बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

अलिफ लैला 46 कमरुज्जमाँ और बदौरा की कहानी (भाग 2)

(पिछिली पोस्ट से जारी……)                                                  कुछ दिनों तक तो यात्रा ठीक रही किंतु बाद में एक तेज तूफान आया जिसने जहाज को एक पहाड़ के जल मार्ग पर पटक दिया। जहाज टुकड़े-टुकड़े हो कर गहरे समुद्र में गिरा। जहाज के सारे लोग डूब गए किंतु मर्जबान कुशल तैराक भी था। वह एक तख्ते का सहारा ले कर तैरता रहा और धीरे-धीरे उसी द्वीप के तट पर लगा जहाँ कमरुज्जमाँ को कैद कर रखा गया था। संयोग की बात थी कि उसी समय बादशाह वहाँ समुद्र को देख कर मन बहला रहा था। मर्जबान को तख्ते के सहारे तैरते देख कर उसने मंत्री को आज्ञा दी कि इस आदमी को तुरंत डूबने से बचाया जाय। माँझी लोग आज्ञा पा कर समुद्र में गए और मर्जबान को निकाल कर उसे बादशाह के समक्ष ले गए। बादशाह ने उससे बात करने के बाद आदेश दिया कि यह व्यक्ति शिक्षित और बुद्धिमान है और शहजादे का समवयस्क भी अतएव इसे उसके साथी के रूप में शहजादे के पास रखा जाए। उसने शहजादे की बीमारी का हाल उससे कहा।
मर्जबान अँगूठी बदलने की बात सुन कर समझ गया कि बदौरा इसी शहजादे की बातें करती है। उसने बादशाह से प्रार्थना की कि अगर उसे एकांत में शहजादे से बात करने दिया जाए तो संभव है कि शहजादे का रोग दूर हो जाए। बादशाह ने इसकी अनुमति दे दी। अकेले में कमरुज्जमाँ ने मर्जबान से पूछा कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो। उसने धीरे से कहा, सरकार, मैं चीन से आया हूँ। जो सुंदरी आपके समीप कर लेटी थी और जिससे आपने अपनी अँगूठी बदली है उसे मैं अच्छी तरह जानता हूँ। वह चीन के महापराक्रमी सम्राट की पुत्री है। उसका नाम बदौरा है। जिस प्रकार आप उसके वियोग में उन्मत हो गए हैं वैसे ही वह भी आपके विछोह में जलविहीन मछली की तरह तड़पती रहती है।
मर्जबान ने आगे बताया, मैं उसका दूध भाई हूँ और उसे मुझ पर पूरा विश्वास है, इसलिए उसने मुझे अपना और आपका हाल ब्योरेवार बताया है। आप ही की भाँति वह भी अपने पिता के आदेशानुसार कैद में है बल्कि आप से अधिक दुर्दशा में है क्योंकि उसे सोने की जंजीरों से बाँध दिया गया है। उसके पिता ने मुनादी करवा दी है कि जो कोई मेरी बेटी को ठीक कर देगा उसे मैं अपना दामाद और युवराज बना दूँगा। किंतु जो इस प्रयत्न में असफल हुआ उसे मरवा डालूँगा। इसी चक्कर में लगभग डेढ़ सौ ज्योतिषियों, रमल के जानकारों, तांत्रिकों, हकीमों ने अपनी जान गँवा दी है और नगर की रक्षाभित्ति के सहारे उनके सिर लटके हैं। अगर आप वहाँ जाएँगे तो निश्चय ही शहजादी ठीक हो जाएगी और सम्राट अपने वचन के अनुसार उससे आप का विवाह करा देंगे और आप को सम्राट के मरणोरपरांत वहाँ का राज्य भी मिलेगा। इसीलिए अब सबसे पहले तो जरूरी है कि आप ठीक तरह से स्वास्थ्यवर्धक भोजन कर के अपने शरीर में शक्ति पैदा करें और फिर मेरे साथ चीन चलें।
कमरुज्जमाँ को यह सुन कर इतनी प्रसन्नता हुई कि वह उत्साह के मारे खड़ा हो गया। उसे अपनी प्रियतमा से मिलने की आशा हो गई थी। उसने स्नान कर के अच्छे वस्त्र धारण किए और सब से साधारण रूप में हँसने-बोलने लगा। उसने अपने पिता के साथ डट कर भोजन किया। बादशाह यह देख कर फूला समाया। उसने अपने पुत्र को गले लगाया और खिरद द्वीप के किले से निकाल कर अपने महल में ले गया। उसने राज्य भर में शहजादे के स्वास्थ्यलाभ पर बड़ा भारी उत्सव कराया और महल में सामंतों और प्रमुख नागरिकों की बड़ी शानदार दावत की। उसने दीन, अनाथ और भिखारियों को मुँह माँगा दान भी दिया। राज्य के सभी लोग अपने शहजादे के स्वास्थ्य लाभ से बहुत प्रसन्न हुए और कई दिनों तक उत्सव चलता रहा।
कमरुज्जमाँ ने अब स्वास्थ्यकारी भोजन करना आरंभ कर दिया था। इसलिए कुछ ही दिनों में उसके शरीर में पूर्ववत शक्ति गई। फिर उसने मर्जबान से कहा कि अब मुझमें वियोग सहने की और शक्ति नहीं है, मैं तुम्हारे साथ चीन के लिए तुरंत ही रवाना होना चाहता हूँ किंतु मेरे पिताजी मुझे इतना चाहते हैं कि इतनी दूर की यात्रा की अनुमति देंगे। यह कह कर वह रोने लगा।
मर्जबान ने कहा, आपकी बात ठीक है किंतु एक तरकीब है जिससे आप यहाँ से निकल सकते हैं। आप अपने पिता से दो-तीन दिन के लिए आखेट पर जाने की अनुमति लीजिए और अपने साथ मुझे और कुछ सेवकों को रखिए। साथ में दो असील तीव्रगामी घोड़े भी ले चलें। वहाँ से हम दोनों चीन को चल देंगे।
शहजादे को उसकी राय पसंद आई। उसने बादशाह से आखेट की अनुमति माँगी जो उसने प्रसन्नतापूर्वक दे दी। यह लोग पूर्व दिशा की ओर चल दिए। सायं होने पर यह लोग एक सराय में रुके। खाने-पीने के बाद और लोग सो गए किंतु आधी रात को यह दोनों अपने तेज घोड़े पर निकल पड़े। उन्होंने एक तीसरा मामूली घोड़ा भी लिया और राजसेवकों जैसी एक पोशाक भी। पाँच-छह घंटे चलने के बाद वे उस चौराहे पर पहुँचे जहाँ से जंगल शुरू होता था। मर्जबान ने शहजादे से कहा कि आप अपने कपड़े उतार कर मुझे दे दें और यह नौकरों जैसे कपड़े पहन लें। शहजादे ने ऐसा ही किया। मर्जबान ने तीसरे घोड़े को मार डाला और उसके खून में कमरुज्जमाँ की शाही पोशाक फाड़ कर लिथेड़ दी और घोड़े की लाश को खींच कर छुपा दिया और चौराहे के पास खून से सनी और तार-तार शाही पोशाक डाल दी। शहजादे ने आश्चर्य से पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया।
मर्जबान ने कहा, आप के सेवकगण आप को ढूँढ़ते हुए यहाँ आएँगे और इन कपड़ों को देख कर समझेंगे कि कोई वन्य पशु आपको खा गया। फिर आपकी तलाश छोड़ दी जाएगी और हम आराम से चलेंगे।
तत्पश्चात वे दोनों बहुत-सी अशर्फियाँ और जवाहिरात ले कर कभी समुद्री और कभी थल मार्ग से यात्रा करते हुए चीन पहुँचे। उन्होंने एक सराय में ठहर कर तीन दिन तक विश्राम किया। इस बीच मर्जबान ने शहजादे के लिए हकीमों जैसे कपड़े बनवा लिए। फिर हम्माम में दोनों ने स्नान किया और शहजादे ने हकीमी लिबास पहना। मर्जबान ने कहा कि अब तुम बादशाह के पास हकीम बन कर जाओ और बदौरा की चिकित्सा की बात करो और मैं बदौरा के पास जा कर तुम्हारे आगमन का समाचार देता हूँ। यह कह कर वह अपने घर गया और अपनी माँ से कहा कि तुम तुरंत शहजादी को मेरे आने की खबर करो।
इधर कमरुज्जमाँ महल में नीचे पहुँचा और पुकार कर कहने लगा, मैं दूर देश से आया हुआ हकीम हूँ। मैं शहजादी का इलाज करना चाहता हूँ। यदि शहजादी मेरे इलाज से अच्छी हो जाएगी तो बादशाह अपने वचनानुसार उससे मेरा विवाह कर दें वरना मुझे मृत्युदंड दे दें। बादशाह के सेवकों ने उसकी सौंदर्य और यौवनावस्था को देख कर दुख किया कि यह कहाँ मरने के लिए गया है। उन्होंने उसे बहुत समझाया कि क्यों अपनी जान का दुश्मन हुआ है, तेरे जेसे मालूम कितने आदमी मर गए हैं। किंतु कमरुज्जमाँ अपनी बात पर दृढ़ रहा। सेवक उसे सम्राट के पास ले गए।
कमरुज्जमाँ दरबार में जा कर धड़धड़ाता हुआ सम्राट के बगल में बैठ गया। सम्राट को इस बात पर क्रोध आना चाहिए था किंतु वह इस जवान हकीम की हालत पर तरस खाने लगा। उसके समझाने पर भी जब कमरुज्जमाँ माना तो सम्राट ने उससे प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कराए और बदौरा के आवास में उसे भेज दिया। वहाँ का प्रधान रक्षक शहजादे को बाहर बिठा कर बदौरा को बताने गया कि तुम्हारा इलाज करने के लिए एक हकीम आया है। शहजादी ने कहा, उसे भी लाओ।
प्रधान रक्षक ने कर कहा कि शहजादी तुम्हें बुलाती हैं। कमरुज्जमाँ ने कहा कि मेरे वहाँ जाने की जरूरत नहीं है। यहीं से उसे ठीक कर दूँगा। शहजादे ने कलम- दवात निकाल कर एक पत्र लिखा जिसमें उनकी मिलन-रात्रि का वर्णन था और उस पत्र को बदौरा की अँगूठी के साथ बदौरा के पास भेज दिया। बदौरा ने पत्र पढ़ा और अपनी अँगूठी पहचान ली और समझ गई कि यह मेरा प्रिय पुरुष है। उसने झटके से जंजीरें तोड़ डालीं और दौड़ती हुई वहाँ आई जहाँ शहजादा बैठा था। दोनों ने एक-दूसरे को पहचान आलिंगनबद्ध हो गए।
शहजादी की परिचारिका बुढ़िया ने दोनों को अंदर बैठाया। दोनों प्रेम की बातें करने लगे। बदौरा ने अपनी अँगूठी शहजादे को दे कर कहा, तुम इसे अपने पास ही रखो और मैं भी तुम्हारी अँगूठी अपनी जान से भी प्यारी समझ कर अपने पास रखूँगी।
बदौरा के प्रधान रक्षक ने दौड़ कर सम्राट को सूचना दी कि हकीम ने तो दूर ही से शहजादी को स्वस्थ कर दिया और अब वह बिल्कुल सामान्य रूप से बातचीत कर रही है। सम्राट तुरंत ही बदौरा के आवास में आया और बेटी को पूर्ण स्वस्थ देख कर अपने सीने से लगा लिया। फिर उसने बदौरा का हाथ कमरुज्जमाँ के हाथ में दे कर कहा कि मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपनी बेटी तुम्हें दे रहा हूँ। अब तुम बताओ कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो। कमरुज्जमाँ ने कहा कि मैं हकीम हूँ तांत्रिक। मैं फारस देश के खलदान नामक भाग के बादशाह का पुत्र हूँ। फिर उसने अपने प्रेम का सविस्तार वर्णन सम्राट के सन्मुख किया। सम्राट को यह सब सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने आदेश दिया कि इस वृत्तांत को स्वर्णाक्षरों में लिखवा कर शाही ग्रंथागार में रखवा दिया जाए। फिर उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि विवाह की तैयारियाँ की जाएँ। कुछ दिनों में तैयारियाँ पूरी हो गईं और बदौरा का करुज्जमाँ के साथ विवाह हो गया। दोनों प्रेमियों की बड़े दिनों की मनोकामना पूरी हुई और वे आनंदपूर्वक रहने लगे। सम्राट ने कमरुज्जमाँ को अपना मंत्री नियुक्त कर दिया और उससे राज्य प्रबंध में सहयोग लेने लगा।
किंतु यह आनंद-उल्लास कुछ दिनों बाद ठंडा पड़ गया। हुआ यह कि कमरुज्जमाँ ने एक रात यह स्वप्न देखा कि उसका पिता मरणासन्न है और रो-रो कर कह रहा है कि हाय मेरा इकलौता बेटा मुझसे बिछुड़ गया और उसके वियोग में मेरे प्राण निकल रहे हैं। कमरुज्जमाँ यह स्वप्न देख कर चौंक उठा और दुख के मारे रोने लगा। उसके रोदन से उसकी पत्नी जाग गई और परेशान हो कर पूछने लगी कि तुम्हें क्या हो गया है, रो क्यों रहे हो। कमरुज्जमाँ ने उसे बताया कि मैंने क्या सपना देखा है।
शहजादी बदौरा समझ गई कि उसे अपने पिता की बहुत याद आएगी और उसका जी इस देश में नहीं लगेगा। उसने शहजादे को दिलासा दिया कि मैं तुम्हें तुम्हारे पिता से मिलवाने का प्रबंध करूँगी। इससे दूसरे दिन उसने अपने पिता से कहा कि हम लोग एक वर्ष के लिए देशाटन को जाना चाहते हैं। उसने खेदपूर्वक यह बात स्वीकार कर ली और बहुत-से सेवक, घोड़े, हाथी, अशर्फियाँ और रत्नादि दे कर कहा कि तुम लोग एक वर्ष में वापस जरूर जाना। वह स्वयं भी कुछ दूर तक उनके साथ गया।
अब यहाँ से कमरुज्जमाँ पर नई विपत्तियाँ पड़नी शुरू हो गईं। एक महीने की यात्रा के बाद वे लोग एक विशाल वन के किनारे पहुँचे। कमरुज्जमाँ थक गया, उसने बदौरा से कहा कि कहो तो यहाँ डेरा डाल कर कुछ समय तक आराम कर लें। बदौरा भी यही चाहती थी। उसने कहा कि मैं तुमसे भी अधिक थक गई हूँ, यहाँ तक की यात्रा में हमारे बहुत-से सेवक पीछे छूट गए हैं, वे भी हम लोगों के साथ कर मिल जाएँगे।
कमरुज्जमाँ की आज्ञा पा कर उसके सेवक फर्राशों ने सघन पेड़ों की छाया में तंबू लगा लिया। उनके अन्य साथी और सैनिक भी अपने तंबू तान बैठे, बदौरा गर्मी और थकन से बड़ी व्यथित थी। वह डेरे के सज जाने पर उसमें जा कर उसमें बिछे पलंग पर लेट गई और लेटते ही सो गई। कुछ समय के बाद बाहरी प्रबंध की देख-भाल कर के कमरुज्जमाँ भी वहाँ आया और पत्नी के बगल में लेट रहा।
बदौरा ने लेटने से पहले अपनी कमर का पटका खोल कर वहीं पास में डाल दिया था। यह पटका रत्नजड़ित था और इसमें जरदोजी के काम का एक बटुआ भी बँधा था। कौतूहलवश शहजादे ने वह बटुआ उठाया तो मालूम हुआ कि उसके अंदर कोई ठोस और कठोर-सी वस्तु है। कमरुज्जमाँ ने बटुआ खोल कर उसे निकाला तो देखा कि वह एक बड़ा-सा लाल था जिस पर कुछ यंत्र जैसा बना था। शहजादे को ताज्जुब हुआ कि बदौरा ने उसे सुरक्षापूर्वक किसी पेटिका में रख कर ऐसी बेपरवाही से क्यों फेंक दिया। वास्तव में यह यंत्र बदौरा की माँ ने उसकी रक्षा के लिए दिया था। शहजादा उसे डेरे से बाहर लाया ताकि प्रकाश में उसके अक्षर पढ सके किंतु तभी एक पक्षी उसे उसके हाथ से ले कर उड़ गया।
शहजादे को बड़ी परेशानी हुई कि उसकी प्रिया की यह अमूल्य वस्तु उसके हाथ से ही निकली। उसने पक्षी का पीछा किया। पक्षी कुछ दूर जा बैठा। जब शहजादा उसके पास गया तो वह उड़ कर फिर कुछ दूर जा बैठा। शहजादा फिर उसके पास पहुँचा तो पक्षी ने वह लाल निगल लिया और फिर कुछ दूर तक उड़ कर बैठ गया। कमरुज्जमाँ इसी प्रकार उसका पीछा करता रहा। शाम तक वह पक्षी इसी प्रकार कमरुज्जमाँ को भटकाता रहा। कमरुज्जमाँ अपने लश्कर से दूर निकल गया था और उसे दिशा ज्ञान भी नहीं रहा। उसने पेड़ों के कुछ फल खाए और एक पेड़ की छाँह में सो रहा।
सवेरे उसने देखा कि वह पक्षी उसी पेड़ पर बैठा है। कमरुज्जमाँ ने उसे पकड़ना चाहा तो वह फिर उड़ कर दूर जा बैठा। इसी प्रकार दूसरे दिन भी उस पक्षी ने कमरुज्जमाँ को दिन भर अपने पीछे दौड़ाया। वह बेचारा दिन भर पक्षी का पीछा करता और रात को किसी पेड़ के नीचे सो रहता।
वह सोचता कि वापस जाऊँ भी तो लश्कर का पता कहाँ मिलेगा। इससे अच्छा है कि इस पक्षी को पकड़ कर इसके अंदर से माणिक निकाल लूँ।
ग्यारहवें दिन वह पक्षी एक नगर के समीप पहुँचा। कमरुज्जमाँ भी उसके पीछे-पीछे चला। अब वह पक्षी तेजी से उड़ा और एक विशाल भवन के पीछे जा कर ऐसा लोप हुआ कि कमरुज्जमाँ के लाख ढूँढ़ने पर भी वह दिखाई नहीं दिया। कमरुज्जमाँ की समझ में नहीं रहा था कि क्या करूँ। वह नगर समुद्र के तट पर बसा था। कमरुज्जमाँ बहुत देर तक उस नगर की सड़कों और गलियों में भटकता रहा ताकि किसी नागरिक से सहायता माँगे किंतु वहाँ के किसी आदमी ने उससे बात ही नहीं की।
अब वह बेचारा शहर से निकल कर समुद्र तट पर घूमने लगा। उसे एक बाग दिखाई दिया और उसके अंदर जाने को उद्यत हुआ किंतु बाग के माली ने उसे देख कर बाग का फाटक बंद कर लिया। कमरुज्जमाँ को इस से आश्चर्य हुआ और उसने माली से पूछा कि तुमने मुझे देख कर फाटक क्यों बंद कर लिया। माली ने उत्तर दिया, यह मैंने इसलिए किया कि तुम मुसलमान हो। तुम परदेसी हो इसलिए यहाँ की बातें नहीं जानते। यह देश प्रस्तर पूजकों का है। यहाँ के लोग मुसलमानों को उत्पीड़ित करना अपने धर्म का एक भाग समझते हैं। मुझे इस बात का आश्चर्य है कि तुम इतनी देर से यहाँ घूम रहे हो और किसी ने तुम्हें अब तक कोई यातना नहीं दी। इसे भगवान की तुम पर अति कृपा कहनी चाहिए।
कमरुज्जमाँ की समझ में बिल्कुल आया कि क्या करूँ। उसकी परेशानी को देख कर बूढ़े माली को दया आई। उसने कहा, खैर तुम भूखे-प्यासे और परेशान मालूम होते हो। चुपके से बाग के अंदर जाओ और मेरे झोपड़े में छुप कर बैठो और खा-पी कर कुछ देर आराम करो। कमरुज्जमाँ ने उसके प्रति आभार प्रकट किया और झोपड़े में जा कर कुछ खाया-पिया और फिर माली के पूछने पर अपना सारा हाल बयान किया कि किस प्रकार वह दुष्ट पक्षी मुझे भटकता हुआ यहाँ ले आया है। अपना हाल सुनाते-सुनाते वह रोने लगा कि जाने अब मेरे प्यारी पत्नी से मेरी भेंट होगी भी या नहीं और उसे ले कर अपने पिता से भी मिल पाऊँगा या नहीं। उसने कहा कि यह भी तो ठीक नहीं है कि मेरी पत्नी अब भी उसी वन में हो जिसमें मैं उन्हें छोड़ आया था।
माली ने उसे बताया, मुसलमानों के देश यहाँ से बहुत दूर हैं। कम से कम एक वर्ष की यात्रा करनी होती है उनमें जाने के लिए। उनमें से सब से निकट का देश अवौनी है। अवौनी भी समुद्र तट पर है और वहाँ से लोग समुद्र के रास्ते आसानी से तुम्हारे पिता के खलदानी द्वीपों में पहुँच जाते हैं। साल में एक बार अवौनी का एक व्यापारी यहाँ आता है और अपने यहाँ की वस्तुएँ यहाँ ला कर बेचता है और यहाँ की पैदावार खरीद कर वापस अपने देश को चला जाता है। वह कुछ दिन पहले ही आया था। तुम उस समय यहाँ होते तो मैं उससे तुम्हारा परिचय करा देता और वह अपने जहाज पर तुम्हें अवौनी ले जाता। किंतु अब वह एक वर्ष के बाद आएगा, तब तक तुम मेरे झोपड़े में आराम से रहो। हाँ, किसी से अपने मुसलमान होने का जिक्र करना नहीं तो मेरी भी मुसीबत जाएगी।
कमरुज्जमाँ ने माली के प्रस्ताव को भी भगवान की दया समझा और वह उसके सहायक के रूप में जीवन यापन करने लगा। दिन भर वह बाग की साज-सँवार करता और रात को बिस्तर पर लेट कर बदौरा की याद में आँसू बहाया करता। उसे एक वर्ष बाद वहाँ से छुटकारे की तो आशा थी किंतु बदौरा से मिलने की कोई उम्मीद कम ही रह गई थी।
उधर बदौरा उस दिन नींद से उठी तो कमरुज्जमाँ को देख कर बड़े आश्चर्य में पड़ी। फिर उसने अपने पटके को देखा तो मालूम हुआ कि उसमें से बटुआ खोल लिया गया है। वह समझ गई कि शहजादा ही उसे देखने को ले गया होगा। रात होने पर भी शहजादा लौटा तो वह बड़ी निराश हुई और रोने लगी। उसने क्रोध में यंत्र के निर्माता को खूब गालियाँ दीं जिसके कारण उसके प्रियतम पर यह विपत्ति पड़ी थी। लेकिन वह बुद्धिमती थी, उसने साहस नहीं खोया और तय कर लिया कि आगे क्या करना चाहिए।
शहजादे के जाने का हाल दो-एक दासियों के अलावा किसी को नहीं मालूम था। बदौरा ने उन्हें कड़ी चेतावनी दी कि वे किसी भी दशा में शहजादे के जाने का समाचार किसी को दें। वह सोचती थी कि लश्करवाले इस समाचार को सुन कर बगावत कर दें और उसे कोई हानि पहुँचाएँ। उसने खुद शहजादे के कपड़े पहने और उसी की तरह साज-सज्जा की। फिर उसने लश्कर के लोगों के लिए आदेश पहुँचवाया कि कल सुबह अँधेरा रहते ही यहाँ से कूच कर दिया जाए। उसने अपनी पालकी में अपनी जगह एक दासी को बिठा दिया और स्वयं एक तीव्रगामी घोड़े पर सवार हो गई। शाही लश्कर के कूच करते ही मौका पा कर उसने एक अन्य दिशा में अपना घोड़ा दौड़ा दिया।
वह कई मास तक कभी जल मार्ग और कभी थल मार्ग से यात्रा करती हुई, जिसके दौरान हर जगह अपने पति का पता लगाती जाती थी, अवौनी में पहुँची। उसने अपना नाम खलदान द्वीप का शहजादा कमरुज्जमाँ बताया था। अवौनी के बादशाह अश्शम्स को उसके आगमन का समाचार मिला तो वह उससे भेंट करने के लिए स्वयं ही सागर तट पर गया जहाँ बदौरा के जहाज ने लंगर डाला था। अवौनी और खलदान देशों के बादशाहों में मैत्री के संबंध थे। बादशाह ने बदौरा को कमरुज्जमाँ समझ कर उसका बड़ा सम्मान किया और आदरपूर्वक उसे अपने महल में ले आया और तीन दिन तक उसके सम्मान में कई भोज और समारोह किए। इसके बाद कमरुज्जमाँ रूपी बदौरा ने विदा की अनुमति चाही।
अवौनी का बादशाह उसके रूप और चातुर्य पर मुग्ध था और चाहता था कि उसे अपने पास रखूँ। लेकिन इस बात को सीधी तरह कह कर उसने कहा, मेरे युवा मित्र, तुम जानते हो कि मैं अब वृद्ध और अशक्त हो गया हूँ और राज्य संचालन में मुझे कठिनाई होती है। मेरा कोई पुत्र नहीं है जो मेरी सहायता करे। मेरे केवल एक बेटी है जो अत्यंत सुंदर और बुद्धिमान है। मैं चाहता हूँ कि उसका विवाह उसी के अनुरूप किसी सुंदर और चतुर व्यक्ति के साथ कर के निश्चिंत हो जाऊँ। तुम हर तरह से उसके योग्य हो, इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम उससे विवाह कर लो और मेरे राज्य के उत्तराधिकारी बन जाओ। तुम्हें इस बारे में क्या कहना है?
बदौरा बड़ी उलझन में पड़ी। सोचने लगी यदि मैं वास्तव में पुरुष होती तो इससे अच्छा अवसर मेरे जीवन में आना नहीं था। लेकिन मैंने तो मजबूरी में यह वेश धारण किया है, मैं राजकुमारी के साथ विवाह कैसे कर सकती हूँ? सुहागरात ही में मेरा भेद खुल जाएगा और फिर सभी अपने-परायों में मेरा जाने कितना अपमान होगा। और अगर मैं विवाह से इनकार करती हूँ तो बादशाह नाराज हो जाएगा और नाराज हो कर जाने मुझ पर क्या-क्या अत्याचार करे, संभव है आजीवन कारावास दे दे। अभी तक मेरे पति का भी पता नहीं चला है और मुझे उसका पता लगाना है। यह सब सोच कर उसने विवाह के लिए स्वीकृति इस शर्त पर दे दी कि एक दिन का अवकाश दिया जाए जिसमें साथ के लोगों की सलाह भी ले ली जाए। बादशाह ने इसकी अनुमति दे दी और अपने सामंतों और दरबारियों को बुला कर कहा कि मैंने इस नवागंतुक से अपनी बेटी का विवाह करने का निश्चय किया है, आप लोग इस बारे में क्या कहते हैं? उन लोगों ने कहा कि आपका निर्णय अत्युत्तम है।
अतएव बड़ी धूमधाम से कमरुज्जमाँ बनी हुई बदौरा का विवाह अवौनी की शहजादी के साथ हो गया। इसके बाद बादशाह ने उतनी ही धूमधाम से अपने तथाकथित दामाद को युवराज बनाने की रस्म पूरी की और राज्य का प्रबंध उसके सुपुर्द कर दिया। सभी सामंतों ने उसे भेंटें दीं। रात को बदौरा को शहजादी के शयनकक्ष में पहुँचा दिया गया। बदौरा आधी रात तक ईश्वर की वंदना में लगी रही और जब शहजादी सो गई तो पलंग के किनारे खुद भी सो गई। अवौनी की रस्म थी कि बेटी का उसके पति से प्रथम संभोग होने पर बड़ी धूमधाम से समारोह किया जाता था। इसलिए दूसरे दिन बादशाह ने इशारे से अपनी बेटी से रात का हाल पूछा।
शहजादी सिर झुका कर बैठी रही। उसकी उदासी देख कर बादशाह समझ गया कि इसकी इच्छापूर्ति नहीं हुई। उसने कहा, शायद तुम्हारा पति दिन के कामकाज के कारण कल रात को बहुत थक गया था इसीलिए तुम से बोला-चाला नहीं। आज की रात देखो क्या होता है। लेकिन होना क्या था, उस रात भी बदौरा अलग-थलग हो कर लेटी रही। दूसरे दिन बादशाह को मालूम हुआ तो वह क्रोध से भर गया। वह कहने लगा, इस युवक में इतनी धृष्टता गई कि मेरी बेटी का अपमान कर रहा है। अगर आज रात भी वह इसी तरह अलग-थलग रहा तो मैं कल उसे मृत्युदंड दूँगा, उससे छुटकारा पाने पर मेरी बेटी का दूसरा विवाह तो हो सकेगा।
तीसरी रात को भी आधी रात तक ईशवंदना करने के उपरांत जब बदौरा शहजादी को सोता जान कर पलंग पर एक ओर लेटी तो शहजादी उठ बैठी और बोली, प्यारे, आखिर बात क्या है। दो रातें हो गईं और तुमने मुझे स्पर्श करना तो क्या मुझसे बात तक नहीं की। मैं तो तुम पर जी-जान से मुग्ध हूँ और तुम बात भी नहीं करते। मुझसे क्या अपराध हुआ है जो तुम क्रुद्ध हो? मुझमें कोई कमी है जिससे तुम असंतुष्ट हो? मेरे पिताजी कहते थे कि अगर बेटी आज रात को भी कुँवारी रही तो दामाद को मरवा डालूँगा।
बदौरा यह सुन कर अत्यंत व्याकुल हुई किंतु चुप रही। वह सोच रही थी कि अपना असली भेद बताती हूँ तो बादशाह धोखेबाजी पर जरूर मुझे मरवा देगा और अगर चुप रहती हूँ तो भी उसकी कोपाग्नि में मुझे जल मरना ही होगा। उसे चुप देख कर शहजादी उससे लिपट गई और कहने लगी, प्राणप्रिय, मेरी समझ में कुछ नहीं रहा। तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ गया। तुम अपनी चिंता मुझे क्यों नहीं बताते? मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, हर प्रकार तुम्हें सुखी ही देखना चाहती हूँ।
यह सुन कर बदौरा की अश्रुधारा बह निकली और उसे अशक्तता के कारण गशी आने लगी। किंतु उसने स्वयं को स्थिर किया और बोली, मेरी प्यारी, मैंने तुम्हारा बड़ा अपकार किया है। मैं अपना सारा वृत्तांत तुम से ब्योरेवार कहती हूँ, इसके बाद तुम्हें अधिकार होगा कि चाहे मेरी मजबूरी देख कर मुझे क्षमा कर दो या अपराधी समझ कर मरवा डालो।
उसने शहजादी को अपनी छाती खोल कर दिखाई और बोली, बहन, मैं भी तुम्हारी तरह औरत हूँ। मैं चीन के सम्राट की बेटी हूँ। अब अपना पूरा हाल कहती हूँ। यह कह कर बदौरा ने आरंभ से ले कर उस दिन तक की सारी आपबीती विस्तारपूर्वक शहजादी को सुनाई। फिर वह हाथ जोड़ कर बोली, मेरी तुम से प्रार्थना है कि जब तक मेरे पति का पता चले तुम मेरा यह भेद छुपाए रखो। मुझे पूरी आशा है कि उससे भेंट अवश्य होगी। जब वह जाए तो तुम भी उससे विवाह कर के मेरे साथ सपत्नी बन कर रहना। हम दोनों मिल कर उसकी सेवा करेंगे और बहनों की तरह आपस में प्रीतिपूर्वक रहेंगे।
अवौनी की शहजादी बदौरा के साहस से बड़ी प्रभावित हुई और बोली, तुमने मुझे सब कुछ बता कर बहुत अच्छा किया। अब तुम पुरुष के रूप में निश्चिंत हो कर राजकाज करो, तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। सब मुझ पर छोड़ दो।
दूसरे दिन शहजादी ने अपनी दासियों को ऐसे इशारे दिए जिनसे स्पष्ट हो गया कि उसके साथ उसके पति ने संभोग कर लिया है। पहले भी रात में उसने ऐसी ध्वनियाँ कीं जिससे बाहर बैठी हुई दासियाँ समझें कि रात-कार्य हो रहा है। अतएव दूसरे दिन खूब धूमधाम हुई। बदौरा दिन भर राजकाज करती और रात को दोनों सहेलियाँ एक-दूसरे का आलिंगन कर के सो जातीं।
उधर कमरुज्जमाँ प्रस्तर पूजकों के देश में माली के साथ रहता हुआ मालीगीरी में दिन बिता रहा था। एक दिन माली ने कहा, आज यहाँ प्रस्तर पूजकों का महोत्सव है। आज के दिन यहाँ के लोग खुद काम करते हैं किसी को करने देते हैं। आज वे मुसलमानों या किन्हीं अन्य धर्मावलंबियों को दुख भी नहीं देते। तुम आराम से नगर में घूमो और वहाँ के खेल-तमाशे देखो। मैं भी अपने मित्रों के पास जा रहा हूँ। मैं उनसे पूछूँगा कि अवौनीवाला जहाज कब छूटेगा ताकि मैं तुम्हारे लिए यथेष्ट खाद्य सामग्री उस पर रख दूँ।
यह कह कर माली समुद्र की ओर चल दिया। कमरुज्जमाँ का जी चाहा कि नगर में जा कर वहाँ के खेल-तमाशों में मन बहलाए। वह खाली समय पा कर अपनी पत्नी की याद में रोने लगा। कुछ देर में उसने स्वयं को सँभाला और निरुद्देश्य इधर-उधर देखने लगा। इतने में उसने देखा कि समीप के वृक्ष पर दो पक्षी कर लड़ने लगे। काफी देर की लड़ाई के बाद उनमें से एक पक्षी मर कर नीचे गिर पड़ा और दूसरा उड़ गया। कुछ ही देर में उसी प्रकार के किंतु बड़े डील-डौलवाले दो पक्षी आए और मृत पक्षी के सिर और दुम की ओर बैठ कर सिर हिलाने लगे जैसे उसकी मृत्यु पर शोक कर रहे हों। फिर उन्होंने चोंचों और पंजों से एक गढ़ा खोद कर मृत पक्षी को उसमें गाड़ा और उड़ गए। कुछ देर में वे उस पक्षी को, जिसने पहले पक्षी को मारा था, अपने पंजों में दबा लाए और उसे भूमि पर रख कर उन्होंने उसके पंख नोच डाले और शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इसके बाद वे उड़ गए।
कमरुज्जमाँ ने कौतूहलवश मृत पक्षी के पास जा कर देखा तो उसे उसकी आँतों में कुछ चमकदार-सी चीज दिखाई दी। उसने वह चीज निकाल कर पानी से धो कर देखी तो वह वही यंत्रवाली मणि निकली जो उसके हाथ से निकल गई थी। उसे विश्वास हो गया कि अब उसका पत्नी से मिलन अवश्य हो जाएगा। दूसरे दिन माली ने उससे कहा कि फलाँ पेड़ सूख गया हे, उसे जड़ से खोद डालो। शहजादा कुल्हाड़ी ले कर उसे खोदने लगा। इसी काम में उसकी कुल्हाड़ी एक शिला से टकराई। उसने शिला हटा कर देखा तो एक सुंदर आवास पाया। उसमें ताँबे के पचास पात्र रखे थे जो स्वर्ण के चूरे से भरे थे। कमरुज्जमाँ ने माली से जा कर कहा तो वह बोला, वह धन तुम्हारे भाग्य का है, तुम्हीं ले लो। तीन दिन बाद तुम्हारा अवौनीवाला जहाज छूटेगा। तुम इस स्वर्ण चूर्ण को भी ले जाओ किंतु पात्रों को थोड़ा-थोड़ा खाली कर के जैतून का तेल भर देना जिससे यह सुरक्षित रहे। जैतून का तेल मेरे पास बहुत है। अब कमरुज्जमाँ ने उससे कहा, वैसे तो यह धन तुम्हारा ही है किंतु तुम अगर पूरा नहीं लेते तो आधा ही ले लो। माली ने यह बात स्वीकार कर ली।

कमरुज्जमाँ ने प्रत्येक पात्र का आधा स्वर्ण चूर्ण निकाल लिया और उसे माली के घर के एक कोने में ढेर बना कर रख दिया। उसने सोचा ऐसा हो कि यह यंत्र फिर हाथ से जाता रहे अतएव एक पात्र को पूरा खाली कर के उसकी तह में यंत्र रख दिया और ऊपर से स्वर्ण चूर्ण बिछा दिया और उस बरतन पर निशान लगा दिया कि मणि निकालने में सुविधा रहे। यह प्रबंध कर के वह निश्चिंत हुआ ही था कि माली की दशा खराब हो गई। सवेरे उस जहाज का कप्तान आया और पूछने लगा कि हमारे जहाज पर यहाँ से कौन जानेवाला है। कमरुज्जमाँ ने कहा कि मैं ही जानेवाला हूँ, आप मेरी पचास हाँडियाँ जैतून के तेल की (जिसके नीचे स्वर्ण चूर्ण भरा था) जहाज पर पहुँचवा दीजिए। जहाज के मल्लाह वे हाँडियाँ ले गए। कमरुज्जमाँ ने कहा कि मैं भी दो दिन बाद आऊँगा। कप्तान ने जाने से पहले कहा कि जल्दी आना क्योंकि वायु अनुकूल होते ही हम चल देंगे।                  
(अगली पोस्ट में जारी……)                                                  स्रोत-इंटरनेट से कापी-पेस्ट

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