गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

अलिफ लैला 46 कमरुज्जमाँ और बदौरा की कहानी (भाग 4)


(पिछिली पोस्ट से जारी……)  
अमजद लघुशंका के बहाने उठा और बहादुर से कर धीमे-धीमे बात करने लगा। उसने सारा हाल उसे बताया। बहादुर ने कहा, शहजादे, आप चिंता करें। मुझे विश्वास हो गया कि आप निर्दोष हैं। मेरा तो इसके अलावा दूसरा घर है जहाँ मैं निवास करता हूँ और इस घर में कभी-कभी आमोद प्रमोद के लिए आता हूँ। मैं तो वैसे भी आप का सेवक हूँ। मैं कुछ देर में गुलामों के-से कपड़े पहन कर आता हूँ। आप मुझ पर नाराज हों बल्कि मुझे मारें भी कि मैंने इतनी देर क्यों लगाई। आप रात भर उस स्त्री के साथ सहवास करें और सबेरे इसे कुछ दे-दिला कर विदा करें। मैं अपने को बड़ा भाग्यशाली मानता हूँ कि किसी शहजादे ने मेरे घर पर पधार कर उसे पवित्र किया। आप जा कर रुचिपूर्वक भोजन करें। शहजादा यह सुन कर अंदर गया और खाने-पीने लगा।
बहादुर घर के बाहर गया क्योंकि आमंत्रित मित्र पहुँचे थे। उसने उनसे बहाना बनाया कि एक अपरिहार्य कारण से दावत स्थगित करनी पड़ी है। मैं आप लोगों को फिर बुलाऊँगा। आज के लिए आप लोग मुझे क्षमा करें। मित्रगण बाहर ही से वापस लौट गए। इधर बहादुर गुलामों जैसे कपड़े पहन कर आया और शहजादे के पैरों पर गिर कर क्षमा प्रार्थना करने लगा। अमजद ने बनावटी क्रोध में कहा कि तुम सुबह के गए थे, अभी तक कहाँ मर रहे थे। बहादुर फिर क्षमा याचना करने लगा। अमजद ने कहा कि मैं आज तेरी पिटाई किए बगैर नहीं मानूँगा। यह कह कर वह उठा और एक छड़ी उठा कर दो-चार बार बहादुर को हल्की चोटें दीं। स्त्री ने कहा, इस तरह मारने से इसकी समझ में कुछ आएगा? देखो, सजा ऐसी दी जाती है। यह कह कर उसने चार-छह छड़ियाँ पूरे जोर से मारीं और बहादुर बिलबिला उठा और चिल्ला कर रोने लगा। अमजद ने उस स्त्री के हाथ से छड़ी छीन ली और बोला, रहने दो, आखिर वह भी आदमी है, जानवर तो नहीं जो इतनी बेदर्दी से मार रही हो।
बहादुर आँसू पोंछता हुआ उठ खड़ा हुआ और गुलामों की तरह दोनों को मदिरा पात्र भर-भर कर देने लगा। जब वह दोनों अच्छी प्रकार खा-पी चुके तो उसने एक कमरे में दोनों की शय्या तैयार की ताकि रात को उस पर सोएँ। शाम होने पर उसने सारे घर में दिए जलाए। काफी रात होने पर जब शहजादा और स्त्री अपने कमरे में गए तो वह खुद बाहर दालान में अपने बिस्तर पर लेट गया ताकि जरूरत होने पर शहजादा उसे बुला सके। दुर्भाग्यवश बहादुर सोते समय बड़े जोर से खर्राटे भरता था। स्त्री को असुविधा हुई तो उसने कहा कि तुम अभी जा कर उस बदतमीज गुलाम का सिर काटो, वह तो रात भर सोने नहीं देगा।
अमजद ने समझा कि वह नशे में बहक कर ऐसा कह रही है। वह बोला, खर्राटे भरना तो ऐसा अपराध नहीं है जिस पर किसी की गर्दन मारी जाए। मुझे तो पहले ही उस पर तरस रहा है कि तुमने उसे ऐसी क्रूरता से मारा। वह बोली, तुम्हें मेरा ज्यादा ख्याल है या एक तुच्छ गुलाम का? मैं दिल से चाहती हूँ कि उसे मार डाला जाए। आखिर एक गुलाम ही तो है। अगर तुम नहीं मारते तो मैं खुद जा कर उसकी गर्दन अलग करती हूँ।
अमजद ने सोचा कि किसी तरह बहादुर की जान तो बचानी ही चाहिए। उसने कहा कि तुम्हारी यही जिद है तो यही सही लेकिन वह मेरा गुलाम है, उसे मैं ही मारूँगा, तुम नहीं। यह कह कर उसने स्त्री के हाथ से तलवार ले ली। स्त्री उसके आगे-आगे यह देखने को चली कि अमजद वास्तव में उसे मारता है या यूँ ही छोड़ देता है। सोते हुए बहादुर के पास पहुँच कर अमजद ने तलवार निकाली और दो कदम पीछे हट कर बहादुर के बजाय उस स्त्री की गर्दन पर ऐसा शक्तिशाली प्रहार किया कि उसकी लाश दो टुकड़े हो कर जमीन पर गिर पड़ी।
बहादुर इस शब्द से चौंक कर जागा तो देखा कि शहजादे के हाथ में खून से सनी तलवार है और स्त्री के शरीर के दोनों टुकड़े तड़प रहे हैं। उसने आश्चर्य से पूछा कि आपने इसे क्यों ऐसी सजा दी। अमजद ने कहा, अगर मैं इसे ना मारता तो तुम्हारी जान किसी तरह नहीं बच सकती थी। इसके बाद उसने बताया कि वह क्या जिद कर रही थी। बहादुर ने शहजादे के पाँव पर सिर रख दिया और कहा, आप बड़े कृपालु हैं, आप ही के कारण मैं इस निर्लज्ज कुलटा के हाथ से मरते-मरते बचा। अब मैं इसकी लाश ले जा कर अँधेरे में कहीं फेंक आता हूँ। दिन निकलने पर यह लाश यहाँ पाई गई तो बड़ा झंझट होगा।
उसने यह भी कहा, खतरा अब भी है। इसलिए मैं अपनी सारी संपत्ति का उत्तराधिकार आपको लिखे देता हूँ। इस स्त्री के गहने आदि तो आप ले ही लीजिए। अगर मैं सूर्योदय तक इस लाश को ठिकाने लगा कर गया तो ठीक है वरना समझ लेना कि मैं पकड़ा गया। यह कह कर वह एक चादर में लाश बाँध कर ले चला। रास्ते में उसे दुर्भाग्यवश पुलिस की गश्त मिल गई। सिपाहियों ने गठरी खुलवा कर देखा तो लाश पाई। वह बहादुर को लाश की गठरी समेत थाने में ले गए और प्रमुख अधिकारी से बोले कि यह गुलाम इस स्त्री को मार कर फेंकने के लिए ले जा रहा था।
प्रमुख अधिकारी गुलामों के वेश में भी अश्वशाला के प्रमुख को पहचान गया। उसने तय किया कि मुझे खुद इसे सजा देने के बजाय बादशाह के सामने पेश करना ठीक रहेगा। उसने रात भर बहादुर को मय लाश के अपने घर में बंद रखा और सुबह दोनों को बादशाह के सामने पेश कर दिया। बादशाह को यह देख कर बड़ा क्रोध आया। उसने बहादुर से कहा, तू कितना बेशर्म है। इतना बड़ा अधिकारी हो कर भी इस प्रकार निरपराधों की हत्या करता है। तुझे तो जीने का बिल्कुल अधिकार नहीं है। यह कह कर उसने पुलिस अधिकारी से कहा कि इसे चौराहे पर फाँसी की टिकटी लगा कर आज ही फाँसी दी जाए।
प्रमुख पुलिस अधिकारी ने सारे शहर में मुनादी करवा दी कि एक अपरिचित स्त्री को मारने के अपराध में शाही घुड़साल के मुख्याधिकारी को फलाँ चौराहे पर फाँसी दी जाएगी। अमजद ने यह मुनादी सुनी तो समझ गया कि बहादुर पकड़ा गया है और फाँसी चढ़ाया जानेवाला है। वह फौरन फाँसीवाले चौराहे पर चला गया। उसने पुलिस अधिकारी से कहा, अपराधी यह आदमी नहीं है, मैं हूँ। मैंने उस स्त्री को मारा है क्योंकि वह इसे मारना चाहती थी। यह कह कर उसने पिछले दिन का सारा किस्सा पुलिस अधिकारी को सुनाया। उसने दुबारा बहादुर और अमजद को मय लाश के बादशाह के सामने पेश कर दिया।
बादशाह ने अमजद से सारा किस्सा सुन कर पूछा कि तुम कौन हो और कहाँ से आए हो। उसने अपनी सारी कहानी - पिता द्वारा मृत्यु-दंड मिलने, भटकते हुए यहाँ आने और दो दिन पहले छोटे भाई के लापता होने की बात सुनाई। बादशाह ने कहा, इस स्त्री को मार कर तुमने अच्छा किया, मैं तुम्हें इसके लिए दंड नहीं दूँगा। बहादुर का तो कोई कसूर ही नहीं है इसलिए इसे इनाम दे कर इसके पद पर प्रतिष्ठापूर्वक भेजूँगा। तुम्हें मैं अपना मंत्री बनाऊँगा ताकि तुम्हारे पिता ने जो ज्यादती तुम्हारे साथ की है उसका कुछ तो प्रतिकार हो जाए।
मंत्री बनने के बाद अमजद ने सार्वजनिक घोषणा करवाई कि जो भी असद का समाचार ला कर देगा उसे बहुत इनाम दिया जाएगा। उसने सैकड़ों जासूस भी इस काम के लिए नियुक्त किए किंतु असद का कहीं पता नहीं चला। वह बेचारा उसी तहखाने में बंद रहता और रोजाना बूढ़े की बेटियों बोस्तान और कैवाना के हाथ से खूब मार खाने के बाद रोटी का टुकड़ा पाता। धीरे-धीरे उसके भेंट चढ़ जाने का दिन आया। बूढ़े ने उसे एक जहाज के कप्तान बहराम को सौंपा जो उसे एक संदूक में बंद कर के अपने जहाज में ले चला।
जहाज छूटने के पहले अमजद को मालूम हो गया था कि अग्निदेवता की बलि के लिए साल में एक जहाज इस नगर में आया करता है और किसी किसी मुसलमान को बलि चढ़ाने के लिए ले जाता है। उसने सोचा कि इस बार कहीं असद ही को तो इस हेतु नहीं भेजा जा रहा है। उसे इस जहाज पर शक था इसलिए वह स्वयं भी जहाज पर चढ़ गया और सारे खलासियों और व्यापारियों को अलग खड़ा कर के अपने सेवकों को जहाज की तलाशी लेने की आज्ञा दी। सेवकों ने अच्छी तरह हर जगह देखा किंतु असद को संदूक में बंद किया गया था इसलिए वह मिला। इसके बाद जहाज को यात्रा करने की अनुमति दे दी गई।
रास्ते में बहराम कप्तान ने असद को संदूक से निकाला लेकिन उसके पाँवों में बेड़ियाँ डाल दीं ताकि वह अपनी बलि की बात सुन कर समुद्र में कूद पड़े। किंतु जहाज इच्छित ज्वालामुखी के द्वीप में पहुँचा। प्रतिकूल वायु और समुद्री धाराओं ने उसे दूसरी ओर मोड़ दिया। कुछ दिनों बाद भूमि दिखाई दी किंतु जब कप्तान बहराम ने पहचाना कि यह कौन-सा देश है तो वह बहुत घबराया। यह भूमि एक मुसलमान रानी मरजीना का राज्य था। वह अग्निपूजकों की घोर शत्रु थी।
वह अपने देश में किसी अग्निपूजक को नहीं रहने देती थी बल्कि उनका कोई जहाज भी अपने बंदरगाहों में नहीं आने देती थी। जहाज वहाँ के तट पर पहुँचा तो बहराम ने अपने साथियों से कहा, यदि मरजीना के सिपाही जहाज पर इस कैदी को बेड़ियों में देखेंगे तो मरजीना जहाज को लुटवा देगी और हम सब लोगों को मरवा डालेगी। इसलिए इस आदमी की बेड़ियाँ काट दो और इसे नौकरों जैसे कपड़े पहना दो। मैं इसी के हाथ से रानी को रत्नादि की भेंट दिलाऊँगा ताकि रानी भी प्रसन्न हो और यह भी समझे कि मुझे बलि नहीं चढ़ाया जाएगा।
जहाज के लोगों को कप्तान का यह उपाय पसंद आया क्योंकि इसके अलावा और किसी प्रकार रानी के कोप से बचा ही नहीं जा सकता था। असद की बेड़ियाँ काट दी गईं और उसे दासों जैसे सफेद कपड़े पहनाए गए। उन लोगों ने उसे बढ़िया खाना खिलाया और झूठा आश्वासन दिया कि यहाँ से निकल कर हम तुम्हें तुम्हारे देश में पहुँचा देंगे। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उस बुड्ढे के घर पर तुम से जो दुर्व्यवहार हुआ है वह किसी को बताना वरना हम लोग तुम्हें जीता छोड़ेंगे।
उन्होंने हर तरह की खुशामद और धमकी से काम लिया।
असद ने भी देखा कि उनकी बात को अस्वीकार करने में कोई लाभ नहीं है, उसने मान लिया कि मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा। अब जहाज ने मरजीना के बंदरगाह में लंगर डाला। मरजीना का बाग समुद्र तट पर था और वह उस समय अपने बाग की सैर कर रही थी। उसने अग्निपूजकों का जहाज देखा तो अपने सिपाही भेजे और कुछ देर में स्वयं समुद्र तट पर गई। कप्तान बहराम असद के हाथ भेंट वस्तुएँ ले कर उसके पास गया और झुक कर सलाम करने के बाद कहा कि हम प्रतिकूल वायु और समुद्र धाराओं से विवश हो कर आपके बंदरगाह पर टिके हैं। हम लोग व्यापारी हैं और दासों का व्यापार करते हैं। हमारे और दास तो बिक गए और सिर्फ यह बचा है। यह पढ़ा-लिखा है इसलिए हमने इसे हिसाब-किताब लिखने के लिए रख लिया है।
मरजीना असद के रूप पर मुग्ध हो गई। उसने कहा, तुम अपनी सभी भेंट वस्तुएँ अपने पास रखो, केवल इस दास को मुझे दे दो। तुम इसका जो भी मूल्य माँगोगे वह मैं दे दूँगी। यह कह कर वह बहराम के उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर ही असद के हाथ में हाथ डाल कर बाग में घूमने लगी। कुछ देर बाद उसने असद से पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? असद ने आँसू भर कर कहा, मलिका, मैं अपना कौन-सा नाम बताऊँ। कुछ महीने पहले तक मेरा नाम असद था और मैं अवौनी का शहजादा था। अब मेरा नाम कुरबानिए-आतिश रखा गया है क्योंकि यह अग्निपूजक मुझे अपने देवता के सामने बलि देने के लिए लिए जा रहे हैं।
मरजीना यह वृत्तांत सुन कर आग बबूला हो गई। उसने बहराम को बुला कर बहुत गालियाँ सुनाईं और कहा, नीच कमीने, तूने मुझसे इतना बड़ा झूठ बोला? तू इस व्यक्ति को आग की कुरबानी के लिए ले जा रहा है और मुझे बता रहा है कि यह दास है? अब खैरियत चाहता है तो फौरन जहाज को खोल दे नहीं तो मैं सारा माल लुटवा दूँगी, जहाज जला दूँगी। बहराम घबराया हुआ जहाज पर आया। तेज उलटी हवा होने पर भी जहाज का लंगर उठवाने लगा। उधर मरजीना असद को बाग में बने हुए राजकीय आवास में ले गई। उसने स्वादिष्ट भोजन मँगवाया। असद ने पेट भर भोजन किया और जी भर शराब पी। शराब वह जरूरत से ज्यादा पी गया था। उसने मलिका से बाग में घूम-फिर कर नशा उतारने की अनुमति ली और बाग में घूमने लगा। कुछ देर बाद उसने एक कुंड के निकट बैठ कर अपना मुँह धोया और कुछ चैतन्य हो कर वहीं घास पर लेट गया। दो क्षणों ही में उसे गहरी नींद गई।
उधर बहराम ने अपने खलासियों से कहा, अब शाम हो गई है, रात भर तो बेखटके यहाँ भी रह सकते हैं। आशा है कि सुबह तक अनुकूल वायु भी मिल जाएगी। जहाज पर मीठा पानी भी कम है। हम लोग जमीन पर उतर कर देखें तो कोई कोई कुआँ या कुंड मिल ही जाएगा। पानी ला कर हम सुबह होने के पहले ही जहाज खोल देंगे।
खलासी लोग जल की खोज में निकले तो उन्हें याद आया कि रानी मरजीना के बाग में मीठे पानी का एक बड़ा कुंड देखा था। वे वहाँ आए। सोते हुए असद को उन्होंने पहचान लिया और उसे अकेला पा कर बहुत खुश हुए। उन्होंने अपने सारे बरतनों में पानी भरा और धीरे से असद को उठा कर जहाज पर पहुँचा दिया। बहराम पानी के साथ असद को पा कर बहुत प्रसन्न हुआ। हवा भी अनुकूल चलने लगी थी इसलिए उसने दो घड़ी रात रहे ही लंगर उठा दिया। जहाज तेजी से ज्वालामुखी पर्वत की ओर जिसे वे आतशी कोह कहते थे चल पड़ा।
सुबह मलिका ने असद को अपने पास पाया तो पहले सोचा कि वह शौचादि के लिए गया होगा किंतु जब वह देर तक आया तो अपनी दासियों और सेविकाओं को आदेश दिया कि उसे ढूँढ़ें। उन्होंने बहुत ढूँढ़ा किंतु उसका पता नहीं पाया। काफी देर के बाद दासियों ने बताया कि बाग का फाटक खुला मिला है और कुंड के पास एक आदमी के जूते रखे हें। मलिका उठ कर स्वयं कुंड के पास आई और जूतों को देख कर पहचान गई कि यह असद ही के हैं। कुछ दासियों ने यह भी कहा कि कल शाम को कुंड में जितना पानी था इस समय उससे काफी कम दिखाई दे रहा है।
रानी मरजीना समझ गई कि रात को बहराम के खलासी बाग में पानी लेने आए होंगे और पानी के साथ निद्रामग्न असद को भी उठा ले गए होंगे। उसने एक आदमी समुद्र तट पर यह पता करने के लिए भेजा कि बहराम का जहाज है या नहीं। वहाँ उसे मालूम हुआ कि जहाज सुबह से पहले ही रवाना हो गया है। अन्य जहाजों के लोगों ने यह भी बताया कि पहर रात गए उस जहाज से एक नाव आई थी जिसके लोग शाही बाग की ओर गए थे।
अब तो कोई संदेह ही रहा कि बहराम ने असद को उठवा लिया है। तब तक शाम होने लगी थी। उसने अपनी नौसेना के सारे जहाजों को तैयार रहने की आज्ञा दी और कहा दस जहाज बंदरगाह पहुँच जाएँ, मैं स्वयं इस जंगी बेड़े के साथ चलूँगी। दूसरी सुबह दस युद्धपोत रानी को ले कर बहराम के जहाज के पीछे चले। दो दिन बाद उन्होंने बहराम का जहाज आगे जाता हुआ देखा ओर कुछ ही देर में उसे चारों ओर से घेर लिया।
बहराम समझ गया कि असद के लिए ही मलिका ने पीछा किया है। उसने सोचा कि असद के साथ पकड़ा गया तो रानी मुझे मरवा ही देगी इसलिए उसे जहाज से हटा देना चाहिए। प्रकटतः वह बलि को इस प्रकार हाथ से भी जाने नहीं दे सकता था। इसलिए उसने क्रोध में चिल्ला कर कहा, इस मनहूस की वजह से हम पर मुसीबत रही है और हम सभी की जान खतरे में है। उसे खूब मारो और फिर समुद्र में फेंक दो ताकि यह यहीं खत्म हो जाए। उसके आधीनस्थ लोगों ने ऐसा ही किया। उसे खूब मारा और फिर उठा कर समुद्र में फेंक दिया। उन्हें विश्वास था कि इस गहरे पानी में से वह किसी तरह बच कर नहीं निकल सकता।
किंतु असद बहुत अच्छा तैराक था। वह तैरते-तैरते कुछ घंटों में एक भूमि पर जा लगा। उसने तट पर पहुँच कर भगवान को धन्यवाद दिया कि उसने दूसरी बार प्राण बचाए। उसने अपने कपड़े सुखाए और सोचा कि तट से कुछ दूर दिखाई देनेवाले नगर में चलूँ। पास पहुँच कर देखा तो वह वही अग्निपूजकों की बस्ती थी जहाँ से वह जहाज पर लादा गया था। उसने सोचा कि दिन में वहाँ जाना ठीक नहीं है, रात में चलूँगा। यह सोच कर वह मुसलमानों के कब्रिस्तान में जा कर सो गया।
उधर मरजीना के जहाजों ने बहराम के जहाज को दबा लिया। मरजीना ने स्वयं उस जहाज पर चढ़ कर पूछा कि असद कहाँ है जिसे तुम मेरे बाग से उड़ा लाए थे। बहराम ने असद को लाने की बात से इनकार किया। मरजीना ने असद को ढुँढ़वाया। उसे पा कर वह और भी क्रुद्ध हुई। उसने जहाज को लूटने और सब लोगों को निकटस्थ भूमि पर ले चलने की आज्ञा दी और कहा कि मैं इन सब को मौत के घाट उतरवाऊँगी। उसके सिपाहियों ने बहराम और उसके साथियों को तट पर पहुँचाया।
तट पर जा कर बहराम भी पहचान गया कि यह उसी का नगर है। वह पहरेदारों की आँख बचा कर भाग निकला। नगर तक उसे पहुँचते-पहुँचते काफी रात हो गई। उसने भी सोचा कि रात यहीं कब्रिस्तान में बिता कर सुबह शहर में जाऊँगा। वहाँ असद को सोता देख कर उसे आश्चर्य हुआ कि इस जगह सोनेवाला कौन है। उसने उसे अच्छी तरह देखना शुरू किया। असद की भी आँख खुल गई और वह उठ बैठा। बहराम ने कहा, अच्छा तुम यहाँ सोए हो? तुम्हारी वजह से मुझ पर ऐसी विपदा पड़ी। इस वर्ष तो बलि से बच गए, अब देखता हूँ कि अगले वर्ष कैसे बचते हो।
बहराम असद से कहीं तगड़ा था। उसने असद को एक चादर में बाँधा और रात ही रात उसे उस बूढ़े अग्निपूजक के घर पहुँचा दिया जहाँ से असद को लाया था। बूढ़े ने फिर असद के पाँव में बेड़ियाँ डाल कर उसे तहखाने में पहुँचाया और बोस्तान और कैवाना को पहले की तरह उसे रोज खूब मारने और रोटी-पानी देने की आज्ञा दी। बोस्तान उसे तहखाने में ले गई। असद ने विलाप आरंभ किया कि इस सारे साल की मार से तो अच्छा था कि मुझे बलि ही दे दिया जाता। बोस्तान को पहले ही अपनी क्रूरता पर खेद था। इस समय उसे असद पर बड़ी दया आई। उसने कहा, तुम चिंता करो। मैं तुम्हें मारूँगी। मैं तुम्हें यह भी बता दूँ कि मैं मुसलमान हो गई हूँ।
बोस्तान की बातों से असद को बहुत तसल्ली हुई किंतु उसे अब भी कैवाना की ओर से डर लग रहा था। उसने कहा, भगवान ने तुम्हारे हृदय में मेरी ओर से दया उपजा दी है किंतु कैवाना तो मुझे पूर्ववत ही मारेगी। बोस्तान ने कहा, तुम डरो नहीं। अब तुम्हारे पास कैवाना नहीं, मैं ही आऊँगी। उस दिन से बोस्तान ही उसके पास आने लगी। वह उसे भरपेट स्वादिष्ट भोजन खिलाती और उससे मित्रतापूर्वक बातें करती।
एक दिन बोस्तान अपने दरवाजे पर खड़ी थी कि उसने मुनादी होते सुनी। मुनादी करनेवाला उच्च स्वर में कह रहा था, इस देश का मंत्री अमजद अपने छोटे भाई असद को ढूँढ़ने स्वयं ही नगर में निकला है। जो भी उसके भाई को उसके पास लाएगा उसे इतना धन दिया जाएगा कि कई पीढ़ियों के लिए काफी होगा। और अगर कोई असद को जान-बूझ कर छुपा कर रखेगा तो वह अपने परिवारवालों के सहित मार डाला जाएगा और उसका घर खुदवा कर उस जमीन पर हल चलवा दिया जाएगा। यह मुनादी सुन कर बोस्तान दौड़ी हुई असद के पास गई। उसने उसकी बेड़ियाँ काट दीं और उसे ले कर गली में निकल आई। यहाँ कर उसने पुकार कर कहा, यह है मंत्री अमजद का भाई असद, इसे मंत्री के पास पहुँचा दो।
मंत्री के सेवकों ने मंत्री को तुरंत इस बात की सूचना दी। वह असद को बुलाने के बजाय स्वयं ही वहाँ पर गया। असद को पहचान कर उसने उसे आलिंगनबद्ध किया। फिर वह असद और बोस्तान को ले कर बादशाह के पास पहुँचा। वहाँ पहुँच कर असद ने अपने ऊपर पड़नेवाली सारी विपत्तियों का वर्णन किया। बादशाह के क्रोध का ठिकाना रहा। उसने आज्ञा दी कि बुड्ढे अग्निपूजक का घर खुदवा डाला जाए तथा उसे और बहराम आदि रिश्तेदारों को मृत्युदंड की आज्ञा दी। उन सबने उसके पैरों पर गिर कर प्राणों की भिक्षा माँगी। बादशाह ने कहा कि तुम्हारा अपराध बहुत बड़ा है, तुम्हें इसी शर्त पर प्राण-दान मिल सकता है कि तुम अपना यह झूठा धर्म छोड़ कर मुसलमान हो जाओ। उन्होंने यह स्वीकार कर के जान बचाई।
मंत्री अमजद ने इसके बाद उन लोगों को गुजारे के लिए यथेष्ट धन दिया। बहराम इससे प्रभावित हुआ। उसने कहा कि सरकार, पिछले साल मैं अवौनी देश गया था। वहाँ बादशाह कमरुज्जमाँ आप लोगों के वियोग में बड़े व्याकुल हैं। आश्चर्य होगा यदि इस दुख में उनके प्राण निकल जाएँ। आप दोनों यदि वहाँ चलने को तैयार हों तो मैं आपको सुविधापूर्वक पहुँचा दूँ।
अमजद और असद ने यह स्वीकार किया और बादशाह से जाने की अनुमति माँगी जो उसने दे दी। उसने उन्हें गले लगा कर विदा किया और बहुत साधन यात्रा के लिए दिया।
इतने में एक हरकारे ने कर कहा कि एक ओर से एक बड़ी सेना रही है। बादशाह सोचने लगा कि मेरा ऐसा कौन दुश्मन है जो चढ़ाई करे। उसने अमजद से जा कर सेनाध्यक्ष से मिलने को कहा। अमजद गया तो उसे मालूम हुआ कि सेना की नायक एक स्त्री है। उसने उससे भेंट कर उससे पूछा कि आप युद्ध का इरादा ले कर आई हैं या मैत्री का? उसने कहा, मैं युद्ध करने नहीं आई हूँ। यहाँ का बहराम नामी कप्तान मेरे दास असद को चुरा लाया है। मैं उसी को लेने आई हूँ। मेरा नाम मरजीना है। यदि आप असद को मुझे वापस दिलाने में सहायक हों तो आपकी आभारी हूँगी।
अमजद ने कहा, आपका दास असद मेरा छोटा भाई है। मैं यहाँ का मंत्री हूँ। आप कृपया चल कर हमारे बादशाह से भेंट करें। वे असद को आपकी सेवा में दे देंगे। मरजीना यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुई और सारी सेना वहीं छोड़ कर कुछ अंगरक्षकों को साथ ले कर अमजद के साथ बादशाह के पास आने लगी।
इसी बीच एक और हरकारे ने कर कहा कि दूसरी दिशा से एक और सेना रही है। बादशाह फिर चिंतित हुआ। उसने अमजद को इस सेना का हाल जानने के लिए भेजा। अमजद कुछ सिपाहियों के साथ गया और फौज के एक सरदार से कहा कि मैं यहाँ का मंत्री हूँ, मुझे अपने बादशाह के पास ले चलो। बादशाह के पास जा कर उसने पूछा कि आप अगर युद्ध के लिए आए हैं तो यह भी बताए कि हमसे क्यों युद्ध करना चाहते हैं। बादशाह ने कहा, मैं युद्ध करने नहीं आया। मैं चीन का बादशाह गौर हूँ। मेरी बेटी बदौरा और दामाद कमरुज्जमाँ बहुत दिनों से लापता हैं। मैं उन्हें ढूँढ़ने निकला हूँ।
अमजद ने उसके पाँव चूम कर कहा, आप मेरे नाना हैं। मेरे पिता कमरुज्जमाँ अवौनी के बादशाह हैं। वे और मेरी माता बदौरा आनंदूपर्वक हैं। बादशाह गौर ने उसे सीने से लगाया और उसे देर तक प्यार करता रहा। वह अमजद की सारी पिछली आपदाओं को सुन कर बहुत दुखी हुआ।
उसने अमजद को तसल्ली दी और कहा कि मैं स्वयं वहाँ तुम्हें ले जा कर तुम दोनों का मेल करवा दूँगा। अमजद ने विदा हो कर अपने स्वामी को उसका हाल बताया। उसे आश्चर्य हुआ कि चीन के सम्राट जैसा प्रतापी आदमी बेटी-दामाद की तलाश में भटक रहा है। उसने अपने कर्मचारियों को आज्ञा दी कि चीन के सम्राट की पूरी तरह अभ्यर्थना की जाए। वह स्वयं भी इस बात की तैयारी करने लगा कि चीन के सम्राट के शिविर में जा कर उससे भेंट करे।
इसी बीच एक और हरकारे ने सूचना दी कि एक फौज तीसरी तरफ से भी आई है। बादशाह ने सोचा यह अच्छी मुसीबत है, चारों ओर से सेनाएँ चली रही हैं। उसने इस बार भी अमजद को इस सेना के आगमन का उद्देश्य जानने को भेजा। अमजद ने जा कर पता किया तो मालूम हुआ कि यह उसका पिता कमरुज्जमाँ है जो अपने दोनों पुत्रों की तलाश में देश-विदेश भटकता हुआ यहाँ पहुँचा है। उसे मालूम हुआ कि पहले तो अपनी रानियों के षड्यंत्र में फँस कर उसने बेटों के वध की आज्ञा दे दी थी किंतु बाद में उसे इतना पछतावा हुआ कि वह प्राण त्याग करने के लिए तैयार हो गया। जब जिंदर ने उसे बताया कि शहजादों को मारा नहीं गया है तो उसकी हालत सँभली किंतु इसके बाद वह चैन से बैठ सका और बड़ी फौज ले कर बेटों को ढूँढ़ने निकल पड़ा। अमजद वापस कर असद को साथ ले गया और दोनों बेटों ने बाप से भेंट की। वह इन दोनों को गले लगा कर बहुत देर तक हर्ष के आँसू बहाता रहा।
इतने ही में वहाँ के बादशाह को एक और हरकारे ने बताया कि राज्य की चौथी ओर से भी एक बड़ी सेना चली रही है। बादशाह ने फिर अमजद के पास खबर भिजवाई। कमरुज्जमाँ ने कहा, और बातें बाद में होंगी, पहले यह देखना चाहिए कि यह नई फौज किसलिए आई है। मैं खुद तुम्हारे साथ चल कर उस फौज लानेवाले बादशाह से मिलूँगा। अमजद ने पिता को यह भी बताया कि एक ओर से चीन का सम्राट भी ससैन्य आया हुआ है। कमरुज्जमाँ यह सुन कर खुश हुआ और बोला कि चलो रास्ते में हम लोग तुम्हारे नाना से भी मिलते चलेंगे।
चीन के सम्राट से संक्षिप्त रूप से भेंट करने के बाद कमरुज्जमाँ और उसके दोनों बेटे उस तरफ गए जहाँ चौथी फौज ने पड़ाव डाला था। पास पहुँचने पर अमजद आगे बढ़ कर गया। संयोग से उसकी पहली ही भेंट इस फौज के बादशाह के मंत्री के साथ हुई। उसने पूछा, आप लोग तो मुसलमान हैं, इस देश में जहाँ मुख्यतः अग्निपूजक रहते हैं क्या करने आए हैं? उस मंत्री ने कहा, हम लोग खलदान देश से आए हैं। हमारे बादशाह का बेटा कमरुज्जमाँ बीस वर्ष से अधिक समय से लापता है। हमारे बादशाह उसी की खोज में भटक रहे हैं। अगर आप लोगों ने कमरुज्जमाँ का कुछ हाल सुना हो तो बताइए, आपकी बड़ी कृपा होगी।
अमजद ने हँस कर कहा, आप कमरुज्जमाँ का समाचार पूछ रहे हैं। मैं स्वयं कमरुज्जमाँ को यहाँ लिए आता हूँ। आप बादशाह से हम लोगों की भेंट का प्रबंध कराइए। इधर मंत्री अपने बादशाह को यह समाचार देने गया उधर अमजद ने जा कर अपने बाप से कहा कि आपके पिता आप की खोज में यहाँ तक आए हैं और यह फौज उन्हीं की है। कमरुज्जमाँ ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि पिता से भेंट होगी और वह भी इतने आकस्मिक ढंग से। वह भावातिरेक से मूर्छित हो गया। जब वह सचेत हुआ तो बेटे को साथ ले कर पिता से मिलने चल पड़ा और उसके पास जा कर उसके पैरों पर गिर पड़ा। वह उसे छाती से लगा कर बहुत देर तक रोता रहा।
उसने कमरुज्जमाँ से पूछा, बेटे, मुझ से ऐसी क्या भूल हो गई थी कि तुम बगैर कुछ कहे-सुने चले आए। तुम इस अरसे में कहाँ-कहाँ और किस तरह रहे? कमरुज्जमाँ ने लज्जित हो कर चुपचाप देश छोड़ने पर पिता से क्षमा याचना की और फिर उसे अपना, बदौरा का और बेटों का पूरा हाल बताया। उसने अपने दोनों बेटों को पिता से मिलवाया। वह दोनों पौत्रों को गले लगा कर बहुत देर तक प्यार करता रहा।
फिर सारे बादशाहों और रानी मरजीना ने अग्निपूजक देश के मुसलमान बादशाह के महल में एक-दूसरे से भेंट की और तीन दिन तक राग-रंग होता रहा। सभी की सलाह से मंत्री अमजद के साथ भूतपूर्व अग्निपूजक की बेटी बोस्तान का विवाह कर दिया गया क्योंकि वह सब से पहले स्वयं ही मुसलमान हुई थी और उसी ने असद को पिता की कैद से निकाला था। इसी तरह सब की सलाह से असद का विवाह रानी मरजीना से कर दिया गया क्योंकि वह इतनी शक्तिशालिनी हो कर भी असद पर इतनी मुग्ध थी कि उसकी तलाश में भटक रही थी। असद अपनी पत्नी के साथ चला गया। अमजद को वहाँ के बादशाह ने अपना राजपाट सौंप दिया। इस सारे वृत्तांत का यह प्रभाव पड़ा कि उस देश के अधिकतर अग्निपूजक अपना पुराना धर्म छोड़ कर मुसलमान हो गए। चीन का सम्राट, खलदान का बादशाह और कमरुज्जमाँ उस देश के बादशाह की दी हुई बहुमूल्य भेंटें स्वीकार करने के बाद अपने-अपने देशों की ओर रवाना हो गए।
शहरजाद ने यह कहानी खत्म की तो दुनियाजाद ने कहा, दीदी, तुमने बहुत ही अच्छी कहानी सुनाई। मैं चाहती हूँ कि और भी ऐसी कहानियाँ सुनूँ। शहरजाद बोली, यदि मुझे आज प्राणदंड दिया गया तो कल नूरुद्दीन और फारस देश की दासी की सुंदर कथा सुनाऊँगी। बादशाह शहरयार ने इस कहानी के लालच में उस दिन भी शहरजाद का प्राणदंड स्थगित कर दिया।
स्रोत-इंटरनेट से कापी-पेस्ट

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