शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

अलिफ लैला 48 ईरानी बादशाह बद्र और शमंदाल की शहजादी की कहानी (भाग 1)


शहरजाद ने कहा कि बादशाह सलामत, ईरान बहुत बड़ा देश है। पुराने जमाने में वहाँ बड़े शक्तिशाली और प्रतापी नरेश हुआ करते थे और उन्हें शहंशाह यानी बादशाहों का बादशाह कहा जाता था। उसी काल का वहाँ का एक बादशाह बद्र था। उसके पास अपार धन- दौलत और सैनिक शक्ति थी। उसके सौ पत्नियाँ और हजारों दासियाँ थीं किंतु उसे बड़ा दुख था कि उसके कोई पुत्र नहीं था। दूर-दूर के व्यापारी उसके लिए सुंदर दासियाँ लाते। वह उनसे पुत्र प्राप्ति की इच्छा से भोग करता। अपने देश के सिद्धों और तांत्रिकों से भी इस बारे में सहायता करने को कहा, हजारों कँगलों को धन का दान करता कि किसी के आशीर्वाद से पुत्र प्राप्ति हो। किंतु कोई उपाय सफल नहीं हो सका था और बादशाह की चिंता का अंत नहीं था।
एक दिन उसके एक सेवक ने कर बताया कि एक दूर देश का व्यापारी एक अति सुंदरी दासी ले कर बेचने के लिए आया है। बादशाह ने आज्ञा दी कि व्यापारी दासी को लाए। दूसरे दिन व्यापारी उस दासी को ले कर उपस्थित हुआ। बादशाह ने उससे पूछा कि तुम किस देश से दासी लाए हो। उसने कहा, मैं बहुत दूर देश की बाँदी लाया हूँ। आप उसकी सूरत देखेंगे तो यह पूछना भूल जाएँगे कि वह कहाँ की है। बादशाह ने कहा कि उसे दिखाते क्यों नहीं। व्यापारी ने कहा, मैं पहले आपकी अनुमति चाहता था। अभी मैंने उसे एक विश्वस्त दास को सौंप रखा है, आप कहें तो अभी ले आऊँ। बादशाह ने कहा कि फौरन लाओ।
व्यापारी ने ला कर दिखाया तो बादशाह ने देखा कि दासी वास्तव में अजीब-सी छटा बिखेर रही है। गौरवर्ण, कुंचित केशी, सुडौल शरीरवाली दासी थी जिसका चेहरा नकाब के अंदर से भी सौंदर्य की किरणें-सी बिखेर रहा था। बादशाह व्यापारी और दासी दोनों को अपने रंगमहल में ले गया। वहाँ पर दासी का नकाब उठा कर देखा तो उसके रूप की छवि से लगभग अचेत हो गया। जब थोड़ी देर में उसे पूर्ण चेत हुआ तो उसने व्यापारी से पूछा कि इस दासी का कितना मूल्य है। व्यापारी ने कहा, महाराज, इसे मैंने एक हजार अशर्फियों में मोल लिया था। इसे तीन वर्ष पहले लिया था। इस काल में इतना ही धन इसके भोजन, वस्त्र आदि पर व्यय हुआ। लेकिन मैं इसे यूँ ही आपको भेंट करने के लिए लाया हूँ अगर यह आपको पसंद हो।
बादशाह व्यापारी की विनयपूर्ण बातों से प्रसन्न हुआ। वह बोला, हम किसी से यूँ ही कोई वस्तु नहीं लेते। और जो चीज हमें पसंद आती है उसके दूने-चौगुने दाम भी दे देते हैं। यह दासी हमें बहुत पसंद है। हम इसके मूल्य के तौर पर तुम्हें दस हजार अशर्फियाँ देंगे। व्यापारी ने सिर झुका कर कई बार बादशाह को नमन किया और हजार अशर्फियों के दस तोड़े ले कर शाही महल से विदा हुआ। इधर बादशाह ने कई दासियों को बुला कर आज्ञा दी कि इसे हम्माम में ले जाओ और नहला-धुला कर अच्छे कपड़े पहनाओ।
सुघड़ परिचारिकाओं ने नई दासी को हम्माम में ले जा कर गरम पानी से भली भाँति नहलाया और जरी के काम के रत्नजटित वस्त्र पहनाए। परिचारिकाओं ने, जिन्हें बादशाह ने नई दासी के निमित्त नियुक्त किया था, उसके निखरे हुए रूप को देख कर आश्चर्य किया। उसे बादशाह के सामने ला कर उन्होंने कहा, इसे दो-चार दिन पूरा आराम दिया जाए और पौष्टिक भोजन दिया जाए तो इसका रूप और निखरेगा क्योंकि अभी इस पर लंबी यात्राओं की थकन बढ़ी होगी। तीन दिन बाद अगर आप इसे देखेंगे तो शायद पहचान भी सकेंगे। बादशाह ने यह बात मान ली और कहा कि इसे तीन दिन के बाद ही रंगमहल में भेजा जाए।
बादशाह की राजधानी समुद्र तट पर थी और शाही महल का पिछवाड़ा बिल्कुल समुद्रतट के सामने पड़ता था। वह नई दासी अक्सर अपने कमरे के छज्जे पर बैठ जाती और एकटक समुद्र की लहरों के तट पर टकराने का तमाशा देखती थी। तीन दिन के बाद चौथे दिन भी उसी प्रकार वह समुद्र की ओर देख कर अपना मन बहला रही थी कि उसी समय परिचारिकाओं ने बादशाह से कहा कि अब नई दासी अपनी पूरी छवि में चुकी है। बादशाह उससे मिलने को इतना बेचैन हुआ कि उसे बुला भेजने के बजाय खुद उसके पास जा पहुँचा। पहले तो उसके आने की आहट से नई दासी ने यह समझा कि कोई परिचारिका आई होगी। किंतु जब कुछ क्षणों के बाद उसने बादशाह को देखा तो भी कुरसी से उठी, किसी और तरह सम्मान प्रदर्शित किया। बादशाह को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ। किंतु उसे क्रोध नहीं आया, उसने यह समझा कि यह इतनी उद्दंडता इसलिए दिखा रही है कि उसकी शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई।
बादशाह के इशारे से परिचारिकाएँ हट गईं। बादशाह ने समीप जा कर उसके गले में हाथ डाला। दासी ने कोई आपत्ति नहीं की किंतु वह बोली-चाली भी नहीं। बादशाह उसे कमरे में ले गया। रतिक्रिया के बाद उसने दासी से कहा, मेरी प्राणप्यारी, तुम किस देश की निवासिनी हो और तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है। मेरे महल में सौ रानियाँ और कई हजार दासियाँ हैं किंतु उनमें से कोई एक भी सौंदर्य में तुम्हारे पास भी नहीं फटक पाती। मुझे तुमसे जितना प्रेम है उतना किसी रानी से भी नहीं है।
नई दासी इस पर भी चुप रही। बादशाह ने कहा, प्रिये, तुमने मेरी किसी बात का उत्तर नहीं दिया। कुछ तो बोलो ताकि मैं जैसे तुम्हारे सुंदर मुखमंडल से आनंदित होता हूँ वैसे ही तुम्हारे मीठे वचनों को सुन कर भी तृप्ति प्राप्त करूँ। तुमने तो मेरी ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा जिससे मेरे नयन तृप्त होते। आखिर तुम्हें कौन-सी चिंता सता रही है जिसने तुम्हारी वाणी को अवरुद्ध कर दिया है। तुम मुझे अपनी व्यथा बताओ। अगर तुम अपने माँ-बाप को याद कर रही हो तो उनका मिलना तो असंभव है, हाँ इसके अतिरिक्त तुम जो कुछ भी चाहो उसे तुम्हारी सेवा में उपस्थित कर दिया जाएगा।
बादशाह ने उससे इस प्रकार की बहुत-सी बातें कहीं किंतु दासी मुँह नीचा किए भूमि की ओर ही देखती रही। बादशाह फिर भी उससे क्रुद्ध हुआ। उसने परिचारिकाओं को आवाज दी और उनसे भोजन मँगवाया, वह स्वयं भी खाने लगा और अपने हाथ से स्वादिष्ट व्यंजनों के ग्रास नई दासी के मुख में देने लगा। वह खाती रही किंतु चुप ही रही। फिर बादशाह ने आज्ञा दी कि गायन-वादन और नृत्य का आयोजन किया जाए। इस पर भी वह चुप रही। बादशाह ने दासी की परिचारिकाओं से पूछा कि यह कभी बोलती भी है या नहीं, उन्होंने कहा कि किसी ने इसे बोलते क्या मुस्कुराते भी नहीं देखा। खैर, बादशाह ने रात भर उससे विहार किया और तय किया कि उसके अतिरिक्त किसी से संभोग करेगा।
इस निर्णय के बाद बादशाह ने कुछ दासियों को सेवा कार्य के लिए रख कर बाकी दासियों और सभी रानियों को बुला कर उन्हें काफी धन दे कर स्वतंत्र कर दिया कि वे जहाँ चाहें जाएँ और जिस से चाहें विवाह करें। एक वर्ष तक वह प्रतीक्षा करता रहा कि नई दासी उससे कुछ बात करेगी। किंतु जब ऐसा हुआ तो उसने विकल हो कर कहा, मेरी प्राणप्रिया, मुझे बड़ा दुख है कि तुम्हारे बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चल सका है। मैं यह तक नहीं जान पाया कि तुम मेरे साथ रहने में प्रसन्न हो या अप्रसन्न। मैं तो तुम्हारे लिए कुछ उठा नहीं रखता हूँ। तुम्हारे पीछे मैंने अपनी सारी रानियों और दासियों को छोड़ दिया। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम गूँगी हो। ऐसा हुआ तो यह ईश्वर का बड़ा अन्याय होगा कि ऐसा भुवन मोहन रूप दे कर अंदर ऐसा दोष पैदा कर दिया। अगर तुम गूँगी नहीं हो तो भगवान के लिए कुछ बोलो क्योंकि तुम्हारे चुप रहने से मैं बड़े कष्ट में रहता हूँ। मैं इस सारे वर्ष में भगवान से प्रार्थना करता रहा कि तुम्हारे पेट से मेरा कोई लड़का पैदा हो जो मेरे बाद राज-काज सँभाले क्योंकि मेरा बुढ़ापा रहा है और शारीरिक निर्बलता मेरे अंदर घर करती जा रही है। अगर तुम गूँगी नहीं हो तो मुझसे बातें करो। मैं और अधिक तुम्हारी चुप्पी नहीं सह सकता। तुम बोलीं तो मैं जान दे दूँगा और मेरी हत्या का पाप तुम पर पड़ेगा।
वह सुंदरी यह सुन कर मुस्कुराई और बादशाह की ओर देखने लगी। वह भी समझ गया कि यह कुछ बोलेगी और उसकी बात की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ देर बाद वह परम सुंदरी बोली, मुझे आप से बहुत-सी बातें कहनी हैं। मेरी समझ में नहीं रहा कि किस बात से आरंभ करूँ। आप ने इस सारे समय में मुझ पर इतनी दया की है और ऐसा मान दिया है जो वर्णन के बाहर है। मैं आपकी बड़ी आभारी हूँ और भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि वह आप को सवा सौ बरस की आयु दे और आपके शत्रु आपके प्रताप से ऐसे नष्ट हो जाएँ जैसे दीपक से पतिंगे। आप को कभी कोई कष्ट हो। एक शुभ समाचार मैं आप को यह देती हूँ कि आप से गर्भ रह गया है। मुझे पूरी आशा है कि मेरे बेटा ही पैदा होगा। इस बीच मुझ से जो कुछ अविनय हुआ इसके लिए मैं क्षमा माँगती हूँ। अभी तक मैं इसलिए नहीं बोली थी कि जबर्दस्ती यहाँ लाए जाने से मुझे बड़ा क्रोध चढ़ा था किंतु अब मैं आपसे जान से प्यार करने लगी हूँ।
बादशाह इतनी बात सुन कर खुशी से पागल हो गया। उसने उसे खींच कर सीने से लगा लिया और कहा कि गर्भ रहने का समाचार दे कर तुमने मेरे सारे दुख दूर कर दिए। यह कह कर बाहर आया और मंत्री को यह शुभ सूचना दे कर कहा कि फौरन एक लाख अशर्फियाँ गरीबों और भिखारियों में बँटवा दो, मेरे राज्य में कोई दीन-दुखी रहे। इसके बाद वह फिर उस सुंदरी के पास कर बोला, माफ करना, मैं तुम्हारे गर्भ धारण के समाचार से इतना प्रसन्न हुआ कि सार्वजनिक दान की घोषणा में विलंब कर सका। अब तुम यह बताओ कि तुम्हें ऐसी क्या नाराजगी थी कि तुम साल भर तक मुझ से या किसी से भी नहीं बोलीं। वह बोली, कारण यह था कि भगवान ने मुझे आपके पास दासी रूप में भेजा और अपने देश से इतनी दूर कर दिया कि कभी वहाँ जा ही सकूँ। विशेषतः अपने माँ-बाप, भाई-बंधु आदि का बिछोह मुझे सता रहा था। आप जानते हैं कि परतंत्र हो कर जीने में कोई आनंद नहीं, इससे तो मौत ही अच्छी। बादशाह ने कहा, तुम्हारी बात ठीक है लेकिन जब कोई स्त्री तुम्हारी जैसी सुंदर हो और मेरे जैसे व्यक्ति के हृदय में घर कर ले तो फिर उसे परेशान होने की क्या जरूरत है। सुंदरी ने कहा, आप ठीक कहते हैं। आपकी बड़ी कृपा है, किंतु दासी फिर भी दासी है।
बादशाह ने कहा, तुम्हारी बातों से मालूम होता है कि तुम किसी बड़े घराने की संतान हो। मुझे विस्तार से बताओ कि तुम कहाँ की हो और तुम्हारे माँ-बाप कौन हैं।
वह बोली, मेरा नाम गुल अनार आसीन है। मेरा पिता आसनी नामी समुद्र का राजा था। मरते समय उसने अपना राज्य मेरी माता और मेरे भाई सालेह को सौंप दिया। मेरी माँ भी किसी समुद्री राजा की बेटी थीं। हम तीनों आनंद से समय बिता रहे थे कि हमारे राज्य पर एक अन्य राजा ने चढ़ाई कर दी और हमारा राज्य छीन लिया। मेरा भाई उसका मुकाबला कर सका और मुझे और माँ को ले कर चुपके से राज्य से निकल गया। सुरक्षित स्थान पर पहुँच कर वह बोला कि हम पर विपत्ति पड़ी है और हमारी दुर्दशा हो गई है, भगवान चाहेगा तो मैं दुबारा अपने राज्य पर कब्जा करूँगा किंतु मैं चाहता हूँ कि इससे पहले तुम्हारे विवाह से छुट्टी पा जाऊँ और चूँकि किसी जल राज्य का कोई शहजादा तुम्हारे लायक नहीं है इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा विवाह किसी थल के राजा से कर दूँ और अपनी हैसियत के अनुसर काफी दहेज आदि दूँ।
मैं यह सुन कर बहुत बिगड़ी। मैंने उससे कहा कि देखो हम दोनों एक ही माँ-बाप की संतान हैं। मैं तुम्हारा हमेशा साथ देना चाहती हूँ बल्कि जरूरत हो तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकती हूँ किंतु जब आज तक किसी जल देश की राजकुमारी का विवाह किसी स्थलवासी राजा के साथ नहीं हुआ तो मैं ही ऐसी कहाँ गिरी-पड़ी हूँ कि किसी थलवासी के गले मढ़ी जाऊँ। मेरे भाई ने कहा कि आखिर ऐसी क्या बात है कि तुम किसी थलवासी राजा से विवाह नहीं करना चाहतीं। क्या तुम समझती हो कि सारे थलवासी कमीने और दुष्ट होते हैं। ऐसी बात बिल्कुल नहीं है, उनमें भी बहुत-से भलेमानस होते हैं। इस प्रकार उसने मुझे बहुत समझाया। मैंने उससे बहस तो नहीं की किंतु मुझे क्रोध बहुत आया। मैंने मन में कहा कि यह लोग मुझे भारस्वरूप समझ रहे हैं इसलिए मुझे हटाना चाहते हैं, मैं खुद चली जाऊँगी।
अतएव एक दिन जब सब लोग अपने काम में व्यस्त थे मैं अवसर पा कर जल से निकल आई और एक टापू पर एक सुरक्षित स्थान तलाश कर के लेट गई और लेटते ही गहरी नींद में सो गई। किंतु मेरा अनुमान गलत था। एक धनी आदमी वहाँ आया और मुझे सोते देख कर अपने नौकरों से उठवा कर अपने विशाल मकान में ले गया। मुझे शयनकक्ष में ले जा कर उसने मुझसे बड़ा प्रेम दिखाया किंतु मैंने उसकी ओर से पूरी उदासीनता बरती। फिर उसने चाहा कि बलपूर्वक मेरा कौमार्य भंग करे। इस पर मैंने उसे उठा कर फेंक दिया। उसका क्रोध और ग्लानि से बुरा हाल हो गया। दूसरे ही दिन उसने एक व्यापारी को बुला कर मुझे उसके हाथ बेच डाला। वह व्यापारी बड़ा भला आदमी था। उसने मुझसे कभी कोई ऐसी-वैसी बात नहीं की। उससे मुझे आपने खरीद लिया।
यह कह कर गुल अनार बोली, मैं सारे थलवासियों से घृणा करती थी इसलिए आप से भी नहीं बोली। किंतु आपका सौहार्द देख कर मुझे आपसे घृणा भी हुई। अगर आप मेरे साथ किसी प्रकार की जोर-जबर्दस्ती करते तो मैं समुद्र में कूद जाती और अपने कुटुंबी जनों से जा मिलती। मुझे एक ही भय था कि अगर मेरी माता और भाई को यह मालूम होगा कि मैं थल देश के किसी बादशाह के पास दासी के तौर पर रही हूँ तो वे लज्जावश मुझे जीता छोड़ते। अब तो मैं आप के पुत्र की माँ बननेवाली हूँ। अब अगर कभी चाहूँ भी तो आप का आश्रय छोड़ कर कहीं नहीं जा सकती। मैं अपनी ओर से स्वयं को आपकी दासी समझती हूँ और आगे भी समझूँगी किंतु मेरी प्रार्थना है कि मेरे साथ जैसे अब तक रानियों जैसा व्यवहार किया गया है आयंदा भी वैसा ही किया जाता रहे।
बादशाह ने कहा, तुम्हारा सुंदर मुख देख कर ही मैं तुम्हारा दीवाना हो गया था, अब तुम्हारी सुमधुर बातें सुन कर और भी हो गया हूँ। यह सुन कर मेरी प्रसन्नता का ठिकाना रहा कि तुम भी एक शहजादी हो। इससे पहले तुम समुद्र के एक देश की राजकुमारी थी और आज से तुम ईरान की मलिका हो। मैं आज ही दरबार में इस बात की घोषणा करूँगा और सारे देश में मुनादी करवा दूँगा। मैं अभी तक तुम से जितना प्यार करता था आगे उससे भी अधिक करूँगा। तुम भी मेरे अलावा किसी और आदमी का ध्यान भी करना। लेकिन एक बात बताओ। तुमने कहा कि तुम जल की निवासिनी हो। मेरी समझ में यह नहीं आया कि तुम लोग पानी में डूबते क्यों नहीं हो। सुना तो पहले भी था कि जल के अंदर भी मनुष्य रहते हैं किंतु इस बात पर विश्वास नहीं कर सकता था। अब तुमने खुद कहा कि मैं जल की निवासिनी हूँ तो विश्वास करना पड़ा लेकिन समझ में अब तक नहीं आया कि यह बात संभव किस तरह है। आदमी किस तरह पानी के अंदर रह सकता है और किस तरह वहाँ काम-काज कर सकता है?
गुल अनार ने कहा, 'देखिए, पानी कितना ही गहरा हो किंतु आप उसकी तह तक देख सकते हैं। जैसे निगाह पर पानी रोक नहीं लगाता उसी प्रकार कुछ लोग पानी के अंदर रहते भी हैं। वैसे तो समुद्र के नीचे जहाँ हम लोग रहते हैं रात-दिन के बीच कोई अंतर नहीं दिखाई देता किंतु हम लोग पानी के अंदर से भी आसमान में चलनेवाले सूर्य तथा चंद्रमा और तारों को देख सकते हैं। जैसे धरती पर कई देश हैं और कई नगर बसे हुए हैं वैसे ही समुद्र की तलहटी में कई देश बसे हुए हैं जो अलग-अलग बादशाह के अंतर्गत हैं। बल्कि सच तो यह है कि पृथ्वी के ऊपर जितने देश हैं उसके तिगुने देश जल के नीचे आबाद हैं। यहाँ की तरह ही वहाँ भी मनुष्यों की कई जातियाँ हैं। हम लोगों के अच्छे-अच्छे भवन और राजमहल बड़े भव्य होते हैं। वे संगमरमर के बने होते हैं और उनकी दीवारों और छतों में सीप, मोती और मूँगे ही नहीं, तरह-तरह के बिल्लौर और रत्नादि जड़े होते हैं। पानी में पृथ्वी से अधिक रत्न पाए जाते हैं और मोती तो इतने बड़े होते हैं जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते और मैं आप को ठीक तरह बता ही सकती हूँ।
'जल निवासियों में हर व्यक्ति अपने लिए सुंदर भव्य महल बना लेता है। वहाँ आने-जाने के लिए गाड़ियों की जरूरत नहीं पड़ती, हर आदमी जितनी दूर चाहे बगैर थके जा सकता है। आम आदमी घोड़ा भी नहीं रखते, सिर्फ बादशाह लोग शोभायात्रा के लिए अपनी घुड़सालों में दरियाई घोड़े रखते हैं। जब वे जुलूस में निकलते हैं या कहीं तमाशा देखने जाते हैं तो इन दरियाई घोड़ों को विशेष रूप से बनाई हुई गाड़ियों में जोत देते हैं। गाड़ियाँ इतनी आरामदेह होती हैं और घोड़े इतने होशियार होते हैं कि सवार का शरीर भी नहीं हिलता और घोड़े इशारे भर से चलते हैं। हमारे देश की स्त्रियाँ बड़ी सुंदर, चतुर और पतिपरायण होती है।'
यह कह कर गुल अनार बोली, स्वामी, यदि आज्ञा हो तो मैं अपने भाई और माता को यहाँ बुला लूँ ताकि वे खुद अपनी आँखों से देखें कि उनकी बेटी अब ईरान की मलिका बन गई है। बादशाह ने कहा, मुझे उनका स्वागत करने में अति प्रसन्नता होगी किंतु मेरी यह समझ में नहीं आता कि तुम उन्हें कैसे बुलाओगी। तुम्हें तो यह भी नहीं मालूम कि तुम्हारे देश को कौन सा रास्ता जाता है। गुल अनार बोली, वह सब मुझ पर छोड़िए। आप सिर्फ कुछ देर के लिए बगलवाले भवन में बैठें और तमाशा देखें।
मलिका गुल अनार ने अपनी दासी से आग मँगवाई फिर उसने कहा, तू बाहर जा और कमरे का द्वार बंद कर दे और जब तक मैं बुलाऊँ यहाँ आना। दासी के जाने पर उसने एक संदूकचे से एक चंदन का टुकड़ा निकाल कर आग पर डाल दिया और जब उसमें से धुआँ उठने लगा तो वह कोई मंत्र पढ़ने लगी। बादशाह उस मंत्र के शब्द बिल्कुल समझ सका और आश्चर्यपूर्वक मलिका की ओर देखता रहा। मंत्र ज्यों ही समाप्त हुआ कि समुद्र की सतह ऊँची होने लगा और समुद्र बढ़ते-बढ़ते राजमहल से जा लगा। कुछ देर बाद समुद्र का पानी फट गया और उसमें से एक सुंदर युवक निकला। उसकी मूँछें पानी की तरह हरी थीं। फिर एक शालीन प्रौढ़ महिला निकली जिसके पीछे पाँच सुंदर युवतियाँ थीं।
गुल अनार ने पानी के किनारे खड़े हो कर उन सब का अभिवादन किया। दो-चार क्षणों में वे लोग किनारे गए। युवक का नाम सुल्तान सालेह था और वह मलिका गुल अनार का भाई था। प्रौढ़ स्त्री गुल अनार की माँ थी। किनारे पर कर सालेह तथा उसकी माँ ने गुल अनार को गले लगाया और उसके मिलने पर आनंद के आँसू बहाए। गुल अनार ने अपने भाई, माँ और उनके साथ आए लोगों का यथोचित आदर-सत्कार किया। उसकी माँ ने कहा, बेटी, तुम्हारे वियोग में हम पर जो कष्ट पड़ा उसके वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। तुम्हारे भाई ने मुझे बताया था कि तुम किसी बात पर रूठ कर घर से निकल गई थीं। हम लोग तो बराबर तुम्हारे लिए रोते रहे। अब तुम बताओ कि तुम इस बीच कहाँ-कहाँ रहीं और तुम पर क्या बीती और यहाँ किस तरह पहुँचीं।
यह सुन कर गुल अनार अपनी माँ के चरणों पर गिर पड़ी। फिर कुछ देर बाद सिर उठा कर बोली, वास्तव में मुझ से बड़ा भारी अपराध हुआ जो आप लोगों को इस प्रकार छोड़ कर चली आई। मुझ पर बड़ी-बड़ी विपत्तियाँ पड़ीं किंतु अंत में मैं इस सुखद स्थान पर पहुँच गई। यहाँ कर मुझे मालूम हुआ कि स्थल के बादशाह भी जल देशों के बादशाहों की तरह होते हैं। अब सालेह ने कहा, प्यारी बहन, जो हुआ सो हुआ। अब तुम हमारे साथ अपने देश को चलो। हम लोग तुम्हें अपने बीच पा कर आनंद से रहेंगे।
ईरान के बादशाह पास ही के एक स्थान से सब कुछ देख-सुन रहा था। वह मन में घबराने लगा कि अगर यह लोग मलिका को ले गए तो मैं तो जीते जी मर जाऊँगा क्योंकि मैं गुल अनार का बिछोह सहन नहीं कर सकता। लेकिन गुल अनार की बातों से उसे धैर्य हुआ। वह बोली, अब मैं यहाँ से कहीं नहीं जा सकती। एक तो यहाँ के बादशाह ने मुझे दस हजार अशर्फियों में खरीदा है, दूसरे उससे मुझे चार महीने का गर्भ है। उसके भाई और माँ ने फिर कुछ नहीं कहा।
गुल अनार ने दासियों को आवाज दे कर सारे मेहमानों के लिए नाना प्रकार के भोजन परसवा दिए। उसने उनसे भोजन करने के लिए कहा। किंतु इस पर उनके चेहरे लाल हो गए और मुँह और नथुनों से आग की लपटें निकलने लगीं। उन्होंने कहा, यह ठीक है कि तुम्हारा पति बादशाह हैं, किंतु क्या हम लोग इतने नीचे हैं कि वह हमारे साथ भोजन भी करें। बादशाह कुछ दूर बैठा था। उनकी बात तो सुन सका किंतु उनके मुँह और नथुनों से लपटें निकलते देख कर घबराया। गुल अनार ने उसके पास कर कहा, वे लोग चाहते हैं कि आप ही के साथ भोजन करें। अब यही उचित है कि आप उन लोगों के पास चलें और सब से यथायोग्य भेंट करें और सबके साथ भोजन करें। बादशाह ने कहा, मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती है किंतु उनके मुँह और नथुनों से तो आग निकलती है। गुल अनार हँस कर बोली, आप चिंता करें। इस समय वे सोच रहे हैं कि आपने स्वयं कर उनका अपमान किया है। वे लोग क्रोध में आते हैं तो उनके मुँह और नथुनों से आग निकलने लगती हैं। आप चलेंगे तो उनका क्रोध दूर हो जाएगा। मेरे भाई और माँ का कहना है कि मैं उनके साथ देश चलूँ। किंतु मैं आपके प्रेम में इतनी फँसी हूँ कि आप को छोड़ कर नहीं जा सकती। बादशाह यह सुन कर बड़ा प्रसन्न हुआ और कहने लगा, मैं तुम्हारे जाने की बात से बड़ा दुखी था, अब तुम्हारी बात से मुझे ढाँढ़स मिला। मैं तुम्हारी माता और भाई से मिलने अभी चलता हूँ। उन्हें मुझ से कोई शिकायत नहीं रहेगी।
यह कह कर बादशाह गुल अनार के साथ उस मकान में गया जहाँ उसकी सास और साला मौजूद थे। उन लोगों ने बादशाह को देखा तो पृथ्वी से अपने सिरों को लगा कर नमन किया। बादशाह ने उनको एक-एक कर के उठाया और गले लगाया। फिर सब लोग बैठ कर प्रसन्नतापूर्वक बातें करने लगे। सालेह ने कहा, हम सब भगवान को बड़ा धन्यवाद देते हैं कि हमारी बहन बड़े कष्ट उठाने के बाद आप की छत्र छाया में आई और यहाँ बहुत ही प्रसन्न है। भगवान आपको चिरायु करे। बादशाह ने भी अभ्यागतों के स्वागतार्थ विनीत वचन कहे और सब लोग काफी देर तक सानंद बातचीत करते रहें।
रात पड़ने पर बादशाह ने भोजन लाने की आज्ञा दी। सब के साथ भोजन करने के बाद उसने पास के मकान में मेहमानों के लिए कोमल सुखदायी शैय्याएँ बिछवाईं और उनसे आराम करने को कहा। वह स्वयं गुल अनार को साथ ले कर अपने शयन कक्ष में चला गया। कुछ दिन बाद अतिथियों ने जाना चाहा तो बादशाह ने उन्हें आग्रहपूर्वक रोका कि गुल अनार के प्रसव तक तो रुक ही जाओ। वे लोग भी इस बात को सहर्ष मान गए और ईरान का सम्राट रोजाना उनके लिए नए-नए मनोरंजन प्रस्तुत करवाता रहा।
समय आने पर एक दिन गुल अनार प्रसव-पीड़ा से छटपटाने लगी। दूसरे दिन उसने एक पुत्र को जन्म दिया। यह पुत्र सुंदरता में चंद्रमा के तुल्य था इसलिए उसका नाम बद्र (चंद्रमा) रखा गया। गुल अनार की माँ ने अपने देश के अनुसार भी रस्में कीं और यहाँ के रिवाज के अनुसार छठी का भारी जोड़ा भी दिया। ईरान के सम्राट ने सार्वजनिक उत्सव की आज्ञा दी और देश के सभी निवासियों ने अपने-अपने घरों में राग-रंग का आयोजन किया।
शाही महल में जो उत्सव हुए उनका तो वर्णन ही असंभव है। बादशाह ने खजाने का मुँह खोल दिया और दीन-दुखियों को दान तथा सैनिकों, विद्वानों, कलाविदों आदि को भरपूर पारितोषिक दिए गए।
जब सौर गृहवास के दिन पूरे हो गए तो मलिका गुल अनार को स्नान करवाया गया और बादशाह, सुल्तान सालेह, उसकी माता तथा अन्य संबंधी नवयौवनाएँ बच्चे को देखने के लिए आए। सभी ने उसे उठा कर चूमा और तरह-तरह से प्यार-दुलार किया। सब के बाद सालेह बच्चे की दाई के पास गया और उसकी गोद से बच्चे को ले कर काफी देर तक इधर-उधर टहलता रहा। जब सब लोग इधर-उधर की बातों में लगे थे तो सालेह चुपचाप कमरे के दरवाजों से बाहर निकला और तेजी से समुद्रतट की ओर चला। सब लोग तो इत्मीनान से रहे किंतु बादशाह घबराने लगा। सालेह तेजी से समुद्र तट पर पहुँचा और एक ऊँची जगह से झम से समुद्र में कूद पड़ा।
बादशाह यह देख कर हाय-हाय करने लगा और सिर पीटने लगा। मलिका गुल अनार ने हँस कर उसे धैर्य दिया, बादशाह सलामत, आप परेशान हों। बच्चे को कुछ भी नहीं होगा। आप देखते तो जाइए। आप उसके पिता हैं तो मैं भी उसकी माँ हूँ, मैं तो कुछ भी चिंता नहीं कर रही।
बादशाह ने पूछा, लेकिन तुम्हारे भाई को यह क्या सूझी? उसने ऐसा क्यों किया? गुल अनार ने कहा, उन्होंने इसलिए यह किया कि बच्चे को हम लोगों की तरह जल और स्थल दोनों में रहने की आदत हो जाय। उसकी माँ तथा अन्य संबंधियों ने भी बादशाह को ऐसे आश्वासन दिए तो उसका चित्त स्थिर हुआ।
कुछ देर बाद समुद्र की सतह पर फिर उथल-पुथल होने लगी और सालेह बद्र को गोद में लिए हुए जल-तरंगों से बाहर आया। फिर वह हवा में उड़ता हुआ महल में आया जहाँ बादशाह और दूसरे लोग बैठे थे। बादशाह को यह देख कर ताज्जुब हुआ कि बच्चा अपने मामा की गोद में सो रहा है। सालेह ने बादशाह से कहा, सरकार, जब मैं आपके बच्चे को ले कर समुद्र में गया था तो आपको डर तो नहीं लगा था? बादशाह ने कहा, भाई, क्या पूछते हो। मेरी तो जान ही निकल गई थी। अब उसे सही-सलामत देख कर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मुझे नए सिरे से जीवन मिला है।
सालेह ने कहा, बच्चे को कुछ हो ही नहीं सकता था। मैंने समुद्र में पैठने के पहले हजरत सुलैमान की अँगूठी पर खुदा महामंत्र इस्मे-आजम पढ़ लिया था। हमारे यहाँ की यह रीति हे कि हम लोगों की नस्ल में कोई बच्चा अगर पृथ्वी पर पैदा होता है तो हम इस्मे-आजम की शक्ति के बल पर उसे जल के अंदर ले जाते हैं। वही मैंने किया। यह कह कर उसने बच्चे को दाई की गोद में दे दिया।
फिर उसने अपने वस्त्रों से एक छोटा संदूकचा निकाला। उसमें से सौ हीरे, जो कबूतर के अंडों के बराबर थे, निकाले। इसके अलावा सौ लाल और नीलम जिनमें प्रत्येक लगभग आधी छटाँक का था निकाले और तीस हार भी नीलम के निकाले और उन्हें बादशाह को दे कर कहा, हमें मालूम था कि मेरी बहन कितने ऐश्वर्यवान बादशाह को ब्याही है। हमारी यह तुच्छ भेंट स्वीकार करें।
ईरान का बादशाह उन रत्नों को देख कर आश्चर्य में पड़ गया। उनमें दो इतने बड़े थे कि समस्त पृथ्वी पर कहीं होंगे। उसने हर्षपूर्वक इस भेंट को आँखों से लगाया और सालेह से कहा, भाई, मैं तुम्हारी विनयशीलता से अति प्रभावित हूँ। तुम उन रत्नों को, जिनसे कई राज्य खरीदे जा सकते हैं, तुच्छ भेंट कहते हो। फिर उसने अपनी मलिका से कहा, सुंदरी, तुम्हारे भाई साहब मुझे यह सारे रत्न भेंट में दे रहे हैं। मैं चाहता हूँ कि इनमें थोड़े-से रख कर शेष उन्हें वापस करूँ। किंतु वे उन्हें लेने को तैयार नहीं हैं। तुम अगर उन पर जोर दो तो वे शायद मान जाएँ। गुल अनार ने उत्तर दिया, हे स्वामी, आप निःशंक हो कर उन्हें स्वीकार करें। इस प्रकार के रत्न पृथ्वी पर कम हैं, किंतु समुद्र में उनकी कोई कमी नहीं है। मेरे भाई को यह सब देने पर भी कोई हानि नहीं होगी। बादशाह यह सुन कर चुप हो गया और उसने वह पूरी भेंट स्वीकार कर ली।
कुछ दिन बाद सालेह ने बादशाह से कहा, आपने हमारा इतना स्वागत-सत्कार किया कि हम आपको यथोचित धन्यवाद नहीं दे सकते। लेकिन हमें यहाँ आए अब बहुत दिन हो गए हैं। मुझे अब अपने राज्य को वापस जाना चाहिए। आप तो जानते ही हैं कि बादशाह की अनुपस्थिति में राज्य-प्रबंध में कुछ कुछ गड़बड़ पैदा हो जाती है। अतएव हमें अनुमति दीजिए कि हम आप से और बहन से विदा लें और अपने देश को सिधारें। बादशाह ने कहा, तुम्हें जाने देने को जी तो नहीं चाहता लेकिन बात तुम्हारी ठीक है और मैं विवशतापूर्वक तुम्हें विदा दे रहा हूँ। किंतु यह जोर दे कर कहता हूँ कि बद्र को भूलना और बद्र तथा उसकी माँ को देखने के लिए कभी-कभी यहाँ आते रहना।
अतएव सालेह उससे विदा हो कर अपनी माता और कुटुंबीजनों के साथ अपने देश में गया। इधर सब लोग यथावत रहने लगे। बद्र जैसे-जैसे बड़ा होता रूप और गुण में और भी निखरता जाता और उसके माता-पिता उसके विकास को देख कर प्रसन्न होते। कभी-कभी बद्र का मामा और नानी भी उसे देखने को आते। बद्र कुछ बड़ा हुआ तो उसे विभिन्न विद्याएँ और कलाएँ सिखाने के लिए विद्वान अध्यापक रखे गए। पंद्रह वर्ष की अवस्था में वह सारी विद्याओं और कलाओं में निपुण हो गया। अब उसके पिता ने उसे युवराज घोषित कर के उसके हाथ में राज्य का प्रबंध दे दिया। उसने कुछ ही दिनों में शासन को सुचारु रूप से सँभाल लिया। उसके शासन प्रबंध से कर्मचारी और प्रजा दोनों प्रसन्न हुए। बादशाह ने यह देखा तो एक दिन पूर्व घोषणा के उपरांत अपने हाथ से अपना राजमुकुट उसे पहनाया और उसके सम्मानार्थ उसके हाथ चूमने के बाद वह स्वयं मंत्रियों और अमीरों की पंक्ति में जा बैठा। सामंतों, मंत्रियों आदि ने नए बादशाह को भेंटें दीं और उसकी आज्ञा का पालन करने लगे। राजदरबार से उठ कर जब राजमुकुट लगाए हुए बद्र अपनी माँ के पास गया तो उसने दौड़ कर उसे सीने से लगा लिया।
उसके पिता ने दो वर्ष तक उसका राज्य प्रबंध देखा और उसे हर प्रकार से चतुर पा कर नगर के बाहर जा कर एकांत स्थान में भजन आदि में समय बिताने लगा। बद्र जी-जान से राज्य प्रबंध में लगा। वह नगर-नगर, ग्राम-ग्राम जा कर स्वयं सारी व्यवस्था देखता। अवकाश के समय में जंगल में जा कर शिकार खेलता। कुछ वर्षों के बाद पुराना सम्राट बीमार पड़ा और उसका रोग बढ़ता गया। अंततः वह मर गया। मरने के पहले उसने मंत्रियों आदि को बुला कर नए बादशाह के प्रति वफादार रहने की ताकीद की। उसके मरने पर बद्र और उसकी माता ने उसका बड़ा मातम किया और गौरवपूर्ण ढंग से उसके अंतिम संस्कार किए। इस अवसर पर सालेह और उसकी माँ भी शामिल हुए।
जब बादशाह के अंतिम संस्कार से फुरसत मिली तो सालेह ने एक दिन अपनी बहन से कहा, ताज्जुब है तुम्हें अभी तक बद्र के विवाह की चिंता नहीं हुई यद्यपि वह कई वर्षों से विवाह योग्य हो चुका है। लेकिन उसके बारे में तुम्हें उस समय बताऊँगा जब बद्र सो जाएगा क्योंकि संभव है उस पर वह बिना देखे ही मोहित हो जाए।
बद्र के कान में इस बात की भनक पड़ गई। रात को वह ऐसा बन गया कि जैसे गहरी नींद सो रहा है किंतु वास्तव में बगल के कमरे में माँ और मामा के बीच होनेवाला वार्तालाप सुनता रहा। वे दोनों भी उसे सोता जान कर अपने साधारण स्वर में बातें करने लगे थे।
सालेह ने अपनी बहन से कहा, मैं जिस शहजादी को बद्र के योग्य समझता हूँ वह समंदाल देश के बादशाह की पुत्री है। यह देखो, मैं तुम्हारे दिखाने के लिए उसकी एक नवनिर्मित मूर्ति ले आया हूँ। इससे तुम्हें उसके सौंदर्य का अंदाजा हो जाएगा। दिक्कत सिर्फ एक है। समंदाल नरेश बहुत ही घमंडी है और किसी को भी अपनी हैसियत का नहीं समझता है। इसीलिए उसने अपने पुत्री का विवाह अब तक नहीं किया। फिर भी वह इतनी सुंदर है कि अगर बद्र को उसके सौंदर्य का पता चलेगा तो उसके प्रेम में पागल हो जाएगा बल्कि जान तक दे देगा। उस शहजादी का नाम है जवाहर।

गुल अनार बोली, मैं समंदाल के सुल्तान को जानती हूँ। मुझे आश्चर्य है कि उसकी बेटी अब तक कुआँरी है। अपना देश छोड़ने के पहले मैंने उसे देखा था। उस समय वह आठ महीने की थी। वह उसी समय इतनी सुंदर थी कि उसका सौंदर्य दूर-दूर तक विख्यात था। इस समय जवानी में तो उसके रूप का कहना ही क्या होगा। फिर भी वह बद्र से बड़ी है और उसे समंदाल नरेश से माँगने में क्या कठिनाई हो सकती है? सालेह ने कहा कि मैंने बताया कि वह बादशाह बड़ा ही घमंडी है। देखो बहन, मैं पूरा प्रयत्न करूँगा कि उसके पिता को विवाह के लिए राजी करूँ। लेकिन काम मुश्किल है और इसमें देर लग सकती है। इस बीच बद्र को इस बात का पता नहीं चलना चाहिए वरना इसमें संदेह नहीं कि वह जवाहर के प्रेम में पागल हो जाएगा और जान दे देगा। इसी प्रकार दोनों में बातें होती रहीं और बद्र सुनता रहा।

(अगली पोस्ट में जारी……) 

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