शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

अलिफ लैला 54 अलादीन और जादुई चिराग की कथा (भाग 2)

(पिछिली पोस्ट से जारी……)  

एक दिन बादशाह ने मंत्री से कहा, मैं कई दिनों से देख रहा हूँ कि वह बुढ़िया रोज यहाँ आती है और चुपचाप खड़ी रहती है। यह अपने हाथ में भी कोई पोटली लिए रहती है। यह कौन है और मुझ से क्या चाहती है? वास्तव में मंत्री को बुढ़िया से उस का मंतव्य पूछ रखना चाहिए था किंतु उस ने आलस्यवश ऐसा नहीं किया था, इसलिए कहा, पृथ्वीपाल, यह स्त्रियाँ जरा-जरा-सी बात के लिए राजदरबार में पहुँच जाती हैं। यह भी ऐसी ही कोई नालिश ले कर आई होगी कि कसाई ने गोश्त या कुंजड़े ने सब्जी खराब कर दी या तौल में कम दी। बादशाह को इस उत्तर से संतोष न हुआ। उस ने कहा, ऐसी बात नहीं मालूम होती। इन बातों के लिए कोई दिन-प्रतिदिन नहीं खड़ा रहता। कल अगर यह आए तो इसे सबसे पहले पेश किया जाए। मंत्री ने सिर झुका कर यह आदेश स्वीकार किया किंतु उस का पालन न किया। दूसरे दिन बुढ़िया के आने पर मंत्री ने उसे आगे न बढ़ाया। बादशाह ने खुद मंत्री से कहा कि इस बुढ़िया को मेरे पास क्यों नहीं लाते, तो मंत्री को विवश हो कर उसे पेश करना पड़ा।
बुढ़िया ने, जो इतने दिनों तक दरबार का अदब-कायदा देख चुकी थी, अपने सिर को भूमि से लगाया और सिंहासन के सामने बिछे हुए सुंदर कालीन को चूम कर देर तक धरती से सिर लगाए रही। उस ने तभी सिर उठाया जब कि बादशाह ने आदेश दिया कि उठ कर अपनी बात कहो। वह खड़ी हुई तो बादशाह ने कहा, मैं कई दिनों से तुम्हें यहाँ आते देख रहा हूँ। तुम क्या चाहती हो? बुढ़िया ने एक बार फिर धरती चूमी और बोली, हे दीनबंधु प्रजापालक न्यायमूर्ति महाराज, यदि मुझे प्राणदान का आश्वासन दिया जाए तो मैं अपना मनोरथ आप के सामने रखूँ। किंतु मैं जो कुछ कहना चाहती हूँ आप से एकांत में कहना चाहती हूँ। बादशाह ने आदेश दिया कि दरबार खाली हो जाए। अतएव सभी लोग बाहर चले गए, केवल प्रधानमंत्री ही वहाँ रह गया क्योंकि उस से कोई बात गुप्त नहीं रखी जाती थी, साथ ही बादशाह की सुरक्षा के लिए भी एक आदमी का रहना जरूरी था।
बादशाह ने कहा, अब कहो, क्या कहती हो? अलादीन की माँ ने कहा, पहले आप आश्वासन दें कि मेरी बात से क्रुद्ध न होंगे और मेरा कोई अपराध भी समझेंगे तो क्षमा करेंगे। बादशाह ने यह आश्वासन दिया कि निर्भय हो कर अपनी बात कहे। बुढ़िया ने विस्तारपूर्वक बताया कि अलादीन ने किस प्रकार छुप कर शहजादी को देखा था और कैसे उस के विरह में मृत्यून्मुख हो रहा है। उस ने कहा, मैं अपने पुत्र की प्राणरक्षा के हेतु उस के साथ शहजादी के विवाह का प्रस्ताव ले कर आई हूँ।
बादशाह ने इस पर नाराजगी तो न दिखाई किंतु कुछ कहा भी नहीं। फिर बोला, तुम इस पोटली में क्या चीज रोज ले कर आती हो? अलादीन की माँ ने रत्नों का पात्र खोल कर बादशाह के पैरों के पास रख दिया। बादशाह की आँखें फट गईं। वह एक-एक रत्न को उठा कर देखता और उस की प्रशंसा करता। उस ने मंत्री को पास बुला कर कहा, तुम भी देखो। तुमने कहीं इतने बड़े और चमकीले रत्न देखे हैं? मंत्री ने कहा, मैं ने नहीं देखे। बादशाह ने कहा कि ऐसे रत्नों के मालिक के साथ राजकुमारी का विवाह होना ठीक रहेगा।
मंत्री को इस बात से दुख हुआ। उसे विश्वास था कि शहजादी का विवाह उस के पुत्र ही से होगा और बाद में उस के पुत्र को चीन का विशाल राज्य मिलेगा। इस समय रत्नों के कारण बादशाह की राय बदलते देख कर वह दुखी हुआ और कहने लगा, शहजादी के सामने यह रत्न क्या चीज हैं? मेरा पुत्र तीन महीने में इन से अच्छे रत्न ला सकता है।
बादशाह जानता था कि अलादीन की माँ की दी हुई भेंट से अधिक मूल्यवान कोई भेंट नहीं हो सकती किंतु उस ने मंत्री की बात मान ली। लेकिन उस ने ऊँची आवाज में अलादीन की माँ से कहा, हमने शहजादी से तुम्हारे पुत्र के विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किया। लेकिन हमें अपनी बेटी के लिए समुचित दहेज की व्यवस्था करने में कुछ समय लगेगा। यह दहेज लगभग तीन महीने में तैयार होगा। इसलिए तुम तीन महीने बाद मेरे पास आना। तब मैं शादी के समारोह की रूपरेखा बनाऊँगा। अलादीन की माँ ने यह सुन कर कई बार झुक कर भूमि स्पर्श की और खुश घर वापस आई। उस की प्रसन्नता कई कारणों से थी - एक तो यह कि उस के बेटे की मनोकामना पूरी हो गई, दूसरे यह कि उसे बादशाह के कोप ओर उस के फलस्वरूप मिलनेवाले कठोर दंड का भय था, वह भय दूर हो गया और उसे बादशाह की प्रसन्नता प्राप्त हुई। तीसरे यह कि रोज-रोज की दरबार तक आने-जाने की और दरबार में घंटों खड़े रहने की मुसीबत से छुट्टी मिल गई।
अलादीन ने दूर ही से माँ को देख कर समझ लिया कि उसे अपने काम में सफलता मिली है। वह और दिनों की अपेक्षा प्रसन्न भी थी और दरबार से जल्द ही वापस आ गई थी। जब वह घर पहुँची तो अलादीन ने कहा, अम्मा, सब खैरियत तो है? उस की माँ दरबार के वस्त्र उतारती हुई बोली, बेटे, अब तू खुश हो जा, तुझे मैं अच्छी खबर सुनाने जा रही हूँ? फिर उस ने सारा हाल बता कर कहा, मुझे अभी बादशाह ने हाँ ना कुछ भी नहीं की थी, इस से पहले ही मंत्री ने चुपके से बादशाह से कुछ कहा। मैं तो डर गई थी कि अब मुझे इनकार में जवाब मिलेगा किंतु बादशाह ने प्रस्ताव स्वीकार करके मुझे तीन महीने बाद आने को कहा है। अलादीन यह सुन कर खुशी से फूला न समाया और एक-एक दिन करके तीन महीने की अवधि समाप्त की प्रतीक्षा करने लगा।
दो महीने बाद एक दिन उस की माँ को मालूम हुआ कि दीया जलाने का तेल नहीं है। वह तेल लेने बाजार गई तो देखा कि बाजार में बड़ी धूमधाम और सजावट हो रही है और हर जगह दीपों की कतारें लगी हैं। हर जगह उच्च कर्मचारी सुनहरे रुपहले काम के वस्त्र पहने घूम रहे हैं और विवाह के योग्य सजावट का सामान राजमहल की ओर ले जाया जा रहा है। उस ने कजस तेली से तेल लिया था, उस से पूछा कि यह सब कैसी धूमधाम है। तेली ने उत्तर दिया, तुम मालूम होता है परदेशी हो। इस शहर में तो सभी जानते हैं कि आज रात को मंत्री के पुत्र से शहजादी का विवाह होगा। एक घड़ी के बाद शहजादी हम्माम में स्नान करने आएगी, उस के लिए यह सब राजकर्मचारी घूम रहे हैं। शादी के लिए जरूरी सामान भी राजमहल की ओर इसीलिए भेजा जा रहा है।
यह सुन कर अलादीन की माँ फौरन घर लौटी और अलादीन से बोली, बेटा, यह तो बड़ी गड़बड़ हुई। मेरी सारी मेहनत बेकार गई। बादशाह ने मुझे जो वचन दिया था उस से फिर गया है।
यह कह कर उस ने बाजार में सुना हुआ सारा हाल बताया और कहा कि आज शहजादी हम्माम में जाएगी और फिर मंत्री के पुत्र से उस का विवाह होगा। अलादीन ने यह सुना तो उस पर बिजली-सी टूट पड़ी। कुछ देर तक तो वह पागल की तरह आँखें फाड़े देखता रहा फिर जब कुछ जी ठिकाने हुआ तो सोचने लगा कि यह तो मेरे लिए डूब मरने की बात होगी कि शहजादी बदर बदौर का विवाह किसी और से हो, लेकिन इतनी देर हो गई है कि अब किया ही क्या जा सकता है, साथ ही यह कि अपनी प्रियतमा को दूसरे की पत्नी बनने दिया भी कैसे जा सकता है।
सहसा उसे जादू के चिराग का ध्यान आया और वह खुश हुआ। वह माँ के सामने चिराग से काम लेना नहीं चाहता था इसलिए माँ से बोला, कर लेने दो मंत्री पुत्र को विवाह, किंतु वह अपनी पत्नी को भोग नहीं सकेगा। तुम खाना बनाओ, मैं जरा अंदर जाता हूँ। उस की माँ समझ गई कि उस का चिराग से काम लेने का इरादा है। अब उसे इस में कोई आपत्ति भी नहीं रही थी। अलादीन अंदर के कमरे में गया जहाँ वह चिराग रखा था। उस ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया और चिराग को रगड़ा। तुरंत ही जिन्न आ गया और बोला, मैं और कई जिन्न आप के अधीन हैं। क्या आज्ञा है?
अलादीन ने कहा, अभी तक मैं ने भोजन माँगने के अलावा और कोई काम तुम से नहीं लिया। अब एक बड़े काम के लिए कहता हूँ। मैं ने यहाँ के बादशाह से प्रार्थना की थी कि अपनी बेटी बदर बदौर को मुझ से ब्याह दे। उस ने यह मंजूर भी कर लिया था लेकिन बाद में वह अपनी बात से फिर गया। मुझ से तीन महीने का समय माँगा था और आज दो महीने बाद ही रात को उसे मंत्री के पुत्र से ब्याहनेवाला है। मुझे अभी-अभी यह समाचार मिला है। तुम्हें यह करना है कि ज्यों ही नव दंपत्ति पलंग पर जाए तुम दोनों को पलंग समेत मेरे घर ले आओ। जिन्न ने कहा कि यह तो मामूली काम है, इस के अलावा भी कुछ काम हो तो बताओ। अलादीन ने कहा कि अभी तो इतना ही काम है। यह सुन कर वह जिन्न गायब हो गया।
अलादीन इस के बाद माँ के पास गया और उस के साथ हँसी-खुशी की बातें करता रहा और कहता रहा कि बदर बदौर मेरे अतिरिक्त किसी और की नहीं हो सकती। खाना बन जाने पर उस ने मन से पेट भर भोजन किया और अपनी माँ से इधर-उधर की बहुत-सी बातें करता रहा। इस के बाद उस की माँ अपने कमरे में सोने को चली गई और अलादीन भी अपने पलंग पर लेट गया। इस समय उसे कोई दुख नहीं था फिर भी उत्तेजना के कारण उसे नींद नहीं आई। वह इसका इंतजार कर रहा था कि जिन्न कब उन दोनों को यहाँ लाता है। वैसे उसे कभी-कभी यह शंका भी होने लगती थी कि जिन्न उस के लिए यह काम करेगा भी या नहीं।
उधर शाही महल में जब मंत्री के पुत्र और बदर बदौर की शादी की सारी रस्में पूरी हो गईं और रात काफी बीत गई तो मंत्री के पुत्र को सुहागरात के कमरे में पहुँचा दिया गया जहाँ वह पलंग पर लेट गया। शहजादी की दासियों ने उसे रात के कपड़े पहना कर कमरे में भेज दिया और द्वार बंद कर दिया। शहजादी के पलंग पर बैठते ही जिन्न ने दोनों के पलंग को अलादीन के घर पहुँचा दिया। अब अलादीन ने जिन्न से कहा कि मंत्रि-पुत्र के पाजामे के अलावा सारे कपड़े उतार कर उसे घर के तंग और बदबूदार शौचालय में बंद कर दे। उस ने वह भी कर दिया। बेचारे मंत्रि-पुत्र की बदबू और सर्दी से बुरी हालत हो गई। अलादीन ने शहजादी से अधिक बात नहीं की। उस ने सिर्फ यह कहा, तुम्हारे पिता ने मुझ से तुम्हें ब्याहने का वादा किया था। वे अपने वचन से फिर गए हैं। मैं ने यह सब सिर्फ इसलिए किया है कि मंत्रि-पुत्र तुम्हारा अंग स्पर्श न कर सके। वह बेचारी वैसे ही इस अद्भुत व्यापार को देख कर हक्का-बक्का हो रही थी, अलादीन की बातें सुन कर चुपके से पलंग पर दुबक गई। फिर अलादीन ने अपनी पगड़ी और ऊपरी वस्त्र उतारा और शहजादी के पलंग पर उस की ओर पीठ करके और बीच में नंगी तलवार रख कर सो गया। यह इस बात का प्रतीक था कि यद्यपि वह शहजादी को अपना समझता था किंतु विवाह के पूर्व संभोग का अपराध नहीं करना चाहता था। अपनी प्रेमिका की पवित्रता बचा सकने पर उसे बहुत संतोष हुआ और वह रात भर आराम की नींद सोया। उधर मंत्रि-पुत्र रात भर पाखाने में सड़ता रहा और सर्दी में ठिठुरता रहा और शहजादी भी अपने और अपने शैय्या के साथी के बीच में नंगी तलवार देख कर भयभीत रही और बहुत कम सोई।
सुबह जिन्न बगैर बुलाए ही आ गया और अलादीन से बोला, मालिक, अब मुझे क्या आज्ञा है? अलादीन ने बीच से तलवार हटा दी और पलंग से उतर कर कहा, अब मंत्रि-पुत्र को पलंग पर लिटा कर दोनों को मय पलंग के उन के कमरे में पहुँचा दो। वह जिन्न मंत्रि-पुत्र को शौचालय से निकाल कर लाया और उसे उस के कपड़े पहना दिए, फिर उसे शहजादी के पलंग पर पटक दिया। इस बार जिन्न ने स्वयं को गुप्त नहीं रखा बल्कि अपने स्वाभाविक महाभयानक आकार में बना रहा। शहजादी बदर बदौर और मंत्रि-पुत्र दोनों की उस का विकराल रूप देख कर घिग्घी बँध गई। कोई आश्चर्य की बात न होती अगर वे दोनों डर के मारे ही मर जाते। लेकिन भाग्यवश दोनों केवल अधमरे हो गए।
उस देश की रीति थी कि सुहागरात के बाद की सुबह को कन्या का पिता आ कर उस से इशारे से पूछता था कि रात स्वाभाविक रूप से बीती या नहीं। बादशाह भी सुबह यह हाल लेने के लिए आया।
उस की आहट सुनते ही मंत्रि-पुत्र पलंग से कूदा और दूसरे दरवाजे से निकल गया क्योंकि वह अपनी दुर्दशा छुपाना चाहता था। बादशाह ने कमरे में जा कर बेटी से मुस्कुरा कर पूछा, रात आराम से तो बीती? उस ने आगे बढ़ कर प्यार से उस का माथा चूमा तो उसे दिखाई दिया कि शहजादी को असीम दुख महसूस हो रहा है। बादशाह को आश्चर्य हुआ और वह यह न समझ सका कि शहजादी लज्जावश कुछ नहीं कह रही या रात उसे बहुत कमजोरी आ गई है या उसे वास्तव में कोई दुख है जिसके कारण वह चुप्पी साधे है। वह वहाँ से अपनी बेगम के पास गया और उसे शहजादी की विचित्र दशा बताई और कहा कि कुछ समझ में नहीं आता। बेगम ने कहा, सरकार, कुछ चिंता न करें। कई लड़कियाँ ऐसी होती हैं कि प्रथम संसर्ग में उन्हें बड़ा कष्ट होता है और किसी-किसी लड़की की तो दो-तीन दिन तक खराब हालत रहती है। मैं स्वयं जा कर उस से उस का हाल पूछूँगी और आप से आ कर बताऊँगी।
इस के बाद मलिका शहजादी के महल में गई और उसे गले लगा कर उस का हाल पूछा। शहजादी इस पर भी चुप रही और उस के चेहरे की उदासी जरा भी कम नहीं हुई। मलिका ने बड़े प्यार से आग्रहपूर्वक कई बार पूछा तो वह ठंडी साँस ले कर बोली, माता जी, मैं जो कुछ कहूँगी उस में आप को अगर धृष्टता लगे तो पहले ही से उस की क्षमा माँग लेती हूँ। वास्तविकता यह है कि रात को ऐसी विचित्र घटनाएँ हुईं जिन पर किसी को विश्वास नहीं होगा। किंतु उन घटनाओं ने मेरे होश-हवास गायब कर दिए और उन बातों को याद करके अब तक मेरा हृदय काँप रहा है। रात को जब मेरी दासियाँ मुझे इस कमरे में बंद करके चली गईं और मैं पलंग पर बैठी उसी समय किसी ने हम दोनों को मय पलंग किसी मामूली-से कमरे में पहुँचा दिया। वहाँ मंत्रि-पुत्र को वह गुप्त व्यक्ति कहीं ले गया और रात भर कहीं और रखा। इधर एक जवान आदमी ने मुझे बहुत दिलासा दिया और उसी पलंग पर मेरी ओर पीठ करके सो गया और मेरे और अपने बीच में नंगी तलवार रख ली। सुबह मंत्रि-पुत्र को एक भयानक जिन्न ने मेरे साथ लिटाया और हम दोनों को मय पलंग के यहाँ वापस पहुँचा दिया। सुबह जब पिता जी मेरे कमरे में आए तो मैं भय और शोक में इतनी डूबी थी कि उस ने कुछ भी बात न कर सकी। मेरा दुख उन्हें मालूम होगा तो वे मुझे अवश्य क्षमा करेंगे।
बदर बदौर ने जब बीती रात की पूरी घटना सुनाई तो उस की माँ को उस पर बिल्कुल विश्वास नहीं हुआ। उस ने कहा, तुम ने मुझ से कहा सो ठीक किया लेकिन किसी और से यह पागलपन की बातें न करना। इस से क्या फायदा कि लोग तुम्हें पागल समझें।
शहजादी बोली, मैं पागल नहीं हूँ, अपने पूरे होश-हवास में हूँ। तुम्हें मेरी बात का विश्वास नहीं तो मैं क्या करूँ। तुम चाहो तो मेरे पति मंत्रि-पुत्र से पूछ लो। वह भी यही कहेगा जो मैं कह रही हूँ। मलिका ने कहा, अच्छी बात है। मैं तुम्हारे पति से पूछूँगी। अगर उस ने तुम्हारी बात का समर्थन किया तो तुम्हारी बात सच समझूँगी। इस समय तुम इन बातों को भूल जाओ। देखो, नगर में चारों तरफ से गायन-वादन की आवाजें आ रहीं है जो तुम्हारे विवाह के उपलक्ष्य में हो रही हैं। तुम क्यों इस राग-रंग को अपनी बेकार बातों से भंग करना चाहती हो? इस पर शहजादी चुप हो गई।
मलिका ने बादशाह को जा कर वह सब बताया जो बदर बदौर ने कहा था। उस ने यह भी कहा, मुझे तो यह दुःस्वप्न मात्र मालूम होता है। फिर भी अच्छा है कि जैसा वह कहती है उस के पति से भी पूछ लिया जाए। बादशाह ने मंत्री-पुत्र को बुला कर पूछा, क्या तुमने भी रात को वही देखा है जो शहजादी ने देखा है? उसने कहा, मुझे नहीं मालूम उस ने क्या देखा है। असलियत यह थी कि रात के घोर कष्ट के बाद भी वह सोचता था कि अब वह कष्ट फिर न होगा और शादी वह तोड़ना नहीं चाहता था क्योंकि इस से उसे तत्कालीन प्रतिष्ठा और भविष्य में बड़ा राज्य मिलता। जब उसे बताया गया कि बदर बदौर क्या कहती है तो उस ने कहा, शहजादी को भ्रम हुआ होगा। ऐसी कोई बात नहीं हुई। कल सुबह तक वह ठीक हो जाएँगी।
उधर अलादीन ने फिर दीया रगड़ कर जिन्न को बुलाया और उस से महल का हाल पूछा। उस ने बताया कि मंत्रि-पुत्र कल रात की बातें मानने से इनकार करता है। अलादीन ने कहा, आज भी वे दोनों पलंग पर लेटें तो उस के भोग-विलास से पहले यहाँ पर कल की तरह ले आना। जिन्न ने ऐसा ही किया और बदर बदौर तथा मंत्रि-पुत्र के पलंग पर लेटते ही वह पलंग को उन दोनों के साथ अलादीन के घर उठा लाया। अलादीन ने गत रात की तरह मंत्रि-पुत्र को शौचालय में बंद करवा दिया और खुद नंगी तलवार बीच में रख कर शहजादी के पलंग पर उस की ओर पीठ करके सो गया। शहजादी उस रात को भी रात भर यह विचित्र बातें देख कर काँपती रही और मंत्रि-पुत्र तंग और बदबूदार पाखाने में रात भर सरदी और मल की दुर्गंध से कष्ट उठाता रहा। सुबह फिर जिन्न ने उसे शहजादी के पलंग पर मंत्रि-पुत्र को लिटा दिया और दोनों को मय पलंग राजमहल में वापस पहुँचा दिया।
दूसरी सुबह को बादशाह फिर शहजादी के पास पहुँचा और उसे पिछले दिन से भी अधिक चिंतित और दुखी पाया। बादशाह को पूरे दिन खटका तो लगा ही रहा था, वह व्यग्र हो कर बोला, बेटी, तुम बताओ तो आखिर क्या बात है। शहजादी चुप ही रही। बादशाह के बहुत पूछने पर भी वह कुछ न बोली तो बादशाह का धैर्य छूट गया। उस ने म्यान से तलवार खींच ली और गरज कर बोला, तू सच्ची बात बता वरना मैं अभी तेरे टुकड़े-टुकड़े किए डालता हूँ। बदर बदौर घबरा कर रोने लगी और बोली, पिताजी, मुझ से कोई अपराध हुआ हो तो क्षमा कर दें। आप जोर देते हैं तो मैं पिछली दो रातों का हाल आप को बताए देती हूँ परंतु आप को इस पर विश्वास नहीं होगा। इसीलिए मैं अब तक चुप थी। यह कह कर बादशाह को अपने मुँह से सारा हाल बताया। फिर कहने लगी, आप को विश्वास न हो रहा हो तो मंत्रि-पुत्र से पूछ लीजिए। बादशाह ने कहा, बेटी, मैं तुम्हें किसी तरह दुख नहीं देना चाहता। मैं ने तुम्हारा विवाह तुम्हारी प्रसन्नता के लिए किया था, दुखी करने के लिए नहीं। खैर, अब तुम चिंता छोड़ो। अब तुम्हें ऐसा अनुभव नहीं होगा।
इस के बाद बादशाह अपने महल में आया और उस ने वहाँ मंत्री को बुलाया। उस ने मंत्री से पूछा, क्या तुमने अपने बेटे से बात की और उस का हाल पूछा? उस ने कहा मैं ने नहीं पूछा। बादशाह ने बदर बदौर का बताया हुआ पूरा किस्सा उसे सुनाया और कहा, यद्यपि मैं अपनी पुत्री की बात विश्वास करता हूँ फिर भी तुम्हारे बेटे द्वारा इसकी पुष्टि चाहता हूँ। तुम जा कर अपने बेटे से यह बात पूछो। मंत्री अपने घर गया और अपने बेटे को बुला कर कहने लगा, शहजादी ने बादशाह से यह बातें कही हैं, तुम इस बारे में क्या कहते हो?
मंत्रि-पुत्र पिछले दिन विवाह टूटने के भय से झूठ बोल गया था किंतु दूसरे दिन भी वही अनुभव हुआ तो उस की हिम्मत टूट गई। उस ने कहा, कल मैं ने इस बात से इनकार कर दिया था लेकिन वास्तविकता यह है कि शहजादी ठीक कहती है। दो रातों से एक महाभयानक जीव हम दोनों को पलंग समेत उठा कर कहीं पहुँचा देता है। फिर मेरे कपड़े सिवा पाजामे के, उतार कर मुझे एक तंग शौचालय में बंद कर देता है जहाँ भरे हुए मल की बदबू से रात भर मेरा दिमाग फटता रहता है और मैं सरदी से ठिठुरता रहता हूँ और हाथ-पाँव भी नहीं हिला पाता। मुझे पता नहीं कि रात भर मेरी पत्नी के साथ क्या होता है। सुबह वही जीव मुझे निकाल कर कपड़े पहनाता है और पलंग पर लिटा कर हम दोनों को पलंग समेत महल में वापस ले आता है। मैं ऐसी शादी से बाज आया। दो-तीन दिन और यही हाल रहा तो मर ही जाऊँगा।
मंत्री ने देखा कि दो दिन में उस का बेटा बदहवास ही नहीं, दुबला भी हो गया था। वह भी इस नतीजे पर पहुँचा कि इसे शहजादी से अलग रखना चाहिए वरना वास्तव में चार-छह रोज में मर जाएगा। उस के बाद वह बादशाह के पास गया और बोला, सरकार, शहजादी बिल्कुल ठीक कहती है। मेरे बेटे ने कल शादी टूटने के डर से झूठ बोला था लेकिन आज उस ने सच्ची बात बताई है। उसे दो रातों से तंग गंदे पाखाने में बंद कर दिया जाता है। अब मेरा विचार है कि पति-पत्नी को साथ न सोने दिया जाए और राज्य में विवाह के सिलसिले में जो समारोह हो रहे हैं उन्हें बंद कर दिया जाए।
बादशाह ने भी इस बात को पसंद किया और विवाह के समारोह रोक दिए गए। मंत्री के पुत्र को महल में आ कर पत्नी से मिलने से भी रोक दिया गया। नगरवासियों में जोरों से इस बात की चर्चा होने लगी। लोग तरह-तरह की अटकलें लगाते थे कि क्यों विवाह समारोह बंद कर दिए गए और क्यों मंत्री के पुत्र को राजमहल से निकाल दिया गया। कारण केवल दूल्हा-दुल्हन, उन के माता-पिता और अलादीन को ज्ञात था। अलादीन ने अब दीया रगड़ कर जिन्न को बुलाने की जरूरत न समझी और अपनी तीन महीने की मियाद बीतने की प्रतीक्षा करने लगा। उस ने ऐसा प्रकट किया जैसे बदर बदौर के मंत्रि- पुत्र से ब्याहे जाने के बारे में उसे कुछ पता ही न हो।
तीन महीने की मियाद बीतने के बाद अलादीन ने फिर अपनी माँ को बादशाह के पास भेजा। बुढ़िया फिर दरबार के लायक कपड़े पहन कर दरबार में गई और बादशाह के सिंहासन के सामने खड़ी हो गई। बादशाह उसे देख कर समझ गया कि वह वादा याद दिलाने को आई है। मंत्री भी इस बात को ताड़ गया और उस ने कोशिश की कि बादशाह को किसी और बात में उलझाए रखे। बादशाह ने उसे रोक दिया और कहा, वह बुढ़िया जो सामने खड़ी है उसे हाजिर करो। मंत्री ने चोबदार द्वारा उसे बुलवा लिया। बुढ़िया ने पहले की तरह भूमि चूमी। बादशाह ने कहा, बोलो, क्या कहना चाहती हो? उस ने कहा, सरकार ने तीन महीने पहले मुझ से कहा था कि शहजादी का विवाह मेरे पुत्र अलादीन से तीन महीने बाद कर देंगे। आज मैं आप को आप का वही वचन याद दिलाने आई हूँ।
समझ तो बादशाह पहले भी गया था कि वृद्धा इसी बात को कहने के लिए आई है फिर भी चूँकि उसे अलादीन के बारे में कुछ पता नहीं था इसलिए विवाह की स्वीकृति देने में हिचकिचा रहा था। उसे परेशानी यह थी कि अमूल्य रत्नों के उपहार से प्रभावित हो कर उस ने शादी का वादा दिया था।
अब उस से साफ मुकरने से उस की प्रतिष्ठा में जो बट्टा लगता वह भी उसे मंजूर नहीं था। उस ने अपनी कठिनाई मंत्री को चुपके से बताई। उस ने चुपके से कहा, कोई परेशानी नहीं है। आप अलादीन को कहला भेजें कि शहजादी का मेहर बहुत बड़ा होगा, तुम में वह देने की सामर्थ्य हो तो मैं विवाह को राजी हूँ वरना आगे से विवाह की बात भी मेरे आगे न चलाना, और मेहर आप इतना भारी माँगें कि वह दे ही न सके। बादशाह को यह सलाह पसंद आई। उस ने अलादीन की माँ से कहा, देवी जी, मैं ने तुम्हें जो वचन दिया है उस से मैं फिरता नहीं हूँ। मैं उसे जरूर पूरा करता लेकिन शहजादी ने एक बेढब शर्त रखी है। वह कहती है कि मैं उसी आदमी से शादी करूँगी जो मुझे काफी बड़ा मेहर दे। तुम अपने पुत्र से कहो कि शहजादी का विवाह उस से तभी होगा जब वह चालीस हब्शी गुलामों के सरों पर धरे हुए चालीस स्वर्ण पात्रों में उसी तरह के रत्न भर कर भेजे जैसे तुमने भेंट में दिए थे। हर एक हब्शी गुलाम के आगे एक सुंदर गोरे रंग का गुलाम भी होना चाहिए। सभी गुलामों की पोशाकें बहुमूल्य जरदोजी की होनी चाहिए। साथ ही जिन स्वर्ण पात्रों में रत्न भेजे जाएँ उन के ढकनों पर सुंदर चित्रकारी मीना के काम में होनी चाहिए। तुम यह शर्त अपने पुत्र को बताओ और पूछो कि क्या कहता है। वह जो कुछ उत्तर दे वह कल आ कर बताना। सीधे मेरे पास चली आना, मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।
अलादीन की माँ ने सिंहासन का पाया चूमा और घर वापस हुई। रास्ते भर वह अपने बेटे की मूर्खता पर झुँझलाती रही। वह सोचती रही कि वे रंगीन पत्थर तो अलादीन उस गुफा से लाया था जहाँ उसे जादूगर ने भेजा था। अब वैसे पत्थर और वे भी पचास स्वर्ण पात्रों में भरे हुए कहाँ मिलेंगे, वह गुफा तो बंद हो गई है। फिर कीमती पोशाकें पहने अस्सी गुलाम कहाँ से आएँगे। इस लड़के ने बेकार मुझे दौड़ा कर मेरे पाँव तोड़ दिए।
घर आ कर उस ने अलादीन से कहा, बेटा, मैं तुम से कहती थी कि शहजादी को भूल जाओ। वही बात हुई। बादशाह शहजादी के लिए तैयार है और अपना वादा नहीं भूला है। लेकिन उस ने मेहर इतना बड़ा माँगा है जो तुम कयामत तक नहीं दे सकोगे। फिर उस ने सविस्तार बादशाह की माँग बताई। अलादीन बोला, अम्मा, तुम कुछ परवा न करो। वास्तव में शहजादी तो अद्वितीय है। उस के लिए इतना मेहर भी कम है। देखो मैं कोशिश करता हूँ कि इस मेहर का प्रबंध करूँ। यह कह कर वह इधर-उधर की बातें करने लगा।
दूसरे दिन सवेरे उस ने माँ से कहा, अम्मा, बड़ी भूख लगी है। तुम बाजार से कुछ खाने को ले आओ, घर में बनाने में देर लगेगी। वह बेचारी बाजार चली गई। इधर अलादीन ने चिराग को रगड़ा। जिन्न प्रकट हुआ और कहने लगा, क्या आज्ञा है? अलादीन ने कहा, भाई, अब बादशाह मेरे साथ शहजादी का विवाह करने के लिए राजी हो गया है लेकिन उस ने मेहर बड़ा कीमती माँगा है। वह कहता है कि चालीस हब्शी गुलाम चालीस स्वर्ण पात्रों में, जिनके ढक्कनों पर मीनाकारी से सुंदर चित्र बने हों, उसी तरह के रत्न भर कर लाएँ जैसे मैं जादू के बाग से लाया था। हब्शी गुलामों के साथ चालीस गोरे रंग के सुंदर गुलाम भी हों और सभी गुलाम जरदोजी की पोशाक पहने हुए हों। अब तुम यह चीजें प्रस्तुत कर दो तो मैं अपनी माँ के साथ यह मेहर बादशाह के पास भेज दूँ।
जिन्न ने कहा, यह सब मैं अभी लाए देता हूँ। यह कह कर वह गायब हो गया और कुछ ही क्षणों में मेहर के साथ फिर उपस्थित हो गया। अलादीन का घर चालीस हब्शी और चालीस गौर वर्ण गुलामों से भर गया। सभी गुलाम जरदोजी के ऐसे मूल्यवान वस्त्र पहने थे जो अमीरों को भी नसीब नहीं होते। हब्शियों के सिरों पर स्वर्ण पात्र थे जिनके मीनाकारी के काम के ढक्कन थे। सब ने स्वर्ण पात्रों को खोल कर दिखाया। उन सभी में उसी तरह के बड़े-बड़े हीरे, मोती, नीलम, लाल, पुखराज आदि भरे हुए थे। अलादीन का घर रत्नों, स्वर्ण पात्रों और जरी की पोशाकों से जगमगाने लगा। जिन्न ने पूछा कि और कोई काम तो नहीं है? अलादीन ने कहा, अभी कोई काम नहीं है। लेकिन जरूरत होगी तो फिर बुलाऊँगा।
अलादीन की माँ बाजार में आई तो यह साज-सामान देख कर स्तंभित रह गई। अलादीन ने उस से कहा, अम्मा, तुम जल्दी से नाश्ता करो और मेरे खाने-पीने की चिंता छोड़ कर इस मेहर को ले कर बादशाह के दरबार में चली जाओ। ऐसा न हो कि बादशाह की मति फिर पलट जाए। अभी बादशाह इस मेहर को देखेगा तो इतना अभिभूत होगा कि इनकार न कर सकेगा। इसलिए तुम जाने की जल्दी करो।
बुढ़िया ने जल्दी-जल्दी खाया-पिया और दरबारी पोशाक पहनी। उस बीच अलादीन ने गुलामों को पंक्तिबद्ध किया और यह बताया कि किस प्रकार दरबार में प्रवेश करें और किस भाँति एक-एक करके स्वर्ण पात्रों को बादशाह को ढक्कन खोल कर दिखाएँ। उस ने एक-एक हब्शी गुलाम के आगे एक-एक गोरे रंग गुलाम खड़ा किया और उनका दर्शनीय समूह बना दिया। उन के पीछे माँ को भेज कर वह अपने घर में व्यग्रता से परिणाम की प्रतीक्षा करने लगा।
यह काफिला चला तो नगरवासी मार्ग के दोनों ओर भीड़ लगा कर तमाशा देखने को खड़े हो गए। एक-एक गुलाम की पोशाक ही एक-एक लाख रुपए की होगी और उन के वस्त्रों तथा स्वर्ण पात्रों से निकलनेवाली चमक से देखनेवालों की आँखें चौंधियाई जाती थीं। गुलामों का समूह जब शाही दरबार के सामने पहुँचा तो हरकारों ने बादशाह को उस की खबर दी। उस ने आदेश दिया कि उन्हें दरबार में हाजिर करो। वे सभी कायदे से चलते हुए अर्ध गोलाकार रूप में सिंहासन के सामने खड़े हो गए। फिर उन गुलामों ने सम्मानपूर्वक ढकने हटा कर रत्नों को पेश किया। अलादीन की माँ ने आगे बढ़ कर सिंहासन का पाया चूमा और कहा, मेरे बेटे ने कहलवाया है कि यद्यपि यह भेंट आप के सम्मान के अनुकूल नहीं है फिर भी आशा है कि इसे स्वीकार करके मुझे अपनी गुलामी में लेंगे। बादशाह ने मंत्री से कहा, जो आदमी ऐसा मेहर दे सकता है वह निस्संदेह मेरe दामाद होने के योग्य है। मंत्री ने उस की मति को फेरना चाहा और ऊँच-नीच समझाया किंतु बादशाह ने उस की न मानी।
बादशाह ने अलादीन की भेंट स्वीकार कर ली और उस की माँ से कहा, तुम अपने बेटे को यहाँ लाओ। मैं उसे देखना चाहता हूँ। मैं ने जो वचन दिया है उसे जरूर पूरा करूँगा। अलादीन की माँ यह सुन कर दौड़ी हुई अपने घर आई। उधर बादशाह भी दरबार से उठ कर अपने महल में आ गया।
उस ने दासों और सेवकों को आज्ञा दी कि रत्नों से भरे सारे पात्र शहजादी के महल में पहुँचा दिए जाएँ। वह स्वयं भी शहजादी के महल में गया ताकि उन रत्नों को भली-भाँति देखे। शहजादी के महल के आँगन में जब सजे-धजे अस्सी गुलाम आ कर खड़े हुए और शहजादी ने चिक की आड़ से उन्हें देखा तो उन के वैभव को देख कर बड़े आश्चर्य में पड़ी। उस ने इतने विशाल राज्य की राजकुमारी होने पर भी ऐसी तड़क-भड़क और ऐसे अमूल्य रत्न कभी नहीं देखे थे।
अलादीन की माँ ने घर जा कर पुत्र से कहा, तुम भगवान को धन्यवाद दो। तुम्हारा भाग्य खुल गया। बादशाह ने तुम्हारी भेंट पसंद कर ली और कहा कि शहजादी का विवाह तुम से होगा। अन्य दरबारियों ने भी सहमति प्रकट की। बादशाह ने तुम्हें बुलाया है ताकि तुम्हारे हाथ में अपनी पुत्री का हाथ दे दे। अलादीन यह सुन कर खुशी से झूम उठा। उस ने माँ से कहा, अम्मा, तुम्हें थोड़ी ही देर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। मैं तैयार हो कर अभी चलता हूँ। यह कह कर वह अंदर के कमरे में गया। उस ने चिराग को रगड़ा और जिन्न प्रकट हो कर आदेश की माँग करने लगा। अलादीन बोला, एक तो मैं हम्माम में स्नान करना चाहता हूँ, इस के बाद तुम मेरे लिए बादशाहों के जैसे कपड़े ले आओ। जिन्न ने उस का हाथ पकड़ा और उसे उड़ा कर एक संगमरमर के बने हम्माम में ले गया। अलादीन ने कपड़े उतार कर गर्म पानी से मल-मल कर नहाया और तरह-तरह की सुगंधियाँ अपनी देह में लगाईं। उस का शरीर गोरा और नरम हो गया और बदन के एक-एक जोड़ में चुस्ती आ गई और उस का चेहरा चाँद की तरह दमकने लगा। जब वह उस जगह आया जहाँ उस ने कपड़े उतारे थे तो वहाँ एक भारी कमख्वाब का जोड़ा अपने लिए रखा पाया।
वहाँ जिन्न भी आ गया जिसने कपड़े पहनने में अलादीन की सहायता की। फिर जिन्न ने कहा, अब क्या आज्ञा है? अलादीन ने कहा, मेरे लिए एक ऐसा बढ़िया घोड़ा लाओ जिसके मुकाबिले का कोई घोड़ा शाही अस्तबल में मौजूद न हो। उस का साज-सामान भी लाखों रुपए का होना चाहिए। इस के अलावा बारह गुलाम मेरे दाएँ-बाएँ और पीछे चलने के लिए हों और बीस सिपाही मेरी सवारी के आगे चलने के लिए। छह दासियाँ अच्छे कपड़े पहने हुए मेरी माँ की सेवा में चलें और दो दासियाँ दो भारी और अति मूल्यवान कपड़ों के जोड़े उठाए हुए साथ चलें, एक मेरी माँ के लिए और दूसरा मेरी भावी पत्नी के लिए। इस के अलावा दस तोड़े अशर्फियों के मेरे लिए हों जिन्हें मैं रास्ते में लुटाता चलूँ।
जिन्न यह आदेश पा कर गायब हो गया और दो क्षणों में यह सारी चीजें ला कर दे दीं। अलादीन ने अशर्फियों के चार तोड़े अपनी माँ को दिए ताकि शाही महल में इनाम- इकराम के काम आएँ और छह तोड़े अपने साथ चलनेवाले बारह गुलामों में से छह को दिए कि मुट्ठी भर-भर कर अशर्फियाँ फकीरों और गरीबों के लिए बादशाह के महल तक लुटाते चलें। अपनी माँ के आगे छह दासियाँ करके कहा, यह छह तो तुम्हारी सेवा के लिए हैं। इनके अलावा यह दो दासियाँ बहुमूल्य वस्त्र लिए हैं, इनमें एक जोड़ा जो तुम चाहो बदर बदौर को दे देना और दूसरा अपने लिए रख लेना। फिर उस ने जिन्न से कहा कि इस समय तुम जाओ, जब फिर जरूरत पड़ेगी तो तुम्हें बुलाऊँगा। जिन्न यह सुन कर गायब हो गया।
इस के बाद अलादीन ने एक दास को शाही दरबार में भेजा कि बादशाह से कहे कि अलादीन आना चाहता है। वह जा कर वापस हुआ और बोला, बादशाह और सारे सरदार आप की प्रतीक्षा में हैं। अलादीन कभी घोड़े पर न बैठा था किंतु उस बढ़िया घोड़े पर शान से बैठा और उसे कुदाता हुआ बाजार से निकला। लोगों की भीड़ लग गई और अलादीन के दासों ने अशर्फियाँ लुटानी शुरू कर दीं। लोगों ने अलादीन को हमेशा फटेहाल देखा था। उसे इस ठाठ-बाट में देख कर कोई पहचान न सका और लोग आपस में बातें करने लगे कि यह शानदार आदमी जो इतने खुले हाथों से अशर्फियाँ लुटा रहा है, कौन है। सारे शहर में उस की चर्चा होने लगी और जानकार लोगों ने बताया कि कुछ ही देर पहले इस ने बादशाह के लिए ऐसी बहुमूल्य भेंट भेजी है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी बताया कि इसी आदमी से शहजादी का विवाह होना निश्चित हुआ है। यह सुन कर लोग बड़े खुश हुए और कहने लगे कि वास्तव में शहजादी के लिए इस से अधिक उपयुक्त वर का मिलना असंभव था।
जब अलादीन महल के बाहरी फाटक पर पहुँचा तो उस ने चाहा कि घोड़े से उतरूँ। लेकिन वहाँ उस के स्वागत के लिए मंत्री, सरदार और अमीर-उमरा जो जमा हुए थे उन्होंने उसे उतरने नहीं दिया और उसे घोड़े पर बिठाए हुए ही प्रांगण में से ले गए। जब वह दरवाजे पर पहुँचा तो इन लोगों ने उसे घोड़े से उतारा और दो पंक्तियाँ बना कर उन के बीच में अलादीन को करके सम्मानीय अतिथि के रूप में बादशाह के सामने ले गए। अलादीन का रूप-रंग और वेशभूषा देख कर बादशाह को योग्य दामाद के पाने पर बड़ी प्रसन्नता हुई। अलादीन ने चाहा कि बादशाह के पाँवों पर गिरे किंतु बादशाह ने उसे ऐसा करने से रोक दिया और उसे अपने साथ ही सिंहासन पर बिठा लिया।
बादशाह ने कहा, तुम किस देश से आए हो? अलादीन ने कहा, मैं आप ही की प्रजा में से हूँ, यहीं का निवासी हूँ, किंतु शहजादी के बगैर जिंदा नहीं रह सकता इसीलिए आप की सेवा में आया हूँ। बादशाह ने उसे गले लगा कर कहा, मैं अन्यायी नहीं हूँ। मैं ने जो वचन दिया है उस पर कायम हूँ। मेरे सामने मरने-जीने की बातें न करो, तुम मुझे बहुत प्यारे हो। मैं ने जैसी तुम्हारी प्रशंसा सुनी थी वैसा ही तुम्हें पाया। यह कह कर बादशाह ने इशारा किया तो चारों ओर से तरह-तरह के बाजे बजने लगे। फिर बादशाह अलादीन का हाथ पकड़ कर उसे महल के अंदर ले गया और दोनों ने साथ-साथ भोजन किया। बादशाह ने उस से विभिन्न विषयों पर बातें कीं और देखा कि वह हर बात का बुद्धिमानी और शालीनता के साथ उत्तर देता है। बादशाह इस बात से बहुत खुश हुआ। भोजन से निवृत्त हो कर उस ने काजी को बुलाया और निकाह पढ़ने की तैयारी के लिए कहा। वह अलादीन को भेंटवार्ता के कक्ष में लाया जहाँ सरदारों और अमीरों ने अलादीन से बातें कीं और उस की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की। विवाह के बाद बादशाह ने अलादीन से कहा कि आज तुम इसी महल में रहो ताकि सुहागरात यहीं हो। अलादीन ने कहा, मैं आप की आज्ञा से बाहर नहीं हूँ किंतु मैं चाहता हूँ कि नया महल अपनी पत्नी के लिए बनवाऊँ और उसी में उस से भेंट करूँ। बादशाह ने कहा, अच्छी बात है, लेकिन तुम्हारा महल मेरे महल के पास ही होना चाहिए। मेरे महल के सामने एक बड़ा मैदान है। उस में तुम जहाँ भी चाहो अपना महल बनवा लो। यह कह कर उसे गले लगा कर विदा किया। अलादीन वापसी में भी दोनों ओर अशर्फियाँ लुटाता हुआ आया और प्रजाजन ने उस की दानशीलता और वैभव की और अधिक प्रशंसा की।
घर आ कर अलादीन अंदरूनी कमरे में गया। वहाँ उस ने चिराग को रगड़ कर फिर जिन्न को बुलाया। जिन्न ने सदा की भाँति उस से कहा, स्वामी, आज्ञा करें। अलादीन ने जिन्न से कहा, भाई, तुम प्रशंसा योग्य हो। जो कुछ भी मैं ने तुम से कहा है तुमने किया है। अब मैं तुम से एक बड़ा काम करने को कहता हूँ। बादशाह के महल के उस तरफ जो बड़ा मैदान है उस में तुम मेरे लिए एक बहुत ही शानदार महल बनाओ। तुम खुद ही जो पत्थर उचित समझो उस का महल बनाना। उस में एक बड़ी बारहदरी हो जिसकी छत गुंबददार हो और सिर्फ सोने-चाँदी की बनी हो। उस के चारों ओर के चौबीस दरवाजों में सिर्फ एक दरवाजा छोड़ कर बाकी में असंख्य रत्न जड़े हों। महल में एक बड़ा दीवानखाना और बहुत ही सुंदर फूलों का बाग भी होना चाहिए। उस का बावर्चीखाना ऐसा हों जिस में हजारों आदमियों का भोजन बन सके। उस के खजाने में असंख्य रत्न, अशर्फियाँ और रुपए हों। उस के भंडार गृह में हर मौसम के लायक कपड़ों की बहुतायात हो। उस की घुड़साल में सैकड़ों असील घोड़े हों और उन के लिए साईस भी। बहुत-से दास-दासियाँ और सेवक भी चाहिए। इस के अलावा मैं जो कुछ इस समय भूल रहा हूँ वह भी ला कर महल को सब प्रकार से संपूर्ण कर देना। जिस समय अलादीन ने जिन्न से यह सब करने को कहा उस समय संध्या हो रही थी। जिन्न ने कहा, कल सुबह जब आप जागेंगे तो आप को महल तैयार मिलेगा। यह कह कर जिन्न गायब हो गया और अलादीन अपने घर के शयन कक्ष में चला गया।
रात को अलादीन को काफी देर में नींद आई क्योंकि वह शहजादी के विरह में व्याकुल रहा। सवेरे कुछ देर में उस की आँख खुली तो जिन्न उस के पास आया और बोला कि चल कर देख लीजिए, जैसा महल आप ने कहा था वैसा बन कर तैयार हो गया है। अलादीन ने जा कर देखा तो उस की तबीयत खुश हो गई। अलादीन ने देखा कि महल काफी विस्तृत है और उस का प्रत्येक कक्ष इस तरह से सुसज्जित है जैसा अन्य कहीं मिलना मुमकिन नहीं है। हर जगह लाखों रुपए की सजावट है और सारा महल दास-दासियों से भरा हुआ है। सभी चुस्ती से अपना काम करने में लगे थे।
खजाने में सैकड़ों संदूक अशर्फियों, रुपयों तथा रत्नों से भरे हुए रखे थे। अलादीन को यह सब देख कर बहुत अच्छा लगा और उस ने जिन्न की बड़ी प्रशंसा की।
फिर वह जिन्न उसे घुड़साल में ले गया। वहाँ सारे देशों के अच्छी जातियों के घोड़े बँधे थे। हर एक के लिए एक होशियार साईस था और जड़ाऊ जीन लगामें थीं। कई घुड़साल के दारोगा भी साईसों के ऊपर नियुक्त थे। यह सब दिखाने के बाद जिन्न उसे भंडार गृह में ले गया। वहाँ जीवन की प्रत्येक आवश्यक वस्तु भरी पड़ी थी। इसी तरह कई तहखाने और कई ऊपरी कक्ष भी जिन्न ने उसे दिखाए। फिर वह खास बारहदरी दिखाई जिस के लिए अलादीन ने कहा था। यह सारा वैभव देख कर अलादीन बहुत खुश हुआ। फिर उस ने जिन्न से कहा, यह सब बहुत अच्छा है लेकिन एक चीज रह गई है जिसे प्रस्तुत करने के लिए तुम से कहना मैं भूल गया था। मैं चाहता हँ कि एक काफी चौड़ाईवाला मखमली कालीन मेरे महल से ले कर राजमहल के द्वार तक बिछ जाए ताकि रास्ते पर मेरी स्त्री उस पर चल कर आए। जिन्न ने तुरंत ही मखमली कालीन भी बिछवा दिया।
राजमहल के सेवकों ने सुबह जब द्वार खोले तो देखा कि महल के सामने के मैदान में एक बहुत बड़ा भवन बना हुआ है। यह देख कर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। इस से भी अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि उस महल के द्वार से राजमहल के द्वार तक एक चौड़ा मखमली कालीन बिछा हुआ है। उन्होंने महल में सब लोगों से यह कहा। मंत्री जब दरबार में आया तो उसे भी यह सब देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। दरबार के समय उस ने बादशाह से सिर नवा कर कहा, सरकार, राजमहल के सामने के मैदान में एक बड़ा भारी महल दिखाई देता है। कल तक वह मौजूद नहीं था। मुझे तो ऐसा लगता है कि काम जादू का है।
बादशाह ने मंत्री से बिगड़ कर कहा, तुम बिल्कुल गलत कहते हो। यहाँ जादू की कोई बात नहीं है। कल शादी के बाद जब मैं ने उस से राजमहल में रात बिताने को कहा तो उस ने मुझ से आज्ञा माँगी कि मैदान में अपने लिए महल बनवा लूँ और शहजादी का वहीं स्वागत करूँ। तुम्हें उस से जलन है इसलिए जादू आदि की बात करते हो। असली बात यह है कि अलादीन के पास अपार धन है। अगर उस ने लाखों लोगों को काम पर लगा कर एक रात में महल तैयार करवा लिया तो आश्चर्य की क्या बात है। चूँकि दरबार का समय आरंभ हो गया था इसलिए इस विषय पर बादशाह और मंत्री के बीच ओर कोई बातचीत न हो सकी।
अलादीन जिन्न को विदा दे कर अपने पुराने घर में आया। उस की माँ राजमहल में जाने के लिए कपड़े पहन रही थी। अलादीन ने कहा, अम्मा, तुम राजमहल उस समय जाना जब बादशाह दरबार खत्म करके अंतःपुर में जाए। तुम राजमहल में इन दो दासियों के साथ जाना और जिन्न ने हमें जो पोशाकें ले जाने के लिए दी हैं, यह दोनों जोड़े और जेवर तुम शहजादी ही को दे देना। यह सुन कर उस ने वस्त्र पहनना समाप्त किया और बुरका ओढ़ कर राजमहल को गई। इधर अलादीन पिछले दिन की तरह अशर्फियाँ लुटाता हुआ अपने नए महल में आया।
उस की माँ राजमहल में पहुँची तो चोबदारों ने उस के आगमन की सूचना बादशाह को दी। उस ने उस के स्वागतार्थ बाजों के बजाए जाने की आज्ञा दी। महल के बाहर भी बाजे बजने लगे। यह इस बात की सूचना देने के लिए कि शहजादी आज ससुराल जानेवाली है। सारे नागरिकों ने उत्सव मनाना शुरू कर दिया। रात की दीप मालिकाओं का प्रबंध किया जाने लगा। व्यापारी लेन-देन छोड़ कर अपनी दुकानों और घरों की सजावट करने लगे। हर दरवाजे पर वंदनवार और बैठक में कीमती कालीन बिछाए गए। लोग बड़ी तादाद में आ कर शहजादी के जाने के मार्ग पर जमा हो गए। सभी को अलादीन द्वारा बनवाए हुए नए महल तथा राजमहल से उस महल तक के मार्ग पर बिछे हुए कालीन को देख कर बड़ा आश्चर्य था।
महल के ख्वाजासराओं का सरदार अलादीन को सम्मानपूर्वक महल के अंदर ले गया। शहजादी ने भी उठ कर सम्मानपूर्वक अपनी सास की अगवानी की। अलादीन की माँ ने वे वस्त्राभूषण जो अपने साथ लाई थी शहजादी को पहनाने के लिए दिए। सेविकाओं और दासियों ने वे वस्त्राभूषण शहजादी को पहनाए। जब वह ससुराल से आए वस्त्राभूषण पहन चुकी तो बादशाह भी उसे देखने को आया। उस ने पहली बार अलादीन की माँ का खुला चेहरा देखा (क्योंकि अब दोनों में रिश्तेदारी हो गई थी) और कहने लगा, मैं तो आप को खूसट बुढ़िया समझे हुए था। अब देखता हूँ तो आप बुद्धिमती ही नहीं बल्कि सुंदर और जवान भी लगती हैं।
दिन भर उत्सव और दावतें होती रहीं। शाम को दुल्हन अपनी ससुराल के लिए विदा हुई। बादशाह और शहजादी गले मिल कर रोए। फिर शहजादी पतिगृह को चल दी। उस के पीछे सौ दासियों को ले कर अलादीन की माँ चली। यह जुलूस जब महल के मुख्य द्वार पर आया तो वहाँ से एक पार्श्व में सौ सरदार तथा दूसरे में उतने ही ख्वाजासरा शहजादी के आगे हो लिए। इन सब के बीच में सुंदरता की प्रतिमूर्ति शहजादी मखमली कालीन पर हंस की गति से चलने लगी। अलादीन के महल से डोमिनियों और मोरासिनों ने शहजादी को आते देख कर उस की अगवानी में गीत गाए। वह महल के द्वार पर पहुँची तो अलादीन उस के स्वागत के लिए आया। उस की माँ ने बताया कि शहजादी कौन है क्योंकि बढ़िया पोशाकें पहने हुए बीसियों सुंदरी दासियाँ वहाँ मौजूद थीं। शहजादी ने भी पहली बार अलादीन को देखा था क्योंकि विवाह के समय तो लज्जावश वह सिर ही नहीं उठा सकी थी। अलादीन को स्वस्थ और सुंदर देख कर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। अलादीन ने बड़ी सुशीलता के साथ उस से कहा, मेरे बड़े भाग्य हैं कि मैं ने तुम जैसी भुवनमोहिनी कोमलांगी वैभवशाली राजकुमारी को पाया है यद्यपि मेरी हैसियत कुछ नहीं है। भगवान ने शायद तुम से सुंदर किसी को रचा ही नहीं।
शहजादी ने भी वैसी ही शालीनता दिखाते हुए कहा, ऐ मेरे सिरताज, वैसे तो मैं लड़की होने के कारण विवाह में अपने पिता की इच्छा की पाबंद हूँ और वे जिसे मेरा पति बनाते उसे मैं प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लेती। किंतु अब आप को देख कर अपना भाग्य सराहती हूँ कि मेरे पिता ने मेरे लिए कितना अच्छा वर तलाश किया है। अलादीन यह शालीन उत्तर सुन कर प्रसन्न हुआ। फिर उस ने सम्मानपूर्वक पत्नी का हाथ चूम कर कहा, पर तुम इतनी दूर पैदल चलने में बहुत थक गई होगी। हम लोग चल कर बारहदरी में बैठें और कुछ जलपान करें।
बारहदरी में इतनी जबर्दस्त सजावट थी कि आँखें चौंधियाई जाती थीं। सैकड़ों मोमबत्तियों की रोशनी में सारी छत और दीवारें, परदे आदि जगमगा रहे थे। रेशमी दस्तरख्वानों पर बीसियों सोने-चाँदी की तशतरियाँ रखी थीं जिनमें भाँति-भाँति के स्वादिष्ट व्यंजन थे। लाखों रुपए का सामान अकेली उस बारहदरी में लगा था। शहजादी कहने लगी, मैं तो समझती थी कि मेरे पिता के महल से ज्यादा शानदार और कोई जगह न होगी किंतु इस महल के आगे तो वह कुछ भी नहीं है।
अलादीन, शहजादी और अलादीन की माँ भोजन करने बैठे तो गायिकाओं ने सुंदर साजों पर मधुर गायन आरंभ किया। शहजादी फिर कहने लगी कि मैं ने जीवन में कभी ऐसा मोहक गायन नहीं सुना। उस बेचारी को क्या पता था कि यह गानेवालियाँ खुद परियाँ हैं जिन्हें चिराग का जिन्न लाया है। शहजादी या किसी को भी सिवा अलादीन और उस की माँ के चिराग का भेद भी ज्ञान नहीं था।
फिर दासियों ने खाने के बरतन उठा दिए और नर्तकियों का एक समूह आया। उस ने तरह-तरह के नृत्य और नाटक उपस्थित किए। जब आधी रात हो गई तो शहजादी और अलादीन भी नाचे क्योंकि चीन में यही रिवाज था कि शादी की पहली रात को दूल्हा-दुल्हन भी नाचते थे। फिर अलादीन और शहजादी अपने शयन कक्ष में गए। रात भर अलादीन आराम से सोया। दूसरे दिन सवेरे दासियाँ उसे पहनाने के लिए नए कपड़े लाईं। यह वस्त्र उसी तरह के थे जैसे पहले दिन के कपड़े थे यद्यपि वे उनसे रंग में किंचित भिन्न थे। सोने-चाँदी की जरदोजी का काम इन पर भी वैसा ही था। इस के बाद उस की सवारी के लिए एक घोड़ा लाया गया जो पिछले दिनवाले घोड़े से भिन्न था किंतु तेजी में उसी तरह का था।
अलादीन घोड़े पर सवार हो कर बिजली जैसी तेजी से राजमहल पहुँचा। उस के साथ दासों का एक दल भी था। बादशाह ने पिछले दिन की भाँति ही उस से सम्मान के साथ भेंट की और अपने साथ ही तख्त पर बिठाया। कुछ देर दरबार में रहने के बाद जहाँ उस ने कई मुकदमों में अलादीन से सलाह ली, वह दरबार खत्म करके महल में आया और अलादीन को भी हाथ पकड़ कर अपने साथ लाया।
अपने विश्राम कक्ष में बैठने के बाद उस ने आज्ञा दी कि भोजन प्रस्तुत किया जाए। अलादीन ने निवेदन किया, आज इस दास को यहाँ न खिलाइए बल्कि इसी के घर में रूखा-सूखा भोजन ग्रहण करके इसे अनुग्रहीत कीजिए। बादशाह ने यह निमंत्रण स्वीकार किया। वह दाईं ओर अलादीन, बाईं ओर मंत्री और पीछे दरबारियों को ले कर आया। सभी ने अलादीन के नए महल के प्रत्येक भाग को देखा। हर एक कक्ष को देख कर उन सभी को बड़ा आश्चर्य होता था। अंत में अलादीन सभी को बारहदरी में ले गया। बादशाह ने वहाँ बैठ कर मंत्री से कहा कि मेरे खयाल में दुनिया भर में इतना शानदार महल कोई नहीं होगा। मंत्री ने कहा, पृथ्वीपालक, परसों तक इस महल का कहीं नामोनिशान नहीं था, कल सुबह ही यह दिखाई दिया है। मैं ने ही आप को सब से पहले इस के तैयार होने की सूचना दी थी। बादशाह ने कहा, यह सच है। तुम्हीं ने मुझे इस के बारे में बताया था और मुझे यह बात भूली नहीं है। लेकिन मैं यह नहीं समझता था कि इतना सुंदर महल अलादीन ने बनवाया होगा। हम लोग जहाँ संगमरमर की दीवारों और छतों को बहुत समझते हैं वहाँ यहाँ सोने और चाँदी की ईटों का प्रयोग हुआ है। हम लोग जहाँ लोहे और पीतल से दरवाजों को सजाते हैं वहाँ इन दरवाजों में जवाहरात लगे हैं। यहाँ के तो ठाठ ही निराले हैं।
बादशाह उत्सुकतावश बारहदरी के दरवाजों को घूम-घूम कर गौर से देखने लगा। फिर उस ने आश्चर्यान्वित हो कर मंत्री से कहा, इस बारहदरी के तेईस दरवाजों में तो बहुमूल्य रत्न ऊपर से नीचे तक जड़े हैं किंतु एक दरवाजा बिल्कुल सादा रह गया। शायद अलादीन को इसमें रत्न जड़वाने का समय नहीं मिला। यह भी संभव है कि उस के पास के जवाहरात खत्म हो गए हों और यह दरवाजा छूट गया हो। खैर, कोई बात नहीं है। बाद में वह फुरसत से इस दरवाजे पर भी रत्न जड़वा देगा।
उस समय अलादीन किसी काम से गया था। उस के आने पर बादशाह ने पूछा कि एक दरवाजा बगैर रत्नों के कैसे रह गया। अलादीन ने कहा, इस के सादा रहने का कोई कारण नहीं था, किसी तरह यूँ ही सादा रह गया। अब आप की कृपा होगी तो इसमें भी जवाहरात जड़ जाएँगे।
बादशाह ने कहा, तुम्हारी इच्छा हैं तो ऐसा ही होगा। मैं इसे रत्नजटित करवा दूँगा। यह कह कर उस ने नगर के सारे जौहरियों को बुलाया। इधर अलादीन बादशाह को भोजन कक्ष में ले गया जहाँ शहजादी भी अपने पिता से मिली। वह बहुत प्रसन्नवदन दिखाई दे रही थी। वहीं जमीन पर बहुमूल्य दस्तरख्वान बिछे थे और रत्नजटित स्वर्ण पात्रों में नाना प्रकार का भोजन परोसा रखा था। एक जगह शहजादी और बादशाह के साथ अलादीन और दूसरी जगह मंत्री और दरबारी बैठ कर भोजन करने लगे। भोजन करने के बाद बादशाह ने व्यंजनों की प्रशंसा की और कहा कि यद्यपि मेरा बावर्चीखाना बहुत अच्छा है किंतु मैं ने भी ऐसे स्वादिष्ट व्यंजन नहीं खाए।
कुछ देर में मंत्री ने बादशाह से कहा कि आप ने जिन जौहरियों को बुलाया था वे सब आ गए हैं। बादशाह ने उन्हें बुला कर कहा, इन तेईस दरवाजों के रत्नों की बनावट और सज्जा तुम भली-भाँति देख लो। तुम लोगों को चौबीसवाँ दरवाजा भी ऐसा ही जड़ाऊ बनाना है। उन लोगों ने अच्छी तरह देख-भाल कर कहा, हम रत्न जड़ तो सकते हैं किंतु हमारे पास ऐसे मूल्यवान रत्न नहीं है। बादशाह ने कहा, इसकी चिंता न करो। शाही खजाने से जितने जवाहरात चाहो ले लेना। मंत्री ने भी अपनी वफादारी दिखाने के लिए कहा, मैं अपने पास से सारे रत्न दे दूँगा। किंतु दरवाजा ठीक वैसा ही बनना चाहिए जैसे अन्य दरवाजे हैं।
बादशाह अपने महल में गया। उस ने और मंत्री ने सारे रत्न, जिनमें अलादीन की माँ द्वारा भेंट किए हुए रत्न भी थे, जौहरियों के हवाले कर दिए। उन्होंने अपने कारीगर लगवा कर बारहदरी के खाली दरवाजे पर अन्य दरवाजों के नमूने पर रत्न जड़वाए। एक महीने के काम के बाद देखा गया कि बादशाह और मंत्री के दिए हुए सारे रत्न खत्म हो गए लेकिन दरवाजा पूरा फिर भी न भरा। वे लोग परेशान होने लगे कि बादशाह से जा कर क्या कहेंगे। उस समय अलादीन ने उन से कहा, तुम लोगों ने भरसक प्रयत्न किया। अब तुम यह जड़े हुए रत्न उखाड़ कर बादशाह और मंत्री के पास वापस पहुँचा दो। दरवाजे की फिक्र न करो, वह जड़ जाएगा।
वे लोग रत्न उखाड़ कर ले गए तो अलादीन ने अकेले में फिर चिराग को रगड़ा और जिन्न के आने पर कहा, अब तुम इस दरवाजे को भी दूसरे दरवाजे की तरह बना दो। जिन्न गायब हो गया। अलादीन भी कहीं चला गया। दो क्षण बाद उस ने आ कर देखा कि सादा दरवाजा भी दूसरे दरवाजों की तरह बन गया है। उस ने दास भेज कर सारे जौहरियों को वापस बुलाया और दरवाजा दिखा कर कहा, रत्नों को वापस करते समय यह भी कह देना कि अलादीन ने सादा दरवाजा भी रत्नजटित करवा दिया है। सारे जौहरियों को इस बात पर घोर आश्चर्य हुआ लेकिन वे चुपचाप चले गए।
उन्होंने जा कर बादशाह और मंत्री को रत्न वापस किए और अलादीन का दिया हुआ संदेश भी देना चाहा किंतु बादशाह उन की बात सुने बगैर फिर मंत्री को ले कर अलादीन के महल में आ गया और उसे स्वागत-सत्कार का अवसर दिए बगैर बारहदरी में चला गया। वह अलादीन से कहने लगा, बेटे, मैं सिर्फ यह पूछने के लिए यहाँ आया हूँ कि तुमने उस दरवाजे की जड़ाई क्यों रोक दी और मेरे और मंत्री के रत्न क्यों वापस कर दिए। उस ने कहा, मैं ने खुद ही दरवाजा जड़वा लिया, आप देख लें।
बादशाह ने जा कर देखा तो पहचान ही न सका कि कौन-सा दरवाजा था जिसकी नई जड़ाई हुई है। वह यह देख कर बहुत खुश हुआ। वह कहने लगा, बेटे, तुम जैसा कोई आदमी नहीं हो सकता। तुम हमेशा ऐसे काम करते हो जो मनुष्य की सामर्थ्य के बाहर हैं। तुम वाकई हर बात में कमाल करते हो। अलादीन ने विनयपूर्वक सिर झुका कर कहा, यह सब आप की महत्ता और आप का मुझ पर अनुग्रह है जो यह प्रशंसा कर रहे हैं वरना मैं तो किसी योग्य भी नहीं हूँ। इस के बाद बादशाह अपने महल में चला गया। वहाँ उस ने मंत्री से अलादीन के महल की प्रशंसा की। मंत्री ने कहा कि मुझे तो यह सब जादू लगता है। बादशाह ने हँस कर कहा, तुम्हें अब भी अलादीन से इसलिए जलन है कि तुम्हारे बेटे के बजाय उसे दामाद बना लिया। वह कसक तुम्हारे दिल से नहीं गई इसीलिए तुम अलादीन की प्रशंसा नहीं सुन सकते। मंत्री यह सोच कर चुप हो रहा कि बादशाह मूर्ख है और धोखे ही में रहना चाहता है। बादशाह रोज अपने महल की छत पर खड़ा हो कर अलादीन के महल को देखता और मन ही मन उस की प्रशंसा किया करता।
अलादीन शौकीन भी था और दिल का अच्छा भी। वह सप्ताह में एक दिन बाजार में सवार हो कर निकलता, कभी मसजिद में सबके साथ नमाज पढ़ने जाता, कभी मंत्री और अन्य अमीरों-सरदारों के घर उनसे मिलने जाता और अपने घर पर भी उनकी दावतें करता। उस ने दासों को यह काम सौंप रखा था कि जब उस की सवारी निकले तो दोनों ओर फकीरों और निर्धनों के लिए अशर्फियाँ लुटाते चलें। इस कारण जब वह सवार हो कर निकला तो रास्ते में भीड़ हो जाती और लोग उस की शान-शौकत और उदारता की प्रशंसा करते। जो भिखमंगे और निर्धन उस के घर पर जा कर सहायता प्राप्त करने में असमर्थ होते उन्हें भी वह इस प्रकार मदद देता। इस के अलावा हर हफ्ते वह एक बार शिकार के लिए भी जाता था। कभी तो नगर के पास ही शिकार खेल कर वापस चला आता था और कभी जंगल में इतनी दूर निकल जाता कि दो-चार दिन बाद आता।
उस ने अपनी दानशीलता के कारण नगर में किसी को निर्धन न रहने दिया था। इस उदारता के कारण जनसाधारण उसे बहुत प्यार करने लगे थे। यहाँ तक कि उस के सिर की कसम खानेवाले पर भी तुरंत विश्वास कर लिया जाता। साथ ही वह बादशाह को भी प्रसन्न रखता था। वह उसे अपने पराक्रम से भी प्रभावित करना चाहता था। उसे जल्दी ही इसका अवसर मिल गया। बादशाह ने यह इरादा किया कि अपने एक पुराने वैरी बादशाह पर हमला करके उस का राज्य ले ले।
(अगली पोस्ट में जारी……)
  
स्रोत-इंटरनेट से कापी-पेस्ट

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