मारे डालता है। सारे कुटुंबीजन और मित्रगण मेरी यह अवस्था देख कर बराबर दुखी रहते हैं। उन लोगों को दुखी देख कर मेरा दुख और बढ़ता है। मुझे अपना हाल उनसे कहने में लज्जा भी आती है इसलिए मैं जी ही जी में घुटता जा रहा हूँ। तुम्हारे आने से मुझे बड़ा धैर्य हुआ। अब तुम बताओ कि शमसुन्निहार का क्या समाचार लाए हो। उस दासी ने तुम से कब बात की ओर अपनी स्वामिनी का क्या हाल बताया।
व्यापारी ने बताया कि दासी अभी तक नहीं आई है। शहजादा यह सुन कर आँसू बहाने लगा। व्यापारी ने कहा कि तुम्हें चाहिए कि अपने को सँभालो, रोने से कुछ भला तो होना नहीं है। शहजादा बोला कि मैं क्या करूँ, मैं लाख अपने को सँभालता हूँ किंतु सँभाल नहीं पाता। व्यापारी ने कहा, तुम बेकार की चिंता करो। दासी आज नहीं तो कल आएगी ही और शमसुन्निहार की कुशलता का समाचार देगी। इस प्रकार उसे बहुत कुछ धैर्य बँधा कर व्यापारी अपने घर आया। घर कर देखा कि शमसुन्निहार की दासी उसकी प्रतीक्षा कर रही है। उसने व्यापारी से कहा कि अपना हाल बताओ कि तुम पर और शहजादे पर महल से निकल कर क्या बीती क्योंकि विदा के समय शहजादे की हालत अच्छी नहीं थी। व्यापारी ने मार्ग के कष्ट और शहजादे की लंबी खिंचती बीमारी का उल्लेख किया।
दासी ने कहा, स्वामिनी का भी वही हाल है जो शहजादे का है। तुम्हें विदा कर के जब मैं उनके महल में गई तो देखा कि बेहोश है। खलीफा को भी आश्चर्य था कि वह बेहोश क्यों हो गई।
उसने हम लोगों से इस बेहोशी का कारण पूछा तो हम असली भेद को छुपा गए। हमने कहा, हमें कुछ नहीं मालूम। हम लोग केवल रोते-धोते रहे। कुछ देर में स्वामिनी की आँखें खुलीं।
खलीफा ने पूछा, शमसुन्निहार, यह बेहोशी तुम्हें क्यों गई। स्वामिनी ने कहा, आप ने अचानक मुझ पर इतनी कृपा की कि स्वयं कर कृतार्थ किया। इसी आनंदातिरेक को मैं सँभाल सकी और अचेत हो गई। मैं बड़ी हतभागिनी हूँ कि आपने तो मुझ पर इतनी कृपा की और मैंने आपको चिंता में डाला।
खलीफा ने कहा, हम जानते हैं कि तुम्हें हम से बड़ा प्रेम है। हम इस बात से बड़े प्रसन्न भी हैं। अब तुम किसी और कमरे में जाना, यहीं बिस्तर लगवा कर सो जाना। ऐसा हो कि चलने-फिरने से तुम्हारी तबीयत और खराब हो जाए। यह कह कर खलीफा ने विदा ली। उसके जाने के बाद स्वामिनी ने मुझे संकेत से अपने पास बुलाया और तुम लोगों को हाल पूछा। मैंने कहा कि वे दोनों आनंदपूर्वक सकुशल यहाँ से चले गए। मैंने उन्हें शहजादे के बेहोश हो जाने की बात नहीं बताई। फिर भी उसने रो कर कहा, शहजादे, जाने मेरे विछोह में तुम पर क्या बीती होगी। यह कह कर वे फिर बेहोश हो गईं। दासियों ने दौड़ कर उनके मुँह पर बेदमुश्क का अरक छिड़का तो वे होश में आईं। मैंने कहा, स्वामिनी, क्या आप इस तरह जान देंगी। और हम सब को मारेंगी। आप को अपने प्रिय शहजादे की सौगंध है, अपना मन दूसरी बातों से बहलाएँ। उन्होंने कहा, तुम ठीक कहती हो लेकिन मैं क्या करूँ, मन ही वश में नहीं है। फिर उसने दासी को हटा दिया सिर्फ मुझे अपने पास रहने को कहा। रात भर वह शहजादे का नाम ले-ले कर रोती रही। सुबह मैं उसे उठा कर उसके मुख्य विश्राम कक्ष में ले गई। वहाँ खलीफा के आदेश से भेजा हुआ हकीम पहले ही से मौजूद था। कुछ देर में खलीफा स्वयं वहाँ गए। दवा-दारू की गई लेकिन उससे कोई लाभ नहीं हुआ। उल्टे उसकी दशा और
गंभीर होती गई। दो दिन बाद उसे रात को थोड़ी देर के लिए नींद आई। सुबह उठ कर उन्होंने मुझे आज्ञा दी कि मैं तुम्हारे पास आऊँ और शहजादे का समाचार ला कर उन्हें दूँ। व्यापारी ने कहा, उनसे कहो, शहजादा बिलकुल ठीकठाक है किंतु शमसुन्निहार की बीमारी की बात सुन कर बड़ा चिंतित है। उनसे यह भी कहना कि वे ध्यान रखें कि खलीफा के सामने उनके मुँह से कोई ऐसी बात निकल जाए जिससे हम सब मुसीबत में फँस जाएँ।
व्यापारी ने दासी से यह कह कर उसे विदा किया और स्वयं शहजादे के समीप गया और उसे बताया कि शमसुन्निहार ने तुम्हारा हाल पूछने के लिए दासी भेजी थी। उसने दासी से सुनी हुई बातें विस्तारपूर्वक शहजादे को बताईं। शहजादे ने व्यापारी को रात भर अपने पास रखा। सुबह व्यापारी अपने घर आया। कुछ ही देर हुई थी कि शमसुन्निहार की दासी उसके पास आई और उसे सलाम कर के कहा कि स्वामिनी ने यह पत्र शहजादे के लिए भेजा है। व्यापारी उस दासी को ले कर शहजादे के पास गया और बोला कि शमसुन्निहार ने तुम्हारे लिए यह पत्र भेजा है और साथ ही अपनी दासी को तुम्हारी कुशलता जानने के लिए भेजा है। शहजादा यह सुन कर उठ बैठा। उसने दासी को बुला कर पत्र उससे लिया और पत्र को चूम कर उसे आँखों से लगाया। पत्र में शमसुन्निहार ने अपनी वियोग व्यथा का वर्णन किया था। शहजादे ने उसका उत्तर लिख कर दासी को दे दिया।
शहजादे से विदा हो कर दासी और व्यापारी अपने-अपने घर गए। व्यापारी चिंता में पड़ गया कि यह दासी रोज-रोज मेरे पास आती है और मुझे रोज-रोज उसे ले कर शहजादे के पास जाना पड़ता है। शहजादा और शमसुन्निहार तो एक-दूसरे के प्रेम में पागल हैं किंतु अगर खलीफा को पता चलेगा तो मैं मुफ्त में मारा जाऊँगा, मेरी सारी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी और क्या जाने जान पर भी बन आए और मेरे परिवार पर भी मुसीबत पड़े। इससे अच्छा है कि मैं यह नगर ही छोड़ दूँ और कहीं और जा बसूँ। एक दिन व्यापारी इसी चिंता में अपनी दुकान पर बैठा था कि उसका एक मित्र जो जौहरी था उससे मिलने को आया। वह बराबर व्यापारी के पास शमसुन्निहार की दासी को आते और फिर दोनों को शहजादे के पास आते देख रहा था। व्यापारी को चिंतित देख कर वह समझा कि इस पर कोई बड़ी विपत्ति पड़ी है। अतएव उसने पूछा कि खलीफा के महल की दासी तुम्हारे पास क्यों आया करती है। व्यापारी को इस प्रश्न से भय हुआ। उसने कहा कि यूँ ही कुछ लेन-देन के काम से आती है। जौहरी ने कहा, लेन-देन नहीं, कोई और बात है। व्यापारी ने जब देखा कि जौहरी को उसके उत्तर से संतोष नहीं हुआ तो उसने तय किया कि उसे पूरा हाल बता ही देना ठीक है। उसने भेद गुप्त रखने का वचन ले कर उससे कहा, शमसुन्निहार और फारस का शहजादा एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और मेरी मध्यस्थता से एक-दूसरे का हाल पाते हैं, मैं सोचता हूँ कि कहीं यह बात खलीफा को ज्ञात हो गई तो भगवान जाने मेरा क्या हाल होगा। इसलिए अब मैं सोचता हूँ कि यहाँ का कारोबार समेट कर बसरा चला जाऊँ और वहीं बस जाऊँ।
जौहरी को यह सुन कर आश्चर्य हुआ। कुछ देर में उसने विदा ली। दो दिन बाद वह व्यापारी की दुकान पर आया तो उसे बंद पाया। वह समझ गया कि व्यापारी यहाँ का हिसाब समेट कर बसरा को चला गया है। जौहरी के हृदय में शहजादे के लिए बड़ी करुणा उपजी। बेचारे का एकमात्र सहारा वह व्यापारी था और वह भी चला गया इसीलिए उसने सोचा कि व्यापारी के स्थान पर वह स्वयं शहजादे का सहायक हो जाए। वह शहजादे के पास गया। शहजादे ने यह जान कर कि वह एक प्रतिष्ठित जौहरी है उसका सम्मान किया और बिस्तर से उठ कर बैठ गया और पूछा कि मेरे लायक क्या काम है। जौहरी ने कहा, यद्यपि मैं पहली बार आपसे मिला हूँ तथापि मैं आपकी सेवा करना चाहता हूँ। इस समय एक बात पूछना चाहता हूँ। शहजादे ने कहा कि जो पूछना चाहें खुशी से पूछिए।
जौहरी ने कहा, अमुक व्यापारी आपका बड़ा मित्र था। आप मुझे भी उसी की तरह विश्वसनीय समझिए। वह कह रहा था कि मैं बगदाद छोड़ कर बसरा जा बसूँगा। आज मैं उसकी दुकान पर गया तो बंद पाया। मैं समझता हूँ कि व्यापारी वास्तव में बसरा में जा बसा है। क्या आप बता सकेंगे कि उसके बगदाद छोड़ने और बसरा जाने के क्या कारण हैं।
शहजादा जौहरी की बात सुन कर पीला पड़ गया और बोला, क्या तुम्हारी यह बात ठीक है कि व्यापारी बगदाद छोड़ गया? जौहरी ने कहा कि मेरा तो यही विचार है। शहजादे ने अपने एक नौकर से कहा कि व्यापारी के घर जा कर पता लगाए कि वह कहाँ है। सेवक ने कुछ देर बार कर कहा कि व्यापारी के घरवाले कहते हैं कि वह दो दिन हुए बसरा चला गया है और वहीं रहेगा। नौकर ने चुपके से यह भी बताया कि किसी अमीर महिला की दासी आप से मिलने आई है। शहजादा समझ गया कि शमसुन्निहार की ही दासी होगी। उसने उसे बुलाया। जौहरी उसके आने के पहले उठ कर दूसरे कक्ष में जा बैठा। दासी ने कर शहजादे की दशा अधिक अच्छी देखी और उससे कुछ बातें कर के विदा हुई।
अब जौहरी फिर कर शहजादे के पास बैठा और कहने लगा कि आपका तो खलीफा के महल से बड़ा संपर्क जान पड़ता है। शहजादे ने चिढ़ कर कहा, तुम यह कैसे कहते हो? क्या तुम्हें मालूम है कि यह स्त्री कौन है। जौहरी ने कहा, मैं इसको और इसकी स्वामिनी को अच्छी तरह जानता हूँ। यह खलीफा की चहेती सेविका शमसुन्निहार की दासी है और अपनी मालकिन के साथ आया करती है जो कि मेरे दुकान से जवाहारात खरीदने आती-रहती है। मैंने इसे कई बार उस व्यापारी के पास भी आते-जाते देखा है।
शहजादा यह सुन कर डर गया कि यह आदमी हमारे सारे भेद जानता है। वह एक क्षण चुप रह कर बोला, मुझ से सच-सच कहो कि क्या तुम इस दासी के यहाँ आने का भेद जानते हो। जौहरी ने व्यापारी से हुई सारी बातें शहजादी को बताईं और कहा, मैं आपके पास इसी कारण से उपस्थित हुआ हूँ। व्यापारी के चले जाने के बाद मुझे आप पर बड़ी दया आई कि आपका मध्यस्थ कौन होगा। मैंने तय किया कि व्यापारी की जगह मैं ही आपका विश्वासपात्र सेवक बन कर कार्य करूँ। मुझसे अधिक विश्वसनीय व्यक्ति आपको और कोई नहीं मिलेगा।
शहजादे को उसकी बातें सुन कर धैर्य हुआ। उसने अपने मन का भेद जौहरी को बताया किंतु साथ ही कहा, भाई, मुझे तो तुम पर पूरा विश्वास है किंतु शमसुन्निहार की दासी ने तुम्हें यहाँ बैठे देख लिया है। वह तुमसे खुश नहीं मालूम होती। वह कह रही थी कि तुम्हीं ने व्यापारी को यह नगर छोड़ कर बसरा जा बसने की सलाह दी है। दासी ने यह बात अपनी स्वामिनी से भी कही होगी। ऐसी दशा में तुम मध्यस्थ किस तरह बन सकते हो।
जौहरी ने कहा, मैंने व्यापारी को शहर छोड़ने की सलाह नहीं दी। हाँ, यह जरूर है कि जब उसने मुझ से कहा कि मैं बसरा में बसना चाहता हूँ तो मैंने उसे रोका नहीं। मैंने सोचा कि इस व्यक्ति को अपनी प्रतिष्ठा और अपनी जान बचाने की चिंता है तो उसे क्यों रोका जाए। शहजादे ने कहा, तुम्हारी बात मेरी समझ में आती है और मुझे तुम पर पूरा विश्वास है किंतु शमसुन्निहार की दासी ने अपनी स्वामिनी से भी यही बात कही होगी जो मुझसे कही है। अब यह जरूरी हो गया है कि जैसे तुमने मुझे अपनी सदाशयता का विश्वास दिलाया है वैसे ही अपने प्रति दासी में भी विश्वास पैदा करो ताकि शमसुन्निहार भी तुम्हें विश्वस्त समझे।
इस प्रकार दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे और परामर्श करते रहे कि दोनों प्रेमीजनों के मिलन की क्या सूरत निकल सकती है। फिर वह जौहरी शहजादे से विदा ले कर अपने घर गया। शहजादे ने दासी को विदा करते समय कहा था कि अब की बार आना तो शमसुन्निहार से मेरे लिए पत्र लिखवा कर लाना। दासी ने महल में जा कर व्यापारी को शहर छोड़ जाने और शहजादे की पत्र पाने की इच्छा की बातें शमसुन्निहार को बताईं। शमसुन्निहार ने एक लंबा पत्र लिखा जिसमें अपनी विरह-दशा का कारुणिक वर्णन था और इस बात पर भी दुख प्रकट किया गया था कि हम लोगों का मध्यस्थ व्यापारी शहर छोड़ कर चला गया है। (अगली पोस्ट में जारी……)                           स्रोत-इंटरनेट से कापी-पेस्ट

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