शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

अलिफ लैला 48 ईरानी बादशाह बद्र और शमंदाल की शहजादी की कहानी (भाग 3)

(पिछिली पोस्ट से जारी……)  

बूढ़ा बाहर निकला और उसने मलिका के घोड़े की रकाब चूमी। मलिका ने पूछा, यह सुंदर युवक, जो तुम्हारी दुकान पर बैठा है, कौन है? क्या यह तुम्हारा नौकर है? वृद्ध ने सिर झुका कर कहा, सरकार, यह मेरा भतीजा है। कुछ दिन पहले इसका पिता यानी मेरा भाई मर गया। मेरे कोई औलाद नहीं थी इसलिए इस लड़के को गोद ले लिया है। ताकि मेरा बुढ़ापा भी आराम से गुजरे और मरने के बाद मेरा नामलेवा भी कोई रहे। मलिका तो बद्र के रूप को देख कर दीवानी हो रही थी। उसका पूरा इरादा हो गया कि उसको अपने शयनकक्ष में ले जा कर आनंद करे। उसने बूढ़े से कहा, बड़े मियाँ, मैं तुमसे प्रार्थना करती हूँ कि अपना भतीजा मुझे दे दो। हम लोगों के देवता अग्नि और प्रकाश हैं। मैं उनकी सौगंध खा कर कहती हँ कि मेरे यहाँ इसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा। तुम मुझे हमेशा से मानते रहे हो और मुझे विश्वास है कि तुम मेरी इस प्रार्थना को ठुकराओगे। अगर तुमने अपना भतीजा मुझे दे दिया तो मैं जन्म भर तुम्हारा अहसान मानूँगी।
अब्दुल्ला यानी उक्त वृद्ध ने उसके विनय के पीछे छुपी हुई धमकी साफ-साफ महसूस की और चाहा कि किसी बहाने से बद्र को मलिका के चंगुल से बचाए। उसने कहा, सरकार, यह तो आपकी असीम कृपा है कि मेरे भतीजे को अपने पास रख कर उसी का नहीं मेरा भी अपूर्व सम्मान किया। किंतु यह बड़ा अनाड़ी लड़का है। अभी गाँव से आया। इस राजमहल के तो क्या सभ्य नागरिकों के भी तौर-तरीके नहीं जानता। इसलिए अभी इसे कुछ दिन मेरे पास ही रहने दीजिए। महिला ने कहा, तुम इस बात की चिंता करो। मैं इसे एक दिन ही में सारे तौर-तरीके सिखा दूँगी। अब तुम इस मामले में टालमटोल बिल्कुल करो। मैं कहे देती हूँ कि जब तक तुम इस युवक को मेरे हाथों में सौंप दोगे मैं यहाँ से नहीं हटूँगी। मैं इसे ले कर ही जाऊँगी। मैं फिर अपने देवताओं अग्नि और प्रकाश की सौगंध खाती हूँ कि इसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं दिया जाएगा और तुम भी इस बात पर कभी पश्चात्ताप करोगे कि तुमने अपने भतीजे को मुझे सौंपा।
अब बूढ़े ने सोचा कि जिद करना ठीक नहीं है। अगर मलिका को क्रोध गया तो मालूम नहीं मेरे साथ क्या कर डाले। उसने कहा, आप का हुक्म सिर आँखों पर किंतु एक विनय है। यह भतीजा मुझे बहुत प्यारा है। कम से कम एक दिन तो इसे मेरे पास और रहने दीजिए। कल यह अवश्य आपकी सेवा में उपस्थित हो जाएगा। मलिका ने यह बात मान ली और अपने सेना के साथ वापस चली गई। उसके जाने के बाद बूढ़े ने बद्र से कहा, मैं तो नहीं चाहता था कि तुम्हें उसके हाथ में दूँ लेकिन मुझे भय था कि अगर वह क्रोध में गई तो इसी समय हम दोनो को मरवा देगी। शायद वह तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार भी करे। उसने अपने आराध्य अग्निदेव की कसम खाई है। फिर मलिका के सारे दरबारी मुझे मानते हैं। वे भी तुम्हारी भरसक सहायता करेंगे। बद्र को इन बातों से कुछ ढाँढ़स हुआ और वह कहने लगा, अब तो जो कुछ मेरी किस्मत में है वह भोगना ही पड़ेगा। अब चाहे इस रानी के हाथों में मेरी मौत हो या मेरे भाग्य खुलें, मुझे तो उसके पास जाना ही है।
बूढ़े ने कहा, तुम अधिक चिंता करो। यद्यपि रानी जादूगरनी है और उसके पास राजशक्ति भी है किंतु वह मेरी शक्ति भी जानती है। वह अचानक कोई बात मेरी मरजी के खिलाफ नहीं करेगी। फिर भी वह महादुष्ट है। तुम्हें चाहिए कि हरदम होशियार रहो और अगर कोई बात असाधारण रूप से होते देखो तो मुझे उसकी सूचना देते रहना।
दूसरे दिन वह पापिनी रानी पिछली जैसी शान-शौकत से निकली और अब्दुल्ला की दुकान पर रुक गई। वह बूढ़े अब्दुलला से कहने लगी, तुम्हारे भतीजे के ख्याल में मैं रात भर सो नहीं सकी। अब तुमने कल जो वादा किया था उसे निभाओ। बूढ़े ने मलिका के सम्मानार्थ अपना शीश भूमि से लगाया फिर मलिका के समीप जा कर ताकि उसकी बात को कोई दूसरा सुने - बोला, कल जो कुछ मैंने अपने भतीजे के बारे में कहा था उसे कृपया भूलें। मैं उसे आपके हाथों में सौंपता हूँ। किंतु इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि इसे किसी प्रकार का कष्ट हो। मैंने आप से पहले भी कहा है कि और अब फिर कहता हूँ कि यह लड़का मेरे बेटे जैसा है और इसके दुख से मुझे दुख होगा। मलिका ने कहा, तुम्हें विश्वास क्यों नहीं हुआ है? मैंने तो इस बारे में तुम्हारे सामने अग्निदेवता की सौंगंध खाई है कि मेरे पास कोई दुख नहीं पहुँच सकता।
बूढ़े ने बद्र का हाथ मलिका के हाथ में दिया और कहा, आपकी बात पर विश्वास होने का कोई प्रश्न नहीं है किंतु जहाँ आपने इतनी कृपा की है वहाँ इतनी कृपा अवश्य कीजिए कि इसे कभी-कभी यहाँ कर मुझ से मिलने की अनुमति दे दें। इसीलिए मैंने दुबारा इसे दुख पहुँचने की बात की है। यह कभी-कभी कर मुझसे मिलेगा तो मुझे तो संतोष होगा ही, इसे भी धैर्य बना रहेगा। मलिका ने यह स्वीकार कर लिया और हजार अशर्फियों का एक तोड़ा बूढ़े को दे दिया। फिर नौकरों को आज्ञा दी कि एक बढ़िया घोड़ा लाओ जिसका साज बहुत अच्छा हो। वे तुरंत ही ऐसा घोड़ा ले आए। मलिका के कहने पर बद्र उस पर सवार हो गया। मलिका ने बूढ़े से उस का नाम पूछा तो उसने नाम बताया बद्र। मलिका बोली, यह नाम ठीक नहीं है। इसे तो बद्र (चाँद) के बजाय शम्स (सूर्य) कहना चाहिए।
यह कह कर मलिका अपने महल की ओर चल दी। बद्र भी अपने घोड़े पर उसके पीछे बाएँ बाजू से चलने लगा। रास्ते में नागरिकों की हलके स्वर में की जानेवाली बातचीत बद्र के कानों में पड़ने लगी। लोग कह रहे थे, देखो कैसा सुंदर सजीला जवान इस रानी ने चुना है। कुछ लोग कह रहे थे, यह दुष्ट नए निरपराध व्यक्ति को फँसा कर लाई है और इसके साथ भी वही नीच व्यवहार करेगी जो कई लोगों के साथ कर चुकी है। किसी ने कहा, भगवान से प्रार्थना है कि इस पुरुष पर दया करें और इसे इस कुकर्मिणी से मुक्ति दिलाएँ। कोई बोला, इसे क्या मुक्ति मिलनी है। इसके भाग्य ने साथ दिया होता तो इस व्यभिचारिणी के फंदे ही में क्यों फँसता। इन बातों को सुन कर बद्र को विश्वास हो गया कि मलिका के बारे में बूढ़े अब्दुल्ला ने जो कुछ कहा है और जो चेतावनी मुझे इसके बारे में दी है वह अक्षरशः ठीक है और मुझे सचेत रहना चाहिए।
मलिका ने महल के बाहर घोड़े से उतरने के बाद बद्र का हाथ पकड़ा और उसे महल के अंदर ले गई। महल की शान-शौकत का क्या कहना। जो चीज भी देखिए, चाहे चौकी हो चाहे अलमारी, वह स्वर्ण से निर्मित थी और हर चीज में नाना प्रकार के रत्न जड़े थे। फिर वह उसे अपने साथ बाग की सैर के लिए ले गई। बद्र ने महल की प्रत्येक वस्तु और बाग की उचित शब्दों में प्रशंसा की। महल के सारे कर्मचारी समझ गए कि यह कोई देहाती गँवार नहीं है बल्कि किसी संभ्रांत परिवार का व्यक्ति है जो हर बहुमूल्य वस्तु का सही मूल्यांकन करता है।
बाग में घूमते-घूमते खाने का समय हो गया और दासियों ने कहा कि भोजन तैयार है। मलिका उसे ले कर भोजन कक्ष में आई और दोनों सोने-चाँदी के बरतनों में स्वादिष्ट राजसी व्यंजन खाने लगे। खाना खत्म करने के बाद मलिका ने एक स्फटिक पात्र में स्वच्छ सुवासित मदिरा भर कर पी और एक प्याला बद्र को दी। अब मदिरापान का सिलसिला चलने लगा ओर गाने-बजानेवाली सेविकाएँ कर अपनी कला का प्रदर्शन करने लगीं। देर तक यह राग-रंग चलता रहा।
जब काफी रात बीत गई और दोनों को खूब नशा चढ़ गया तो मलिका ने राग-रंग की सभा को समाप्त करने का इशारा किया और अन्य दासियाँ दोनों को शयन कक्ष में ले गईं।
दोनों ने केलि क्रीड़ा की और सो गए। दूसरे दिन सुबह उठ कर स्नान करने के बाद दोनों ने नए वस्त्र पहने और दिन का भोजन किया। कुछ देर के आराम के बाद मलिका फिर उसे बाग की सैर को ले गई और घंटों तक वे लोग आपस में वार्तालाप और हँसी-मजाक करते रहे। शाम होने पर वे महल के अंदर गए और पूर्व संध्या की भाँति भोजन, मद्यपान और गायन-वादन से आनंदित होने के बाद दोनों ने शयन कक्ष में विहार तथा शयन किया।
लगभग चालीस दिन तक यही क्रम चला। मलिका ने बद्र के साथ का पूरा आनंद उठाया किंतु अब उसका रवैया बदलने लगा था। बद्र ने यह परिवर्तन लक्ष्य किया ओर सचेत हो गया कि कहीं उसके साथ कोई शरारत की जाए। एक दिन आधी रात को वह शैय्या से उठ गई। वह समझ रही थी कि बद्र सोया हुआ है किंतु वह जाग रहा था, सिर्फ सोने का बहाना किया था। वह अधखुली आँखों से मलिका के कार्यकलाप को देखने लगा।
मलिका ने एक संदूक खोला और उसमें से एक प्याला निकाला जिसमें पीली मिट्टी भरी हुई थी। फिर वह विशाल शयनकक्ष के एक कोने में गई और वहाँ जा कर कुछ मंत्र पढ़ने लगी जिससे कुछ क्षणों में वहाँ एक जलकुंड पैदा हो गया। यह लीला देख कर बद्र भयभीत हुआ और बिस्तर पर पड़ा-पड़ा काँपने लगा लेकिन अपनी जगह से नहीं हिला।
मलिका ने उस कुंड से एक पात्र में जल भरा और दूसरे पात्र में थोड़ा मैदा ले कर उस जल से उसे सानने लगी। वह मैदा सानते-सानते कोई मंत्र भी पढ़ रही थी। फिर उसने एक आलमारी से कई डिबियाँ और खाना पकाने के बरतन निकाले। डिबियों में से कुछ खास मसाले और दवाएँ निकाल कर उसने सने हुए मैदे में मिलाया और एक कुलचा तैयार किया। फिर कोयले सुलगा कर तवे पर कुलचे को सेंका और बाद में उसे सीधे कोयलों पर सेंका। कुलचा सिंक जाने पर उसने आलमारी में सामान रखा और मंत्र पढ़ कर जलकुंड को गायब कर दिया। कुलचे को सावधानी से रखने के बाद वह बद्र के पार्श्व में लेट कर सो रही।
बद्र ने यह सब देख कर समझ लिया कि इस सारी क्रिया में कोई गहरा रहस्य है। उसने सोचा कि मुझे यहाँ रहते चालीस दिन हो गए हैं और अब मलिका कोई नया गुल खिलाना चाहती है और इस मामले को अब्दुल्ला से कहना चाहिए। सुबह नहा-धो कर जब उसने नए कपड़े पहने तो उसने मलिका से कहा, आप ने मुझ पर इन दिनों ऐसी कृपा की और ऐसे आराम से रखा कि मैं भोग-विलास में अपने बूढ़े चचा को बिल्कुल भूल गया। वे बेचारे मेरी याद कर के दुखी होते होंगे और मेरी लापरवाही पर कुढ़ते होंगे। आप दो-तीन घंटे की अनुमति दें तो मैं उन्हें देख आऊँ। मध्याह्न भोजन के समय तक वापस जाऊँगा। बस दोनों को एक दूसरे की कुशल-क्षेम पूछनी है।
मलिका को उसकी ओर से कोई शंका थी। उसने अनुमति दे दी। साथ ही एक बढ़िया मुश्की घोड़ा मँगवा कर और दो-एक गुलामों को उसके साथ के लिए दे कर उसे अब्दुल्ला की दुकान की तरफ रवाना कर दिया। बद्र ने गुलामों को बाहर घोड़े के पास बिठाया और खुद दुकान के अंदर चला गया। अब्दुल्ला उसे देख कर खुश हुआ और पूछने लगा कि मलिका के साथ कैसी गुजर रही है। बद्र ने कहा कि अभी तक तो उसने मुझे बड़े आराम और अपनत्व के साथ रखा है किंतु कल रात को जो कुछ मैंने देखा उससे मेरे मन में संदेह हो रहा है। फिर उसने विस्तारपूर्वक विगत रात की घटनाओं का वर्णन किया और कहा, अभी तक तो तुम्हारी बातें मैंने सिर्फ मामूली तौर पर याद रखी थीं किंतु इस रहस्यमय व्यापार से मुझे बड़ी घबराहट हुई और मैं तुम्हारे पास गया। अब मुझे बताओ कि वह क्या करना चाहती है और उस की दुष्टता से मैं कैसे बच सकता हूँ क्योंकि मुझे संदेह है कि वह मुझे हानि पहुँचाना चाहती हैं।
अब्दुल्ला ने हँस कर कहा, अब वह तुम्हें भी जानवर बनाने की तैयारी कर रही है। यह तुमने बहुत अच्छा किया कि फौरन मेरे पास चले आए। अब तुम किसी प्रकार का भय करो और जो उपाय मैं बताऊँ वह करो। फिर उसने एक संदूक से दो कुलचे मैदे के निकाले और बद्र को दे कर बोला, यह अपने पास रखो। वह अपने बनाए हुए कुलचे को खाने के लिए तुम्हें देगी। तुम शौक से उसे ले लेना किंतु उसे खाने के बजाय उसकी निगाह बचा कर उसे अपनी एक आस्तीन में रख लेना और दूसरी आस्तीन से निकाल कर मेरा दिया एक कुलचा खाने लगना। वह समझेगी कि तुम उसका दिया कुलचा खा रहे हो। फिर वह तुम्हें कहेगी कि अमुक पशु बन जाओ। तुम उसका कुलचा खाने के कारण अपने शरीर ही में रहोगे। वह आश्चर्य करेगी किंतु तुम उसके शब्दों या कार्यों पर प्रकटतः कुछ ध्यान देना। फिर होशियारी से उसका बनाया हुआ कुलचा उसे यह कह कर खिला देना कि यह अब्दुल्ला ने तुम्हारे लिए भेजा हैं। जब वह अपना बनाया कुलचा खा ले तो उसके मुँह पर पानी के छींटे देना और कहना, अमुक पशु बन जा। उस समय तुम जिस पशु का नाम लोगे वह वही पशु बन जाएगी। फिर तुम उसे मेरे पास ले आना और उसी समय हम लोग यह तय करेंगे कि उसका क्या किया जाए।
बद्र को अब्दुल्ला की योजना बहुत पसंद आई। वह तेज-तर्रार आदमी था और लोगों की निगाहों से बचा कर चीजों को कुशलतापूर्वक छुपा लेने में प्रवीण था। उसने कई बार बूढ़े की योजना को उसके सामने दुहरा कर हृदयंगम कर लिया और बाहर कर घोड़े पर सवार हो कर महल की ओर चल पड़ा। वहाँ पहुँचा तो देखा कि मलिका बाग में बैठी हुई उसकी प्रतीक्षा कर रही है। बद्र को देख कर कहने लगी, मेरे प्रियतम, तुमने इतनी देर क्यों लगाई। तुम जानते हो कि मैं तुम्हारे बगैर एक क्षण भी नहीं रह सकती। बद्र ने कहा, मुझे भी तुमसे अलग हो कर अच्छा नहीं लगता लेकिन मैं क्या करता। चचा ने बहुत दिनों तक खोज-खबर लेने पर मुझ से बहुत देर तक शिकायत का सिलसिला जारी रखा। उन्होंने मेरे लिए भाँति-भाँति के खाद्य पदार्थ तैयार किए। किंतु मैं यहाँ कर तुम्हारे साथ भोजन करने का इच्छुक था इसलिए थोड़ा-सा मुँह जूठा भर कर लिया। मेरे चचा ने तुम्हारे लिए भी एक कुलचा भेजा है और प्रार्थना की है कि इसे जरूर खाना। यह कह कर उसने अब्दुल्ला के दिए हुए कुलचों में से एक निकाला। मलिका बोली, अब्दुल्ला का मुझ पर बड़ा स्नेह है। मैं उसका दिया हुआ कुलचा जरूर खाऊँगी लेकिन इससे पहले तुम यह कुलचा खाओ जो मैंने खास तौर पर तुम्हारे लिए अपने हाथ से पकाया है। यह कह कर उसने रात को पकाया हुआ कुचला बद्र को दिया।
बद्र बड़ी देर तक उसकी प्रशंसा करता रहा कि इस कृपा को कभी भूल सकूँगा। इसी वार्तालाप में उसने मलिका का दिया हुआ कुलचा छिपा लिया और अब्दुल्ला का दिया हुआ कुलचा खा लिया और उसके स्वाद की बड़ी प्रशंसा की। मलिका ने उसके पूरा कुलचा खा लेने पर उस पर जल छिड़का और कहा, भद्दा काना घोड़ा बन जा। किंतु बद्र ने साधारण कुचला खाया था इसलिए उस पर कुछ प्रभाव हुआ। मलिका को बड़ा आश्चर्य हुआ कि जादू ने असर क्यों नहीं किया। उसने सोचा कि कुलचा तैयार करने में कुछ भूल हो गई होगी और रात को वह फिर होशियारी से जादू का कुलचा तैयार करेगी और इस समय इसे किसी प्रकार का संदेह होना चाहिए।
अतएव जब बद्र ने अब्दुल्ला के कुलचे के नाम पर उसी का कुलचा उसे दिया तो वह कुछ देख सकी और उसे खा गई। बद्र ने उसे मुँह पर पानी के छींटे दे कर कहा, घोड़ी बन जा। वह तुरंत घोड़ी बन गई। अपनी यह दशा देख कर वह बड़ी दुखी हुई और बद्र के पाँवों पर अपना थूथन रगड़ कर क्षमा-प्रार्थना करने लगी। किंतु यह बेकार था। बद्र चाहने पर भी उसे स्त्री नहीं बना सकता था। बद्र ने साईस से कहा कि इस घोड़ी के मुँह में लगाम लगा दे। किंतु उसके मुँह में कोई लगाम ठीक से जमती ही नहीं थी। फिर बद्र ने दो घोड़े मँगाए। एक पर खुद सवार हुआ और दूसरे पर साईस को बिठाया और घोड़ी बनी हुई मलिका को रस्सी बाँध कर घसीटता हुआ अब्दुल्ला की दुकान पर ले गया। अब्दुल्ला ने दूर से यह दृश्य देखा तो प्रसन्न हुआ। वह समझ गया था कि बद्र अपने कार्य में सफल हुआ है और मलिका को उसकी दुष्टता का उचित दंड मिला। बद्र घोड़े से उतरा, साईस के हाथ में नई घोड़ी की रस्सी दी और दुकान में चला गया।
अब्दुल्ला ने उठ कर उसे गले लगाया और उसकी चतुरता की बड़ी प्रशंसा की। बद्र ने उसे पूरा हाल बताया और कहा कि इसके मुँह में कोई लगाम नहीं समाती। बूढ़े अब्दुल्ला ने अपने घोड़ों में से एक की लगाम लगाई तो वह घोड़ी बनी हुई मलिका के मुँह में गई। फिर उसने बद्र से कहा कि अब तुम इस देश में बिल्कुल ठहरो, इसी घोड़ी पर सवार हो कर अमुक मार्ग से होते हुए अपने देश को चले जाओ लेकिन यह ध्यान रखना कि यह लगाम कभी इसके मुँह से निकलने पाए वरना यह तुम्हारे काबू के बाहर हो जाएगी। यह कह कर और रास्ते का ब्यौरा दे कर वृद्ध ने उसे विदा किया।
बद्र उसी घोड़ी बनी हुई रानी पर बैठ कर चल दिया। कई दिनों के बाद वह एक देश में पहुँचा। वहाँ उसे एक बूढ़ा मिला। यह दूसरा बूढ़ा भी बड़ा सभ्य आदमी लगता था। उसने बद्र से उसके बारे में पूछा कि कहाँ से आते हो, कहाँ जाने का इरादा है, यात्रा ठीक से हो रही है या नहीं, आदि। बूढ़ा उसे इन्हीं बातों में लगाए था कि एक भिखारिन-सी दिखाई देनेवाली बुढ़िया आई और बोली, तुम मुझे यह घोड़ी दे दे और कोई अच्छा घोड़ा ले लो। मेरे पुत्र की घोड़ी बिल्कुल ऐसी ही थी लेकिन वह मर गई और मेरा बेटा इससे बड़ा दुखी है। तुम जो भी दाम इस घोड़ी का माँगोगे मैं दूँगी।
बद्र को तो घोड़ी बेचनी ही नहीं थी। उसने इनकार किया। बुढ़िया पीछे पड़ गई और बोली, बेटा, मुझ पर दया करो। घोड़ी मिली तो मेरा बेटा दुख से मर जाएगा और वह मर गया तो मैं भी जीवित रह सकूँगी। बद्र ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहा कि इसका मूल्य बहुत है, तुम दे नहीं सकोगी। बुढ़िया ने कहा कि तुम दाम बताओ तो, मैं किसी भी तरह दाम दूँगी। बद्र ने सोचा, यह भिखारिन अधिक से अधिक कुछ रुपयों का प्रबंध कर सकेगी। इसलिए उसने कहा कि तुम मुझे एक हजार अशर्फी दो और यह घोड़ी ले जाओ। बुढ़िया ने यह सुनते ही अपनी कमर में बँधी हुई थैली निकाली और बद्र को दे कर कहा, यह अशर्फियाँ गिन लो, और घोड़ी मुझे दो। दो-चार अशर्फियाँ कम हों तो मेरा घर पास ही है, फौरन ला कर दे दूँगी।
अब बद्र घबराया और बोला, अम्मा, यह थैली रख ले, मैं इस घोड़ी को किसी भी मूल्य पर नहीं बेचूँगा। बूढ़ा पास ही खड़ा था और सारी बातें सुन रहा था। वह बोला, भाई, अब तो तुम्हें यह घोड़ी देनी ही पड़ेगी। तुम्हें इस देश का नियम नहीं मालूम है। यहाँ पर जो आदमी व्यापार में धोखा करता है उसे प्राणदंड मिलता है। तुमने जो मूल्य माँगा वह इस बुढ़िया ने दे दिया। अब तुम बेकार की हुज्जत करो। घोड़ी बुढ़िया की हो गई, उसे फौरन बुढ़िया को दे डालो। सौदे का गवाह मैं हूँ। बादशाह ने अगर सुना कि तुम सौदे से फिर रहे हो तो फिर समझ लो कि भगवान ही तुम्हारी रक्षा कर सकेगा।
बद्र यह सुन कर बहुत परेशान हुआ किंतु बहुत सोचने पर भी उसे घोड़ी को बचाने का कोई उपाय सूझा। अंततः वह घोड़ी से उतर पड़ा और उसने घोड़ी की लगाम बुढ़िया के हाथ में दे दी। बुढ़िया घोड़ी को पास ही बहनेवाली एक नहर पर ले गई और उसकी लगाम निकाल कर उसने घोड़ी के मुँह पर पानी छिड़क कर कहा, मेरी प्यारी बेटी, घोड़ी का शरीर छोड़ कर अपने पुराने शरीर में जाओ। यह कहते ही मलिका अपने असली रूप में गई। बद्र यह देख कर डर के मारे गश खा कर जमीन पर गिरने लगा। उस बूढ़े ने बद्र को थाम लिया। बुढ़िया वास्तव में मलिका की माँ थी और मलिका ने सारी जादू की विद्या उसी से सीखी थी। बेटी को असली रूप में ला कर उसने अपने गले लगाया। इसके बाद उसने एक मंत्र पढ़ा जिससे पश्चिम की ओर से एक महाभयानक और अतिविशाल दैत्य प्रकट हुआ। उसने एक हाथ से बद्र और दूसरे हाथ से मलिका और उसकी माँ को उठाया और आकाश में उड़कर उसने दो क्षण ही में सब को मलिका के महल में पहुँचा दिया।
मलिका ने वहाँ पहुँचने पर दाँत पीसते हुए बद्र से कहा, दुष्ट, मेरे अहसानों का तूने यह बदला दिया। अब देख, में तुझे कैसा दंड देती हूँ। तेरे बने हुए चचा को मैं बाद में समझूँगी। यह कह कर उसने हाथ में पानी ले कर बद्र पर छिड़का और कहा, मनहूस उल्लू बन जा। बद्र उल्लू के रूप में गया। फिर मलिका ने उसे एक नई दासी को दे कर कहा, इसे पिंजरे में बंद कर दे और इसे दाना-पानी कुछ देना, अपने आप भूखा मर जाएगा। दासी दयालु थी। उसने बद्र को पिंजरे में तो बंद कर दिया किंतु मलिका से छुपा कर उसे खाना-पानी देती रही। उस दासी ने उसी दिन गुप्त रूप से अब्दुल्ला से भी कहा, मलिका ने तुम्हारे भतीजे को पकड़ लिया है। वह देर-सवेर उसे तो मार ही डालेगी, अब तुम अपनी जान बचाओ क्योंकि उसने तुम्हें मारने की भी धमकी दी है।
अब्दुल्ला ने समझ लिया कि कठिनतम समय ग्या है और अपनी शक्ति से पूरा काम लेना चाहिए। उसने एक विशेष ध्वनि निकाली। तुरंत ही एक जिन्न प्रकट हो गया। उसके चार हाथ थे और सबों में पंखे लगे थे। उसका नाम बर्क था। उसने आते ही कहा, स्वामी, क्या आज्ञा है? अब्दुल्ला ने कहा, तुम्हें बद्र के प्राणों की रक्षा करनी है किंतु अभी सिर्फ यह करो कि इस दासी को ईरान के शाही महल में पहुँचा दो। ताकि इसके मुँह से राजमाता गुल अनार अपने पुत्र का पूरा समाचार जान लें। जिन्न ने तुरंत ही उस दासी को ईरान के राजमहल की छत पर पहुँचा दिया।
दासी जीने से उतर कर नीचे गई तो देखा कि गुल अनार और उसकी माता चिंतित हो कर बातचीत कर रही थीं। दासी ने विनयपूर्वक दोनों को प्रणाम किया और बताया कि बद्र जादू देश की मलिका की कैद में उल्लू बन कर पड़ा हुआ है। गुल अनार ने दासी को गले लगा लिया और उसके काम की बड़ी सराहना की। फिर उसने आज्ञा दी कि यह मुनादी करवाई जाए कि बादशाह बद्र दो-एक दिन ही में देश में आनेवाले हैं। तीसरी बात उसने यह की कि आग मँगा कर उसमें सुगंधित द्रव्य डाल कर मंत्र पढ़ा और इस तरह अपने भाई सालेह को बुला लिया। सालेह के आने पर उसने बताया कि तुम्हारा भानजा बद्र जादू के देश की अग्निपूजक रानी की कैद में उल्लू बन कर पड़ा हुआ है। सालेह ने अपनी समुद्री सेना को तुरंत जादू के देश में पहुँचने का आदेश दिया और कहा कि मैं भी वहाँ शीघ्र रहा हूँ। फिर उसने जिन्नों की एक बड़ी फौज इकट्ठी की और उसे ले कर उक्त देश में पहुँच गया। दोनों सेनाओं के प्रचंड आक्रमण से वह देश कुछ ही घंटों में पराजित हो गया और सेना ने महल में प्रवेश कर के मलिका तथा दूसरे सभी अग्निपूजकों को मार डाला।
गुल अनार भी वहाँ पहुँच गई थी। उसने दासी से कहा कि वह पिंजरा उठा लाओ जिसमें बद्र बंद है। वह पिंजरा बाहर ले आई और उल्लू बने हुए बद्र को उसने बाहर निकाल लिया। गुल अनार ने अभिमंत्रित जल उस पर छिड़क कर कहा, अपने पुराने रूप में जा। वह अपने असली शरीर में गया और गुल अनार ने उसे गले लगाया। फिर बद्र ने अपने मामा और अन्य संबंधियों से उचित रूप से भेंट की। उसने और दासी ने बद्र पर अब्दुल्ला के अहसानों का उल्लेख किया। गुल अनार सब को ले कर अब्दुल्ला के घर गई और बोली, आप ही की कृपा से बद्र मुझसे दुबारा मिला है। आपके उपकार का बदला मैं किस प्रकार दूँ। बूढ़े ने कहा, मुझे तो भगवान ने जो कुछ दिया है वही मेरे लिए बहुत है किंतु मुझे इनाम देना ही चाहें तो यह दीजिए कि बादशाह बद्र का विवाह इस दासी से कर दें क्योंकि यह सुंदर और चतुर भी है और इस समय इसने बद्र की और मेरी अमूल्य सेवा की है। गुल अनार ने यह मान लिया और काजी को बुला कर बद्र के साथ दासी का विवाह करा दिया।
अब बद्र ने माँ से कहा, मैंने तुम्हारी और इन पितातुल्य अब्दुल्ला साहब की आज्ञा बगैर नानुकर के मान ली। लेकिन तुम जानती हो कि मेरी हार्दिक इच्दा समंदाल देश की शहजादी जवाहर से विवाह करने की है। गुल अनार ने मुस्कुरा कर कहा, अच्छा, उसका प्रयत्न भी करेंगे। यह कह कर उसने समुद्री कटक को आदेश दिया कि जल-थल में जहाँ भी बद्र के योग्य राजकुमारी देखो उसे बद्र के साथ ब्याहने को यहाँ ले आओ। बद्र ने कहा, यह सब बेकार बातें हैं। मैं तो शहजादी जवाहर ही से विवाह करूँगा, किसी और से नहीं। उसने मुझे जो कष्ट दिया वह अपने पिता के कष्ट से कुपित हो कर दिया है। अगर आप लोग समंदाल नरेश को कैद से छुड़ा कर यहाँ बुलाएँ तो वह अब जवाहर से मेरे विवाह की बात अवश्य स्वीकार कर लेगा। गुल अनार ने कहा, बेटे, अभी तो वह तुम्हारे मामा की कैद में है। उसको यहाँ आने ही पर मालूम होगा कि उसे विवाह स्वीकार है या नहीं। अब बद्र ने सालेह से प्रार्थना की कि समंदाल नरेश को कैद से छुड़ा कर यहाँ लाओ। सालेह ने आग में लोबान डाल कर मंत्र पढ़ा और तुरंत ही समंदाल नरेश को भी वहाँ पहुँचा दिया गया। बद्र उसके चरणों पर गिरा और विनयपूर्वक बोला, सालेह मामा ने मेरे लिए ही शहजादी जवाहर का हाथ माँगा था। मैं ईरान का बादशाह हूँ। आप मुझ पर कृपा कीजिए और मेरे साथ अपना संबंध स्वीकार कीजिए। जो कुछ अभी तक हुआ उसे भूल जाइए।
समंदाल नरेश उसकी इस विनयशीलता से बहुत प्रभावित हुआ और उसे उठा कर गले लगाते हुए बोला, तुम्हारी बातों से लगता है कि तुम जवाहर के बगैर जीवित नहीं रहोगे। तुम्हें उससे इतना गहरा प्रेम है तो मैं इनकार कैसे करूँ। मैंने पूरे हृदय से उसे तुम्हें दिया। उसकी ओर से भी इत्मीनान रखो। उसने कभी मेरी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया है और मैं कहूँगा तो वह तुम्हारे साथ विवाह करने को खुशी से तैयार हो जाएगी।
यह कह कर उसने अपने सरदारों को आदेश दिया कि शहजादी जवाहर जहाँ भी हो वहाँ से उसे यहाँ ले आए। वे लोग उसकी खोज में निकले और अल्प समय ही में उसे ढूँढ़ कर उस स्थान पर ले आए जहाँ उसका पिता था। समंदाल नरेश ने जवाहर को गले लगा कर कहा, बेटी, मैंने बादशाह बद्र को वचन दिया है कि तुम्हारा विवाह उसके साथ कर दूँगा। आशा है तुम इस बात को मान जाओगी। जवाहर ने कहा, आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है किंतु बादशाह बद्र से बहुत लज्जित हूँ। मैंने क्रोध में कर उनसे बड़ा बुरा सलूक किया। मालूम नहीं कि वे इसके लिए मुझे क्षमा करेंगे या नहीं। बद्र ने कहा, तुमने वास्तव में क्रोध में कर मुझे दुख दिया था। अब मैं उसे भूल गया और तुम भी उसे भूल जाओ। एक खुशी की बात यह भी हुई कि मलिका के मर जाते ही वे सब लोग जिन्हें मंत्रबल से जानवर बना रखा गया था, अपने मनुष्य रूप में वापस गए और विवाह में हँसी-खुशी शामिल हो कर वर-वधू को आशीर्वाद देते हुए अपने-अपने देशों को चले गए। फिर समंदाल नरेश अपने सरदारों के साथ अपने देश को गया, बादशाह बद्र अपनी माता और पत्नियों को ले कर ईरान को रवाना हुआ और कुछ दिन वहाँ रहने के बाद सालेह भी अपनी माता के साथ अपने देश को वापस हुआ

स्रोत-इंटरनेट से कापी-पेस्ट


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