बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

अलिफ लैला 46 कमरुज्जमाँ और बदौरा की कहानी (भाग 1)

फारस देश में बीस दिन की राह पर एक देश खलदान है। उस देश में कई टापू भी शामिल हैं। बहुत दिन पहले वहाँ का बादशाह शाहजमाँ था। उसके चार पत्नियाँ थीं और सात विशेष दासियाँ। वह बड़ा प्रतापी राजा था, उसके देश में समृद्धि और शांति का राज्य था। कोई शत्रु उसके देश पर निगाह नहीं लगाए था किंतु उसे एक बड़ा दुख था कि उसके कोई संतान नहीं थी। एक दिन उसने अपने मंत्री से कहा कि मेरी अवस्था व्यर्थ ही बीती जाती है और मेरे बाद इतने बड़े राज्य का क्या होगा, क्योंकि मेरे कोई संतान नहीं है, मालूम होता है भगवान भी मुझे भूल गया है।
मंत्री ने कहा, पृथ्वीपाल, आप इस प्रकार की निराशा की बातें करें। भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। वह किसी को भूलता नहीं है। आप दीनतापूर्वक रात-दिन भगवान से संतान की भीख माँगें। इसके अतिरिक्त फकीरों, दरवेशों के आशीर्वाद लें तो मनोकामना पूर्ण होगी।
मंत्री के परामर्श के अनुसार बादशाह ने पूरे जोर से धार्मिक कृत्य शुरू किए और फकीरों को खूब दान दिया और उनसे संतान का आशीर्वाद चाहा। कुछ काल के उपरांत उसकी रानी को गर्भ ठहर गया। नौ महीनों के बाद उससे एक पुत्र का जन्म हुआ। बादशाह की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने लाखों रुपया फकीरों के दान और अपने अधीनस्थ कार्यकर्ताओं के इनाम पर खर्च किए, यहाँ तक कि उसके देश में कोई भी व्यक्ति भूखा-नंगा नहीं रहा और महीनों तक राजमहल में उत्सव होता रहा।
राजकुमार अत्यंत रूपवान था। उसका नाम रखा था कमरुज्जमाँ। बादशाह ने उसके कुछ बड़े होने पर उसकी शिक्षा के लिए कई विशेषज्ञ नियुक्त किए जो हर प्रकार के कला-कौशल और विद्याओं में उसे शिक्षा देते थे। और तो सब ठीक रहा किंतु शिक्षा के दौरान उस पर जाने क्या प्रभाव पड़ा कि उसे स्त्रियों से घृणा हो गई। जब वह जवान होने लगा तो बादशाह ने उसे एक दिन अपने पास बुला कर कहा, मैं चाहता हूँ कि अब तुम्हारा विवाह करवा दूँ। तुम क्या कहते हो?
शहजादे को इस बात से बुरा लगा। उसने पिता की बात का कोई उत्तर दिया और बहुत देर तक चुपचाप खड़ा रहा। जब बादशाह ने जोर दे कर अपनी बात का उत्तर चाहा तो उसने हाथ जोड़ कर कहा, पिताजी, आपका आदेश मानना निश्चय ही बड़ी अशोभनीय बात है किंतु इस मामले में मैं विवश हूँ। मैं विवाह बिल्कुल नहीं करना चाहता। सभी स्त्रियाँ झूठी और कुटिल होती है। बादशाह को यह सुन कर बड़ा क्रोध आया। उसने कहा, मेरा जी तो चाहता है कि तुम्हें अभी इस अशिष्टता का दंड दूँ किंतु मैं तुम्हें एक वर्ष का अवसर देता हूँ।
किंतु एक वर्ष के बाद भी शहजादा इस बात पर अड़ा रहा कि मुझे विवाह नहीं करना है। उसने कहा कि मैंने सारी पुस्तकों में स्त्रियों की बुराइयाँ ही पढ़ी हैं, मैं कैसे उनका विश्वास करूँ। बादशाह बहुत ही नाराज हुआ और इस बात के लिए तैयार हो गया कि शहजादे को कोई कठोर दंड दे। किंतु मंत्री के कहने पर उसने शहजादे को अपना निश्चय बदलने के लिए एक वर्ष का और समय दिया।
यह समय भी बेकार गया क्योंकि शहजादा अब भी इस पर अड़ा हुआ था कि मैं विवाह नहीं करूँगा। बादशाह ने एक बार फिर अपने क्रोध पर संयम किया और शहजादे की माँ, रानी फातिमा से कहा कि तुम अपने बेटे को समझाओ नहीं तो मैं उसे बड़ा कठोर दंड दूँगा। फातिमा ने शहजादे को समझाया कि तुम्हारे वंश में सदा से यह विवाह की रीति चली आती है, तुम्हारे लिए इसका उल्लंघन करना किसी प्रकार भी उचित नहीं है। कमरुज्जमाँ ने वही दलील दी कि स्त्रियाँ भ्रष्ट और धोखेबाज होती हैं। माँ ने समझाया, बेटे, तुम सभी स्त्रियों के लिए यह बात कैसे कह सकते हो। कुछ स्त्रियाँ दुष्ट होती हैं तो कई पवित्र भी होती हैं। मैंने भी कई दुष्ट पुरुषों की कथाएँ पढ़ी हैं किंतु इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि सारे पुरुष दुराचारी होते हैं।
किंतु माँ के लाख समझाने-बुझाने पर भी शहजादा टस से मस हुआ। कुछ और समय बीता। अंत में बादशाह स्वयं पर संयम रख सका। उसने आदेश दिया कि शहजादे को एक पुराने और छोटे-से मकान में, जिसमें हवा-रोशनी भी ठीक से नहीं आती थी, बंद कर दिया जाए। उसने कहा कि उसके लिए दो-चार कपड़े वहाँ रखवा दो और एक बूढ़ी दासी उसकी सेवा में रख दो और दो-चार पुस्तकें पढ़ने के लिए रखवा दो, किंतु उसे मकान से बाहर निकलने दिया जाए।
लेकिन कमरुज्जमाँ को कोई परवाह नहीं थी। वह आनंदपूर्वक उस मकान में गया, दिन में पुस्तकें पढ़ता रहा और रात को अपने पलंग पर लेट कर सो गया। उस मकान में एक कुआँ था जिसमें जिन्नों के बादशाह दिउमर्स की परी बेटी मैमून रहती थी। रात को मैमून संसार भ्रमण के लिए रोज की तरह कुएँ से निकली। उसे मकान में प्रकाश देख कर आश्चर्य हुआ कि यहाँ रहने के लिए कौन गया। यद्यपि शहजादे का शयनकक्ष बाहर से बंद किया हुआ था तथापि परी को इससे क्या बाधा होती। वह कमरे के अंदर जा कर सोने के पलंग पर रेशमी चादर ओढ़ कर सोते हुए शहजादे को एकटक देखने लगी।
कमरुज्जमाँ का अनुपम सौंदर्य देख कर वह ठगी-सी रह गई। उसने धीरे से चादर खिसका कर उसे सिर से पाँव तक देखा। कुछ देर उसे देखने के बाद उसने शहजादे के मुँह और माथे का चुंबन किया और पहले की भाँति उसे चादर उढ़ा दी। इसके बाद वह उड़ कर आकाश में गई और संसार भ्रमण करने लगी। तभी उसे अपने पीछे पंखों की सरसराहट सुनाई दी। उसने आवाज दी, कौन जा रहा है, इधर आ। उड़नेवाला भी एक जिन्न था। वह जिन्नों के एक सरदार शहमर का बेटा नहस था। जिन्नों की शहजादी की आवाज सुन कर वह उसके पास आया। मैमून ने पूछा कि तुम कहाँ जा रहे हो। उसने कहा, मैं इस समय चीन देश से रहा हूँ। चीन बहुत बड़ा देश है और उसके अंतर्गत कई द्वीप हैं। वहाँ के बादशाह का नाम गोर है। उसकी बेटी बदौरा है। वह इतनी सुंदर है कि मालूम होता है विधाता ने उससे अधिक सुंदर किसी को नहीं पैदा किया है। मनुष्यों में और हमारी जाति में उससे बढ़ कर कोई रूपवान है।
नहस ने आगे कहा, शहजादी बदौरा के होंठ मूँगे की तरह हैं, आँखें तिरछी और मदभरी हैं, उसकी केशराशि श्यामल घटा की भाँति है जिसमें लगे चाँदी के सितारे बिजली की तरह चमकते हैं, उसकी नाक बड़ी ही सुडौल है और माथा बड़ा उज्ज्वल है। उसकी दंत-पंक्ति जैसे मोती की लड़ी हो। उसकी चाल हंसिन की भाँति है और उसकी आवाज में चाँदी की घंटियों की खनक है। वह हँसती है तो नैर फूल झड़ते हैं। उसका यौवन उन्नत और पुष्ट हैं। संक्षेप में वह हर मामले में अद्वितीय है।
बादशाह गौर ने करोड़ों अशर्फियों की लागत से अपनी प्यारी बेटी के लिए एक सतखंडा महल बनवाया है। उसका पहला खंड बिल्लौर पत्थर का है, दूसरा खंड ताँबे का, तीसरा फौलाद का, चौथा पीतल का, पाँचवाँ कसौटी के पत्थर का है, छठा खंड चाँदी का है और सातवाँ खंड सोने का। इस महल के चारों ओर मनोहर वाटिका है। इसमें हर प्रकार के फलों और हर प्रकार के फूलों के वृक्ष हैं। उस वाटिका में हर समय पके फलों और सुगंधित फूलों की खुशबू गमगमाती रहती है। जगह-जगह फव्वारे चलते हैं और स्वच्छ जल की नहरें और तालाब जगह-जगह बने हैं। कुछ पेड़ ऐसे घने हैं जिनके नीचे धूप नहीं आती और वहाँ आराम करने में सारी थकन मिट जाती है।
उस बादशाह का ऐश्वर्य और शहजादी के रूप की प्रशंसा सुन कर दूर-दूर के देशों के राजकुमारों ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया है। बादशाह ने अपनी बेटी को अनुमति दे रखी है कि जिससे चाहे विवाह करे किंतु शहजादी को विवाह से चिढ़ है। उसके माँ-बाप ने बहुत समझाया किंतु वह राजी नहीं होती और कहती है कि अगर आप लोगों ने विवाह के लिए जोर दिया तो आत्महत्या कर लूँगी। बादशाह ने उसे एक मकान में बंदी बना रखा है। उसकी सेवा के लिए दस बूढ़ी स्त्रियाँ नियत की गई हैं जिनकी प्रमुख वह स्त्री है जिसका दूध राजकुमारी ने बचपन में पिया है। अब शहजादी स्वयं कहीं जा सकती है उसके पास कोई जा सकता है। बादशाह ने अपनी पुत्री को पागल समझ कर यह विज्ञापित कर दिया है कि जो हकीम या ज्योतिषी या तांत्रिक उसे अच्छा कर देगा उसी के साथ राजकुमारी का विवाह हो जाएगा। मुझे इस बात का बड़ा दुख है कि वह परम सुंदरी राजकुमारी इस प्रकार से बंदीगृह के दुख भोग रही है।
मैमून ने हँस कर नहस से कहा, मालूम होता है तुम्हारी अकल ठिकाने नहीं है। एक बेकार-सी लड़की के रूप की इतनी प्रशंसा कर रहे हो। अगर तुम उस शहजादे को देखो जिसे मैंने देखा है और जिसने मेरा मन मोह लिया है तो तुम्हें मालूम होगा कि सौंदर्य किसे कहते हैं। बल्कि मुझे विश्वास है कि शहजादे को देख कर तुम चीन की राजकुमारी का सौंदर्य भूल ही जाओगे।
नहस ने कहा, शहजादी, वह रूपवान शहजादा कहाँ है? मैमून ने कहा, वह तो अति निकट है। वह भी बंदी हो कर एक मकान में पड़ा है क्योंकि उसने भी विवाह करने से इनकार कर दिया है। वह उसी मकान में बंद है जिसके कुएँ में मैं रहती हूँ। नहस ने कहा, मैं उस शहजादे को देखने के बाद ही कह सकता हूँ कि वह कितना सुंदर है। फिर भी मैं कहता हूँ कि चीन की शहजादी अधिक सुंदर है। परी बोली कि तुम झख मारते हो, शहजादी उसके मुकाबले में क्या होगी। इसी तरह वे दोनों बड़ी देर तक बहस करते रहे। अंत में जिन्न बोला, परी रानी, तुम्हें इस प्रकार मेरी बात का विश्वास नहीं होगा। मैं उसे उसके मकान से उड़ा कर लाता हूँ फिर तुम खुद ही देख लेना। मैमून बोली, अच्छी बात है, तुम उसे ला कर शहजादे के पास लिटा दो ताकि दोनों की तुलना हो सके।
जिन्न ने उड़ान भरी और कुछ ही क्षणों में चीन की राजकुमारी को ला कर उसने शहजादे के बगल में लिटा दिया। लेकिन इससे भी बात बनी। परी जिद करती रही कि कमरुज्जमाँ अधिक सुंदर है और नहस राजकुमारी बदौरा की प्रशंसा करता रहा। अंत में दोनों ने तय किया कि किसी तीसरे व्यक्ति को ला कर फैसला करवाएँ कि कौन अधिक सुंदर है। परी ने जमीन पर पाँव पटका तो जमीन फट गई और उसमें से एक लँगड़ा, काना और कुबड़ा जिन्न निकला जिसके सिर पर छह सींग थे और हाथ-पाँव बहुत ही लंबे थे। उसने कर परी मैमून को दंडवत प्रणाम किया और पूछा कि मुझे किस सेवा के लिए बुलाया गया है। परी ने कसकस नामी इस भयानक जिन्न से कहा कि मेरे और नहस के बीच बहस पड़ गई है कि इन दोनों में कौन अधिक सुंदर है, तू इस बात का फैसला कर दे।
कसकस बहुत देर देर तक दोनों को देखता रहा किंतु कुछ निर्णय कर सका। उसने कहा, अभी तो कुछ नहीं कह सकता। कोई एक बात में बढ़ कर है कोई दूसरी बात में। अगर यह बारी-बारी से जाग कर एक दूसरे को प्रेमदृष्टि से देखें तो संभव है कि उनका वास्तविक सौंदर्य प्रकट हो। मैमून और नहस ने कसकस का यह सुझाव पसंद किया। पहले मैमून खटमल बन गई और उसने शहजादे की गर्दन में जोर से काट लिया। शहजादे ने खटमल पकड़ने के लिए हाथ मारा किंतु मैमून फुर्ती से अपनी असली सूरत में गई और फिर तीनों अदृश्य हो कर देखने लगे कि शहजादा क्या करता है। कमरुज्जमाँ ने आँखें खोलीं और शहजादी को अपने बगल में लेटा देख कर उस पर तुरंत मोहित हो गया। कहाँ तो उसे स्त्रियों के नाम से चिढ़ थी कहाँ वह इतना प्रेम-विवश हो गया कि बेतहाशा उसका मुख और कपोल चूमने लगा। इस बीच नहस के जादू से शहजादी बेखबर हो कर सोती रही, उसे कुछ पता चला।
शहजादे ने सोचा कि कदाचित यह वही सुंदरी है जिसके साथ मेरे माँ-बाप मेरा विवाह करना चाहते थे, अगर मैं इसे पहले देख लेता तो शादी करने से क्यों इनकार करता। उसे अपनी इस मूर्खता पर बड़ी लज्जा आई कि बेकार ही माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन किया। उसने शहजादी को जगाना चाहा किंतु वह तो जिन्न नहस के जादू के प्रभाव से बेखबर सो रही थी। कमरुज्जमाँ ने शहजादी की नीलम की अँगूठी उतारी और उसकी जगह अपनी हीरे की अँगूठी पहना दी और स्वयं शहजादी की नीलम की अँगूठी पहन कर अपनी जगह पहले की तरह लेटा रहा और कुछ ही क्षणों में मैमून के जादू से अचेत हो कर सो गया।
अब जिन्न नहस ने मच्छर बन कर शहजादी के होंठ पर डंक मारा जिसके दर्द से वह जाग उठी। उसे यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसके बगल में यह सुंदर युवक कैसे कर सो गया। वह भी विवाह से बहुत चिढ़ती थी किंतु कमरुज्जमाँ पर तुरंत मोहित हो गई। उसने सोचा कि मेरे पिता शायद मेरा विवाह इसी युवक से करना चाहते थे और मैं अपनी मूर्खता और हठवादिता के कारण इनकार करती रही। किंतु उसे यह बड़ा अजीब लगा कि मेरा प्रियतम मेरे पास कर भी केवल सो रहा है और प्रेम-दृष्टि डालता है बातचीत करता है। कुछ देर बाद वह स्वयं को रोक सकी। उसने शहजादे की बाँह पकड़ कर कई झटके दिए किंतु वह तो मैमून के जादू से अचेत हो कर सोया था। फिर शहजादी उसका हाथ चूमने लगी। उसने देखा कि मेरी अँगूठी इसकी उँगली में है। अपना हाथ देखा तो उसने दूसरी अँगूठी पाई। उसने सोचा कि शायद मुझे याद नहीं रहा है किंतु मेरा विवाह इस युवक के साथ हुआ है वरना यह अँगूठियाँ कैसे बदली जातीं। उसने शहजादे को गले से लिपटा कर बहुत प्यार किया और फिर सो रही। मैमून ने नहस से कहा, तुमने देख लिया कि शहजादा अधिक सुंदर है तभी शहजादी पागल की तरह उसे प्यार कर रही थी। अब तुम शहजादी को उसके महल में पहुँचा दो। यह कह कर उसने कसकस को भी विदा दी और स्वयं अपने कुएँ में वापस गई।
कमरुज्जमाँ सुबह जागा और उसने शहजादी को अपने पास देखा। उसने सोचा कि शायद मेरे पिता ने उसे बुला भेजा है। उसने अपनी सेवा के लिए नियत दास को पुकारा। वह शहजादे के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। शहजादे ने हाथ-मुँह धो कर पूछा कि जो सुंदरी रात को मेरे पास सो रही थी वह कहाँ गई। दास ने कहा, सरकार, मैंने तो किसी सुंदरी को नहीं देखा। फिर यहाँ कोई सुंदरी कैसे सकती है, इस कमरे पर तो बाहर की ओर से ताला लगा रहता है। आपने निश्चय ही कोई स्वप्न देखा होगा।
कमरुज्जमाँ को यह सुन कर बड़ा क्रोध आया। उसने दास को बहुत मारा और बराबर पूछता रहा कि वह सुंदरी कहाँ गई। दास बेचारा क्या बताता। कमरुज्जमाँ ने कहा कि तू बहुत दुष्ट है। साधारण दंड से नहीं मानेगा। यह कह कर उसने अन्य दासों को बुला कर इस दास को रस्सी से बँधवाया और कुएँ में लटकवा दिया। दास ने सोचा कि मैं अपनी सच बात पर अड़ता हूँ तो इसी तरह मर जाऊँगा क्योंकि शहजादा निश्चय ही पागल हो गया है। उसने पुकार कर कहा, सरकार, मुझे प्राणों की भिक्षा दें तो मैं सही बात बता दूँ। शहजादे ने उसे निकलवाया और कहा कि अब मेरी बात का जवाब दे। उसने हाँफते हुए कहा कि मुझे जरा दम तो लेने दीजिए।
कुछ क्षणों में वह दास लघुशंका के बहाने उठा। उसने बाहर कर फिर कमरे में ताला डाल दिया और दौड़ कर बादशाह के पास गया। उसने शहजादे की सारी बातें बताईं कि किसी कल्पित सुंदरी के पीछे उसने मुझे बहुत मारा और कुएँ में लटकवा दिया और मैं बहाना बना कर यहाँ आया हूँ। उसने कहा, पृथ्वीपाल, आप स्वयं ही विचार कर देखें कि जब बाहर से ताला बंद है तो कोई स्त्री कैसे अंदर जा सकती है और बाहर सकती है। बादशाह को भी यह सब सुन कर आश्चर्य हुआ। उसने मंत्री को आदेश दिया कि वह शहजादे के पास जा कर पूरा हाल मालूम करे।
मंत्री ने शहजादे के मकान में जा कर उसे प्रणाम किया और कहा कि आप के पिता आपकी बातें सुन कर चिंतित हैं। उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं आप से उस स्त्री के बारे में पूछूँ जिसे आपने स्वप्न में देखा है। शहजादे ने कहा, इस दुष्ट दास के कहने से आपने भी समझ लिया कि मैंने स्वप्न देखा है? मेरा वास्तव में उसके साथ विवाह हो चुका है और मैं उसके विरह में आतुर हूँ। बादशाह मुझे पहले ही उसे दिखा देते तो मैं विवाह से क्यों इनकार करता?
मंत्री ने कहा, यह आप क्या कर रहे है? बंद कमरे में कोई स्त्री कैसे सकती है। आपने स्वप्न ही देखा होगा। शहजादा उन्मत्त हो ही रहा था, उसने मंत्री की दाढ़ी पकड़ कर झटके दिए और उसे थप्पड़ मारे। मंत्री ने यह कह कर जान बचाई कि संभव है महाराज ने कोई स्त्री भेजी हो, मैं जा कर पूछता हूँ। हो सकता है वह सारा हाल सुनने पर उसे फिर आपके पास भेजें। शहजादे ने कहा, बुढ़ऊ, अब तुम राह पर आए हो। जल्दी से जाओ और मेरी प्राणप्रिया को मेरे पास पहुँचाने का प्रबंध करो।
मंत्री भाग कर बादशाह के पास आया और कहा, मालिक, उस गुलाम की बात बिल्कुल ठीक है। शहजादे ने मुझे भी मारा है और अपनी कोमलांगी प्रेयसी को भिजवाने के लिए मुझसे कहा है। बादशाह की चिंता यह सुन कर और बढ़ी। उसने स्वयं शहजादे के पास जा कर बात करने का निश्चय किया। उसके पास जा कर कहा, बेटे, यह सब क्या मामला है? मेरी तो कुछ समझ में नहीं रहा है। तुम किस स्त्री की बात कर रहे हो कि वह तुम्हारे बगल में कर सोई थी। यह भी समझ में नहीं आता है जब कमरा बाहर से बंद था तो वह स्त्री यहाँ पर आई कैसे।
शहजादे ने कहा, अब्बा हुजूर, मैंने उस स्त्री को स्वप्न में नहीं बल्कि सचमुच अपने पास लेटे देखा है। इस बात का प्रमाण यह अँगूठी है जो मैंने उससे बदली है। अगर मैंने स्वप्न में देखा होता तो यह अँगूठी मेरे पास कैसे आती। आप विश्वास मानिए कि मैं पूर्ण मानसिक स्वास्थ्य में हूँ। मैं मूर्ख हूँ पागल। आप कृपा कर के उस सुंदरी को मेरे पास भेजें। यदि आप पहले ही उस कोमलांगी को दिखा देते तो मैं क्यों शादी से इनकार करता और क्यों आपकी आज्ञा का उल्लंघन करता।
बादशाह अँगूठी देख कर सोचने लगा कि वास्तव में यह अँगूठी शहजादे की नहीं है बल्कि उसके देश भर में ऐसी गढ़त की अँगूठियाँ नहीं बनती हैं और इसका नीलमणि भी अत्यंत मूल्यवान है। मालूम होता है कि शहजादे की बात गलत नहीं है, फिर भी यह समझ में नहीं आता कि ताला-बंद कमरे में कोई स्त्री कैसे आई गई, विशेषकर जब वह अति सुंदर तरुणी हो।
उसने सोच-विचार कर कमरुज्जमाँ को कैद से निकाल कर अपने महल में रखा और उसे बहुत दिलासा दिया कि तुम चिंता करो, हम उस तरुणी को तुम्हारे लिए जरूर ढूँढ़ निकालेंगे और उसका विवाह तुम्हारे साथ करेंगे। वह स्वयं भी अधिकतर शहजादे के समीप रहने लगा। इससे राज्य प्रबंध को यथोचित समय दे पाता था। अतएव एक दिन उसके मंत्री ने कहा, आप पूर्ववत राजकाज में संलग्न हो जाएँ ताकि देश को किसी प्रकार की हानि हो। और जहाँ तक शहजादे का प्रश्न है उसे समुद्र के बीच में बसे खिरद नामी द्वीप के किले में भेज दीजिए। वहाँ हर देश के जहाज और हर देश के लोग आते ही रहते हैं, उनसे बात कर के शहजादे का जी बहला रहेगा। फिर वह स्थान यहाँ से दूर भी नहीं है, आप जब चाहे उसके पास जा सकते हैं। बादशाह को मंत्री की राय पसंद आई। उसने शहजादे को खिरद टापू के किले में भेज दिया। वह स्वयं भी कभी-कभी उसे देखने जाया करता था।
अब इधर का हाल सुनिए। नहस जिन्न ने जब शहजादी को ले जा कर उसके आवास में छोड़ दिया तो दूसरे दिन सवेरे वह अपने साधारण नियमानुसार जागी। उसने अपने आसपास शहजादा कमरुज्जमाँ की खोज की। उसे पा कर अपनी रक्षिका वृद्धा दासी को पुकारा और घबरा कर पूछने लगी कि वह सुंदर युवक जो रात को मेरे साथ सो रहा था कहाँ चला गया है, उसे तुरंत ही मेरे पास ला। बुढ़िया को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा, प्यारी बेटी, तुम्हें क्या हो गया है? यह क्या कह रही हो? तुम्हारे शयनगृह में चिड़िया तक का प्रवेश तो संभव नहीं है, सुंदर युवक कहाँ से जाएगा। तुमने अवश्य कोई सपना देखा है। भगवान के लिए ऐसी बातें करो। तुम्हारी बातों का तुम्हारे माता-पिता को पता चलेगा तो मेरी गर्दन उड़ा दी जाएगी।
शहजादी बदौरा को दासी की बात पर बड़ा गुस्सा आया। उसने बुढ़िया के केश पकड़ लिए और उसे बेतहाशा मारना शुरू किया। बुढिया तड़प कर उसकी पकड़ से निकल गई और भागी-भागी राजमहल में पहुँची। वहाँ जा कर उसने बादशाह और बेगम को बताया कि बदौरा कैसी पागलपन की बातें करती है। वे दोनों परेशान हो कर शहजादी के पास पहुँचे और बोले - बेटी, तुमने रात को क्या स्वप्न देखा जिससे तुम इतनी परेशान हो गई हो कि बेकार बकवास करने लगी?
शहजादी बदौरा ने लज्जावश सिर झुका कर कहा, मुझे बड़ा खेद है कि आप लोग मेरा विवाह करना चाहते थे और मैं नादानी से जिद कर के आपकी आज्ञा का उल्लंघन करती रही किंतु जिस युवक को आपने मेरे लिए चुना है वह रात को मेरे साथ कर सोया था। मैं सच कहती हूँ कि अगर आप पहले से उसे दिखा देते तो मैं विवाह से इनकार ही क्यों करती। अब कृपया उसे तलाश कराइए, जाने वह कहाँ चला गया है। मुझे उसके प्रेम ने ऐसा जकड़ लिया है कि मैं उसके बगैर एक क्षण नहीं रह सकती। वह मिला तो मैं आत्महत्या कर लूँगी। अगर आप को विश्वास हो तो यह देखिए, वह अपनी अँगूठी मुझे दे गया है।
उसके माता-पिता को यह देख कर वास्तव में आश्चर्य हुआ कि अँगूठी किसी और की है, शहजादी की नहीं। वे बहुत सोचते रहे किंतु उनकी समझ में कुछ नहीं आया कि इतनी कड़ी कैद के बाद भी कोई आदमी कैसे यहाँ तक आया और अँगूठी बदल गया। बहुत सिर मारने पर भी उनकी समझ में बेटी की बात नहीं आई और उन्होंने समझ लिया कि वह बिल्कुल पागल हो गई है, उन्होंने सोने की जंजीरे मँगा कर उनसे बेटी के हाथ-पाँव जकड़ दिए और अति दुखित हो कर अपने महल को वापस आए। उन्होंने आदेश दिया कि एक विश्वस्त बूढ़ी दासी के अलावा इसके पास कोई नहीं जा सकेगा। उन्होंने बंदीगृह के चारों ओर का पहरा भी बड़ा सख्त कर दिया। इसके अतिरिक्त बादशाह ने दरबार में सारे अमीरों और सामंतों के समक्ष घोषणा की कि मेरी बेटी पर उन्माद का प्रकोप हुआ है। कोई भी व्यक्ति जो उसे अच्छा कर देगा उसके साथ कुमारी का विवाह कर दिया जायगा और युवराज बना दिया जायगा। किंतु जो व्यक्ति इस प्रयत्न में असफल होगा उसे प्राणदंड दिया जाएगा।
इस घोषणा के बाद बहुत-से हकीम, वैद्य, तांत्रिक, योगी आदि शहजादी के इलाज के लिए आए और विफल हो कर प्राण गँवा बैठे। दो-तीन वर्षों में लगभग डेढ़ सौ व्यक्तियों को इस सिलसिले में मृत्युदंड मिला। बादशाह ने शहर की रक्षाभित्ति के साथ उन सभी के सिरों को लटकवा दिया। अब किसी का साहस शहजादी के इलाज के लिए आगे आने का नहीं होता था। जो दासी उस शहजादी की सेवा के लिए नियुक्त थी उसके पुत्र के साथ शहजादी बचपन में खेली थी। उस युवक का नाम मर्जुबन था। वह चीन के बाहर विद्याध्ययन करने गया था। कई वर्ष बाद वह वापस लौटा तो उसे रक्षाभित्ति के साथ इतने सारे सिर लटके देख कर आश्चर्य हुआ। फिर वह अपने घर गया तो अपने घरवालों से बातों-बातों में अपनी बचपन की सहेली शहजादी बदौरा का हाल पूछा।
उसके संबंधियों ने बताया कि शहजादी पागल हो गई है, बादशाह ने उसे जंजीरों में जकड़ कर कैदखाने में डाल दिया है। बादशाह ने घोषणा की है कि जो भी उसे अच्छा कर देगा उसके साथ शहजादी ब्याह दूँगा और उसे युवराज बना दूँगा किंतु जो उससे अच्छा नहीं कर सका तो उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। यह घोषणा सुन कर बहुत-से गुणीजन - वैद्य, ज्योतिषी, रमलकर्ता, तांत्रिक आदि आए और इस प्रयत्न में असफल हो कर प्राण गँवा बैठे, उन्हीं के सिरों को रक्षाभित्ति के सहारे लटकाया गया है। बाकी बातें तुम्हें अपनी माँ से मालूम होंगी। इस समय शहजादी के पास तुम्हारी माँ के अतिरिक्त किसी को जाने की अनुमति नहीं दी जाती। अपने सेवाकार्य से अवकाश पा कर मर्जबान की माँ घर आई तो उसे बेटे के वापस आने से बड़ी प्रसन्नता हुई मर्जबान के पूछने पर उसने राजकुमारी का हाल ब्योरेवार बताया। मर्जबान ने पूछा कि क्या यह संभव है कि मैं गुप्त रूप से शहजादी से भेंट करूँ और देखूँ कि उसे क्या बीमारी है। उसकी माँ ने कहा कि यह काम बड़ी जोखिम का है। किंतु जब मर्जवान ने बहुत जिद की तो उसने कहा कि मैं देखभाल कर बताऊँगी कि कुछ प्रबंध हो सकता है या नहीं।
दूसरे दिन बुढ़िया जब शहजादी की सेवा के लिए गई तो उसने पहरे के सिपाहियों के प्रधान से कहा, भैया, मैं तुम्हारी थोड़ी-सी कृपा चाहती हूँ। उसने कहा, बोलो क्या चाहती हो। बुढ़िया बोली, तुम्हें शायद मालूम हो कि मेरी एक बेटी शहजादी ही की उम्र की है। दोनों ने एक साथ ही मेरा दूध पिया था। कई वर्ष पूर्व मैंने उसका विवाह कर दिया था। अब वह पहली बार ससुराल से आई है। उसने अपनी बचपन की सहेली का हाल सुना तो उसे बड़ी चिंता हुई है। वह उसे देखना चाहती थी किंतु वह बड़ा सख्त पर्दा करती है और किसी को यह भी नहीं बताना चाहती कि वह कहाँ आती-जाती है। तुम्हारी अनुमति हो तो मैं अपनी बेटी को शहजादी से मिलवा दूँ। प्रधान रक्षक ने इसमें कोई हर्ज नहीं समझा। उसने कहा, एक पहर रात गए बादशाह शयन के लिए जाते हैं। तुम अपनी बेटी को उसी समय लाना। मैं इस मकान का दरवाजा खुला रखूँगा। शहजादी का मन बहलाने के लिए उसकी सहेली उससे मिले तो अच्छी ही बात होगी।
अतएव बुढ़िया ने मर्जबान को जनाने कपड़े पहना कर नकाब से उसका मुँह ढका और नियत समय पर शहजादी के आवास में ले गई। उसे बाहरी कमरे में छोड़ कर शहजादी के पास जा कर बोली कि मेरा बेटा छद्म वेश में तुम्हारा हाल-चाल पूछने आया है। शहजादी को अपने बचपन के साथी के आने पर प्रसन्नता हुई। उसने मर्जबान को बुलाया और जब वह प्रणाम कर के दूर खड़ा हुआ तो बोली, मर्जबान भाई, पास आओ। भाई-बहन में क्या तकल्लुफ? मेरा जी बहुत घबरा रहा था। तुम्हारे साथ दो घड़ी बात कर के मेरी तबीयत बहलेगी।
मर्जबान ने अपनी ज्योतिष, रमल आदि की पुस्तकें निकालीं और शहजादी के रोग के निदान का प्रयत्न करने लगा। शहजादी बदौरा बोली, मर्जबान, बड़े दुख की बात है कि तुम भी मुझे औरों की तरह पागल समझे हुए हो। मैं तुम से जोर दे कर कहती हूँ कि मैं मानसिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ हूँ। जो लोग मेरे इलाज को आते हैं वे मेरी कहानी तो जानते नहीं इसलिए मुझे पागल समझते हैं।
यह कहने के बाद शहजादी बदौरा ने उसे सविस्तार बताया कि उसकी कैसे एक युवक से भेंट हुई जिसने उसके सोते में उसकी अँगूठी बदल ली। मैं पागल नहीं हूँ। जिस समय मुझे मेरा प्रियतम मिल जाएगा मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊँगी।
मर्जबान यह सुन कर बहुत देर तो चुपचाप खड़ा रहा फिर बोला, राजकुमारी, औरों ने चाहे आपकी बात का विश्वास किया हो किंतु मुझे विश्वास है। आप निश्चिंत रहें। मैं आपके मनोवांछित पुरुष की खोज में जाता हूँ। ईश्वर की इच्छा हुई तो उसे खोज ही लाऊँगा। अगर ऐसा हो सका तो मैं यहाँ मुँह दिखाऊँगा। अब जब आप सुनें कि मर्जबान नगर में है तो समझ लें कि आपका प्रियतम भी उसके साथ आया है। यह कह कर वह विदा हो गया। अपने नगर से निकल कर वह देश-देश की, नगर-नगर की यात्रा करता रहा और पूछताछ करता रहा। किंतु उसकी यह भी समझ में नहीं आया था कि क्या पूछे।
संयोग से वह एक दिन वह सुंदर नगर में ठहरा हुआ था जो एक नदी के तट पर बसा हुआ था। यह उसके चीन से जाने के लगभग चार महीने की बात है। कुछ सैलानियों ने उसे बताया कि फारस का शहजादा कमरुज्जमाँ अजीब तरह से उन्माद से ग्रस्त है। वह सख्त पहरे के अंदर था, फिर भी कहता है कि उसके साथ एक सुंदरी लेटी जिससे उसने अँगूठी बदली है। मर्जबान को आशा हुई कि शायद यह वही पुरुष है जिसका उल्लेख बदौरा ने किया है। उसने उस द्वीप का मार्ग पूछा जहाँ कमरुज्जमाँ किले में कैद था। मालूम हुआ कि दो रास्ते हैं। एक थल मार्ग है जो निरापद है किंतु लंबा है, दूसरा समुद्री माग है किंतु वह खतरनाक है। मर्जबान ने खतरनाक समुद्री मार्ग ही से जाना निश्चित किया।       (अगली पोस्ट में जारी……)  

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